मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

हारे को हरि नाम है

पूँजी श्रम और ज्ञान है ,
जीने का सब सामान है!
फिर भी सिस्टम नाकाम है ,
जनगण की नींद हराम है ?
प्रजातंत्र की बलिहारी है,
यहाँ हारे को हरि नाम है!
सब द्वंदों से दुराधर्ष है !
भय भूंख महा संग्राम है 

CAA/NRC

वास्तव में CAA पड़ोसी मुल्कों से धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर भगाये गये 2014 तक,गैर मुस्लिमों को शरण देनें का हक देता है!किंतु CAA के खिलाफ उग्र आंदोलन से प्रतीत होता है कि शायद पड़ोसी मुस्लिम देशों के मुसलमान भी वहाँ धार्मिक आधार पर उत्पीड़न के शिकार रहे हैं! इसलिये वे भी भारत में ही बसे रहना चाहते हैं और यही वजह है कि वे CAA का विरोध कर रहे हैं!किंतु सवाल यह है कि इन शरणार्थी मुस्लिमों ने ऐंसा आंदोलन पाकिस्तान या अपने मूल वतन में क्यों नही किया?जब वहाँ अन्याय हुआ तब आवाज क्यों नही उठाई? भारत के शाहीनावाद में धरने पर बैठे लोग यदि बाकई शरणार्थी हैं,तो भारत सरकार को यह मसला UNO में ले जाना चाहिये और जिन देशों से ये मुसलमान आये हैं, उनसे सफाई मांगनी चाहिये!और यदि ये आंदोलनकारी पैदायशी भारतीय हैं तो उन्हें आश्वस्त किया जाए कि CAA से आपका कोई लेना देना नही है!क्योंकि आप घुसपैठिया नही हैं!चूँकि मोदी सरकार इस काम में विफल रही है अत: यह काम देश के धर्मनिर्पेक्ष लोकतांत्रिक विपक्ष को करना चाहिये! याद रहे कि देशभक्ति भाजपा और मोदी सरकार की निजी मिल्कियत नही है!

केंद्र सरकार ने कश्मीर से धारा 370 हटाई, दुनिया भर में उसका विरोध हुआ,किंतु वहाँ पुलिस को गोली नही चलानी पड़ी और न ही कोई मौत हुई!किंतु NRC/CAA के मामले में आंदोलनकारियों से निपटने में केंद्र की मोदी सरकार और प्रांतों की भाजपा सरकारें पूरी तरह विफल रहीं हैं!आगजनी करने वाली दंगाई भीड़ और छात्रों के बीच छुपे आतंकियों को नियंत्रित करने में यूपी की योगी सरकार बुरी तरह विफल रही है!योगी जी ने कोई पूर्व तैयारी नही की,नतीजा यह रहा कि 'खाया पिया चार आना,ग्लास फोड़ा बारह आना!'मोदीजी,अमित शाह और योगी जी ने दंगाई भीड़के हाथों कई निहत्थे पुलिस वालों के सिर फुड़वा दिये!
भारतमें छिपे आस्तीन के अनगिनत विषधर, और पाकिस्तानी मीडिया व आतंकी संगठनों के सुर भारतीय विपक्ष से खूब मिल रहे हैं!ये सभी भ्रम फैला रहे हैं कि CAA/NRC सभी को लाइन में लगवा दिया जाएगा!इस तरह वे वतनपरस्त भारतीय मुसलमानोंको ही भरमा रहे हैं,जबकि यह मामला बाहरी घुसपैठियों और मजहबी आतंकियों को भारत से दूर रखने का है!

सन २०१९ के समापन पर इंदौर में वर्ग विशेष के लोगोंने जगह जगह NRC/CAA के खिलाफ जंगी विरोध प्रदर्शन किया!
किंतु इंदौर का सौभाग्य है कि मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इस आंदोलन को यूपी,बंगाल और तैलांगना की तरह पटरी से नही उतरने दिया!धर्मगुरुओं की सजगता और इंदौर के आला पुलिस अफसरों की सूझबूझ से यहाँ कहीं कोई हिंसा नही हुई !
शांतिपूर्ण ढंग से अपना विरोध जताने के इस लोकतांत्रिक तरीके का हम सम्मान करते हैं! इस संदर्भ में कमलनाथ सरकार की भूमिका सराहनीय रही और पुलिस प्रशासन भी प्रसंशा का पात्र है!
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मोदी सरकार ने BSNL कर्मचारियों को PRC न देकर VRS देकर जबरन घर बिठाने का सत्यानाशी फैसला लिया,कॉंट्रेक्ट वर्कर्स को तो कुछ भी दिये बिना निकाल दिया! इसलिये तमाम कर्मचारी अधिकारी बहुत नाराज हैं!वे 8 जनवरी को हड़ताल भी करने जा रहे हैं!किंतु हमारा भाजपा विरोध या मोदी सरकार विरोध उन पत्थरबाजों और मुल्क में आग लगाने वालों से जुदा है! हम पूंजीवादी आर्थिक नीतियों के कारण,मोदी सरकार की मुखालफत करेंगे,मेंहगाई के खिलाफ लड़ेंगे! किंतु हम पत्थरबाज और बसें जलाने वाले मुल्क के गद्दारों के साथ खड़े नहीं होंगे!

दरसल ये NRC/CAA विरोधी हंगामेबाज, पत्थरबाज और आग लगाने वाले तत्व और ओवैसी जैसे नेता ही संघ और भाजपा के हमदर्द हैं!क्योंकि अल्पसंख्यकों की इन हरकतों से हिंदू वोटों का तेजी से धुर्वीकरण हो रहा है! अत: राज्यों में भले भाजपा स्थानीय कारणों या अपने गठबंधन साथियों की नाराजी से हार जाए,किंतु तमाम बुराइयों के बावजूद केंद्र की सत्ता में पुन: आने से उसे कोई नही रोक सकता!

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यदि CAA /NRC के तहत शरणार्थी हिंदुओं की तरह मुस्लिम शर्णाथियों को भी भारत में शरण लेने की इजाजत दे दी जाए तो दुनिया का हर मुसलमान भारत आना चाहेगा,फिर इतनी विराट आबादी को बसाने की कूबत इस लुटे पिटे राष्ट्र में तो क्या,अमेरिका चीन में भी नही है! इसके अलावा जिस भारत में रहने का शौक सबको है उसी को कुछ कूड़ मगज लोग आग लगाने,बर्बाद करने पर आमादा क्यों हैं! शैतानी मंसूबे किसी से भी छिपे नही हैं!
1947 में जो मुसलमान भारत में रह गये वे ही भारतीय हैं,बाकी घुसपैठियों को यदि हक चाहिये तो पहचान बतानी ही होगी ! यह सच है कि मुस्लिम देशों में सिर्फ हिंदू ही नही बल्कि कुछ खास फिरके के मुसलमान भी सताये जा रहे हैं!सीरिया,ईराक,सूडान,तुर्की, लेबनान,ईरान,जोर्डन आदि में कहीं शिया, कहीं अहमदिया,कहीं यजीदी और कहीं पर कुर्द मुसलमान रोज मारे जा रहे हैं! भारत में इतनी क्षमता नही कि पचास करोड़ पीडित मुसलमानों को यहाँ बसा ले!
यमन,अफगानिस्तान,पाकिस्तान तथा सऊदी अरब सहित सारी दुनिया में मुसलमानों पर घोर अत्याचार हो रहे हैं,भारत और भारतीय मुस्लिमों को चाहिये कि उन मजलूमों की मदद करें !किंतु भारत के मूल निवासी दलित आदिवासी और गरीब मुसलमानों की कीमत पर नही!अपने बलबूते पर अपने घर में शरण दें तो शायद उनकी मदद सार्थक होगी!वतन में आग लगाकर,पत्थर चलाकर शर्णार्थी समस्या हल नही की जा सकती!

रविवार, 29 दिसंबर 2019

धर्मनिपेक्ष लोकतंत्र ही श्रेष्ठतम विकल्प.

आजाद भारत के संविधान निर्माताओं को कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं का ज्ञान था,उन्हें मालूम था कि 'धर्म'-मजहब' के नाम पर सामन्त युगीन इतिहास में किस कदर क्रूर और अमानवीय उदाहरण भरे पड़े हैं। वे इतने वीभत्स हैं कि उनका वर्णन करना भी सम्भव नहीं ! धार्मिक -मजहबी उन्माद प्रेरित अन्याय और उससे रक्तरंजित धरा के चिन्ह विश्व के अनेक हिस्सों में अब भी मौजूद हैं !
अपने राज्य सुख वैभव की रक्षा के लिए न केवल अपने बंधु -बांधवों को बल्कि निरीह मेहनतकश जनता को भी 'काल का ग्रास' बनाया जाता रहा है । कहीं 'दींन की रक्षा के नाम पर, कहीं 'धर्म रक्षा' के नाम पर, कहीं गौ,ब्राह्मण और धरती की रक्षा के नाम पर 'अंधश्रद्धा' का पाखण्डपूर्ण प्रदर्शन किया जाता रहा है। यह नग्न सत्य है कि यह सारा धतकरम जनता के मन में 'आस्तिकता' का भय पैदा करके ही किया जाता रहा है।यह दुष्कर्म तथाकथित नवयुग या वेज्ञानिकता के युग में भी जारी है!
इस क्रूर इतिहास से सबक सीखकर भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारतको एक विशुद्ध धर्मनिरपेक्ष -सर्वप्रभुत्वसम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया, यह भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति है।हमें हमेशा बाबा साहिब अम्बेडकर और ततकालीन भारतीय नेतत्व का अवदान याद रखना चाहिए ! उनका शुक्रिया अदा करना चाहिए। भारत के राजनैतिक स्वरूप में धर्मनिपेक्ष लोकतंत्र ही श्रेष्ठतम विकल्प है।

*असली लुटेरा कौन?*

एक बैंक लूट के दौरान लुटेरों के ‍मुखिया ने बैंककर्मियों को चेतावनी देते हुए कहा-
यह पैसा देश का है और जान आपकी....। सब लोग लेट जाओ तुरंत... क्विक और सभी बिना कुछ कहे लेट गए....।
(मुखिया बोला - इसे कहते हैं- माइंड चेंजिंग कॉन्सेप्ट)
लुटेरों का एक साथी जो कि एमबीए किए हुआ था, उसने कहा- पैसे गिन लें...?
मुखिया ने कहा बेवकूफ, वह तो टीवी न्यूज में पता चल ही जाएगा।
(मुखिया - इसे कहते हैं - एक्सपीरियंस)
लुटेरे 20 लाख रुपए लेकर भाग गए।
असिस्टेंट मैनेजर ने कहा- पुलिस में एफआईआर दर्ज करा देते हैं...
मैनेजर ने कहा- 10 लाख और निकाल लो और हमने जो 50 लाख का गबन किया है वो भी उस लूट में जोड़ दो,काश हर महीने ऐंसी डकैती होती रहे!
(मैनेजर ने कहा- इसे कहते हैं - अपॉर्चन्यूटी
टीवी पर खबर आई- बैंक से 80 लाख रुपए लूटे गए...।
लुटेरों ने कई बार गिने..., 20 लाख ही थे...। फिर उनको समझ में आया कि इतनी जोखिम के बाद उनको 20 लाख ही मिले, जबकि बैंक मैनेजर ने 60 लाख बैठे-बैठे ही बना लिए...।
अब बताओ, असली लुटेरा कौन... ?

दगाबाज को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं!

किसी￰ बाजार में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था.
उसके पास एक बड़ी सी जाली वाली बक्से में बहुत सारे तीतर थे,और एक छोटे से बक्से में सिर्फ एक तीतर.
किसी ग्राहक ने उससे पूछा एक तीतर कितने का है?
तो उसने जवाब दिया, एक तीतर की कीमत 40 रूपये है!
ग्राहक ने दूसरे बक्से में जो तन्हा तीतर था उसकी कीमत पूछी तो तीतर वाले ने जवाब दिया,अव्वल तो मैं इसे बेचना ही नहीं चाहूंगा, लेकिन अगर आप लेने की जिद करोगे तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी.
ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा, इसकी कीमत 500 रु.क्यों?
इस पर तीतर वाले का जवाब था, ये मेरा अपना पालतू तीतर है! और दूसरे तीतरो को जाल में फसाने का काम करता है और दूसरे सभी फंसे हुए तीतर है! ये चीख पुकार करके दूसरे तीतरो को बुलाता है और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे एक जगह जमा हो जाते है और फिर मैं आसानी से शिकार कर पाता हूँ! इसके बाद फंसाने वाले तीतर को उसके मन पसंद की खुराक दे देता हूँ, जिससे ये खुश हो जाता है बस इस वजह से इसकी कीमत ज्यादा है!
बाजार में एक समझदार आदमी ने उस तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर की सरे बाजार गर्दन मरोड़ दी!
किसी ने पूछा, आपने ऐसा क्यों किया?
उसका जवाब था, ऐसे दगाबाज को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं जो अपने मुनाफे के लिए अपने समाज को फंसाने का काम करे और अपने ही लोगो को धोखा देता है...!
समझो और समझाओ !

ये आग, ये धुआं, चीत्कार करुण क्रंदन क्यों?

नेताजी मरणोपरांत जब स्वर्ग को सिधारे,
शहीदों ने उनको प्रेम से गले लगा लिया।
पूछी कुशलक्षेम अमन की अपने वतन की,
कहो वत्स-स्विस बैंक में कितना जमा किया?
ये आग, ये धुआं, चीत्कार करुण क्रंदन क्यों,
इन निर्धनों का झोपड़ा, किसने जला दिया?
वेदना से भीगी पलकें, शर्म से झुकी गर्दन,
अपराध बोध पीड़ित ने, सच-सच बता दिया।
वंदनीय हे अमर शहीदों ! आपके अपनों ने ही
आपकी शहादत का ये घटिया सिला दिया !

संस्कार

अंग्रेज आये सिगरेट पी ओर आधी पीकर फेँक दी, उस फेँकी हुई झूठी सिगरेट को किसी घोंचू टाइप इंडियन लङके ने उठाया ओर एक कश मारा और बहुत हल्कापन महसूस किया!और दो चार कश और मार लिये,और बङा गर्व करने लगा कि आज तो क्वालिटी वाली धूम्रपान का सेवन किया! ऐसे ऐसे वो घोचुँ ( कूल ड्युड ) 'अँधो मे काँणा राजा' हो गया !फिर उसने घोंचुओं की एक जमात इकट्ठी कर ली,जो ऐसे ही अँग्रेजो की झूठन चाटती फिरती रही!धीरे धीरे यह जमात समस्त भारत में फैल गई, अँग्रेजों की सिगरेट धङल्ले से भारत मे बिकने लगी।
अंग्रेजों  का नया साल 31 दिसंबर की मध्यरात्रि के फौरन बाद आता है,जबकि भारतीय नव बर्ष चैत्र माह से प्रारंभ होता। यही प्रकृति  के अनुकूल भी है।
अब यदि दूसरों की खुशी में तुम्हारी खुशी है और दूसरों का जश्न आपका जश्न है तो अंग्रेजी नव वर्ष मनाओ! खूब पियो दारू, मनाओ हैप्पी न्यू ईयर,फिर न कहना कि बुढ़ापे में बच्चो ने घर से निकाल दिया। संस्कार नही दोगे,, तो हालत बहुत बुरी होगी

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

मैं भी फेल हो जाऊँगी.

करीब के गाँव में दो सहेलियाँ 12 वीं की परीक्षा देने जा रही हैं और चलते हुए आपस में बातें कर रही हैं।*👇
*शामली* : गामली, तू तो बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं करती है।
*गामली* : छोड़ न यार! पास हुए तो फिर 13, 14, 15 वीं की परीक्षा दो और फिर नौकरी वाला पति।
*शामली* : तो ? बढ़िया तो है।
*गामली* : क्या बढ़िया है ? 12 घंटों की नौकरी और तनख्वाह 25-30 हजार। फिर मुंबई-पूना जैसे बड़े शहरों में रहने जाओ। वहाँ किराए का घर होगा जिसमें आधी तनख्वाह चली जाएगी। फिर अपना खुदका घर चाहिए तो लोन लेकर 4-5 मंजिल ऊपर घर लो और एक गुफा जैसे बंद घर में रहो। लोन चुकाने में 15-20 साल लगेंगे और बड़ी किल्लत में गृहस्थी चलेगी। न त्यौहारों में छुट्टी न गर्मी में। सदा बीमारी का घर। स्वस्थ रहना हो तो ऑर्गेनिक के नाम पर 3-4 गुना कीमत देकर सामान खरीदो। और फाइनली वो नौकरी करने वाला नौकर ही तो होगा। तू सारा जोड़ घटाना गुणा भाग करले, तेरी समझ में आ जाएगा।
और अगर परीक्षा में फेल हो गई तो किसी खेती किसानी वाले किसान से ब्याह दी जाउँगी। जीवन थोड़ा तकलीफदेह तो होगा लेकिन वो खुद का सच्चा मालिक होगा और मैं होऊँगी मालकिन। पैसे कम ज्यादा होंगे लेकिन सारे अपने होंगे, कोई टेक्स का लफड़ा नहीं। सारा कुछ ऑर्गेनिक उपजाएँगे और वही खाएँगे। बीमारी की चिंता फिक्र ही नहीं, और सबसे बड़ी बात कि, पति 24 घंटे अपने साथ ही रहेगा।
और सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात " हमारा सारा लोन सरकार माफ कर देगी"।
*शामली* : मैं भी फेल ही हो जाऊँगी रे।

मेरा कोई दोस्त बूढ़ा नहीं हुआ


सच्चाई में ढ़ले हैं,किंतु अब भी मनचले हैं!
हौसले हैं बुलंदियों पर,वे पर्वत से खड़े हैं !!
ना दर्द कोई दिलमें छा जाऐं वो महफिल में!
सबके काम आयें वो जो भी हो मुश्किल में!!
नहीं कोई है घमंडी,ना ही पैसे का ग़ुरूर !
यारों के काम आयें ,बस ये ही इक सुरुर!!
इक दूसरे पे जान छिड़कते हैं सब के सब !
मिलते ही ये कहेंगे,अबे,अब मिलेगा कब !!
मस्ती में जी रहे हैं , नहीं कोई भी बेकाबू !
बालों में डाई सबके ,काॅलर पे टाई सबके !!
लाली ये दोस्ती की चेहरे पे छाई सबके !
बच्चे हैं बराबर के पर सब ही सयाने हैं !!
अपने वतन और कौम के ये सब दीवाने हैं !
मेरा कोई  दोस्त बूढ़ा नही हुआ.

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

भारत का असमान विकास

१५ अगस्त १९४७ से पहले भारत गुलाम था. यह तो सभी जानते हैं. किन्तु  कब से गुलाम था? कितना हिस्सा गुलाम था ?और कौन कौन कम्युनिटी कितनी कितनी गुलाम थी?गुलामी का दुष्प्रभाव किन किन समाजों पर,कितना कम या जयादा पड़ा? इन सवालों के जबाब खोजे  बिना न तो भारत का असली इतिहास लिखा जा सकता है और न ही युगों युगों से दमित जातियों,समाजों को न्याय दिलाया जा सकता है। और न ही कोई क्रांति हो सकती है। आजादी के बाद उपरोक्त सवालों की अनदेखी करने और तमाम अंग्रेजी कानूनों को अडॉप्ट करके,उसे भारतीय संविधान का नाम देने से  भारतीय समाज पहले से भी जयादा जातीयतावादी और साम्प्रदायिक बनता चला गया। आजादी के ७०-७२ साल तक भ्रांतियाँ  फैलाकर दवंग और ताकत वर्ग ने रूप बदल बदल कर भारतभूमि  पर शासन किया है.इस दौर में अमीर वर्ग और ज्यादा अमीर हुआ है एवं कमजोर वर्ग और ज्यादा कमजोर हुआ है। आजादी के बाद वाले दौर में भारत का जितना वैज्ञानिक,आर्थिक और राष्ट्रीय विकास हुआ है, उसमें उन व्यक्तियों,समुदायों और क्षेत्रों को बहुत कम मिला,जिन्हें इसकी सख्त जरूरत थी. इस असमान  विकास के लिए भारत का सत्ताधारी नेतत्व ,ब्यूरोक्रेसी और इंटेलेक्चुअल्स भी जिम्मेदार हैं,जिन्होने न तो गुलामी के दौर का वास्तविक इतिहास  समझा और न ही सैकड़ों सालों की गुलामी से शोषित पीड़ित समाजों का आकलन किया.उन्होंने सिर्फ उतना ही किया जितना वोट कबाड़ने के लिए जरुरी था या  जितना अंग्रेजों ने सिखाया पढ़ाया था या जितना इस भ्र्स्ट सिस्टममें  कमीशनखोरी और रिश्वतखोरी के बाद हो सका।  

सोमवार, 23 दिसंबर 2019

चुनाव में वही जीतेंगे-जिनका अहिंसा और भारतीयता में यकीन है!

जिस तरह संघ परिवार ने 2014 से पहले अन्ना हजारे,स्वामी रामदेव और अन्य गुरू घंटालों को अनशन का ड्रामा करने के लिये यूपीए की सुपारी दी थी,उसी तरह आगामी चुनाव तक विपक्ष को भी ऐंसा ही कोई शांति पूर्ण अहिंसक अनशन आंदोलन का ड्रामा करते रहना चाहिये!विपक्ष को समझना चाहिये कि किसी गरीब का ऑटो जलाने और पढ़ने वाले बच्चों के हाथ में पत्थर पकड़ाने से सत्ता नही मिलने वाली,आगामी चुनाव में वही जीतेंगे-जिनका अहिंसा और भारतीयता में यकीन है!

रविवार, 22 दिसंबर 2019

*शहीदों का स्थाई पता:-*


शस्य श्यामल धरा पर,
पुलकित द्रुमदल झूमते देवदार,
दहकते सूरज की तपन से,
जहां होती हो आक्रांत-
कोमल नवजात कोंपले!
धूल धूसरित धरतीपुत्रों का लहू,
अम्रततुल्य आषाढ़ के मेघ-
की नाईं रिमझिम बरसता हो,
जिन वादियों में और सुनाई दे,
रणभेरी जहां अन्याय के प्रतिकार की
तुम आ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा.......!
देखो जहां भीषण नरसंहार,
सुनाई दे मर्मान्तक चीत्कार-
जलियांवाला बाग का जहां पर!
और शहीदों के सहोदर,
चूमते हों फांसी के तख्ते को,
प्रत्याशा में आज़ादी की-
ज्योति जलती रही निरंतर,
जिनके तेजोमय प्रदीप्त ललाट के समक्ष
-करते हों नमन बंदीजन खग वृंद,
देते धरा पर मातृभूमि को अर्ध्य,
और नित्य होता बेणीसंहार,
निर्मम जहां पर-
कारगिल,द्रास,बटालिक और हिमालय के-
उतंगश्रंग पर ,
तुमआ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा.......!
सप्तसिंधू तटबंध तोड़कर
मिला दे प्रशांत को हिंद महासागर से,
सदियों के अविगलित हिमनद,
उद्वेलित,धरा पर दूषित लहू,निस्तेज शिरायें,
अनवरत करतीं प्रक्षालन विचार सरिताएं,
नेतृत्व राष्ट्र का और विश्व का,
महाद्वीप प्रलयगत प्रतिपल ,
पक्षी नीड़ में,
मनुज भीड़ में,
हो आतप-संताप दोष दुखदारुन
नैतिकता पतित पाताल गत,
मानव मति, गति, क्षतविक्षतहत,
हो मनुज मनुज में नैतिकता विस्तार,
बल पौरुष निरहंकार,
करे जगत जहां सत्य की जय-जयकार
तुमआ जाना -
मैं वहीं मिलूंगा......!
आल्पस से हिमालय तक,
वोल्गा से गंगा तक,
समरकंद से सिंधु के मुहाने तक ,
हड़प्पा मोहन जोदड़ो से लेकर,
आधुनिक संचार क्रांति इंटरनेट तक,
उन्नत तकनीकि युग को विजित कर,
ज़मींदोज़ हुये संपूर्ण युगकालखंड,
पतनशील सभ्यताओं को करता स्वाहा,
निहारता खड़ा इक्कीसवीं सदी के-
उदगम पर,
भयभीत क्रूरकाल नरभक्षी यायावर,
भौतिक सभ्यताओं का सनातन शत्रू,
चले आना दाहिर की चिता पर,
आनंदपुर साहिब-अमृतसर-
की पावन माटी और अटक से कटक तक,
दिखे शक्ति जहां शहादत का अखण्ड तेज,
तुम आ जाना -
मैं वहीं मिलूंगा।
चले आना पानीपत-
वाया कुरूक्षेत्र!
सूंघते हुए लहलहाते खेतों की,
लाल माटी को चूमकर,
चले आना प्रागज्योतिषपुर,
राजपुताना मथुरा,कन्नौज,
प्रयाग-ग्वालियर-कालिंजर
और चले आना तक्षशिला,
विक्रमशिला देवगिरि हम्पी,
फेंकना एक-एक पत्थर वहां-
पुराने कुओं-बावड़ियों में,
सुनाई देगी तुम्हें तलहटी से,
खनकती चीखें इतिहास की!
देखना मर्घट की ज्वाला,
बर्बर जंगखोरों द्वारा धधकती आग में, चीखती ललनाओं की!
करुण क्रन्दन करती चिर उदात्त आहें,
मध्ययुगीन बर्बर सामंतों द्वारा,
पददलित विचार अभिव्यक्ति,
हवा पानी प्रकाश-हताश दिखे जहां पर ,
सुनाई दे बोधि-वृक्ष तले,
महास्थिर बोधिसत्व तथागत की
करुणामयी पुकार,
अप्प दीपो भव,
तुम आ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा........!
नवागन्तुक वैश्विक चुनौतियां,
दुश्चिंतायें, चाहतें नई-नई!
नये नक्शे, नये नाम, नई सरहदें,
नई तलाश-तलब-तरंगे!
काल के गर्भ में धधकती युध्दाग्नि,
डूब जाये-मानवता उत्तंगश्रृंग
हो जाये मानव निपट निरीह नितांत!
रक्ताम्भरा विवर्ण मुख वसुन्धरा क्लांत!
करुणामयी आस लिये,
शांति कपोतों को निहारती हो-
अपलक जहां आशान्वित नेत्रों से,
तुम आ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा........!
दब जाओ पाप के बोझ तले जब,
चुक जायें तुम्हारे भौतिक संसाधन,
अमानवीय जीवन के!
आतंक-हिंसा-छल-छद्म-स्वार्थ,
आकंठ डूबा पाप पंक में कोई,
सुनना चाहे यदि अपनी आत्मा की-
चीख-युगान्तकारी कराह!
और लगे यदि देवत्व की प्यास,
प्रेम की भूख,
चले आना स्वाभिमान की हवा में,
देखना आज़ादी का प्रकाश!
उतार फेंकना जुआ शोषण का,
मिले स्वतंत्रता-समानता-बंधुता जहां पर
और शील सौजन्य करुणा की छांव,
तुम आ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा........!

"अंधे पीसें कुत्ते खाएं"

शोषण की व्यवस्था के खिलाफ और अपनी बेहतरी के लिये लाल झंडा हाथों में लेकर भारत के मजदूर किसान दशकों से लगातार संगठित संघर्ष करते चले आ रहे हैं! किंतु स्थिति पहले से बदतर होती चली जा रही है!उसकी कई वजह हो सकती हैं, कितु एक खास वजह यह है कि 'जब कांग्रेस सत्ता में होती है,तब नीतियों को लेकर वामपंथ संघर्ष करता है और चुनाव में भाजपा जीत जाती है!इसी तरह जब भाजपा सत्ता में होती है, तब वामपंथ अल्पसंख्यकों को खुश करने के लि़ये हिंदु मान्यताओं और भारतीयता के खिलाफ लगातार संघर्ष करता रहता है!और बैठे ठाले सत्ता फिर कांग्रेस या पूँजीवादी क्षेत्रिय दलों को फोकट में मिल जाती है!एमपी,राजस्थान,छ.ग.,महाराष्ट्र के बाद अब झारखंड में और फिर बंगाल में भी यही होने जा रहा है! यही परम सत्य है!
"अंधे पीसें कुत्ते खाएं"

Muslims are not happy in the World.

Our Muslims Brothers & Sisters are not happy. I actually feel very sad for this as a human being.
They’re not happy in Gaza
They're not happy in Egypt
They're not happy in Libya
They're not happy in Morocco
They're not happy in Iran
They're not happy in IraqThey're not happy in Yemen
They're not happy in Afghanistan
They're not happy in Pakistan
They're not happy in Syria
They're not happy in Lebanon
*************************************
Lets Find The reason Why..So, where are they happy?
They're happy in Australia
They're happy in England
They're happy in France
They're happy in Italy
They're happy in Germany
They're happy in Sweden
They're happy in the USA & Canada
They're happy in INDIAThey're happy in almost every country that is not
Islamic! And who do they blame?
Not Islam.
Not their leadership..
Not themselves.
THEY BLAME THE COUNTRIES THEY ARE HAPPY IN!
And
they want to change the countries they're happy in, to be like the countries they came from where they were unhappy.
***
Buddhists living with Hindus = No Problem
Hindus living with Christians = No Problem
Christians living with Shintos = No ProblemShintos living with Confucians = No Problem
Confusians living with Bahai's = No Problem
Bahai's living with Jews = No Problem
Jews living with Atheists = No Problem
Atheists living with Buddhists = No Problem
Buddhists living with Sikhs = No ProblemSikhs living with Hindus = No Problem
Hindus living with Bahai's = No Problem
Bahai's living with Christians = No Problem
Christians living with Jews = No Problem
Jews living with Buddhists = No Problem
Buddhists living with Shintos = No Problem.
AndNow..
Muslims living with Hindus = Problem
Muslims living with Buddhists = Problem
Muslims living with Christians = Problem
Muslims living with Jews = Problem
Muslims living with Sikhs = Problem
Muslims living with Bahai's = Problem
Muslims living with Shintos = Problem
Andi
Muslims living with Atheists = Problem
MUSLIMS LIVING WITH MUSLIMS = BIG
PROBLEM !
Mind You ! :
Until today no one has told you the truth that ????
There are 3 lakh mosques in India.
No other country in the world has these many mosques.
And alsoThere are only 24 Churches in Washington.
71 Churches in London.
There are 68 Churches in the city of Milan in Italy.
While in Delhi alone there are 271 churches.
And you call a Hindu communal.
Further I have not come across an Indian Muslim opposing ISIS.
But we have millions of Hindus who are opposing views of RSS.
I have not seen any Muslim holding party on Holi or Diwali festivals for Hindus, but have seen Hindus holding iftar for Muslims during Ramadan.
AlsoI saw Indian flags being burnt in Kashmir by Indian Muslims.
But never saw an Indian Muslim burning a Pakistan flag.
I have seen Hindus wearing topis & visiting Mazars.
But I have neither seen nor heard an Indian Muslim applying tilak on his forehead and visiting temples
This is called Hindu tolerance and respect for other religious community.
साभार वॉट्सएप

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

NDTVऔर रवीशकुमार

10-12 साल पुरानी बात है,सुबह सुबह जब मैं अखवार पढ़ रहा था,तभी अचानक दिल्ली से मेरे पुत्र डॉ. प्रवीण तिवारी (जर्नलिस्ट एवं टीवी एंकर) का फोन आया!
'बधाई हो पापा'-उधर से आवाज आई!
मैने सोचा कि शायद प्रवीण ने प्रकाशन के लिये विलंबित मेरी पांडुलिपि प्रकाशित करवा दी हो या उसकी ही कोई नयी पुस्तक प्रकाशित हुई हो!अत: खुश होते हुए :-
मैने उत्तर दिया-अरे वाह! शाबाश!!!
किंतु जब प्रवीण ने बताया कि किसी राष्ट्रीय अखवार के फ्रंट पेज पर बोल्ड कॉलम में आपकी भूरि भूरि प्रशंसा की गई है,और लिखने वाले हैं -रवीशकुमार!
तो मैने कहा:- 'मैंने रवीशकुमार का नाम तो कहीं पढ़ा सुना है किंतु निश्चय ही हम एक दूसरे को कतई नही जानते!देश के ख्यात अखवार में रवीश ने जिनकी तारीफ लिखी है,वे श्रीराम तिवारी कोई और होंगे!क्योंकि मेरा उस नामी गिरामी अखवार या श्रीमान रवीशकुमार से कोई लेना देना नही!'
प्रवीण ने बताया :- 'पापा मैने अखवार वालों और रवीशकुमार से भी तफशीश कर ली है, जिसके बारे में ही लिखा गया है, वह आप ही हैं! चूँकि आप नियमित क्रांतिकारी ब्लागर हैं और रवीश कुमार टीवी एंकर के अलावा उस अखवार के फ्रीलाँस कॉल्मनिस्ट भी हैं,चूँकि उनकी विचारधारा भी प्रगतिशील -वामपंथी है,अत: उन्होंने आपके ब्लॉग-: www.janwadi.blogspot.com में कई आर्टिकल पढ़े हैं,और वे आपके मुरीद हो गये हैं'
मैने खुश होकर रवीश को धन्यवाद दिया और बेटे प्रवीण से कहा कि अखवार में प्रकाशित 'प्रशंसा पत्र' की कटिंग भेज दे!
बेटे ने कटिंग भेज दी और लगे हाथ उसकी स्कैन कापी भी मेरे ब्लॉग के मुखपृष्ठ पर जड़ दी!जो अबएक ऐतिहासिक दस्तावेज जैसी है!
उसके उपराँत मेरे तीन पसंदीदा एंकर हो गये- बेटा प्रवीण,पुत्रबधू अर्चना और रवीश!समय निकालकर मैं रवीशकुमार को टीवी पर ज्यादा देखने सुनने लगा!
किंतु 2014 में संपन्न भारत की भगवा प्रतिक्रांति के बाद 'संघ'द्वारा NDTV और रवीशकुमार के साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाने लगा!इंदौर के भगवा क्षेत्रों के और खास तौर से मैं जिस 2- नंबर क्षेत्र में रहता हूँ,उस एरिया में कोई भी केबल ऑपरेटर NDTV चैनल चलाने को तैयार नही था! हमारे सतत प्रयास से जैसे तैसे एक केबल ऑपरेटर महोदय बड़ी मिन्नत खुशामद के बाद NDTV चलाने को तैयार भी हुए! धीरे धीरे मेरे इर्द गिर्द पास पड़ोस के नर नारी NDTV और रवीश के मुरीद भी बन गये!
किंतु जैसा कि सुविदित है कि अति हर चीज की बुरी होती है,वैसा ही NDTV और रवीश के साथ हुआ! धारा-370 और CAB/NRC के संदर्भ में उनके एकपक्षीय अतिवादी रवैये से तमाम लोगों का मोह भंग हो गया है और वे शिकायत भी करने लगे हैं!
"कि NDTV और रवीश तो विपक्ष से भी ज्यादा विरोध की राजनीति कर रहे हैं! सारे चैनल एक तरफ हैं जो केवल सरकार की भाषा बोलते हैं और NDTV दूसरी तरफ है, जो केवल सरकार के विरोध की भाषा बोलता है!जन मानस का विवेक कहता है कि 'लोकतंत्र में पत्रकारों और टीवी चैनल्स को तटस्थ भूमिका अदा करना चािये!"

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

गद्दारों की तरफदारी

हम मानते हैं कि मोदी सरकार मजदूर विरोधी है! किंतु जब कुछ लोग भारत की बर्बादी के नारे लगाएं, राष्ट्री़य संपत्ति को आग लगाएं,तो हमें मोदी विरोध की खुमारी से बाहर आकर देश के दुश्मनों को पहचानना चाहिये!मोदी विरोध में हमारा जमीर इतना नही गिरना चाहिये कि गद्दारों की तरफदारी करने लग जाएं! देश में हो रही आगजनी और हिंसा की घटनाओं के लिये जिम्मेदार बदमास तत्वों को उजागर करने के बजाय कुछ कूड़मगज नर नारी उसी डाली को काट रहे हैं,जिस पर बैठे हैं!आग लगाने और हिंसा फैलाने वाले गुमराह छात्रों को बचाने के लिये कुछ लोग सोशल मीडिया पर केवल पुलिस को कोस रहे हैं! विपक्ष की यह शर्मनाक हरकत संघ परिवार को और ज्यादा मजबूत करेगी,जो फासीबाद का सबब होगी!

मुसलमानों का "अज़हर सिंड्रोम"

मैं जामिया के “शांतिदूतों” का दो वजह से शुक्रगुज़ार हूं... एक तो ये बार-बार मेरी विचारधारा को सही साबित कर देते हैं और दूसरा ये कि इनकी वजह से मैं रोज़ नया लिखने की मेहनत से बच जाता हूं...विगत दिनों जामिया में जो भी हुआ उसकी वजह से मैं आज फिर अपना एक ढाई साल पुराना पोस्ट चेप (रिपोस्ट) रहा हूं... 2017 में मैंने लिखा था कि इस देश के मुसलमान "अज़हर सिंड्रोम" से पीड़ित हैं... आइये मैं आज फिर से आपको बताता हूं कि "अज़हर सिंड्रोम" होता क्या है?
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन पर जब मैच फिक्सिंग के आरोपों के बाद बैन लगाया गया तो उन्होंने कहा कि - "इस देश ने मुझे मुसलमान होने की सज़ा दी है"... दरअसल तब अज़हर से ये सवाल पूछा जाना चाहिए था कि तुम्हे उस दिन अपने मुसलमान होने का अहसास क्यो नही हुआ, जब 3 शतक लगाने के बाद इस देश ने तुम्हे "Wonder boy" का तमगा दिया? तुम्हे अपने मुसलमान होने का अहसास उस दिन क्यो नही, हुआ जब तुम्हारी जादुइ कलाई से निकले शॉट्स से स्टेडियम अज्जू-अज्जू के नारों से गूंजता था? तुम्हे उस दिन मुसलमान होने का अहसास क्यो नही हुआ, जब टीम में तुमसे 4 सीनियर प्लेयर (कपिल, वेंगसरकर, शास्त्री, श्रीकांत) होने के बाद भी तुम्हे कप्तान बनाया गया? तुम्हे अपने मुसलमान होने के अहसास उस दिन क्यो नही हुआ, जब 125 करोड़ लोगों के "देवता" सचिन तेंदुलकर से बेहद अपमानजनक तरीके से कप्तानी छीन कर तुम्हे वापस कप्तान बना दिया गया? तुम्हे अपने मुसलमान होने का दुख उसी दिन ही क्यो हुआ जब तुम पर बैन लगाया गया??? जबकि तुम्हारे साथ मनोज प्रभाकर, अजय शर्मा, अजय जडेजा, निखिल चोपड़ा को भी सज़ा हुई थी और जबकि ये सारे हिन्दू थे।
खैर मुद्दे की बात पर आते है... तो ये है "अज़हर सिंड्रोम" जिससे हमारे देश के मुसलमान ग्रस्त है, और उनकी इसी बीमारी को खाद पानी देते हैं हमारे "सिक-लुर" लोग... जैसे अभी रात में JNU का "डफली गैंग" PHQ पहुंच गया है... जब भी कोई घटना होती है उसके बाद पूरे 20 करोड़ मुसलमान खुद को victim-hood साबित करने लगते है... सिर्फ किसी भी एक घटना पर बिना सोचे समझे पूरे 20 करोड़ मुसलमानों को असुरक्षित घोषित कर दिया जाता है... नागरिकता संशोधन बिल पर जो हिंसा हुई वो भी "अज़हर सिंड्रोम" का ही नतीजा है... आज भी "अज़हर सिंड्रोम" इस कदर हावी हो गया कि मुसलमान ये नही सोच रहे कि इस देश मे उन्हें कितनी आज़ादी है... क्या नहीं दिया इस देश ने ??? तुमने पाकिस्तान मांगा, तुम्हे मिल गया !!! तुमने शरिया मांगा, तुम्हे मिल गया !!! तुमने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलना चाहा, वो फैसला भी बदल दिया गया !!!
#Prakhar_Shrivastava
मुझे समझ नहीं आता कि ये "अज़हर सिंड्रोम" वाली मानसिकता आखिर कब खत्म होगी ??? जब तक आपको हिस्सा मिल रहा हो चौड़े पर उसका आनंद उठाते रहो और जब किसी दूसरे को उसके हक का हिस्सा मिले तो victim-hood का मास्टरकार्ड खेल दो... छाती पीटपीटकर कहो कि हमारा हिस्सा हमें नहीं मिल रहा... अरे भैय्या, ये बिल आपके लिए नहीं था और इसका ये भी मतलब नहीं है कि इस बिल से आपको कोई नुकसान हो रहा हो... आप कल भी इस देश में आराम से रह रहे थे और आनेवाले कल में भी आप यहां आराम से रहेंगे... इसलिए अल्लाह के वास्ते अपने "अज़हर सिंड्रोम" से बाहर निकलिए... और दिल्ली और देश में अमन बनाये रखिये।
#CAB - NRC

गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

NRC

भाजपा पूँजीवादी साम्प्रदायिक पार्टी है!उसके नेता पूँजीपतियों के हितैषी हैं!वे NRC बिल के मार्फत वोट की राजनीति कर रहे हैं!यह सब सच है!
किंतु वे बीस साल से हर चुनाव में वादा कर रहे थे कि घुसपैठियों को भगाएंगे और शरणार्थियों को शरण दैंगे!अब यदि इस बात पर उन्हें बम्फर जनादेश मिला है तो विपक्ष को विरोध नही करना चाहिये! सत्ता पक्ष का यह कहना सही है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान बांग्लादेश में वहाँ के अल्पसंख्यकों>(हिंदू+बौद्ध+ईसाई+सिख+पारसी+जैन) को बेहद सताया गया! अत: सवाल उठता हैकि उनमें से जो अल्पसंख्यक जान बचाकर भारत आ गये,उन्हें,भारत में वैधानिक नागरिकता क्यों नही मिलनी चाहिये?और जहाँ तक उक्त तीनों इस्लामिक पड़ोसी मुल्कों के मुसलमानों का भारत में आगमन रोकने की बात है,तो सारे संसार को मालूम है कि इंडोनेशिया के बाद भारत में दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है! वैसे तो भारत की बढ़ती आबादी और सिकुड़ते संसाधनों के चलते किसी को भी यहाँ जगह नही है,क्योंकि यहाँ तो भारत के मूल निवासी ही गरीबी,बेरोजगारी और भुखमरी के शिकार हो रहे हैं,किंतु पड़ोसी इस्लामिक मुल्कों के मजहबी आतंकियों ने जिनका जीना हराम कर दिया,वे हिंदू,जैन, सिख,ईसाई,बौद्ध और पारसी भारत के अलावा और कहाँ जाएं?

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

'भज्जों कौर" बनाम 'शकीना बी'

देश बंटवारे के समय बचपन में बिछुड़े भाई- बहिन!भाई रणजीतसिंह तो जिंदा बचकर भारत आ गया,किंतु चार साल की बच्ची 'भज्जो कौर' पाकिस्तानियों के हाथ लग गई! सोशल मीडिया की बदौलत 72 साल बाद विगत दिनों करतारपुर में जब बचपन के बिछुड़े भाई बहिन मिले तो 'भज्जों कौर' 'शकीना बी' हो चुकी है!उसके चार लड़के हैं, एक दर्जन पोते पोतियाँ हैं!निसंदेह शकीना बी के लड़के,लड़कियां और नाती पोते सब सिख तो अवश्य नही होंगे!
इस घटना से बखूबी समझा जा सकता है कि पाकिस्तान में किस कदर हिंदुओं/सिखों और खास तौर से हिंदू/ सिख लड़कियों को मजहब बदलने पर मजबूर किया गया अथवा खत्म कर दिया गया!  

हैदराबाद एनकाउंटर:

हैदराबाद एनकाउंटर: पुलिस को कंधे पर बैठाने से पहले ये ज़रूर पढ़ें
आपको ऐसी गलतफहमी क्यों है कि ये गोली किसी बलात्कारी को खत्म करने के लिए चलाई गई. गोली तो वो इसलिए चला रहे हैं कि आपका मुंह बंद हो जाए. आप देश में महिलाओं की सुरक्षा पर आवाज़ उठा रहे थे. गोली आपकी आवाज़ को खामोश करने के लिए चली है.
वाह रे देश ! हैदराबाद पुलिस के जवानों को कंधे पर बिठा रहे हो. मिठाई खिला रहे हो और फूल बरसा रहे हो. ये वो ही हैदराबाद पुलिस है ना जिसने पीड़िता के परिवार वालों को थाने से भगा दिया था. दो किलोमीटर दूर उसे ढूंढने को तैयार नहीं थी. ये वही पुलिसवाले हैं ना जिन्होंने पीड़िता के घरवालों को थाने से ये कहकर लौटा दिया था कि वो किसी के साथ भाग गई होगी.
ये वही हैदराबाद पुलिस है ना जो कोर्ट से सुपुर्दगी में मिले चार लोगों को संभालकर नहीं रख पाई. वही पुलिस है ना जिससे किसी अपराधी ने नहीं पहली बार केस में फंसे ट्रकवालों ने बड़ी आसानी से हथियार छीन लिए (खुद पुलिस की कहानी है) ये वही पुलिस है ना जिसकी ट्रेनिंग इतनी घटिया थी कि दौड़कर उन निहत्थों को नहीं पकड़ पाई. वही पुलिस है ना जो अपराधियों को आधी रात को सीन रिक्रियेट करने के लिए लेकर गई और उनके हाथ तक नहीं बांधे.
हैदराबाद पुलिसकी बताई कहानी पर क्या यकीन किया जा सकता है?
ये वही पुलिस है ना जो अपराधियों के पैर में ठीक से निशाना तक नहीं लगा सकी. लेकिन आप तो उसे सिंहम से लेकर पता नहीं क्या क्या समझ रहे हैं. आप जो भी समझकर इस पुलिस की आरती उतार रहे हैं. लेकिन वो चारों आरोपियों को वो आधी रात को लेकर गई और गोली से उड़ा दिया. पर ये तो अपराध है. अगर ये अपराध भी आपको मंजूर है तो अकेले इस केस में बेहद घटिया तरह की हरकतों से एक्सपोज हुई पुलिस पर आप कैसे भरोसा कर सकते हैं कि उसने केस में सही लोगों को ही उठाया था.
लेकिन आपका क्या, आप कुछ भी कर सकते हैं. उन्माद इसी को तो कहते हैं. आप किसी की मौत पर मिठाई बांट सकते हैं. बताइये किस धर्म के किस ग्रंथ में लिखा है कि किसी की मौत पर मिठाई बांटी जाएं. महाभारत युद्ध जीतने के बाद मिठाई बंटी थी क्या. रामायण में कम से कम बीस राक्षस मारे गए. मिठाई बंटी क्या? और तो और किसी दानव ने किसी देवता की मौत पर मिठाई बांटी क्या?
लेकिन आप समझेंगे नहीं आपको लगता है गोली से उड़ा दिया तो रेप की समस्या खत्म हो गई. आपको ऐसी गलतफहमी क्यों है कि ये गोली किसी बलात्कारी को खत्म करने के लिए चलाई गई. ऐसे कितने केस हैं जिनमें पुलिस ने बलात्कारी पर गोली चलाई. अरे गोली तो वो इसलिए चला रहे हैं कि आपका मुंह बंद हो जाए. आप देश में महिलाओं की सुरक्षा पर आवाज़ उठा रहे थे. गोली आपकी आवाज़ को खामोश करने के लिए चली है. ऐसी गोलियां चलाने से क्या रेप कम हो जाएंगे. क्या अपराधियों के हौसले कम हो जाएंगे. दिल्ली के नज़दीक नोएडा और गाजियाबाद में रोज एक एनकाउंटर होता है. कभी कभी दो दो. न तो छीना झपटी की वारदातें कम हुई हैं न लूट की. बल्कि असली अपराधी मजे में रहते हैं.
पुलिस गलत लोगों को फंसाकर गोली से उड़ा देगी तो फायदा किसका होगा. असली अपराधी का ही होगा ना. अब ये मत कहना कि पुलिस असली अपराधी को ही पकडती है. देश में एक से एक बड़े मामले हैं जिनमें बेकसूरों को पुलिस ने उड़ा दिया. छत्तीसगढ़ में पुलिस ने सामूहिक हत्याकांड को अंजाम दिया और कह दिया कि नक्सली थे. गुरुग्राम में बच्चे की स्कूल में हत्या हुई तो बस के क्लीनर को फंसा दिया. इतना टॉर्चर किया कि उसने गुनाह कबूल कर लिया. बाद में मृतक बच्चे के पिता ने न्याय की गुहार लगाई. असली अपराधी को पकड़े जाने को कहा तो सीबीआई जांच हुई. हत्यारा निकला एक बेहद पहुंच वाले बड़े आदमी का बेटा.
पुलिस की कारगुजारियों की लिस्ट गिनाने बैठेंगे तो आप के कान से धुआं निकलने लगेगा. आपको याद होगा कि कैसे यूपी पुलिस ने बिना पूछताछ किए बड़ी अंतर्राष्ट्रीय आईटी कंपनी के एक अफसर को उड़ा दिया था.
बाकी की तो छोड़िए सत्ताधारी पार्टी के नंबर दो नेता और देश के गृहमंत्री खुद कई मुकदमों में छूटे हैं. इन मुकदमों में जो भी आरोप थे वो पुलिस के ही लगाए हुए थे ना. साध्वी प्रज्ञा को निर्दोष बताने वाले भी तो सोचें कि उनके खिलाफ मुकदमे पुलिस ने ही लिखाए थे. इसलिए पुलिस की हैसियत समझो. पुलिस सरकार की तरफ से रखे गए बाहुबलियों का एक इजारा है. वो सरकार के अखाड़े के पहलवान हैं. भारत के संविधान में व्यवस्था है कि ऐसे पहलवान किसी को नाजायज न सता सकें. इसीलिए न्यायपालिका बनीं है. पकड़कर पेश करना पड़ता है. पुराने जमाने में भी राजा के सामने पेश किया जाता था. पहले चेक करते थे कि बात सही है या गलत. इल्जाम सच्चा है या झूठा. तब सज़ा होती थी.
इसलिए ज़रा सोचें. जब भी कोई गलत आदमी फंसता है तो वो बेकसूर आदमी ही होता है. आप भी बेकसूर हैं. किसी अज्ञात मामले में कोई आपको अचानक कसूरवार कहना शुरू कर दे तो आपके पास कहने को कुछ होना चाहिए. आपकी सुनवाई होनी चाहिए. इसलिए सुनवाई के हक के खत्म होने पर तालियां न बजाएं. थोड़ा समझ से काम लें. अदालत में अगर वक्त भी लगता है तो होती तो फांसी ही है. पुलिस वक्त पर रिपोर्ट लिख ले. समय पर एक्टिव हो जाए. जो उसकी जिम्मेदारी है ठीक से निभाने लगे तो लड़कियों के अपहरण और हत्या की आधी से ज्यादा वारदात खत्म हो जाएं. अदालत में फैसला भी जल्दी हो क्योंकि केस पुख्ता बना होगा. समस्या ही खत्म हो जाएगी. याद रखिए हो सकता है कि पुलिस वाले अच्छे इनसान होते हों लेकिन पुलिस उतनी अच्छी नहीं होती. उसे कानून की जकड़ में रखना जरूरी है.

गृह मंत्री अमित शाह की जिन्नाह-सावरकर भक्ति



आज लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक पेश करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बिल्कुल वाट्सएप यूनिवर्सिटी के निष्ठावान छात्र की तरह भाषण दिया।
विकृत इतिहास बोध के सहारे सांप्रदायिक नफरत से भरे अपने भाषण में धार्मिक आधार हुए भारत के विभाजन के लिए पूरी तरह कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी जिन्नाह-सावरकर भक्ति का परिचय दिया।
ऐसा करते हुए उन्होंने न सिर्फ मुहम्मद अली जिन्नाह और उनकी मुस्लिम लीग को क्लीन चिट दी, बल्कि परोक्ष रूप से जवाहरलाल नेहरू के साथ ही महात्मा गांधी और उन सरदार पटेल को भी कठघरे में खडा किया, जिनका रणनीतिक गुणगान वे खुद और प्रधानमंत्री मोदी अक्सर करते रहते हैं।
सवाल यही है कि अगर देश के विभाजन के लिए उस समय का कांग्रेस नेतृत्व यानी नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद, कृपलानी आदि जिम्मेदार थे, तो भाजपा के राजनीतिक और वैचारिक पुरखे उस समय क्या कर रहे थे?
स्वाधीनता संग्राम से अलग रहकर ब्रिटिश हुक्मरान के अंतर्वस्त्र धोने में मशगूल सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर आदि ने क्यों नहीं रोक लिया देश का विभाजन? उन्हें पहल करने से किसने रोका था? अगर वे वाकई देशभक्त थे तो उनकी भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती थी कि नहीं?

रविवार, 8 दिसंबर 2019

दैविक शक्ति के घनचक्कर में पड़ें

एक *पति* ने अपने *गुरु* से पूछा, स्वामी जी, पिछले कुछ समय से एक चमत्कारिक घटना घट रही है ।
आधी रात को जब मेरी नींद खुलती है, तो देखता हूँ कि मेरी *पत्नी* सर तक चादर से ढक कर सोई रहती है और एक *प्रकाश पुंज* उसके सर के पास फैला रहता है । क्या मेरी पत्नी के पास कोई *दैविक शक्ति* है ?
गुरु जी बोले, बेटा अपनी बुद्धि लगाओ! तुम्हारी पत्नी चादर के अंदर, तुम्हारा मोबाइल चेक कर रही होगी!अत: न तो दैविक शक्ति के घनचक्कर में पड़ें और न ही अपनी निजी जिंदगी में नैतिक मूल्यों से पथ बिचलित हों!

एन्काऊंटर

मैं न तो एन्काऊंटर कल्चर का पक्षधर हूँ, न सबूतों के अभावमें बलात्कारियों-अपराधियों को छुट्टा सांड छोड़ने का पक्षधर हूँ,न ही किसी जघन्य दुष्कर्मी पर दया का पक्षधर हूँ! मेरी सनद है कि न्याय व्यवस्था भ्रस्टाचार मुक्त और दुरुस्त हो!अपराधी को शीघ्र दंड मिले और आम आदमी-खास तौर से बहिन बेटियाँ भयमुक्त हों!!

निजकृत करम भोग सब भ्राता!

जिस तरह असफल व्यक्ति,असफल समाज और असफल राष्ट्र की दुनिया में कोई आदर्श स्थिति नहीं हो सकती,उसी तरह किसी सफल व्यक्ति सफल समाज और सफल राष्ट्र का भी दुनिया में कोई आदर्श मानकीकरण नहीं हो सकता ! जो व्यक्ति,समाज या राष्ट्र सफल कहे जाते हैं वे देश,काल,परिस्थतियों के अलावा असफल व्यक्तियों,असफल समाजों और असफल राष्ट्रों की लापरवाही और अयोग्यता का बेजा फायदा उठाते हैं।
इस संसारमें हमेशा ही कुछ शक्तिशाली और नेकदिल करुणावान लोगों की मौजूदगी बनी रहती है!उनकी सदाशयता का बेजा फायदा उठाकर ही कुछ धूर्त बदमाश और काइंयां लोग तथाकथित सफलता को प्राप्त होते रहते हैं। लेकिन तमाम असफल लोगो की असफलता के लिए बहुत हद तक वे खुद ही जिम्मेदार होते हैं। यह तथ्य न केवल तार्किक या बौद्धिक आधार पर,बल्कि विज्ञान और आध्यात्म दर्शन के कार्य कारण सिद्धान्तानुसार भी यह स्वयं सिद्ध है कि:-
"कोऊ न काऊ सुख दुख कर दाता!
निजकृत करम भोग सब भ्राता!!"
यानो गोस्वामी तुलसीदास कह गये हैं कि-''कोई किसी को सुख दुःख दने वाला नहीं हो सकता,सभी अपने अपने कर्म का फल भोगते हैं ''!

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

"मै हूं ना"

जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर मैं Rs. 3000 की घड़ी पहनूं या Rs. 30000 की, दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी।
मेरे पास Rs. 3000 का बैग हो या Rs. 30000 का, इसके अंदर के सामान में कोई परिवर्तन नहीं होंगा।
मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा।
आख़िर में मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इक्नामी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा।
इसीलिए, अपने बच्चों को बहुत ज्यादा अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें, उसकी कीमत को नहीं।
फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था -
ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं, जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों की जेब से पैसा निकालना होता है, लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग लोग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं।
क्या यह आवश्यक है कि मैं Iphone लेकर चलूं फिरू, ताकि लोग मुझे बुद्धिमान और समझदार मानें??
क्या यह आवश्यक है कि मैं रोजाना Mac'd या KFC में खाऊँ ताकि लोग यह न समझें कि मैं कंजूस हूँ??
क्या यह आवश्यक है कि मैं प्रतिदिन Friends के साथ उठक-बैठक Downtown Cafe पर जाकर लगाया करूँ, ताकि लोग यह समझें कि मैं एक रईस परिवार से हूँ??
क्या यह आवश्यक है कि मैं Gucci, Lacoste, Adidas या Nike का ही पहनूं ताकि High Status वाला कहलाया जाऊँ??
क्या यह आवश्यक है कि मैं अपनी हर बात में दो चार अंग्रेजी शब्द शामिल करूँ ताकि सभ्य कहलाऊं??
क्या यह आवश्यक है कि मैं Adele या Rihanna को सुनूँ ताकि साबित कर सकूँ कि मैं विकसित हो चुका हूँ??
नहीं दोस्तों !!!
मेरे कपड़े तो आम दुकानों से खरीदे हुए होते हैं।
Friends के साथ किसी ढाबे पर भी बैठ जाता हूँ।
भुख लगे तो किसी ठेले से ले कर खाने में भी कोई अपमान नहीं समझता।
अपनी सीधी सादी भाषा मे बोलता हूँ।
चाहूँ तो वह सब कर सकता हूँ जो ऊपर लिखा है।
लेकिन,
मैंने ऐसे लोग भी देखे हैं जो एक Branded जूतों की जोड़ी की कीमत में पूरे सप्ताह भर का राशन ले सकते हैं।
मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं जो मेरे एक Mac'd के बर्गर की कीमत में सारे घर का खाना बना सकते हैं।
बस मैंने यहाँ यह रहस्य पाया है कि बहुत सारा पैसा ही सब कुछ नहीं है, जो लोग किसी की बाहरी हालत से उसकी कीमत लगाते हैं, वह तुरंत अपना इलाज करवाएं।
मानव मूल की असली कीमत उसकी नैतिकता, व्यवहार, मेलजोल का तरीका, सहानुभूति और भाईचारा है, ना कि उसकी मौजुदा शक्ल और सूरत।
सूर्यास्त के समय एक बार सूर्य ने सबसे पूछा, मेरी अनुपस्थिति में मेरी जगह कौन कार्य करेगा??
समस्त विश्व मे सन्नाटा छा गया। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। तभी कोने से एक आवाज आई।
दीपक ने कहा - "मै हूं ना" मैं अपना पूरा प्रयास करुंगा।
आपकी सोच में ताकत और चमक होनी चाहिए। छोटा-बड़ा होने से फर्क नहीं पड़ता, सोच बड़ी होनी चाहिए। मन के भीतर एक दीप जलाएं और सदा मुस्कुराते रहो !

दो अलग अलग मापदंड.

भारत में अन्याइयों और व्यभिचारियों से लड़ने के दो अलग अलग मापदंड हैं! संविधान को ताक पर रखकर कोई गरीब शोषित आदिवासी जब किसी अन्यायी अत्याचारी और दुष्कर्मी के खिलाफ बंदूक उठाता है तो उसे 'नक्सवादी' या माओवादी कहते हैं,आनन फानन उसे देशद्रोही मानकर गोली से उड़ा देने का फरमान जारी हो जाता है!
किंतु संविधान को ताक पर रखकर किसी राज्य की पुलिस जब किसी दुष्कर्मी या अपराधी को गोलियों से भून देती है तो उन पुलिस वालों के जिंदाबाद के नारे लगाये जाते हैं,संविधान की खिल्ली उडाई जाती है और संविधान की अवमानना करने वालों पर पुष्पवर्षा की जाती है!
यह मिडिल क्लाश की दोगली मानसिकता है!

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

जन गण मन त्रिवेणी हो !

वही देश का मालिक है,
जिस हाथ कुदाली छेनी हो !
वो बात खुलासा करनी है,
जो बात सभी के हित की हो!
सामाजिक समरसता हो,
न ऊंच नीच की बैनी हो !
अभिव्यक्ति आजादी हो,
न फासीवाद नसैनी हो!!
धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र हो,
जन गण मन त्रिवेणी हो !
नंगा भूंखा कोई न हो,
न जाति पांत की श्रेणी हो !!
मूल्य आधारित शासन हो,
सर्वहितकारी नीति हो !
समझ जिन्हें हो भले बुरे की,
सत्ता उनको ही देनी हो !!
श्रीराम तिवारी

गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

अगहन की रात

प्रातः पसर गये धुआँ धूल धुंध शोर,
पता ही नही चले कब दिन ढल जावे है!
अगहन की रातें ठंडी झोपड़ी में काटे,
खेत खलिहान शीत लहर में बितावै है!!
कटी फटी गुदड़ी और घास फूस छप्पर ,
आशंका ओलों की नित जिया घबरावे है!
भूत का भविष्य का और वर्तमान काल का,
मौसम शीत रितु का निर्धन को सतावे है!!
गर्म ऊनी वस्त्र और वातानकूलित कोठियाँ ,
लक्जरी लाइफ भ्रस्ट बुर्जुआ ही पावे है।
-श्रीराम तिवारी

सावधान...

अगर आप कहीं बस या ट्रेन के सफ़र में हो और आपके पास कोई भिखारी आकर खाना मांगे तो आप खाना देने का कष्ट ना करे वरना ये दरिया दिली आपके लिए मुसीबत बन सकती है...
जी हां आजकल ऐसे ट्रैंड भिखारियों के गैंग चल रहे है जो आपसे खाना मांगते है और ज्यों ही उनका कोई सदस्य उस में से कुछ खाता है वो मुंह से जाग निकाल के तड़पने का नाटक करने लग जाता है और गिरोह के अन्य सदस्य मारपीट पे उतर आते है और पुलिस केस में फ़ंसाने की धमकियां देते है। इनकी सेटिंग वहां के पुलिस वालों से भी होती है और आप से जबरन एक मोटी रकम वसूल सकते है...अच्छा होगा कि आप बचा हुआ खाना किसी कुत्ते को डाल दे।
अगर आप रात में गाड़ी चला रहे हैं और कोई आपके WINDSCREEN पर अंडे फेंके तो कार की जांच के लिए रोकें नहीं, वाइपर संचालित भी ना करें और किसी भी तरह का पानी विंडस्क्रीन पे ना डाले, क्योंकि अंडे के साथ मिश्रित पानी दूधिया बन जाता है और आपकी दृष्टि को 92.5% तक के लिए ब्लॉक कर देता है और फिर आपको मजबूरन गाडी को सड़क के बगल में बंद करना पड़ता है और फिर आप पहले से घात लगाये बैठे अपराधियों का शिकार बन जाते है। यह एक नई तकनीक है इसका प्रयोग आजकल हाईवे पे अपराधिक गिरोहो द्वारा किया जाता है कृपया अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को जरुर सूचित करें।

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

स्वर्गीय शंकर गुहा नियोगी का सपना


"वह क्या चीज थी जिसने मुझे नियोगी के बारे में प्रभावित किया? वे तब 33 साल के थे। काफी दिनों से नए भारत का सपना देख रहे थे और उसके लिए काम कर रहे थे।
मैं कई कम्युनिस्ट नेताओं से मिल चुका था। कुछ को नजदीक से जानता था। मैं चारू मजुमदार और कानू सान्याल से भी मिल चुका हूं। बिहार में सीपी आईएमएल के एक नेता होते थे सत्य नारायण सिन्हा, उनके काफी निकट था।
पर नियोगी उन सबसे अलग थे। मेरी नजर में नियोगी उन कुछ गिने-चुने मार्क्सवादियों में से थे जिन्होंने सचमुच में अपने आप को डिक्लासीफाई किया था। हमारे ज्यादातर कम्युनिस्ट नेता मध्य वर्ग या उच्च मध्य वर्ग से आते थे। मसलन जमींदार के बेटे ईएमएस। या पाइप पीने वाले ज्योति बाबू।
कम्युनिस्ट आंदोलन में ऑक्सफोर्ड और केम्ब्रिज में पढ़े लोगों का दबदबा हुआ करता था। वास्तव में उस वर्ग की दबदबा अभी भी कायम है। ज्यादातर मार्क्सवादी नेता कभी भी अपने आप को मजदूरों और किसानों के साथ एकरूप नहीं कर पाए।
यही नियोगी की सफलता थी। वे खुद मध्यवर्ग से आते थे। पर जब उन्होंने किसानों का संगठन बनाने की सोची तो एक गांव में जाकर बटाईदार का काम करने लगे। खेत जोतते थे। जब उन्होंने मजदूर संगठन बनाने की सोची तो लोहे की खदानों में जाकर दिहाड़ी मजदूर बन गए।
मजदूर महिला से विवाह
वहीं झुग्गी में रहते थे। और वहीं एक मजदूर महिला से विवाह कर उन्होंने गृहस्थी बसाई। इस तरह से नियोगी ने अपने आप को डिक्लासीफाई किया। मजदूर उन्हें अपने में से एक मानते थे।
ऐसे व्यक्ति द्वारा चलाई जा रही ट्रेड यूनियन को तो अलग होना ही था। दिल्ली राजहरा के मजदूरों में दो धड़े थे। एक था डिपार्टमेंटल मजदूरों का। उन्हें भिलाई स्टील प्लांट से तनख्वाह मिलती थी। यह मजदूरों का खाता-पीता तबका था। अर्थात ज्यादा चंदा देने में समर्थ । स्थापित ट्रेड यनियनें उन्हीं के बीच सक्रिय थी।
मजदूरों का दूसरा धड़ा था ठेका मजदूरों का। ठेकेदार बुरी तरह उनका षोषण करते थे । और ट्रेड यूनियन वाले उनकी परवाह नहीं करते थे। नियोगी ने अपने संगठन के लिए उन्हीं उपेक्षित लोगों को चुना।
नियोगी ने धीरे-धीरे ट्रेड यूनियन आंदोलन को सामाजिक बदलाव का जरिया बनाया। उनकी अगुवाई में मजदूर महिलाओं ने शराबबंदी करवाई। मजदूरों ने अपने अस्पताल, स्कूल और पुस्तकालय खोलें। नियोगी के बाद छत्तीसगढ़ का ट्रेड यूनियन आंदोलन एक नई दिशा की ओर गया।
आखिरी भोजन
कई मुद्दों पर नियोगी से मेरे मतभेद भी रहे, पर हमारी दोस्ती कभी नहीं टूटी । 28 सितंबर 1991 की जिस रात नियोगी की निर्मम हत्या हुई उस रात हमने साथ भोजन किया था। वह शायद उनका अंतिम भोजन था।
मैं तब इंडिया टुडे के लिए काम करता था। और हम बस्तर के दौरे से लौट रहे थे। उस इलाके में जाएं और नियोगी से मुलाकात न करें ये कैसे संभव था! उन दिनों वे भिलाई में मजदूरों का एक आंदोलन चला रहे थे और काफी चुनौतियों का सामना कर रहे थे। दिन में हमारी मुलाकात हुई और उन्होंने मुझे बताया कि भिलाई के कुछ उद्योगपतियों ने उनकी हत्या के लिए सुपारी दी है।
मेरे साथ मैगज़ीन के फोटोग्राफर प्रशांत पंजियार भी थे. हम रायपुर के होटल पिकेडली में रूके थे। रात को हमने नियोगी को और एक अन्य मित्र राजेन्द्र सायल को होटल में भोजन पर बुलाया। हम देर रात तक रूस में कम्युनिज्म के पतन पर बात करते रहे। उस मुलाकात के दौरान भी नियोगी ने मुझे कहा था कि उनकी जान को खतरा है। उन्होंने उन उद्योगपतियों के नाम भी लिए थे जो उनके पीछे पड़े थे।


उसी रात भिलाई के अपने पार्टी घर में सो रहे नियोगी पर भाड़े के हत्यारों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। नियोगी की हत्या के बाद मैं सीबीआई की तरफ से गवाह के रूप में अदालत में पेश हुआ था। वहां मैंने उन उद्योगपतियों के नाम भी बताए थे। पर शायद ही उनमें से किसी का कुछ बिगड़ा हो। उनमें से कई उद्योगपति अभी भी इस ‘उदारवादी’ अर्थव्यवस्था का फायदा उठाकर फल-फूल रहे हैं।"

मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

BSNL देश के हित में बहुत ज़रूरी है,

प्रायवेट कंपनियों द्वारा फ्री फंड की टेलिकाम सर्विस के नाटक का अंत !!!
सभी private operator ने एक ही दिन मे अपना tariff 40-50 % तक बढ़ा दिया है. 2016 से telecom मे कम से कम tariff होते जा रहा था. नई कम्पनी आयी थी लगा था कि अब तो सब कुछ फ्री ही फ्री. बहुत लोगों को लगा कि पहले की कम्पनी लूट रही थी कोई सुपरमेन बचाने आ गया है वो भी बैंक से लाखों करोड लोन लेके समाजिक सेवा करने के लिए. अब फ्री से सस्ता क्या होता competition खत्म होते गया और 2018 तक आते आते telecom कम्पनी 14 से 4 पर आ गयी. लोगों को data का लत लगा दिया गया कितनी नई नई विदेशी कम्पनी का जलवा हो गया जो youtube कभी देखे भी नहीं थे सारे दिन youtube से जुड गए tictok आदि का craze हो गया साथ मे सारा देश मोबाइल 📷 के नज़र मे आ गया. माने सब कुछ online हो गया. अब जब लगा कि अब तो लत लग चुकी और लोग चाहे कितना भी रेट बढाया जायेगा लोग recharge करेंगे ही तो अब रेट बढ़ने लगा. यही होना था.अब रेट तेजी से बढेगा. लोगों की आवश्यकता badal चुकी है आटा ना रहे तो चलेगा data रहनी चाहिए . एक virtual दुनिया से लोगों को ज़ोडा जा चुका है जहां संवेदना भी virtual है ज़िसे लाइक कमेंट और शेयर से ज़ोडा जाता है.
data क्रांति ज़रूरी थी लेकिन सही मायने मे. ऑनलाइन subidha ज्यादा से ज्यादा बढेगा ज़िससे की crupption पर रोक लगे. लेकिन ये एक ऐसा लत लगाया गया कि बेरोजगार अपने career से ज्यादा data limit खत्म करने पर ध्यान देने लगे. किस data content पर कितना data consume होता है उसकी study होनी ज़रूरी है एक स्वस्थ समाज के लिए.
tariff badhni ही थी क्योंकी सभी private कांपनी फयादे कमाने के लिए आयी है. अगर BSNL ना रहे तो ये सब एक दिन मे 40% तो क्या 400% बढ़ा दे. BSNL का मजबूत रहना देश हित मे बहुत ज़रूरी है. 2020 मे BSNL एक लाख से ज्यादा 4G SITES लगाने जा रही है और सबसे BEST NETWORK 📡 उपलब्ध करेगी.

दुनिया में स्वर्गीय चेयरमैन कॉ. माओत्से तुंग के करोड़ों समर्थक क्यों है?

एक बार बीजिंग शहर के एक मुहल्ले में एक युवती के साथ दुष्कर्म हुआ। जब यह खबर किसी तरह चेयरमैन क्रांतिकारी माओत्से तुंग तक पहुंची,तो वह खुद पीड़ित लड़की से मिले।
उन्होंने उस लड़की से पूछा "जब तुम्हारे साथ जबरदस्ती की जा रहा थी तब तुम मदद के लिये चिल्लाई थी ?"
लड़की ने हां में सर हिलाया।
चेयरमैन माओ ने उस लड़की के सर पर प्यार से हाथ रखा और नरमी से कहा "मेरी बच्ची! क्या तुम उसी ताक़त के साथ दोबारा चिल्ला सकती हो ?" लड़की ने कहा "जी हां।"
चेयरमैन माओ के आदेश पर कुछ सिपाहियों को आधे किलोमीटर के सर्कल में खड़ा कर दिया गया और उसके बाद लड़की से कहा कि अब तुम उसी ताक़त से चीखो। लड़की ने ऐसा ही किया माओ ने उन सिपाहियों को बुलाया और हर एक से पूछा गया कि लड़की की चीख सुनाई दी या नहीं ? सभी सिपाहियों ने कहा कि लड़की की चीख सुनाई दी गई।
चेयरमैन माओ ने अब सिपाहियों को आदेश दिया कि आधे किलोमीटर के उस इलाक़े के तमाम मर्दों को गिरफ्तार कर लिया जाये और तीस मिनट के अंदर अगर मुजरिम की पहचान न हो सके तो गिरफ्तार मर्दों को गोली मार दिया जाये।
फौरन आदेश का पालन हुआ और दिये गये मुहलत को बमुश्किल अभी दस मिनट ही हुए होंगे कि मुजरिम की पहचान हो गई और अगले बीस मिनट के अंदर-अंदर मुजरिम को पकड़कर चेयरमैन माओ के सामने लाया गया।
लड़की ने शिनाख़्त की, मौक़े पर फैसला हुआ और मुजरिम का भेजा उड़ा दिया गया।
जुर्म से सज़ा तक की अवधि लगभग तीन घंटे की रही होगी। इसे कहते हैं फौरन इंसाफ मिलना जिस कारण आज चीन हर क्षेत्र में प्रगति पर है।
काश कुछ ऐसा ही अपने देश में होता तो शायद बलात्कार की इतनी घटनाएं न होती। पर अपने यहां होता क्या है। अगर पीड़िता ज़िंदा है तो वर्षों तक अदालत का चक्कर और अगर जला दी गई तो उसके नाम पर केवल कैंडल मार्च।
काश चीन जैसा फैसला मेरे देश में भी होता..

वह ऐसा पूंजीपति या ऐसा फ़क़ीर नहीं था जो देश को लूटे और झोला उठा कर चल दे।

पद्मश्री राहुल बजाज ने अमित शाह की मौजूदगी में मोदी सरकार की यह कहकर आलोचना की थी कि"सरकार के डर से लोग जरूरी प्रतिक्रिया व्यक्त नही करते,क्योंकि वे बुरे अंजाम से डरते हैं"
जो लोग राहुल बजाज के इस सत्य कथन को ट्रोल करने की कोशिश कर रहे हैं,उन्हें मालूम हो कि उनके पुरखे भी राहुल बजाज के पुरखों के कर्जदार हैं।
इन दिनों ऐसे पूंजीपति मालामाल हो रहे हैं जिनके पूर्वजों का आजादी की लड़ाई में रत्ती भर योगदान नहीं रहा,किंतु इन नव धनाड्यों पर मोदी सरकार 6 साल में देश के खजाने से 5.5 लाख करोड़ लुटा चुकी है।
जबकि इसी देश में एक ऐसा भी पूजीपति हुआ था जिसने आज़ादी आंदोलन में न सिर्फ अपनी कमाई दान कर दी, बल्कि तिलक,महात्मा गांधी और विनोबा भावे के साथ आजादी की जंग लड़ी और जेल भी गया।
नेहरू के जन्म के 10 दिन पहले राजस्थान के एक मारवाड़ी परिवार में एक और लड़का पैदा हुआ था जमनालाल बजाज। वह लड़का केवल चौथी कक्षा पास कर पाया जिसे अंग्रेजी नहीं आती थी। उन्हें वर्धा के एक धनी परिवार ने गोद ले लिया।
यह परिवार अपने धन वैभव का प्रदर्शन करने का शौकीन था। एक बार एक विवाह उत्सव में जाना था। जमना से कहा गया कि हीरे जवाहरात जड़े कपड़े पहनें। इस बात पर जमनालाल की अपने पिता से झगड़ा हुआ और उन्होंने घर छोड़ दिया। भागने के बाद जमना ने अपने पिता को एक कानूनी दस्तावेज भेजा जिसमे कहा कि मुझे धन का लोभ नहीं है। आपका धन्यवाद कि आपने मुझे उस जंगल से मुक्त कर दिया।
बाद में उन्हें खोजकर लाया गया, लेकिन जब उनके इस पिता की मृत्यु हुई तो जमनालाल ने उनकी सारी संपत्ति दान कर दी, क्योंकि वे इसे पहले ही त्याग चुके थे।
जमनालाल को बचपन मे किसी आध्यात्मिक गुरु की तलाश थी। सबसे पहले वे मदन मोहन मालवीय से मिले और कुछ दिनों तक उनके सानिध्य में रहे। इसके बाद में रबीन्द्रनाथ टैगोर से मिले, कई संतों से मिले लेकिन खोज पूरी नहीं हुई।
1906 में बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार केसरी के लिए इश्तहार दिया तो जमनालाल ने अपनी जेब खर्च से 100 रुपये बचाये और दान किया। बाद में उन्होंने लिखा कि उस 100 रुपये के दान से जो खुशी मिली थी, वह बाद में लाखों के दान से नहीं मिल पाई।
उधर अफ्रीका में गांधी जी अंग्रेजी हुक़ूमत के अन्याय के खिलाफ चरस किये थे। इसकी खबरें पढ़कर जमना काफी प्रभावित हो रहे थे। गांधी जब भारत लौटे तो जमनालाल भी उनके साबरमती आश्रम पहुंच गए। गांधी की जीवन शैली देख कर जमनालाल को लगा कि बस गुरु, हमें तो अपना गुरु मिल गया।
इसके बाद गांधी और जमनालाल का साथ एक इतिहास बन गया। जमनालाल ने गांधी से वर्धा में आश्रम खोलने का अनुरोध किया। गांधी ने इसके लिए विनोबा को भेजा। विनोबा बजाज परिवार के गुरु की तरह वहां रहने लगे।
1920 में जमनालाल बजाज ने गांधी के सामने प्रस्ताव रखा कि वे गांधी को अपने पिता के रूप में गोद लेना चाहते हैं। गांधी इस अजीब प्रस्ताव को हैरान के साथ मान गए। गांधी उनको अपना पांचवां पुत्र मानते थे।
जब गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो जमनालाल ने अपने घर सारे विदेशी वस्त्रों को इकट्ठा करवाया और बैलगाड़ी पर लाद कर शहर के बीचोबीच जलवा दिया।
अंग्रेजों ने जमनालाल को राय बहादुर की पदवी दी थी जिसे उन्होंने त्याग दिया। उन्होंने अदालतों के बहिष्कार करते हुए अपने सारे मुकदमे वापस ले लिए। जिन वकीलों ने असहयोग में वकालत छोड़ दी उनकी आर्थिक मदद के लिए जमनालाल ने कांग्रेस के कोष में एक लाख दान दिया।
जमनालाल ने भारत में तब ट्रष्ट और फाउंडेशन की स्थापना की जब देश को इसके बारे में सोचने का वक्त नहीं था।
पंडों के विरोध के बावजूद जमनालाल ने विनोबा के साथ मिलकर दलितों का मंदिर में प्रवेश करवाया। अंग्रेजी हुक़ूमत के विरोध के लिए 1921 में जमनालाल और विनोबा भावे गिरफ्तार किए गए। विनोबा को एक महीने और जमना को डेढ़ साल की सजा हुई।
1937-38 के कांग्रेस अधिवेशन में उन्हें अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव आया जिसे उन्होंने अस्वीकार करते हुए सुभाष चंद्र बोस के नाम की सिफारिश की।
1924 में नागपुर में दंगे हुए तो जमना दंगे रोकने पहुंच गए। उनको चोट आई। इस पर गांधी ने कहा मुझे खुशी है। आप लोग डरपोक न बनें। अगर जमना की जान भी चली जाती तो मुझे दुख नहीं होता क्योंकि इससे हिन्दू धर्म की रक्षा होती।
जमनालाल बजाज ने ताउम्र तन, मन, धन से। आज़ादी आंदोलन और गांधी का साथ दिया। उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी ने विनोबा के साथ भूदान आंदोलन में सक्रिय थीं।
गांधी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत को जीने वालों में एक नाम जमनालाल बजाज का है। जमनालाल बजाज का 1942 में देहांत हुआ लेकिन उनका परिवार देश के लिए सक्रिय रहा और यथासंभव योगदान देता रहा।
गांधी जी ने खुद जमनालाल के बारे में काफी कुछ लिखा है। गांधी और विनोबा उनके पारिवारिक सदस्य जैसे थे। सब यहाँ लिखना संभव नहीं है। उन्हीं के पोते हैं राहुल बजाज जिनको भारत सरकार ने पद्मभूषण दिया है।
आज के इस कॉरपोरेट और राजनीति के गठबंधन के दौर में, जब राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर राफेल लूट हो रही हो, तब व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में कौन बताए कि इस देश में एक वैरागी पूंजीपति भी हुआ था, जिसने अपनी पूंजी देश की आज़ादी के लिए लुटाई। वह ऐसा पूंजीपति या ऐसा फ़क़ीर नहीं था जो देश को लूटे और झोला उठा कर चल दे।
लेकिन भारत में आज नमकहरामों की भरमार हो गई है जो गांधी से लेकर गौरी गणेश तक किसी को भी गरिया सकते हैं। इनपर आप सिर्फ तरस खा सकते हैं।