गुरुवार, 26 अक्तूबर 2017

बहिन जी की धर्म परिवर्तन की धमकी के निहितार्थ !

बहिन मायावती जी जबसे चुनावों में बुरी तरह हारी हैं तबसे न केवल वे ,न केवल उनकी पार्टी वसपा, अपितु मनुवाद ,ब्राह्मणवाद के उनके जुमले और तिलक तराजू ,तलवार वाले उनके घिसे पिटे नारे भी नीरस हो चले हैं। कुल मिलाकर इन दिनों उनकी पार्टी का अश्व राजनीतिक के बियाबान में भटक रहा है। वे अभी मानसिक रूप से बिलकुल खाली हैं।उनमें इतना भी साहस नहीं बचा कि मजूरों,किसानों की राष्ट्रव्यापी उद्घोष से अपनी संगति बिठा सकें। श्री शरद यादव ,देवेंद्र यादव और वामपंथी जनवादी कतारों के एकता अभियान उर्फ़ 'सांझी विरासत' का हिस्सा बन सकें ! वे केवल गाहे बगाहे एक जुमला उछाल देतीं हैं 'भाजपा सुधर जाए वरना मैं बौद्ध हो जाऊँगी !'
बहिन जी की इस धमकी के निहतार्थ क्या हैं ?क्या उन्होंने माल लिया कि एकमात्र भाजपा और संघ परिवार ही सारे हिंन्दू समाज की ठेकेदार है ? क्या वे मानती हैं कि भाजपा या संघ परिवार को हिन्दू धर्म की बाकई कोई फ़िक्र है ? और भाजपा के सुधर जाने से बहिनजी का क्या अभिप्राय है ? क्या गंगा में डुबकी लगा लेने से गधा घोडा हो सकता है ?क्या पीपल पर हग देने से कौआ हंस हो जाता है ? यदि नहीं तो बहिन जी ने कैसे मान लिया कि उनकी धमकी से भाजपा और संघ परिवार फासीवाद छोड़कर,धर्मोन्माद छोड़कर ,शांति की राह चल देंगे ?
वैसे भी मायावती की धमकी के निहतार्थ  कुछ इस तरह हैं कि जैसे कोई अपने शत्रु से युद्ध भूमि में कहे कि 'मुझ पर हथियार चलाना रोको वरना मैं घर जाकर पॉवभर रबड़ी खा लूँगी !'
क्या बहिन जी के बौद्ध धर्म अपनाने से भाजपा को कोई खतरा है ? क्या बहिन जी के बौद्ध हो जाने से हिन्दू समाज को या धर्म मजह्ब की राजनीति करने वालों को कोई खतरा है ? यदि नहीं तो फिर बहिन जी की धमकी के मायने क्या ?बौद्ध हो जाना न तो कोई निंदनीय कार्य है और न ही बौद्ध होना इतना आसान है !बौद्ध  होना याने बुद्ध की शरण में जाना ! 'बुद्धं शरणम गच्छामि '!अर्थात संसार के मायामोह से मुक्त होकर ,राजनीति से मुक्त होकर शुध्द प्रेमानंद परम कारुणिक महात्मा बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग पर चल देना ! क्या बहिन जी बौद्ध भिक्षुणी बनने को तैयार हैं ? यदि हाँ तो वे जगत पूज्य हो सकती हैं ,किन्तु यदि वे केवल कुछ दलितों के साथ धर्म परिवर्तन का नाटक कर अपनी मरणासन्न राजनीती को पुनर्जीवित करना चाहती हैं तो यह महात्मा बुद्ध का और बाबा साहिब अम्बेडकर का अपमान है ! मायावती  को यदि बुद्ध और अम्बेडकर में जरा भी श्रद्धा है तो संसार से विरक्त होकर ,राजनीति को लात मारकर धम्म पद पर प्रतिष्ठित होकर दिखाएं !  बहिन जी की धर्म परिवर्तन की धमकी के निहितार्थ शुध्द सात्विक नहीं हैं !

शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

सरसों के फूल सजी धरा बनी दुलहन ,

अलसी के फूल करें अगहन से बात है ।

उड़ि उड़ि झुण्ड गगन पखेरूवा अनगिन ,

मानस के हंसों की गति दिन रात है।।

बाजरा -ज्वार की गबोट खिली हरी भरी ,

रबी की फसल भी उगत चली आत है।

कहीं पै सिचाई होवै कहीं पै निराई होवै ,

साँझ ढले कहीं पै धौरी गैया रंभात है।।

  1. यद्द्पि साहित्यिक विरादरी पूरी की पूरी विप्लवी या शहीद भगतसिंह और कार्ल मार्क्स जैसी सोच वाली नहीं है! हर जनवादी कवि लेखक साहित्यकार, माओ -लेनिन के उसूलों वाला ही हो यह भी जरूरी नहीं है। इस दौर में जो गौतम बुद्ध, बाबा सा. अमबेडकर और कार्ल मार्क्स की जुडवा वैचारिक छाँव में सृजन शील है वही असल वामपंथी साहित्यकार है! वेशक विशुधद जातीय विमर्श वादी हैं ,कुछ पूँजीवाद के आलोचक हैं ,कुछ केवल स्त्री विमर्शवादी हैं। बचे खुचे बाकी सब पूरे सौ फीसदी दक्षिणपंथी प्रतिक्रयावादी हैं...। यदि दस- बीस फीसदी साहित्यकार अपनी सही भूमिका अदा कर रहे हैं ,जो कि उनका सहज सैद्धांतिक स्वभाव और दायित्व भी है तो उन्हें गौरी लंकेश, कलिबुरगी, पानसरे या दाभोलकर की तरह नेस्तनाबूद किया जाना, केवल प्रतिक्रियावादी हिंसा नहीं है !बल्कि यह वर्ग युद्ध में शहादत भी है! वैसे भी हर मुश्किल दौर में जो कुछ बलिदान करने की क्षमता रखते हैं , हीरो भी वही हुआ करते हैं। इस विषम दौर में भारत के असली हीरो वही हैं जो सत्ता को आइना दिखा रहे हैं।और बलिदान दे रहे हैं!