बुधवार, 30 नवंबर 2016

प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ध्यान रखना उनका परम कर्तव्य है।


अन्याय अत्याचार से लड़ना ,जुल्म और उत्पीड़न का प्रतिवाद करना पूर्णतः न्यायोचित है। किन्तु किससे लड़ना ? क्यों लड़ना ? पहले  इसका निर्धारण होना बहुत जरुरी है। वैज्ञानिक और प्रगतिशील नजरिये वाला मनुष्य अच्छी तरह जनता है कि सापेक्ष रूप से इस संसार में  निरपेक्ष सत्य कुछ भी नहीं है। खास तौर से  संसदीय राजनीति में कोई भी व्यक्ति अथवा विचार परफ़ेक्ट या पूर्ण नहीं है। जब  ब्रह्मांड में ही कोई वस्तु,व्यक्ति ,विचार या दर्शन पूर्ण नहीं है और कोई भी आलोचना से परे नही है,तब ''काजल की कोठरी' कही जाने वाली इस सियासत का कोईभी  प्राणी आलोचना से परे कैसे हो सकता है ? राजनीति में या सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों को हमेशा याद रखना चाहिए कि वे आलोचना से  परे नहीं हैं और उनके लिए भी सत्य केवल सापेक्ष ही होता है।

भारत में सत्तापक्ष के नेता और मंत्री गण जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि वर्तमान राजनैतिक विपक्ष केवल पाप का घड़ा है। या कि सत्ताधारी नेता पूर्णतः पुण्यात्मा और धर्मात्मा हैं! विपक्ष की तरफ के लोग भी  रात-दिन केवल सरकार और मोदीजी की आलोचना में व्यस्त हैं। याने  दोनों तरफ के 'बोलू'लोग  एक -दूसरे को महापातकी सिद्ध करने में जुटे हैं। उनसे प्रभावित सोशल मीडिया पर जो कुछ रहा है उससे  देश की आवाम पक्ष-विपक्ष में बुरी तरह  विभाजित होकर आपस में बुरी तरह बट चुकी है। न केवल बट चुकी है बल्कि गुथ्थम गुथ्था भी हो रही है। अंधराष्ट्रवाद और अंध सत्ता विरोध की राजनीति ने मर्यादाओं के तट बन्ध तोड़ दिए हैं। जो लोग मोदीजी के पर्मेनेंट विरोधी हैं और जो 'मोदी विरोधियों' के पर्मेनेंट विरोधी हैं, वे दोनोंही 'आत्मालोचना' को तैयार नहीं हैं। जबकि हकीकत में आलोचना से परे कोई नहीं हैं !

वेशक प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक नीतियाँ और उनका साम्प्रदायिक अतीत आलोचना के दायरे में आता है !और उनका आत्मप्रशंसात्मक -अहमन्यतापूर्ण दंभोक्त वाणीविलाश भी आलोचना के योग्य है। किन्तु एक प्रधानमंत्री के रूप में उनके लिए यह सदाशयता अवश्य प्राप्त है कि  वे देश की तमाम आवाम को एक नजर से देखें ,चूँकि वे सम्पूर्ण राष्ट्रका नेतत्व कर रहे हैं ,इसलिए प्रधान मंत्री पद की  गरिमा का ध्यान  रखना उनका परम कर्तव्य है।

वेशक मोदी जी अपने पूर्ववर्तियों से कुछ मामलों में  बेहतर  हैं। भले ही  वे नेहरू जितने कद्दावर दर्शनशात्री या अंग्रेजीदां नहीं हैं! वे इंदिरा गाँधी जितने कुशाग्र बुद्धि वाले नही हैं ,वे सरदार मनमोहन सिंह जितने महान विद्वान- अर्थशास्त्री नहीं हैं ,किन्तु  इन सभी से मोदीजी  एक मामले में फिर भी  आगे हैं। वे न केवल भारत में बल्कि भारत से बाहर भी  अधिकांस शिक्षित एनआरआई युवा वर्ग में बेहद लोकप्रिय हैं। शिक्षित युवाओं का इतना जबरजस्त समर्थन  पहले के किसी भी पीएम को प्राप्त नहीं था। नेहरू, इंदिरा या शास्त्री को भी नहीं था। सिर्फ राजीव गाँधी एकमात्र अपवाद हो  सकते हैं। क्योंकि राजीव गाँधी को मोदीजी से भी ज्यादा जन समर्थन  हासिल था।लेकिन उसकी वजह उंनकी माता जी का  बलिदान था। मेरा यह आकलन पूर्णतः सत्य न भी हो तो भी यह सापेक्ष सत्य तो अवश्य है!और सत्य केवल सापेक्ष ही होता है।

आलोचकों को पीएम मोदीजी की आलोचना करने का पूरा  है ,किन्तु मोदीजी और उनके मंत्रियों को विपक्ष की आलोचना  का हक़ तब  है,जब वे चुनावी वादों को पूरा कर चुके हों। यह भी याद रखना चाहिए कि की दोनों ओर के संवेदनशील और जिम्मेदार नेताओं को एक दूसरे के बेहतर गुणों का आदर करने का भी हक है। सन १९७१ में जब इंदिराजी के नेतत्व में ,सोवियतसंघके सहयोग से ,भारतीय फौजोंने पाकिस्तान को चीर दिया ,तो अटलजी ने इंदिराजी को 'दुर्गा' कहा था । वेशक मोदीजी ने कभी किसी कांग्रेसी नेता या पीएम की तारीफ नहीं की !उन्होंने तो अपने ही  वरिष्ठों की कभी तारीफ़ नहीं की।

मोदी जी के व्यक्तित्व की खास विशेषता है कि वे 'संघ' और भाजपा के गाडफ़ादरों से किंचित भी नहीं डरते। वे  धंधेबाज 'गौसेवकों' से भी नहीं डरते । वे शिवसेना के बाचालों से भी नहीं डरते। मोदीजी खुद ही हिन्दू धर्म के परिव्राजक रहे हैं , फिर भी वे  किसी स्वयम्भू हिंदुत्वादी नेता से या किसी भी कौम के पाखण्डी धर्मगुरु की जरा भी परवाह नहीं करते। यही वजह है कि उनके खास प्रशंसक संत [?] आसाराम को भी जेल में सड़ना पड़ रहा है। मोदी जी 'रामदल वालों' से ज़रा भी नहीं डरते। यदि डरते होते तो अयोध्या में कब का मंदिर बन गया होता। उन्होंने संघ के एजेंडे की कभी परवाह नहीं  की।

मोदीजी ने भारत के अधिकांस युवा और  शिक्षित नौजवानों को अपने प्रभाव में ले लिया है । आधुनिक तकनीक और संचार क्रांति से सुसज्जित युवाओं को मोदी जी ने  विकास की नाव पर बैठा लिया है और उनकी राजनैतिक नौका पर सवार होकर यह आधुनिक युवा पीढी २०१९ के चुनाव में  'हर-हर मोदी' या घर-घर-मोदी ' का उद्घोष ही करने वाली है। इसीलिये मोदीजी भी लगातार केवल  चुनावी बिगुल ही बजा रहे हैं। इसके अलावा वे जब कभी जिस किसी नेता या दल को अपने खिलाफ पाते हैं ,उसे नेस्तोनाबूद करने में तत्काल जुटे जाते हैं। अभी ममता ने जब ज्यादा नाटक नौटँकी की तो बंगाल में सेना ही भेज दी। पंजाब में जब अमरिंदर सिंह की लोकप्रियता बढ़ती  देखी तो उन पर सीबीआई और इनकम टेक्स वालों को लगा दिया। नोटबंदी से उतपन्न मुसीबत पर देश की हैरान परेशान जनता ने जब चूँ -चा की तो उसके खिलाफ 'मोदीभक्तों' को छोड़ दिया। लेकिन उन्हें यह भृम नहीं पालना चहिये कि  सब कुछ सदा के लिए कंट्रोल में है!

यद्द्पि मोदी जी व्यक्तिशः साम्प्रदायिकता और फासिज्म से दूरी बनाते दिख रहे हैं।किन्तु उनके ही  नेतत्व में देश के कई बुद्धिजीवी मारे गए हैं ,कई साहित्यकार अपमानित हुए हैं ,देश में कुछ अमीर और ज्यादा अमीर हो गए हैं जबकि गरीब और ज्यादा गरीब हुए हैं। जबसे मोदी जी पीएम बने हैं तबसे देश की सीमाओं पर भारत के जवान पहले से कुछ ज्यादा ही शहीद होने लगे हैं। कभी उधमपुर,कभी पठानकोट,कभी उड़ी और कभी नगरोटा आर्मी- केम्प पर और  भारतीय फ़ौज पर आकस्मिक हमले किये गए हैं। हरबार सरकार का बयान सिर्फ एक ही था ''हम पाकिस्तान को''ईंट का जबाब आपत्थर से देंगे '' !जबकि पाकिस्तान की ओर से आक्रमण लगातार जारी है।

यह शुभ सूचक सन्देशहै कि नोटबंदी औरआर्थिक नीतियों की तमाम आलोचनाओं पर मोदीजी की पैनी नजर है। जब देश की जनता ने मोदीजी की विमुद्रीकरण योजना से भाजपा और उसके समर्थकों पर नाजायाज फायदा उठाने का आरोप लगाया , तो स्वयम आगे होकर मोदी जी ने अपनी पार्टी के सांसदों एवम सभी विधान सभा सदस्यों को  निर्देश किया कि  वे सभी ९ नवम्बर से ३१ दिसम्बर तक का उनका पर्सनल बैंकिंग लेंन -देन  ब्यौरा पार्टी प्रमुख अमित शाह के समक्ष  प्रस्तुत करें  !

यदि इस तरह के  कदम उठाने में  कोई राजनैतिक कुचाल है तो वह छिप नहीं पायेगी। किन्तु अभी तो सवाल यही है कि  इस विषय के  सम्बन्ध में  विपक्ष की क्या योजना है ?यदि विपक्ष ने इस कदम की अनदेखी की और केवल मोदी जी की आलोचना ही  करते रहे तो  उसका सूपड़ा साफ़ होने में कोई सन्देह नहीं। क्योंकि इससे तो मोदीजी और ज्यादा लोकप्रिय होते चले जायेंगे ! विपक्ष की भलाई इसीमें है कि पीएम के इस कदमकी आलोचना न करे ! बल्कि  खुद भी अपना-अपना व्यक्तिगत और पार्टीगत आय-व्यय  पत्रक बनाकर लोकसभा अध्यक्ष और राज्य सभा के सभापति को ,३१ दिसम्बर तक सौंप दे। इसीमें उनकी और देश की भी भलाई है। खुदा न खास्ता यदि मैं सांसद अथवा विधायक होता तो  फौरन से पेश्तर यही करता। श्रीराम तिवारी !

Aaaj ke vichaar ,,,,,!

[१]
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री  ममता बेनर्जी की कोई आर्थिक सोच या नीति नहीं है। वे पश्चिम बंगालमें 'वामपन्थ' की प्रतिवाद मात्र हैं। वहाँ की जनता ने गफलत में ममता को एक बार सत्ता का मौका देकर ऐतिहासिक भूल की है।  ममता अब  प्रधान मंत्री के सपने देख रहीं है। उसका सपना पूरा हो भी सकता है क्योंकि उसने न केवल बंगाल में बल्कि देश भर में आपराधिक वर्गों को 'साध' रखा है। अल्पसंख्यक वर्ग भी कमजोर कांग्रेस या वामपंथ की जगह उद्दंड ममता को पसन्द कर रहा  है। इसीलिये ममता के हौसले इतने बढ़ गए हैं कि वह लखनऊ की आम सभा में  मोदी जी को ललकार गयी है।  ममता को नोटबंदी या उससे जुड़े आर्थिक पहलुओं का रत्ती भर ज्ञान नहीं है , किन्तु फिर भी वह सारे देश में नोटबंदी और मोदी विरोध का ढोंग करती फिर रही है। भारत के प्रबुद्ध वर्ग को समझना चाहिए कि  देश को मोदी से नहीं बल्कि ममता,लालू,मुलायम और मायावती से खतरा है।

[२]
पाकिस्तानी आतंकियों ने पहले उधमपुर ,फिर पठान कोट ,फिर उड़ी पर हमला किया ,बहुत अनमने भाव से हमने जबाब में 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक' जैसा कोई टोटका किया। ढपोरशंख बजाकर हमें बताया  गया कि 'अंदर घुसकर'मारा!किन्तु उसके बाद पाकिस्तान की ओर से लगातार सीजफायर का उलंघन किया गया ,इतना ही नहीं २९ नवम्बर को उन्होंने भारत के नागरोटा  'आर्मी केम्प' पर हमला करके सावित कर दिया कि वे आतंकी सकुशल हैं ,सलामत हैं ,हमारी सर्जिकल स्ट्राइक बाकई एक भौथरा प्रोपेगंडा मात्र था। हमने पीओके में उनके दो - चार  झोपड़े क्या उखाड़ दिए ,अपने आप को निरापद समझ बैठे !शत्रु तो सीधे -सीधे हमारे आर्मी केम्प पर ही अटेक कर रहे हैं। हमारे देश के नेता कारगर रणनीति में असफल हो जाने के बाद या तो बगले झांक रहे हैं या 'नोटबंदी' में लगे हैं ! कुछ महाबली नेता अपनी भारतीय फ़ौज की वीरता का  नित्य गुणगान कर रहे हैं ,उनके  बखान करने का अंदाज कुछ यों है कि ''चढ़ जा बेटा सूली पै राम भली करेंगे ''!

[३]
     अनुमान के मुताबिक 'नोटबंदी' की इतनी मारामारी के वावजूद,'कालेधन' की कानि कौड़ी भी सरकार के खजाने में नही आई है। जिन-जिनके पास किंचित न्यूनाधिक कालाधन था , वह उन्होंने तत्काल बेनामी सम्पत्ति , स्वर्ण आभूषण ,और जन-धन खातों के हवाले कर दिया। अब जिनके पास बहुत अधिक मात्रा में कालाधन शेष है ,उन्हें लुभाने के लिए लिए मोदी सरकार नए-नए रास्ते तलाश रही है। ५०% कालेधन को तो दिन दहाड़े सफेद कर ही दिया है। बाकी का ५०% सरकारी खजाने में आकर अपने आप सफ़ेद हो जाएगा ! नोटबंदी की जय हो !

[४] कल २९ नवम्बर की अन्धयारी रात को पाक रेंजर्स और उसके आतंकियों ने भारत के नगरोटा आर्मी केम्प पर हमला कर दिया। इस आकस्मिक हमले में भारत के आधा दर्जन आर्मी आफीसर और जवान शहीद हुए हैं !पाकिस्तान आर्मी की इस कायराना हरकत की हम निंदा करते हैं और हमारे शहीद फौजियों की इस शहादत पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। एक सवाल भी है ,की क्या पाकिस्तान आर्मी ने अपने नए 'जनरल' कमर जावेद   को उनकी पदोन्नति  पर सलामी दी है या की परम्परागत नंगई दिखाई है ?

[ ५]  एक पत्रकार ने नोटबंदी के सन्दर्भ में एक अर्धशिक्षित ग्रामीण बुन्देलखण्डी से उसका ओपिनियन पूँछा !बुन्देलखण्डी भाई ने जो जबाब दिया उसका शुद्ध हिंदीकरण स्वयम करने का कष्ट करें।

पत्रकार - मोदी सरकार ने हजार पाँच सौ के पुराने नोट बन्द कर  दिए हैं ,सरकार का कहना है कि इससे देश का कालाधन वापिस आएगा ,जबकि विपक्ष का कहना है कि कालाधन आयेगा -इसकी  कोई गारन्टी नहीं क्योंकि कालेधन वाले बड़े बदमाश हैं ,वे काले को सफ़ेद करना खूब जानते हैं। जबकि इस नोटबंदी से देश की ईमानदार जनता को अवश्य भारी तकलीफ उठाना पड़ रही है। इस बारे में आपका क्या कहना है ?

बुन्देलखण्डी - भज्या ,कारो सफ़ेद तो हम नईं जानत  ,हमें तो जो लग रव कै ई में पूरो ई देश भिंदरया गव है !


           


         


शनिवार, 26 नवंबर 2016

नोटबंदी याने विमुद्रीकरण -नतीजा ठनठन गोपाल !

वर्तमान नोटबंदी योजना से बाकई करोड़ों लोग परेशान हैं। पंक्तियों के लिखे जाने तक लगभग ८० मौतें हो चुकीं हैं। डालर जैसी विदेशी मुद्राओं के सापेक्ष भारतीय रुपया बहुत नीचे चला गया है।भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार बहुत घट गया है। रिजर्व बैंक के नये गर्वरन उर्जित पटेल चुप हैं! अब तक एक भी कालधन वाला जेल नहीं भेजा  गया है। कालेधन वालों की सूची अभी तक जाहिर नहीं हो पाई है। नए-पुराने नोट बदलने की प्रक्रिया में सारादेश हल्कान हो रहा है। शादी व्याह से लेकर मरण-मौत और सोम काज तक रुके हुए हैं।  किसान के खाद बीज से लेकर खेती -सिचाई के काम  नहीं हो पा रहे हैं। फिर भी यह सौ फीसदी सच है कि देश के अधिकान्स लोग इस नोटबंदी का दिल से स्वागत ही कर रहे हैं। वे इसका विरोध करने के बजाय देश के और प्रधानमंत्री के साथ खड़े हैं। अधिसंख्य जनता की  मनोदशा बताती है कि वह भृष्टाचार तथा कालेधन  से लड़ने के लिए कुछ कुरबानी देने को तैयार  है। जनता की यही मनोदशा पीएम मोदीजी को मुफीद है। इसलिए विपक्ष द्वारा प्रायोजित किसी तरह के 'बन्द' इत्यादि से उनकी सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला ।  वैसे भी नोटबंदी याने विमुद्रीकरण का नतीजा ठनठन गोपाल !

नोटबंदी के कारण ६०% कारखाने बन्द हो चुके हैं, भारत को ४०% व्यापार घाटा हो चूका है,विदेशी मुद्राभंडार में भारी गिरावट हो रही है। अस्पताल में इलाज बन्द है। स्कूल-कॉलेजों में पढाई बन्द है ,ट्रांसपोर्ट-निर्यात-आयात का भट्टा बैठ चुका है ,निजी क्षेत्र में मजदूरों को पगार नहीं मिल रही ,बैंक के कर्मचारी वर्कलोड से पीड़ित हैं और जनता कतार में खड़ी है।सभी कुछ आलरेडी बन्द ही तो है। अब और किसी बंद की घोषणा का क्या औचित्य है ? इससे तो देश की जनता की मुसीबत कम नहीं होने वाली। चाहे जितना जोर लगा लो मोदीजी इस नोटबंदी को वापिस नहीं लेंगे।  जो लोग मर चुके हैं वे वापिस नहीं आने वाले। दिवंगतों के परिजनों का समर्थन भी इस 'बन्द' को नहीं है। क्योंकि  मोदीजी झूँठ बोलकर जनता को बर्गला रहे हैं कि ''देखो रे ये बन्द वाले ,ये नोटबंदी का विरोध करने वाले ,इसलिए मेरा विरोध कर रहे हैं क्योंकि मैंने उन्हें कालेधन को सफेद करने का अवसर नहीं दिया '' !वास्तव में मोदीजी का यही वाग्जाल और मिथ्याचरण उनकी तमाम  देशभक्ति' पर भारी  पड़ रहा है। क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि कालाधन कहाँ-कहाँ किस-किस के पास है। किन्तु कालेधन वालों को दबोचने के बजाय वे अपने दाम्भिक असत्याचरण से जनअसन्तोष को दबा रहे हैं। वे नोटबंदी को  देशभक्तिपूर्ण 'क्रांतिकारी' घटना सावित करने में जुटे हैं,सन्सद में बयान  देने के बजाय इधर-उधर चुनावी किस्म के भाषण देते फिर रहे हैं।   

आतंकवाद,आर्थिक भृष्टाचार ,धर्मान्धता ,जातिवाद और लम्पटता में आकण्ठ डूबे भारत जैसे 'महान देश' का शासन-प्रशासन चलाना आसान नहीं है। प्रचण्ड जनादेश से निर्वाचित,कुशाग्र बुद्धि वाले ,ऊँचे चरित्र के नेता भी जब 'काजल की कोठरी' में साबुत नहीं बच पाए हैं।देश को 'सुशासन' भी नहीं दे सके हैं।  बेचारे मोदी जी की क्या विसात जो चाय बेचते-बेचते 'बोधत्व' को प्राप्त हुए और परिव्राजक बन गए। परिव्राजक से 'संघ प्रचारक' बन गए। भाजपा के महामंत्री बन गए। और जब आडवाणी की 'मंदिर' वाली रथ यात्रा के परिणाम स्वरूप गुजरात कांग्रेस कुंठित हो गयी तो उसके आंतरिक कलह की असीम अनुकम्पा से 'नमो' गुजरात के मुख्यमंत्री बन गए। यूपीए के दौर के 'महाभृष्टाचार' ने जब भारत की जनता जनार्दन का कचमूर निकाल दिया ,तो आडवाणीजी के बुढ़ापे और संघ की असीम अनुकम्पा से 'नरेंद्र दामोदरदास मोदी  'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र'के प्रधानमंत्री भी बन गए।

इतिहास साक्षी है कि जब किसी साधारण इंसान को चमत्कारिक वैयक्तिक सफलता मिलती है तो वह या तो नेपोलियन,हिटलर,मुसोलनी ,ईदीअमीन,परवेज मुसर्रफ और सद्दाम की तरह 'डिक्टेटर' हो जाता है या वासुदेव - श्रीकृष्ण,ईसामसीह, हजरत मुहम्मद की तरह साधारण से असाधारण याने 'अवतारी महापुरुष' हो जाता  है ! मेरी हार्दिक कामना है कि नरेन्द्र मोदीजी 'अवतार पुरुष' भले ही न बन पाएं , किन्तु ईश्वर करे वे 'डिक्टेटर' कदापि न बन पाएं! विगत ढाई -तीन सालों में उनकी कथनी-करनी से लोगों का शक सुबहा जोर पकड़ रहा है कि मोदीजी संसद और केबिनेट को अपने से निम्नतर मानकर चल रहे  हैं। कभी कभी आभास होता है कि वे शायद लोकतंत्र में यकीन ही नहीं रखते। वे हर मामले में हर बार संसद की उपेक्षा कर रहे हैं!

मोदी जी का बिना ताजपोशी के ही नवाज शरीफ को अपने 'राज्यरोहण' पर दिल्ली बुलाना, फिर बिना केबिनेट की मंजूरी के  नवाज शरीफ के घर चाय पीने जाना , उसी नवाज को हाफिज सईद और आतंकियों का हितेषी बताना ,उनके रक्षा मंत्री महोदय का पाकिस्तान को नरक बताना ,सीमाओं पर अपने सैनिकों को लगातार शहीद करवाना ,जन दबाव में आकर पीओके' में 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक' कराना ,स्विट्जरलैंड में जमा कालेधन को वापिस नहीं ला पाने की खुन्नस में  देश पर निजी निर्णय के रूप में  'नोटबंदी' थोपना , उसके कारण जो लोग मरे और उनके परिजनों ने यदि ज़रा से आंसू बहाये तो उन्हें 'देशद्रोही' बताना, इत्यादि धतकर्मों से लगता है कि 'मोदी जी ' का  लोकतंत्र और सन्सद से मानों कोई लेना देंना ही नहीं है।

जिन बुजर्ग माँ -बाप के जवांन लड़के सीमाओं पर आये दिन शहीद हो रहे हैं ,वे पूंछ रहे हैं कि जब आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक सफल रही है तो पाकिस्तानी सेना और उसके पालतू आतंकियों के हाथों उनके नोनिहाल याने भारत के सैनिक लगातार शहीद क्यों हो रहे हैं ? यदि आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक सफल रही है तो उसकी डींगे क्यों हाँकी गयीं ? और उसके बाद सबूत क्यों मांगे गए ? यदि सबूत मांगे गए तो उन्हें उपलब्ध कराने के बजाय पीएम महोदय  'देशद्रोह' का जुमला लेकर देश की जनता पर 'नोटबंदी' लेकर  क्यों टूट पडे ? इस 'नोटबंदी ' का सकारात्मक परिणाम यदि आवाम जानना चाहती है तो बताइये ना ! कि  कितने कालेधन वाले आपने अभी तक जेल भेजे हैं ?दरसल एक भी नाम आपके पास नहीं है। जब आप ललित मोदी ,विजय माल्या और जनार्दन रेड्डी के आगे नतमस्तक हैं तो  पाकिस्तान में छिपे आतंकियों,कश्मीरी पत्थरबाजों का के बिगाड़ लेंगे ?आप देश के अंदर के कालेधन वालों की एक आँख फोड़ने के चक्कर में भारत की तमाम मेहनतकश ईमानदार आवाम की दोनों आँखे फोड़ने पर आमादा क्यों हैं ?

 देश में नोटबंदी के समर्थन और विरोध का  बहुत शोर है ! कोई  बंद-बंद चिल्ला रहा है ,कोई इस योजना की सफलता के गीत गा रहा है। कोई लाइन में लगा हुआ मरने जा रहा है। कोई रोमन सम्राट नीरो की तरह मजे में चैन की बंशी बजा रहा है। दरसल इस दौर में सिर्फ अर्थव्यवस्था ही नहीं पूरा देश चरमरा रहा है।पक्ष-विपक्ष दोनों ही देशको ठोकर मारने पर आमादा हैं। सत्ताधारियों ने पहले ही हरतरफ से अपने देश का कचमूर निकाल दिया है ,अब विपक्ष की बारी है। नोटबंदी का विरोध ,उसके कारण हुई मौतों का विरोध और  भारत बन्द के बहाने मरे मराये मुल्क को मारने पर आमादा हैं ! बिखरे हुए विपक्ष द्वारा आयोजित 'नोटबंदी पर भारत बन्द' केवल जले पर नमक छिड़कने जैसा है!पीएम ने संसद की गरिमा को नुकसान पहुँचाया है ,उसपर एकजुट विपक्षको संसदमें ही मुकाबला करना चाहिए!जनता की मुसीबतें बढ़ाने से विपक्ष को कुछ नहीं मिलेगा !

भारतीय वामपंथ को अपनी रणनीति केवल 'मोदी विरोध' से निर्धारित नहीं करनी चाहिए। निरन्तर विरोध और संघर्ष करने के बावजूद निकट यूपी में होने वाले चुनावों में क्या हासिल होगा इस पर ध्यान देना चाहिए। नोटबंदी विरोध अथवा अन्य कारणों से यदि वहाँ भाजपा हार भी जाये तो जीत किसी की होगी? मायावती की ? मुलायम की ?कांग्रेस की ? क्या ये सभी दूध के धुले हैं ? अधिनायवाद के खिलाफ ,साम्प्रदायिकता के खिलाफ, शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ - वामपंथ हमेशा संघर्ष में  आगे रहा है। किन्तु  चुनावी  परिणाम में सबसे पीछे क्यों ?जिस पर देश के मेहनतकशों को नाज था वो बंगाल भी साथ छोड़ चुका है।अब अकेले त्रिपुरा और केरल ही बचे हैं, उन पर ध्यान देना चाहिए। हर मुद्दे पर 'भारत बन्द' या हड़ताल का नारा देकर जनता से अनावश्यक दूरी बढ़ाना उचित नहीं। नोटबंदी के विरोध में जिन्हें तकलीफ है वे कालेधन वाले बदमाश अपना धन सफेद करने में जुटे हैं।  इधर हमारे जावांज साथी भारत बन्द के लिए हलकान हो रहे हैं। ईमानदार मेहनतकश सर्वहारा को नाहक इस अर्थहीन संघर्ष में धकेला जा रहा है। जबकि नोटबंदी पर हाय हल्ला मचाने वाली ममता और माया चुप हो चले हैं।

जिनके पास अकूत कालधन है वे अमीरजादे ,हरामखोर पूँजीपति चुप हैं ,सूदखोर साहूकार चुप हैं ,आतंकी और पत्थरबाज चुप हैं ,अब तो उनकी ओर से बोलने वाले ममता, माया ,मुलायम ,लालू भी चुप हैं। जिनके पास काला  या सफेद कुछ नहीं है ,जिनके पास जेब में कानी कौड़ी नहीं है ,वे जन्मजात कँगले और 'अक्ल के दुश्मन ' इस नोटबंदी पर  हलकान हो रहे हैं ! जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू सही पकडे हैं।वे मंद-मंद मुस्कराकर नोटबंदी पर लालू के मजे ले रहे हैं।उन्हें अपनी ईमानदारी पर नाज है ,इसलिए भृष्ट लालू और उनके छोकरों को छुपे अंदाज में चिड़ा रहे हैं। इधर मोदीवादी भी चित हैं कि नीतीश के ऊपर कालेधन का ठप्पा कैसे लगाएं ?

पहले सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांगना,फिर नोटबंदी पर कालेधन वालों का परोक्ष रूप से अनैतिक बचाव करना, अब भारत बन्द का ऐलान करना ,यह सब देश के कमजोर  विपक्ष को भारी पडेगा। अभी तो ये हाल हैं कि लाइन में लगे लगे  हुए या अस्पताल में किसी मरते हुए से भी पूंछो की 'नोटबंदी ' से तुम्हे क्या परेशानी है तो वह भी कहेगा  कहेगा ''देश के लिए इतनी तकलीफ तो जायज है ,यदि कालेधन वालों को सजा मिलती है तो ''!
तातपर्य यह है कि 'नोटबंदी'का अंध विरोध या उसके लिए भारत बन्द जैसी कार्यवाही जनता को पसन्द नहीं !श्रीराम तिवारी !
 

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

संसद की अवमानना करने वालों को बेनकाब किया जाए



 प्रगतिशील विचारकों - दार्शनिक सिद्धान्तकारों के अनुसार 'व्यक्ति -विशेष' की बनिस्पत ' विचार विशेष ' की महत्ता ही श्रेष्ठ है। इतिहास गवाह है जब-जब किसी 'व्यक्ति विशेष' को समाज या राष्ट्र से ऊपर माना गया, तब-तब मानव समाज ने बहुत धोखा खाया है। किसी 'व्यक्ति विशेष' के पक्ष -विपक्ष के कारण ही दुनिया में दो बड़े महायुद्ध हो चुके हैं।  भारत जैसे देश को तो इसी व्यक्ति केंद्रित सोच के कारण सदियों की गुलामी भोगनी पड़ी !दुनिया की जिस किसी कौम ने ,राष्ट्र ने, 'विचारधारा की जगह किसी व्यक्ति विशेष' को 'अवतार' या 'हीरो' माना  उस देश और समाज की बहुत दुर्गति हुई है।

जिस किसी प्रबुद्ध कौम या राष्ट्र ने 'व्यक्ति विशेष' की महत्ता के बजाय उसके द्वारा प्रणीत श्रेष्ठ 'मानवीय मूल्यों' को अर्थात ''विचारों' को  महत्व दिया ,उस कौम या राष्ट्र ने अजेय शक्ति हासिल की। व्यक्ति की जगह मानवीय मूल्य , मानवोचित विचार और विवेक को महत्व देने के कारण ही अंग्रेज जाति ने सैकड़ों साल तक अधिकांस दुनिया पर राज किया है। जबकि अपने तानाशाह शासक नेपोलियन की जय- जयकार करने वाली फ़्रांसीसी जनता को एक अंग्रेज जनरल 'वेलिंग्टन' के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। इसी तरह हिटलर की जयजयकार करने वाले जर्मनों की नयी पीढी को उनके पूर्वजों का अंतिम हश्र ,आज भी शर्मिंदा करता है। जनरल तोजो की हठधर्मिता के कारण ही हिरोशिमा और नागाशाकी का भयानक नर संहार हुआ था, जिसका नकारात्मक असर आजभी जापानकी जनता  पर देखा जा सकता है। जो कौम या राष्ट्र इतिहास से सबक नहीं सीखते उनका वजूद हमेशा खतरे में रहता है !

कल्पना कीजिये कि घोड़े के पैर में लोहे की नाल ठुकती देख ,मेंढक भी नाल ठुकवा ले तो क्या होगा ? नाई को हजामत बनाते देख कोई बंदर भी उस्तरा चलादे तो क्या होगा ? सोचिये कि यदि कोई भारतीय नेता आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ,किसी पूर्ववर्ती सामंतयुगीन तानाशाह या बीसवीं सदी के बदनाम 'डिक्टेटर' की नकल करने लगेगा तो क्या होगा ? सदन का नेता और देशका प्रधानमंत्री किसी प्रासंगिक एजेंडे पर संसद में बयान देने के बजाय उसी विषय पर कभी मथुरा ,कभी आगरा और कभी बठिंडा की आम सभा में भाषण देते रहेंगे तो यह सरासर लोकतंत्र का अपमान होगा  !निश्चय ही यह तुगलक बनने की अपवित्र चेष्टा कही जाएगी ! यदि संसद का अनादर होगा तो लोकतंत्र कैसे जीवित रह सकता है ? चूँकि समाजवाद के लक्ष्य की पूर्ती के लिए  लोकतंत्र रुपी धनुष और सर्वहारा वर्ग की एकजुटता का बाण जरूरी है इसलिए लोकतंत्र की सर्वोच्च शक्ति याने भारतीय संसद की गरिमा को अक्षुण बनाये रखना जरुरी है।  संसद की अवमानना करने वालों को बेनकाब किया जाए !

 चूँकि एनडीए सरकार की 'नोटबंदी' योजना का 'जापा' बिगड़ चुका है। विपक्ष को  इस पर 'भारत बंद' करने की कोई जरूरत नहीं है। देश की जनता खुद समझदार है और यदि उसे इस योजना से बाकई हैरानी -परेशानी है या कष्ट हुआ है तो वह ही खुद निपट लेगी। देशके राजनैतिक विपक्ष को इस नोटबंदी पर आइंदा ज्यादा ऊर्जा बर्बाद करने के जरूरत नहीं है। इसके बजाय एकजुट होकर ,प्रधानमंत्री द्वारा लगातार की जा रही संसद की अवमानना पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसके लिए 'बहरत बंद' नहीं बल्कि देशभर में एक दिनका सामूहिक उपवास या भूंख हड़ताल का सर्वसम्मत प्रोग्राम बनाना  चाहिए ! देश की आवाम को संसदीय लोकतंत्र के खतरों से अवगत  कराया जाना चाहिए। वेशक इस 'नोटबंदी' से लगभग सौ निर्दोष जाने गयीं हैं, किन्तु यह भी सच है कि आतंकवाद ,नक्सलवाद , कालेधन पर कुछ तो असर हुआ है। 'अच्छे दिनों' की आशा में देश की जनता तकलीफ  उठाकर भी इन तत्वों को निपटानेके मूडमें है। इसलिए नोटबंदी पर अब ज्यादा तरजीह देनेकी जरूरत नहीं है।

हालाँकि यह खेदजनक है कि  भारत की अधिकांस जनता इन दिनों एक खास 'व्यक्ति' के भरोसे है। जैसे सिकंदर के आक्रमण के समय पौरुष के भरोसे रहे ,जैसे  मुहम्मद बिन कासिम के हमले के वक्त दाहिरसेन के भरोसे रहे जैसे मुहम्मद गौरी के हमले के समय पृथ्वीराज चौहान के भरोसे रहे ,जैसे बाबर के हमले के समय राणा सांगा के भरोसे रहे , जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी की तिजारत के समय सिराजुददौला -मीरकासिम के भरोसे रहे जैसे अंग्रेजों के आक्रमण के समय बहादुशाह जफर के भरोसे रहे ,वैसे ही इन दिनों भारत की आवाम का एक खास हिस्सा नरेद्र मोदी  के भरोसे है। तो दूसरा हिस्सा भी केवल उनकी आलोचना में ही व्यस्त है। नीतियों-कार्यक्रमों पर अभी बहुत कम बात हो रही है। श्रीराम तिवारी !

नोटबंदी के वास्तविक निहतार्थ याने प्रयोजन क्या हैं ?

भारत भूमि पर ऐंसे करोड़ों नर-नारी हैं जो खानदानी  'देशभक्त' हैं,जिनके पुरखों ने देश के लिए कुर्बानियाँ दीं।  किन्तु वे किसी खास नेता या मंत्री के चमचे या अंधभक्त नहीं हैं। ऐसे  वतनपरस्त लोग भी देश की खातिर बैंकों के सामने  कतार में खड़े हैं। यदि रूपये नहीं भी मिले या ATM में रूपये खत्म हो जाते हैं तो वे भी धैर्य नहीं खोते। क्योंकि वे ''अच्छे दिनों के 'जुमलों' पर विश्वास किये जा रहे हैं। वे कह रहे हैं कि बैंक की कतार में तो क्या हम तो देश की सीमाओं पर दुश्मनके टैंकों के सामने  लड़ते हुए  शहीद हो जाने को भी तैयार हैं। इनमें से लगभग एक सैकड़ा  के करीब तो कतार में खड़े-खड़े ही 'शहीद' हो चुके हैं !लेकिन बिडम्बना यह है कि ''हम आह भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम ,वे कत्ल करते हैं तो  चर्चा भी नहीं होती !'' इस विमुद्रीकरण की असफलता पर भी वेशर्म लोग विपक्ष को बदनाम करने की राजनीति कर रहे हैं !

 विमुद्रीकरण की असफलता का एक प्रमुख कारण यह है कि 'राज्य सत्ता' की तुगलकशाही के सामने  निरीह आम जनता तो घुटने टेकने को तैयार है ,किन्तु कालेधन वाला  शातिर बदमास पूँजीपति वर्ग मोदीजी को चिड़ा रहा है।मोदी जी को जाने किसने ज्ञान दे दिया कि 'नोटबंदी' से कालधन सरकारी खजाने में आ जाएगा ?जिनके पास कालाधन है वे नोटबंदी का विरोध बिलकुल नहीं कर रहे, बल्कि वे तो काले को सफेद करने में जुटे हैं।

 जब इनकम टैक्स,ईडी और केंद्र सरकार को मालूम है कि कालाधन  किस-किसके पास है और छापे में भारी रकम पकड़ी भी जा रही है तो जिम्मेदार तत्वों को गिरफ्तार करके उनका 'राजनैतिक 'डीएनए' घोषित क्यों नहीं  किया जाता ? देशकी जनता को भी मालूम होना चाहिए कि आखिर हो क्या रहा है ? और  गुनहगार कौन है ? जो लोग  लाखों-करोड़ों नए -पुराने  नोट बोरे  में भर-भरभरकर इधर-उधर कर रहे हैं या बैंकों तक पहुँचने ही नहीं दे रहे हैं, वे आखिर किस 'वर्ग विशेष' के हैं ?और किस की शह पर  बेख़ौफ़ नए -पुराने नोट 'हवाला'के हवाले किये जा रहे हैं ?वे किस राजनैतिक पार्टी से नाता रखते हैं? बड़े दुर्भाग्य की बात है कि जिनके पास कालाधन है ,उन्हें तो कोई हाथ भी नहीं लगा रहा ! उलटे ये निर्लज्ज अहमक शासक उस निर्धन जनता को ''कैशलेश स्कीम समझा रहे हैं जो आलरेडी 'कैशलेश' है !'  जिन्हें  गरीबी,निर्धनता बेकारी और छटनी की मुसीबत ने घेर रखा है  वे अभागे क्या जाने कि @narendrmodi या एटीएम/पैटीएम किस चिड़िया का नाम है ? वे तो शायद यह भी नहीं जानते कि इस 'दईमारी' नोटबंदी के वास्तविक निहतार्थ याने प्रयोजन क्या हैं ?  

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

आँखे बन्द करके जो प्रेम करे वो *'प्रेमिका'* है।
आँखे खोल के जो प्रेम करे वो *'दोस्त'* है।
आँखे दिखाके जो प्रेम करे वो *'पत्नी'* है।
...
अपनी आँखे बंद होने तक जो प्रेम करे वो *"माँ"* है।
परन्तु आँखों में दिखावा न करते हुये भी जो प्रेम करे वो *"पिता"* है।
 [एफबी से साभार ]
======++++++++========++++++=====

तात्कालिक प्रतिक्रियाऐं


  इस भारत भूमि पर ऐंसे करोड़ों नर-नारी हैं जो खानदानी  'देशभक्त' हैं किन्तु वे किसी खास नेता या मंत्री के चमचे अथवा अंधभक्त नहीं हैं। वे देश की खातिर बैंकों के सामने तो क्या सीमाओं पर भी दुश्मन से लड़ते हुए  मरने को तैयार हैं। केवल सेना की वर्दी पहिंन लेने से ही कोई व्यक्ति देशभक्त नहीं हो जाता। इसी तरह खाकी वर्दी पहिंन लेने मात्र से कोई पुलिस वाला भृष्ट रिश्वतखोर नहीं हो जाता ! खाकी वर्दी में भी देशभक्त और नेक इंसान हो सकते हैं। केवल भगवा वस्त्र धारण करने ,धार्मिक कर्मकांड करने ,दाड़ी रखने ,धर्मग्रन्थ पढ़नेसे कोई आस्तिक नहीं होजाता। बल्कि नंगे बदन खेतों -खलिहानों में पसीना बहाने वाले किसान-मजदूर भले ही गीता- वेद -पुराण ,कुरआन या बाइबिल न पढ़ते हों,वे मंदिर-मस्जिद -गुरुद्वारा न जाते हों ,किन्तु यदि वे अपना व्यवसायिक कर्म ईमानदारी और मेहनत -लगन से करते रहते हैं तो दुनिया में उनसे बड़ा कोई आस्तिक नहीं हो सकता ! 

 विमुद्रीकरण के कारण हुई मौतों को गंभीरता से लेने के बजाय मोदीजी अब जनता से फीड बैक बाबत सवाल पूंछ रहे हैं।[ नरेन्द्र मोदी एप ]पर उनके सवाल भी कुछ इस तरह के होंगे कि बताओ इस नोटबंदी से आप कैसा महसूस कर रहे हैं ? कालेधन को रोकना चाहिए कि नहीं ?  नोटबंदी योजना के कारण आप थोड़ी सी तकलीफ उठाने को तैयार हैं या नहीं ? अपना देश कालेधन और आतंकवाद से पीड़ित है कि नहीं ? नोटबंदी से कश्मीर में  आतंकवादियों  का नाभिनाल कटा कि नहीं ? राजनैतिक विपक्ष और सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले 'देशद्रोही' है कि नहीं ? जो लोग बैंकों के सामने २ हजार रुपयों के लिए कतार में खड़े-खड़े मर गए क्या उसके लिए मैं [नरेदंर मोदी] जिम्मेदार हूँ ?क्या मरने वाले खुद अपनी मौत के लिए जिम्मेदार नहीं थे ? लगभग कुछ इसी तरह के  सवाल टविटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर पूंछे जा रहे हैं। मोदीजी के सवालों का जबाब क्या होगा ? जो लोग मोदीजी के इर्द गिर्द परिक्रमारत हैं ,फेंक अकाउंट वाले हैं ,चमचे हैं ,करछुल हैं और सत्ता की चासनी के स्टेक होल्डर्स हैं उनका जबाब  सौ फीसदी मोदी जी के पक्ष में होगा !क्योंकि उनके लिए मोदीजी का सच ही'अंतिम सत्य ' है। कालाहांडी,अबूझमाड़, कोकराझार ,बस्तर,झाबुआ जैसे आदिवासी क्षेत्रों की भूंखी -नंगी आवाम की ओर से ,देश के करोड़ों सीमान्त किसानों की ओर से और  शहरी क्षेत्र के रोजनदारी मजूरों की ओर से  मोदीजी आप निश्चिन्त रहें ,उनके पास न कालाधन है ,न गोरा धन है ,उनके पास केवल कुपोषित शरीर और भयावह 'दरिद्रता' के लावा कुछ नहीं है। 

यह जग जाहिर है कि मोदी जी केवल 'हाँ' सुनने के आदि हैं ! फिर भी देश हित में अर्थशात्रियों और प्रबुद्ध वर्ग को एकजुट होकर उनसे सवाल करना चाहिये चाहिए कि क्या पीएम का यह तुगलकी आचरण संसदीय लोकतंत्र के अनुकूल है ?क्या  इस नोटबंदी मशक्कत से कालेधन रुपी नाग का बाकई फन कुचला गया है ? क्या केंद्र सरकार के  खजाने में आनन -फानन जमा हुआ रुपया सिर्फ कालाधन था ?यदि 'नहीं 'तो बेकसूरों को बैंक की लाइन में मरने के लिए क्यों छोड़ दिया ? यदि 'हाँ' तो  वह रुपया अब सफेद कैसे हो गया ? देश के ५७ पूँजीपतियों ने बैंकों के लगभग ८५ हजार करोड़ रूपये हजम कर डाले हैं ,इससे कई गुना एनपीए मद में  वर्षों से पड़ा है ,क्या यह कालाधन नहीं हो सकता ? जब नोटबंदी का काम आपने आरबीआई से छीन ही लिया है तो इस पवित्र एनपीए के अंतरण और निस्तारण के लिए आप किसका इन्तजार कर रहे हैं  ? सोना-चांदी खोरों , धातुखोरों, बिल्डरों, खनन- माफियाओं, अम्बानियों ,अडानियों ,जनार्दन रेड्डीयों , विजय माल्याओं ,ललित मोदियों के पास जो पुराने नोटों की शक्ल में  'परमपवित्र' धन था ,वह कहाँ गया ? देश के उच्च मध्यमवर्गीय कालेधन वालों ने ,भृष्ट अफसरों ने  ८-९ नवम्बर की दरम्यानी रात को जो करोडो का सोना खरीदा और बेनामी खातों को लबालब भर दिया ,आप कब के करने जा रहे हैं ? जहाँ तक आपके वोट बैंक का सवाल है वो सुरक्षित है क्योंकि अभी तो आपके गृह बलवान हैं ! 

 नोटबंदी की आपाधापी और उसके कारण हुई मौतों तथा उसकी सफलता पर जब पीएम के निकटतम मंत्रियों और सलाहकारों ने ही सन्देह व्यक्त किया तो उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया कि जनता हमारे साथ है। वेशक आज  भी जनता का बहुमत मोदीजी के साथ  है,मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक से उतपन्न संकट झेलने के वावजूद वह देश को कालेधन और आतंकवाद से मुक्त देखना चाहती है किन्तु जनता को गलतफहमी नहीं पालना चाहिए ,क्योंकि इस तरह के तदर्थ पैबन्दों से आतंवाद को स्थायी रूप से नहीं 'नाथ' सकते। जहाँ तक काले धन  का सवाल है तो वह देश के अडानी-अम्बानी जैसे अमीरों के पास था जोकि उन्होंने बड़ी चतुराई से सफ़ेद कर लिया है। जो लोग बेबकूफ हैं वे ही सरकार के हर झांसे में आ रहे हैं। उनकी बेबकूफ़ी का एक प्रमाण यह है कि वे चुनाव में जिस मंदिर निर्माण के लिए ,धारा ३७० हटाने के लिए और यूनिफार्म सिविल कोड  को लेकर 'संगम शरणम गच्छामि' हुए थे ,उनमें से एक भी मुद्दा हल नहीं हुआ है। जनता को बरगलाने के लिए नए -नए मुद्दे पेश किये जा रहे हैं।

शनिवार, 12 नवंबर 2016

मोदी जी की मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक और उसके निहतार्थ

 प्रधानमंत्री मोदीजी की 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' याने नोटबंदी से देश को नफा नुकसान दोनों हुए हैं। कश्मीर में पत्थरबाजी बन्द हुई , छात्रों ने उधम छोड़कर परिक्षाएं दी। पाकिस्तान में बैठे अंडर वर्ल्ड माफिया डॉन और आतंकवादी सरगना भी कुछ हद तक तनाव में हैं। बंगला देश और नेपाल सीमा की सीमाओं पर भारत विरोधी हवाला बिचोलियेऔर नकली मुद्रा के कारोबारी  हक्के -बक्के हैं। देश के अंदर भी कालेधन वाले और सटोरिये कुछ हद तक काबू में आये हैं। किन्तु यह उपलब्धि अस्थायी ही है ,कुछ ही दिनों में ये अपराधी तत्व फिर से कोई नयी व्यवस्था ईजाद कर ही लेंगे।क्योंकि अपराध जगत के लोग निर्मम, गैरजिम्मेदार, और महास्वार्थी होते हैं।

'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' याने नोटबंदी की वजह से देश के अधिकांस उम्रदराज लोगों को भारी कष्ट हुआ है। नोट बदलने ,लंबी कतार में देर तक खड़े रहने ,बीमारी का इलाज न हो पाने और भूंख से अनेक लोग मरे हैं।  करोड़ों लोग , काम -धाम छोड़कर अपना ही पैसा पाने के लिए घण्टों लाइन में लगे रहे, जो केवल अनुत्पादक मशक्कत ही है। किन्तु इस सबके बावजूद अभी तो पीएम् मोदीजी को राजनैतिक बढ़त ही हासिल हो रही है।
देश के धर्मनिरपेक्ष प्रबुद्ध वर्ग और विपक्ष के लिए यह  चिंतनीय है कि मोदीजी जो भी 'अलोकप्रिय' कदम उठाते हैं ,उनका परम्परागत वोट बैंक उनके साथ ही खड़ा दीखता है।

क्या यह सम्भव है ,कि कांग्रेस ,वामपंथ या कोई और पार्टी की सरकार यदि नोटबंदी करती तो देश की जनता चुपचाप कष्ट उठाकर इस तरह घण्टों लाइन में लगकर ,मर खपकर ,उस पार्टी की जय-जयकारा करती ?यह
कटु सत्य है कि सभी राजनैतिक पार्टियाँ जब सत्ता में होती हैं तो अपना राजनैतिक नफ़ा नुकसान देखकर ही कोई नीतिगत फैसला लेतीं हैं। किन्तु मोदी जैसे विरलों को ही यह सौभाग्य प्राप्त होता है कि कष्ट उठाकर भी आवाम अपने पसन्द के नेता और सरकार का समर्थन जारी रखते हैं । माकपा शासन के दौरान बुद्धदेव भट्टाचार्य ने जब सिंगुर में टाटा उद्द्योग को मंजूरी दी तब ,निसन्देह वह बंगाल के हित का विकास कार्य था ,किन्तु बुद्धदेव सरकार जनाक्रोश और 'अलोकप्रयता' का सामना नहीं कर सकी ! हमें अब तक यह नहीं बताया गया कि सिंगूर वाला वही 'अलोकप्रिय' विकास कार्य  गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री [और अब प्रधानमंत्री] नरेन्द्र मोदी ने कैसे कर दिखाया था ?  मोदीजी के उग्रतम पूँजीवाद और चरम सम्प्रदायवाद के हम कट्टर विरोधी हैं ,किन्तु हमें यह स्वीकारने में कोई हिचक नहीं कि भारतीय राजनीति में केवल उनके दिन ही अच्छे चल रहे हैं।

भारत और चीन के मध्य अक्सर विशाल जनसंख्या एवम सांस्कृतिक उत्थान के बरक्स तुलना की जाती रही है!चूँकि भारत को चीन से लगभग एक साल पहले ही आजादी मिल चुकी थी ,अतः स्वाभाविक रूपसे चीनके सापेक्ष भारत को आर्थिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की दॄष्टि से कुछ आगे ही होना चाहिए था। भारत के प्रबुद्ध जन यदि ईमानदारी और विवेक से  विहङ्गावलोकन करेंगे तो देखेंगे कि -न केवल सैन्यबल ,वैज्ञानिक अनुसन्धान, बल्कि आर्थिक विकास में भी आधुनिक चीनने भारत को मीलों दूर छोड़ दिया है! भारत ने केवल जनसंख्या बृद्धि में ही चीनका अनुशरण किया है। बाकी सभी मामलों में भारत , चीन से बहुत पीछे है। ऐसा क्यों हुआ ? इसकी जाँच पड़ताल  करना मेरा मकसद नहीं है। किन्तु इतना अवश्य रेखांकित करूँगा कि चीन के चरम विकास के दो मुख्य कारण जग प्रसिद्ध है। पहला -कामरेड माओत्सेतुंग के नेतत्व में महान सर्वहारा क्रांति और दूसरा -उस महान क्रांति के रक्षकों द्वारा आर्थिक भृष्टाचारियों को सजाये मौत का वैधानिक प्रावधान ! यदि भारतीय संविधान निर्माताओं ने भी आर्थिक भृष्टाचार की सजा  म्रत्यु दण्ड निर्धारित किया होता तो आज  भारत में इतना भृष्टाचार नहीं होता। कालेधन पर इतना कोहराम नहीं मचा होता और मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक याने 'नोटबंदी' की नौबत ही नहीं आती।  

भारत की चरमराती अर्थव्यवस्था और अधोगामी राजनीतिक -सामाजिक व्यवस्था के कारकों में सबसे प्रमुख तो भारतकी पूँजीवादी अपवित्र राजनैतिक प्रणाली ही है।पूँजीवाद की असीम अनुकम्पा से भारतमें रिश्वतखोरी और कालाधन सर चढ़कर बोल रहा है। कालेधन का एक भयंकर रूप  पाकप्रेरित आतंकवाद भी है। पाकिस्तानकी आईएसआई ने विगत ४० साल से निरन्तर भारत की नकली करेंसी छापकर,भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध छेड़ रखा है। रॉ ने वर्षों पहले ही नेपाल,बांग्लादेश,म्यामार,श्रीलंका और दुबई इत्यादि में -नकली भारतीय करेंसी और हवाला कारोबारियों के ठिकानों की पहचान  कर ली थी ,किन्तु भारत में राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव और पड़ोसी देशों से मित्रवत व्यवहार की आशा में कोई कठोर कदम नहीं उठाया गया। जबकि चीन को भारत जैसी मौद्रिक समस्याओं से नहीं जूझना पड़ा । भारत में आजादी के बादसे लगातर पूँजीवादी पार्टियों का ही शासन रहा है। ये पार्टियाँ खुद कालेधन पर जीवित हैं। केवल वामपंथ को उनकी पूंजीवाद से भिड़ंत के कारण यह कालाधन मयस्सर नहींहै। चूँकि 'संघ परिवार'और भाजपा पूंजीवादके पक्के समर्थक हैं ,उन्होंने चुनावी जीत के लिये जनता से बड़े-बड़े वादे और घोषणाएं की हैं। इसलिए पीएम मोदीजी भी कुछ कर दिखाने के चक्कर में घनचक्कर हो रहे हैं। इसी घनचक्कर में उन्होंने 'नोटबंदी' याने मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक 'की आकस्मिक घोषणा कर दी।

मोदी सरकार ने नवम्बर -२०१६ के दूसरे सप्ताह में  १०००-५०० के करैंसी नोट बंद करने की जो घोषणा की है,उससे देश के गरीबों - ईमानदार मेहनतकश नर -नारियों  को अप्रत्याशित परेशानी हुई है। चूँकि भारत की अधिकांस जनता गाँवों में रहती है और उन्हें  हजार-पांच सौ के नोट बहुत कम नसीब होते हैं। गरीबों के पास सफ़ेद या कालाधन होने का  सवाल ही नहीं उठता। उनकी तो 'रोज कुआ खोदो और फिर पानी पियो' वाली स्थिति  है। 'बचत'की मानसिकता वाले कुछ बड़े किसानों और   बनियों को छोड़कर, बाकी सौ -दो सौ रुपया रोज कमाने वाला गरीब ग्रामीण मजदूर वर्ग इस नोटबंदी से सांसत में है। केंद्र सरकार के इस 'नोटबंदी'फैसले से अब मजदुर -किसानों का कचूमर निकल गया है। जो मजदूर-किसान सौ दो सौ रूपये में भी 'लक्ष्मी 'का निवास देखते रहे हैं उन ग्रामीण गरीबों के लिए यह  'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' आकश कुसुम से अधिक कुछ नहीं है।

सरकार यह क्यों नहीं बताती कि नए नोटों के बदले पुराने नोट बदलने की मशक्कत से सरकारी खजाने को क्या फायदा हुआ है ? आतंकियों और कालेधन वालों की 'अपवित्र' करेंसी चलनसे बाहर करने की कोशिश,सत्ताधारी नेताओं को मानसिक संतोष दे सकता है, किन्तु देश को वास्तव में इस मशक्कत से कोई आमदनी नहीं हुई है। बल्कि देश को अतिरिक्त खर्च का बोझ ही उठाना पड़ रहा है। तमाम प्रचार -प्रसार केवल नकारात्मक शोशेबाजी सावित हुई है।खबरहै कि पाकिस्तानी आतंकियोंने भारतमें अपनी नकली मुद्राको बदलने का कमीशन बढ़ा दिया है। वे नेपाल ,बांग्लादेश की सीमाओं पर सक्रिय हैं। भारत के नए २००० हजार के नोटों की नकल भी उन्होंने शुरूं कर दी है। इधर भारत के कस्बों -शहरों के भृष्ट बाबुओं-अधिकारियों पर  , हवाला कारोबारियों और दलालों पर मोदीजी जी की 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' का कोई असर नहीं पड़ रहा है। क्योंकि अधिकांस काला पैसा बेनामी जमीनों ,बेनामी खातों और सोना -चाँदी हीरा -मोती तथा प्लेटिनम जैसी मूल्यवान धातुओं में लगा है। इस नोटबंदी का भय छोटे व्यापारियों और रेहड़ी वालोंमें अवश्य देखा जा सकता है।मोदी सरकार को  चाहिए कि वास्तविक स्थिति देखकर देश की जनता को कुछ राहत दे और अपने चापलूसों की झूंठी तारीफ़ में आत्महंता न बने।

मौद्रिक नोटबंदी को धता बताते हुए  कालेधन वाले अमीर लोग बेफिक्र हैं। मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान इंदौर के एक हवाला कारोबारी ,रियल स्टेट मालिक और नवधनाड्य बिल्डर के यहाँ शादी व्याह का कार्यक्रम सानंद सम्पन्न हुआ। शादी में ७-८ करोड़ रूपये खर्च होने का अनुमान है। अधिकांस सरकारी विभागों के आला अफसर -विभाग प्रमुख इस 'आनंदकाज' में 'उपहार' सहित हाजिर थे। एक उच्चाधिकारी ने दूसरे से पूंछ ही लिया -यह सब कैसे हुआ ? प्रश्नकर्ता का आशय शायद  यह था कि जब प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं किसी को नहीं छोडूंगा तो इतना कालाधन 'इधर-उधर' कैसे हो गया ? सामने वाले का उत्तर था सब 'सब पैसे की महिमा है, पैसा भगवान् नहीं है ,किन्तु उससे कम भी नहीं है'। देख तो रे नोटों की हालत, क्या हो गयी भगवान् ! ईमानदार तो खड़े कतार में , जुगत भिड़ाते बेईमान ! !

मोदी जी ने सोचा होगा कि  जिस तरह साँप की बाँबी में गर्म तेल या गर्म पानी डालने पर साँप तड़पकर  बाहर भागते हैं उसी तरह  'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' से कालाधन बाहर आ जाएगा, विकास की गति के लिए बाजार उबल पड़ेगा, आतंकवाद की कमर टूट जाएगी,विपक्ष निरुत्तर हो जाएगा और जनता की नजर में वे सुपर हीरो बने रहेंगे।इसके अलावा उन्हें यह भी गुमान रहा होगा कि उनके नेतत्व में भाजपा के वोट बैंक में इजाफा होगा। वेशक मोदी सरकारके इस फैसलेसे पाकिस्तान में आईएसआई द्वारा जारी की गई नकली करेन्सी का बेड़ा गर्क हुआ है। पाकिस्तान पालित कश्मीरी आतंकियों को ,भृष्ट हवाला कारोबारियों को दुबई ,नेपाल,बांग्लादेश यूएई , और पाकिस्तान में बैठे भारत के सनातन शत्रुओं को , आर्थिक दुश्मनों को बहुत जोर का झटका लगा है। तसल्ली की बात यह है कि कालेधन वालों ने भले ही दलालों के मार्फ़त ,बेनामी खातों में रूपये जमा करा दिए हैं या आग के  हवाले कर दिए हैं , किन्तु यह तो तय है कि भृष्टाचारियों का मौत ने  घर देख ही लिया है। यकीनन शैतानों की अम्मा अब ज्यादा दिनों तक खैर नहीं मना पायेगी ! देश के कुछ सत्ताधारी नेता और नेत्रियाँ इस कालेधन में खुद उलझे हुए हैं। इसलिए वे कालेधन के खिलाफ नहीं बोलते बल्कि वे मोदी जी को ही कोस रहे हैं।

  ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को,मायावती की बसपा को ,मुलायम की सपा को और कालेधन पर जिन्दा रहने वाले भृस्टाचारी नेताओं को इस मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक से जोर का झटका लगा है। उन्होंने अपने बचाव के लिए सीपीएम और वामपंथ को साथ में लेकर राष्ट्रपति को ज्ञापन देने की योजना बनाई थी ,किन्तु 'माकपा के महान विद्वान - क्रांतिकारी  नेतत्व ने इस 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध न करने का सही फैसला लिया है। सीपीएम का यह भी मानना है कि मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों और जन समस्याओं को लेकर संघर्ष जारी रहेगा। किन्तु कालेधन के खिलाफ यदि  मोदीजी कुछ करके दिखाते हैं तो उन्हें अवसर दिया जाना चाहिए।  मोदी भक्तों और सत्ता समर्थकों का यह घटिया नजरिया है कि जो भी व्यक्ति या दल  उनके किसी फैसले पर सवाल करेगा उसे जबरन 'देशद्रोही' करार कर दिया जाएगा। तेरह नवम्बर को गोवा के भाषण में  मोदीजी ने भी यही चूक की है। लगता है कि उन्हें और उनके अंध समर्थकों को आँख मूंदकर विपक्ष को गरियाने की बीमारी है। जब शीतकालीन संसद का सत्र  चालू होने ही वाला हो और खुद पीएम महोदय  बिना वजह विपक्ष को कॉलर ऊंची करेंगे या विपक्ष को धमकाएंगे तो देश कैसे चलेगा ?

जब मोदी सरकार के इस फैसले से सेंसेक्स गिरा है ,डालर के सापेक्ष रूपया लुढ़का है ,बैंकों के द्वारपर और पैसों के आभाव में अस्पतालों में लोग मरे हैं ,बैंक कर्मचारी ही अवसाद में हैं तो संसद में और सड़कों पर जनता द्वारा सरकार से सवाल क्यों नहीं किये जाने चाहिए ? सवाल करने वालों को सत्ता के भक्त देशद्रोही क्यों बोल रहे हैं ?
यदि कालेधन से पैसेवाले बदमाशों का बाकई कोई रिस्ता है तो अम्बानी,अडानी,दिलीप सूर्यवंशी जैसे लोगों पर छापे क्यों नहीं डाले गए ? क्या वाकई ये सब दूध के धुले हैं ? मोदी जी द्वारा केवल विपक्ष को ही क्यों धमकाया जा रहा है। गनीमत है कि मोदीजी और अमित शाह ने कभी किसी कम्युनिस्ट पार्टी पर आरोप नहीं लगाया ,किन्तु उनके कुछ मूर्ख - चाटुकार अंधभक्त, लुच्चे- लफंगे लगातार सर्वहारावर्ग की ईमानदार पार्टियों पर ही निशाना साध रहे हैं। जबकि मोदीजी के इस फैसले से कम्युनिस्टों को या उनके राजनैतिक संगठनों को  कोई उज्र नहीं  है ! वास्तव में कालाधन उन राजनैतिक पार्टियों के पास होता है जो पूँजीवाद की समर्थक हैं। भाजपा इन सबमें नंबर वन है। शिवसेना,सपा,वसपा,अकाली,तृणमूल ,एडीएमके,डीएमके, राजद इत्यादि दल कालेधन के प्रमुख तलबगार हैं। पैसे की ताकत पर चुनाव जीतना  इनका मकसद है। जबकि साम्यवादियों का मकसद महज चुनाव जीतना ही नहीं होता ,बल्कि मेहनतकश आवाम के बीच वैज्ञानिक विचारधारा के अनुरूप वैचारिक सोच -चेतना और सर्वहारा क्रांति  उनका सात्विक अभीष्ट है। किसी  कम्युनिस्ट को देशभक्ति का पाठ पढ़ाना मानों सूरज को दिया दिखाना  है। जिस किसी संघी को इस कथन पर संदेह  हो वह जान ले कि चीन,नेपाल ,क्यूबा या भारत का कोई भी कामरेड  अन्तर्राष्टीयतावादी होते हुए भी 'संघियों' से कमतर 'राष्ट्रवादी' नहीं होता ।   

मोदी सरकार ने जो फैसला लिया है वह पहली बार नहीं हुआ है। १९७७ में भी ततकालीन केंद्र सरकार ने कुछ दिनों के लिए यह मौद्रिक कदम उठाया था। तब भी शुरूंआत में कुछ लोग परेशान हुए थे, किन्तु शीघ्र ही उसके बदतर परिणाम भी आये थे। जिन किसानों को गन्ना मिल मालिकों ने पेमेंट नहीं किया उन गन्ना उत्पादकों ने खेतों में ही खड़ी फसल जला डाली थी। हालाँकि सरकारी कोष के आर्थिक संकट में अस्थायी रूप से कुछ सुधार हुआ होगा। इस बार की मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक भी एक  तात्कलिक उपचार ही है जिसका असर ज्यादा समय तक नहीं  रहेगा। मोदी सरकार जब तक अपनी विनाशकारी एवम देशविरोधी आर्थिक नीतियाँ को नहीं बदलती ,जब तक भृष्टाचारियों को चीन की तरह दंड नहीं दिया जाता , तब तक ये कालाधन और उसके रहनुमा सलामत ही रहेंगे। बहुत सम्भावना है कि यह मौद्रिक ब्रह्मास्त्र विफल हो जाएगा। क्योंकि पूंजीवादी -भारत विरोधी शैतानी ताकतें कोई न कोई रास्ता फिर से खोज लेंगी !

मोदी सरकार के इस फैसले में  एक बड़ी चूक यह भी है कि उन्होंने राज्य सरकारों कोभी विश्वास में नहीं लिया। उन्हें तत्सम्बन्धी अग्रिम सूचना ही नहीं दीगयी । भारतराष्ट्र के संघीय ढांचेको अक्षुण रखनेके लिए केंद्र और राज्यों का तालमेल बहुत जरुरी है। वेशक इस फैसले से कुछ और समस्याएं भी दरपेश होंगी ,जनता को कुछ परेशानी भी होगी। किन्तु जब कभी कोई सरकार अलोकप्रिय कदम उठाती है तो विपक्षी पार्टियोंको तत्काल विरोध नहीं करना चाहिए। क्योंकि केंद्र सरकार के किसी फैसले से यदि जनता को कोई परेशानी है,तो उससे उतपन्न जन-असन्तोष  ही विपक्ष के लिए राजनैतिक प्राणवायु सावित होगा ।

 विश्व सभ्यताओं के इतिहास के अध्यन और उन्नीसवीं -वीसवीं शताब्दी में सम्पन्न संसार की विभिन्न क्रांतियों का सांगोपांग अध्यन करने पर हम यह अनुभूत कर सकते हैं कि व्यक्ति ,समाज,या राष्ट्र में किसी तरह के क्रांतिकारी परिवर्तन का होना बहुत कठिन है। इस  सकारात्मक परिवर्तन अर्थात बदलाव को जोकि निसन्देह क्रांतिकारी ही होता है ,उसे सहेजना उससे भी कठिन  होता है। यह जरुरी नहीं कि किसी  क्रांति या बदलाव के विरुद्ध केवल वाह्य तत्व ही जिम्मेदार हों,बल्कि कभी-कभी उस बदलाव या क्रांति की 'मौत' के बीज उसी के गर्भ में छुपे होते हैं। उदाहरण के लिए - 'महान अक्टूबर क्रांति' की विफलता के लिए सिर्फ सीआईए - पेंटागन जैसी विरोधी ताकतें ही जिम्मेदार नहीं हैं ,बल्कि खुद 'सोवियत संघ' की रीति-नीति और उसके नेता भी इस महान क्रांति की हत्या के लिए जिम्मेदार रहे हैं। भारत के स्वाधीनता संग्राम  सेनानियों ने आजाद वतन के लिए उच्चतर मानवीय मूल्य निर्धारित किये थे ,किन्तु आजादी के उपरांत उन मूल्यों को  ध्वस्त करने के लिए कांग्रेसी नेता ही सर्वाधिक जिम्मेदारहैं। ७० साल बाद यदि एनडीए की, गैरकांग्रेसी मोदी सरकार ,देश में 'मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक'जैसे कुछ 'क्रांतिकारी ' सकारात्मक  कदम आगे बढ़ाती है तो मुश्किलें आना स्वाभाविक है। लेकिन यदि पीएम मोदीजी के इरादे नेक हैं तो उन्हें सफलता और शाबशी अवश्य मिलेगी। किन्तु उन्हें याद रखना चाहिए कि उनके किसी अप्रिय परिणाम के लिए अथवा अभीष्ट की असफलता के लिए मोदी जी राजनैतिक 'विपक्ष' को और जनता को दोषी नहीं ठहरा सकते। मोदी जी की मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक और उसके शुभ-लाभ  इतिहास तय करेगा।

वेशक मोदी सरकार के 'आपरेशन मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक' से देश की जनता को बहुत तकलीफ हुई है ,लेकिन इस तकलीफ को अधिकांस लोग इस आशा में चुपचाप झेल रहे हैं कि तथाकथित अच्छे दिन अब जरूर आएंगे !सर्जिकल स्ट्राइक की रात ही मैंने मोदी सरकार के 'मौद्रिक सर्जिल स्ट्राइक' सम्बन्धी पोस्ट में अपने ब्लॉग पर और फेस बुक पर पोस्ट कर तहेदिल से समर्थन किया था। चूँकि मोदी भक्तों  को केवल मोदी जी वाला 'सच' ही पसन्द है। वे केवल वही सच मानते हैं जो उनके नेता दिखा रहे हैं। यदि कोई प्रबुद्ध चिंतक -विचारक मोदी सरकार का तार्किक या सैद्धान्तिक विरोध  करता है तो उसे देशद्रोह से नत्थी अर दिया जाता है। मोदीजी की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वे खुद के अलावा और किसी पर विश्वाश नहीं करते और उनके विवेक' पर सवाल उठाना अपनी तौहीन समझते हैं। १३ नवम्बर को गोवा के भाषण में मोदी जी ने भावुकता में जो कुछ कहा वह एक गंभीर संजीदा  प्रधानमंत्री के लिए कदापि शोभनीय नहीं है।राहुल गाँधी जनता की समस्या को समझने के लिए  बैंक जाकर खुद लाइन में लग गए। उनकी इस कार्य योजना पर देश की जनता ने कोई खास ध्यान नहीं दिया। खुद कांग्रेसियों ने ही कोई संज्ञान नहीं लिया। देश के अधिकांस लोग  राहुल गाँधीको ही सीरियस नहीं ले रहे हैं ,बल्कि यूपी में तो कांग्रेसी कार्यकर्ता राहुल की बजाय प्रियंका को सक्रिय करने की मांग कर रहे हैं !खैर  कांग्रेस की अंदरूनी अंतर्कलह इस आलेख के विमर्श का विषय नहीं है। मुझे  तो राहुल गाँधी का बैंक की कतार में लगना बहुत मामूली और सीधा  मामला लगा था ,किन्तु मोदी जी ने गोवा में जब अपने भाषण में लगभग रोते हुए  राहुल गाँधी पर शब्द भेदी बाण मारे, तब मुझे पता चला कि राहुल गाँधी का यह बैंक जाकर लाइन में लगने वाला मामला बहुत मायने रखता है।राहुल गाँधी का यह 'सत्याग्रही' और प्रतीकात्मक प्रतिरोध मोदी जी को रुला गया यह क्या कम  है?

यह सच है कि आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक की रात से ही कश्मीर में पत्थतरबाजी बंद है। मायावती,मुलायम ममता जैसे नेता और कालेधन वाले हवाला घोटाला अपराधी परेशान हैं। देश के खजाने में अब तक एक लाख करोड़ रुपया जमा हो चूका है। ३१ मार्च तक सम्भव है कि दो लाख करोड़ और आ जाये ,किन्तु यह वास्तविक कालाधन नहीं होगा। स्वामी रामदेव और सुब्रमन्यम स्वामी जैसे 'विद्वानों' ने विगत चुनावों के दरम्यान  २० लाख करोड़ कालेधन का जिक्र किया था। यदि वह गप्प भी हो तब भी १२ लाख करोड़ की पाकिस्तानी करेंसी वाला  फंडा भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। बहुत सम्भव है कि उनके एजेंट बरेली ,मुरादाबाद ,मुबई,हैदराबाद और नेपाल -बांग्लादेश में सक्रीय हों। किन्तु आदरणीय मोदी जी को यह सच स्वीकार करना ही होगा कि अभी तो देश का  ईमानदार आदमी लाइन में लगकर परेशानी ही उठा रहा है। वह ५० दिन क्या पांच साल तक इन्तजार कर लेगा। किन्तु बड़े दुःख की बात है कि कोई भी कालाधन वाला हरामी इस सर्जिकल स्ट्राइक से परेशान नजर नहीं आ रहा । क्योंकि परेशान होने वाला व्यक्ति बेनामी खातों में रुपया इसलिए जमा करा रहा है कि खुद उसके खाते  पहले से ही लबालब हैं। जो लोग हजार-हजार के नोटों की गडडियाँ  हँसते हँसत जला रहे हैं और गंगा मैया में बहा रहे हैं वे  शैतान के पूत अब भी मजे में हैं !


जो लोग  किसी किस्म की वैज्ञानिक विचारधारा से शून्य हैं और केवल एक नेता विशेष की 'भक्ति' में पगलाए हुए हैं उनसे सच सुनने -पढ़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती ! जो नेता सार्थक आलोचना का सम्मान करते हैं और संजीदगी से आरोपों का जबाब देते हैं ,ऐंसे लोग दक्षिणपंथी - पोंगापंथी कतारों में बहुत कम होते हैं ।'संघ परिवार में श्री मोहन भागवत जी ,आडवाणी जी ,सुषमा स्वराज जी जैसे कम ही लोग हैं जो आलोचना का तार्किक उत्तर देने की क्षमता रखते हैं। भाजपा -संघ के अधिकांस नेताओं , मंत्रियों के वयान -अमित शाह ,राममाधव , कैलाश  विजयवर्गीय ,मनोहर पर्रिकर,बीके सिंह ,खट्टर काका इत्यादि की तर्ज पर हमेशा आग लगाऊ ही होते हैं। यह शोध का विषय है कि जब इनके वयानों को  'व्यक्तिगत' करार देकर ठुकरा  दिया जाता है तब उस कथित घटना या मुद्दे का 'संस्थागत' बयान जारी क्यों नहीं किया जाता ? विगत सप्ताह  रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकरने जब कहा कि '' हम पहले परमाणु हमला नहीं करने की नीति पलट सकते हैं और दुश्मन के परमाणु हमले से पहले ही उस पर परमाणु हमला कर सकते हैं' .उनके इस बयान की सभी दूर आलोचना हुई। केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय को भी तत्काल अधिकृत बयान जारी करना पड़ा कि 'यह उनका [मंत्रीजी]का व्यक्तिगत बयान है। दुनिया के इतिहास में शायद यह पहला उदाहरण है, जब किसी मंत्री के बयान का उसी के विभाग को खंडन करना पड़ा।

मई-२०१४ के लोक सभा चुनावों में, एनडीए ,भाजपा और उनके 'प्रस्तवित' पीएम उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदीजी ने ,अपने चुनावी घोषणा पत्र में ,बहुत कुछ लोक लुभावन बातें कही थीं। जिनमें एक प्रमुख मुद्दा कालाधन वापिसी और उस धन को गरीबों के खाते में जमा करने का भी था। दो साल बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उन वादों को बिहार चुनाव में ही 'चुनावी जुमले' बता दिया  था। लेकिन भारत की अधिकांस जनता को अभी भी उम्मीद है कि प्रचण्ड बहुमत से चुनाव जीतने और केंद्र की सत्ता में आने के बाद मोदी जी उन  दुःसाध्य लक्षयों को भूले नहीं होंगे । हालाँकि यह सच है कि कश्मीर की समस्या ,आतंकवाद की समस्या,मेंहगाई-बेकारी की समस्या,रूपये के अवमूल्यन की समस्या और कालेधन की समस्या पर मोदी सरकार कुछ खास नहीं कर पाई है। इस सरकार को 'साम्प्रदायिक' उन्माद बढ़ाने के अलावा कहीं भी सफलता नहीं मिली है। फर्जी प्रोपेगेंडा और चापलूस मीडिया के सहारे सत्ताधारी नेताओं ने देशकी आवामको उम्मीदों के खूँटे से बाँधे रखा है। सत्तासीन नेता बखूबी जानते हैं कि ''जिन्दा कौम पाँच साल इन्तजार नहीं आरती ''!इसलिए जनता का दिल बहलाने के लिए वे कभी देश की सीमा पर 'पीओके में आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक 'और कभी ''मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक 'के मंसूबे पेश करते रहते हैं।

मनोहर पर्रिकर ,बीकेसिंह और अन्य मंत्रियों के अजीबोगरीब ''व्यक्तिगत' बयानों के कारण मोदी सरकार के अधिकांस मंत्री जनता के बीच अपना विश्वाश खोते जा रहे हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये राव वीरेंद्र सिंह , जगदम्बिका पाल और रीता बहुगुणा जैसे नेता और नेत्रियाँ तो पहले से ही जनता में अपना आकर्षण खो चुकेहैं ,  किन्तु पीएम मोदीजी का जादू अभी भी बरकरार है। डोनाल्ड ट्रम्प से लेकर शिंजोआबे तक और पुतिन से लेकर ओबामा तक मोदी जी की धाक है ,किन्तु पाकिस्तान हो या चीन या नेपाल इन देशों को वे कहीं से भी 'नाथ' नहीं पा रहे हैं। जबकि भारत की अधिकांस  समस्यायें इन्ही राष्ट्रों के साथ दरपेश है। चूँकि मोदीजी ने चुनावों में कांग्रेस पर इन समस्याओं के बरक्स आरोप लगाए थे और सत्ता में आने पर इनके निदान का वादा भी किया था ,इसलिए जनता को और विपक्ष को हक़ है कि सरकार से हिसाब मांगे ! केवल मंदिर-मस्जिद  मुद्दे के समाधान का या धारा -३७० हटाये जाने का सवाल नहीं है ,केवल समान सिविल कोड या भृष्टाचार उन्मूलन हेतु लोकपाल की स्थापना  की अनदेखी का सवाल नहीं  है ,बल्कि कालेधन पर हुई प्रगति पर भी जनता को मोदी सरकार से हिसाब लेना बाकी है।  यदि जनता द्वारा भारी बहुमत से चुनी गयी कोई सरकार केवल वादे या जुमले ही परोसती रहेगी और असफल होकर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी  तो उसे जनता के 'महाकोप' का  सामना भी करना होगा। इसीलिये इन मुद्दों पर असफलता से परेशान होकर मोदी जी  वह सब कर रहे हैं जिसकी चुनाव में चर्चा भी नहीं हुई थी।

 कल तक देश और दुनिया के लोग  भारतीय सैन्य बलों द्वारा पीओके में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत ही मांगते रहे जबकि मोदी जी ने जनता का ध्यान दूसरी ओर  मोड़ दिया। लेकिन उन्होंने जिन चोरों को पकड़ने के लिए यह मशक्कत की थी वे धूर्त -चालाक लोग साफ़ बच निकल गए। केवल आम जनता और छोटी मछलियों पर ही सरकार की 'मुद्रा सर्जिकल स्ट्राइक' का कहर जारी है। जिन लोगों को पकड़ने के लिए यह मुद्रा संहार किया गया वे हरामजादे या तो नोट जलाकर देशकी गरीब जनताको चिड़ा रहे हैं या सोना खरीद रहे हैं या बेनामी खातों में रुपया ट्रांसफर कर रहे हैं।इस मौद्रिक आपरेशन से देश की दो-तिहाई आबादी परेशान है , जनता इस धोखे में है कि कालाधन बाहर आएगा ,देश तरक्की करेगा। चूँकि मेरे पास काला और सफ़ेद दोनों ही प्रकार का धन नहीं है ,इसलिए इस मुझे सरकार की इस मौद्रिक कलाबाजी से कोई फर्क नहीं पड़ता ,किन्तु यदि इससे देश को फायदा होता है तो मैं पूरी निष्ठा और प्रतिबध्दता से देश के साथ खड़ा हूँ ,किन्तु यदि इस मशक्कत से कालाधन सफ़ेद हो जाए और जनता का काचमूर निकल जाए तो मुझे हक़ है कि सवाल करूँ !

 यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई और उसके द्वारा प्रशिक्षित आतंकियों ने भारत के विरुद्ध'परोक्ष'युद्ध छेड़ रखा है। जो भारतीय नागरिक इस बाबत नहीं जानते निसन्देह उनकी समझ अपरिपक्व है। जो भारतीय इस षड्यन्त्र के बारे में बखूबी जानता है  किंतु उसकी  शाब्दिक निंदा भी नहीं करता बल्कि उलटे अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता से प्रेरित होकर केवल अपनी ही सरकार का 'विरोध' या इकतरफा  'आलोचना' कर रहे हैं वे 'असत्याचरण' के दोषी हैं। उन्हें मालूम हो कि उनकी आलोचना को  वह जनता भी पसन्द नहीं करती जो १००० -५०० के पुराने नोटों के बन्द होने से हल्कान हो रही है। क्योंकि  सामान्य बुद्धि का व्यक्ति भी जानता है कि कालाधन एवम भृष्ट-आवारा पूँजी न केवल देश को खोखला कर रही है बल्कि 'आम आदमी' के हितों पर उसका कुछ तो  विपरीत असर अवश्य है। मौद्रिक सर्जिकल स्ट्राइक याने ,अंधे पीसें कुत्तें खाएँ ! श्रीराम तिवारी !

बुधवार, 9 नवंबर 2016

यूनाइटेड स्टेट में अबकी बार ट्रम्प सरकार ,,,,,!



 वैसे अमेरिका में कोई भी प्रेजिडेंट बने ,भारत का और भारत के गरीब वर्ग का कोई खास भला नहीं होने वाला। वेशक अमेरिकन डेमोक्रेट्स को भारत के धर्मनिरपेक्ष वुद्धिजीवी लोग कुछ हद तक उदारवादी अवश्य मानते रहे हैं, किन्तु डेमोक्रेट्स हिलेरी पर रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रम्प की जीत से भारतीय जन -मानस  की उम्मीदों को कुछ नयी दिशा जरुर मिलेगी ,क्योंकि मिस्टर ट्रम्पने चुनाव के दरम्यान  व्यक्तिशः भारतीय पीएम मोदी जी और रूस राष्ट्रपति पुतिन की बहुत तारीफ की है। उन्होंने अपने भाषण में  इस्लामिक आतंकवाद की , पाकिस्तान की और चीन की बहुत निंदा भी की है। ट्रम्प ने मोदी जी के नारे की तर्ज पर अपने एक भाषण में  कहा था '' यूनाइटेड स्टेट में अबकी बार ट्रम्प सरकार ''!

 स्वाभाविक है कि डोनाल्ड ट्रम्प की महाविजय से रूस और भारत के नेता  बहुत प्रशन्न होंगे !जबकि चीन तथा पाकिस्तान को बहुत धक्का लगा होगा। पाकिस्तान और उसके द्वारा पालित -पोषित आतंकवाद के लिए आज का दिन बहुत ही भयावह है। क्योंकि इधर मोदी सरकार ने ५०० और एक हजार के नोटो को स्थिगित कर पाकिस्तान द्वारा तैयार १२ लाख करोड़ भारतीय नकली मुद्रा बाधित करदी है। उधर अमेरिकी प्रेजिडेंट चुनाव में पाकिस्तान का 'अमित्र' डोनाल्ड ट्रम्प चुनाव जीत गया है। उम्मीद है कि दोनों शरीफ आज बहुत निराश होंगे ! शायद वे अब सुधर जाएँ और  भारतीय सीमा पर गोलीबारी रोक दें तथा कश्मीर में उत्पात बंद कर दें ! श्रीराम तिवारी !

मंगलवार, 8 नवंबर 2016


जो 'रहीम' ओछो बढे ,तो अति ही इतराय।

प्यादे सें  फर्जी  भयो , टेड़ो  - टेड़ो  जाय।।


जो 'रहीम' गति दीपकी, कुल कपूत गति सोय।

बारे  उजियारो  करे ,  बढे   अंधेरो   होय  ।।


रविवार, 6 नवंबर 2016


 सत्ता की चाटुकारी करने वालों के लिए खुशखबरी - सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से एक नया आदेश आने वाला है। आप चाहें या न चाहें ,किन्तु आप कुछ और देख सकें इसकी सम्भावना ही बहुत कम है। लेकिन इसकी गारन्टी जरूर है कि आप आठों पहर चौबीस घंटे ,३६५ दिन -  ZEE News जरूर देख सकेंगे । यह चैनल आपको जो दिखाएगा उसे ही सरकारी सूचना मानकर चलें ,क्योंकि प्रसार भारती भी इतनी नंगई या बेहयाई पर नहीं उतर  सकता   !



बुधवार, 2 नवंबर 2016

यदि भोपाल जेल से भागे आतंकी निर्दोष थे तो वे जेल तोड़कर भागे क्यों ?


 पूँजीवादी  व्यवस्था से लड़ना क्रांतिकारी कर्तव्य है, साम्प्रदायिकता एवम तानाशाही से लड़ना लोकतंत्र के हित में है और शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाना  देशभक्तिपूर्ण दायित्व है। केंद्र सरकार या राज्य सरकार के गलत कामकाज की आलोचना पूर्णतः जायज है ,और इसलिए मैं स्वयम  मजदूर विरोधी नीतियों की हमेशा निंदा करता हूँ। देश विरोधी नीतियों के खिलाफ जायज संघर्ष हर देशवासीका संवैधानिक अधिकार भी है। किन्तु जिन आतंकियों ने दर्जनों हत्याएं कीं हों,जिन दुर्दान्त आतंकियों ने 'भारत राष्ट्र'के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा हो ,जिन खूनी आतंकियों ने भारतीय संविधान को गालियाँ  दीं  हों ,जिन आतंकियों ने जजों को गालियाँ दीं हों ,जिन आतंकियों ने जेल में ऐयाशी का सामान जुटाया हो और कैमरे के माध्यम से डीआईजी समेत तमाम पुलिस वालों और वकीलों पर थूंकने का दुष्कर्म किया हो ,उन दुष्ट - बदमाशों के खिलाफ तो देश की अमनपसन्द आवाम को एकजुट होना चाहिए। किन्तु बड़े दुर्भाग्य की बात है कि कुछ लोग 'आतंकवादियों' के हश्र पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। यदि भोपाल जेल से भागे आतंकी निर्दोष थे  तो वे जेल तोड़कर भागे क्यों ?  यदि किसी को लगता है कि वे आतंकी नहीं थे ,बल्कि निर्दोष नागरिक थे तो  कोर्ट में तत्सम्बन्धी मुकद्दमा दायर किया जाना चाहिए और संसद में उनकी बेगुनाही के सबूत पेश किये जाना चाहिए । और यदि वे बाकई  देश के दुश्मन थे ,आतंकी थे तो उनके मारे जाने पर मध्यप्रदेश पुलिस को  तहेदिल से शाबासी मिलनी चाहिए ! श्रीराम तिवारी !

प्रति मेरे मन में कोई शृद्धा उनका  ?

 यह बहुश्रुत लघुकथा है कि  एक 'विद्वान' व्यक्ति नाव में बैठकर बरसात में उफनती  हुई नदी पार कर रहा था। चूँकि नदी का 'पाट ' काफी चौड़ा था इसलिए बोरियत दूर करने के लिए 'विद्वान' यात्री ने नाविक अर्थात मांझी याने केवट को  प्रबचन देना शुरू कर दिया। लेकिन मांझी चुपचाप नाव खैने में व्यस्त रहा। उनके प्रबचन का माँझी पर  कोई असर नहीं हुआ। 'विद्वान' व्यक्ति ने केवट की चुप्पी को उसकी निरक्षरता और अज्ञानता से नत्थी करते हुए यह  जताया  कि तुम कितने गंवार हो ?कि तुम्हें आत्मा,परमात्मा और इस जगत के बारे में कोई ज्ञान नहीं है।  तुम महा मूर्ख और काहिल हो ! लेकिन नाविक ने  उस 'विद्वान' के अहंकार जनित दार्शनिक दम्भ  को नजर अंदाज करते हुए केवल नाव के चप्पुओं को चलाने पर  ही ध्यान दिया। नाव जब बीच मझधार में पहुंची तभी जोरदार तूफ़ान उठा और  विकराल भवँर में नाव हिचकोले खाने लगी। केवट ने 'विद्वान' से कहा -तैरना आता है ? और खुद  पानी में कूंदकर तैरते हुए किनारे जा पहुंचा। मांझी ने  पीछे पलटकर देखा कि नाव उल्ट -पुलट कर बही जा रही है और 'विद्वान'  प्रबचनकार सज्जन लहरों में जाने कहाँ बिल गए हैं ।  श्रीराम ! 

लोग अपने देश के सैनिकों की शहादत के लिए इतने लालायित क्यों हैं ?


 भारत में सत्ता के तमाशबीनों को जबसे 'आपरेशन सर्जिकल स्ट्राइक' का झुनझुना मिला है, तभी से यह बुन्देली कहावत चरितार्थ हो रही है कि ''नंगू  कैं गड़ई  भई - बेर-बेर हगन गई ''! हमारे तमाम महापराक्रमी , महातेजस्वी अमित -बलशाली  स्वयम्भू 'राष्ट्रनायक'  भारतीय सेना की शहादत के यशोगान में जुट गए। इस बार की दीपावली पर  सैनिकों के सम्मान में एक अतिरिक्त दिया जलाने का प्रतीकात्मक आह्वान भी किया गया। सैन्य शौर्य गाथाओं का जितना प्रचण्ड कोलाहल भारत में हो रहा है, उतना तो दुनिया के किसी 'सैन्यवादी' मुल्क में भी देखने को नहीं मिलेगा। कभी-कभी यह सवाल भी उठता है कि अंधराष्ट्रवादी लोग अपने ही देश के सैनिकों की शहादत के लिए इतने लालायित क्यों हैं ?

खबर है कि  हरियाणा के एक भूतपूर्व  फौजी ने आत्महत्या कर ली है। अपने मृत्यपूर्व लिखे गए सुसाइड नोट में मृतक फौजी ने भारत सरकार पर  अपने सैनिकों की अवहेलना का आरोप लगाया है। मरने वाले पूर्व सैनिक का नाम रामकिशन ग्रेवाल है। वे हरियाणा के भिवानी जिले अंतर्गत 'बामला'गाँव के रहने वाले थे। अपने सुसाइड नोट में उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया है कि 'वन रेंक वन पेंशन मामले में उनके साथ न्याय नहीं हुआ है ''! उन्होंने आत्म -हत्या से पूर्व दिल्ली में अपनी मांग के लिए धरना भी दिया था ,किन्तु कोई सुनवाई नहीं हुई। क्योंकि देश के वर्तमान शासक वर्ग को केवल 'शहादत' चाहिए ,उससे कम  कुछ नहीं ! जहाँ तक वन रेंक वन पेंशन के लिए की गयीं घोषणाओं का सवाल है ,तो उसका जबाब केंद्र सरकार ही दे सकती है ,क्योंकि उस प्रकरण को लेकर भी अण्णा हजारे से लेकर जनरल बीके सिंह तक और मनोहर पर्रिकर से लेकर खुद पीएम मोदी ने सफलता के दावे पेश किए हैं। यदि कोई फौजी आत्महत्या करके मर गया है तो सवालों  का उठना लाजमी है। श्रीराम तिवारी !  

देशकी जनता गरीबी-भुखमरी और असमानता के खिलाफ खुद उठ खड़ी होगी।


भारत में  जो लोग अपने आपको प्रगतिशील और क्रांतिकारी समझते हैं,जिन्हें यह गुमान है कि वे धर्मनिरपेक्षता   समाजवाद ,लोकतंत्र के तरफदार हैं और जिन्हें अपनी वैज्ञानिक सोच पर नाज है, वे यदि पाकपरस्त आतंकवाद  की निंदा में एक शब्द नहीं कहेंगे ,वे यदि सिमी जैसे खतरनाक अलगाववादी संगठनों की तरफ से आँख मूंदकर केवल सरकार ,सेना या पुलिस पर ही सन्देह करते रहेंगे तो देश -प्रदेश की जनता उनका साथ कभी नहीं देगी।
क्योंकि ये पब्लिक है जो नेताओं से भी ज्यादा कुछ जानती है ! इसीलिये  सजग और बौद्धिक व्यक्ति को 'सापेक्ष सत्य' का सिद्धांत कभी नहीं भूलना चाहिए। और अपनी वैचारिक विश्वशनीयता के लिए उसे 'सत्य के साथ' खड़े  दिखना भी जरुरी  !

सभी देशवासियों को यह याद रखना होगा कि  भारतीय सेना और भारतीय पुलिस की कमजोरियों पर तो हमारी संसद का काबू है। किन्तु सिमी ,अलकायदा ,जैश ऐ मुहम्मद ,आईएसआईएस और कष्मीरी पत्थरबाजों को खाद  पानी कौन दे रहा है? और उनपर काबू  कौन करेगा ? प्रत्येक  प्रगतिशील भारतीय को सोचना होगा कि जब तक भारत पर मजहबी आतंकवाद का खतरा  कायम रहेगा तब तक 'वर्ग संघर्ष' की सम्भावनाएं  भी बहुत क्षीण होंगीं। यदि आतंकवाद और अलगाववाद का खतरा न हो तो देशकी जनता गरीबी-भुखमरी और असमानता के खिलाफ खुद उठ खड़ी होगी। लेकिन अभीतो सारा भारत और समस्त सन्सार इस मजहबी आतंकवाद की गिरफ्त में है। यह भी काबिले गौर है कि भारतमें जबसे मोदी सरकार सत्तामें आई है तबसे मजहबी आतकंवाद का खतरा कुछ ज्यादा  बढ़ गया है। भारत के प्रगतिशील और प्रबुद्ध लोगों को मोदी सरकार की खामियों के खिलाफ जनता को लामबन्द करने का हक है किन्तु उन्हें मजहबी आतंकवाद पर भी हल्ला बोलते रहना चाहिए ! श्रीराम तिवारी !