शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

कोई भी नागरिक भूखा न मरे- यह शासन की जिम्मेवारी है

 सुकरात और अरस्तु जैसे महान दार्शनिकों का कहना था -कि *यह राज्य के शासन प्रशासन की महत जिम्मेदारी है कि कोई व्यक्ति उस राष्ट्र में भूँखा न रहे!*

हजरत अली ने कहा था कि "यदि किसी बादशाह के राज में एक भी व्यक्ति भूखा या दीन दुखी है, तो उस बादशाह को राज करने का कोई हक नही!
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है :-
* जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी!
सो नृप अवश्य नरक अधिकारी!!
कार्ल मार्क्स और एंगेल्स भी कह गये हैं कि
"दुनिया में अन्न जल धरती और जीवन के संसाधन इतने हैं कि कोई भूखा नही रहे, किंतु ताकतवर लोग ज्यादा उत्पादन पर काबिज हैं, इसलिये बंचितों, कमजोरों और अनाथों को उनका बाजिब हक दिलाना राज्य का काम है! यदि राज्य की व्यवस्था ठीक नही तो उस सिस्टम को जबरन बदला जाए.. यही सर्वहारा क्रांति का मूल मंत्र है! "
खैर यह सब तो गुजरे जमाने की सैद्धांतिक बातें हैं, किंतु आजाद भारत के संविधान निर्माताओं ने भी 26 जनवरी 1950 को स्वीक्रत संविधान में *डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स आफ स्टेट पॉलिसी * के अंतर्गत कहा है कि "कोई भी नागरिक भूखा नहीं मरेगा यह शासन की जिम्मेवारी है साथ ही शिक्षा स्वास्थ्य और न्याय समान रूप से सभी को उपलब्ध कराने का काम स्टेट का है. " यह सवाल जुदा है कि संविधान का पालन कौन कर रहा है? वोट की राजनीति ने सबकुछ कबाड़ कर दिया है!

गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

वंदनीय हे अमर शहीदों

 एक नेताजी मरणोपरांत जब स्वर्ग सिधारे,

शहीदों ने उन्हें वहाँ प्रेम से गले लगा लिया।
पूछी कुशलक्षेम अमन की अपने वतन की,
कहो वत्स-स्विस बैंकमें कितना जमा किया?
ये आग ये धुआं,चीत्कार करुण क्रंदन क्यों,
उस निर्धन का झोपड़ा, किसने जला दिया?
वेदना से भीगी पलकें,शर्म से झुकी हुई गर्दन,
अपराध बोध पीड़ित ने, सच-सच बता दिया।
वंदनीय हे अमर शहीदों,आपके अपनों ने ही,
आपकी शहादत का ये बदतर सिला दिया !

कार्ल मार्क्स की तरह किसी ने भी 'जनता का इतिहास' नहीं लिखा !

 जब कभी हम भारतीय उपमहाद्वीप के अर्थात 'अखण्ड भारत' के राजनैतिक सामाजिक,आर्थिक सरोकारों वाले इतिहास पर नजर डालते हैं तो हम तत्सम्बन्धी इतिहास के अधिकांस हिस्से में गजब की 'धर्मान्धता' और बर्बर-विदेशी आक्रांताओं की सदियों लंबी गुलामी का इतिहास अपने ललाट पर लिखा पाते हैं!

ऐंसा लगता है कि इस भूभाग के'सुधीजनों' को परलोक की चिंता कुछ ज्यादा ही सताती रही है। हालाँकि भारतीय वेदांत दर्शन और सांख्य दर्शन ने अवश्य ही ज्ञान की सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त किया है! इसमें मानवीय चिंतन का प्रकृति और पुरुष से तादात्म्य स्थापित किया है! वैदिक परंपरा में नैतिक मूल्यों, मानवीय मर्यादाओं और सर्वमान्य आचरण पर बल दिया गया है ! मानवीय जीवन के उच्चतर मूल्यों और आदर्शों वाले धर्म मजहब से किसी को कोई इतराज नही होना चाहिये! किंतु विचित्र बिडम्बना है कि जब यूनानी और चीनी दर्शन मनुष्य जाति से ऊपर राष्ट्र को तरजीह दे रहा था, तब हमारे भारतीय दर्शनों में अहिंसा अस्तेय ब्रह्मचर्य और यम नियम आसन ध्यान धारणा समाधि को मोक्ष का मार्ग बताया जा रहा था!
इसके साथ साथ 'धर्मअर्थ काम-मोक्ष' का खूबसूरत सब्जबाग भी दिखाया जा रहा था! भारतीय दर्शनमें विक्रत 'सिस्टम' को बदलने की कोशिश करने के बजाय भारतीय मनीषी कवि साहित्यकार 'आत्मकल्याण' अर्थात आत्मोद्धार पर जोर देकर स्वयं 'बैकुंठवासी होते चले गए।
इस भूभाग के निवासी दस हजार साल से वेद पढ़ रहे हैं ,सात हजार साल से वेदांत-उपनिषद, आरण्यक पढ़ रहे हैं,पाँच हजार साल से गीता,रामायण,महाभारत पढ़ रहे हैं,ढाई हजार सालसे त्रिपिटक, महापिटक, अभिधम्मपिटक,सुत्तपिटक, पदमपुराण
और उत्तराध्ययन सूत्र पढ़ते आ रहे हैं !दो हजार साल से बाइबिल 'टेस्टामेंट' पढ़ रहे हैं,!चौदह सौ साल से हदीस-कुरआन पढ़ रहे हैं! 1000 साल से समयसार, 400 साल से रामचरितमानस, रामचन्दजशचन्द्रिका, प्रबोधचंद्रोदय,साँख्यकारिका, कबीरवाणी, गुरुग्रन्थ साहब को पढ़ते आ रहे हैं।
धरम -करम ,अध्यात्म-दर्शन का सर्वाधिक बोलवाला भारत में ही रहा है। किंतु यह घोर आश्चर्य की बात है कि सर्वाधिक गुलामी इस 'अखण्ड भारत' को ही झेलनी पडी ! सैकड़ों साल की गुलामी से भारत की किसी पीढी ने यह नहीं सीखा कि उस गुलामी का और देशके खंड खंड होने का राजनीतिक,वित्तीय सामाजिक पतन का वास्तविक कारण क्या था?
भारत में राजाओं का इतिहास ही ईश्वरीय महिमा का गान हुआ करता था। बाद में यही काम चारण भाट भी करते रहे। लुच्चे राजे राजवाड़े अपने आपको चक्रवर्ती सम्राट और दिग्विजयी सम्राट की पदवी से नवाजते रहे! जबकि असभ्य बर्बर कबीले आ-आकर इस भारत को चरते रहे। भारत की जनता को हर दौर में डबल गुलामी भोगनी पड़ी! यहां पर कार्ल मार्क्स की तरह किसी ने भी 'जनता का इतिहास' नहीं लिखा !
आजाद भारत के संविधान निर्माताओं को कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं का ज्ञान था,उन्हें मालूम था कि 'धर्म'-मजहब' के नाम पर उस सामन्तयुगीन इतिहास में किस कदर अत्यंत अमानवीय और क्रूर उदाहरण भरे पड़े हैं। वे इतने वीभत्स हैं कि उनका वर्णन करना भी सम्भव नहीं ! पंडित नेहरु और संविधान सभा के सहयोग से बाबा साहिब भीमराव अम्बेडकर ने धार्मिक -मजहबी उन्माद प्रेरित अन्याय जनित असमानता आधारित शोषण उत्पीड़न की रक्तरंजित धरा के पद चिन्हों पर न चलकर साइंस,आधारित और पाश्चात्य भौतिकवादी दर्शन आधारित विश्व के अनेक संविधानों का सार स्वीक्रत किया!
लेकिन पुरातन परंपराएं और उस दर्शन की गहरी जड़ें अब भी मौजूद हैं । अपने राज्य सुख वैभव की रक्षा के लिए न केवल अपने बंधु -बांधवों को बल्कि निरीह मेहनतकश जनता को भी 'काल का ग्रास' बनाया जाता रहा है । कहीं 'दींन की रक्षा के नाम पर, कहीं 'धर्म रक्षा' के नाम पर, कहीं गौ,ब्राह्मण और धरती की रक्षा के नाम पर 'अंधश्रद्धा' का पाखण्डपूर्ण प्रदर्शन किया जाता रहा है। यह नग्न सत्य है कि यह सारा धतकरम जनता के मन में 'आस्तिकता' का भय पैदा करके ही किया जाता रहा है।
क्रूर इतिहास से सबक सीखकर भारतीय संविधान निर्माताओं द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष -सर्वप्रभुत्वसम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया गया । यह भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति है। हमें हमेशा ही बाबा साहिब अम्बेडकर और ततकालीन भारतीय नेतत्व का अवदान याद रखना चाहिए और उन्हें शुक्रिया अदा करना चाहिए। भारत के राजनैतिक स्वरूप में धर्मनिपेक्ष लोकतंत्र ही श्रेष्ठतम विकल्प है। श्रीराम तिवारी

 मुझे आजकल ऐसा क्यों लगने लगा है, जैसे मैं आपके

मन की बातें जानने लगा हूँ
चलिये सबूत देता हूँ :
1. आप इस समय मुझे पढ़ रहे हैं
2. आप नेकदिल इंसान हैं, और
समान्यतः सबको खुश देखना चाहते हैं
3. होंठो को अलग किए बिना आप “पापा” नहीं बोल सकते
4. आपने अभी “पापा” कह कर देखा
6. ऐसा करने पर आपके चेहरे पर मुस्कान आई
7. अरे आपने न. 5 नहीं पढ़ा
8. अब आप फिर से 5 पर गए, पर वो तो है ही नहीं
9. इस बात पर फिर से हंसी छूटी, यानि की आप छोटे छोटे बातों पर हंस सकते हैं, मतलब आप एक
बेहतरीन इंसान हैं मेरे तरह
10. अब आप सोच रहे है,चलो ये हंसने खिलखिलाने का सिलसिला जारी रखा जाए और सबको किया जाये।

हरि भी मिलेंगे ज़रा धीर धर

 लिबास धर फरीद का,मन कबीर कर,

नानक की बानी बोलके,हक़ तहरीर कर।
आखर पढ़े तो ढ़ाई पढ़,पौथी को रख परे
कागा न नैन खा सके चल ये तदबीर कर ।
वारिस, रहीम, बुल्लेशा अपने क़रीब रख
टूटे न धागा प्यार का ऐसी नज़ीर कर ।
मीरा, ख़ुसरो, सूर या रसखान ढ़ूंढ़ रे
हरि हाथ भी मिलेंगे ज़रा देर धीर धर ।
,रैदास, दादू और भी बहुतेरे संत हैं
उजाले हमें दिखेंगेअँंधेरे को चीर कर ।

मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

भ्रस्ट राजनैतिक दलाल की सादगी ?

 जब कोई इंसान अपनी मेहनत की कमाई से मकान (घर) बनवाता है,तो वह अपनी जान से ज्यादा अपने घर को प्यार करता है! वह कभी भूलकर भी अपने मकान को नुकसान नही पहुँचाता! जबकि किराएदार हो या वेशर्म असभ्य अतिथि वह नुकसान किये बिना नही रहता! लगभग यही हालात भारत देश की है!

जिन्होंने इस मुल्कको आजाद कराने के लिये संघर्ष किया,एकजुट किया वे जब तक जिंदा रहे ,अपने वतन की तरक्की और सुरक्षा के लिये प्राणपण से जुटे रहे! अंत में वे अपने वतन की खातिर प्राण न्यौछावर कर गये!
लेकिन जिनके पूर्वजों का आजादी की लड़ाई में रत्ती भर योगदान नही रहा,जो लोकतंत्र में जाति - मजहब का जहर घोलते रहे,जो आरक्षण का अलापते रहे,जो मुनाफा खोरी करते रहे,जो बिना रिस्वत के कोई काम नही करते,! पूंजीखोर दो नंबरी सिर्फ कानपुर उन्नाव में ही नहीं होते,बल्कि वे पूरे भारत में लाखों की तादाद में भरे पड़े हैं! उनके मकान भी पीयूष जैन के भवनों की तरह अपने घरों मकानों में किवंटलों सोना निगल चुके हैं! उन महा भ्रस्टों के लिये यह मुल्क चरागाह बन चुका है!
इन लोगों को इस मकान रूपी मुल्क की रत्ती भर चिंता नही! जिसे अपने वतन की चिंता होती है, वह तो शहीद भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद,सुखदेव, महात्मा गांधी,लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधीकी तरह अपनी शहादत के लिये हमेशा तैयार रहता है!

सादगी देखनी हो तो महा चोट्टे दलाल कानपुरिया पीयूष जैन की देखो, साले ने घर में 257 करोड़ रुपया नकद, 250 किलो चांदी,25 किलो सोना छिपा रखा था,लेकिन बंदा न तो फार्च्यूनर से चलता था और न स्कार्पियो से!

पीयूष जैन के घर में 15 साल पुरानी एकठौ टोयटा क्वालिश गाड़ी है,पीयूष जैन खुद एक बाइक से नियमित चलता है! एक भ्रस्ट और राजनैतिक दलाल की सादगी पर कौन न बलिहारी जाए ?
उपसंहार :- यहां हमारे पड़ोसियों के पास यदि कहीं से 5 लाख रु आ जाएं तो क्रेटा फाइनेंस कराने शो रूम पहुंच जाते हैं।


'खिलाफत' बनाम 'मुखालफत'

 भारत के अधिकांस हिंदी भाषी लोग उर्दू या अरबी के 'खिलाफत' शब्द का मूर्खतापूर्वक दुरूपयोग करते रहते हैं। दरसल 'खिलाफत' शब्द का वास्तविक अर्थ है 'इस्लामिक संसार के प्रमुख की सत्ता'! सार्वजानिक तौर पर भारतीय जन मानस द्वारा इस 'खिलाफत' शब्द का सबसे पहले प्रयोग १९१९ के आस पास खिलाफत आंदोलन के दौरान किया गया था। तब इस शब्द को उसके सही अर्थ में प्रयोग किया गया था। तब का इस्लामिक जगत इस बात पर यरोपियंस से नाराज था कि उनके तथाकथित 'खलीफा' > याने इस्लामिक जगत के सर्वमान्य नेता को ईसाई राष्ट्रों की सम्मिलित ताकत ने ध्वस्त कर डाला था! महात्मा गांधी और सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में तत्कालीन कांग्रेस ने *खिलाफत आंदोलन* चलाया था! याने इस्लामिक जगत के खलीफा की गद्दी बचाने के लिये, तुर्की पर हमला करने वाले अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी!

किन्तु 1920के बाद और खास तौर से आज के दौर में 'इस्लामिक दुनिया' का कोई व्यक्ति कौम की सत्ता के केंद्र में नहीं है !अर्थात अब इस्लामिक जगत का कोई 'खलीफा' नहीं है!और जब खलीफा ही नहीं है तो उसकी *खिलाफत* याने 'खलीफा का साम्राज्य' कैसा?
मतलब दुनिया में 'खिलाफत' का अब कोई अस्तित्व ही नहीं है। फिर भी बड़े बड़े लेखक पत्रकार,स्वयंभू बुद्धिजीवी इस 'खिलाफत' शब्द की आये दिन ऐंसी-तैसी करते रहते हैं।अधिकांस पढ़े- लिख लोग इस शब्द को यदा कदा 'राजनैतिक विरोध ' या 'आलोचना' के पर्यायबाची के रूप में इस्तेमाल करते हैं! तब बड़ी कोफ़्त होती है,जब विरोध करनेके लिये वास्तविक उर्दू शब्द 'मुखालफत' मौजूद है! मुखालफत बेचारा अक्सर हासिये पर धकेल दिया जाता है!
*विरोध* की जगह *खिलाफत* लिखने वालों का खूब मजाक उड़ाया जाता है!खास तौर से उनके द्वारा जो उर्दू अरबी जानते हैं और विरोध की जगह *मुखालफत * शब्द इस्तेमाल करते हैं! श्रीराम तिवारी बनाम

संतन्ह कहूं का सीकरी सों काम ?

 संत के वेश में एक तथाकथित राजनैतिक कपट मुनि पहले हरिद्वार में संत समागम मंच पर जहर उगलने पहुंचा और उसके बाद रायपुर (छ. ग.) में नफरत का जहर उगलने जा पहुंचा ! इन दोनों मंचों का विशेष फर्क यह रहा कि हरिद्वार की घटना पर केवल हो हल्ला मचाया गया! जबकि (छ. ग.) रायपुर के मंच से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तत्काल विरोध जताया और नफरत फैलाने वाले उस नकली संत पर और उसे आमंत्रित करने वाले आयोजकों पर सख्त कार्रवाई का ऐलान किया है!

यह सर्वविदित है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीशगढ में न केवल विकास पर ध्यान दिया है, बल्कि *राम वन गमन पथ*निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है! श्री भूपेश बघेल ने इसके अलावा आदिवासियों के कुछ अन्य ऐंसे काम पूरे किये हैं,जिसके लिये पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमनसिंह और BJP ने अतीत में घोषणाएं कीं थीं! इनमें सनातन धर्मसंबंधी घोषणाएं भी थीं!
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार की लोकप्रियता से घबराकर और कुछ राज्यों में होने जा रहे चुनावों में संभावित हार के डर से भाजपाई नेताओं ने उग्र हिंदुवादी तत्वों को नकली संत का बाना पहनाकर जगह जगह पेश करने की योजना पर अमल करना शुरु कर दिया है!
इसी कड़ी में ये हरिद्वार और रायपुर की घटनाएं हुईं हैं! चूंकि कांग्रेस ने भी भाजपा की तरह फासीवादी कट्टरवादी हिंदुत्व न सही,किंतु स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी वाली नरम हिंदुवादी लाइन को अवश्य पकड़ लिया है! इसलिए अब भाजपाई नेता फिरसे उसी सिरफिरे पगलैट गोडसे को महिमा मंडित करने लगे हैं ! वे महात्मा गांधी को खुलकर गालियां दे रहे हैं!
कांग्रेस या अन्य विपक्षी धर्मनिरपेक्ष दल यदि जीवित रहना चाहते हैं,भाजपा को टक्कर देना चाहते हैं,तो उन्हें हिंदुओं की नब्ज को पकड़ना होगा! भूपेश बघेल के अहिसावादी नरम हिंदुवाद को स्वीकार करना ही होगा! इसके साथही हिंदु समाज के दर्दनाक अतीत को भी समझना होगा! गैर भाजपाई दलोंको अतीत में गुलाम हुए भारतीय समाज की कमजोरियों को नजर अंदाज नही करना चाहिये! इसके अलावा नव युवा पीढ़ी को वास्तविक धर्मनिरपेक्षता पर अमल करने का महत्व भी समझाना चाहिये!
विगत कुछ वर्षों के दरम्यान आईएसआईएस आतंकवादियों ने सीरिया इराक के पुरातन धार्मिक प्रतीकों को और तालिबानियों ने अफगानिस्तान के वामियान बुद्ध के तमाम बुत ध्वस्त किए हैं। पुरातन भारतीय साहित्य कला और अहिंसावादी धार्मिक अवशेषों के विध्वंशक अपने आपको जिस किसी मजहब का अलंबरदार मानते रहे हों,किन्तु यह सोच का विषय है कि हिंसक लोग विजेता कैसे बन गये? और अहिंसा के पुजारी पददलित क्यों हुए? 2000 साल पुरानी बुद्ध प्रतिमाएँ ध्वस्त करने वाले यदि आज अफगानिस्तान और कश्मीर में आग लगा रहे हैं,तो भारत के हिंदु समाज को अहिंसावाद पर कब तक यकीन करते रहना चाहिये?
यदि हिंसक हमलावर आस्तिक थे,तो उन्होंने चुन-चुनकर जिन अहिसावादी हिंदुओं, बौद्धों और जैनों को मारा, क्या वे 'नास्तिक' थे? जबकि हमलावरोंके आचरणसे यह जनश्रुति सत्य प्रतीत होती हैकि मध्ययुग में हिंश्र बर्बर आक्रमणकारियों ने सुदूर अफगानिस्तान के बामियान और सीरिया -ईराक की तरह ही भारत की सभ्यता -संस्कृति को भी बुरी तरह रौंदा होगा !
उन्होंने लाखों मंदिर नष्ट किये,करोड़ों हिन्दू मारे उसका गम नहीं किन्तु तक्षशिला,नांलंदा विश्वविद्यालय,उनके विशाल पुस्तकालय भी जलाये! यह अक्षम्य अपराध है। जब कोई दल या राजनैतिक पार्टी चुनावों में इस दुखद इतिहास को भुनाए तो धर्मनिरपेक्ष दलों की हार निश्चित है! इसलिये भूपेश बघेल की नरम हिंदूवाद की लाइन गलत नही है!

*जय आनंदम Indore ''

 जय आनंदम बनाम सरकारी आनंदम ''

१४ जनवरी २०१७ को मध्यप्रदेश के अधिकांस अखबारों में और टीवी चेनल्स पर 'विज्ञापन' के रूप में मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान की आकर्षक तस्वीर के साथ भावात्मक शब्दावली में उनकी एक विशिष्ठ 'अपील' प्रकाशित हुई थी ! कुल जमा दस लाइनों के विज्ञापन का सार यह था कि ''जरुरतमंद की सहायता करना पूण्य का कार्य है और १४ जनवरी-२०१७, मकर संक्रांति के पावन अवसर पर 'आनंदम' की अवधारणा का माननीय मुख्यमंत्री जी शुभारम्भ कर रहे हैं !" इस विज्ञापन को जिस किसी ने देखा हो वह अंतिम लाइन पर गौर फरमाएं ' आइये 'आनंदम' को सफल बनाने में अपना योगदान करें '! अब आनंदम कोई भौतिक रूप आकर की वस्तु तो है नहीं कि आदान-प्रदान की जा सके। वैसे भी मध्यप्रदेश की जनता ने विगत ११ साल से अपने मताधिकार का प्रयोग करके 'शिव परिवार' और संघ परिवार को केवल 'आनंदम 'ही तो दिया है। रहा सवाल सरकार द्वारा जनता को 'आनंदम लौटाने का तो 'नोटबंदी' और व्यापम जैसे बहुत से लड्डू हैं जो सरकार ने अतीत में देश की जनता को दिए हैं। ये बात जुदा है कि आम जनता उन अच्छे दिनों के लड्डुओं को न निगल पाई और न उगल पाई ।
माननीय शिवराजसिंह जी यशश्वी हों! दीर्घायु हों ! मकर संक्रांति २०२१ की अग्रिम शुभकामनाएं ! वे अपने इस गुरुतर कार्य याने 'आनंदम' के कार्यान्वन में सफल हों !हालाँकि अभी यह जाहिर नहीं किया गया कि इस मद में सरकार कितना खर्च करने जा रही है। यह कहना भी मुश्किल है कि इस 'आनदंम' रुपी अभियान का 'पुण्यफल' कौन -कौन खायेगा ? भाजपा और संघ परिवार तो पहले से ही चकाचक पूर्ण आनंदमय हैं । किन्तु यदि मध्यप्रदेश के नंगे -भूंखे लाखों बेघर सर्वहारा इस वक्त कड़कड़ाती ठण्ड में तत्काल एक-एक कम्बल और एक-एक सस्ता स्वेटर भी पा जाएँ तो उन्हें असीम 'आनंदम' की प्राप्ति होगी ! माननीय मुख्यमंत्री जी को 'पुण्यफल' अवश्य मिलेगा! कुछ खास 'आनंदम' उनकी पार्टी को भी प्राप्त होगा !
हालाँकि ''आनंदम' का यह महत कार्य स्वतःस्फूर्त रूप से 'Anandamindore' नामक संस्था विगत ११ साल से निरन्तर कर रही है। बिना किसी सरकारी मदद के ,बिना किसी देशी-विदेशी चन्दे के,बिना किसी तरह के प्रचार और ढिंढोरा पीटे सिर्फ सदस्यों के ऐच्छिक सहयोग से उनके नियमित योगदान से आनंदम इंदौर ने अनेक कीर्तिमान अर्जित किये हैं ! हालांकि मेरी पत्नी की गंभीर बीमारी और स्वयं अश्थमेटिक और एलर्जी पीड़ित होने के कारण आनंदम इंदौर से न चाहते हुए भी मेरा सम्पर्क टूट गया। ..
''आनंदम' की इस महती अवधारणा को इंदौर के सीनियर सिटीजन्स बहुत पहले ही ह्र्दयगम्य कर चुके हैं। मुझे गर्व है कि मैं स्वयं इस महान संस्था से जुड़ा रहा हूँ। माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंहजी को शायद मालूम न हो कि 'आनंदम' की इस अवधारणा को व्यापक रूप प्रदान करने में आनंदम इंदौर के साथी [सीनियर सिटीजन्स ] बहुत आगे हैं। उनके सूचनार्थ आनंदम इंदौर द्वारा किये जाने वाले कुछ कार्यों का ब्योरा इस प्रकार है :-
१-आनंदम इंदौर द्वारा वेरोजगार निराश्रित महिलाओं को 'मा शारदा मठ ' के सहयोग से स्वरोजगार और कुटीर उद्द्योग का प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्हें यथासम्भव सिलाई मशीन ,और अन्य उपकरणों की निशुल्क आपूर्ति भी यथासम्भव की जाती है।
२-निर्धन -निराश्रित बच्चों ,रोजनदारी मजदूरों के बच्चों ,झुग्गी झोपड़ियों के रहवासी बच्चों को निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था,यूनिफॉर्म,बुक्स और भोजन की व्यवस्था की जाती है।
३- जिस क्षेत्र में आनंदम [स्कीम-७४ विजयनगर,इंदौर] ट्रस्ट ने किराये का भवन ले रखा है ,उस क्षेत्र में समुचित साफ़ सफाई की निगरानी ,सार्वजनिक जागरूकता और नैतिक सजगता के लिए आनंदम इंदौर की सक्रिय है !
४- आनंदम के अधिकांस सदस्य 'सीनियर सिटीजन्स' ही हैं। अधिकांस के पुत्र-पुत्रियाँ बाहर हैं। कुछ के तो विदेश में ही बस चुके हैं ,आनंदम इंदौर द्वारा सभी को बेहतर जीवन जीने का उचित मार्गदर्शन मिलता है।
५-सभी आनंदम सदस्यों का 'जन्मदिन' संस्थागत रूप से और शानदार ढंग से मनाया जाता है। आनंदम में ५५ से ९२ वर्ष तक की आयु के सदस्य हैं ,आनंदम में सभी बुजुर्ग सदस्यों को युवाओं जैसा प्रोत्साहन मिलता है। कोई भी अपने आपको कभी भी अकेला महसूस नहीं करता !
६-आनंदम के सदस्यों में कुछ सेवानिवृत उच्चाधिकारी भी हैं ,वे सभी अपने हुनर और काबिलियत से देश के बड़े-बड़े डॉक्टर्स को हर महीने 'आनंदम' बुलाते हैं। अभी तक मेदान्ता के डॉ नरेश त्रेहन,अपोलो के डॉ प्रताप रेड्डी ,डॉ राव डॉ भरत रावत और विभिन्न मर्ज के विशेषज्ञ नामचीन्ह डॉक्टर्स ने 'आनंदम'के सदस्यों को अपनी सेवाएं 'मुफ्त' में प्रदान की हैं। मेदांता,अपोलो और कनक जैसे कई हॉस्पिटल्स हैं ,जिनके बेहतरीन डॉक्टर्स आनंदम इंदौर को यथासम्भव सहयोग कर रहे हैं।
७ - सीनियर सिटीजन्स द्वारा स्थापित और उन्ही के द्वारा संचालित आनंदम इंदौर में हर माह कथा -कविता-कहानी और साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन नियमित होता रहता है। यहाँ एक लायब्रेरी भी है।
८- आनंदम इंदौर में भजनसन्ध्या , ध्यान योग ,ज्ञानामृत सत्संग,फिजिकल फिटनेस बावत योगा और बुर्जगों के लिए शतरंज इत्यादि खेलों की भी व्यवस्था है।
९- आनंदम इंदौर द्वारा महीने में एक बार गीत -संगीत निशा का शानदार आयोजन हुआ करता है। हर धर्म-मजहब का प्रत्येक त्यौहार यहाँ हर्ष उल्लाश से मनाया जाता है।
१०- आनंदम इंदौर द्वारा तीर्थाटन और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के निमित्त टूर आयोजन भी किये जाते हैं।
एमपी गवर्मेंट यदि चाहे तो आनंदम इंदौर से प्रेरणा ले सकती है। आनदं इंदौर उनकी पर्याप्त मदद कर सकता है। ''Anandamindore' के अध्यक्ष श्री नरेन्द्रसिंहजी [सेवानिवृत एक्साइज कमिश्नर] तो पद्मश्री पाने के हकदार हैं। श्री सूरज खंडेलवाल जी,वासुदेव लालवानी जी,मिस्टर पिंटू भाटिया और मिसेज भाटिया एवं श्री विजय शर्मा जी जैसे उद्भट विद्वान और समाजसेवी तो प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार द्वारा सम्मानित किए जाने के हकदार हैं। अन्य पदाधिकारियों और सदस्यों में भी समाज सेवा का अविरल भाव है। उनसे संपर्क कर समाज और राष्ट्र के लिए और अधिक लाभ उठाया जा सकता है !
श्रीराम तिवारी !

रविवार, 26 दिसंबर 2021

अविद्या क्या है ?

 एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा की बीरबल यह अविद्या क्या है ?*

बीरबल ने बोला कि आप मुझे 4 दिनकी छुट्टी दे दो फिर मैं आपको बताऊंगा !
अकबर राजी हो गया और उसने चार दिनों की छुट्टी दे दी !
बीरबल मोची के पास गया और बोला कि भाई जूती बना दो,मोची ने नाप पूछी तो बीरबल ने बोला भैया ये नाप वाप कुछ नहीं। डेढ़ फुट लंबी और एक बित्ता चौड़ी बना दो,और इसमें हीरे जवाहरात जड देना । सोने और चांदी के तारों से सिलाई कर देना और हाँ पैसे वैसे चिंता मत करना जितना मांगोगे उतना मिलेगा।
तो मोची ने भी कहा ठीक है भैया तीसरे दिन ले लेना !
तीसरे दिन जूती मिली तब पारितोषिक देने के पहले बीरबल ने उस मोची से एक ठोस आश्वासन ले लिया कि वह किसी भी हालात में इस जूती का कभी भी जिक्र नहीं करेगा यानि हर हालात में अनजान बना रहेगा ।
*अब बीरबल ने एक जूती अपने पास रख ली और दूसरी मस्जिद में फेंक दी । जब सुबह मौलवी जी नमाज पढ़ने (बाँग देने ) के लिए मस्जिद गए तो मौलवी को वो जूती वहाँ पर मिली।*
*मौलवी जी ने सोचा यह जूती किसी इंसान की तो हो ही नहीं सकती जरूर अल्लाह मियांनमाज पढ़ने आया होंगे और उसकी छूट गई होगी।*
*तो उसने वह जूती अपने सर पर रखी, मत्थे में लगाई और खूब जूती को चाटा ।*
*क्यों ?*
*क्योंकि वह जूती अल्लाह की थी ना ।*
*वहां मौजूद सभी लोगों को दिखाया सब लोग बोलने लगे कि हां भाई यह जूती तो अल्लाह की रह गई उन्होंने भी उसको सर पर रखा और खूब चाटा।*
*यह बात अकबर तक गई।*
*अकबर ने बोला, मुझे भी दिखाओ ।*
*अकबर ने देखा और बोला यह तो अल्लाह की ही जूती है।*
*उसने भी उसे खूब चाटा, सर पर रखा और बोला इसे मस्जिद में ही अच्छी तरह अच्छे स्थान पर रख दो !*
*बीरबल की छुट्टी समाप्त हुई, वह आया बादशाह को सलाम ठोका और उतरा हुआ मुंह लेकर खड़ा हो गया।*
*अब अकबर ने बीरबल से पूछा कि क्या हो गया मुँह क्यों 10 कोने का बना रखा है।*
*तो बीरबल ने कहा राजासाहब हमारे यहां चोरी हो गई ।*
*अकबर बोला - क्या चोरी हो गया ?*
*बीरबल ने उत्तर दिया - हमारे परदादा की जूती थी चोर एक जूती उठा ले गया । एक बची हैः*
*अकबर ने पूछा कि क्या एक जूती तुम्हारे पास ही है ?*
*बीरबल ने कहा - जी मेरे पास ही है ।उसने वह जूती अकबर को दिखाई । अकबर का माथा ठनका और उसने मस्जिद से दूसरी जूती मंगाई और बोला *या अल्लाह मैंने तो सोचा कि यह जूती अल्लाह की है मैंने तो इसे चाट चाट के चिकनी बना डाली*😀😀
बीरबल ने कहा राजा साहब यही है *अविद्या* ।