मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

कहाँ हो पशुपतिनाथ , कहाँ दिव्य शक्ति धवल ?


  धवल हिमालय की धसन ,ध्वस्त-पस्त नेपाल।

  भूकम्पों  की मार से ,  काठमाण्डू  बदहाल।।


  काठमाण्डू  बदहाल ,विपद में नेपाली भाई।

  जाने कहाँ गयी  रसद  , मदद जो भारत से आई।।


  चहुँ दिश  हाहाकार , विकल  हैं वाशिंदे सकल।

  कहाँ  हो  पशुपतिनाथ , कहाँ दिव्य शक्ति  धवल।।

      
                            श्रीराम तिवारी

     

रविवार, 26 अप्रैल 2015

"Who is the Father of India?"




   भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपना सम्पूर्ण जीवन न्यौछावर  कर देने के उपरान्त  बमुश्किल ही  मोहनदास करमचंद गांधी याने बापू  को  "राष्ट्रपिता' [Father Of The Nation] का अनौपचारिक  खिताब हासिल हो पाया।  यह भी  किसी से छिपा नहीं है कि 'महात्मा गांधी' को  राष्ट्रपिता मान लेने में अभी भी बहुतों को आपत्ति है। दरसल 'महात्मा गांधी' को दिया गया 'राष्ट्रपिता'   का सम्मान तो सीमित ऐच्छिक अवकाश की तरह है कि  चाहो  तो उन्हें 'राष्ट्रपिता' मानो या यदि मर्जी  न हो तो मत  मानों।  हालाँकि  इससे उनकी महानता पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता। किन्तु इतना तो तय है कि  वे निर्विवाद 'फादर ऑफ  द  नेशन ' तो  निश्चय ही नहीं बन पाये हैं।  यह स्वयंसिद्ध है कि  भारत के संदर्भ में 'फादर ऑफ  द  नेशन'  का तातपर्य है  'फादर ऑफ  इंडिया'!

              खबर ही कि  दक्षिण अफ़्रीकी [पूर्व]क्रिकेटर जोंटी रोड्स ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति से प्रेरित होकर  अभी हाल ही में मुंबई में जन्मी अपनी नवजात बिटिया का नाम 'इंडिया' रखा है। इस तरह जोंटी रोड्स भी अब 'फादर ऑफ  द  इंडिया ' बन चुके हैं। आम  तौर  पर यह भारतीय जन- मानस के लिए गौरव की बात हो सकती है कि  किसी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर या सेलिब्रटी ने यदि अपनी बेटी का नाम करण  करने में अपनी दक्षिण अफ़्रीकी वर्तमान  सभ्यता या सनातन 'श्वेत सभ्यता' के बरक्स  भारत की  'बहुलतावादी सभ्यता' को तरजीह दी है। सभी दूर से  जोंटी रोड्स और उनकी पत्नी मेलानी  को ढेरों बधाइयाँ  मिल रहीं हैं। उनकी बिटिया को भारतीय नागरिकता भी हाथों हाथ मिलने जा  रही है।  किन्तु जोंटी रोड्स की इस गणेश परिक्रमा से  मुझे  घोर  ईर्ष्या  हो रही  है।  बुद्धि चातुर्य या भावात्मकता जो भी  कहें लेकिन बहरहाल तो  अपनी बेटी  का  नाम   'इण्डिया'  रख देने मात्र से  मिसेज मेलानी 'मदर ऑफ  द  इंडिया ' बन चुकी हैं। आईपीएल में व्यस्त  मिस्टर   जोंटी रोड्स  सदा -सदा के लिए  'फादर ऑफ द  इंडिया बन गए हैं  ! आइन्दा सामन्य ज्ञान की पुस्तकों में यह प्रश्न  भी  इन्द्राज  अवश्य  होगा  कि

                   "Who is the Father of India?" 
      
       चूँकि अब  ' इंडिया'  किन्ही  महानुभाव की बिटियाका भी नाम है इसीलिये स्वाभाविक तौर  पर सही जबाब होगा -जोंटी रोड्स इज द  फादर आफ इण्डिया !

                                            श्रीराम तिवारी 

सोमवार, 20 अप्रैल 2015

एक -मई अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस -जिंदाबाद !


जिस तरह दुनिया भर की  सरकारें हर साल अपना 'सालाना बजट' प्रस्तुत किया करतीं हैं , ठीक उसी तरह  देश और  दुनिया  के मेहनतकश -मजदूर -किसान -कर्मचारी तथा  आजीविका के लिए संघर्षरत युवजन भी लाल झंडे लहराकर  हर साल -'एक मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस' पर अपने संघर्षों की बानगी पेश करते हैं। इसीके  साथ -साथ वे  अपने 'वर्गशत्रुओं' के अन्याय और अत्याचार   का  भी मीजान अवश्य  लगाते हैं । ताकि पूँजीपति  और भृष्टतम शासकगणों के रूप में 'वर्गशत्रुओं' के  निहित स्वार्थी  हमलों की तीव्रता  को कुछ कम किया जा सके ! ताकि मेहनतकषवर्ग अर्थात  शोषित-पीड़ित सर्वहारा वर्ग भी अपनी व्यापक  एकजुट ताकत तथा संघर्ष क्षमता  का इजहार  कर  सकें !
             वैसे तो  'एक -मई  अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 'का इतिहास लगभग १३०  साल पुराना है। समस्त  सभ्य संसार में ,समस्त  शिक्षित और  विचारशील समाजों में , तमाम विवेकशील नर - नारियों में इस महानतम - विश्व व्यापी उत्सर्ग दिवस  के प्रति क्रान्तिकारी आदरभाव  सदैव विद्यमान  रहा है। इस महान शहादत दिवस  पर संसार के तमाम मेहनतकश अपने अमर शहीदों को  श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।  इसके साथ ही वे अपने-अपने देशों की सरकारों ,व्यवस्थाओं  तथा मेहनतकश वर्ग के प्रति उनके दृष्टिकोण अर्थात नीति-रीति की  भी विवेचना करते हैं। एकध्रुवीय विश्व आधारित भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के खुलेपन की अवधारणा से प्रेरित होकर दुनिया के अधिकांस देशों की तरह  भारत में भी श्रमिक और कामगारों के हितों की उपेक्षा हुई है तथा मेहनतकश  वर्ग का  शोषण -उत्पीड़न बढ़ा है।
                                   विगत १०-१५ सालों से भारतीय शासक वर्ग का झुकाव तेजी से उग्र पूंजीवाद  की ओर  रहा  है अर्थात आर्थिक नीतियों का झुकाव कार्पोरेट लाबी के पक्ष में रहा है।अटलबिहारी सरकार [एनडीए] मनमोहन सरकार [यूपीए -१ और २ ] के दौर में श्रम  कानूनो को शनेः -शनेः संकुचित किया जाता रहा  है। वर्तमान मोदी सरकार  की  कार्पोरेट परस्त आर्थिक नीति और मेहनतकषवर्ग के प्रति विद्वेषपूर्ण  सोच को  भारत के आधुनिक उच्चशिक्षित युवा  समझ नहीं पा रहे हैं। अधिकांस युवा निजी क्षेत्र में ही खप  रहे हैं। वे एमबीए ,एमसीए,बी ई,बी टेक, कुछ भी हों किन्तु उनकी ओकात बंधुआ मजदूर से अधिक नहीं है।  सरकारी क्षेत्र में सीमित अवसर होने ,आरक्षण होने  और 'पैसे की पकड़ ' होने से देश के अधिकांस योग्यतम प्रतिभाशाली युवा सरकारी क्षेत्र में प्रवेश से वंचित हैं। इसीलिये वे  पेंशन , ग्रेचुटी ,लीव इनकेशमेंट या एलटीसी का मतलब भी  नहीं जानते।  ये वेचारे युवा निजी क्षेत्र में खपकर  मामूली से पारिश्रमिक के एवज में अपनी जवानी बेच रहे हैं। चूँकि वे संगठित नहीं हैं ,चूँकि वे राजनीति  की क्रान्तिकारी सोच से महरूम हैं इसलिए वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष भी नहीं करते। आजकल का युवा फेसबुक ,वॉट्सऐप ,गूगल और इंटरनेट पर व्यस्त है उसे नहीं मालूम कि  इंकलाब किस  चिड़िया  का नाम है ?उन्हें अपने बुढ़ापे की या अपने माँ-बाप के बुढ़ापे की कोई चिंता नहीं।  फिर भी संतोष की बात  है  कि  एसएफआई ,डीवाइफ और वामपंथी यूनियनें  इस दिशा में निरंतर संघर्ष शील हैं।

                              भारत में  सीटू- एटक- एचएमएस सहित  तमाम मजदूर-कर्मचारियों के स्वतंत्र फेडरेसन और परिसंघ  मई -दिवस के  अवसर पर देश भर में रैलियाँ  ,आम सभाएँ- जुलूस इत्यादि का आयोजन करते हैं।इस अवसर पर पम्फलेट ,पोस्टर और आलेखों के माध्यम से 'एक मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस ' के महत्व और उसके  महान शहीदों को स्मरण  करते हुए क्रांतिकारी संघर्षों के साथ -साथ मजदूरों के आंदोलनों की महता - प्रासंगिकता  को भी  रेखांकित किया जाता  है।     
                          युवा पीढ़ी को स्मरण कराया जाता  है कि  मानव द्वारा मानव के शोषण का इतिहास कितना  पुराना है ? शक्तिशाली व्यक्तियों ,समाजों और  राष्ट्रों द्वारा -निर्बल व्यक्तियों,शोषित समाजों ओर गुलाम राष्ट्रों के  शोषण -दमन -उत्पीड़न का इतिहास  जितना पुराना है अन्याय के  प्रतिकार का ,संघर्षों का  और  बलिदान का  इतिहास भी उतना ही पुरातन है। हर किस्म के अमानवीय शोषण -दमन - उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने  के यादगार इतिहास में '१ -मई -१८८६'का दिन  दुनिया के मेहनतकशों के लिए सर्वाधिक-  स्मरणीय है। पूँजीबाद के शोषण का तत्कालीन स्वरूप इतना क्रूर  और  भयावह था कि मेहनतकशों को पशुवत जीवन के लिए मजबूर किया जाता था। उनकी उजरती  मजदूरी तो नितांत दयनीय थी ही  साथ ही  काम के घंटे  भी १८ से बीस  तक हुआ करते  थे। अपनी औपनिवेशिक  स्वतंत्रता  और  औद्द्योगिक क्रांति के उपरान्त   'संयुक राज्य अमेरिका '  दुनिया में  जब एक  महाशक्ति के रूप में विकसित हो रहा था। तब   तत्कालीन  पूँजीपतियों  को अपने मुनाफे के लिए  सस्ता श्रम ,सस्ती जमीन और  समर्पित  -पक्षधर क़ानून व्यवस्था की दरकार थी। परिणामस्वरूप मजदूरों ,कामगारों  के पास गुलामी की बेड़ियों के सिवा सिर्फ़ अपना  'श्रम ' का ही आसरा था।  वे अपने मालिकों को सस्ते में  श्रम बेचने को बाध्य  हुआ करते थे। मजदूरों का  बदतर जीवन और मालिकों की  ऐयाशी के बीच  जो जमीन आसमान  का फर्क पैदा हुआ उसने  सामाजिक विद्रोह की स्थति पैदा कर दी। मेहनतकश वर्ग का संगठित आक्रोश संघर्ष की मशाल में तब्दील हो गया।

                               मजदूर संघों के उदय ओर उनकी वर्गीय चेतना ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाने  का काम किया। मेहनतकशों की मांग थी की "एक दिन में  काम के घंटे आठ होने चाहिए "। शिकागो  शहर के 'हे मार्किट स्कॉयर ' पर मजदूर  अपनी मांग को लेकर - शांतिपूर्ण ढंग से  प्रदर्शन और आम सभा कर रहे  थे। उन  अहिंसक  मजदूरों पर मालिक परस्त पुलिस  ने अचानक  गोलियों  की बौछार कर दी। इस बर्बर गोलीकांड में  कई मजदूर मारे गए।  अनेक मजदरो और उनके नेताओं पर झूंठे मुकदमें  भी लाद दिये गए। कई को फांसी दे दी गई। कई मजदूरों को आजीवन कारावास भोगने के लिए जेलों में जबरन ठूँस  दिया गया।  जबकि उनका कसूर सिर्फ इतना था कि  उन्होंने न केवल खुद के  लिए ,बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए भी अपनी आवाज बुलंद की ! उन्होंने हम सब के लिए ,समस्त संसार के मेहनतकशों के लिए अपना श्रेष्टतम बलिदान दिया।जिन्होंने यह महान शहादत दी उनके लिए हमारे दिलों में सदैव कृतग्यता भाव रहेगा । हम सदैव उनके आत्म बलिदान से प्रेरणा लेते रहेंगे। 
                     मई दिवस के उस निर्मम हत्याकांड  से बचे-खुचे कुछ  बहादुरों साथियों -अलबर्ट पार्सन्स ,अगस्त स्पाइस ,अडोल्फ़ फिशर जार्ज एन्जेल को  तो फांसी दे दी गई। समूल फील्डन ,मिखाइल इकबाग ,ऑस्कर नीबे को आजीबन सश्रम  कारावास ओर लुइस लींग  जैसे बहादुर क्रांतिकारियों की जेल में हत्या करवा दी गई।इस शहादत का असर और रंग तब और गाढ़ा होता चला गया जब महान अक्टूबर क्रांति और दुनिया भर में तमाम देशों में लाल क्रांतियों' के झंडे बुलंद होते गए। लेकिन इतिहास अपने आप को दुहराता है। अभी मेहनतकशों के पराभव और लुटेरी ताकतों के अच्छे दिनों का दौर है।  यह मई दिवस हम सभी को ,मेहनतकश - शोषित वर्ग को ज्यादा संघर्ष करने -ज्यादा संगठित होने का संदेश दे रहा है।

         शिकागो के शहीद मजदूरों के बलिदान  की उस शौर्य  गाथा में  क्या जोश था ? वह आज भी प्रासंगिक है।  एक शहीद मजदूर की १२ साल की बेटी ने अपने मृतप्राय  पिता को जब  पूंजीपतियों के हत्यारे हुक्मरानों की गोलियों से रक्तरंजित देखा तो  मातम मनाने के  बजाय उस लड़की ने आक्रोश से मुठ्ठी भींचकर अपने पिता के लहू से रक्तरंजित उनकी  शर्ट  को हवा में लहराया  दिया । आसमान में मुक्का तानकर, अपना बाल्य रोष व्यक्त कर, इस धरती के समस्त  मेहनतकशों को उस  अबोध लड़की ने अनायास ही लाल झंडे  का अन्वेषण कर दिया। शहीदों के रक्त से सना   वह लाल झंडा तभी  से सारे संसार के क्रांतिकारियों -मजदूरों और  उनके पावन संघर्षों का प्रतीक बन चुका है। आज के युवा , छात्र ,नौजवान और एक्टिविस्ट  उस महान शहादत से कितनी ऊर्जा ले रहे हैं ? यह  विचारणीय है !

             सवा सौ साल से लगातार  संसार के  तमाम मेहनतकश -मजदूर -कर्मचारी ओर किसान इस  एक -मई अंतरार्ष्ट्रीय  मजदूर  दिवस को  एक  क्रान्तिकारी अभिव्यक्ति दिवस   के रूप  में  मिलकर  मनाते हैं।इस दिन
 दुनिया के  तमाम मजदूर शिकागो के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर अपनी बिरादराना एकता का भी  इजहार   करते हैं। शोषण -दमन उत्पीड़न तथा राज्य सत्ता की विनाशकारी नीतियों का प्रतिरोध करते हुए विश्व   सर्वहारा वर्ग  न केवल  अमेरिका ,न केवल यूरोप ,न केवल  भारत , न केवल अफ्रीका बल्कि सारे संसार को  साम्राज्य वादियों के चंगुल से मुक्ति  की कामनार्थ  आवाज बुलंद करता है। वर्तमान आर्थिक उदारीकरण  के दौर में भी  दुनिया के मेहनतकश अपने-अपने राष्ट्रों में समता ,न्याय और मानवीयकरण की व्यवस्था के लिए संघर्ष रत हैं। बढ़ती हुई महँगाई ,बेरोजगारी ,निजीकरण ,ठेकाकरण तथा अन्य जन -सरोकारों को लेकर भारत का ट्रेड  यूनियन आन्दोलन  संगठित संघर्ष के लिए निरंतर सक्रिय है।
 
       भारत में  विगत मई-२०१४ को जबसे केंद्र में  भाजपा नीत  मोदी सरकार सत्ता में आयी है तबसे हर मोर्चे पर देश को संकटों  ने घेर रखा है।  किसान आत्म हत्याएं ,साम्प्रदायिक हिंसा ,रेप ,घूसखोरी ,भृष्टाचार का चारों और भयानक मंजर है।  चौतरफा  बदहाली है। इन  तथाकथित  हिंदुत्वादियों के सत्ता में आते ही इंद्र देव  के विनाशकारी  तेवरों ने   किसानों की फसलें  बर्बाद कर डाली है।  मोदी सरकार के सत्ता में आते ही अल्पसंख्यक वर्ग अनावश्यक रूप से भयभीत होने लगा  है। सरकार के विरोध में लड़ने के बजाय मेहनतकशों में हिन्दू-ईसाई  हिन्दू -मुस्लिम भेद पनपने लग  गया है। कश्मीर सहित  देश  के अंदरूनी भागों में आईएसआईएस ,अलकायदा और सिमी उग्रवादियों ने  पाक  परस्त  आतंकी अलगाववादियों  से एका करके भारत के  खिलाफ  छद्म युद्ध  छेड़ रखा  है।  देश में न तो सुशासन है ,न भृष्टाचार कम हुआ और कालेधन का कहीं अता-पता  भी नहीं है।इन बदतर हालात में मजदूर -किसान के  मुद्दे  भी नेपथ्य में चले गए हैं। 

                भाजपा और  मोदी जी की काल्पनिक हिन्दुत्ववादी छवि के बरक्स अल्पसंख्यक कतारों के  कुछ नापाक  तत्वों ने  पूरे भारत को ही अपने हमलों की जद  में ले लिया है ।  इस मई दिवस का  सामयिक संदेश  यही है कि देश के मजदूरों -किसानों की और नौजवानों की व्यापक एकता से उनके सार्थक क्रान्तिकारी संघर्षों  को विकसित किया जाए। साम्प्रदायिकता और जातीयता  के संघर्षों को पनपने नहीं दिया जाए। तभी  देश की सुरक्षा सम्भव है।  देश के मेहनतकश वर्ग को  यदि अपने हिस्से की  जमीन-जल-जंगल चाहिए ,अपने  हिस्से का आसमान चाहिए ,यदि शोषण से मुक्ति  चाहिए तो वर्तमान   विनाशकारी पूँजीवादी  नीतियों के खिलाफ एकजुट संघर्ष करना  ही होगा। मेहनतकषवर्ग  के समक्ष उनकी व्यापक एकता  और संघर्ष के अलावा कोई और विकल्प नहीं। इस दौर में राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता की सुरक्षा  भी अत्यंत आवश्यक है। इसलिए इस मई दिवस पर भारत के मेहनतकशों को न केवल कार्पोरेट परस्त नीतियों का विरोध  करना होगा ,बल्कि उजबक  साम्प्रदायिकता से  भी लड़ना होगा।  देश की सुरक्षा संप्रभुता के लिए भी एकजुट  संघर्ष करना होगा।

                   वर्तमान परिदृश्य में लेफ्ट फ्रंट को छोड़  बाकी सभी राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं  ने मजदूरों की  दुर्दशा के  बारे में  या किसानों की आत्महत्या -दूर्दशा के बारे में केवल  मगरमच्छ के आंसू ही बहाये हैं। अधिकंस सत्तारूढ़ नेताओं ने तो राजनैतिक  लफ्फाजी का ही इस्तेमाल किया है।  इसीलिए  भारत के मेहनतकश मजदूर -कर्मचारी -किसान और  आवाम के शोषित पीड़ित जन  को आज -एक -मई मजदूर दिवस पर सामूहिक संकल्प लेना होगा  कि "हम  जाति,धर्म,मजहब या क्षेत्रीयता के नागपाश में नहीं बंधेंगे, हम  घोषणा करते हैं कि एक  शोषण विहीन ,न्यायसंगत   बेहतर दुनिया  का  निर्माण जब तक नहीं हो जाता  तब तलक  शोषण के खिलाफ  अपना संघर्ष जारी  रखेंगे " ! शोषण की समाप्ति तक - एक  नए  क्रान्तिकारी  युग के आगमन तक- देश और दुनिया के 'सर्वहारा' वर्ग का  संघर्ष  निरंतर जारी रहेगा !!

       एक-मई के अमर शहीदों को लाल -सलाम !   शिकागो  के अमर शहीदों को लाल सलाम !!

       दुनिया के मेहनतकशों -एक हो -एक  हो !!     पूंजीवाद हो बर्बाद !  साम्राज्यबाद मुर्दाबाद !!


                             एक -मई अंतरराष्ट्रीय  मजदूर दिवस -जिंदाबाद !

                               यदि   नंगा -भूँखा इंसान रहेगा,,,,,,,,,, तो धरती पर तूफ़ान रहेगा ,,,,,,,,,!
                                              

                                              इंकलाब -जिंदाबाद  ! ! 

                                                             :-श्रीराम तिवारी

 
         

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत चारों ओर से आने वाली है !



    जर्मनी- फ़्रांस -कनाडा में मजमा लगाने से कुछ नहीं होगा बंधुवर  ,

    वतन  पर संकट मंडराया चारों ओर आतंकियों ने कुदृष्टि डाली है।

    दुर्गति  हो चुकी ओला -बारिस पीड़ित किसानों की-खेत मजूरों की,

    उजड़ा -उजड़ा सा है चमन फिर भी  फीलगुड में अभी तक  माली है।।

    न सँभलोगे तो मिट जाओगे तुम भी ये  नसीब  वालो ! याद रखो !

    तुम्हारे राज में  तो देश की एकता खतरे में  और गऱीबों के पेट खाली हैं

    आम आदमी पर  बढ़ते जुल्म  आतंकवादियों के भी हौसले बुलंदी पर ,

     वतन की फ़िक्र कर नादाँ आइन्दा  मुसीबत  चारों ओर से आने वाली है।

                           श्रीराम तिवारी 

भाजपा रुपी चौबे कहीं छब्बे बनने के चक्कर में दुब्बे ही न रह जाएँ !

हिंदूवादी होने का स्वांग  भरने वाली   राजनैतिक पार्टियाँ और उनके हमदर्द उत्तरप्रदेश के रामपुर धर्मांतरण काण्ड पर लाख रोना रोएँ किन्तु इस घटना से  यह तो पूर्णरूपेण सिद्ध हो गया कि  भाजपा हिन्दुओं की रक्षा नहीं कर सकती। आजमखान या किसी और नेता को कोसने के बजाय 'संघ परिवार' और भाजपा अपने गरेवान  में झांककर देखे कि उसके ढ़पोरशंखियों के वयानों से प्रभावित होकर   देश के किसी एक  भी अल्पसंख्यक ने अपना  धर्मांतरण नहीं किया। जबकि हिन्दू बहुसंख्यक वर्ग  की कटटर छवि की   बदनामी के झंडे अंतराष्ट्रीय स्तर पर गाड़े जा चुके हैं। भाजपा ने  यूपी में सदस्य्ता अभियान  के तहत जिन् बाल्मीकियों को  अपनी पार्टी का सदस्य बनाया ,वे  सभी रातों रात धर्मपरिवर्तन कर गए। वे  न केवल  हिंदुत्व  छोड़ गये बल्कि  'सपा' में  भी  चले  गये। अब यदि भाजपा  दुनिया की नंबर वन पार्टी  किसी  तरह से बन भी गयी तो उसका मतलब क्या रह जाएगा ?  इस तरह से तो  उसके दोनों ही मंसूबे  पूरे होने से रहे ! न तो हिंदुत्व कायम हो पायेगा और न  ही  वह  तथाकथित  बेहतर सुशासन या सरकार दे पाएगी। सदस्य्ता के हो हल्ले से किसानों और मजदूरों को ज्यादा दिनों तक  भरमाया नहीं जा सकता। मोदी जी की कार्पोरेट निर्मित छवि भी ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगी।  भाजपा रुपी चौबे कहीं छब्बे बनने के चक्कर में  दुब्बे  ही न रह जाएँ !  

 भाजपा के  सदस्यता अभियान को मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में वांछित प्रतिषाद नहीं मिल रहा  है। हिन्दू समाज के और सवर्ण जनता के ठंडे रिस्पांस ने  भाजपाई दिग्गजों की चिंता बढ़ा दी है। सवा दो करोड़ के लक्ष्य को देखते हुए प्रदेश संगठन फिसड्डी साबित  हुआ है। नवंबर से अब तक 67 लाख सदस्यों का रजिस्ट्रेशन होना बताया जा रहा है। इसमें ५ लाख के लगभग  बोगस होने की सम्भावना से उनके नेता भी  इंकार नहीं  नहीं कर रहे हैं। मोदी जी और शाह की जोड़ी ने वैसे भी एमपी छग को निशाने पर ले रखा है। वे इन सरकारों को फूटी कोडी नहीं दे रहे हैं। किसान आत्महत्याओं और ओवर ड्राफ्ट से शिवराज एवं रमनसिंह की वैचेनी  तो बढ़ ही रही है ,साथ ही पार्टी को जनता का समर्थन तेजी से घाट रहा है। इन हालात में भाजपा को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी तो बोगस सदस्यों से भी नहीं बांया जा सकता।
                            यह बहुप्रचारित है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपनी सदस्य संख्या बढाकर इतिहास रचने की मुहिम में जुटी है, इस आपाधापी में वह कहीं -कहीं हास्यपद स्थिति में आ चुकी है। मध्य प्रदेश में कई गडबडियां सामने आ रही हैं। यहां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की प्रदेश इकाई के सचिव बादल सरोज को भी भाजपा का सदस्य बना दिया गया है। खास बात यह कि उन्हें एक बार नहीं, बल्कि दो-दो बार सदस्य बनाया गया है।  माकपा के बादल सरोज ने भाजपा के सदस्यता अभियान पर सवाल  भी उठाए हैं। उनका तीखा आरोप तो जन-चर्चा का विषय बन  चुका  है कि भाजपा फर्जी सदस्य बनाए जा रही है। उनका कहना है कि इस  भाजपा ने उन्हें भी अपना सदस्य बना लिया है। उन्होंने बताया कि उनके दो मोबाइल नंबर हैं, दोनों ही मोबाइल पर उनके पास संदेश आया है कि आपने भाजपा की सदस्यता ली है, इसके लिए आपको धन्यवाद। बीजेपी के अनुसार इस समय पार्टी के सदस्यों की संख्या नौ करोड़ के आसपास पहुंच गई है। जबकि सदस्यता के लिए आए मिस्ड कॉल की संख्या 15 करोड़ से ज्यादा है। इनके सदस्य तो हर क्षेत्र में अधिक होते हैं किन्तु ग्रामीण और निकायों के चुनावों में बाज दफा उनके कुल प्राप्त  वोट पार्टी सदस्य संख्या से कम ही होते हैं। 
                        टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक दिल्ली स्थित देश के एक नामी स्कूल रेयान इंटरनेशनल स्कूल में बीजेपी का सदस्यता अभियान  की खूब खिल्ली उड़ाई जा रही  है। कैसे टीचर और छात्रों को बीजेपी ज्वाइन करने के लिए मजबूर किया गया ।हालाँकि  बाद में  स्कूल की मैनेजिंग डायरेक्टर ग्रेस पिंटो ने इस बात की पुष्टि की कि स्कूल में सदस्यता अभियान चलाया तो  गया लेकिन यह पूरी तरह स्वैच्छिक  ही था । किसी पर ‌इसके लिए कोई दबाव नहीं है। यद्दपि स्कूल प्रशासन कह रहा है कि यह अभियान स्वैच्छिक है लेकिन शिक्षकों और बच्चों का कहना है कि ये सच नहीं है। कुछ शिक्षकों ने तो दावा किया है कि उनकी सैलरी भी रोक ली गई, जब तक वो बीजेपी में सदस्यता न ले लें। शिक्षकों, बच्चों और उनके अभिभावकों ने भी ये बात कही है कि उन्हें वॉट्सऐप मैसेज मिले हैं जिनमें बीजेपी की सदस्यता लेने के लिए एक टोल फ्री नंबर 18002662020 दिया गया है। इस नंबर पर कॉल करने पर उसके रिप्लाई में एक मैसेज आता है, जिसमें बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता का नंबर आता है। इसका मतलब कि आप बीजेपी के सदस्य हो गए।
                                      बीजेपी का मानना है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है लेकिन कांग्रेस की गोवा इकाई ने भारतीय जनता पार्टी के सदस्यता अभियान के विश्व रिकार्ड बनाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा राज्य में अपने चार लाख पंजीकृत सदस्य होने का दावा करती है, इसके बावजूद इसे जिला पंचायत चुनाव में इससे भी कम वोट मिले हैं। कांग्रेस सचिव दुर्गादास कामत ने सोमवार को जारी एक बयान में कहा कि भाजपा ने इस साल जनवरी में चार लाख लोगों के पार्टी से जुड़ने का दावा किया है, जबकि मार्च में हुए जिला पंचायत चुनाव में इसे जो वोट मिले हैं, वह इसकी तुलना में बहुत कम है। कामत ने कहा, “गोवा में जिला पंचायत चुनाव ने भाजपा के राष्ट्रव्यापी सदस्यता अभियान के दावों की पोल खोल दी है। भाजपा को सिर्फ 1,50,674 वोट ही मिले हैं, जबकि जनवरी में इसने अपने सदस्यों की संख्या चार लाख पहुंच जाने की बात कही थी। तो क्या इसका मतलब यह है कि भाजपा के दो लाख से अधिक सदस्यों ने अपनी ही पार्टी के लिए मतदान नहीं किया, जिसकी सदस्यता के लिए उन्होंने हस्ताक्षर किए।”
                                   हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने इसके सदस्यों की संख्या 8.8 करोड़ हो जाने और इसके विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन जाने का दावा किया था। जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के 8.6 करोड़ सदस्यों को पार कर गई है। कामत ने कहा कि गोवा में इसके सदस्यता अभियान की धोखाधड़ी ने देशव्यापी स्तर पर बनाए जा रहे सदस्यों की संख्या को लेकर इसके झूठ का छोटा सा नमूना पेश किया है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर ने यह जरूर स्वीकारा की चुनाव में कम वोट मिले, लेकिन यह दावा भी किया कि राज्य में भाजपा के सदस्यों की संख्या चार लाख हो गई है। पारसेकर ने कहा, “जिला पंचायत चुनाव के अंतर्गत सभी नगरनिगम नहीं आते। इसका मतलब है कि सभी सदस्यों ने वोट नहीं किया।” वहीँ दूसरी और गुजरात बीजेपी का दावा है कि गुजरात में बीजेपी की सदस्यों की संख्या एक करोड़ हो गई है।
                                                   पार्टी की गुजरात इकाई के अनुसार राज्य में उनकी सदस्यता मुहिम सफल हुई और गुजरात में सदस्यों की संख्या एक करोड़ हो गई। चुनाव में जनता से पार्टियाँ वादा करती है कि ग़रीबी ख़त्म होगी, भ्रष्टाचारियों को जेल में डाला जायेगा,मंहगाई ख़त्म होगी, सुशासन का राज होगा, बेघरों को घरों को घर मिलेगा, लेकिन गद्दी पर बैठते ही वह अमीरों की सेवा में लग जाती हैं। बीजेपी ने अपना रंग दिखा दिया है। चुनाव में फ़ायदा पहुँचाने वाले अडानी को उसने 390 एकड़ ज़मीन दे दी। एसबीआई की एक विदेशी शाखा से एक प्रतिशत ब्याज पर छह हजार करोड़ का लोन दिला दिया गया। कच्चे तेल का दाम बढ़ाकर अंबानी को उसने करोड़ों करोड़ का लाभ पहुँचाया। कैग समिति की रिपोर्ट है कि गुजरात सरकार ने 15,000 हज़ार करोड़ का लाभ अडानी, रिलांयस और एस्सार ग्रुप को पहुँचाया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने चुनावी वादे से पीछे हट चुके हैं। उन्होंने 15-15 लाख काला धन नागरिकों को देने का वादा किया था, अब वे कह रहे हैं कि मुझे मालूम ही नहीं है कि विदेशी बैंकों में काला धन कितना है? मंहगाई बढ़ती जा रही है, भ्रष्टाचार और महिला सुरक्षा पर नीतियां हो विफल हो रही हैं। प्रभु जी के लम्बे चौड़े दावों  बावजूद रेलों के एक्सीडेंट हो रहे हैं, सांसद तक लुट रहे हैं। स्मार्ट सिटीज बयानों तक सीमित हो गयी हैं। बहुचर्चित स्वच्छता अभियान विद्या बालन के शौचालय विज्ञापन पर अटका हुआ है। कानून व्यवस्था में कोई सुधार न होकर अपराधों में बढ़ोत्तरी हो रही है। भ्रष्टाचार पर किसी क्षेत्र में काबू नहीं पाया जा सका है। मोदी जी चौड़ा सीना कर दावा कर रहे हैं कि उनके शासन में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। श्रम क़ानून को पूँजीपतियों के हित में बदल दिया गया है। मोदी सरकार दावा कर रही है कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के तहत किसानों को चार गुना मुआवजा मिलेगा, लेकिन बीजेपी शासित राज्यों में हकीकत कुछ और ही है। हरियाणा, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में किसानों को बाजार भाव का सिर्फ दो गुना मुआवजा ही मिलेगा। किसानों पर मौसम की मार पड़ी है उसपर मोदी जी सिर्फ बयानबाजी कर रहे हैं। मन की बात कर अपने बिल को जायज ठहरा रहे हैं। कुल मिलाकर भाजपा पिछले दस महीनों में सिर्फ कुछ टोटके भर करती रही है। जमीन पर कोई ठोस काम वह नहीं कर सकी है। इसलिए जनता का ध्यान भावनात्मक मुद्दों पर डाइवर्ट करना भाजपा की मज़बूरी है।

     भाजपा का सदस्य बनने के लिए सिर्फ एक मिस्ड काल  की  दरकार  होती  है । जबकि  सी पी एम का मेंबर बनने के लिए  -एक सर्वगुणसम्पन्न ,ईमानदार और मेहनतकश इंसान के लिए जिंदगी भर अन्याय के खिलाफ लड़ना पड़ता है । तब भी जरुरी नहीं कि  मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य्ता मिल ही जाए। यदि भाजपा की तरह  मेम्बरशिप बढ़ने का फार्मूला  वामपंथी पार्टियां अपनाती तो वे भी ब्रिटेन की लेबर पार्टी जैसी कभी की सत्ता में आ जाती।  भाजपा का उद्देश्य केवल सत्ता हासिल करना  है। वामपंथ का  उद्देश्य  इस शोषण उत्पीड़न की  पूंजीवादी -सामंती व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करना है । 

                                            श्रीराम तिवारी  

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

आइना दिखाओ तो कथित अहिंसावादी भी हिंसक हो जाता है। - [कविता]-श्रीराम तिवारी




    धर्मांध भेड़ियों का झुण्ड जब  कभी सड़कों पर उतर  आता है।

    तो चारों ओर  दहशत का  जुनूनी क्रूर दृश्य  नजर आता है।।

   शहर की अतिक्रमित सड़कों पर लग जाता  है जब कभी जाम  ,

    तो किसी की भी अकाल  मौत का वह सबब बन जाता  है।

    फिजाओं  में उमस सी ऐंठती  वेमौसम बरसात की मानिंद ,

     जब कोई हैरान परेशान  शख्स  सरे राह दम  तोड़ जाता है।।

   दिन हो या रात सुबह हो या शाम  इस  शहर में अब जाम ही जाम ,

   खूँखार वाहनों की  रफ़्तार में तो  मौत  का मंजर नजर  आता है।

    पुलिस प्रशासन नाकाम ट्रेफिक व्यवस्था पंगु -बदमिजाज , 

   सर पर कफ़न बाँध कर ही  आजकल घर से निकला  जाता है।। 

  हृदयाघात पीड़ित कोई  युवा समय पर अस्पताल नहीं पहुँच पाता ,

  क्योंकि ऑटो रिक्सा  किसी जुलुस के जाम में फंस जाता है।

 एक मासूम  के अनाथ  होने  से या उसकी माँ  के विधवा होने से,

  अहिंसा के पुजारियों  का आतंकी जुलूस  सुर्खरू हो जाता है।। 

  मजहबी उन्मादियों को  पर उपदेश   के सिवा क्या आता है ?

   आइना दिखाओ  तो  कथित अहिंसावादी भी हिंसक हो जाता है। 


    श्रीराम तिवारी   


   

रविवार, 12 अप्रैल 2015

"किसानों को भगवान और सरकार के भरोसे नहीं रहना चाहिए"- गडकरी !


  भाजपा और 'संघ परिवार' के अनन्यतम अनुयाइयों में शुमार ,पूर्व  भाजपा अध्यक्ष और वर्तमान केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी ने  महाराष्ट्र समेत  भारत के  समस्त  ओला-अनावृष्टि पीड़ित किसानों को जो उपदेश दिया उसमें वर्तमान व्यवस्था की क्रूरतम  सच्चाई वयां  हो रही है। एक  महान उटोपियाई तर्कशास्त्री और  दार्शनिक की तर्ज पर उन्होने उद्घोष किया है कि:-

 "किसानों को भगवान और सरकार के  भरोसे नहीं रहना चाहिए"

  प्रथमदृष्टया  यह क्रूरतम आह्वान  ही है। किन्तु  गडकरी जी का यह' कड़वा प्रवचन' [यदि वे अब तक अपने कहे से मुकर न गए हों तो !] न केवल उन किसानों को जो आत्महत्या  की ओर  अग्रसर हैं ,बल्कि उनके लिए भी दिशा निर्देश है जो  अब तक  सरकार या भगवान के भरोसे बैठे हैं । गडकरी जी  की यह 'नास्तिक' किस्म की यथार्थ वयानबाजी सभी को आगाह करती है कि सभी हितग्राही [स्टेकहोल्डर्स] सावधान हो जावें ! अर्थात   वर्तमान  पतित शासक वर्ग और वर्तमान  निर्मम बेहया बाजारू व्यवस्था की असलियत  को जानें और सावधान हो जावें ! गडकरी जी का  यह वयान  न केवल राजनैतिक असफलता बल्कि ईश्वरीय निष्ठुरता पर भी शानदार व्यंग है ।  खेद है कि मीडिया के अधिकांस हिस्से  ने नितिन गडकरी के  इस ताजातरीन - अति माकूल और तार्किक वयान को कोई  खास तवज्जो नहीं दी ! जबकि मीडिया का अधिकांस समय और ताकत न  केवल वैयक्तिक किस्म की बतकहियों में जाया हो रहा है अपितु  अश्लील , फ़ूहड़ ,सेक्सी ,अगम्भीर वेफ़ालतु खबरों को रोचकता से पेश करने में  भी खप  रहा है।  हर किस्म के मीडिया और बौद्धिक आलेखों  में फाँसी पर लटके किसान का फोटो  छापकर या कोई ब्रेकिंग न्यूज देकर उसकी इति श्री  कर दी जाती है। 
                       इस विमर्श पर  देश और दुनिया के तमाम धर्मभीरु -भाववादी चुप क्यों हैं ? वे  बताते क्यों नहीं कि उनके पंथ मजहब या धर्म के अनुसार किसके पापों की सजा देश के किसानों को भुगतनी पड़  रही है ?उनका भगवान ,गॉड ,अल्लाह ,तीर्थंकर,महाबोधि या पंथ संस्थापक -धर्मसंस्थापक अब  केवल पूँजीपतियों या महाभृष्ट किस्म के ताकतवर लोगों का ही  साथ क्यों दे रहा है ?  इन दिनों वह  भारत के  किसानों पर ही  इतना कुपित क्यों है ?  हालाँकि  प्रकारांतर से किसानों की बर्बादी याने देश की बर्बादी भी है। पुरातन पंथियों को याद रखना चाहिए कि उनकी रूढ़िवादी दकियानूसी [!] धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब 'राजा' याने शासक यदि पापी हो तो 'प्रजा' याने जनता को  उसका परिणाम भुगतना पड़ता है। तो क्या यह माना जाए कि शासक वर्गों के पाप की सजा  ही देश के किसानों को भुगतनी पड़  रही है ? यदि किसानों की  फसलें  बर्बाद हो गईं हैं तो महँगाई  का आलम क्या  होगा  ? क्या उससे देश की गरीब जनता  घोर भुखमरी और कुपोषण का शिकार नहीं  होगी ?
                         यदि भगवान और सरकार दोनों के  भरोसे पर प्रश्नचिन्ह लग रहा हो तो किसानों के समक्ष इस पतनशील व्यवस्था के खिलाफ  एकजुट संघर्ष  तो  लाजमी है ही । बल्कि यह संभावना  भी बनी रहेगी कि  शोषक  शासक वर्ग की नीति  रीति के खिलाफ बल्कि तमाम किस्म की अंधश्रद्धा और [अ]धार्मिक पाखंड के खिलाफ भी एक दिन कोई नया  क्रांतिकारी  संघर्ष  अवश्य छिड़ेगा ।

                                          श्रीराम तिवारी     

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

ओला-अनावृष्टि पीड़ित किसानों की आत्महत्याओं पर निष्ठुर नसीबवाले चुप क्यों हैं ?

 केंद्र में जबसे  'नसीबवालों' की सरकार सत्ता में आई है तबसे शैतान के हौसलें बुलंद हैं। अमीरों और कार्पोरेट घरानों पर तो उसकी कृपादृष्टि बनी हुई है किन्तु निर्धन -गरीब और असहाय किसानों पर वज्रपात  बढ़ता गया है। जबसे 'नसीबवाले' देश के 'भाग्यविधाता ' बने हैं तभी से बार-बार वेमौसम -बरसात ,प्रलयंकर ओलावृष्टि और किसान हन्ता  अनावृष्टि का सैलाब  सा उमड़ पड़ा है। हालाँकि  इस देश का गरीब  किसान तो सदियों से ही आत्महत्या के लिए मजबूर होता रहा है किन्तु 'नसीबवालों' के राज में तो गजब हो गया। हर  संवेदनशील इंसान को  देश के कोने-कोने से, प्रकृति की मार से पीड़ित किसानों की बिधवाओं का चीत्कार ही सुनायी दे रहा है। ओला-अनावृष्टि पीड़ित किसानों  की आत्महत्याओं पर निष्ठुर नसीबवाले चुप क्यों हैं ? न केवल वामपंथी किसान संगठन बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी के भी  कुछ किसान 'संघ' अब संघर्ष और  आंदोलन की राह पर हैं।  वे खुलकर कहने लगे हैं कि  इन 'नसीबवालों' से तो बद्नसीबों  की सरकार ही ठीक थी !एक साल पूरा हुआ नहीं कि भाजपा नीत  केंद्र और राज्यों की सरकारों द्वारा  अपनी कपोल्कल्पत उपलब्धियों को सीबीएसई के नए करिकुलम में शामिल किये जाने के सिलेबस  तैयार किये जा रहे  हैं। विकास -सुशासन -वैज्ञानिक परिलब्धियों के काल्पनिक झंडे बच्चों के मनोमस्तिष्क में गाड़े जा रहे हैं। 
                                             सामाजिक प्रतिबद्धता,पारदर्शिता,लोकतांत्रिकता,सुशासन ,सुचिता ,बचनबद्धता और विश्वश्नीयता में सत्ता पक्ष और मोदी सरकार भले ही फिसड्डी सावित् हो रहे हों। किन्तु कार्पोरेट प्रतिबद्धता ,किसान आत्महत्याओं, मीडिया मैनेजमेंट और पार्टी में बोगस सदस्यों  की भर्ती में आज  भाजपा वाकई दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। उसकी इस कृत्रिम और व्यवसायिक चकाचौंध से सिर्फ वही  गदगदायमान  हो सकते हैं जो या तो सत्ता सुख भोग रहे हैं या जिनमें सत्ताधीशों के डीएनए  का समावेश है।यह मेरे जैसे किसी एक असहमत नागरिक का ही अभिमत नहीं है बल्कि भाजपा के अंदर ही अंदर  जो  मंदाग्नि धधक रही  है उसका भी प्रमाण  है।

                             पार्टी की ३५ वीं सालगिरह पर देश के बुजुर्ग  भाजपा नेताओं की आँखों के आंसू छिपाने पर भी नहीं छिप रहे हैं।  इन तथाकथित सत्तू बांधकर दीपक जलाने वाले  'पुरातन पुरुषों'  का दर्द उनके चेहरे पर छिपाए नहीं छिप रहा  है। केंद्र में  सत्तारूढ़ पार्टी  भाजपा की ३५ वीं सालगिरह पर मोदी जी और शाह जी तो खुद की पीठ  ही बार-बार ठोक  रहे हैं। किन्तु  सफलता  की जिस विषवेल  को निहार- निहार  कर वे  फूले नहीं समा रहे हैं ,उसका पौधारोपण  करने  वालों  को  भी शायद यही सजा माकूल  थी।  इन बेगैरतों को  पूँजीवादी  आर्थिक नीतियों और फासिस्ट संगठन को आजीवन संवारते रहने का  यही दण्ड  उचित  है।  नियति का कानून भी यही  कहता है कि  वे ही लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की मानिंद रुसवा  होते रहें ! महानतम  दार्शनिक   कार्ल मार्क्स का कथन  है कि" हर एक दौर में   इतिहास अपने आपको दुहराता है"। अतः यह तय है कि जो आज सत्ता के मद चूर होकर अपने वरिष्ठों को लतिया  रहे हैं कल उनके अवसान का हश्र भी कुछ इसी अंदाज में होगा।  बल्कि कुछ इससे भी  ज्यादा  बुरा  सम्भव है। आज के हँसनेवाले  कल अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने लायक भी नहीं  रहेंगे। हाथ कंगन को आरसी क्या  कि  सत्ता की  नसीबी ने वैसे भी  इस  पूरे मुल्क को ही   'बदनसीब' बना डाला है। जिनके सत्ता में रहते खेत और किसान दोनों ही श्मशान की ओर  अग्रसर  हों उनको  'नसीबवाला' पता नहीं किस ने बना  कह दिया ?

                                                                                    श्रीराम तिवारी    

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

चींटियाँ घर बनाती हैं और साँप उसमें रहने आ जाते हैं !



     चींटियाँ खूब मेहनती होती हैं। अपनी एकता और मेहनत से अपनी सामूहिक सुरक्षा के निमत्त ठिकाना बनाती हैं। लेकिन उनके इस सार्वजनिक घर [वामी] में साँप  जबरन घुस आते हैं। शायद  इसीलिये कहावत चल पड़ी है  कि  'चींटियाँ घर बनाती  हैं और साँप  उसमें रहने आ जाते  हैं '। हर जानकार  इंसान वामी के पास जाने से डरता है। हालाँकि उसे कोई  गलतफहमी  नहीं  कि  वह  वामी से क्यों  डरता है ? दरशल इंसान ही नहीं बल्कि वन्य जीव जन्तु -चूहा,बिल्ली ,कुत्ते ,कीट ,पतंगे भी जानते है कि 'वामी'में उसकी सृजनहार चींटियाँ नहीं बल्कि  'विषधर' निवास करते हैं। वास्तव में तो 'वामी '  के रूप  - आकार से किसी को  कोई खतरा नहीं। किन्तु वामी में डेरा डालने वाले 'जहरीले'  केरेक्टर से हरेक को खतरा है। कहने को तो हर  इंसान एक सामाजिक प्राणी है। किन्तु सीधे -सादे सरल लोगों के हक छीनकर ,ओरों के त्याग -बलिदान  के कंधों पर चढ़कर जब कोई खास व्यक्ति या संगठन ताकतवर हो जाता है तो उसका आचरण किसी तक्षक ,वासुकि या कालियानाग से कम नहीं होता।

                             अपने ३५ वें स्थापना दिवस पर 'भारतीय जनता पार्टी ' ने  इस छः -अप्रैल को बंगलुरु सहित देशभर में  खूब जश्न मनाया। भाजपा को शाबासी देने के बहाने  'संघ' ने  भी दिल्ली में एक  शानदार जलसा आयोजित किया। अजीम प्रेमजी ,जी एम राव जैसे अग्रिम  कतार के पूँजीपतियों को  आरएसएस ने अपने मंच पर  दुलराया। जबकि  जिन्होंने  'संघ' की विचारधारा को परवान चढ़ाया ,जो उसकी संकीर्णता  में यकीन रखते हैं ,जो हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकता की राजनीति  करते -करते  बूढ़े हो गए ,जिन्होंने जनसंघ  की स्थापना की थी ,जिन्होंने आपातकाल में जेपी का साथ दिया , जिन्होंने  १९७७ में कांग्रेस को पटखनी देने में ख़ास रोल अदा किया था ,  जिन्होंने १९८० के मुंबई अधिवेशन में 'भाजपा' की स्थापना की , जिन्होंने रथयात्राओं और कमंडल यात्राओं के बहाने देश भर में साम्प्रदायिकता का तांडव नृत्य नचाया ,जिनके बहकावे में देश के निर्धन -गरीब  सर्वहारा  मजदूर -किसान ने हल-बैल छोड़कर अयोध्या कुछ किया ,जिनके भाषणों से उत्तेजित मूर्खों ने मस्जिद ढहाई ,जिनके कारण हिन्दू -मुस्लिम दंगे हुए ,जिनके कारण गोधरा काण्ड हुआ ,जिनके कारण गुजरात और देश भर में 'हिन्दुओं' की रुसवाई हुई ,जिनके कारण अनेक बेकसूर जेल गए और दंगों में जान गंवाई ,उन् लालकृष्ण आडवाणी को  महज मंच पर बैठकर  ही संतोष करना पड़ा। मोदी शाह की जोड़ी ने आडवाणी को   सम्बोधन से वंचित  कर सिद्ध कर दिया कि कहावत सही है।  भाजपा के वर्तमान ' बलात  कब्जाधारियों ' ने सावित कर दिया कि 'मूर्ख लोग तो मकान बनाते- बनाते मर जाते  हैं किन्तु  विद्वान [धूर्त-चालाक ] ही  उसमें रह सकते हैं! देश की ज्वलंत समस्याओं की रंचमात्र चर्चा न करना , बड़े नेताओं  द्वारा अपने ही  काल्पनिक  और उन्मुक्त भाषणों को  उपलब्धियों   बताना  ,खुद ही अपनी पीठ  थपथपाना  इस सम्मेलन की विशेषता  कही जा सकती है।
                                                 दुनिया की तथाकथित 'सबसे बड़ी पार्टी'  भाजपा के बंगलुरु सम्मेलन में हिंदुत्व के एजेंडे पर कोई चर्चा नहीं हुई। लेकिन पार्टी को नाभिनाल से हलाहल पिलाने वाले चीखकर -कह रहे हैं कि   'दूनिया  ने इन २००० सालों  में  जो भी प्रयोग किये हैं वे सब बेकार गए हैं '।अर्थात अबसे २००० साल पहले दुनिया में जो कुछ भी  था वही 'सत्यम शिवम सुंदरम' था। समझदार को इशारा काफी है।  शायद तब दुनिया में २०००साल पहले सिर्फ भारतीय परम्पराएँ ,दर्शन और धर्म की  तूती  बोल  रही होगी। इसके बाद तो उनके अनुसार  दूनिया में  केवल ऊधम मचाने वाले ही पैदा हुए हैं। जो लोग समझते हैं कि भाजपा में अब हिंदुत्व की बातों का  कोई  नामोनिशान नहीं रहा। वास्तव में  वे ही हिंदुत्व  के वोट वटोरु  कार्ड है।लेकिन अंततोगत्वा  असल चीज है सत्ता पिपासा।  इसके सहारे ही भारत में लोकतंत्र की जगह फास्जिम,समाजवाद की जगह - अब अमीरों  का विकाश और धर्मनिरपेक्षता की जगह साम्प्रदायिकता की धमक  सुनी सुनायी दे रही  है। कार्पोरेट आवारा  पूँजी के दलाल ,साम्राज्य्वाद के पिठ्ठू और  बहुसंख्यक समुदाय के 'बौद्धिक' इस राज्यसत्ता के बगलगीर हो चुके हैं।

                                           श्रीराम तिवारी         

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

आ गए ! आ गए ! ! "अच्छे दिन आ गये"!!!

एक गाँव में एक काणा रहता था.

सब लोग उसकी एक आँख होने की वजह से उसे  "काणा" -"काणा" कह कर चिढाते रहते थे.
.
उसे इस बात से बेहद  तकलीफ  हुआ करती थी..

 एक दिन उसने सोचा कि  इन गाँव वालो को सबक  कोई सबक सिखाना चाहिए  !

 इसी उधेड़बुन में उसने  आधी रात को अपनी दूसरी आँख भी फोड़ डाली।  सुबह होते ही वह पूरे  गाँव में

 चिल्लाता हुआ दोड़ने लगा.

     मुझे  भगवान दिखाई दे रहें हैं!

 मुझे अच्छे दिन दिखाई दे रहे हैं !!

 यह सुनकर गाँव वाले बोले-

“अबे काणे तुझे कहाँ से भगवान या अच्छे दिन दिखाई दे रहें हैं”??? सब दूर तो बदहाली ही बदहाली बिखरी पडी है ?
 नाबीना बोला -रात को मेरे सपने में भगवान ने दर्शन दिये और कहा -: अगर तू अपनी दुसरी आँख भी फोड़ ले

तो तुझे "अच्छे दिन" जरूर दिखाई देंगे..!

मैंने ईश्वर का आदेश माना  और दूसरी आँख भी फोड़ ली.

इतना सुनकर गाँव के सरपंच ने

कहा:- मुझे  भी अच्छे दिन देखने हैं..! क्या करना होगा ?

 अँधा बोला ;-  सरपंच जी आप अपनी दोनों आँखे फोड लो -तभी दिखाई देंगे "अच्छे दिन"..!

सरपंच ने हिम्मत करकेरात में  अपनी दोनों आँखे फोड़ लीं..!

पर ये क्या  ? अच्छे  दिन तो दूर अब तो उसे दुनिया दिखाई देना भी बंद हो गई..!

सरपंच ने अँधे से कान में कहा की " मुझे अच्छे दिन  दिखाई  क्यों नहीं दे रहे".?

अँधा बोला  :-सरपंच जी सबके सामने ये सच मत बोलना, नहीं तो सब आप को मुर्ख कहेंगे, इसलिए झूंठ-मूंठ ही बोलते रहो  कि " अच्छे दिन आ गए".!

यह  सुनकर सरपंच  ज़ोर  से  बोला "मुझे भी अच्छे दिन दिखाई दे रहे हैं"..!

इसके बाद एक एक करके सभी  गांव वालों ने अपनी -अपनी आँखे फोड़ डालीं।  आत्मग्लानि के सिंड्रोम से

पीड़ित सभी ग्राम वासी  मजबूरी में वही दुहरा रहे थे -जो उनके  सरपंच ने कहा  था कि  ..!

 आ  गए ! आ गए ! ! "अच्छे दिन आ गये"..!

यही हाल  इन दिनों काल्पनिक अच्छे दिनों के अंध  समर्थक  अंधश्रद्धालुओं का है..!

 अपनी  वैयक्तिक चाटुकारिता और बेलगाम स्वार्थ पूर्ती के निमित्त कुछ लोग देश की वास्तविक दुर्दशा से

लगातार  मुँहफेर रहे हैं। वे कश्मीर में अपनी कूटनीतिक असफलता को पूर्ववर्ती सरकारों के मत्थे  मढ़  रहे हैं! 

किसानों की बर्बादी में ,उनकी आत्महत्याओं में ,उन्हें उनकी बदनसीबी और खुद  का महानतम पुण्योदय

दिखाई पड रहा है !अपनी  तमाम असफलताओं - विरुपताओं  और  अधोगामी - चारित्रिक पतन  से

देश की आवाम  का ध्यान भटकाने के लिए टूटे-फूटे वर्तमान विपक्ष को  ही कोसा जा रहा है । आज  फेंकुओं-

गप्पाड़ियों-ढपोरशंखियों के स्वर में स्वर मिल रहे हैं..!  उनका  विरुद्गान है  कि "अच्छे दिन आ गए " "अच्छे

 दिन आ गए" !

                                                      श्रीराम तिवारी 

बुधवार, 1 अप्रैल 2015

क्या वे नहीं जानते कि :- बोली एक अमोल है ,जो कोई बोले जान ?



 केन्द्रीय  मंत्री गिरिराज सिंह और उनके जैसे अन्य अपरिपक्व  भाजपा नेताओं  के  रंगभेदवादी और नस्लवादी वयानों से उन  समस्त भारतीय महिलाओं का घोर अपमान  हुआ है जो गोरे  रंग की नहीं हैं। इन  घटिया वयानों  से दुनिया भर  में भारत  की भद्द पिट रही है। सरकर  का  भी  भद्दा मजाक उड़ाया जा रहा है।ये ढीठ बतौलेबाज- मुँहफट नेता और उनकी पार्टी सत्ता के लायक तो कदापि नहीं है। ये सिर्फ विपक्ष की भाषा ही जानते हैं। शासन  में  बने रहने का शऊर इनमें किंचित नहीं है। यह  जनता की भी भयंकर भूल है कि 'बादल देखकर सुराही फोड़  देती है '। नागनाथ की जगह सांपनाथ को सत्ता में बिठा  देती है। मीडिया की मेहरवानी से उसे सर्वहारापरस्त ईमानदार हरावल दस्तों के रूप में  सही विकल्प नजर  ही नहीं आता। मोदी सरकार की जय-जैकार करने वाले  बताएं की क्या अब  रेलें समय पर चल रहीं हैं ? क्या गाड़ियाँ  पटरी से नहीं उत्तर रहीं ? क्या कालाधन वापिस आया है?  क्या  किसान  को मदद मिल रही है?  क्या मजदूर को मजदूरी मिल रही है ? क्या भृष्टाचार पर अंकुश लगा है? क्या रिश्वतखोरी  पर कोई काबू है ? क्या  महँगाई पर किसी का कोई नियंत्रण है ? क्या  सीमाओं पर शांति है? क्या  कश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत  में अमन है ? क्या  हत्या -बलात्कार और नारी उत्पीड़न में कोई   कमी आयी है ? क्या  बिजली-पानी -स्वाश्थ  या शिक्षा में कोई ठोस सकारात्मक बदलाव हुआ है ? क्या यह सच नहीं है  कि  मौजूदा चुनौतियों और समस्याओं से जनता का ध्यान भटकाने के लिए- कभी धर्मांतरण ,कभी घर वापिसी  , कभी गाय-गीता -गंगा का काल्पनिक विमर्श, कभी जाति  - धर्म का विमर्श ,कभी देशी-विदेशी का विमर्श ,कभी काले-गोरे का विमर्श और कभी किसी की वैयक्तिक जिंदगी-शादी -व्याह के विमर्श  को रहस्य  रोमांच  के साथ  बचकानी  दंतकथा के रूप में पेश करने का शौक सत्तारूढ़ नेताओं को चर्राया है ? क्या  तथाकथित हिंदूवादी सरकार के  मंत्रियों से  यह  अपेक्षा नहीं  थी कि  कम से कम अपने संतों की पावन  वाणी का  अनुशीलन वे खुद करते? क्या वे नहीं जानते  कि :-

                     बोली एक अमोल है ,जो कोई बोले जान !

                    ह्रदय तराजू तौलकर ,फिर मुख बाहर आन ! ! 


                                                                                                         श्रीराम तिवारी