शनिवार, 24 जून 2023

कार्ल मार्क्स: उदारतावाद और राष्ट्रवाद

कार्ल मार्क्स के 200वें जन्मदिन पर इस संगोष्ठी का आयोजन करके जनवादी लेखक संघ , मथुरा और जन सांस्कृतिक मंच मथुरा ने ऐतिहासिक काम किया है,मार्क्स का जन्मदिन मथुरा में मनाया जा रहा है यह अपने आप में सबसे महत्वपूर्ण बात है।यह कार्यक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि माकपा या जलेसं के केन्द्रीय संगठन अभी तक इस तरह के कार्यक्रम नहीं कर पाए हैं। मथुरा में इससे पहले कभी किसी वामदल या उससे जुड़े जनसंगठन ने भी मार्क्स का जन्मदिन नहीं मनाया।आप लोगों ने मुझे बुलाया इसके लिए मैं आप लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं।यह कार्यक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यहां अधिकांश उपस्थित लोग गैर-मार्क्सवादी हैं। मेरे लिए इस मौके पर बोलना बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण है।आपलोग सब मेरे गहरे मित्र हैं और आप मेरी पीड़ा जानते हैं। मेरे पिता की तीन दिन पहले ही मृत्यु हुई ,मैं उनके क्रिया-कर्म के दायित्वों में घिरा हुआ हूं, सामान्यतः मुखाग्नि देने के बाद घर से निकलने पर पाबंदी है।फिर भी मैं आपलोगों के प्रेम और लगाव के कारण इस कार्यक्रम को टाल नहीं पाया, साथियों ने कार्यक्रम स्थगित करने का सुझाव दिया था, हम सब श्मशान में मिले भी,पर,मैंने कहा कि कार्यक्रम स्थगित मत करो,मैं पूरी कोशिश करूंगा आने की,मेरा कहना यही था कि कार्यक्रम तयशुदा योजना के अनुरूप हो,मैं न आ पाऊं तो भी आपलोग मार्क्स पर बातें करें,आपलोगों ने मेरी बात रख ली और यह बहुत अच्छा किया, अशोक बंसल ने इस मौके पर एक छोटा वक्तव्य लिखित रूप में तैयार किया और उसे जलेसं के सचिव ने पढ़ा,यह वक्तव्य इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसे एक गैर मार्क्सवादी ने तैयार किया।

इस कार्यक्रम के बहाने मुझे अपने कष्ट से कुछ समय ध्यान हटाने का मौका मिला।
कार्ल मार्क्स पर बातें करते समय एक बात हमेशा ध्यान रखें ,उनके समूचे चिन्तन-मनन का परिवेश,उनके मित्रों का परिवेश लोकतान्त्रिक था, उनके ज्ञान के स्रोत का मूलाधार वे विचार हैं जो अपने जमाने के लोकतान्त्रिक विचार रहे हैं। मार्क्स ने सबसे ज्यादा सीखा गैर-साम्यवादियों से,कहने का आशय यह कि उदारतावादी सामाजिक परिवेश, उदारतावादी मित्रों और गैर-मार्क्सवादी ज्ञान परम्परा की उनकी विश्वदृष्टि के निर्माण में निर्णायक भूमिका है।
कार्ल मार्क्स पर विचार करते समय मार्क्स के नाम पर प्रचलित स्टीरियोटाइप धारणाओं और मार्क्सवादी कठमुल्लेपन से बचने की जरूरत है। मार्क्सवादी स्टीरियोटाइप बनाने में कम्युनिस्ट दलों और उनके तथाकथित मार्क्सवादी लेखन की केन्द्रीय भूमिका रही है। अधिकतर कम्युनिस्ट कार्यकर्ता मार्क्स की रचनाओं को नहीं पढ़ते, स्थिति यह है कि वे नाम तक नहीं जानते,वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य होने के नाते मार्क्सवादी होने का दावा पेश करते हैं।मैं आजतक यह समझने में असमर्थ रहा हूं कि कोई कॉमरेड बिना मार्क्स को पढ़े और समझे मार्क्सवादी कैसे हो सकता है! कहने का आशय यह कि मार्क्स पर बातें करते समय इस तरह के दलीय साम्यवादी रूढ़िवाद से बचने की जरूरत है क्योंकि इसका कार्ल मार्क्स के लेखन से कोई लेना देना नहीं है।कार्ल मार्क्स के लेखन की धुरी है विचारों की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,मार्क्स के विचारों का मूलाधार है मनुष्य। उल्लेखनीय है परंपरावादी लोगों के विचारों का मूलाधार धर्म और उससे निकला ईश्वर है,हेगेल के विचारों की धुरी राजसत्ता है,हेगेल ने राज्य से आरंभ किया और व्यक्ति को राज्य की विषयवस्तु बनाया। मैं साफतौर पर कहना चाहता हूं मार्क्स के विचारों का मूलाधार सर्वहारा नहीं बल्कि मनुष्य है। सर्वहारा का विचार तो उनके लेखन में बाद में दाखिल होता है,पेरिस जाने के बाद ही मार्क्स को सर्वहारा की दुर्दशा का ज्ञान हुआ। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि मार्क्स ने 'सकारात्मक मानवतावाद' पर मुख्य रूप से जोर दिया, वे स्वयं रेडीकल डेमोक्रेट थे। उनके जीवन के इस पहलू की अनदेखी की गयी और उनको कट्टर मार्क्सवादी-साम्यवादी बना दिया गया,यह काम किया साम्यवादी दलों ने।
कार्ल मार्क्स के विचारों के सर्जनात्मक विकास को हम अकादमिक जगत में सहज ही देख सकते हैं। खासकर गैर समाजवादी देशों के अकादमिक जगत की इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
मार्क्स के लेखन का सर्जनात्मक विकास साम्यवादी दलों ने नहीं किया,उन लोगों ने तो मार्क्स को आस्था और पूजा की निर्जीव प्रतिमा बना दिया।मार्क्स पूजा की चीज नहीं है,ईश्वर नहीं है।(क्रमशः)
कार्ल मार्क्स के 200वें जन्मदिन पर जलेसं और जन सांस्कृतिक मंच , मथुरा की संगोष्ठी में दिया गया भाषण -
कार्ल मार्क्स: उदारतावाद और राष्ट्रवाद (२)
हम सब जानते हैं कि 18वीं सदी की औद्योगिक क्रांति के गर्भ से विखंडित और असंपूर्ण मनुष्य का जन्म हुआ।यह ऐसा मनुष्य है जिसके आंतरिक और बाह्य कलेवर को आधुनिक पूंजीवादी उत्पादन संबंधों और श्रम विभाजन ने बनाया।श्रम विभाजन, मशीनीकरण, शोषण और यूरोपीय व्यापारिक अनुभवों के परिवेश में जो मनुष्य जन्मा वह एकदम अकेला था।समाज और प्रकृति से अलग होकर जीना उसकी नियति थी।नयी संवृत्ति के रूप में 'अकेलेपन' और 'अलगाव' का जन्म हुआ और क्रमश: इन दोनों चीजों ने समूचे आधुनिक परिवेश को अपनी पकड़ में ले लिया।
नए परिवेश में आनंद का श्रम से अलगाव, साध्य का साधन से अलगाव पैदा हो गया।यहां तक कि साध्य और साधन के बीच अलगाव पैदा हो गया।
औद्योगिक क्रांति ने प्रत्येक पुरानी चीज के खिलाफ बगावत का भाव पैदा किया। सवाल यह है बगावत का भाव माल और वस्तु के भाव में कैसे रूपान्तरित हो गया ?नयी परिस्थितियों ने विखंडित मनुष्य को जन्म दिया।यही वह प्रस्थान बिंदु है जहां मार्क्स ने 'समग्र मनुष्य' की धारणा पेश की।
औद्योगिक क्रांति ने विखंडित मनुष्य और विखंडित परिवेश को जन्म दिया।जीवन में हर स्तर पर 'इकसार लय' पैदा की,यह लय नए को रचने में एकदम असमर्थ थी। इसमें सद्भाव पैदा करने की क्षमता नहीं थी। फलत:जीवन में विखंडन और इकसार छंद ने वर्चस्व स्थापित कर लिया। वहीं दूसरी ओर ' पूंजी की व्यापारिक स्प्रिट' और 'लालच' ने जीवन के हर क्षेत्र को अपनी गिरफ्त में ले लिया और हरेक को 'निजी संपत्ति' का गुलाम बना दिया। यही वह परिप्रेक्ष्य है जिसमें मार्क्स ने'समग्र मनुष्य' और 'क्रांतिकारी आशावाद' की धारणा पेश की।मार्क्स का मानना था 'अपूर्ण मनुष्य ' कभी भी समाज नहीं बदल सकता।
इस प्रसंग में क्रिस्टोफर कॉडवेल ने लिखा बुर्जुआ औद्योगिक सभ्यता के उदय ने समस्त प्राचीन ग्रामीण संबंधों को निष्ठुर अर्थमूलक संबंधों में रूपांतरित कर दिया। 'जहां तक अपने आधार में क्रांति लाने का प्रश्न है,बुर्जुआ वर्ग हर कदम पर क्रांतिकारी है ।' दिक्कत यही है कि इस बुनियादी बात को समझने में अन्य मार्क्सवादी असमर्थ रहे,यह धारणा मार्क्स की समझ से भिन्न है।
धर्मनिरपेक्षता और धर्म -
कार्ल मार्क्स के नजरिए से उदारतावाद और राष्ट्रवाद पर विचार करते हुए जो धारणा सेतु के रूप में नजर आती है वह है धर्मनिरपेक्षता, आधुनिक काल के आगमन के साथ जिस औद्योगिक क्रांति का जन्म हुआ उसके गर्भ से समाज की नई धर्मनिरपेक्ष संरचनाओं का जन्म हुआ, व्यक्ति,समाज, समुदाय और राष्ट्र के धर्मनिरपेक्षीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई। धर्म और राज्य के बीच संबंध विच्छेद हुआ।
परंपरागत समाजों में धर्म जीवन के हर क्षेत्र में छाया रहता है। मार्क्स ने धर्म के नजरिए से भिन्न मनुष्य को केन्द्र में रखकर जगत को परिभाषित किया। फ्रांसीसी राज्य क्रांति ने समानता, लोकतंत्र और बंधुत्व की धारणा दी , औद्योगिक क्रांति ने नए उत्पादन संबंधों और ने वर्ग के तौर पर पूंजीपति और मजदूर वर्ग को जन्म दिया,साथ ही प्रेस क्रांति हुई जिसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संभव बनाया। इस समूची प्रक्रिया के गर्भ से धर्मनिरपेक्ष समाज का जन्म हुआ।
धर्मनिरपेक्षता आधुनिक युग का बुनियादी संस्कार और मूल्य है,जिन राजनीतिक -सामाजिक ताकतों को आधुनिक विकास, आधुनिक मूल्यों और लोकतंत्र से नफरत है वे सबसे पहले धर्मनिरपेक्षता पर हमले करते हैं। लोकतंत्र ,संवैधानिक व्यवस्था और संरचनाओं को अस्वीकार करते हैं।
विगत सौ साल में साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद और आतंकवाद ने धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र पर जमकर हमले किए ,अतीत के प्रेतों को जगाया। इस कार्य में समय-समय समय पर इन ताकतों को बाह्य शक्ति के तौर पर साम्राज्यवाद , बहुराष्ट्रीय कंपनियों और देशज स्तर पर सरकारों और कारपोरेट घरानों और अपराधी गिरोहों की मदद मिलती रही है,इन सबके अलावा मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग का बडा अंश और मीडिया इनके सामाजिक समर्थक की भूमिका निभाता रहा है।इस सबसे धर्मपेक्षता विरोधी ताकतों की राजनीतिक शक्ति में इजाफा हुआ है।
हम जिसे आजकल 'दंगे' कहते हैं,वह 18वीं सदी से शुरू होते हैं।ये हमारे समाज के धार्मिक -आर्थिक विभाजन की देन हैं।उसी दौर में आर्थिक भेदभाव को धार्मिक भेदभाव के साथ मिलाने की कोशिशें आरंभ हुईं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि ब्रिटिश शासकों ने भारत को कभी 'राष्ट्र' के रूप में नहीं देखा।वे भारत को विभिन्न धार्मिक समूहों का देश मानते थे। इस काल्पनिक धारणा के आधार पर उन्होंने यह निष्कर्ष भी निकाला कि ये धर्म एक-दूसरे से परंपरागत द्वेष रखते हैं। ब्रिटिश परस्त विचारक यह भी मानते थे कि भारत हमेशा से धर्म के द्वारा विखंडित देश रहा है। यह अफसोस की बात है कि कांग्रेस भी यह मानती रही है कि भारत धार्मिक समूहों में बंटा हुआ देश है।इसके नेता हिन्दू-मुसलमानों को दो भिन्न पहचान में बांटकर देखते थे। कांग्रेस ने सन् 1889 के अपने चौथे अधिवेशन में यह प्रस्ताव पास किया कि हिन्दू और मुस्लिम संगठन यदि किसी विषय पर विरोध कर रहे हैं तो उस विषय पर कांग्रेस में चर्चा नहीं होगी। सन् 1916 में कांग्रेस ने हिंदू -मुसलमानों के दो अलग गुट बनाकर प्रतिनिधि मंडल भेजा, गांधी लगातार हिन्दू इडियम में बोलते थे। संक्षेप में कहें तो ब्रिटिश सामाजिक और धार्मिक नीति , कांग्रेस की शार्टकट साम्प्रदायिकता और असमान राजनीतिक चेतना के विकास ने ब्रिटिश युग में साम्प्रदायिक राजनीति को जन्म दिया। इसके ही गर्भ से भारत विभाजन की राजनीति का आरंभ हुआ और देश विभाजन हुआ।
भारत विभाजन और गांधी जी की हत्या के बाद धर्म और राजनीति के बीच संबंध विच्छेद की कोशिश नहीं की गई। कांग्रेस की यह नीति रही है कि धर्म भी रहे और राज्य के साथ उसके मधुर संबंध भी रहें। धर्म को निजी बनाने,राज्य को धर्म से अ‌लग करने की कोशिश नहीं की गई। फलत: समाज में धर्मनिरपेक्षता रही और धार्मिक समूह और साम्प्रदायिकता भी बनी रही।धर्म के परंपरागत अधिकार और दायरे बने रहे। संविधान ने विभिन्न रूपों में धार्मिक कानूनों के जरिए धर्म के संरक्षण का काम किया। बहुधार्मिकता को संविधान सम्मत मान लिया गया। संविधान की नजर में सर्वधर्म समभाव बना रहा,साथ ही साम्प्रदायिक दलों और संगठनों को भी खुलकर काम करने की अनुमति दे दी गयी,उन पर पाबंदी नहीं लगाई गई, जिसके कारण देश में साम्प्रदायिक संगठनों को अपना व्यापक जनाधार बनाने में मदद मिली।
सन् 1948 में संविधान सभा में यह प्रस्ताव पास किया गया कि साम्प्रदायिक संगठनों और राजनीतिक दलों पर पाबंदी लगायी जाएगी, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया। 'गऊ हत्या' पर पाबंदी लगायी गयी, लेकिन धार्मिक अतिवादी तत्वों पर पाबंदी नहीं लगाई गई। हिंदू पर्सनल लॉ में परिवर्तन हुआ लेकिन अन्य धर्मों को छोड़ दिया गया।
आज कल स्थितियां पहले की तुलना में ज्यादा जटिल हैं। साम्प्रदायिक संगठनों की गतिविधियां चरम पर हैं, प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर उनका कब्जा है। मोदी सरकार आने के बाद से 'प्रशासन के भय और साम्प्रदायिक आतंक' की शुरुआत हुई है।
इन दिनों हर व्यक्ति अपने को आरएसएस और उसके संगठनों से घिरा हुआ महसूस कर रहा है।आज आरएसएस की विचारधारा नियोजित ढंग से हरेक के विचारों में दाखिल हो गयी है। उन्होंने साइबर सेना और टीवी न्यूज चैनलों के जरिए अपना व्यापक जनाधार बना लिया है। आरएसएस की राजनीति का मूलमंत्र है आम नागरिक में,खासकर अल्पसंख्यकों में भय की अनुभूति पैदा करो। जो उनका विरोध करते हैं उनको 'दगाबाज' और 'राष्ट्रद्रोही' घोषित करो। उनका मानना है " हम वहां नहीं हैं , लेकिन हम आप में ही हैं।" इस रणनीति का लक्ष्य है मन और शरीर से नागरिकों को बंदी बनाना।समाज में हर स्तर पर भय के वातावरण की सृष्टि करना। इसके बाद वे समाज में "कब्जा" जमाने की कोशिश करते हैं। इसे "फेसलेस आतंकवाद" कहते हैं। भय के माहौल में संघी 'पेशेवर' लोग वैचारिक हमले करते हैं। साथ ही भाजपा सरकारें ऐसी नीति लागू कर रही हैं जिनसे भय पैदा हो रहा है।यह कहा जा रहा है कि वे जो कुछ कर रहे हैं उसका लक्ष्य है देश को सुरक्षा प्रदान करना। जबकि देश और समाज की सुरक्षा से इसका कोई संबंध नहीं है।
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दुपहियां एवं चौपहिया वाहनों कण्डम करने का नियम

 सभी दुपहियां एवं चौपहिया वाहनों के स्वामियों से निवेदन है कि आप सभी मिलकर एन जी टी के द्वारा हमारे निजी वाहनों को 10 साल एवं 15 साल के उपयोग के बाद कण्डम करने का हम सभी पर जो नियम लगाए जा रहे हैं वे आम जनता के खिलाफ हैं। अतः उनको वापस लेना जरूरी है। क्योंकि यह नियम केवल व्यवसायिक वाहनों के लिए तो ठीक है परन्तु निजी वाहनों के लिए बिल्कुल भी लागू नहीं होने चाहिये। हम सभी भलीभांति जानते हैं कि निजी वाहन विशेष कर मध्यमवर्गीय / निम्न मध्यम वर्ग के लोगों के चौपहिया वाहन इतने समय में कुछ ज्यादा नही चल पाते हैं। अति आवश्यक होने पर ही ये सडक पर निकलते हैं। सभी मध्यमवर्गीय भाई परिवार की सुविधा के लिए ही वाहन खरीदते हैं ताकि बसों एवं ट्रेनों की भीड़ से बचा जा सके एवं इनकी मैनटेन्स का भी सभी भाई बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं। अपने शरीर से भी ज्यादा वाहन को मैन्टेन रखते हैं। जिस तरह हमारे शरीर का यदि कोई अंग बीमार हो जाता है तो उसका इलाज कराकर उसको सही करा लिया जाता है लेकिन एक अंग के ऊपर पूरे शरीर को ही नही बदला जाता है, ठीक उसी प्रकार वाहन का भी वही पार्ट बदलकर उसे भी ठीक करा लिया जाता है। अतः पन्द्रह वर्ष की इतनी कम अवधि में वाहन को कन्डम घोषित करना हमारे उपर घोर अन्याय करना है। बडी मुश्किल से एक एक पैसा जोडकर हम अपनी फैमिली के लिए यह सुविधा कर पाते हैं, लेकिन एन.जी.टी. के लोग ए० सी० कमरों में बैठकर कुछ घंटों की मीटिंग में ही हमारी फैमिली को इस सुविधा से वंचित कर देते हैं यह हम सभी के लिए बहुत ही बड़ा अन्याय है एवं अन्याय के उपर लडना हमारा अधिकार है। लेकिन हम सब चुप रहकर इस अन्याय के विरुद्ध आवाज नही उठाते हैं। अब हम सभी को एकता के सूत्र में बंधकर इसके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए ताकि सरकार की समझ में आ जाए कि हम लोग अब किसी भी ऐसे अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए एकता के सूत्र में बंधकर सरकार के अन्यायपूर्ण नियमों का विरोध करेंगे एवं सरकार को ऐसे नियम वापस लेने के लिए बाध्य कर देंगे। धन्यवाद। सभी भाईयों से सविनय निवेदन है आम जनता की आवाज सरकार तक पहुंच जाए एवं सरकार को ऐसे नियम वापिस लेने के लिए बाध्य होना पडे।

*इस संदेश को कम से कम पांच ग्रुप मैं जरूर भेजे*

गीता प्रेस गोरखपुर

💜की महानता से कौन परिचित नही? अब यदि सौ साल😍 तक *नो प्राफिट नो लॉस* के आधार पर मानवमात्र की सेवा करने पर 💚गीता प्रेस गोरखपुर💜 को ❤गांधी पुरस्कार💚 मिलता है तो किसी भड़भूंजे को आपत्ति क्यों? गीता प्रेस गोरखपुर को सम्मान दिये जाने पर आपत्ति करने का अर्थ :-भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार, पूज्यनीय रामसुखदास, भाई जय दयाल गोयनका जैसे निर्विवाद महापुरषों का अपमान करना! सम्मान के विरोधियों को धिक्कार है!

इंडियन नेशनल एलर्जी पार्टी

मानसिक रूप से बिल्कुल बीमार हो चुके इन मरीजों की बीमारी और उसके लक्षण या सिमटम्स पहले देखिए, फिर इलाज और दवा सुझाइए...

पहले गीता से एलर्जी थी, अब गीताप्रेस से भी एलर्जी!
पहले वंदे मातरम् से एलर्जी थी, अब वन्दे भारत ट्रेन से भी एलर्जी!
पहले सरस्वती वंदना से एलर्जी थी, अब राष्ट्रगान और राष्ट्र वंदना से भी एलर्जी!
यहाँ तक कि भारत माता की जय बोलने से भी एलर्जी!
मैच में भारत के जीत जाने की खुशी और इसके जश्न से भी एलर्जी!
पहले महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविन्द सिंह और झांसी की रानी से एलर्जी थी, अब वीर सावरकर, चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से लेकर सरदार पटेल और लालबहादुर शास्त्री जी से भी एलर्जी...!
पहले महर्षि पराशर, जैमिनी मुनि, पाणिनी, आर्यभट, वराह मिहिर, रामानुजाचार्य और श्रीधराचार्य आदि हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों से एलर्जी थी, अब एस. नम्बी नारायणन और डॉ. ए. पी. जे अब्दुल कलाम से भी एलर्ज पहले वाल्मीकि और व्यास से एलर्जी थी, अब सूरदास, तुलसीदास और रामानन्द सागर से भी एलर्जी!
पहले पतंजलि, सुश्रुत, चरक आदि से एलर्जी थी, अब तुलसी, पीपल, गंगा और गोदुग्ध से भी एलर्जी!
पहले संस्कृत से एलर्जी थी, अब संस्कृति से ही एलर्जी!
पहले रामायण महाभारत से एलर्जी थी, अब भगवान राम और भगवान कृष्ण से भी एलर्जी!
पहले चाय वाले से एलर्जी थी, अब गाय वाले से एलर्जी!
पहले सौर सिद्धांत, सूर्य, चन्द्र आदि की उपासना और भारतीय ज्ञान विज्ञान से एलर्जी थी, अब सूर्य नमस्कार, योग और चन्द्रयान से भी एलर्जी!
पहले भारतीय वाद्य यंत्रों से एलर्जी थी, अब भारतीय राग रागिनियों और भारतीय गीत संगीत से भी एलर्जी!
पहले राममंदिर, कृष्णमंदिर और शिवमंदिर से एलर्जी थी, पर अब तो नये संसद भवन से भी एलर्जी!
और इसीलिए पहले नरेन्द्र दत्त से एलर्जी थी, पर अब नरेन्द्र मोदी से भी एलर्जी है!
घनघोर, भीषण और असह्य एलर्जी!!
असल में इन्हें भारत, भारतीय भाषा, भारतीय साहित्य, भारतीय संगीत, भारतीय परिधान, भारतीय व्यंजन, भारतीय पर्व त्यौहार, भारतीय परम्परा, भारतीय परिवार व्यवस्था, भारतीय जीवन शैली, भारतीय अभिवादन पद्धति, भारतीय दर्शन और भारतीय धर्म संस्कृति अर्थात जहाँ कहीं भी भारत या भारतीय शब्द लगा हो उस हर बात से ही एलर्जी है!!
लेकिन...
पहले भारत को लूटने वाले और भारतीयों पर अमानुषिक अत्याचार करनेवाले अंग्रेजों से यारी, अब आतंकवाद की फैक्ट्री पाकिस्तान और साम्राज्यवाद की फैक्ट्री चीन से यारी!
पहले ओसामा, हाफिज सईद और जाकिर आँखों के तारे, अब जेहादी, फसादी, बगदादी, आतंकवादी और रोहिंगिया भी आँखों के तारे!
पहले औरंगजेब और टीपू इनका हीरो, अब अफजल, वुरहान और भारत को गाली देने वाला हर पत्थरबाज इनका हीरो!
अतएव विद्वान पाठक कृपया बताएँ कि भारत की हरेक उन्नति, उपलब्धि, गौरव और मान सम्मान से इन लोगों को आखिर ऐसी भयानक एलर्जी क्यों है!?
साथ ही इसके उलट यह भी बताएँ कि भारत पर कीचड़ उछालने वाला, भारत को अपमानित करने वाला और भारत विनाश का कुचक्र रचनेवाला हर कुचक्री इनका हीरो क्यों है!?
और अंत में अपनों से अपनी बात! जिन्हें भारत से एलर्जी है, मुझे उनसे एलर्जी है!
वन्दे मातरम्
भारत माता की जय !!

कुकरहावी

 कुनबावादी हिंदूविरोधी समाजविरोधी टुच्चे चाराखोर।

ईडी,सीबीआई के निशाने पर हैं जो आरोपी मुफ्तखोर।।
राष्ट्रविरोधी,जातिवादी,वैमनस्य बढ़ाने वाले दल चंदाचोर!
अल्पसंख्यकों को भड़काने वाले,कुकरहावी बड़े मुंहजोर ।।
एक दूजे को फूटी आँख न सुहानेवाले दल मचा रहे हैं शोर।
पटनामें मिले क्षेत्रीय दल जो कांग्रेस को करेंगे कमजोर!!

भारत को मोदी ने ऊंचाईयों पर पहुंचाया

 वर्तमान सोशल मीडिया आगमन से भी पूर्व के मेरे तत्कालीन मित्रों को भलीभाँति मालूम है कि मैं 40 साल तक संघ परिवार और भाजपा का कट्टर विरोधी रहा हूँ! चाहे ट्रेड यूनियन हो चाहे

सामाजिक,सांस्कृतिक,साहित्यिक मंच हो,चाहे कोई जन आंदोलन हो,सभी जगह मेरा स्पष्ट मत रहा है कि भाजपा कट्टर पूंजीवादी साम्प्रदायिक पार्टी है। किंतु देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी का केवल एक परिवार पर आधारित होना,उसके नेताओं द्वारा लगातार सनातन हिन्दू धर्म का विरोध करना,आतंकवाद का विरोध न करना और तमाम आतंकवादियों का समर्थन करना, भ्रस्टाचार पर उदार होना मुझे पसंद नही आया।
वैचारिक रूप से मैं वामपंथी हूँ,तद्नुसार भाजपा और कांग्रेस को पूंजीवादी ही मानता हूँ।याने एक ही सिक्के का दो पहलू मानता हूँ!किंतु बात जब कांग्रेस और भाजपा की तुलना की जाती है,तब भाजपा जो है सो सामने है,किंतु कांग्रेस कहां खड़ी है! देश में ईसाई मिशनरियों ने केरल झारखंड,उत्तर पूर्व में और बाकी देश भर में जो गोरखधंधा चला रखा है,उसमें सोनियाजी का चर्च प्रेम देख लो। गजवा ए हिंद और लादेनजी* में दिग्गी राजा का प्रेम देख लो!
इसी तरह क्षेत्रीय दलों के अपने अपने राग दरबारी हैं।ममता का वोट के बहाने मुस्लिम प्रेम + असामाजिक तत्व प्रेम देख लो।अखिलेश यादव का डॉन अतीक माफिया,आजमखां प्रेम देख लो! मायावती जी का 2000 के बंद हो चुके नोटो की माला और नॉन ट्रासफरेविल वोट बैंक का प्रेम देख लो, केजरीवाल का नाटकीय एकला चलो रे, दानवीरता बनाम मुफ्तखोरों का प्रेम देख लो।इसी तरह दक्षिण वालों का राहुल प्रेम देख लो और उत्तरवालों का जाति प्रेम देख लो।
इन तमाम तथ्यों के आधार पर मैने मोदी सरकार की कुछ खास उपलब्धियों पर गौर किया! रूस और उक्रेन युद्ध के बरक्स मैने विदेश मंत्री एस जय शंकर और मोदी जी की तारीफ कर कर दी,क्या गुनाह किया?
वेैश्विक आर्थिक संगठनों द्वारा भारत को जो विश्व की पांचवीं अर्थ व्यवस्था का खिताब मिला वो क्या गलत है? पाकिस्तान,नैपाल,श्रीलंका को उनकी गलत हरकतों का माकूल जबाब दिया! चीन की चाल को नाकाम करने के लिये अपनी शर्तों पर अमेरिका और यूरोप से नई संधियाँ की हैं, क्या गलत किया? भारत के सकल उत्पादन में से 50 करोड़ गरीबों को मुफ्त भोजन दे रहे हैं,क्या गलत किया?
विगत कोरोनाकाल में मोदीजी को व्यक्तिगत श्रेय दिया जाता है कि उन्होनें बिना भेदभाव के सभी को मुफ्त बैक्सीन लगवाई । मित्र देशों को गिफ्ट मेें ट्रकों बैक्सीन दी!कश्मीर से धारा 370 हटाई, जम्मू और लद्दाख़ को पहले से बेहतर बनाने की हर कोशिश की! मोदी सरकार द्वारा कश्मीर के तीनों इलाकों का समान रूप से खूब विकास किया गया है! अब कोई बताए क्या गलत हुआ ? वैसे ये तो मोदी सरकार की चुल्लू भर उपलब्धि है।मोदी सरकार की उपलधियों का यदि पूरा-पूरा आकलन करूं तो लिखते लिखते एक सप्ताह
गुजर जाएगा।भारत को मोदी ने ऊंचाईयों पर पहुंचाया है! यदि मैने रंच मात्र स्वीकार किया, तो क्या गुनाह किया? किस कारण मेरे कतिपय मित्र मेरी ही फेसबुक वाल पर घृणा का टोकरा लेकर टूट पड़े हैं? धिक्कार है!

मोदी की आलोचना

 मोदी की आलोचना करने वाले सुने,

❤
मोदी को फासिस्ट बताने वाले सुने,❤
मोदी को साम्प्रदायिक बताने वाले सुने,❤
आप उन्हें चुनाव में हरा दो,वो चलेगा,💜
यह आपका जन्म सिद्ध अधिकार है। 💚
किंतु जब सारी दुनिया ❤मोदी मोदी कर रही है,❤ तब विपक्ष के नेता क्या कह रहे हैं, उन्हें मोदी खलनायक नजर आते हैं, क्योंकि मोदीजी ने भ्रस्टाचार से जो युद्ध छेड़ रखा है, विकास का जो मॉडल स्वीकार किया है, विपक्ष को रास नहीं आ रहा।

शिवोहम् सोहमस्मि,

 सुबह हो या शाम जिंदगी यों ही,

पलपल बदलती चली जाती है।
रूहानी ताकत इस देह की माँग-
पूर्ति में यों ही गुजरती जाती है।।
होगा सर्वशक्तिमान कोई,
होगा सर्वत्र महान लेकिन,
न्यायिकतुला क्यों उसकी,
ताकतके पक्षमें झुक जाती है।
अनंत ब्रह्माण्ड की शक्तियां,
कोटिक नक्षत्र चंद तारे गगन,
निहारती नीहारिकायें विराट,
मेरे होने का यकीन दिलाती हैं !!
किसी समाधिस्थ योगी ने कहा-
होगा कभी शिवोहम् सोहमस्मि,
लेकिन असभ्य बर्बर लुटेरों को,
ये दैवी सम्पदा कहां सुहाती है!
गाज गिरती है सिर्फ कमजोर पर,
बूढ़े दरख्तों पुरातन खंडहरों पर,
सुनामी भी तो अक्सर निर्बलों पर
ही मुसीबत बनकर गजब ढाती है!!
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