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मुझे मंदिर-मस्जिद की जरूरत नहीं है, न ही जटिल तत्त्वज्ञान की। मेरा मस्तिष्क और मेरा हृदय ही उपासना स्थल हैं!और मेरा दर्शन-मैत्री,मुदिता,करुणा और क्षमा है।”
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