रविवार, 30 अक्तूबर 2011

भाववाद बनाम विज्ञानवाद

  वे जो दुनिया को बताते हैं कि चेतना ,आत्मा या परमसत्ता ही इस धरती के होने,ब्रह्मांड के होने का मूल कारक है ;अध्यात्मवादी या भाववादी कहे जाते हैं.वे जो पदार्थ या उर्जा को  ब्रह्मांड का मूल कारक मानते हैं;भौतिकवादी या अनीश्वरवादी कहे जाते हैं.आदिमकाल से ही मानव सभ्यताओं के विभिन्न कालों और विभिन्न स्थानों में प्राय:उक्त दोनों ही दर्शनों या विचारधाराओं का बोलबाला रहा है.भाववादी या अध्यात्मवादी द्रष्टिकोण ने आगम-निगम-पुराण -वेद,बाइबिल,कुरआन,जिन्दवेस्ता,मठ,मंदिर,मस्जिद,गुरूद्वारे,गिरजे,पीर,पैगंबर,अवतार,धर्म-अधर्म का सृजन किया है.जबकि पदार्थवादी भौतिकवादी विचारधारा ने  मनुष्य को वन्य पशुओं से उत्कृष्ट{अथवा चालाक}और ब्रहमांड को परिभाषित कर सकने लायक बनाया.यह पदार्थवादी चिंतन भारत में लोक-मान्यता नहीं पा  सका और  किलिष्ट संस्कृत भाषा में प्रस्तुत  होने के कारण कणाद,कपिल,अश्वघोष,नागार्जुन,चार्वाक और चाणक्य जैसे भौतिकवादी आज भले ही पढ़े-लिखे अध्येताओं की नज़र में महान हों किन्तु भारत की ७५%जनता को  तो वैज्ञानिक परम्परा के मूल अधिष्ठाताओं के व्यक्तित्व क्रतित्व से कोई सरोकार नहों,वे भौतिकवादी विचार से उत्पन्न तमाम आविष्कारों -बिजली,टेलिफोन,दूरदर्शन,  कंप्यूटर,रेल,कार,एरो प्लेन का हर संभव दोहन तो  धडल्ले  से करते हैं किन्तु भाववादी मरी हुई बंदरिया को छाती से चिपकाए हुए हैं....      श्रीराम तिवारी  

शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

असभ्य कौन ?

जो शब्द रचना मानवीय संवेदनाओं का उन्नयन करे,जिस शब्द संयोजन से सरस निर्झरनी अनवरत सदानीरा सरिता की मानिंद बहती रहे,जो शब्द समुच्चय लोकानुषित्वा हो,जिस वाक् शक्ति से मन-प्राण-शरीर झंकृत हुआ करे,उसे ही छंद रचना अथवा कविता कहते हैं.जब इस प्रकार के शाब्दिक  रूप आकार में रस-अलंकार-गेयध्व्नी का अर्क घोला जाए और राज्यसत्ता,लोकसत्ता,जनसत्ता के त्रिफला चूर्ण की जन-आकांक्षा का सत समाहित किया जाए; तो  इस लोक-काव्यानुकृति से क्रांति गीतों  को अमरत्व प्रदान किया जा सकता है.क्रांति गीत जिस कौम के पास नहीं वो गुलाम और असभ्य है.
                               श्रीराम तिवारी


मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

Happy Deepawali

      May the Almighty illuminate your life with prosperity.Delights glorious successness and all pleasures in the life, on this festival of enlightment of  soul on deepavali.Wish you a very happay deepavali.
                          shriram tiwari  'appah,deepo bhav'

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

नये राजनैतिक ध्रुवीकरण की संभावनाएँ पुनर्जीवित.

अति-उन्नत वैज्ञानिक-सूचना एवं  संचार क्रांति की बदौलत धरती पर   यह बहुत तीव्रगामी परिवर्तनों की लालसा का दौर है. अपने बाह्यरूप -आकार में चीजें जितनी विद्रूप नजर आती हैं ; वस्तुतः वे अपने आप में अन्यान्य सुन्दर और सकारात्मक गुणों से सम्पृक्त भी हैं.वैश्विक परिदृश्य में भारत की तस्वीर यदि यूरोप, पूर्व-एशिया चीन, तथा समीचीन राष्ट्रों के सामने फीकी है तो उपद्रवग्रस्त,आतंकग्रस्त मुस्लिम राष्ट्रों और घोर दरिद्रता एवं भुखमरी से पीड़ित मध्य-अफ़्रीकी राष्ट्रों से उजली भी है.संचार माध्यमों पर शक्तिशाली वर्ग के आधिपत्य और भूमंडलीकरण की कोशिशों ने दुनिया भर के निर्धन,अकिंचन और अभावग्रस्त नर-नारियों को लगभग पंगु ही  बना डाला है. शोषण से मुक्ति की कामना की जगह अवसाद,कुंठा,हिंस्र प्रतिस्पर्धा और संवेदनहीनता स्थापित होती जा रही है.
      भारत के विद्वान् लेखक,इंटेलेक्चुअल,एनजीओ संचालक,अखवार नवीस और इन सबके प्रभामंडल से आक्रांत भारत का मजदूर-छोटी जोत का किसान-खुदरा व्यवसायी-खेतिहर मजदूर-दैनिक वेतनभोगी और
निम्न मध्यम वर्ग का शिक्षित-अशिक्षित आवाल वृद्ध-नर-नारी वेहद उदिग्नता के दौर से गुज़र रहा है.नितांत सर्वहारा-वर्ग को जो कि वर्गीय-चेतना से कोसों दूर है,इस जड़तामूलक अधोगति से कोई सरोकार नहीं . अपनी दयनीयता,निर्धनता,आवास-हीनता,सामाजिक-आर्थिक-शारीरिक सुरक्षा-विहीनता का कारण देव {इश्वर}को मानकर चलने वालों को वर्तमान दौर के इन झंझावातों में भी आशा कि जो एक किरण नज़र आ रही है ;वो है अपने मताधिकार की  ताकत. वोट की  ताकत का लोकतंत्र में उतना ही महत्व है जितना कि सूरज में धूप का और चंदा में चांदनी का.वैयक्तिक,पारिवारिक,सामाजिक,जातीय,क्षेत्रीय जैसे निक्रष्ट  स्वार्थों से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्वार्थ भी वोट की ताकत से ही साधे जा सकते हैं. वर्तमान राजनैतिक  परिदृश्य  को भारत का सूचना एवं संचारतंत्र कुछ इस तरह पेश कर रहा है की मानों गठबंधन के एनडीए और यूपीए दो ध्रुव ही क्षितिज पर विद्यमान हैं;तीसरा कोई विकल्प मौजूद ही नहीं है.
       माना कि अधिकांश क्षेत्रीय दलों में राष्ट्रीय मूल्यों और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों का अभाव  है ,किन्तु उनको संगठित और संयोजित करने वाले वामपंथ तथा यत्र-तत्र बिखरे हुए  पुराने लोहियावादियों-समाजवादियों के पास
किसी किस्म की आर्थिक,सामाजिक,वेदिशिक और राजनेतिक चिन्तनशीलता का अभाव  नहीं है नितीश बाबु,मायावती,जयललिता,नवीन पटनायक,देवेगौडा,मुलायम,पंवार,पासवान बादल ,उमर अब्दुल्ला और समूचा वाममोर्चा यदि एक हो जाएँ और भाजपा का बाहर से समर्थन मिले तो तीसरा मोर्चा सता में आ सकता है..कांग्रेस और यु पी ऐ यदि राहुल गाँधी को आगामी प्रधानमंत्री मानकर चल रहे हैं तो यह तभी संभव है जब राहुलजी उन नीतियों से नाता तोड़ें जिनके कारण आज़ादी के ६४ साल बाद भी उन्हें स्वयम गाँव के दलित गरीब कि झोपडी में एक ग्लास स्वच्छ पानी नहीं मिल सका. देश कि जनता यदि यूपीए गठबंधन को तीसरी बार बहुमत से जिताती है और यूपीए संसदीय बोर्ड अपना आगामी नेत्रत्व राहुल को सौंपता है तो इससे यह माना जाएगा कि गाँव में २६ रुपया रोज कमाने वाला और शहर में ३२ रुपया रोज कमाने वाला खुशहाल है. मानाकि राहुलजी नेकदिल इंसान हैं,हर दिल अज़ीज़ हैं,वतन परस्त हैं,भृष्टाचार और अन्याय के विरुद्ध हैं ,युवा हैं,सुन्दर हैं किन्तु क्या वे विश्व-बैंक ,अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और देश पर काबिज कार्पोरेट लाबी द्वारा प्रणीत प्रतिगामी आर्थिक नीतियों को पलटकर जन-कल्याणकारी,सामाजिक सरोकारों से युक्त वैकल्पिक नीतियों के बारे में रंचमात्र भी चल सकेंगे? नहीं !!
             १९६९ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिराजी ने नारा दिया था- गरीवी हटाओ- आज़ाद भारत कि सत्ता के ६५ सालों में से लगभग ५५ साल केवल और केवल कांग्रेस ने ही देश पर हुकूमत की है.गरीवी ज्यों की त्यों बरकरार है,महंगाई सुरसा के मुख की तरह बिकराल है,भृष्टाचार अपरम्पार है, हर तरफ सरकारी अफसरों द्वारा देश कि जनता की लूट वेशुमार है. सब जानते हैं कि कौन जिम्मेदार है?
       स्वर्गीय राजीव गाँधी ने प्रचंड बहुमत पाने के बाद,सत्ता में आने पर   १९८५ में कहा था कि 'हम १०० पैसे दिल्ली से भेजते हैं किन्तु ८५ बीच में गायब हो जाते हैं'कांग्रेस के लिए यह सूक्त-वाक्य अपने अधिकृत  लेटर पैड  पर छपवा लेना चाहिए.अन्ना एंड कम्पनी,बाबा रामदेव या कोई और अधिनायकवादी व्यक्ति या समूह देश में दिग्भ्रम फ़ैलाता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी बहरहाल कांग्रेसी नेत्रत्व की  ही मानी जाएगी.
    देश कि प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा बड़े गर्व से दावा करती है कि वह अन्य दलों से अलग है.उसका चाल,चेहरा और चरित्र बहुत उन्नत किस्म का है.केंद्र की सत्ता में आने पर उसने देश को जो घाव दिए वो तो सदियों तक याद रखे जायेंगे किन्तु जो वादे किये उनके पूरे न होने से समूचा हिन्दू समाज उससे कट चूका है.अब भाजपा में यत्र तत्र सर्वत्र विकास -पुरुष {विकास  नारी नहीं!}पैदा किये जा रहे हैं.नरेंद्र मोदी को जब गडकरी ने विकास- पुरुष कहा तो आडवानी जी ने कहा शिवराज ही विकास  पुरुष है,उधर रमण सिंह भी सरकारी इश्तहारों में विकास  पुरुष कि छटाएं बिखेर रहे हैं.स्वयं गडकरी जी कि भी सेहत अच्छी खासी है ,उनका विकास  भी वैयक्तिक रूप से श्लान्घ्नीय है,कि संघ  ने फर्श से अर्श पर बिठा दिया.भाजपा में रेड्डी बंधुओं ने जितना विकास  किया उसका शतांश भी कोई कांग्रेसी क्या खाक करेगा?
   तत्कालीन अटल सरकार के चार मंत्रियों पर हवाला काण्ड कि तलवार लटकी थी.२००० में तत्कालीन केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त एन विट्ठल ने सीबीआई से कहा था कि वह उन चार केन्द्रीय मंत्रियों कि अंधाधुंध काली- कमाई की जांच करे, जिन पर हवाला के आरोप हैं.उसके बाद क्या हुआ ?एनडीए सरकार ने विट्ठल की नाक दबा  दी, उनके अधिकार छीनकर सतर्कता-आयोग को तीन सदस्यीय  बना दिया.ताकि आइन्दा कोई एन बित्थल  इस तरह कि हिमाकत न कर सके.यह काम उस भाजपा ने किया जो कांग्रेस पर भृष्टाचार के आरोप लगाने के लिए रथ-यात्रायें निकाल रही है.कभी अन्ना ,कभी रामदेव  कभी उपवास  और कभी रामधुन गाकर सत्ता-सुन्दरी का आह्वान कर रही है.ये इश्क नहीं आसान ...
    भाजपा आज भी क्वात्रोची-क्वात्रोची चिल्ला रही है जबकि अपने किये धरे को भूल रही है.सारा देश जानता है कि वह भाजपा का ही एक  चेहरा था जो शराब के नशे में बोल रहा था,पैसा  खुदा नहीं,पर खुदा कसम ,खुदा से कम भी नहीं'यह बिडम्बना ही है कि भाजपा अपनी कसौटी पर-चाल,चेहरा,चरित्र पर ढेर हो गई जिसका फायदा अनायास  ही उस कांग्रेस को २००४ में मिला जो देश को दुर्गति में ले जाने के लिए जिम्मेदार है.भाजपा अब जनता कि नहीं दौलत वालों कि ,राजनीति  के ठेकेदारों कि और बड़बोलों की अंक-शायनी  बन चुकी है ,अन्ना,रामदेव या नत्थू-खेरों के चक्कर में दिग्गजों के अहंकार का अड्डा बन चुकी है.
   सिर्फ उपवास ,अनशन, रथ-यात्राओं या जन्म दिन मनाने से राज्य-सत्ता की प्रप्ति,अभीष्ट का ध्येय समभाव नहीं. राज्य-क्रांति के लिए यदि जन-समर्थन या वोट चाहिए तो जनता के हित की नीतियां और कार्यक्रम पेश करो वरना हाथ कुछ नहीं आने वाला- वही-जीरो/सन्नाटा.

       श्रीराम तिवारी
  

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

शुक्रिया

सभी सुह्र्दय्जनों ,बंधुओं,मित्रों,प्रसंशकों का शुक्रिया.
      दोस्तों, मैं विगत दिनों इंदौर के राज्यश्री अस्पताल में  भर्ती था.मुझे अस्थमा ,उच्च-रक्तचाप,और चिकनगुनिया सब एक साथ हो गए थे.अत्यंत मर्मान्तक और असहनीय वेदना सहते हुए तीन महीने हो गए हैं.अभी शतांश ही स्वस्थ  हो पाया हूँ .इस बीमारी के दौरान जिन मित्रों,सपरिजनों,और शुभचिंतकों ने मेरा संबल बढाया,सहयोग दिया उनका तहेदिल से आभारी हूँ.
          सर्व श्री डॉ अशोक वाजपेई,श्री भदालेजी,दिनेश तिवारीजी,पुष्पेन्द्र सिंह जी,नरेन्द्रजी,किरणजी,उपाध्यायजी,कमल टटवडे जी,शेरुजी,पटोदिया जी,टोपोजी,लोदवालजी ,गंगमवार जी,चिदारजी अनिल जैन एसडीओ-खान साब,  एस डी ओ- श्रीमती दीप्तिमती शुक्लजी,प्रेम तिवारी जी,संतोष शर्माजी ,हाडा जी, कौशिक् जी,  सुधीर शर्मा जी,नेमीजी ,विपिनजी एवं अन्य उन सभी बंधुजनो,मित्रों का आभारी हूँ;जिन्होंने इस संकटकाल में प्रत्यक्ष व् परोक्ष सहयोग दिया.
            का. संपतराव, सर्कल सेक्रेटरी-आंध्र, का.नम्बूदिरी अध्यक्ष-बी एस एन एल इ यु तथा का.प्रकाश शर्मा का भी आभारी हूँ ; जिन्होंने होसला आफजाई की.
      चिरंजीव प्रवीन,पुत्रवधू अर्चना,पत्नी उर्मिला ,समधी  कीर्तिवल्लभ  जी, दोनों समधिन जी , छोटे समधी जी , सुधीर खर्कवाल जी, पुत्री अनामिका ,नाती अक्षत,और पौत्र चेतन्य के निरंतर स्नेह और प्यार ने मेरी जिजीविषा को साधा ,उन सभी को ढेर सारा प्यार.
        श्रीराम तिवारी शुक्रिया