सोमवार, 27 नवंबर 2017

मज़हबी  अंधश्रद्धा अथवा धार्मिक आस्था मूल रूप से एक अवधारणा ही है। आपके लिए कोई धर्म या मजहब इसलिए दुनिया में सबसे अच्छा है,क्योंकि आप उस धर्म /मजहब के मानने वाले कुटुंब /खानदान में पैदा हुए हैं ! इसी तरह देशभक्ति भी मूलरूप से एक अवधारणा ही है कि आपको कोई देश इसलिए दुनिया में सबसे अच्छा लगता है क्योंकि आप उस देश में पैदा हुए हैं !इसके बरक्स मार्क्सवादी दर्शन और प्राचीन भारत का 'वसुधैव कुटुंबकम' का सिद्धांत उच्चतर अंतर्राष्टीयतावाद की पैरवी करते हैं !
                           एक खाते पीते सम्पन्न राष्ट्रवादी और बुर्जुवा व्यक्ति का यह कहना उचित है कि ,"चूँकि मैं भारतीय हूँ इसलिए भारत मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ है और यदि मैं यदि चीन ,पाकिस्तान या कहीं किसी अन्य देश में जन्मता तो वह राष्ट्र मेरे लिए श्रेष्ठ होता''! इसी तरह कोई भी सनातनी हिन्दू,बौद्ध,जैन,ब्राह्मण,ठाकुर,बनिया या कोई भी जाति, गोत्र ,खाप का व्यक्ति यह कह सकता है कि 'मैं अमुक कुल में जन्म हूँ इसलिए वह धर्म और जाति मुझे गर्व करने का आधार प्रदान करते हैं।'इसी तरह मुस्लिम, सिख, ईसाई,यहूदी और पारसी इत्यादि भी इस धर्म जाति गोत्र की मानसिक संकीर्णता के मारे हैं ! इस मानवकृत व्याधि याने अंध-धार्मिकता और अंध -राष्ट्रवाद से सिर्फ सच्चे योगी अथवा सच्चे कम्युनिस्ट ही मुक्त हुआ करते हैं। खेद की बात है कि समकालीन दौर में वर्तमान नकली योगी जहाँ धर्मान्धता और साम्प्रदायिकता में आकंठ डूबे हैं ,वहीं चीनी कम्युनिस्ट नेता अंतर्राष्टीयतावाद  को लतियाकर साम्राज्य्वाद और नस्लवाद को तरजीह दे रहे हैं ! 

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

  1. बुरा बक्त किसी को बतलाकर नहीं आता।
  2. किया गया कुछ भी अपना बेकार नहीं जाता।।
  3. दूध के फट जाने पर दुखी होते हैं कुछ नादान,
  4. शायद  बापरों को रसगुल्ला बनाना नहीं आता।
  5. खुदा क्यों देता रहता खुदाई उनको इतनी सारी ,
  6. जिनको अपने सिवा कुछ और नजर नहीं आता।
  7. माना कि अभी बहारों का असर है फिजाओं में,
  8. फिर भी उन्हें गुलों से यारी निभाना नहीं आता।
  9. वेशक किसी से कोई गिला शिकवा न हो बंधूवर,
  10. लेकिन रूठों को मनाना तुम्हें बिल्कुल नहीं आता ।।
  11. खुदा की रहमत से बुलंदियों पर मुकाम है तुम्हारा ,
  12. लेकिन धरती पर पाँव ज़माना तुम्हें नहीं आता।
  13. क्या खाक करोगे उत्थान सृजन विकास मान्यवर,
  14. तुम्हें तो खेतों की सोंधी सुगंध में मजा नहीं आता।

  15. श्रीराम तिवारी