शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

देश की रक्षा कौन करेगा?

 देश की रक्षा कौन करेगा? हम करेंगे, हम करेंगे

देश का कर्जा कौन भरेगा? हम भरेंगे, हम भरेंगे।

बैंको को एनपीए पन्द्रह लाख करोड से अधिक हो चुका है। यह दिख रहा एनपीए है, अगर छुपा हुआ एनपीए जोड़ लें तो एक्सपर्टस के अनुसार यह पच्चीस लाख करोड़ हो सकता है।
कौन खा गया ये पैसे?? किसने लिए हैं ये ?? कौन जिम्मेदार है??
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कुछ बेसिक बात- इसमे 60 प्रतिषत ब्याज है, बाकी का मूल .... इसका 5 प्रतिशत भी रिटेल लोन नहीं। ये आपके होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन नही है। ये किसानों को दिया कर्ज नही है। ये देष की 95 प्रतिशत जनता को दिया लोन नही है।
ये कार्पोरेट लोन है।
ज्यादातर लोन उस दौर का है, जब देश की इकानमी बूम पर थीं। ये लोन दिये गए है पावर सेक्टर को, माइनिंग सेक्टर, टेलीकाम सेक्टर को, बिल्डर्स को ... बड़ी फैक्टरी खोलने को, बड़ा पावर प्लांट खोलने को, नई माइंस का सेटअप करने का, नई टेलीफोनी बिठाने को। सवाल ये है कि पैसे डूबे क्यों??
जवाब एक ही है - पालिसी, पालिटिक्स, और हिंदुस्तान की जनता की नासमझी ।
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टेलीकाम बूम पर था। शोर हुआ स्पेक्ट्रम घोटाले का .... ये पालिटिक्स थी, क्योकि घोटाला तो कभी साबित न हुआ। घोटाले के शोर का परिणाम ये हुआ, कि लेकिन जिन कंपनियों का लाइसेंस मिले थे, उनपर पेनल्टी और चार्जेस ठुक गए। वो बिक गईं, इनका कर्ज?
एनपीए है।
कुछ दिन बाद जियो आया, सरकारी पालिसी उसके फेवर मे रही, तो उसकी कास्ट कम रही। (याद कीजिए बीएसएनएल के टावर किराये पर देना। इसी तरह के अपने नेटवर्क को खडा करने के लिए किसी दूसरी कंपनी को कर्ज लेकर बीस हजार करोड खर्च करने पड़ते) अब कास्ट कम, तो जियो की कीमत कम, उसे भी कंपनी ने फ्री कर दिया।
नतीजा, दूसरी कंपनियों के बिजनेस डूब गए। उन्होने जो कर्ज उठाए थे..
एनपीए है।
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कोयले की खदाने बंटी। शोर हुआ कोयला घोटाले का.. ये पालिटिक्स थी, क्योकि घोटाला तो कभी साबित न हुआ। घोटाले के शोर का परिणाम ये हुआ, कि लेकिन जिन कंपनियों को खदान मिली थी, कैंसल हुए। ये खदान कैप्टिव पावर प्लांट के लिए थे। इन प्लांट की स्थापना के लिए उठाया गया कर्ज?
एनपीए है।
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बूम था। लोग कमा रहे थे, मकान खरीद रहे थे। बिल्डर कर्ज उठा कर मकान बना रहे थेे। मकान बिकना बंद, क्योकि लोगों के पास पैसा नही। इन बिल्डिंग प्रोजेक्ट की स्थापना के लिए उठाया गया कर्ज?
एनपीए है।
पूरे देश मे सड़कें, पुल, हाइवे बन रहे है। लाखों करोड़ के मेगा प्रोजेक्ट लांच हुए, स्वीकृत हुए, टोकन किस्त जारी हो गई। ठेका कंपनियों ने कर्ज लेकर काम शुरू कर दिया। लेकिन 30 लाख करोड़ के बजट वाले देष मे 100 लाख करोड के प्रोजेक्ट पास कर देंगे, तो पैसा कहां से देंगे। नतीजा, ठेका कंपनियों को पैसा जारी नही होता, बैंक का कर्ज ...
एनपीए हैं।
दस सालों मे पांच सात लाख करोड़ के लोन ब्याज सहित दोगुने हो चुके हैं। जिन कामों के लिए उठाये गए थे, वो धन्धे राजनीति की भेंट चढ चुके हैं।
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अब सवाल ये है कि इस कर्ज को कौन भरेगा। अजी हम और आप।
चाहें या न चाहें, हमें ही इसे भरना है। हम भर भी रहे हैं। सस्ती कोयला खदान के दौर मे बिजली सस्ती पाई थी आपने, अब इमानदारी से बंटी कोयला खदानो के दौर मे दोगुना बिजली बिल भर रहे है।
सस्ते स्पेस्क्ट्रम के दौर मे सस्ती कांल दरें थी, आज भी सस्ती है, लेकिन इसकी कीमत बीएसएनएल और तमाम दूसरी कम्पनियों के (देश) भक्त कर्मचारी, जाब खोकर भर रहे हैं।
जी हां, आपको जाब से निकाल कर कास्ट कट की जा रही है। याने आपके नौकरी से हटाने पर बचने वाली सैलरी कंपनी बैंक मे भरेगी। यही काम बैंक वाले भी जाब खोकर करेंगे। देश का कर्जा भरेंगे।
बाकी की जनता तो एटीएम चार्ज, चेक बुक चार्ज, जमा चार्ज, निकासी चार्ज, और घट चुकी बचत ब्याज दरों क रूप मेे भर रही ही है।
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ये मस्त है। असल मे प्राकृतिक न्याय है। अभी तो हमें और जलील होना है। और कर्ज भरना है। तमाशबीन हम बने थे, मजा हम ले रहे थे। अब पे बैक का टाइम है। तो जोर से कहिए ...
देश का कर्जा कौन भरेगा
हम भरेंगे, हम भरेंगे।
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PS- लेकिन उसके पहले बैंक वालों के बेरोजगार होने का जश्न मनाऐगें।

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