स्वार्थों के चरम पर जो पहुंच जाता,
करुणा ह्रदय में उसके जगती नहीं है !
जरावस्था में इंद्रियां जैसे सब शिथिल,
लेकिन आह फिर भी निकलती नहीं है!
यह किंचित बहादुर कौम की बस्ती नही,
जहाँ मेहनतकशों की चर्चा चलती नही है!
सत्ता मनमानी करे जहाँ बहुमत के दमपर,
लोकतंत्र की दुहाई वहाँ कुछ जचती नही है!
अयाचित भूख सत्ता की जहाँ निर्बाध हो,
फिक्र की है बात,बात कुछ पचती नही है !
हारकर अभावग्रस्त जन पूजते पत्थरों को,
खुदके वास्ते फुर्सत उन्हें मिलती नहीं है
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