एक नेताजी मरणोपरांत जब स्वर्ग सिधारे,
शहीदों ने उन्हें वहाँ प्रेम से गले लगा लिया।
पूछी कुशलक्षेम अमन की अपने वतन की,
कहो वत्स-स्विस बैंकमें कितना जमा किया?
ये आग ये धुआं,चीत्कार करुण क्रंदन क्यों,
उस निर्धन का झोपड़ा, किसने जला दिया?
वेदना से भीगी पलकें,शर्म से झुकी हुई गर्दन,
अपराध बोध पीड़ित ने, सच-सच बता दिया।
वंदनीय हे अमर शहीदों,आपके अपनों ने ही,
आपकी शहादत का ये बदतर सिला दिया !
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