मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

संतन्ह कहूं का सीकरी सों काम ?

 संत के वेश में एक तथाकथित राजनैतिक कपट मुनि पहले हरिद्वार में संत समागम मंच पर जहर उगलने पहुंचा और उसके बाद रायपुर (छ. ग.) में नफरत का जहर उगलने जा पहुंचा ! इन दोनों मंचों का विशेष फर्क यह रहा कि हरिद्वार की घटना पर केवल हो हल्ला मचाया गया! जबकि (छ. ग.) रायपुर के मंच से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तत्काल विरोध जताया और नफरत फैलाने वाले उस नकली संत पर और उसे आमंत्रित करने वाले आयोजकों पर सख्त कार्रवाई का ऐलान किया है!

यह सर्वविदित है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीशगढ में न केवल विकास पर ध्यान दिया है, बल्कि *राम वन गमन पथ*निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है! श्री भूपेश बघेल ने इसके अलावा आदिवासियों के कुछ अन्य ऐंसे काम पूरे किये हैं,जिसके लिये पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमनसिंह और BJP ने अतीत में घोषणाएं कीं थीं! इनमें सनातन धर्मसंबंधी घोषणाएं भी थीं!
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार की लोकप्रियता से घबराकर और कुछ राज्यों में होने जा रहे चुनावों में संभावित हार के डर से भाजपाई नेताओं ने उग्र हिंदुवादी तत्वों को नकली संत का बाना पहनाकर जगह जगह पेश करने की योजना पर अमल करना शुरु कर दिया है!
इसी कड़ी में ये हरिद्वार और रायपुर की घटनाएं हुईं हैं! चूंकि कांग्रेस ने भी भाजपा की तरह फासीवादी कट्टरवादी हिंदुत्व न सही,किंतु स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी वाली नरम हिंदुवादी लाइन को अवश्य पकड़ लिया है! इसलिए अब भाजपाई नेता फिरसे उसी सिरफिरे पगलैट गोडसे को महिमा मंडित करने लगे हैं ! वे महात्मा गांधी को खुलकर गालियां दे रहे हैं!
कांग्रेस या अन्य विपक्षी धर्मनिरपेक्ष दल यदि जीवित रहना चाहते हैं,भाजपा को टक्कर देना चाहते हैं,तो उन्हें हिंदुओं की नब्ज को पकड़ना होगा! भूपेश बघेल के अहिसावादी नरम हिंदुवाद को स्वीकार करना ही होगा! इसके साथही हिंदु समाज के दर्दनाक अतीत को भी समझना होगा! गैर भाजपाई दलोंको अतीत में गुलाम हुए भारतीय समाज की कमजोरियों को नजर अंदाज नही करना चाहिये! इसके अलावा नव युवा पीढ़ी को वास्तविक धर्मनिरपेक्षता पर अमल करने का महत्व भी समझाना चाहिये!
विगत कुछ वर्षों के दरम्यान आईएसआईएस आतंकवादियों ने सीरिया इराक के पुरातन धार्मिक प्रतीकों को और तालिबानियों ने अफगानिस्तान के वामियान बुद्ध के तमाम बुत ध्वस्त किए हैं। पुरातन भारतीय साहित्य कला और अहिंसावादी धार्मिक अवशेषों के विध्वंशक अपने आपको जिस किसी मजहब का अलंबरदार मानते रहे हों,किन्तु यह सोच का विषय है कि हिंसक लोग विजेता कैसे बन गये? और अहिंसा के पुजारी पददलित क्यों हुए? 2000 साल पुरानी बुद्ध प्रतिमाएँ ध्वस्त करने वाले यदि आज अफगानिस्तान और कश्मीर में आग लगा रहे हैं,तो भारत के हिंदु समाज को अहिंसावाद पर कब तक यकीन करते रहना चाहिये?
यदि हिंसक हमलावर आस्तिक थे,तो उन्होंने चुन-चुनकर जिन अहिसावादी हिंदुओं, बौद्धों और जैनों को मारा, क्या वे 'नास्तिक' थे? जबकि हमलावरोंके आचरणसे यह जनश्रुति सत्य प्रतीत होती हैकि मध्ययुग में हिंश्र बर्बर आक्रमणकारियों ने सुदूर अफगानिस्तान के बामियान और सीरिया -ईराक की तरह ही भारत की सभ्यता -संस्कृति को भी बुरी तरह रौंदा होगा !
उन्होंने लाखों मंदिर नष्ट किये,करोड़ों हिन्दू मारे उसका गम नहीं किन्तु तक्षशिला,नांलंदा विश्वविद्यालय,उनके विशाल पुस्तकालय भी जलाये! यह अक्षम्य अपराध है। जब कोई दल या राजनैतिक पार्टी चुनावों में इस दुखद इतिहास को भुनाए तो धर्मनिरपेक्ष दलों की हार निश्चित है! इसलिये भूपेश बघेल की नरम हिंदूवाद की लाइन गलत नही है!

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