मंगलवार, 30 नवंबर 2010

नक्सलवाद बनाम वामपंथ का भटकाव

४०-४५ साल पहले   नक्सलवाड़ी से शुरू हुआ   नक्सल संघर्ष आज  आधे भारत में फ़ैल चुका है ..छतीसगढ़ ,झारखंड ,आन्ध्र ,बिहार ,बंगाल ,महाराष्ट्र ,उडीसा उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश कि सरकारें इस पर अपने अपने ढंग से रणनीति निर्धारितकरती रही हैं . कई बार  प्रतिक्रांतिक कार्यवाही के लिए प्रशाश्कीय  संसाधनों  कि बदतर तस्वीर भी प्रचार माध्यमो से जनता को प्राप्त हुई है .दंतेवाडा ,लालगढ़  कि घटनाओं में महज इतना फर्क है कि दंतेवाडा में जहाँ नक्सलवादियों ने असावधान ७५  अर्ध सेनिक बालों को काट डाला तो लालगढ़ में ममता के किराये के पिठ्ठुओं ने नक्सल वादिओं मओवादिओं  के नाम पर आम गरीब जनता पर निर्मम प्रहार किये .
  दक्षिण पंथी वामपंथी और मध्मार्गी  मीडिया ने अपने अपने नजरिये से नक्सलवाद पर लिखा है .बहस मुसाहिबे ,सेमिनार हुए हैं .बाज मर्तवा एक आध ने नक्सलवादियों के ख़ूनी आतंक को क्रांति का शंखनाद भी बताया है और उसका खामियाजा  भी भुगता है .
         नई पीढी के शहरी युवाओं के दिमाग में - नेट के जरिये और संचार माध्यमों से नक्सलवाद  के बारे में दिग्भ्रमित अध् कचरी सूचनाएँ ठूंसी जा रही हैं .उधर अरुंधती ,स्वामी अग्निवेश और महाश्वेता देवी जैसे तथाकथित वुद्धीजिवी भी माध्यम मार्ग केअहिंसावादी  शांतिकामी वामपंथ को नीचा दिखने के लिए नक्सलवाद का उटपटांग समर्थन कर रहे हैं .
   वर्तमान दौर कि महाभ्रुष्ट पूंजीवादी व्यवस्था में एक तरफ समृद्धि के शिखर पर अम्बानियों कि भोग लिप्सा बढ़ती जा रही है दूसरी ओर आभाव और दीनता का सारे देश में बोलवाला है .इस कठिन स्थिति में आदिवासी अंचलों से ,वनांचलों में  हिसात्मक स्वर गूंजने लगे हैं .
  घोर आभाव में भी एन -कें -प्रकारेण अपनी आधी अधूरी शिक्षा से असहाय ,असफल ,दिशाहीन ,भटका हुआ नौजवान -नंगे भूंखे रहकर मर जाने कि अपेक्षा क्रन्तिकारी जिजीविषा कि खोज में उदहर पहुँच जाता है जहाँ से लौटना नामुमकिन हो जाता है .उसे जब क्रांति के स्ब्जवाग दिखाए जाते हैं तो वह घोर धर्म भीरु या अहिंसक होने के वावजूद वर्ग शत्रुओं कि कतारों पर टूट पड़ता है जिसने एक बार उस मांड का दाना पानी पी लिया वह उधर से वापिस नहीं लौट सकता .या तो कर्न्ती कि चाह में उत्सर्ग को प्राप्त होगा या अपने ही साथियों कि गोलियों का शिकार हो जायेगा .
         भारत में इस रास्ते से क्रांती कभी  नहीं आ सकती ...महान जनवादी साहित्यकार हरिशंकर परसाई ने भारत में वामपंथ के तीन भेद माने हैं .इसका बड़ा ही रोचक व्यंगात्मक आलेख भी उन्होंने लिखा था .किसी मित्र ने उनसे जब साम्यवाद के भारतीय तीनो भेदों का खुलासा चाहा तो उन्होंने चाय कि केतली का उदाहरन दिया .उनका मानना था कि केतली कि गरम -गरम चाय जब सीधे केतली से ही हलक में उतार ली जाये तो इसे नक्सलवाद कहते हैं .जब चाय को टोंटी से गर्म -गर्म हलक में उतारी जाए तो माकपा कहते हैं ...और चाय को प्लेट में डालकर बहस में खो जाएँ चाय ठंडी हो जाये और उसमें मख्खी भी गिर जाये  फिर पी जाये तो सी  पी आई कहते हैं ..

रविवार, 28 नवंबर 2010

.ग्वांगझू एशियाड-२०१० में भारत का प्रदर्शन...

१६ वें  एशियाई खेल -२०१० ,चीन के ग्वांगझू नगर में निर्विघ्न सम्पन्न हुए .जिन भारतीय  खिलाड़ियों ने तमाम बाधाओं ,परेशानियों के  भारत के लिए पदक हासिल किये -वे देश के सर्वश्रेष्ठ सम्मान के हकदार हैं .नई दुनिया के खेल पृष्ठ पर ३६  देशों कि पदक तालिका प्रकाशित कि गई है ,उसमें भारत ६ वें नंबर पर है ये अंतिम स्थिति है और सम्मानजनक है २६ नवम्बर तक मुश्किल से ८-१०  स्वर्ण पदक भारत के खाते में थे ,जबकि चीन ,जापान दक्षिण कोरिया  के खाते में सेकड़ों स्वर्ण पदक कब के आ चुके थे और  उनके खिलाडी आखिरी रोज तक  पदकों कि झड़ी लगा रहे थे .किन्तु भारत के  जावाज खिलाड़ियों ने अपने देशवासियों  को निराश नहीं किया और अंतिम दिन आधा दर्जन स्वर्ण झटककर देश को पदक तालिका में ६ वें स्थान पर ला दिया .इन महान सपूतों को लाल सलाम .
                पिछली बार भारत ८ वें स्थान पर रहा था ,इस बार दो पायदान ऊँचे चढ़ा है , उम्मीद  है कि आगामी  एशियाड में भारत और ऊँचे चढ़ेगा .मेरे इस आशावाद पर घड़ों पानी डालने को आतुर लोगों से निवेदन है कि नर्वश न हों अपनी तुलना चीन जापान या कोरिया से न करे . चीन से तो कतई नहीं क्योंकि पदक तालिका में उसका  नंबर पहला है यह अचरज कि बात नहीं वो तो हर कम्म्युनिस्ट  देश कि फितरत है कि हर चीज में आगे होना -चाहे जो मजबूरी हो  इसीलिये उसके -४१६ पदकों के सामने हमारे ६४ पदक बेहद मायने रखते हैं क्योंकि हम एक महा भृष्ट व्यवस्था में  ,घपलों कि व्यवस्था में ,आरक्षण कि व्यवस्था में ,सिफारिश कि व्यवस्था में  नाकारा -मक्कार नेत्रत्व कि शैतानियत से आक्रांत व्यवस्था में बमुश्किल जीवन घसीट रहे  हैं  ऐसे  में नंगे भूंखे देश के कुछ सपूतों ने अपनी निजी हैसियत से ये ६४ पदक  ,बड़ी कुर्वानी से हासिल किये हैं ...हम उन्हें नमन करते हैं और इन ६४ पदकों को ६४० के बराबर समझते हैं .जिस दिन भारत में साम्यवाद का शाशन होगा .जिस दिन भारत में अम्बानियों ,मोदियों .बिरलाओं और टाटा ओं के इशारों पर चलने वाली सरकार न होकर ,देश के सर्व हारा और महनत कशों के आदेश पर भारत कि शाशन व्यवस्था चलेगी उस दिन भारत भी असिअद और ओलम्पिक में नंबर १ होगा .
               चीन कि बराबरी करने से पूर्व हमें -कजाकिस्तान ,ईरान जापान और कोरिया जैसे  छोटे देशों को मात देनी होगी .तालिका में तो ये हमसे ऊपर है ही  किन्तु इनके खाते में इतने पदक हैं कि भारत उनके सामने नगण्य दीखता है .देश कि जनता को और खेल जगत को  जागना होगा .जानना होगा कि ईरान .ताइपे .कजाकिस्तान और उज्बेग्स्तान जैसे नव स्वाधीन देशों में ऐसा क्या है जो कि भारत जैसे विश्व कि गतिशील दूसरे नंबर कि अर्थ व्यवस्था  वाले सवा सौ करोड़ कि आबादी वाले देश के पास नहीं है .
         १९५१ के प्रथम एशियाई खेलों में हम  दो नंबर पर थे विगत ६० साल में हम कहाँ पहुंचे यह आकलन  भी जरुरी है .मौजदा  दौर में तो कबड्डी को छोड़ बाकी सभी पदक व्यक्तिगत प्रतिभाशाली प्रतिभागियों के एकल प्रयाश का परिणाम कहना गलत नहीं होगा .देश के सत्ता प्रतिष्ठान का योगदान क्या है ?यह संसद में और विधान सभों ओं  में प्रश्न उठाना  चाहए .
       १९५१ में जापान नंबर वन था ,हम दूसरे नंबर पर थे ,अब तक १६  एशियाई खेलों में भारत ने कुल १२८  स्वर्ण पदक हासिल किये हैं चीन तो इससे ज्यदा स्वर्ण एक बार कि स्पर्धा में ही जीत लेता है .हम अपनी आंतरिक और बाह्य परेशानियों के लिए निसंदेह पाकिस्तान  को दोष दे सकते हैं किन्तु किसी खेल प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन से रोकने कि ताकत किसी में नहीं ,और इसके लिए किसी भी बाहरी ताकत को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता . इसके लिए हमें अपनी खेल नीति और शासन व्यवस्था का उत्तर दायित्व सुनिश्चित करना होगा .
          राष्ट्र मंडल खेलों में भारत के पास १०१ पदक थे .एक महीने में ऐसा क्या घाट गया कि जो राष्ट्र मंडल में अर्श पर थे वे खिलाडी ग्वांगझू में फर्श पर जा गिरे .हाकी .निशानेबाजी .तैराकी और कुश्ती इत्यादि में  संतोष जनक प्रदर्शन नहीं देखने को मिला ..भारत १०१ से ६४ पर आ गिरा ...हम आगे बढे हैं  या पीछे चले गए  ये फैसला  आगामी ओलम्पिक में होगा .

रविवार, 21 नवंबर 2010

...आ अब लौट चलें .......

अगम रास्ता -रात अँधेरी ,आ अब लौट चलें .
सहज स्वरूप पै परत मोह कि .तृष्णा मूंग दले .
जिस पथ बाजे मन -रन -भेरी ,शोषण वाण  चलें .
नहीं तहां शांति समता अनुशाशन ,स्वारथ गगन जले .
 विपथ्गमन  कर जीवन बीता ,अब क्या हाथ मले.
  कपटी क्रूर कुचली घेरे .मत जा सांझ ढले .
अगम रास्ता रात घनेरी आ अब लौट चलें .
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  कदाचित आये प्रलय तो रोकने का दम भी है .
हो रहा सत्य भी नीलाम,महफ़िल में हम भी हैं .
जख्म गैरों ने दिए तो इतराज  कम भी हैं
अपने भी  हो गए बधिक जिसका रंजो गम भी है
हो गईं राहेंभी खूंखार डूबती नैया मझधार .
मत कर हा -हा -कार .करुण क्रंदन चीत्कार .
सुबह का भूला न भूला गर लौटे सांझ ढले .
अगम रास्ता रात अँधेरी ,आ अब लौट चलें ....
          श्रीराम तिवारी ...........

बुधवार, 17 नवंबर 2010

ईद-उल-ज़ुहा और एकादशी की शुभकामनाएँ

दुनिया के तमाम मुस्लिम भाई बहिनों को ईद कि मुबारकवाद .में इस्लाम के बारे में बहुत कम जानता हूँ किन्तु अल्प्वुद्धि से यह यकीन के साथ कहता हूँ कि हर धर्म से बढ़कर इंसानियत है अतः किसी  भी फिरके कि प्रतिबद्धता से परे सबसे मूल्यवान वस्तू के रूप में भाईचारे कि शिक्षा देने वाले ,त्याग कि महिमा बताने वाले मजहब -इस्लाम से मुझे उतना ही प्रेम है जितना कि अपने जन्मजात धर्म -सनातन धर्म या हिन्दू धर्म से है .
    मुझे बताया गया है ईद - त्याग और बलिदान  के आख्यान को चिर स्मरणीय बनाने के लिए -मनाई जाती है .खुदा -परवरदिगार ,अल्लाह ताला के आदेश से दीन-ओ -ईमान कि और इंसानियत कि हिफाजत के लिए हजरत इब्राहीम ने अपने बेटे इस्मायल कि बलि दी थी .बाद में मोहम्मद साहब और अन्य उत्तरवर्ती मुस्लिम खलीफाओं ने इसको बेहतर मानवीय रूप प्रदान किया किन्तु बकरे कि बलि बली बात नहीं जची .यह एक अलग विषद विमर्श का मज़हबी विषय है किन्तु बाकी शेष सभी सरोकारों में आपसी सौहाद्र और भाईचारे को ही तवज्जो दी गई है .
        आज ही के दिन भारत में एक ऐसा त्यौहार मनाया  जा रहा है जो कि सम्भवत सभी हिन्दुओं और भारतीय सनातन परम्परा कि  अनुषंगी धाराओं कि एकता का औपम सूत्र है .आज देव उठनी एकादशी है ,लोक मान्यता है कि आज से सूर्य उत्तरायण हो चला है ...आज देव जाग चुके हैं .....आज से सभी मांगलिक कार्यों का श्री गणेश हो चुका है ..आज के दिन भगवान शंकर ने असुर राज दुष्टात्मा जलंधर को हराया था .उसे मारने के लिए उन्हें भगवान् विष्णु कि मदद लेनी पड़ी ...विष्णु ने छल से जलंधर कि पत्नी वृन्दा का सत्तीत्व भंग किया ताकि जलंधर का बध किया जा सके .जलंधर कि पत्नी वृंदा {तुलसी}चूँकि एक सती अर्थात पतिव्रता नारी थी औरहिन्दू धरम में  ऐसी मान्यता है कि पतिवृता नारी को ईश्वर भी विधवा नहीं वना सकता ,भले ही उसका पति राक्षस ही क्यों न हो .ये सब बातें विष्णु पुराण तथा अन्य धर्म शास्त्रों में विस्तार से वर्णित हैं .में श्री हरी विष्णु को आराध्य मानते  हुए भी उनके इस कुकृत्य कि {यदि उनने वास्तव में ऐसा किया है तो }निंदा करते हुए भी विष्णु के उस त्याग और बलिदान कि प्रशंशा करता हूँ कि लोक कल्याण के लिए उन्होंने अपयश को गले लगाया याने बहुत बड़ा त्याग किया इसका प्रमाण ये है कि श्री विष्णु अब सालिग्राम कि बटैया के रूप में तुलसी कि छाँव में सदा सदा के लिए श्रद्धा अवनत हैं ...
                                     भारत में हर दिन कोई न कोई त्यौहार होता है .हर मजहब के अच्छे =अच्छे सिद्धांत और सूत्र विख्यात हैं .हर मज़हब में शांति और भाईचारे से मिल जुलकर रहने कि ललक है  किन्तु शैतान भी हमेशा चौकन्ना है कि कहाँ धर्मान्धता का घाव है ,कहाँ घृणा कि विष बेल है ,कहाँ अहंकार और स्वार्थ है बस  वहीं जाकर वो अपना रंग दिखने लगता है ..किन्तु जब जब गंगा जमुनी ,तहजीव और सौहाद्र कि एकता जागती हिया ये शैतान खामोश हो जाता है .मानवीय मूल्यों के संवर्धन और आत्म परिष्करण के लिए आज का दिन -ईद और एकादशी  बहुत शुभ है ....सभी को बधाई .....हिदुओं को एकादशी कि शुभकामनायें ....मुस्लिम जमात को ईद -उल -जुहा कि मुबारकवाद .

शनिवार, 13 नवंबर 2010

संघ का चारित्रिक पतन...

    सांस्कृतिक ,साहितियक ,आर्थिक ,सामाजिक ,राजनेतिक धार्मिक और एतिहासिक इत्यादि विमर्शों पर आम तौर से तीन प्रमुख विचारधाराएँ  परिलक्षित होतीं हैं .एक -दक्षिणपंथी कट्टरवादी -हिन्दुत्ववादी या प्रतिक्रियावादी ,दो -वामपंथी -वैज्ञानिक -भौतिकवादी या प्रगतिवादी  .तीन -माध्यम मार्गी या  यथास्थितिवादी .इनके अलावा भी अन्य ढेरों -व्यक्तिवादी ,अलगाववादी ,जातीयतावादी ,क्षेत्रीयतावादी ,भाषावादी ..छोटे -छोटे वरसाती नाले जैसे यदा- कदा उपरोक्त  तीन प्रमुख धाराओं में डूबते -तैरते रहते हैं .सोवियत पराभव के कारण विश्व का संतुलन एक ध्र्वीय हो जाने से न केवल भारत अपितु सारे विश्व कि गैर वामपंथी  विचारधाराओं ने विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष  कि जद में आकर अपना उदारवादी -जनकल्याणकारी मुखौटा उतार फेंका वामपंथ को छोड़कर प्राय्ह सभी विचारधाराओं का स्खलन हो चुका है  .यही वजह है कि भारत के समाजवादी  एक झटके में विचारधारा छोड़ -लालू -मुलायम -नितीश या रामविलास  पासवान हो गए .कांग्रेश भी समाजवादी -लोकाकल्यान्वादी मिश्रित अर्थ व्यवस्था छोड़ नेहरु -गाँधी परिवारवाद में जाकर विलीन हो गई .जिस जनसंघ ने १९७७ में साम्प्रदायिकता  छोड़कर जनता पार्टी में मुख्यधारा का ऐलान किया था ,जिस भाजपा ने १९८० में बॉम्बे स्थापना अधिवेशन में गांधीवादी समाजवाद का ऐलान किया था वो अब नाथूराम गोडसे के भूत का अड्डा वन चुकी है ...वही भूत कभी गोविदाचारी - प्रमोद महाजन को सताता था ,कभी उमा भारती को .कभी अरुण शौरी को और अब श्रीमान सुदर्शन महाराज के सर पर .....मी  नाथूराम गोडसे वोल्तोय .......
          भारत ही नहीं बल्कि संभवतः चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के वाद राष्टीय स्वयमसेवक संघ दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा जन संगठन है .संघ का घोषित  अजेंडा ,साध्य ,साधन और उसके उपादानो पर देश और दुनिया के तमाम लोग सहमत नहीं हैं , में भी सहमत नहीं था , फिर भी वह अभी कल तक मेरे जैसे प्रगतिशील किन्तु साधारण हिदू -ब्राह्मण  को भी कहीं न कहीं  देशभक्ति पूर्ण सा आभासित होता था . श्री सुदर्शन कि श्रीमती सोनिया गाँधी  पर अश्लील टिपण्णी तक भी संघ का चेहरा श्री मोहन भगवत जैसा  ही लगता  था किन्तु कल जो  मध्यप्रदेश में हुआ वह आपातकाल से भी ज्यादा क्रूरतम और वीभत्स था ,भाजपा +संघ +पोलिस +गुंडे  ...सबके सब निर्दोष राहगीरों को कांग्रेसी समझकर बुरी तरह पीट रहे थे रक्षक ही भक्षक हो चुके हैं ,किसको अपनी व्यथा सुनाएँ ...हिंदुत्व के अलमबरदार हिन्दुओं को ही - सिर्फ ये समझकर कि वे कांग्रेसी हो सकते हैं -पोलिस कि आँखों के सामने कानून को टाक पर रखकर जो दर्शा रहे थे उससे में अब तक भयभीत  हूँ .इन्स्सन यदि क़ानून के राज्य में यकीन न करे ,गिरोह कि शक्ल में तलवारें और डंडे लेकर जनता पर पिल पड़ें ,मुख्यमंत्री शहर में होते हुए भी मूक दर्शक बना रहे तो इस स्थिति में प्रतिक्रिया न हो यह कैसे संभव है .
       अनुशाशन के खोल से संघ कि मुंडी बाहर आ चुकी है .क्या यही वतन परस्ती का दावा करने वालों कि असल तस्वीर है ?ये तो सड़क छाप संघियों कि तस्वीर थी ..बड़े वाले संघी भी उनसे बड़े होना ही चाहिए सो उनके बयानों कि बदगुमानी सारे मीडिया ने और सारे संसार ने द्रेख ली है .
    सुदर्शन के बयान के बाद जो कांग्रेसी सोनिया भक्ति दिखा रहे थे .प्रदर्शन करने सड़क पर आ भी गए तो क्या भाजपा के शाशन में अपनीशांतिपूर्ण तरीके से  प्रतिक्रिया देना प्रतिबंधित है ,यदि ऐसा है तो फासिस्ट सावित करने के लिए और क्या प्रमाण चाहिए ? यदि संघी समझ रहें हैं कि झूठे -अश्लील आरोप भी लगाएं और लोग अपनी जुबान बंद रखें तो यह हिटलरशाही भारत कि जनता को मंजूर नहीं .अनुशाशन ,देशप्रेम ,हिंदुत्वके नारों के पीछे  और कितने चेहरे  संघियों ने छिपा  रखें हैं ...आम जनता को जरूर जानना चाहिए...
      
  
    

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

कुछ खास रही यह दीपावली-- 5, 6 नवंबर 2010

  भारत में इस बार की दीपावली -५-६  -नवम्बर २०१० जरा ज्यादा ही धूम -धाम से मनाई गई .गाँव देहात की तो दीवाली अब बड़े किसानों तक ही सीमित रह गई है .खेतिहर मजदूर और सीमान्त किसान इस दौर में बेहद क्लांत है इस वर्ग के पास न तो  भर पेट भोजन और न ही शिक्षा और स्वास्थ की कोई व्यवस्था है उनको सभी दिन समान हैं  .शहरों में सर्वहारा वर्ग को छोड़ शेष सभी वर्गों ने -अफसर ,नेता .सरकारी कर्मचारी ,छोटा -बड़ा व्यापारी  और भृष्ट जगत सहित तमाम असमाजिक तत्वों की पौ बारह रही . बैंक डाकेतियों चेन स्नेचिं और चोरी चकारी का मामूली चोट्टे से लेकर वाया थाना होते हुए सराफा के व्यापार में अप्रत्यक्ष सयहोग भी अविस्मरनीय रहा .
           भारत का वर्तमान राजनेतिक ,आर्थिक और व्यवस्था सम्बन्धी परिदृश्य मीडिया ने इस तरह निरुपित किया है की  .केंद्र में यु पि ये सरकार का काम काज कोई क्रांतीकारी नहीं  तो  एकदम निराशा जनक भी नहीं दीखता .कभी- कभी लगता है की   भारत का मीडिया सत्ता में जो स्थापित हैं सिर्फ उन्ही के प्रति उत्तरदायी है .आम जन -सरोकारों को वह सब्जी में चटनी की तरह पेश करता है .किसान आत्महत्या ,गाँव -देहातों में स्वाश्थ शिक्षा की दुरवाश्था या शहरों में निजी क्षेत्र के शिक्षित -अशिक्षित कामगारों की  जवानी को -लीलता हुआ एक सर्वव्यापी अस्थिरता के भय का संचरण करता हुआ -उन्मुक्त बाजार का निर्माण कराने में सहभागी है .इस  दौरान भयादोहन के निमित्त अंतरराष्ट्रीय राजनीती के खिलाडी भी पीछे नहीं रहे -श्री बराक  हुसेन ओबामा की  भारत यात्रा के विमर्श में अनेक प्रकार की टीका टिप्पणी की गईं और आने वाले दिनों में की जाते रहेंगी .
           भारत -पाकिस्तान ,भारत -चीन और भारत -अमेरिका के अंतर्संबंधों की केमिस्ट्री में बराक ओबामा का भारत आना नितांत अर्थपूर्ण है .अमेरिका को अपने आर्थिक संकट से निजात पाने की छटपटाहट है ,पाकिस्तान को अमेरिका की छत्रछाया के छूटने का भय है .चीन को अपने चारों ओर पूंजीवादी राष्ट्रों की एकता से भय है ओर भारत को आतंकवाद तथा पाकिस्तान की कुटिल चालों का भय है .ओबामा के भारत में दीवाली मनाने .स्कूली छात्रों से मिलने ,संसद को सम्बोधित करने .धन्यवाद और जय -हिंद कहने के साथ -स्वामी विवेकानंद .महात्मा गाँधी .रवीन्द्रनाथ टेगोर और बाबा साहिब को स्मरण करने की भावौद्दीपक शैली  से अमेरिका के १३० पूंजीपतियों समेत भारत के पूंजीवादी खेमें की बाछें खिल गई हैं .कहाँ -कहाँ ,किस -किस व्यापार पर संधियाँ हुईं ये अभी खुलासा होना बाकि है ,किन्तु यह तय है की अमेरिकी राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा एक अच्छे सेल्स मेन सावित हुए .अब यह देखना बाकि है की भारत के सत्ता पक्ष और विपक्ष ने देश के लिए क्या हासिल किया ?केवल यह की भारत ने शून्य की खोज की .भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है ,जय हिंद ..धन्यवाद ...गाँधी न होते तो मैं न होता -भारत के ३३ करोड़ नंगे -भून्खों क औदार भरण सम्भव नहीं ....भारतीय नेतृत्व को अभी और मशक्कत करने है .जन आंदोलनों की अनदेखी महेंगी पड़ेगी .

शनिवार, 6 नवंबर 2010

जो हमने दास्तान अपनी सुनाई ... तो आप क्यों रोए ?

 द्वतीय महायुध्य  के बाद दुनिया दो खेमों में बट गई थी .एक का नेत्रत्व अमेरिका के पास था .दूसरे का सोविएत संघ पैरोकार था .दोनों का अपना विशिष्ठ दर्शन था .अमेरिका को उसके पूंजीवादी अर्थतंत्र में विकाश कि सफलताएं मिलती जा रहीं थीं .उधर सोवियत रूस ,चीन , क्यूबा ,वियेतनाम ,कोरिया . जर्मनी ,पोलैंड और युगोस्लाविया जैसे कई देश समाजवादी विचारधारा को अपनाते हुए तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे .रूस तो अमेरिका से पहले अन्तरिक्ष में जा पहुंचा .धरती से ..चाँद पर पहला कदम रखने वाले युरी गागरिन और नील आर्मस्ट्रोंग  सोवियत क्रांती  को चमत्कृत करने वाले हीरो बन चुके थे .अमरीका और उसके पूंजीवादी दोस्तों कि नाक नीची होने से सारी दुनिया के अन्य तठस्थ देश भी लाल झंडे के नीचे आने को आतुर हो गए .इनमें भारत जैसे नव स्वाधीन देश भी थे . आजादी के पूर्व से ही भारत कि जनता का झुकाव समाजवाद कि ओर था .स्वाधीनता के बाद राष्ट्रीय नेतृत्व ने गुट निरपेक्षता और प्रजातंत्र कि ,पूंजीवाद +समाजवाद कि खिचड़ी =मिश्रित अर्थ व्यवस्था को भारत के लिए उत्तम माडल मानकर ,दोनों खेमों से अलग तीसरा मोर्चा अर्थात गुट निरपेक्ष आन्दोलन खड़ा करने में जुगत भिडाई.-नेहरु -टीटो नासिर कि त्रयी को राजनेतिक इतिहास में महानायकों जैसा सम्मान देख अमेरिकी खुफिया एजेंसी कि त्योरियां चढ़ी और इस  आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए भारत के अन्दर से विभीषण खोजे गए .
          हालाँकि  यह काम पहले से ही जारी था ..किन्तु मध्य पूर्व में हस्तक्षेप और ओपेक कि दादागिरी को नकेल कसने के बहाने अमेरिका ने शीत युद्ध कि आड़ में एक तीर से कई निशाने साधे .पहले तो दुनिया के अधिकांस देशों में जैचंद तैयार किये ,फिर कल्याणकारी -सोसल वेल्फैर स्टेट के नाम पर सर्वहारा में फूट डाली ,उन्हें वर्गों -जातियों और साम्प्रदायिकता के द्वन्द में बड़ी चालाकी से उलझा दिया .ऐसे घृणित कार्यों के लिए बाकायदा अमेरिकी सीनेट से बजट मंजूर किये जाते रहे हैं .उन्ही को आधुनिक वनाकर अब अद्द्य्तन रूप में सक्रीय किया जा रहा है .
        यह आम धारणा है कि किसी संप्रभु स्वतंत्र राष्ट्र कि विदेश नीति  -उस राष्ट्र के बहुमत जन -गणों ,शक्तिशाली सामाजिक समूहों के दवाव और प्रभाव से परिचालित होती है .किन्तु अमेरिकी नीति के विशेषज्ञ अब एक्सपोज होते जा रहे हैं .अब यह कोई रहस्य नहीं रह गया कि पेंटागन ,वाल स्ट्रीट  और व्हाईट हाउस  को निर्देशित करने वाली लोबी ,दुनिया भर में विभिन्न राष्ट्रों के आपसी संबंधों में अपने आर्थिक साम्राज्वाद के हितों  को शिद्दत से प्राथमिकता देती है .इनके सलाहकार समूहों में पूर्व राजनयिक और खुर्राट सी आई ये अफसरों कि युति हुआ करती है .अभी  अमेरिकी राष्ट्रपति श्रीमान ओबामा भारत पधारे हैं .उनके आगमन कि पूर्व वेला में भारत और चीन से सम्बंधित एक बयान श्री ब्लैक बिल का आया है .उनके बयान से उक्त तथ्यों कि पुष्टि स्वतः हो जाती है .
         अमेरिका में "कोंसिल आन फारेन रिलसंस"जैसी  कुख्यात संस्था के एक सदस्य श्री -ब्लैक बिल ऐसे अकेले भारत मित्र {?] नहीं हैं .एक ढूढ़ो सेकड़ों मिल जायेंगे .अमेरिका के भारत में पूर्व राजदूत रावर्ट ब्लैक बिल ने फ़रमाया है कि मैं भारत के सामरिक चिंतकों से सहमत हूँ कि चीन भारत के उदय को रोकने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है .उन्होंने ये भी कहा कि इन घटनाओं का ताल्लुक कश्मीर पर चीन कि नीति और पुरातन भारत -चीन  सीमा विवाद है .उनका यह अन्वेषण  कि चीन पकिस्तान  के कंधे पर बन्दुक रखकर दोनों पड़ोसियों को उलझाये रखना चाहता है .सही भी है किन्तु प्रश्न ये है कि फिर ओबामा जी भारत आकर इसमें हमारी मदद कर रहें है या अपने आर्थिक संकट का ठीकरा हमारे सर फोड़ने कि जुगत भिड़ा रहे हैं .चीन का भारत से आगे निकल जाने का हौआ कौन खड़ा कर रहा है ?किसका स्वार्थ सध रहा है ? ब्लैक बिल कि मीठी -मीठी बातों में हमें नहीं आना चाहिए .हमारे प्रधान मंत्री जी ने विगत मुलाकात में चीन के प्रधान मंत्री वैन च्या पाओ से मुलाकात कर आपसी मसलों पर चर्चा की है .भारत का नेतृत्व हर मामले में स्वयम सक्षम है जरुरत पड़ी तो चीन से सख्ती के साथ भी पेश आ सकते हैं . .भारत को ओबामा से चीन के बारे में  नहीं .बल्कि अमेरिका द्वारा भारत के खिलाफ किये जा रहे अन्याय पर  चर्चा केन्द्रित करनी चाहिए और हेडली जैसे गद्दारों को भारत की अदालत के समक्ष पेश करना चाहिए . सम्भव हो तो पकिस्तान और भारत के बीच संघर्ष टालने की कोशिस करने के लिए कम से कम पकिस्तान स्थित  आतंकवादी शिविर  बंद होने चाहिए .

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

हेप्पी-दीपावली मिस्टर बराक़ ओबामा.

श्रीमान .बराक हुसेन ओबामा साहिब -भारत तशरीफ़ ला रहे हैं . ६ -नवम्बर २०१०  को वे मुंबई प्रवास करेंगे .वे ५ वें अमेरिकी राष्ट्रपति है जो भारत कि सरजमीं पर अपने अ -पावन चरण रखेंगे . मीडिया में उनकी इस यात्रा के बारे में काफी कुछ कहा -सुना ,लिखा -पढ़ा जा रहा है .उनके पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों कि बड़ी चर्चा है .कि वे ताज में ठहरेंगे ,भारत में दीवाली मनाएंगे और भारत कि संसद को संबोधित करेंगे .इत्यादि ..इत्यादि ..
                  श्री ओबामा का यह भारत  आगमन    ठीक ऐसे समय में हो रहा है जबकि अमेरिकी पूंजीवादीअर्थ तन्त्र के  शिल्पकार न केवल अपनी अस्मत अपितु रोजी रोटी कि चिंता में यूरोप को भी शामिल करते हुए  उस सर्वग्रासी आर्थिक  संकट के जुए का अतिरिक्त  भार   भारत जैसे विकाशशील देशों के कन्धों पर डालने कि प्लानिंग   में रात -दिन जुटे हुए हैं . इससे पूर्व जनाब बुश साहब कि जागतिक -आक्रामक साम्र्ज्वादी नीति से लहू लुहान अमेरिकी जनता ने देमोक्रट्स प्रत्यासी  मिस्टर ओबामा को इस आशा से चुना था  कि वे अमेरिकी छतरी के नीचे तात्कालिक वित्तीय अमन कायम करें .सो वे यही प्रयास सफल बनाने के लिए अपने साथ १५० टॉप पूंजीपतियों  का विशाल   काफिला लेकर भारत पधार रहें 
              भारत के खिलाफ   अमेरिकी कूट     षड्यंत्रों  कि कलुषित स्याही से अतीत का हिस्सा बेहद बदरंग हो चुका है .अब इस काली कंबली पर दूजा रंग चढ़ाये जाने के असफल प्रयाश किये जा रहे हैं .श्री ओबामा  क़ी नीति शुरू से ही भारत विरोधी रही है .सूचना प्रोद्दोगिकी क्षेत्र में उन्होंने अमेरिकी नौजवानों को  नौकरियां देने के बहाने भारत जैसे देशों क़ी आउट सोर्सिंग बंद करदेने का आह्वान कई दफे किया है .अब वे वीजा क़ी फीस बढाने क़ी बात करने लगे हैं .उधर  G -७ओर जी २०   के मध्य हुए पर्यवार्नीय करारों और आयात शुल्क में क़ी जा रही एकतरफा बढ़ोत्तरी को अनुपात मुक्त किये जाने को लेकर चीनऔर ओपेक देशों  द्वारा किये जा रहे एकतरफा अवरोधों पर अमेरिका का कोई वश नहीं चल पा  रहा है .  लगता है क़ी जमाने भर क़ी वैश्विक इमानदारी का ठेका हमने {भारत}ही ले रखा है   
             कोई अदना सा साक्षर व्यक्ति भी इन मंतव्यों के निहितार्थ समझ सकता है .जैसे क़ी इन क़दमों से भारत में वेरोजगारी बढ़ेगी ,भारतीय सूचना एवं तकनीकी कम्पनियों से बाज़ार जाता रहेगा ,उनके राजस्व में गिरावट का परिणाम होगा छटनी और बेकारी .श्री ओबामा के साथ जो १५० कम्नियों के C E   O    आ रहे हैं वे सभी बहुरास्ट्रीय कम्पनियों के मालिक में से ही हैं .वे सभी मिलकर भारत सरकार पर दवाव बनायेंगे क़ी आर्थिक सुधार ?{विनाश }क़ी प्रक्रिया तेज करो ताकि अमेरिकी शेष सब प्राइम संकट का कुछ हिस्सा भारत भी वहन करे .भारत को ऐसा क्यों करना चाहिए ? वैसे  भारत में धन धान्य क़ी प्रचुरता के वावजूद ६० करोड़ नंगे भून्खों क़ी विशाल मर्मान्तक भीड़ मौजूद है .ऐसा क्यों ?यह प्रश्न करना भी अब दूभर बना दिया गया है .पीड़ित जनता चुप रहे ,रूखी सूखी खाय कें खुश रहे ,"संतोषम परम सुखं "का शंखनाद करे सो सारे देश में मक्कार -मसखरे -निठ्ल्ल्ये बाबाओं को  खाद पानी दिया जा रहा है .कोई मंदिर बाला बाबा है ,कोई मस्जिद बाला कोई जड़ी वूटी बाला और कोई योगासन वाला .सारा निम्न माध्यम वर्ग अपनी चिंताओं का निदान प्राण -अपान-व्यान -उदानऔर सामान में देखने लगा है ...
       सरकारी सार्वजानिक उपक्रमों को खरीदने आ रहे विदेशी मुनाफाखोर भारत क़ी धरती पर दीवाली मनाएंगे .हम और हमारे तमाम सूचना माध्यम सिर्फ उन्हें देखेंगे -पढेंगे -सुनेंगे और अच्छे अनुशाषित छात्र क़ी तरह यस सर बोलेंगे .
     इकवाल ने ७० साल पहले ही चेता दिया था ...
     वतन क़ी फ़िक्र कर नादाँ मुसीवत आने वाली है ....
 तेरी बर्वादियों के मशविरे हैं आसमानों में .....
   न संभलोगे तो मिट जाओगे ,हिन्दोस्तान वालो ...
 तुम्हारी दास्तान तक भी न होगी दस्तानो में ......
         सभी मित्रों ,सपरिजनों ,ब्लोगरों पाठकों तथा साहित्यकारों  को दीपावली -प्रकाश पर्व क़ी शुभकामनायें .....श्रीराम तिवारी

सोमवार, 1 नवंबर 2010

साम्यवाद का सूर्यास्त कभी नहीं होगा...

विगत २००७ के  दरम्यान  जब अमेरिकी पूँजी वादी साम्राज चरमराकर -भरभराकर ,भू लुंठित हो रहा था और एक के बाद एक कार्पोरेट  कम्पनी -बैंक बीमा दिवालिया घोषित किये जा रहे थे ,तब लातीनी अमेरिका में समानांतर वित्तीय व्यवस्था के प्रयोजनार्थ न केवल प्रयाश तेज किये जा रहे थे बल्कि "बैंको देल -ओ -सूर "नामक विश्व स्तरीय बैंक कि स्थापना भी कि जा रही थी . विशेष  तौर पर वेनेजुएला ,अलसल्वाडोर ,वोलिविया ,चिली तथा ब्राजील कि वाम -जनवादी -कतारों ने इसमें बेहतर योगदान दिया .विश्व राजनीती के विश्लेषक -वुद्धिजीवी ,एवं पूंजीवादी अर्थशाष्त्री ........
हैरान हैं कि सोवियत संघ में प्रतिक्रांति के वावजूद ,चीन में पूंजीवादी सुधारों के बरक्स्स दक्षिण अमेरिकी देशों में वामपंथ या साम्यवाद कि बयार क्यों बह रही है ? वेनेजुएला के राष्ट्रपति कॉम .ह्यूगो चवेज ,क्यूबा के महानायक कॉम .फिदेल कास्त्रो तो अमेरिका कि नाक में दाम कर ही रहे थे अब ब्राजील में भी एतिहासिक राजनेतिक परिवर्तन कि संभावनाएं तेज होती जा रहीं हैं .
            ब्राजील में -एक पूर्व मार्क्सवादी गैरिल्ला एक्टिविस्ट सुश्री दीलिमा रूसेफ़ को वहां के राष्ट्रपति  के  चुनावों में भारी बहुमत  से जीत हासिल हुयी है .वे ब्राजील कि पहली महिला राष्ट्रपति होंगीं .ब्राजील के सुप्रीम एल्क्ट्रोरल कोर्ट ने इस आशय कि अधिसूचना कल १ नवम्बर २०१० को जारी कर दी है . वे १ जनवरी  से देश का शाशन संभालेंगी .सुश्री रुसेफ़ को ५७ %मत  प्राप्त हुए हैं .
             भारत और विश्व सर्वहारा  के लिए यह एक आशाजनक स्फूर्तिदायक सन्देश होगा .जो क्रांती कि ताकतों को एकजुट संघर्ष के लिए प्रेनास्पद  होगा ....साम्यवाद एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है जो न केवल  महनत करने वालों का अपितु सारी मानवता का सर्वांग सार्वदेशिक हितेषी है ,जिसका अस्तित्व कभी ख़त्म नहीं होगा .इसका सूरज कभी नहीं डूबता ....श्रीराम तिवारी ....
                        

भारत और इंडिया मे दूरी बढ़ती जा रही है-कब वापिस आओगे मास्टर बाबूलाल...

बात उन दिनों की है जब हम मिडिल  स्कूल में पड़ा करते थे तब भारत और इंडिया का एक ही मतलब हुआ करता था .यही सीखा था हमने डॉ बाबूलाल से ...उस जमाने में दुनिया भर  की ख़बरें बाबूलाल मास्टर  के द्वारा हमें ताजातरीन मिल जाया करतीं थींचीन पकिस्तान अमेरिका और सोवियत संघ के बारे में ,कश्मीर के बारे में ,जनसंघ ,कांग्रेस और साम्यवादियों के बारे में .मास्टर बाबूलाल  को उस ठेठ देहात में इतना ज्ञान था कि आज के विनोद दुआ और योगेश यादव भी शर्मा जाएँ .वाल तेर . गेरिबल्दी से लेकर  सुमित्रानंदन पन्त पर रास्ते में खड़े खड़े अच्छी खासी गोष्ठी हो जाया करते थी वन  मेन आर्मी जैसे थे हमारे मास्टर बाबूलाल ..वे जाति के कहार या रेकुवार थे किन्तु पता  नहीं कब -किसने -कहाँ प्रभावित किया सो -केश ,कंघा  ,कड़ा,कच्छ और कटार    धारण कर पता नहीं कहाँ-कहाँ क्या -क्या करते फिरते थे  अलवत्ता वे विना डिग्री के इलाकाई एलोपेथिक डाक्टर हुआ करते थे .उन्होंने तीन शादियाँ की थीं .पहली खांटी देहातिन होने से कुछ दुराव हुआ सो दूसरी थोड़ी मोर्डन याने छुत्कौवल  साड़ी पहिनने वाली सुन्दरी ले आये .इसके अलावा एक और चीज थी जो उन्हें इस धरती पर सबसे अधिक प्रिय थी -वो थी उनकी १२ बोर की बन्दूक -जिसे वे मजाक में तीसरी बेगम कहा करते थे .उनका व्यक्तित्व बब्बर शेर जैसा था .आसपास के १०० कोस के दायरे में वे एकमात्र चिकित्सक ,एकमात्र सरदार .एकमात्र भगोड़े मास्टर थे .
            भगोड़े इसलिए की सरकारी टीचेरशिप से उन्हें वर्खास्त किया गया था .यह किसी को नहीं मालूम की क्यों ? उनके लड़के भी उनसे ज्यादा लम्बे तड़ंगे और महा पातकी निकले .एक सरदार बनकर डाक्टरी करते करते कई बार जेल हो आया .एक ने कई महिलाओं का जीवन बर्बाद किया ,एक ने मानसिक संत्राश से प्रेरित होकर आत्महत्या कर ली .एक दो  ने झोला छाप डाक्टरी या कस्बाई पत्रकार बनकर इलाके में अपने बाप का नाम रोशन किया .इस प्रकार डाक्टर बाबूलाल की  लगभग आधा दर्जन ओलादें होते हुए भी वे बुढ़ापे में दर- दर की ठोकरें खाने को अभिशप्त थे -सो वे स्वयम डाक्टर होते हुए भी इन महा ब्याधियों के शिकार होकर परमात्मा को प्यारे  हो गए ..
   डाक्टर बाबूलाल  का सामान्य ज्ञान उत्क्रष्ट था भले ही उनका रहन सहन निकृष्ट था . गाँव में उस समय  दूरदर्शन ,अखवार  का नामोनिशान नहीं था सिर्फ दो रेडियो थे एक -सिघई गुलाबचंद {सरपंच एवं जैन मंदिर त्र्श्ती ]
दूसरा डॉ बाबूलाल जी के यहाँ .में जिस रास्ते से स्कूल जाता था उस रास्ते पर इन दोनों के मकान पड़ते थे .अतः जब हम तीन -चार भाई एक टोली के रूप में घर से निकलते तो पहले डॉ बाबूलाल जी को भाई साब जैरामजी करते और बदले में वे एक दो ताज़ा समाचार हम लोगों की और हवा में यों उछालते मानों मंदिर में प्रसाद बाँट रहे हों .इस तरह कक्षा  ५ वीं से लेकर ८ वीं तक के सफ़र में डॉ बाबूलाल ने हम सभी को तत्कालीन सामान्य ज्ञान में इतना आप्लावित कर दिया कि जो ६ वीं में पढता था वो ८ वीं से ज्यादा जानने लगता था .स्कूल का अनुशाशन काबिले तारीफ था .यह अलहदा बात है कि डॉ बाबूलाल सरकारी शिक्षक नहीं थे किन्तु जब कभी उन्हें अपने चिकित्सीय पेशे से फुर्सत मिलती वे गाँव  के अपढ़ लोगों को भी शिक्षित करते .भारत में  आजादी के बाद नेहरु युग में जो भी घटा वो सब हमें आज भी अक्षरश ;याद हैक्योंकि यह उसी दौर का आख्यान है .जो स्कूली ज्ञानहुआ करता  था वो तो डंडे के डर पर हमें याद करना ही होता था किन्तु साहित्य क्या है ,कला क्या है राजनीत क्या है ये भी हमें जानना चाहिए .जब हम पूंछते थे कि  क्यों ?तो जबाब होता था कि इसलिए कि यदि कभी मेरी तरह एक जगह से बर्खास्त कर दिए जाओ तो दूसरी जगहआसानी से फिट हो जाओ ..आज के शिक्षक गाँव में रहना पसंद नहीं करते ,स्कूलों में गाय ढ़ोरों जैसे स्थिति है ,छात्र और शिक्षक एक दुसरे से तिकड़में भिडाकर टूशन और पास होने कि गारंटी में लिप्त हैं यही वजह है कि आज गाँव का छात्र बेहद पिछड़ गया है जबकि शहरों में बुर्जुआ वर्ग के पास भ्रष्टाचार से प्राप्त आकूत आमदनी है अतह जबकि आज के शिक्षकों  को मोटी पगार और बेहतर भत्ते के अलावा पेंशन इत्यादि कि गारंटी है किन्तु वहां न तो पुस्तकालय हैं न प्रयोगशालाएं हैं और न ही आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के संसाधन . यह देश कि ७० प्रतिशत ग्रामीण जनता के प्रति वर्तमान दौर कि पतनशील पूंजीवादी छल्नात्म्क व्यवस्था  का ही दोष है कि सरकारी -गैरसरकारी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों का और खास तौर से हिदी भाषी भारत में भय भूंख और भृष्टाचार से पीड़ित युवाओं का प्रतिशत नगण्य है .
जिन गाँवों  में आजादी के ६० साल बाद भी पीने योग्य पानी उपलब्ध नहीं .एक प्रशिक्षित डॉ नहीं, पोलिस नहीं ,डाकखाना नहीं, मोटर  या ट्रेन का साधन नहीं ,वहां का युवा छात्र या नौजवान ,यदि   किसी तरह कोई योग्यता परीक्षा पास कर भी ले या कोई इंटरव्यू में निकल भी जाए तो वह  या तो गाँव में तारीख पर पत्र नहीं मिलपाने से या शहर पहुँचने कि असुविधा के कारण इंडिया के साथ नहीं चाल पा  रहा है अब तो गाँवों में चौतरफा गृह युद्ध छिड़े हुए हैं ..जात -पांत में तो पहले भी ग्रामीण समाज अन्दर ही अन्दर सुलग रहा था अब तो घर घर में राजनीती .साम्प्रदायिकता और जर -जोरू -जमीन के झगडे बेतहाशा बढ़ते जा रहे हैं .अधिकांश राजनेतिक दलों ने गाँव कि गरीव जनता को केवल वोट बैंक समझ कर भू स्वामियों और वैश्वीकरण के लुटेरे हाथों में पिसने के लिए मजबूर कर दिया है ...गाँव के किसानो .खेतिहर मजदूरों और कारीगरों को एकजुट कर बंगाल और केरल तथा त्रिपुरा कि वाम पंथी सरकारों ने पूरे भारत को नई राह दिखाई है .वाम शाशित तीनों राज्यों में भले ही और कोई शिकायत हो किन्तु साक्षरता और कन्या संरक्षण में इनका काम काबिले तारीफ है .