पत्थरों को काटकर अपने हाथों से सिरजे,
सम्राटों के आदेश पर मंदिर-मस्जिद-गिरजे।।
चीर डाला धरती को बनाई पनामा स्वेज नहरें,
चीर डाल हमनेे पर्वतों महासागरों की लहरें।
अजंता,कोणार्क, देवगिरि,मदुराई,खजुराहो,
एलोरा,आबू, देवगढ़ तंजाबूर कामाख्या हो।।
चीख-चीखकर बोल रही हैं पाषाण प्रतिमाऐं,
हमारे श्रम साध्य कला धैर्य पुरुषार्थ की सीमाऐं।
हमारे लहू की कीमत कभी चुका सका न कोई,
किन्तु इतिहास के पन्नों में मेरा नाम नहीं कोई।।
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