शुक्रवार, 29 मई 2020

*सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम*


गोपाल सिंह एक सेवानिवृत अध्यापक हैं।
सुबह दस बजे तक ये एकदम स्वस्थ प्रतीत हो रहे थे। शाम के सात बजते- बजते तेज बुखार के साथ-साथ वे सारे लक्षण दिखायी देने लगे, जो एक कोरोना पॉजीटिव मरीज के अंदर दिखाई देते हैं।
परिवार के सदस्यों के चेहरों पर खौफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था ।
उनकी चारपाई घर के एक पुराने बड़े से बाहरी कमरे में डाल दी गयी, जिसमें इनके पालतू कुत्ते "मार्शल" का बसेरा है।
गोपाल जी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क से उठाकर लाये थे और अपने बच्चे की तरह पालकर इसको नाम दिया "मार्शल"।
इस कमरे में अब गोपाल जी, उनकी चारपाई और उनका प्यारा मार्शल हैं।
दोनों बेटों -बहुओं ने दूरी बना ली और बच्चों को भी पास ना जानें के निर्देश दे दिए गयेl
सरकार द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन कर के सूचना दे दी गयी।
खबर मुहल्ले भर में फैल चुकी थी, लेकिन मिलने कोई नहीं आया।
साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए, हाथ में छड़ी लिये पड़ोस की कोई एक बूढी अम्मा आई और गोपाल जी की पत्नी से बोली - "अरे कोई इसके पास दूर से खाना भी सरका दो, वे अस्पताल वाले तो इसे भूखे को ही ले जाएँगे उठा के।"
अब प्रश्न ये था कि उनको खाना देने के लिये कौन जाए ?
बहुओं ने खाना अपनी सास को पकड़ा दियाl
अब गोपाल जी की पत्नी के हाथ, थाली पकड़ते ही काँपने लगे, पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों।
इतना देखकर वह पड़ोसन बूढ़ी अम्मा बोली- "अरी तेरा तो पति है, तू भी ........। मुँह बाँध के चली जा और दूर से थाली सरका दे, वो अपने आप उठाकर खा लेगा।"
सारा वार्तालाप गोपाल जी चुपचाप सुन रहे थे, उनकी आँखें नम थी और काँपते होठों से उन्होंने कहा कि-
"कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है, मुझे भूख भी नहीं है।"
इसी बीच एम्बुलेंस आ जाती है और गोपाल जी को एम्बुलेंस में बैठने के लिये बोला जाता है।
गोपाल जी घर के दरवाजे पर आकर एक बार पलटकर अपने घर की तरफ देखते हैं।
पोती -पोते प्रथम तल की खिड़की से मास्क लगाए दादा को निहारते हुए और उन बच्चों के पीछे सर पर पल्लू रखे उनकी दोनों बहुएँ दिखाई पड़ती हैं।
घर के दरवाजे से हटकर बरामदे पर, दोनों बेटे काफी दूर अपनी माँ के साथ खड़े थे।
विचारों का तूफान गोपाल जी के अंदर उमड़ रहा था।
उनकी पोती ने उनकी तरफ हाथ हिलाते हुए टाटा एवं बाई बाई कहा।
एक क्षण को उन्हें लगा कि 'जिंदगी ने अलविदा कह दिया।'
गोपाल जी की आँखें लबलबा उठी।
उन्होंने बैठकर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जाकर बैठ गये।
उनकी पत्नी ने तुरंत पानी से भरी बाल्टी घर की उस देहरी पर उलेड दी, जिसको गोपाल चूमकर एम्बुलेंस में बैठे थे।
इसे तिरस्कार कहो या मजबूरी, लेकिन ये दृश्य देखकर कुत्ता भी रो पड़ा और उसी एम्बुलेंस के पीछे - पीछे हो लिया, जो गोपाल जी को अस्पताल लेकर जा रही थी।
गोपाल जी अस्पताल में 14 दिनों के अब्ज़र्वेशन पीरियड में रहे।
उनकी सभी जाँच सामान्य थी। उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करके छुट्टी दे दी गयी।
जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उनको अस्पताल के गेट पर उनका कुत्ता मार्शल बैठा दिखाई दिया ।
दोनों एक दूसरे से लिपट गये। एक की आँखों से गंगा तो एक की आँखों से यमुना बहे जा रही थी।
जब तक उनके बेटों की लम्बी गाड़ी उन्हें लेने पहुँचती, तब तक वो अपने कुत्ते को लेकर किसी दूसरी दिशा की ओर निकल चुके थे।
उसके बाद वो कभी दिखाई नहीं दिये।
आज उनके फोटो के साथ उनकी गुमशुदगी की खबर छपी हैl
*अखबार में लिखा है कि सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम दिया जायेगा।*
40 हजार - हाँ पढ़कर ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उनकी, जिसको वो परिवार के ऊपर हँसते गाते उड़ा दिया करते थे।
एक बार गोपाल जी के जगह पर स्वयं को खड़ा करोl
कल्पना करो कि इस कहानी में किरदार आप हो।
आपका सारा अहंकार और सब मोह माया खत्म हो जाएगा।
इसलिए मैं आप सभी से निवेदन करता हूं कि कुछ पुण्य कर्म कर लिया कीजिए l
जीवन में कुछ नहीं है l
कोई अपना नहीं है l
*जब तक स्वार्थ है, तभी तक आपके सब हैं।*
जीवन एक सफ़र है, मौत उसकी मंजिल है l
मोक्ष का द्वार कर्म है।
यही सत्य है ।
शिक्षा:
हे कोरोना, तू पूरी दुनिया में मौत का तांडव कर रहा है पर सचमुच में, तूने जीवन का सार समझा दिया है,
" अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा, स्त्री-पुरुष, धर्म-जाति, क्षेत्र-देश, राज़ा-रंक, कोई भेदभाव नहीं, सब एक समान हैं!
असली धर्म इंसानियत है! निस्वार्थ भाव से, निष्काम कर्म, सच्चाई, ईमानदारी, निर्मल प्रेम, मधुर वाणी, सद्भाव, भाईचारा, परोपकार करना ही सर्वश्रेष्ठ है
किसी बंधु ने यह लेख मुझे भेजा , मैं इसे अपने आप को फॉरवर्ड करने से रोक नहीं👍🏻
साभार -वाट्सएप यूनिवर्सिटी

बुधवार, 27 मई 2020

सर प्रफुल्ल चंद्र रॉय,

आचार्य सर प्रफुल्ल चंद्र रॉय, CIE, FNI, FRASB, FIAS, FCS प्रसिद्ध रसायनविद, शिक्षक-प्रोफेसर, वैज्ञानिक,इतिहासकार, दानदाता और न जाने क्या क्या!
सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा,ज्ञानेंद्र नाथ मुखर्जी,ज्ञानचंद्र घोष जैसे महान विज्ञानविदों के सम्माननीय गुरु,आचार्य।
उन्होंने भारतीय रसायनशास्त्र के इतिहास पर 1902 में,
'A History of Hindu Chemistry from the Earliest Times to the Middle of Sixteenth Century'
नामक प्रसिद्ध ग्रंथ लिखा!जिसमें भारतीय रसायन और विज्ञान के उत्थान और पतन को पहली बार लिपिबद्ध किया गया था।
यह बात बहुतेरे लोगों को पता नही कि जिस दवा को लेकर आज दुनिया भर बहस चल रही है, उस 'हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन' का भारत में आविष्कार आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रॉय ने ही अपनी संस्था बंगाल केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स के रसायनगार में किया था।
उल्लेखनीय है कि इस महान राष्ट्रीयकृत संस्था को आज निजीकरण के रास्ते धकेला जा रहा है।
हमने उनके आविष्कार को आसानी से स्वीकार कर लिया है, लेकिन उनकी विचारधारा को आसानी से नहीं पचा सक रहे है, यह एक बार फिर साबित हो गया है। मुझे उनके बारे में एक उद्धरण मिला है जो नीचे दिया जा रहा है, अगर आप पढ़ेंगे तो आप समझ जाएंगे।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रॉय ने एक बार कहा था, "मैंने कक्षा में इतना कुछ पढ़ाया। मैंने छात्रों को सिखाया कि पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है तब चंद्रग्रहण होता है। उन्होंने इसे पढ़ा, लिखा, परीक्षा में नंबर हासिल किए, अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुए। लेकिन मजेदार बात यह है कि जब वास्तव में चंद्रमा पर ग्रहण की छाया पड़ी तो यही छात्र "चंद्रमा को राहु ने निगल लिया" कहते हुए ढोल, ताशे, घण्टे, घड़ियाल और शंख बजाते हुए सड़क पर आ गए।
हाय!! यह एक आश्चर्यजनक भारतवर्ष है।"

निजी क्षेत्र नहीं सरकारी क्षेत्र ही कोरोना में काम आया !

देश के सबसे बड़े अस्पताल का नाम मेदांता नहीं एम्स है जो सरकारी है,सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम IIT है जो सरकारी हैं, सबसे अच्छे मैनेजमेंट कॉलेज का नाम IIM है जो सरकारी हैं,देश के सबसे अच्छे विद्यालय केन्द्रीय विद्यालय हैं जो सरकारी हैं ,बीमा उद्योग में विश्व की सबसे बड़ी और सबसे अच्छी कम्पनी भारतीय जीवन बीमा निगम है जो सरकारी है,देश के एक करोड़ लोग अभी या किसी भी वक़्त अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए सरकारी रेल में बैठते हैं..., नासा को टक्कर देने वाला ISRO अम्बानी नहीं सरकार के लोग चलाते हैं..
सरकारी संस्थाएँ फ़ालतू में बदनाम हैं,अगर इन सारी चीज़ों को प्राइवेट हाथों में सौंप दिया जाए तो ये सिर्फ़ लूट-खसोट का अड्डा बन जाएँगी। निजीकरण एक व्यवस्था नहीं बल्कि नव- रियासतीकरण है।
अगर हर काम में लाभ की ही सियासत होगी तो आम जनता का क्या होगा?? कुछ दिन बाद नवरियासतीकरण वाले लोग कहेगें कि देश के सरकारी स्कूलों, कालेजों और अस्पतालों से कोई लाभ नहीं है।अत: इनको भी निजी हाथों में दे दिया जाय तो आम जनता का क्या होगा??
अगर देश की आम जनता प्राइवेट स्कूलों और हास्पिटलों के लूटतंत्र से संतुष्ट हैं तो रेलवे, बैंकों एवं अन्य सरकारी संस्थाओं को भी निजी हाथों में जाने का स्वागत करें!!!
हमने बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सरकार बनायी है न कि सरकारी संपत्ति मुनाफाखोरों को बेचने के लिए,अगर प्रबंधन सही नहीं,तो सही करें। भागने से तो काम नही चलेगा।
एक साजिश है कि पहले सरकारी संस्थानों को ठीक से काम न करने दो, फिर बदनाम करो, जिससे निजीकरण करने पर कोई बोले नहीं, फिर धीरे से अपने आकाओं को बेच दो। जिन्होंने चुनाव के भारी भरकम खर्च की फंडिंग की है।
याद रखिये पार्टी फण्ड में गरीब मज़दूर, किसान पैसा नही देता बल्कि पूंजीपति देता है और पूंजीपति दान नहीं देता,निवेश करता है और चुनाव बाद मुनाफे की फसल काटता है।
आइए विरोध करें निजीकरण का!!! सरकार को अहसास कराएं कि अपनी जिम्मेदारियों से भागे नहीं।सरकारी संपत्तियों को बेचे नहीं। अगर कहीं घाटा है तो प्रबंधन ठीक से करें।
जितना ज्यादा हो सके इस पोस्ट को कॉपी पेस्ट और शेयर करें ताकि जनता जान सके कि निजीकरण से किसका फायदा हुआ !

मोरारी बापू

मैंने अन्य बाबाओं और स्वामियों की तरह मोरारी बापू को कभी महत्व नही दिया! किंतु जब मोरारी बापू के 'सर्व धर्म समभाव' वाले एट्टीट्यूड पर कुछ कमीनों ने हमला किया तो मैने तत्काल मान लिया कि मोरारी बापू ही असली संत है! वे सनातन धर्म के जीवंत रूप हैं,विश्वबन्धुत्व की भावना से ओतप्रोत हैं!यही तो सनातन धर्म का सार तत्व है।
मोरारी बापू का कंठ कब रामकथा कहते कहते कुरान की आयतें गाने लगता है या बाइबिल के वर्सेज गाने लगता है, खुद उन्हें भी पता नही चलता। प्रेम से भरे हृदय की यही पहचान है। प्रेम का भी कोई धर्म होता है भला ? प्रेम तो सर्वब्यापी है, सर्वत्र है। बुद्ध हों या महावीर,लाओत्से हो या मोहम्मद, येसु हो या नानक,मीरा हों या मंसूर, ये सब प्रेम की ही अभिव्यक्तियाँ हैं।
आज जो लोग मोरारी बापू की निंदा कर रहे हैं और उनके लिए भला बुरा कह रहे हैं वे लोग निंदनीय हैं,श्रीराम का चरित्र इतना क्षुद्र नही है जितना कट्टर सनातनी उसे बना रहे हैं। मोरारी बापू उन श्रीराम की कथा कह रहे हैं जो घट-घट वासी हैं, सर्वब्यापी है, प्रेम सिंधु हैं। सनातन धर्म मेंसंत निंदा नामापराध है। इस अपराध से बचना चाहिए सबको।
धर्मनिरपेक्षता को सम्मान देकर मोरारी बापू ने सिद्ध कर दिया कि वे असली रामभक्त हैं, असली राष्ट्रवादी हैं और असली संत हैं !

सोमवार, 18 मई 2020

पंडित देवप्रभाकर शास्त्री 'दद्दाजी- श्रद्धांजलि!

लगभग दस साल पहले की बात है! हमारी यूनियन की विशेष मीटिंग दिल्ली में रखी गई थी! तीन दिन चली मैराथन मीटिंग से फुर्सत पाकर मैं अपने बेटा बहू और पोते से मिलने उनके नोयडा स्थित निवास पहुंचा!उस दिन शायद मेरे पोते चैतन्य का जन्मदिन था ! शाम को बेटे प्रवीण के कुछ मित्र और बहू अर्चना के मायके की तरफ से उनके भाई बगैरह उपस्थित हुए!
पौत्र चैतन्य के जन्मदिन पर मीडिया के कुछ खास लोगों के अलावा वहां कुछ और भी महानुभाव उपस्थिति हुए !उन्हीं में सबसे आदरणीय एक विराट व्यक्तित्व से बेटे बहु ने मुझे मिलवाया! वे थे पंडित श्री देवप्रभाकर शास्त्री उर्फ 'दद्दाजी'!
मैने प्रगतिवादी,भौतिकवादी और मार्क्सवादी रौ में आकर उन्हें उपेक्षा से नमस्कार किया! किंतु कुछ देर बाद उनकी सरल सहज मुख मुद्रा पर मोहक मुस्कान के अद्तीय विस्तार के प्रभाव ने मुझे प्रेरित किया कि यह बाकई असली संत है!धर्म अध्यात्म और इधर उधर की चर्चा के बाद मैने बाबाओं स्वामियों की घोर निंदा करते हुए गरीबी,भखमरी,बेकारी और वैश्विक राजनीति पर लंबा चौड़ा भाषण दे डाला!किंतु दद्दाजी रंचमात्र विचलित नही हुए!मेरी हर बात पर इनका केवल स्मित हुंकारा,मानों कह रहे हों कि 'तुम ठीक कह रहे हो'!
मैने कर्मकांड,यज्ञ और आधुनिक जगत के नवाचार पर उनका अभिमत जानना चाहा! किंतु विशुद्धत्मा दद्दाजी ने एक वाक्य में ढेर कर दिया!
"आप लोग जो कहते हैं,वह सब ठीक है किंतु वह केवल बाह्य जगत से सरोकार रखता है,हम जो कह रहे हैं,वह आस्था और विश्वास की नीव पर आश्रित है!आप लोग पेट की भूख के लिये संघर्ष की बात करते हैं,हम साधक लोग आस्था और विश्वास के सहारे अध्यात्म मार्ग पर आत्मा की भूख शांत करते हैं,वैसे ये दोनों काम जरूरी हैं! जो आप लोग कर रहे हैं वो भी मानव सेवा ही है,भले उसपर मार्क्सवाद का ठप्पा लगा हो!"
मैं दद्दाजी के सम्मुख नतमस्तक हो गया!भले ही वे पाश्चात्य दर्शन के अध्येता नही थे,किंतु स्वामी विवेकानंद की तरह वे भी अपने सभी शिष्यों को कर्मयोग और भाईचारे के लिए ही प्रेरित करते रहते थे!उनकी व्यक्तिगत निश्छल जीवन शैली और साधना उन्हें तमाम पाखंडियों,स्वामियों, गुरूघंटालों से अलग करती थी और उन्हें सर्वप्रिय सर्वमान्य सर्वपूज्य बनाती थी!
चूंकि मैं पहले से ही सभी धर्म मजहब के ठेकेदारों और बाबाबाद,पोंगापंडितवाद का कट्टर आलोचक रहा हूँ!अत: मैं हर जगह धर्मांधता पर तर्क वितर्क के लठ्ठ लेकर टूट पड़ता था! बाबाओं,धर्मगुरूओं,मठाधीशो पर मुझे बिल्कुल आस्था नही है,किंतु दद्दाजी से मिलने के बाद,मैने माना कि धर्म अध्यात्म मार्ग पर कुछ अच्छे संत हर युग में जन्म लेते हैं!
कर्मयोगी कथावाचक पंडित देवप्रभाकर शास्त्री बाकई अजातशत्रु थे! दिवंगत पुण्यात्मा को सादर श्रद्धांजलि!

रविवार, 17 मई 2020

पुस्तकीय बनाम आभासी लेखन-रोचक गॉसिप


अपढ़ मल्लाह अपनी नाव में आक्सफोर्ड के एक प्रोफेसर,एक दार्शनिक और एक वैज्ञानिक को नदी पार करा रहा था! तीनों विद्वान आपस में बड़े ज्ञान की ऊंची ऊंची बातें कर रहे थे!उनकी बातों में मल्लाह के प्रति उपेक्षा का भाव था! उन तीनों विद्वानों ने अपढ़ मल्लाह से कुछ सामान्य ज्ञान के सवाल किये! जिनका उत्तर वह नही दे सका! वे तीनों विद्वान,नाविक की अज्ञानता पर हंसकर बोले -तुम्हारा जीवन बेकार गया!
इसी बीच मझधार में एक बड़ी सी लहर आई और नाव उलटने को हुई! मल्लाह ने उन तीनों विद्वानों से पूछा- तैरना आता है?
तीनों ने एक साथ कहा-नही! मल्लाह ने डूबती नाव से पानी में छलाँग लगाते हुए कहा कि तुम तीनों का जीवन बेकार गया!
************************************888
अबे अब्दुल! गली के नुक्कड़ पे हंगामा हो रिया है बे
अब्दुल:- क्या हुआ चच्चा,
चच्चा :- अबे , भारत अपनी कमर पे हाथ धरे चीन और नेपाल के सामने खड़ा है, चीन अपनी गर्दन पर मूव लगाते हुऐ गाली पे गाली बके जारिया है, नेपाल अपना कच्छा पकड़े फुदक रिया है, खिड़की से झाँकते पाकिस्तान को लग रिया है भारत पिटेगा, भूटान कह रिया है भारत दोनों को लठियायेगा, बंग्लादेश और लंका कंफ्यूज है अमा ये हो क्या रिया है, अमरीका अपने दुमंजिले की छत पे खड़ा रायफल की नाल सफा कर रिया, चबूतरे पे मूढा डाले बैठा रूस भी देख तो ईधर ही रिया पर अभी हुक्का पी रिया, उधर नीम के पेड़ के नीचे जापान ताईवान, हाँगकाँग, आस्ट्रेलिया, बिट्रेन सारे पड़ोसी दारू पीये तमंचे लिए खड़े हैं,
.....अबे क्या होगा तुझे क्या लग रिया है।
अब्दुल:- जो भी हो चच्चा, भैंसों की लड़ाई में घास जरूर उखड़ती है,
देख लेना बाद में पिटेगा पाकिस्तान ही।

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ENT डॉक्टर ने एक गाँव में क्लीनिक खोला।
उसी गाँव के RMP डॉक्टर अपने गाँव के मरीजों को समझा रहे थे ताकि उनका महत्व कम न हो:-
वो बोले :
“हमारे गाँव में एक नए डॉक्टर आ रहे हैं। हम तो समझदार थे जोकि 2 साल में ही पढ़ के आ गए ।
मगर ये जो नए डाक्टर आए हैं इन्हें सरकार ने 5 साल पढ़ाया। नहीं पढ़ पाए तो सरकार ने फिर 3 साल और पढ़ाया। फिर भी जब नहीं पढ़ पाए तो सरकार ने कहा "तुम खाली नाक-कान-गला तक ही पढ़ लो।"
😂😂😂
********************************************

एक बार एक दरोगा हप्पूसिंह का मुंह लगा नाई पूछ बैठा -

"हुजूर पुलिस वाले रस्सी का साँप कैसे बना देते हैं ?"

दरोगा जी बात को टाल गए।
लेकिन नाई ने जब दो-तीन
बार यही सवाल पूछा तो दरोगा जी ने मन ही मन तय किया कि इस भूतनी वाले को बताना ही पड़ेगा कि रस्सी का साँप कैसे बनाते हैं !
लेकिन प्रत्यक्ष में नाई से बोले - "अगली बार आऊंगा तब
बताऊंगा !"
इधर दरोगा जी के जाने के दो घंटे बाद ही 4 सिपाही नाई
की दुकान पर छापा मारने आ धमके - "मुखबिर से पक्की खबर मिली है, तू हथियार सप्लाई करता है। तलाशी लेनी है दूकान की !"
तलाशी शुरू हुई ...
एक सिपाही ने नजर बचाकर हड़प्पा की खुदाई से निकला जंग लगा हुआ असलहा छुपा दिया !
दूकान का सामान उलटने-पलटने के बाद एक सिपाही चिल्लाया - "ये रहा रिवाल्वर"
छापामारी अभियान की सफलता देख के नाई के होश उड़ गए - "अरे साहब मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानता ।
आपके बड़े साहब भी मुझे अच्छी तरह पहचानते हैं !"
एक सिपाही हड़काते हुए बोला - "दरोगा जी का नाम लेकर बचना चाहता है ? साले सब कुछ बता दे कि तेरे गैंग में कौन-कौन है ... तेरा सरदार कौन है ... तूने कहाँ-कहाँ हथियार सप्लाई किये ... कितनी जगह लूट-पाट की ...
तू अभी थाने चल !"
थाने में दरोगा साहेब को देखते ही नाई पैरों में गिर पड़ा - "साहब बचा लो ... मैंने कुछ नहीं किया !"
दरोगा ने नाई की तरफ देखा और फिर सिपाहियों से पूछा - "क्या हुआ ?"
सिपाही ने वही जंग लगा असलहा दरोगा के सामने पेश कर दिया - "सर जी मुखबिर से पता चला था .. इसका गैंग है और हथियार सप्लाई करता है.. इसकी दूकान से ही ये रिवाल्वर मिली है !"
दरोगा सिपाही से - "तुम जाओ मैं पूछ-ताछ करता हूँ !"
सिपाही के जाते ही दरोगा हमदर्दी से बोले - "ये क्या किया तूने ?"
नाई घिघियाया - "सरकार मुझे बचा लो ... !"
दरोगा गंभीरता से बोला - "देख ये जो सिपाही हैं न ...साले एक नंबर के कमीने हैं ...मैंने अगर तुझे छोड़ दिया तो ये साले मेरी शिकायत ऊपर अफसर से कर देंगे ...
इन कमीनो के मुंह में हड्डी डालनी ही पड़ेगी ...
मैं तुझे अपनी गारंटी पर दो घंटे का समय देता हूँ , जाकर किसी तरह बीस हजार का इंतजाम कर ..
पांच - पांच हजार चारों सिपाहियों को दे दूंगा तो साले मान जायेंगे !"
नाई रोता हुआ बोला - "हुजूर मैं गरीब आदमी बीस हजार कहाँ से लाऊंगा ?"
दरोगा डांटते हुए बोला - "तू मेरा अपना है इसलिए इतना सब कर रहा हूँ तेरी जगह कोई और होता तो तू अब तक जेल पहुँच गया होता ...जल्दी कर वरना बाद में मैं कोई मदद नहीं कर पाऊंगा !"
नाई रोता - कलपता घर गया ... अम्मा के कुछ चांदी के जेवर थे ...चौक में एक ज्वैलर्स के यहाँ सारे जेवर बेचकर किसी तरह बीस हजार लेकर थाने में पहुंचा और सहमते हुए बीस हजार रुपये दरोगा जी को थमा दिए !
दरोजा जी ने रुपयों को संभालते हुए पूछा - "कहाँ से लाया ये रुपया?"
नाई ने ज्वैलर्स के यहाँ जेवर बेचने की बात बतायी तो दरोगा जी ने सिपाही से कहा - "जीप निकाल और नाई को हथकड़ी लगा के जीप में बैठा ले .. दबिश पे चलना है !"
पुलिस की जीप चौक में उसी ज्वैलर्स के यहाँ रुकी !
दरोगा और दो सिपाही ज्वैलर्स की दूकान के अन्दर पहुंचे ...
दरोगा ने पहुँचते ही ज्वैलर्स को रुआब में ले लिया - "चोरी का माल खरीदने का धंधा कब से कर रहे हो ?"
ज्वैलर्स सिटपिटाया - "नहीं दरोगा जी आपको किसी ने गलत जानकारी दी है!"
दरोगा ने डपटते हुए कहा - "चुप ~~~ बाहर देख जीप में
हथकड़ी लगाए शातिर चोर बैठा है ... कई साल से पुलिस को इसकी तलाश थी ... इसने तेरे यहाँ जेवर बेचा है कि नहीं ? तू तो जेल जाएगा ही .. साथ ही दूकान का सारा माल भी जब्त होगा !"
ज्वैलर्स ने जैसे ही बाहर पुलिस जीप में हथकड़ी पहले नाई को देखा तो उसके होश उड़ गए,
तुरंत हाथ जोड़ लिए - "दरोगा जी जरा मेरी बात सुन लीजिये!
कोने में ले जाकर मामला एक लाख में सेटल हुआ !
दरोगा ने एक लाख की गड्डी जेब में डाली और नाई ने जो गहने बेचे थे वो हासिल किये फिर ज्वैलर्स को वार्निंग दी - "तुम शरीफ आदमी हो और तुम्हारे खिलाफ पहला मामला था इसलिए छोड़ रहा हूँ ... आगे कोई शिकायत न मिले !"
इतना कहकर दरोगा जी और सिपाही जीप पर बैठ के
रवाना हो गए !
थाने में दरोगा जी मुस्कुराते हुए पूछ रहे थे - "साले तेरे को समझ में आया रस्सी का सांप कैसे बनाते हैं !"
नाई सिर नवाते हुए बोला - "हाँ माई-बाप समझ गया !"
दरोगा हँसते हुए बोला - "भूतनी के ले संभाल अपनी अम्मा के गहने और एक हजार रुपया और जाते-जाते याद कर ले ...
हम रस्सी का सांप ही नहीं बल्कि नेवला .. अजगर ... मगरमच्छ सब बनाते हैं .. बस असामी बढ़िया होना चाहिए"।
.....ये है हमारे देश का कटु सत्य.
********





Anamika Tiwari, Narendrakumar Dixit and 63 others

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एक गरीब आदमी प्रतिदिन कागज़ में लिखता। हे..प्रभु, मुझे ₹50000/- भेज दो। औऱ गुब्बारे में लिखकर उडा देता। वो गुब्बारा, पुलिस थाने के ऊपर से गुजरता और पुलिस कर्मी उस गुब्बारे को पकड़ कर वो पर्ची पढते और उस आदमी के भोलेपन पर हंसते। एक दिन पुलिस कर्मियों ने सोचा कि क्यों ना उस गरीब आदमी की मदद की जाए और सारे पुलिस कर्मियों ने मिलकर ₹ 25000/- जमा किये तथा उस व्यक्ति को, उसके घर जाकर दे आये ।
दूसरे दिन, पुलिस कर्मियों ने जब गुब्बारा रोक कर पर्ची पढ़ी तो होश उड़ गए उसमें लिखा था...!
प्रभु.. आपके द्वारा भेजे गए पैसे तो मिल गए। लेकिन आपको पुलिस वालो के हाथ नहीं भेजने चाहिए थे। साले ₹25000/- खा गए। *🤑🤑🤑
"काजल की कोठरी में कैसो ही सयानों जाये, एक रेखा काजल की लाग है पै लाग है
**********************************************************बुन्देलखण्डी में कहावत है "बैठा बानियां क्या करे,इधर का बांट उधर करे " मतलब किसी व्यापारी की दुकान पर बेचने का माल ही न हो या कोई ग्राहक ही न आये तब वह तराजु के बांट इधर से उधर करने लगता है!ठीक इसी तरह जब भारत के 56 इंच सीने वाले शासक-अपने देश के युवा वेरोजगारों को नौकरी नही दे सके,गरीबों,बुजूर्गों को सस्ता सुलभ इलाज नही दे सके, किसानों का दर्द नही समझ सके,विदेश से कालाधन नही ला सके,मेंहगाई नही रोक सके, डॉलर के सापेक्ष रुपये की कीमत नहीं बढ़ा सके, डीजल पेट्रोल, खाद,बीज, बिजली की मंहगाई नही रोक सके!

वे आतंकवाद और भ्रष्टाचार नही रोक सके! चींन और पाकिस्तान जैसे पडोसियों से देश की सीमाओं की रक्षा नहीं कर सके!कोरोना महामारी से मरने वालों को नही बचा सके!
सरकारी स्कूलों और अस्पतालों का उद्धार नही कर सके!

मोदी सरकार सिर्फ दो मोर्चों पर सफल रही है! एक अंबानी अडानी और गुजराती सेठों को खरबपति बनाने और उनसे पार्टी को प्राप्त धन से कांग्रेस के विधायक खरीदकर अपनी हारी हुई पार्टी की सरकारें बनाने में सफल रही है!

दूसरे-पड़ोसी देशों पर कूटनीतिक बढ़त हासिल करने में बिफल और संबंध ख़राब करने में सफल रही है! वे अपने ही देश के लोकतांत्रिक विपक्ष को खत्म करने में सफल होते जा रहे हैं!

आम जनता और बिखरे विपक्ष ने इस संदर्भ में अभी तक कोई कारगर कदम नही उठाया है!इसलिये देशके बुद्धिजीवियों और असली शुभचिंतकों को जागरुक रहकर जनता का मार्गदर्शन करना चाहिए! चुनौती गंभीर !

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एक गधा पेड़ से बंधा था।शैतान आया और उसे खोल गया।
गधा मस्त होकर खेतों की ओर भाग निकला और खड़ी फसल को खराब करने लगा।
किसान की पत्नी ने यह देखा तो गुस्से में गधे को मार डाला।
गधे की लाश देखकर मालिक को बहुत गुस्सा आया और उसने किसान की पत्नी को गोली मार दी।
किसान पत्नी की मौत से इतना गुस्से में आ गया कि उसने गधे के मालिक को गोली मार दी।
गधे के मालिक की पत्नी ने जब पति की मौत की खबर सुनी तो गुस्से में बेटों को किसान का घर जलाने का आदेश दिया।
बेटे शाम में गए और मां का आदेश खुशी-खुशी पूरी कर आए। उन्होंने मान लिया कि किसान भी घर के साथ जल गया होगा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किसान वापस आया और उसने गधे के मालिक की पत्नी और बेटों, तीनों की हत्या कर दी।
इसके बाद उसे पछतावा हुआ और उसने शैतान से पूछा कि यह सब नहीं होना चाहिए था। ऐसा क्यों हुआ?
शैतान ने कहा, 'मैंने कुछ नहीं किया। मैंने सिर्फ गधा खोला लेकिन तुम सबने रिऐक्ट किया, ओवर रिऐक्ट किया और अपने अंदर के शैतान को बाहर आने दिया। इसलिए अगली बार किसी का जवाब देने, प्रतिक्रिया देने, किसी से बदला लेने से पहले एक लम्हे के लिए रुकना और सोचना जरूर।'
ध्यान रखें। कई बार शैतान हमारे बीच सिर्फ गधा छोड़ता है और बाकी विनाश हम खुद कर देते हैं !!
और हाँ,आपको ये भी समझना है कि गधा कौन हैं ?

***************************************लघुकथा*
"बेटा रमेश !कहीं जा रहे हो क्या?"
" हां बोलिए! कोई काम था ?"
"मेरा चश्मा टूट गया है! बनवा देते! एक डंडी अगर बदल जाए तो ठीक है ,नहीं तो पूरा फ्रेम लेना पड़ेगा !"
"देखता हूं !डंडी ही बदल जाएगी मेरी पहचान की दूकान पर तो पांच दस में काम हो जाएगा ।फ्रेम तो दो तीन सौ का आएगा।" बेटे ने अर्थशास्त्र को प्रयोग में लाते हुए कहा।
"मुझे समझ नहीं आता कि तुम अपने बेटे के लिए शौकिया गॉगल खरीदने पर छह सौ खर्च कर सकते हो और मेरे चश्मे के फ्रेम की जगह डंडी से अगर चल जाए तो ,,,उस बारे में सोच रहे हो। ये क्या है?"
" ऐसा ही है पापा जी !हर आदमी, उधार चुकाने से ज्यादा ,नए प्रोजेक्ट में पूंजी लगाना पसंद करता है ! शायद संबंधों में भी ऐसा ही हो गया है ।"

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अभी तक जितना अध्ययन मैने किया है, तदनुसार वेद,उपनिषद,गीता,रामायण और महाभारत में तो 'हिंदू'शब्द नही है!बहुत संभव है कि भारतीय उप महाद्वीप के आर्य, अनार्य,द्रविड शैव,वैष्णव शाक्त, गाणपत्य, जैन और बौद्ध मतों के साझे निष्कर्ष को 'सनातन धर्म' कहा गया है! और विदेशी हमलावरों ने ही इस उपमहाद्वीप के जन्मना निवासियों को हिंदू कहा होगा!
जहां तक धर्म के रूप में 'हिंदू' शब्द की उत्पत्ति का सवाल है,भारतमें इस्लामके आगमन पर 'सिंधु'शब्द के फारसी उच्चारण से यह उत्पन्न हुआ है। यह सब जानते हुये भी 'संघ परिवार' हिंदूधर्म और हिंदुत्व के नाम पर सत्ता की राजनीति कर रहा है !

कुछ प्रगतिशील लोग भी जाने अनजाने धरमांधता पर चोट करने के बजाय हिंदू धर्म को निशाना बनाते रहते हैं और पत्थरबाज अापराधिक मानसिक के अल्पसंख्यक वर्ग की इकतरफा तरफदारी करते रहते हैं! इससे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हिंदू कट्टरवाद का खाद पानी मिलता रहता है ! और उसकी आनुषंगिक राजनैतिक पार्टी भाजपा की खेती भी भरपल्ले से चल रही है!जिससे पूंजीपतियों की पौ बारह है और देश का सीमांत किसान और असंगठित मजदूर हासिये पर है!

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जैसे ही विक्रम ने वैताल को कांधे पर जबरन लादा,वैताल फिर बोला-हे विक्रम सुन!एक समय की बात है किसी गांवमें एक खुशहाल किसान परिवार रहता था! उस किसान की अर्धशिक्षित लड़की किसी अन्य समाज के लड़के के साथ भाग कर आर्य समाज मंदिर में शादी कर लेती है!समाज के ताने सुन सुनकर लड़की का बाप सदमें में होता है,माँ अन्न जल त्यागकर खुद की और भगेली लड़की की मौत की कामना करती है!समाज के तानों से आहत भगेली लड़की की मां लड़की की मौत याने 'ऑनर किलिंग' का संकल्प लेती है!माँ के परोक्ष आदेश पर उसका एकमात्र नाबालिग और कर्मठ बेटा,अपनी बहिन को खोजकर गोली मार देता है!
हे विक्रम,बता! उस लड़की की हत्या के लिये कौन कसूरवार है? मृत लड़की का लाड़ला दुलारा छोटा भाई,आदेश देने वाली माँ,ताने सुनाने वाला समाज या जाति वर्ण आधारित रूढ़ीवादी समाज व्यवस्था!
यदि तूने ने सही जबाब नही दिया तो तेरे सिर के 100 टुकड़े हो जायेंगे ..क्या विक्रम जबाब देगा? और जबाब देगा तो उसका सही जबाब क्या होगा?

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गधा पेड़ से बंधा था।
शैतान आया और उसे खोल गया।
गधा मस्त होकर खेतों की ओर भाग निकला और खड़ी फसल को खराब करने लगा।
किसान की पत्नी ने यह देखा तो गुस्से में गधे को मार डाला।
गधे की लाश देखकर मालिक को बहुत गुस्सा आया और उसने किसान की पत्नी को गोली मार दी।
किसान पत्नी की मौत से इतना गुस्से में आ गया कि उसने गधे के मालिक को गोली मार दी।
गधे के मालिक की पत्नी ने जब पति की मौत की खबर सुनी तो गुस्से में बेटों को किसान का घर जलाने का आदेश दिया।
बेटे शाम में गए और मां का आदेश खुशी-खुशी पूरी कर आए। उन्होंने मान लिया कि किसान भी घर के साथ जल गया होगा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। किसान वापस आया और उसने गधे के मालिक की पत्नी और बेटों, तीनों की हत्या कर दी।
इसके बाद उसे पछतावा हुआ और उसने शैतान से पूछा कि यह सब नहीं होना चाहिए था। ऐसा क्यों हुआ?
शैतान ने कहा, 'मैंने कुछ नहीं किया। मैंने सिर्फ गधा खोला लेकिन तुम सबने रिऐक्ट किया, ओवर रिऐक्ट किया और अपने अंदर के शैतान को बाहर आने दिया। इसलिए अगली बार किसी का जवाब देने, प्रतिक्रिया देने, किसी से बदला लेने से पहले एक लम्हे के लिए रुकना और सोचना जरूर।'
ध्यान रखें। कई बार शैतान हमारे बीच सिर्फ गधा छोड़ता है और बाकी विनाश हम खुद कर देते हैं !!
ओर हां आपको ये भी समझना है कि गधा कौन हैं?
हर रोज टीवी चैनल गधे छोड़ जाते हैं ओर हम लड़ते रहते हैं।
मिल जुल कर मुस्कुरा कर खुशी से रहिये
याद रखे
तोड़ना आसान है जुड़े रहने बहुत मुश्किल हैं,
लड़ाना आसान है मिलाना बहुत मुश्किल हैं..

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जब तक स्मार्ट फोन नही आया तब तक मुझे लिखने का बड़ा शौक था! किंतु 10-12 साल पहले,जबसे मुझे लेपटॉप मिला और ब्लॉग लिखने का शौक चर्राया,तबसे मैने कोई कविता संग्रह,निबंध संग्रह प्रकाशित नही कराया!
मेरा अनुभव रहा है कि पुस्तकीय लेखन के बजाय आभासी लेखन अथवा ऑन लाइन लेखन ज्यादा लोकप्रिय,सामयिक,प्नमाणिक और कारगर सिद्ध हुआ है! जिन्हें पढ़ने में रुचि है,वे बैस्ट सैलर अथवा विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकें ही पसंद करते हैं! वे ऑन लाइन भी रहते हैं! किंतु जिन्हें पढ़ने की आदत नही है वे जब गीता पुराण और बाइबिल ही नहीं पढ़ते! तो किसी का प्रगतिशील साहित्य क्या खाक पढ़ेंगे?और जिनकी साहित्य, संगीत कला में दिलचस्पी नही होती,उन्हें आचार्य चाणक्य ने बिना पूछ का पशु कहा है!
स्मार्ट फोन या लेपटॉप के आगमन से हर चीज अलादीन के चिराग की तरह हर वक्त,हर जगह मौजूद है! इसलिए अब पुस्तक छपवाना या तो राजे रजवाड़ों जैसा ओल्ड फैशन रह गया है या धर्म अध्यात्म और साइंस की जरूरी पुस्तकों और पुरातन सांस्कृतिक साहित्यिक धरोहर को सुरक्षित रखने तक सीमित होता जा रहा है!
अब पुस्तकें लिखना उन्हें प्रकाशित कराना टेड़ी खीर हो चला है, इसलिये ब्लॉग लिखना सोशल मीडिया और यूट्यूब आदि पर ऑन लाइन रहना ज्यादा मुफीद है! वैसे भी गुरू गूगल ने संसार के किताबी पंडितों का काम हल्का कर दिया है!


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 शादी की 25वीं सालगिरह पर पत्नी पुलकित होकर बोली:
"सुनो जी ! आप बिलकुल भी नहीं बदले। वैसे के वैसे ही भोले-भाले, वैसे ही शांत, एकदम पहले जैसे ही हैं।"
पति ठहरा मेरे जैसा हिंदी भाषी सरकारी स्कूल का अनुशासित पढ़ा-लिखा- अत: भावुक होकर बोला:-
"जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।"
पत्नी थी English Medium Convent educated,सो वह तारीफ समझी और
खुश होकर चाय पकौडे़ बनाने चौके में चली गयी!
भाषायी अनेकता में ही एकता का आनंद है!

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सूडान में एक बच्ची निर्जन स्थान में मरणासन्न स्थिति में थी,जिसे एक गिद्ध निरंतर टकटकी लगाये पास ही बैठा देख रहा था। इस दृश्य की तस्वीर एक ख्यात फोटोग्राफर द्वारा ली गयी थी,जिसे वर्ष 1993 में न्यूयार्क टाइम्स में छापा गया था!
इस फोटो पर फोटोग्राफर को पुलित्जर अवार्ड मिला था! चार माह बाद उस फोटोग्राफर के पास एक फोन आया,जिसने फोटोग्राफर से पूछा कि उस लड़की का बाद में क्या हुआ?
फोटोग्राफर ने कहा मुझे नहीं मालूम! मैं तो फोटो लेकर वापिस आ गया था!
"फोन करने वाले ने कहा कि इसका मतलब है उस समय वहां एक नहीं दो गिद्ध थे ।"
फोटोग्राफर पानीदार था,आहत होकर आत्महत्या कर ली!क्योंकि फोटोग्राफर समझ गया था कि उसका पहला कर्तव्य यह था कि वह उस लड़की को बचाता,उसकी सहायता करता,किंतु वह विफल रहा! उस लड़की के कष्ट का चित्रण कर वह इनाम पा गया,जबकि वह लड़की की मौत का केवल दर्शक बना रहा!
कोरोना संकट जनित लॉकडाऊन में मजदूरों के पलायन में भी यही हो रहा है,टीवी चैनल वाले वीडियो बना रहे हैं,सभी राजनीतिक दल सरकार की आलोचना कर रहे हैं!बाकी आम जन भी अपनी-अपनी ढपली अपनी अपनी बीन बजा रहे हैं!किंतु मजदूरों की सहायता करने वाले बहुत कम हैं!हमारे यहाँ तो इतनी संवेदनशीलता भी नहीं कि कम से जले पर नमक तो न छिड़कें!अपना दायित्व या जिम्मेदारी स्वीकार करने का माद्दा बहुत कम लोगों में ही मिलता है!

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डॉक्टर :- क्या तकलीफ है आपको ??.
रमेश :- डॉक्टर साहब,
रोज रात को सोते हुए
मुझे यह डर लगता है
कि मेरे पलंग के नीचे कोई
छुपा हुआ है.....
इस वजह से मुझे नींद नहीं
आती है।
डॉक्टर :- इसके लिए
आपको 6 महीने तक
लगातार,
हर हफ्ते आना पड़ेगा ।
रमेश :- आपकी एक बार की कितनी फीस होगी डॉक्टर साहब ??
डॉक्टर :- तीन हजार.
6 महीने बाद रास्ते में डॉक्टर को
रमेश दिखता है...
डॉक्टर :- क्या हुआ रमेश,
तुम तो वापस इलाज के लिए आए ही नहीं ?
रमेश :- डाक्टर साहब,
मेरे एक मित्र ने मेरा इलाज कर दिया और
मेरे लाखों रुपए
बच गये..
डॉक्टर :- क्या बात है,
ऐसा आपके दोस्त ने
क्या इलाज किया...
रमेश :- कुछ नहीं,
उसने कहा कि...
*पलंग बेच दे और गद्दा जमीन पर बिछा कर सोया कर...!!*
*Morel of story is*.
डॉक्टर के पास जाने के पहले, अपने मित्रों से चर्चा कर लिया करें,,
कारण ...??
*जहां मित्र होते हैं, वहां आपको कुछ ना कुछ रास्ता जरूर मिलता है ।*
हमेशा मित्रों को सम्मान दें।

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कोरोना संकटकाल में दुनिया भर के सभी धर्मगुरूओं ने सकारात्मक सोच रखने,घर में रुकने,निराश न होने जैसी-अच्छी बातें कहीं! लेकिन किसी ने यह नही बताया कि जिसका काम छिन गया हो,जिसके घर ही न हो और जो 'इधर जाओ कुआँ,उधर जाओ खाई' के बीच कहीं संकटग्रस्त हो वह इन तमाम उपदेशों और शिक्षाओं का पालन कैसे करे?
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जिसदिन मल्लापुरम में एक हथिनी तड़प तड़प कर मर रही थी,उसी दिन हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में एक पड़ोसी ने दूसरे से बदला लेने के लिये उसकी 'गौ माता' को बिस्फोटक खिलाकर मार डाला!

हत्यारे 'नंदलाल' ने गाय के मालिक गुरदयाल से बदला लेने के लिये उसकी गाय के चारे में बिस्फोटक खिलाकर मार डाला! चूंकि हिमाचल प्रदेश में भाजपा शासन है, अत: गाय की हत्या 'वेदिकी हिंसा,हिंसा न भवति'!
चूंकि केरल में एक सफलतम गैर भाजपाई याने वामपंथी सरकार है और बाईचांस राहुल गांधी केरल से सांसद हैं, अतएव कई मूर्खों ने हथिनी की हत्या पर घनघोर विधवा विलाप किया!
किंतु वे गौ माता की हत्या पर मौन हैं!
मैं इसे कमीनापन, लुच्चापन और महा हरामीपन मानता हूँ!