गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

इंदिरा मुजीब जिंदाबाद...

 16 दिसंबर 1971 का दिन भारतीय इतिहास के गौरव का स्वर्णिम दिवस था ! वह सिर्फ दो देशोंकी जंग का ही नहीं,बल्कि दुनिया में भारतीय सेनाओं के शौर्य का जीता जागता प्रमाण था!

उस दिन मैं अपने एक मित्र के साथ सागर यूनिवर्सिटी के विशाल *जवाहर लाल नेहरु पुस्तकालय* में पुस्तकों का आदान प्रदान कर रहा था, तभी कानों में जोरदार आबाज सुनाई दी! कुछ अटपटे नारे सुनाई दिये! हम लोग यूनिवर्सिटी कैम्पस में स्थित *वाराह अवतार* प्रतिमा के पास पहुंचे! वहां हमने पहली बार एक विचित्र दृश्य देखा!
लगभग एक हजार सांवले सलौने सफेद लुंगीधारी छात्र तमिल, मलयालम और अन्य दक्षिण भारतीय भाषाओं में नारे लगा रहे थे!
मुझे दो आश्चर्य हुए! एक तो यह कि सागर के स्थानीय और उत्तर भारत के छात्र उस जुलूस में शामिल नही थे! दूसरा आश्चर्य यह कि उस जुलूस में दक्षिण भारतीय लुंगीधारी प्रोफेसर और सफेद साड़़ी पहिने मद्रासी छात्राएं भी बढ़चढकर नारेबाजी कर रहीं थीं!
हम सभी स्थानीय, हिंदीभाषी और उत्तर भारतीय छात्र सड़क किनारे केवल मूक दर्शक बने इस पैदल अनुशासित जुलूस को आश्चर्यचकित होकर देख रहे थे! शोरगुल सुनकर हमारे तत्कालीन वाइस चांसलर डॉ. डब्ल्यू डी वैस्ट भी अपने चैम्बर से बाहर निकल कर चुपचाप इस अदभुत जुलूसको निहारने लगे!
उन लकदक सफेद लुंगी और सफेद शर्ट धारी श्यामवर्ण छात्रों के जोशीले नारों में न जाने क्या जादू था,"कि वहां उपस्थित दर्शक समुदाय भी हाथ उठाकर, मुक्का तानकर नारेबाजी का अनुसरण करने लगे! मैं उन नारों को चूंकि समझ नही पा रहा था, अत: काव्यात्मक स्वभाव वश मैने भी उनकी नकल की!
तमिल मलयालम के नारों को नही समझ सकने के कारण में तुक भुड़ाकर चिल्ला रहा था -
इंदिरा मुजीब जिंदाबाद....
याह्या निक्सन मुर्दाबाद!...
भारत सोवियत मैत्री जिंदाबाद....
साऊथ वालों के नारे कुछ इस तरह के थे,...
इल्ले इल्ले पुल्याणे... इंदरिअम्मा कल्लयाणे
इंदिरा मुजीब लांग लिव... याह्या निक्सन डाऊन डाऊन... बगैरह बगैरह...
साऊथ इंडियन छात्र जो नारे लगा रहे थे, उसके चार शब्द हम सभी हिंदी भाषा भाषियों को भी समझ आ रहे थे!वे दो शब्द थे *इंदिरा मुजीब*! याह्या निक्सन!
उस दिन से पहले भारत पाकिस्तान के बीच चल रही जंग की मुझे बहुत कम मालूमात थी! बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) से पलायन करके भारत आनेवाली भारी भीड़ कलकत्ता में भूख प्यास गरीबी महामारी से जूझ रही थी! बांग्ला शरणार्थी भीड़ भारत के पश्चिमी बंगाल में घुस आई थी!बांग्ला मुक्तिवाहिनी के क्रांतिकारी भी भारत में अंडरग्राउंड थे!
उधर पाकिस्तान को अमेरिका से मुफ्त हथियार और रसद मिल रही थी! सारा इस्लामिक वर्ल्ड पाकिस्तान के साथ था! भारत के अंदर भी बहुत सारे दक्षिणपंथी राजनैतिक दल और पूर्व राजा महाराजा भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के खिलाफ थे! क्योंकि इंदिराजी ने इन अय्यास जमीदारों, राजे रजवाड़ों की मुफितखोरी बंद कर दी थी!
इंदिराजी ने तत्कालीन कम्युनिस्ट *सोवियत संघ* से मैत्री संधि की! जब भारत की सेना ने पाकिस्तान रूपी सांड की पूछ ऐंठी,तो वह घबराकर शांति शांति की दुहाई देने लगा! दोनों मोर्चों पर हार रही पाकिस्तानी फौज के 93 हजार फौजियों ने भारतीय जनरलों के समक्ष हथियार डाल दिये!
पाकिस्तानी फौजी जनरल ए ए नियाजी ने भारतीय जनरलों के समक्ष हथियार डाल दिये! इसके तुरंत बाद शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में बाँग्ला मुक्तिवाहिनी ने बांग्लादेश के नव निर्माण की घोषणा कर दी! सर्वप्रथम भारत ने बांग्लादेश को मान्यता दी! और
1971 में आज ही के दिन स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेई जी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा का अवतार कहा था!
इसी दिन इस महाविजय के उल्लास में डॉ सर हरिसिंह गौर सागर विश्वविद्यालय के मुख्य मार्ग पर नारे लग रहे थे!उनको सुनने समझने में मुझे कठिनाई हो रही थी! तमिल तेलुगु कन्नड़ मलयालम में लग रहे नारों में मुझे जो चार शब्द समझ आ रहे थे- वे थे:-
इंदिरा मुजीब और याह्या किसिंगर....
मैने तत्काल दक्षिण भारतीय छात्रों के नारों का समर्थन करते हुए कुछ ऊटपटांग नारे बनाये ! और उनके साथ जुलुसमें चल दिया! उस दक्षिण भारतीय छात्र दल में माबदौलत ही इकलौते *सागरी*थे!यद्यपि साऊथ के छात्रों और मेरे नारे ध्वन्यात्मकता में एक से थे ! किंतु किसी के पल्ले नही पड़ रहे थे!
जुलूस के अंत में समापन समारोह हुआ! इसमें 90 % साऊथ की भाषाओं में भाषण हुए,9% अंग्रेजी में और 1% हिंदी में भाषण हुए! और अंत में 1% हिंदी का भाषण मेरा था! जो मेरे अलावा किसी की समझ मेंं नही आ रहा था! किंतु मेरे भाषण समाप्ति पर खूब तालियाँ बजीं ! इसके साथ ही में एक छात्र नेता मान लिया गया! जिसका फायदा यह हुआ कि रंगदारी चलने लगी, राजनीति के नये नये अनुभव होने लगे! साथ ही नयी नयी विचारधाराओं को पढ़ने सुनने समझने और राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों से रूबरु होने का अवसर मिलता गया! वरना फिजिक्स कैमिस्ट्री और मैथ्स के नीरस अध्यन से तो मेर व्यक्तित्व एकांगी ही रह जाता!
भारत विजय की 50 वीं वर्षगांठ पर मैं भारत के उन शहीदों को प्रणाम करता हूँ जिन्होंने अपने प्राण देकर भारत का और हम सभी भारतीयों का मान बढ़ाया ! मैं श्रीमती इंदिरा गांधी,जनरल मानेक शा और तत्कालीन कांग्रेस सरकार का आभार व्यक्त करता हूँ कि निर्धन भारत का मान बढ़ाया!
मैं तत्कालीन सोवियत संघ और सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के कामरेडों का आभारी हूँ, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में 15 दिन के अंदर भारत के पक्ष में और अमेरिका -पाकिस्तान की जोड़ी के खिलाफ तीन बार वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया! भारत सोवियत संघ मैत्री अमर रहे ! १६ दिसम्बर भारतीय गौरव दिवस हमेशा याद रखो !

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