मार्क्सवाद जीवित है
मार्क्सवाद फेल हो गया, कम्युनिस्ट पार्टियों को कोई पूछता भी नहीं है, पूरी दुनिया ने इस दर्शन को नकार दिया है, वगैरह वगैरह !
ये वो आलोचना है जो कोई भी मुँह उठाकर भरभरा के बोल देता है। ऐसा बोलने वालों में निरहू से लेकर घुरहू तक सभी शामिल हैं।
लेकिन मार्क्सवाद है क्या ?
हर तरह के भेदभाव से मुक्त एक समाज का सपना, जिसमें लैंगिक, आर्थिक, सामाजिक या पारिवारिक किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होगा, एक सपना जिसमें दुनिया के सर्वोत्तम पर दुनिया के हर इंसान का हक होगा, एक सपना जिसमें विकास तबाही के घोड़े पर सवार होकर नहीं आएगा, एक सपना जिसमें इंसान को उसका सर्वोत्तम हासिल होगा लेकिन पेड़ पौधों, जीव जंतुओं सबके हित भी सुरक्षित होंगे, एक ऐसा समाज जिसमें दो वक्त की रोटी जुटाने में ही ज़िन्दगी ख़त्म नहीं होगी। जब तक इस सपने की सार्थकता है, जब तक ये सपना किसी भी एक आंख में मौजूद है, जब तक इन सपनों को रौंदने वाले मौजूद हैं, मार्क्सवाद की प्रासंगिकता बनी रहेगी, भले ही दुनिया में एक भी कंम्यूनिस्ट न हो।
हो सकता है ये सपने आपको हक़ीक़त से बहुत दूर नज़र आयें, लेकिन अभी दो सदी पहले हवा में उड़ते हुए यात्रा करना भी ऐसा ही एक सपना था, लेकिन आज हक़ीक़त है।
दुनिया भर में मार्क्सवाद को बदनाम करने के लिए तो मुहिम खूब चलाई गई लेकिन मार्क्सवाद को सही रूप में समझाने की कोशिशें बहुत कम हुई हैं। कमाल देखिये दुनिया भर में नागरिकों को "सुविधा" के रूप में जो भी हासिल हुआ है, उसकी बुनियाद में कम्युनिस्ट आन्दोलन रहे हैं। थोड़ा खोजिये, पढिये और जानिए की सार्वजनिक मताधिकार, महिला अधिकार, 8 घंटे काम का अधिकार, नस्लीय बुनियादों पर भेदभाव का खात्मा आदि सबके पीछे कम्युनिस्ट नज़र आएंगे।
मन करे तो कम्युनिस्ट घोषणापत्र पढ़ डालिए ।
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