रविवार, 29 जून 2014

राज्य सत्ता के अंतसंबंधों पर चोट करने के लिए शंकराचार्य जी की प्रशंशा की जानी चाहिए।

 उदारीकरण ,भूमंडलीकरण,निजीकरण के इस दौर में दुनिया भले ही राजनैतिक और  आर्थिक परिदृश्य में 'आत्मसातीकरण' की चपेट में  आ गई हो अर्थात जो ताकतवर है वो कमजोर को उदरस्थ करता जा रहा हो ,  किन्तु  भारत में तो  इन दिनों 'धर्म -मजहब-अध्यात्म-दर्शन' भी बाजारीकरण की चपेट में आ गया है।ज्योतिष और द्वारिका पीठम्  के जगद्गुरु शंकराचार्य - स्वामी स्वरूपानंद जी ने शिर्डी के साईं बाबा को ईश्वर अवतार मानने से इंकार कर दिया है। वेशक  जो  सच्चे साईं भक्त हैं उनकी आस्था पर  किसी की कोई नकारात्मक   टिप्पणी से  कोई फर्क नहीं पड़ सकता। मैं  हर किस्म के धार्मिक पाखंड  से बहुत दूर हूँ किन्तु मेरे घर  की  हर  दीवार पर  साईं बाबा  अवश्य विराजमान हैं। रोज सुबह साईं की फोटो को नमन भी करता हूँ। किन्तु शंकराचार्य के वयान में मुझे कुछ  गलत नहीं लगा। क्योंकि मैं जानता हूँ कि  शंकराचार्य 'सनातन धर्म' के प्रकांड पंडित हैं और वे धर्म-दर्शन के अधिकृत वेत्ता हैं। मैं उनके सामने इस विषय में शून्य हूँ। वेशक ऐतिहासिक द्वन्दात्मक भौतिकवाद,सर्वहारा अन्तर्राष्ट्रीयतावाद पर मैं स्वामी स्वरूपानंद जी को पछाड़ सकता हूँ किन्तु 'संतान धर्म' हिन्दू धर्म के लिए तो वे ही सर्वश्रेष्ठ हैं।  विश्व हिन्दू परिषद  या संघ परिवार से कोई धार्मिक  प्रेरणा लेने के बजाय शंकराचार्य ही इस विषय के सही मार्गदर्शक  हैं।   किन्तु जो धंधेबाज हैं ,धर्म के नाम पर राजनीति  करते हैं ,मंदिरों में आने वाले चढ़ावे पर जिनकी आजीविका टिकी है.उनके लिए तो नेता,मंत्री और ढोंगी बाबाओं से  संरक्षण चाहिए।वे  जल में रहकर मगर से बैर नहीं रख सकते।इसीलिये  वे सब  समवेत स्वर में अपने ही 'जगद्गुरु  शंकराचार्य का  मान मर्दन  करते हुए  उनको गरिया  रहे हैं। दरशल शंकराचार्य ही 'सनातन धर्म' या हिन्दू धर्म के असली सम्बाहक हैं। वे ही इसके असली प्रवक्ता हैं। यह बात  जुदा  है कि  अन्य साम्प्रदायिक मजहबी राष्ट्रों  की  तर्ज पर भारत में भी विगत दिनों  बहुसंख्यक धर्मावलंबियों को एकजुट कर राज्य सत्ता प्राप्त करने का सफल  प्रयाश किया गया है। अब शायद स्थाई भाव में यह  लक्ष्य हासिल किया जा रहा है।  राम मंदिर निर्माण  ,धारा ३७० समापन ,एक देश एक संस्कृति का समर्थन,एकचलुकानुवर्त्तित्व  और एक नेता जैसे प्रतिगामी  विचारों  की असफलता के उपरान्त विकाश और सुशासन के नाम पर ,भृष्टाचार निवारण के नाम पर मेंहगाई  कम करने के आश्वाशन पर सत्ता परिवर्तन हुआ है। लेकिन मूल एजंडा अब भी सुगबुगा रहा है। इसीलिए धार्मिक सत्ता और राज्य सत्ता की मिश्रित शक्ति  को एक साथ प्रायोजित किये जाने का घातक प्रयोग किया गया है। किन्तु  किसी एक खास  संगठन  या किसी एक खास नेता के पास सिमटते चले जाना लोकशाही और जनतंत्र के लिए शुभ नहीं है। यदि इस स्थति में  बहुसंख्यक समाज के धार्मिक नेता और खास तौर  से शंकराचार्य जी कोई सकरात्मक  हस्तक्षेप करते हैं  तो यह देशभक्तिपूर्ण कार्य है । क्योंकि  प्रकारांतर से वैश्विक संदर्भ में भारत को 'धर्मनिरपेक्ष' राष्ट्र के रूप में ही सुरक्षित,सुसंगठित और सम्पन्न बनाया जा सकता है। इसलिए यह बहुत जरुरी है कि  राजनीति  को -मजहब,जाति ,धर्म,और 'चमत्कारवाद' से दूर रखा जाए ।  यदि  किसी खास धर्म -मजहब का धर्मगुरु कोई नया सिद्धांत या फतवा जारी करता है तो यह जरूरी नहीं की उसे जबरन मनवाया जाए। किन्तु यदि वह किसी तरह के पुरातन  सिद्धांतों या मान्यताओं के संदर्भ में कोई तार्किक प्रस्तुति रखता है और वर्तमान भारतीय संविधान के अनुरूप है  तो  उसका मुँह  बंद करने के बजाय ,उस पर राजनीति  करने के बजाय 'शाश्त्रार्थ'से ही उसके पक्ष को सही या गलत ठहराया जा सकता है।   उदाहरण के लिए में भी 'शिर्डी के साईं बाबा ' को मानता हूँ।  किन्तु मुझे नहीं  लगता है कि  शंकराचार्य जी ने  मेरी आश्था  को ठेस  पहुंचाई। मैं तो  उनसे आग्रह करता कि वे अपना  यह अभियान जारी रखें। क्योंकि ईश्वर  , अवतार  ,देवता यदि इतने छुइ-मुई हैं कि  किसी की निंदा या स्तुति से ही उनका अस्तित्व  खतर में है तो वेशक उनका  नष्ट हो जाना नियति की आकांक्षा है। मानले कि  शंकराचार्य जी  ही सही  हैं और वेशक साईं बाबा कोई अवतार नहीं हैं। तो इससे किसका अनिष्ट हो रहा है। यदि वे वाकई  ईश्वर अवतार हैं तो शंकराचार्य की अनुशंषा के मुंहताज नहीं हैं। यदि  अवतार हैं तो जिनकी आस्था है वे मौज  करें। वेशक शंकराचार्य के वक्तव्य से यह कहाँ सिद्ध होता है कि सनातन धर्म के  प्रचलित सभी २४ अवतार और दुनिया के तमाम मुल्कों के,विभिन्न दीगर मजहबों के  पीर-पैगम्बर सभी अवतार ही हैं? उनका अभिप्राय तो उस 'दर्शन' से है जो 'संस्कृत' में रचा गया है ,जिसे वैदिक या सनातन धर्म  कहते हैं।  शंकराचार्य को इस विषय का विशषधिकार मिला हुआ है। चूँकि इस संस्कृत साहित्य में साईं  नदारद हैं  इसलिए बकौल उनके 'साईं ' ईश्वर अवतार नहीं  हैं। क्योंकि वे दशावतार या २४ अवतार दोनों  है। केवल शिर्डी के साईं ही नहीं बल्कि  इस आधार पर वे अभी रिजेक्ट किये जाते अं जो उस अधिकृत सूची में  नहीं  हैं । मेरा प्रतिवाद शंकराचार्य जी  से भी है कि वेशक साईं कोई अवतार नहीं  हों किन्तु वे  बिजूका  ही सही। बिजूका  यदि खेत में फसल की  सुरक्षा के काम आ सकता है,पशुओं,जानवरों और चोरों के हमले से किसान की  यदि  कुछ  मदद मिलती है  तो किसी का क्या जाता है ? उसका भी अपना  कुछ महत्व तो अवश्य ही है।  दुनिया में जब तलक हर  इंसान स्वयं  भगवान नहीं बन जाता ,महामानव नहीं   बन जाता तब तलक तो ईश्वर रुपी बिजूके को कायम रखने में  ही इस धरती की  भलाई ही है।   

शंकराचार्य ने प्रस्तुत  बयान के जरिए हिन्दू धर्म के अंदर व्याप्त गंदगी को सतह पर भी ला दिया है। तमाशा देखें कि “गौ” माता है, नंदी बैल के ऊपर विराजे शंकर जी मंदिर में स्थापित हैं। शंकर जी के गले में लिपटा सांप भी देवता है। मत्स्यावतार है, मछली भी देवता है। नरमुंड हाथ में लिए देवी मंदिर में विराजमान है। 33 करोड़ देवता हैं जिनमें एक “वाराह” देवता भी है। जी हां, “वाराह अवतार”। उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले का तीर्थराज “सोरों” कस्बा, जहां संत गोस्वामी तुलसीदास के पैदा होने का दावा भी किया जाता है, वह “शूकर क्षेत्र” है और वहां वाराह भगवान का मंदिर भी है, लेकिन सांई बाबा देवता नहीं हो सकते ! दलित के मंदिर में प्रवेश करने पर मंदिर अपवित्र हो जाता है! इंदिरा गांधी अगर मंदिर में चली जाती हैं तो मंदिर की गंगाजल से धुलाई होती है। शंकराचार्य के एक वक्तव्य ने इस सबकी भी स्वतः पोल खोल दी है।
            जो लोग शंकराचार्य जी के वक्तब्य से  आहत  हैं उनसे निवेदन है कि  उनकी पूरी बात सुने -समझे।उन्हें पता लग जाएगा की  शंकराचार्य जी ने अनायाश ही एक देशभक्तिपूर्ण कार्य किया है।  आडम्बरवाद -नित्य -नव अवतारवाद और  धार्मिक संस्थानों में बढ़ रहे व्यभिचार को  राज्य सत्ता की सीढी  बनाने के उपक्रम पर उन्होंने  निर्मम संघात किया है। शायद यह लोक चेतना के लिए,धार्मिक शुद्धिकरण के लिए और मानवीय मूल्यों  के क्षरण को रोकने का एक तुच्छ कदम सावित हो जाए। धर्म-मजहब-आश्था  का बाजारीकरण और मठ-मंदिरों में काले धन की  नवोदित नित्य नई अकूत - आवारा पूँजी  का राज्य सत्ता के  साथ नापाक रिश्ता  इन दिनों जग जाहिर है। इस अनैतिक और कदाचार प्रवृत्ति   पर  चोट करने के लिए शंकराचार्य जी  की प्रशंशा की जानी चाहिए।

                     श्रीराम तिवारी
 
 

शनिवार, 28 जून 2014

ठिकाने लगा देगी जनता ,आइन्दा इनकी भी अकल।



   नयी सरकार के सम्मुख ,

    सुनामी  लहरों की  हलचल।

      हिचकोले खाने लगी है  ,

      शासन की नाव  अभी से मुसलसल।

       मानसून गया है  फिसल ,

       किसान- कास्तकार हैं विकल।

      कैसे करें कब करें  बोनी ?

      इस माहौल में क्या खाक होगी फसल  ?

    नहीं होगी बुआई तो काहे की  फसल ?

    मँहगे  हो रहे  हैं खाद बीज ,

   बढ़ते जाते बिजली -पानी  के बिल।

   अजीब  हैं हुक्मरानों के मंसूबे,

  की जले पर नमक छिड़कते हैं ,

  कहते हैं 'कड़े फैसले लेंने होंगे ',

  धक-धक हो रहा निर्धन आवाम का दिल।

 सरकार के वयान मात्र से ,

जनता का  बजट हो रहा  विफल !

संकट निवारण की नहीं कोई युक्ति -

नीति-सिद्धांत उनके पास , 

 चुनौतियों का सामना करने में -

शासन -प्रशासन विफल।

पूंजीपतियों -सत्ता के दलालों

महत्वाकांक्षी निर्मम  शासकों के ,

 शायद अच्छे दिन आये हैं ,

 जिनके  मनोरथ हुए हैं सफल।

देश की -कौम की- आवाम की ,

 बदहाली योँ  ही रही बरकरार,

तो ठिकाने लगा  देगी जनता ,

आइन्दा इनकी भी  अकल।


   श्रीराम तिवारी  

शुक्रवार, 27 जून 2014




     नमो-नमो सब कोई कहे ,शिव-शिव कहे न कोय।

     जो  वंदा  शिव-शिव कहे ,व्यापम -शापं  होय।।  

मंगलवार, 17 जून 2014

अच्छे दिन कब आएंगे ,जनता करे पुकार !

          

        

        मानसून बागी हुआ ,   हैं किसान  बैचेन।

    अच्छे दिन क्या खाक हैं, घड़ी बिकट दिन-रेन।।


        बिजली संकट बढ़ चला ,महँगाई  की मार।

      कड़े फैसलों  की धमक , देती है  सरकार।।


        सारे भारत में बढे ,हिंसा -रेप -व्यभिचार।

       पाकिस्तानी फौज  का , रुका न गोली बार।। 


     बिजली पानी प्याज की, किल्लत मची अपार।

      अच्छे दिन कब आएंगे ,जनता करे पुकार।।


    धूम मची फुटवाल की ,महाकुम्भ  ब्राजील।

   भारत  के फुटवाल को  ,  लिया क्रिकेट ने लील।।


                   श्रीराम तिवारी





 

मंगलवार, 10 जून 2014

सत्ता मनमानी करे ,दुखी प्रजाजन रोय ! तो कुर्सी भी इंद्र की ,डगमग -डगमग होय ।।



 इससे पहले कि   'हम भारत के जन-गण '- इस चुनावी जीत के आकर्षक- वोटलुभावन  नारों के ३५ पेजीय पुलन्दे को ठीक से पढ़ सकें  -जो कि   भाजपा  द्वारा सम्पादित ,प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी  द्वारा रचित , महामहिम राष्ट्रपति  प्रणव मुखर्जी महोदय द्वारा संसद के 'संयुक्त अधिवेशन में ' रखा गया। उनके द्वारा  अंग्रेजी में  पठित तथा महामहिम उपराष्ट्रपति  जनाब हामिद अंसारी साहिब द्वारा 'अटक-अटक' हिंदी में अनुवादित  अभिभाषण से- हम  अभिभूत  हो पाएं- कि   शैतानी ताकतों ने 'हम भारत के जन-गण' का  जायका ही  खराब कर दिया।मानसून  की  नकारात्मक भविष्यवाणी  से अब चिंता क्यों ?बाबा 'जय सोमनाथ ' हैं ! बाबा 'जय विश्वनाथ ' हैं,राम-लला हैं - वे वर्तमान सरकार के कारण पूरे भारत   से नाराज लगते  हैं  कि कमबख्त मंदिर की बात भूल गए। उल्टे  'हर-हर मोदी-घर-घर मोदी'! कर रहे हैं।  नहीं बजाना मुझे डमरू  ! यदि  बाबा भोलेनाथ डमरू नहीं बजायेंगे तो 'मानसून' का  क्या होगा ? फिर काहे का '१० सूत्र और काहे का 'भारत निर्माण '  ! करते  रहो संसद में अपने मुख से अपना ही  गुणगान ! ! देते रहो कोरे -भाषण ! करते  रहो मरकट आसान ! जनता में आपसे  सही सवाल पूंछने की क्षमता  ही नहीं है ! इसीलिये इस  भयावह चित्रण  के वावजूद  भी  'हम भारत के जन-गण'रंचमात्र   विचलित नहीं हैं ! !
            दिल्ली सहित पूरे देश  में बिजली  संकट , दिल्ली -यूपी समेत सम्पूर्ण भारत में हत्या बलात्कार -गैंग रेप की अनवरत घटनाएँ , हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी में  डूबने से २४ युवा होनहार छात्रों  की  मौत,  पुणे में कटट्रपंथियों द्वारा  एक निर्दोष अल्पसंख्यक  युवक की नृसंस हत्या ने सारा उत्साह ठंडा कर दिया।  खबर है कि मध्यप्रदेश  में रोज १३ लड़कियां गायब हो रही हैं  ,बिहार ,तमिलनाडु और बंगाल में बलात्कार पीड़िता  को जिन्दा जलाये जाने की जघन्य घटनाएं हो रहीं हैं।   इन  सब  के कारण भी 'हम भारत के जन-गण' उतने परेशान नहीं हैं कि  निराशा के सागर में डूबने -उतराने लगें। इन अद्द्तन  अप्रिय घटनाओं को  दुहराने का आशय  सिर्फ ये है कि ये तो 'आम बात है '  ये घटनाएँ तो इस व्यवस्था का स्थाई भाव  हैं। ये तो इस सिस्टम का 'सार तत्व'  मात्र  हैं ।
              दरसल 'हम भारत के जन -गण 'का जायका घोषणावीरों ने बिगाड़ा है।  जो विजेताओं द्वारा चुनाव के दौरान बार-बार दुहराया गया  है।  अब सत्ता प्राप्ति उपरान्त  उसी को 'सिद्धांत सूत्र' मानकर -सरकारी एजंडा मानकर -मार्फ़त महामहिम  संसद में देश के समक्ष रखा जा गया  है। राष्ट्रपति महोदय के अभिभाषण का एक वाक्य में सार ये है कि "मोदी सरकार भारत की तकदीर बदलने जा रही है  " खुशामदीद ! लेकिन  सवाल यह है कि  यह कौन मंदमति नहीं चाहेगा ?  कोई ज़रा सी भी अक्ल रखता होगा तो ये जरूर सोचेगा  कि 'हंसना और गाल फुलाना 'दोनों एक साथ सम्भव कैसे हो गया ?एक तरफ पूँजीपतियों ,कार्पोरेटरों और देशी-विदेशी निवशकों को उनके सुपर मुनाफों के लिए -उनके   उत्पादों के दाम बढ़ाने  के लिए - पिछले दरवाजे से जुगत भिड़ाई जा रही है.दूसरी ओर देश की आवाम को महँगाई  कम करने के सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं।  संसद में - गंगा और अन्य नदियां साफ़ करने ,रेल-सड़क और इंफ्रास्ट्रकचर बढ़ाने के 'सकारात्मक' भाषण दिए जा रहे हैं।" भृष्टतम व्यवस्था में यह कैसे सम्भव  है ? विशाल लागत की धन राशि कहाँ से आएगी ?हो रहा भारत निर्माण"  का नारा कहीं, वास्तव में  काल्पनिक 'गुजरात बाइब्रेंट 'जैसा ही तो नहीं है ?  मुंगेरीलाल के हसींन  सपनों की पूर्ति  के लिए पूँजीपतियों की दोस्ती  कौन छोड़ने वाला है ? उनसे दोस्ती छोड़ोगे तो अगले चुनाव मेंहवाई यात्राओं के लिए ,बड़ी-बड़ी आम सभाओं के लिए -  अडानी-अम्बानी पैसा नहीं देंगे। 'बिना पैसा सब सून '.   एप्स  -मीडिया ,कार्पोरेट नियंत्रित तमाम तकनीकी सूचना तंत्र -प्रिंट-छप्य -दृश्य और डिजिटल मीडिया -इस समय पूंजीपतियों के हाथ में है. क्या वे अपने हितों की उपेक्षा बर्दास्त कर सकेंगे ? ये काले धन वाले   मोदी  सरकार को अपनी अँगुलियों पर क्यों नहीं  नचाएंगे ? यदि मोदी जी ने पूंजीपतियों से दोस्ती निभाई और  धन के आभाव में -जनता से किये वादे पूरे नहीं किये   तो  यह  अवश्य ही  चरितार्थ होकर रहेगा  कि ;-

                             सत्ता मनमानी करे ,दुखी प्रजाजन रोय।

                           तो कुर्सी भी इंद्र की ,डगमग -डगमग होय ।।

याने वापिस 'पुनर्मूषको भव'  भी सम्भव है। २८२ की जगह '८२' भी संभव है। १९८ ४ में तो भाजपा को  मात्र २ से ही संतोष करना पड़ा था। इस दफा -कांग्रेस को ४४ में और वामपंथ को १४ में  शर्माना नहीं चाहिए।  जहां तक गुजरात बाइब्रेंट ,सुशासन  या गुड गवर्नेस की बात है तो विगत २४ घण्टों में गुजरात में जो घटा है वो  सावित करने के लिए पर्याप्त है कि  वर्तमान चुनावों में'संघ परिवार' द्वारा  जिस झूंठ को बार-बार परोसा  गया वो अब सारे  देश को मुँह  छिड़ा रहा है। यदि  कांग्रेस को विपक्ष के भूमिका निभानी नहीं आती तो चिंता की कोई बात नहीं, भाजपा कोभी  'सत्ता की भूमिका' निभाना कहाँ आता है ?  जनता खुद ही अपना विकल्प चुन लेगी। बहरहाल तो  देश की ताजातरीन बानगी पेश है :-

 घटना [१]:-नाबालिग लड़की से बलात्कार करने वाले  आरोपी दुष्ट आसाराम के   कुकर्मों का  सबसे अहम गवाह-वैद्द्य अमृत प्रजापति की आज गुजरात के राजकोट में  मौत हो गई।  उन्हें आसाराम के गुंडों ने २३ मई को गोली मार दी थी। यह सारा घटनाक्रम 'बाइब्रेंट गुजरात' का है। आसाराम फीलगुड में है।वह अब भी   बोलता है की जयराम जी की बोलना पडेगा !

घटना [२]सूरत के पास ताप्ती नदी पर बन रहे  बहुउद्देश्यीय निर्माणाधीन  विशालकाय पुल का कल  उसके  शैशवकाल में ही ' हे राम ! हो गया '।  यह बताने की जरुरत नहीं कि यह  ब्रिज  यदि बनकर तैयार हो जाता  और कुछ दिन ठीक से चल भी जाता तो श्रेय किसे दिया जाता ?'नमो-नमो'का जाप ही  होता  न  !  चूँकि अब वह पुल  ध्वस्त हो  चुका  है इसलिए इसकी जिम्मेदारी किसी इंजीनियर  पर,ओवरसियर पर  या चौकीदार पर डाल  दी जाएगी।  बहरहाल 'गुजरात चमक रहा है 'आनंदी बेन आनंद से हैं और ठेकेदार तो- न केवल गुजरात बल्कि पूरे भारत में 'परमानन्द' से हैं ! क्या यही आदर्श लेकर 'विकाश' और' गुड गवर्नेस ' किया जाएगा ?

घटना [३]गुजरात  की नयी मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल   ने स्वयं ही यह संज्ञान लिया है कि  गुजरात में महिलाओं की स्थति बहुत खराब है। वहां  कन्या भ्रूण ह्त्या जोरों पर है।  लिंगानुपात चरमरा गया है। यह श्रेय किसे दिया जाना चाहिए ?क्या १२ साल के 'मोदी शासित ' गुजरात  में इस बाबत कोई ठोस उपाय या कार्यवाही कीगई ? यदि नहीं तो अब सारे देश  को स्त्री उत्थान का झुनझुना क्यों पकड़ाया जा रहा है। गुजरात में  जब ख़ास महिलाओं की हालत ठीक नहीं तो आम की तो बात ही क्या ?

 घटना [४] गुजरात के सौराष्ट्र ,कच्छ ,कठियाबाढ़ तथा ग्रामीण आंचलों में पानी की हाहाकार मची है ,बिजली की तो लोगों ने उम्मीद भी छोड़ दी है। सुदूर देहाती गुजरात की हालत बस्तर से भी खराब है। महिलायें लाइन लगाकर गड्ढों से  चुल्लू-चुल्लू पानी  भरने में दिन-दिन  भर खटती  रहती हैं।
घटना [५]  जब गुजरात में  आज अमूल के  कामगार भूंखे -प्यासे  अपनी मजदूरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो ' मोदी  सरकार के रहते  शेष भारत में  पूँजीपतियों  के अत्याचार से मजदूरों -किसानों के हितों  की रक्षा कैसे संभव  है ?'
 घटना [६] मोदी जी ने नवाज शरीफ की माँ  को तोहफा भेजा ,अच्छा काम किया। नवाज शरीफ ने मोदी जी की माताजी को तोहफा भेजा ,और अच्छा किया। किन्तु  प्रधानमंत्री जी ने ट्वीट किया  है की ' नवाज ने  उन की माँ  को साड़ी भेजी ' जबकि  चर्चा है कि  उन्होंने शाल भेजी है । अब सवाल यह महत्वपूर्ण नहीं है कि  क्या भेजा ? महत्वपूर्ण यह है कि  आप  दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र- 'महान भारत' के प्रधानमंत्री हैं। आप  का लिखा  ही अब भारत का भाग्य  -लेख होगा। यदि आपको  महा विजय मिली   है , तो आप उसके अनुरूप आचरण कीजिये।  चुनावी ढपोरशंख बहुत बजा लिया अब असली बात कीजिये।  यदि आप से चूक हुई है तो  मान लीजिये। उसमे सुधर कीजिये। यह भी जान लीजिये कि  आप लोकतंत्र में आलोचना से परे  नहीं हो सकते। देश आप से बड़ा है। आप अनजाने में या जानबूझकर  देश से बड़ा होने की कोशिश  मत कीजिये !इसमें न माया मिलेंगे और न राम !
                   
    श्रीराम तिवारी    

रविवार, 8 जून 2014

सच्चाई शायद सच में अब वे असर हो गई !



     सच्चाई  शायद  सच में अब  वे असर हो गई।

     इसीलिये शैतानियत कुछ ज्यादा  ज़बर हो गई।।

     बानगी पेश की जमाने  ने अपनी कुछ इस तरह ,

     कि जो पोशीदा  भी न थी बात  वो खबर हो गई।

      किस्ती के डूबने का अनुमान तो था सभी को  मगर ,

      माझी की गफलत से  तूफ़ान  को खबर  हो गई।

     समझे  थे  दूर से साहिल जिसे  साथी 'श्रीराम ',

     मझधार में वो 'लहर'  भी जानलेवा  भँवर  हो गई।

     बिजली भी गिरी  है कमबख्त उसी  दरख्त पर ,

     परिंदों का वसेरा था जहाँ और  वहीँ कहर हो गई।

    सच्चाई  शायद सच में  अब वे असर हो गई।।


                श्रीराम तिवारी 

  
      

      

शनिवार, 7 जून 2014

यूपी में भी आएगी ,अब मोदी सरकार।




    मोदी मय  माहौल है , सॉल्व हैं सभी सवाल।

   आम आदमी पूंछता ,कौन  केजरीवाल।।


    गैंग -रेप -हत्या- जुलुम,  यूपी  है बदनाम।

   पिछड़े -दवंग लगा रहे ,दलित-दीन के काम।।


   मंडल आयोग का फलसफा ,शतप्रतिशत नाकाम।

  पिछड़े वर्ग के नाम पर, अब  मुस्टण्डे  हुक्काम।।


   पिता -पुत्र ने कर दिया ,यूपी बंटाढार।

  भाई-भतीजावाद  में ,डूब रही सरकार।।


  दलित वर्ग नेता चले ,पीड़िताओं के द्वार।

  झूँठी  रस्म अदायगी ,नकली  हाहाकार।।


  उड़न खटोले बैठकर , जो  हमदर्दी दिखलाय 

  वो  बिल्ली  हज को चली ,नौ सौ चूहे खाय।।


इसी तरह चलता रहा ,शोषण या व्यभिचार। 

 यूपी में आ जाएगी  , अब मोदी सरकार।।


    श्रीराम तिवारी



 

'संघ' नमोमय आज ,भूल कर राम-कृष्ण -हरि !

                 [१]

     दुर्घटना में चल  वसे  , मुण्डे  गोपीनाथ।

    महाराष्ट्र की भाजपा ,फिर से हुई अनाथ।।

    फिर से हुई अनाथ ,दुखी   भये  उनके  परिजन।

     सत्तालोलुप  बैचेन  ,स्वार्थ लिए  मन ही मन।।

    भाजपा शिवसेना  , लक्ष्य साधते अपना- अपना।

    सत्ता  भर मिल जाय ,भले ही होती रहे  दुर्घटना ।।

          
        [२]


 ऊँचा दर्जा जब मिले ,मत दिखलाओ ऐंठ।

  पॉवर  मद में चूर  कुछ   ,हुए हैं  मटियामेंट।।

  हुए हैं मटियामेंट , बघारी जिनने शेखी।

  यूपीए की दुर्गति  ,सभी ने   आँखन  देखी।।

 आडवाणी  जशवंत ,  जोशी की हुई किरकिरी। 

  'संघ' नमोमय आज  ,भूल कर राम-कृष्ण -हरि ।। 

   
     श्रीराम तिवारी










     

      

 


 

शुक्रवार, 6 जून 2014

इस सूरते हाल में कब तक जबरन फीलगुड महसूस किया जाए ?

 हालाँकि ये गैंग-रेप ,हत्या -बलात्कार की  खबरें अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मशार करने वाली हैं  किन्तु इसमें भी  कुछ लोगों को एक संतोष का एहशास हो सकता है कि तमाम अखवारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने यूपी से बाहर भी झांकना शुरू कर दिया है।  कल जबलपुर में महिला डॉ के साथ निर्लज्जतापूर्ण  हैवानियत  का हादसा हुआ,जयपुर में विदेशी महिला से गैंग -रेप हुआ , नॉएडा,कोलकाता ,आनंद,भुज,अनूपनगर इत्यादि शहरों  में हत्या - बलात्कार के मामले  दर्ज  हुए हैं ।  मध्य प्रदेश  के हर गाँव -शहर की भी  यही दशा है। जहां तक शासन का सवाल है तो  एमपी में तो -पार्षद ,विधायक ,सांसद ,मंत्री,मुख्यमंत्री  ही नहीं अब तो केंद्र में  प्रधान मंत्री भी खाँटी  भाजपाई ही है। न केवल भाजपाई बल्कि 'पियोर 'संघी' है।   फिर भी सब कुछ पहले से ज्यादा बदतर है। जो समझते हैं कि हम तो 'वायस' रखते हैं तो वे पुलिस रिकार्ड देखकर तुलना कर सकते हैं कि २६ मई के बाद देश में हर जगह गिरावट ड्सर्ज की गई है। केवल मंहगाई में ,पूँजीपतियों  के मुनाफों में इजाफा हुआ है और देश के प्रधानमंत्री  का  महिमामंडन  हद से गुजर गया है वो ने केवल भारत में बल्कि इस से  बाहर  वैश्विक हो चला है। जनता माथा धुन रही है , सरकार समर्थक आम कार्यकर्ता ही नहीं  आडवाणी ,जोशी ,यशवंत सिन्हा जैसे लोग  भी  कसमसाने लगे हैं  कि  इस सूरते हाल में कब तक जबरन  फीलगुड  महसूस किया जाए ?
                           देश  का   कार्पोरेट नियंत्रित  मीडिया बाकई  पूर्वाग्रह और फीलगुड की एक   भ्रामक 'लहर' पर सवार है। वो लोगों के मुँह  में जबसे  मोदी सरकार का यह सूक्त वाक्य - 'अब  अच्छे दिन आये हैं '-जबरिया ठूँसने में व्यस्त है, तभी  से  समग्र भारत में  लूट ,हिंसा ,शोषण ,महँगाई ,रिश्वतखोरी   अत्याचार  , गैंग  रेप और बलात्कार के भी अच्छे दिन आने लगे हैं। इसी  के साथ -साथ  इस कार्पोरेट नियंत्रित मीडिया के भी अच्छे दिन आये हुए हैं।  इसीलिए अपने जायके को खराब न करते हुए तमाम-दृश्य-छप्य -श्रव्य-डिजिटल-सोशल तथा समग्र मीडिया अखिल भारत की ओर से ''मूँदो आँख कतहुँ  कोउ  नाहीं '' की मुद्रा मेंआ  चुका  है।  हालाँकि  कल तक उसे केवल  उत्तर प्रदेश में  ही - अंधाधुंध  गैंग रेप  , बलात्कार और जघन्य अपराधों की  फ़िक्र हो रही थी ।  उसकी नजर में मानों पूरा भारत  अभी से गुजरात जैसा  अपराधमुक्त [क्या बाकई ?]  होकर चेन की वंशी  ही बजा रहा है। उसकी नजर में  केवल यूपी  ही अब  'चारित्रिक'विमर्श के लिए शेष  रहा  है।  न केवल मीडिया बल्कि वे नेता जो कभी आसाराम जैसे बलात्कारी की पाद  पूजा किया  करते थे , उसके गुनाहों पर पर्दा डालने में आगे-आगे रह करते  थे  वे सभी पाखंडी नेता और तथाकथित  'साध्वियां कम नेत्रियां' अब यूपी  के दुखद एवं बीभत्स  अपराधों पर  बजाय कुछ ठोस उपाय या आंदोलन करने के केवल ढ़पोरशंखी -वयानबाजी यानी 'नैतिकता की नौटंकी'  कर रहे हैं।
                                                 सारा देश जानता है कि  अतीत में  गुजरात के अक्षरधाम मंदिर के  कुछ   पाखंडी स्वामियों , आसाराम,नारायण साईं जैसे बलात्कारियों , भीमानंद ,जयेंद्र सरस्वती ,डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख ,राजस्थान के मौलवी गाजी फ़कीर, 'ननों ' का बेजा शोषण करने वाले पादरियों-फादरों -धर्म प्रचारकों तथा अन्य  विवादस्पद   महात्माओं - योगियों  धर्मगुरुओं की 'रासलीला' पर  इन बयानवीरों की क्या प्रतिक्रिया रही है।  राजनैतिक पटल पर ओमान चांडी ,राघवजी ,ध्रुबनारायण या भवरी देवी  के हत्यारे  नेताओं के ' अनैतिक' आचरण पर,  किसने क्या कहा  था और किसने  क्या   किया  यह सर्वविदित है। उमा  भारती के तो सौ खून माफ़ हैं क्योंकि वे तो 'साध्वीं हैं और  ' पांचवीं' पास हैं। किन्तु प्रदेश के  गृहमंत्री  बाबूलाल जी गौर से  जनता को ये उम्मीद नहीं थी कि  अखिलेश की इस तरह से मदद  करेंगे!  उनकीं इस हरकत से तो  कहना पड़ेगा  कि "ऐसे  मित्रों  से  तो विद्द्वान शत्रु  ही बेहतर है " . वेशक मुलायम-अखिलेश आजम खां  और 'सपा' नेताओं  की बयानबाजी ने तथा उनकी सपा सरकार ने  यूपी का सत्यानाश कर रखा  है। किन्तु अपने व्यक्तिगत  स्वजातीय' प्रेम के वशीभूत  गौर साहिब [ असली नाम बाबूलाल यादव -गौर तो 'तखल्लुस'है ] ने जो गौर फरमाया  कि"बलात्कार  की घटनाओं को रोका नहीं जा सकता या कि  पहले से पता होता तो पकड़ नहीं लेते! मध्यप्रदेश के  गृहमंत्री का इस तरह से बयान देना कि  "कोई व्यक्ति बताकर नहीं करता  बलात्कार " नितांत निंदनीय है। उनके जैसे वयोबृद्ध तथा तपे  हुए संघनिष्ठ 'स्वयंसेवक' से यह आशा नहीं थी। यदि  मान लें कि वे 'संघ'रुपी  हांडी का एक चावल हैं तो देश की प्रबुद्ध जनता को सोचना होगा कि  संघ  की विचारधारा क्या है ? संघ ने  किस तरह के 'चाल-चरित्र-चेहरे  वाले लोगों को  अपने 'लक्ष्यपूर्ति' हेतु तैयार किया है ?कैसे 'शीलवान' लोगों को  न केवल मध्यप्रदेश की बल्कि केंद्र  की भी सत्ता सौंप दी है।  बाबूलाल जी यादव उर्फ़ 'गौर'न केवल पढ़े -लिखे बल्कि बेहतरीन अनुभवी और भूतपूर्व 'मजदूर नेता'[बीएमएस वाले]माने जाते  रहे हैं। लेकिन जब कभी लालू यादव ,मुलायम सिंह यादव ,अखिलेश यादव ,शरद यादव या किसी भी  अन्य यादव  नेता पर संकट आया  है  तो इन्होने साथ निभाया है। वे उसके साथ खड़े दीखते हैं जो उनकी जाति का है !क्या  संघ की शिक्षा -दीक्षा यही है ?अभी कुछ दिनों पहले इन्ही गौर साहिब ने अपने यादव समाज के एक सम्मेलन में कहा था कि  अच्छे-दिन आने वाले हैं कि  मध्यप्रदेश का डीजीपी  कोई यादव होगा !
     मुझे मालूम है कि मध्यप्रदेश के वर्तमान गृहमंत्री श्री बाबूलाल जी 'गौर' लगभग  पता नहीं ६० साल से राजनीति  में हैं। मेरा ख्याल था कि वे खाँटी 'संघी' हैं इसलिए वे समस्त हिन्दू समाज के हित में ही सोचते होंगे।  भाजपा की वर्तमान अप्रत्याशित जीत और 'मोदी सरकार' के आगाज से  भी लगने  लगा था  कि  'संघ परिवार'-समस्त भाजपाई अब न केवल जातिवाद, न केवल सम्प्रदायवाद बल्कि क्षेत्रीयतावाद  की अंत्येष्टी  करके ही दम  लेंगे।गौर साहिब के ख्यालात से ये सारे ख्याल धराशाई हो चुके हैं। जिस तरहसे  मुलायमसिंह , अखिलेश ,  ,लालू,शरद यादव इत्यादि 'यादवी सेनानायक ''समाजवाद 'शब्द को बदनाम कर रहे हैं,उसी तरह से 'संघ परिवार ' के तमाम गौर जैसे सत्तारूढ़ भाजपाई  नेता 'हिन्दुत्ववाद''राष्ट्रवाद'को बदनाम कर रहे हैं। दरशल ये सभी केवल कांग्रेस का निषेध मात्र हैं। उसकी कार्बन कापी बनने में इन्हे ज्यादा बक्त नहीं लगेगा।कांग्रेस यदि चोर साबित होकर जमीदोज हुई है तो ये बड़बोले वैकल्पिक नेता 'डाकू' साबित होकर इतिहास के बीहड़ों में फना हो जाएंगे। ये पब्लिक है सब जानती है !
   न केवल 'संघ', न केवल जनसंघ ,न केवल 'जनता पार्टी', बल्कि भारतीय जनता पार्टी के संस्थापन से लेकर  म. प्र. की वर्तमान शिवराज सरकार के गृह मंत्री की हैसियत तक  गौर साहेब निरंतर इस  तथाकथित 'संघ परिवार'  के   एक नामचीन नेता रहे हैं। किसी भी  व्यक्ति से उम्मीद की जा सकती  है कि  जिस विचारधारा से वो सहमत है या जुड़ा हुआ है,यदि वह उसी के  नाम पर खीर-मलाई  खा रहा है तो  कम  से कम उस  विचारधारा की 'ऐंसी -तैंसी ' तो न केरे।तात्पर्य यह है कि 'चाल -चेहरा - चरित्र' के बारे में ,अनुशाशन के बारे में ,भारतीय सांस्कृतिक  चेतना  के बारे में ,राष्ट्रवाद के बारे में,हिन्दू समाज में जातीय एकता के बारे में -यदि  गौर साहिब ने यही  सीखा है,जो वे 'बोल' रहे हैं और यदि  ' संघ' ने भी यही सिखाया है तो कोई 'महा जड़मति ही कह  सकता है कि 'देश  की आवाम के अच्छे दिन आने वाले हैं '।
            गौर साहिब  के इस अपराधपोषक बयान के फ़ौरन बाद  मध्यप्रदेश में ,मात्र १२ घंटों में  १२ रेपकांड हो चुके हैं।  ह्त्या - लूट पाट  डकैती और भुखमरी तो आम बात है। किन्तु किसी खास नेता -मंत्री के बयान के बाद यदि ,धार,हरदा ,नीमच ,नारायणपुर  इंदौर ,महू,देपालपुर ,भोपाल ,  जबलपुर,ग्वालियर पिपरिया और झाबुआ ही नहीं अन्य  गाँवों-शहरों में भी  इस तरह की दुखांत और जघन्य रेप की घटनाओं  में वेषुमार इजाफा हो जाए तोजनता के  'मौनव्रत' से काम नहीं चलेगा। मीडिया को भी उत्तरप्रदेश से अपना लेंस' मध्यप्रदेश तथा पूरे देश में फोकस करना चहिये।  किसी को अद्द्यतन जानकारी चाहिए तो  पुलिस वेव साइट पर देख सकते हैं। जब  यूपी ,एमपी या केंद्र का सत्तारूढ़ नेतत्व ही गैंग रेप -बलात्कार और अपराधों   को हवा  देगा तो  देश का अब केवल 'भगवान   ही मालिक है '!

       श्रीराम तिवारी