शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

इंदौरियों को कुछ खास करने की आदत है:-


इंदौर नगर देवी अहिल्या बाई होलकर की पावन पुण्यभूमि है! यह नगर स्वच्छता में लगातार 5 बार नंबर वन आया है,यहां का खानपान दूर देशों तक मशहूर है! एक और खास बिचित्रता है इस शहर की! यहां से कोसों दूर बहती नर्मदा मैया का पवित्र जल पाईप लाइन द्वारा इंदौर नगर और आसपास के गांवों कस्वों तक पहुँचाया जाता है ! जबकि यहां चंबल, शिप्रा,गंभीर, कान्ह, इत्यादि आधा दर्जन नदियों का उद्गम है! किंतु आधुनिक वैज्ञानिक युग में यह कोई अचरज की बात नही! वैसे भी इंदौरियों को अचरज की आदत है! एक अचरज तो अभी भी चर्चा मे है! यह अचरज सरकारी विभागों की लापरवाही का नमूना भी कहा जा सकता है।
विगत दिनों मध्यप्रदेश वन विभाग द्वारा एक मादा तेंदुआ इंदौर चिड़ियाघर लाया गया था ! पहले तो इंदौर चिड़ियाघर वालों ने प्रेस मीडिया को बताया कि जिस गाड़ी से मादा तेंदुआ इंदौर चिड़ियाघर भेजी गई, उसका पिंजरा खाली था! जब इसकी भनक प्रदेश सरकार और मीडिया को लगी तो वन विभाग और चिड़ियाघर स्टाफ की भारी किरकिरी हुई, सवाल उठा कि आखिर तेंदुआ गया कहाँ?
वन विभाग और चिड़ियाघर का स्टाफ तीन दिन तक मादा तेंदुआ को खोज नही पाया! जनालोचना और प्रेस द्वारा किये गये प्रहार के दबाव में दोनों विभागों के कर्मचारी और अधिकारी आपस में गुथ्थम गुथ्था होते रहे! फिर एक दिन सुबह नगर के रहवासी क्षेत्र नवरतनबाग में तेंदुआ प्रकट हुआ, किंतु तब तक उसका जेंडर बदल चुका था!
गायब तो *मादा* तेंदुआ हुआ था,किंतु 5 दिनों की मशक्कत के बाद,जब तक उसे खोज कर पकड़ा गया, तब तक वह मादा तेंदुआ से *नर* तेंदुआ बन चुका था।

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