मंगलवार, 21 मई 2019

भारत की जनता का यह मंतव्य !

लोकतंत्र में यदि ईमानदारी से चुनाव हों और शांतिपूर्ण ढंग से सत्तापरिवर्तन हो जाये तो फिर इसका कोई मलाल नहीं,कि काला चोर अथवा 'चौकीदार चोर' सत्ता में फिर से क्यों आ गया?किंतु यदि कोई पाखंडी बाताखानी, ढपोरशंखी और अस्थिर बुद्धि वाला शख्स सत्ता का दुरुपयोग कर,सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग का इस्तेमाल कर, लोकतंत्र का चीर हरण करता है तो यह राष्ट्रीय शोक का विषय होगा!
कुछ इसी तरह के विचार सिंधु में विचरण करते करते विगत रात्रि पता ही नही चला कि आँख कब लग गई! और तब मैनै एक अदुभुत सपना देखा !
मैने देखा कि चीन की न केवल ब्रह्मपुत्र बल्कि तमाम कल-कल बहतीं साफ़ सुथरी नदियाँ अचानक भारत की ओर बहने लगीं हैं। और इसके साथ ही भारत की गंगा,जमुना,चंबल,नर्मदा,कावेरी,गोदावरी इत्यादि नदियाँ और तमाम गटर गंगायें न केवल इंसानी बल्कि जानवरों की सड़ी हुई लाशें लेकर चीन की ओर प्रस्थान कर रही हैं। मैंने देखा कि चीन की खूब चमचमाती सड़केँ,मजबूत पुल, खेल के मैदान उड़-उड़ कर भारत आ रहे हैं। भारत के बनारस जैसे दुर्घटनाग्रस्त पुल और तमाम नकली -घटिया सड़कें,अवैध इमारतें सबके सब बीजिंग और शंघाई की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। यह मनमोहक मंजर देखकर मेरा मन मयूर सपने में ही गाने लगा - अहा ! भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है ?...छितिपाल पै हिमालय, चरणों में सिंधु अंचल......! बगैरह...
अल सुबह नींद खुलने पर सबसे पहले अखबार पर नजर पड़ी,अखबार खोला,तो प्रदेश वाले पन्ने पर नजर पड़ी! बुंदेलखंड के किसी कस्बे का चित्र था! मेंने देखा कि बीच सड़क पर आधा दर्जन आवारा कुत्ते एक पोलिथिन की थेली को लेकर -जिसमें शायद जूँठन भरी हुई थी-कुकरहाव कर रहे हैं !वहीं एक सार्वजनिक नल पर महिलायें पानी के लिये झगड़ रही हैं !सड़क के एक छोर से गौमाताओं की रैली आ रही है! और सड़क के दूसरे छोर से बाराह मण्डली की प्रभात फेरी चल रही थी। यह वास्तविक दृश्य देख मेरा विकासवादी मन कुछ खट्टा सा हो गया।
मन ही मन सोचता हूँ काश ! भारत का भी कोई एक-आध नेता 'देंग स्याओ पिंग' जैसा होता! तब शायद आजादी के 72 साल बाद भारत को ये दिन नही देखने पड़ते !अब तो हमारे लिए मोदी जी ही आशा की किरण हैं कि शायद वे ही दैंग स्यायो पिंग बन जाएँ !
इसमें कोई हर्ज नहीं कि कोई साम्प्रदायिक और पूंजीवादी व्यक्ति यह नेक काम कर डाले,जो कामरेड देंग ने किये हैं! कामरेड देंग का मशहूर कथन है कि " बिल्ली चाहे काली हो या सफेद यदि वह चूहे मारती है तो वह कबूल है"!भारत में चीन जैसी महान क्रांति न सही लोगों को एक वक्त की रोटी और एक बाल्टी शुद्ध पानी ही मिल जाये तो में भी कहूँगा कि दुःख भरे दिन बीते रे भैया -अब सुख आयो रे ! यदि चीन की तरह भारत में लाल क्रांति नहीं हो पाई या संसदीय लोकतंत्र के रास्ते वामपंथी सत्ता में नहीं आ पाये तो क्या ? भारत की जनता सदियों तक यही गटर गंगा का पानी पीती रहेगी क्या ? सिर्फ नदियों के प्रदूषण का ही सवाल नहीं है ! मिलावटी खाद्यान्न प्रदूषण- रहित मानवीयआवास,खेल-मनोरंजन,शिक्षा इत्यादि हर क्षेत्र में चीन हमसे मीलों आगे है। वेशक 72 साल में कांग्रेस ने बहुत कुछ किया किंतु गरीबी और भ्रस्टाचार पर रोक नहीं लगा पाई और उसकी सजा उसे कई बार मिल चुकी है!
विगत पाँच साल में मोदी जी भी कुछ नहीं कर पाये हैं! अब क्या करना है? मोदी जी रूस चीन यूएस जाकर भारत की जनता के अरमान तो जगाते हैं। किंतु हुआ कुछ नहीं!
बुलैट ट्रैन,कालाधन और NSG पता नहीं कहाँ हैं? लेकिन उम्मीद है कि जबरिया सत्ता में वापिस लौटकर मोदी जी शीघ्र ही भारत को चीन से भी आगे ले जाने के लिए,चीन जैसी ही नीतियाँ और कार्यक्रम देश के समक्ष पेश करेंगे। तभी भारत की जनता का यह मंतव्य सार्थक होगा कि-
"पुरवा गाती रहे ,पछुआ गुन -गुन करे ,मानसून की सदा मेहरवानी हो !
यमुना कल-कल करे ,गंगा निर्मल बहे,
कभी रीते न रेवा का पानी हो !"
-श्रीराम तिवारी

गुरुवार, 9 मई 2019

यह पुरषार्थ भी कुछ कम तो नहीं ?

हवाओं का रुख बदलने लगा है...
मैने जो भी चाहा नहीं मिला,
लेकिन इसका कोई गम तो नहीं ।
बिना वैशाखी के ही चल सका,
यह जज्बा भी कुछ कम तो नहीं।।
कदम जब भी आगे बढे हैं मेरे,
अनजानी राहों पर तन्हा बढ़े !
ठोकरें खाईं कई बार नींद में,
फिर जागे ये कुछ कम तो नहीं ।
संकल्पों की ऊँची उड़ानों पर,
हुआ बज्रपात नियति का बार-बार,
हौसले बुलंद रख्खे हार नहीं मानी,
यह पुरषार्थ भी कुछ कम तो नहीं !!
बक्त ने जब चाहा नचाया मुझे
और कहर बरपाया जमाने ने खूब!
एक क्षण भी किंचित नहीं भूला मैं,
इंसानियत यह कुछ कम तो नहीं !!
जब से हवाओं ने रुख बदला है,
मन मेरा कुछ घबराने सा लगा है!
हरवक्त चौकन्ना हूँ कि आस्तीन में,
कहीं कोई छुपा हुआ साँप तो नहीं!!
श्रीराम तिवारी

जिंदगी बंचितों की यों ही गुजर जाती है!

सुख दुःख समुन्दर की लहरों जैसे
कभी इधर आते कभी उधर जाते हैं!
काल तो वहीँ ठहरा है जहाँ पहले था, 
सिर्फ लहरों के चेहरे बदल जाते हैं!!
पैटी बुर्जुवा वर्ग की सुबह हो या शाम, 
जिंदगी तमाम दिग्भ्रम में बीत जाती है!
आता जाता उत्थान और पतन का दौर,
जिंदगी बंचितों की यों ही गुजर जाती है!!
राजनीति भोगियों योगियों की है नाकाम,
जन आकांक्षा तमाम काफूर हो जाती है!
है अगर सर्वशक्तिमान-ब्रह्मांड नायक कोई,
तो भूल चूक उससेभी कई बार हो जाती है!!
है कमजोरों पर शक्तिशाली वर्ग का वर्चस्व,
न्याय तुला बलवान के पक्ष में झुक जाती है।

जिस मोदी सरकार का .....


विदेश मंत्री चुनाव नहीं लड़ रहा,
वित्त मंत्री चुनाव नहीं लड़ रहा,
रक्षा मंत्री चुनाव नहीं लड़ रहा,
रेल मंत्री चुनाव नहीं लड़ रहा,
पैट्रोलियम मंत्री चुनाव नहीं लड़ रहा,
कोयला मंत्री चुनाव नहीं लड़ रहा,
शिक्षा मंत्री चुनाव नहीं लड़ रहा,
लोकसभा स्पीकर चुनाव नहीं लड़ रही,
मार्गदर्शक मंडल चुनाव नहीं लड़ रहा.....
लड़ कौन रहा है...
निरहुआ ,
सनी देओल ,
रवि किशन ,
हेमा मालिनी
जया प्रदा
स्म्रति ईरानी,
गौतम गंभीर ,
प्रज्ञा ठाकुर .....
ये है मोदी सरकार!
क्या संसद भवन में कोई फ़िल्म रिलीज़ होने वाली है?

उनके दावे पर एतवार कौन करे ?


बुलंदियों पर है मुकाम उनका,
फिर भी मुस्कराना नहीं आता!
दुनिया भर की खुशियाँ नसीब हैं.
किंतु उन्हें लुफ्त उठाना नहीं आता!!
न जाने क्यों देता है खुदा उनको,
खुदाई और प्रभुता इतनी ज्यादा!
अपनी कल्पित छवि के अलावा,
जिन्हें कुछ और नजर नहीं आता!!
वक्त और सियासत ने बख्स दी,
शख्सियत उनको गजब कुछ ऐंसी!
कि सूखे खेतों में उड़ते धूल के गुबार,
श्मशान का सन्नाटा नजर नहीं आता!!
माना कि अभी मौसमें बहार आई है,
उनके जीवन की बगिया महक उठी !
लेकिन स्याह रातों के अंधेरे को,
बुहारना उन्हें बिल्कुल नहीं आता!!
उनके दावे पर एतवार कौन करे,
की कभी शबे-रात के हमसफर होंगे !
उन्हें तो अपने ही रूठे हुओं को,
मनाना और आदर देना नहीं आता!!
श्रीराम तिवारी