सोमवार, 11 मार्च 2024

महाशिवरात्रि के दिन नहीं हुआ था शिव पार्वती या शिव सती का विवाह ❤️❤️

 महाशिवरात्रि के दिन नहीं हुआ था शिव पार्वती या शिव सती का विवाह

❤️❤️
आइए शिव पुराण से देखते हैं-:
शिव और भगवती सती के विवाह के विषय में शिव पुराण के रुद्र संहिता के सती खंड में अध्याय नंबर 18 में श्लोक संख्या 20 में तथा
रुद्र संहिता सती खंड के अध्याय नंबर 20 में श्लोक संख्या 38 में निम्नलिखित वचन प्राप्त होते हैं
1) चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में रविवार को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में भगवान महेश्वर ने विवाह के लिए यात्रा तथा विवाह कार्य संपन्न किया
( रुद्र संहिता सती खंड शिव महापुराण)
अब भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह तिथि के विषय में शिव पुराण क्या कहती है देखते हैं
शिव पुराण के रूद्र संहिता के पार्वती खंड के अध्याय नंबर 35 के श्लोक संख्या 58 से 60 तक मे
वशिष्ठ जी हिमालय जी को कहते हैं कि-:
एक सप्ताह बीतने पर एक दुर्लभ उत्तम शुभ योग आ रहा है उस लग्न में लग्न का स्वामी स्वयं अपने घर में स्थित है और चंद्रमा भी अपने पुत्र बुद्ध के साथ स्थिति रहेगा। चंद्रमा रोहिणी युक्त होगा मार्गशीर्ष का महीना है।
सोमवार का दिन है।
इस शुभ योग में आप अपनी पुत्री को शिवजी के लिए समर्पित करके कृत्य हो जाइए
( शिव महापुराण रूद्र संहिता पार्वती खंड)
इन दोनों प्रमाणो से यह बात सिद्ध होती है कि शिव जी का विवाह महाशिवरात्रि के दिन नहीं हुआ था क्योंकि महाशिवरात्रि तो फाल्गुन मास में पड़ती है।
तो आईए जानते हैं की महाशिवरात्रि के दिन असल में हुआ क्या था। क्यों इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है और यह इतनी महत्वपूर्ण क्यों है जानते हैं इसका भी उत्तर शिव महापुराण में ही दिया गया है।
शिव महापुराण के विद्येश्वर संहिता के
अध्याय नंबर 8 के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शंकर जी ने सबसे पहले ब्रह्मा और विष्णु को अपने साकार स्वरूप का दर्शन कराया था।
निराकार से साकार हुए थे
तथा शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे
इसलिए इस दिन शिवरात्रि मनाई जाती है और शिव पूजन किया जाता है

वे खुद का भी मजाक उड़वा रहे हैं!

 जब मोदी जी भारत को सम्रद्धि की ओर ले जा रहे हैं,भारत में न केवल राजनैतिक स्थायित्व है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में से माफिया को नेस्तनाबूद करने में जुटे हुए हैं।विदेशमंत्री एस जयशंकर दुनिया भर में भारत का परचम लहरा रहे हैं,तब भारत के कुछ विपक्षी दल केवल पीएम नरेंद्र मोदी को कोसते रहते हैं।या वे अपनी काली करतूतों के बचाव में विपक्षी एकता का असफल प्रयास कर रहे हैं।

जो कांग्रेसी कल तक मोदी सरकार का विरोध कर रहे थे,आज वे भाजपा कार्यालयों में कमल कमल जप रहे हैं और भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गाँधी जो कि देश विदेश में मोदी सरकार के विरोध के बहाने अपने ही वतन की रुसवाई करते रहते हैं, वे खुद का भी मजाक उड़वा रहे हैं!
माफिया के द्वारा की जा रही हिंसा लूट खसोट पर चुप रहने वाले राजनैतिक दल और विपक्षी नेता,सम्रद्ध भारत बनाने और कानून का राज स्थापित करने वाले मोदी योगी जैसे ईमानदार नेताओं के खिलाफ,विषवमन करने वालों पर आने वाली पीढ़ियॉ थू थू करेंगीं!

शी जिन पिंग -बिना जनादेश के केवल अपनी दादागिरी से 18 साल से चीन का राष्ट्रपति बन बैठा है, ब्लादिमिर पुतिन २4 साल से रूस का राष्ट्रपति बना बैठा है, लेकिन हमारे मोदी जी इनसे बेहतर हैं, क्यों न अगले 5 साल याने तीसरी बार फिर से मोदीजी ही हमारे भारत के प्रधानमन्त्री बने ?
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शुक्रवार, 1 मार्च 2024

किसान आंदोलन

 मैं एक किसान पुत्र हूं अतः जमींदार वर्ग को छोड़ कर बाकी मझोले और गरीब किसानों की दुरुह समस्याओं को समझते हुए, हमेशा उनके हर जायज आंदोलन का समर्थक रहा हूं। इसी वजह से किसानों के पिछले आंदोलन का मैंने दूसरे एक्टिविस्टों की ही तरह सोशल मीडिया पर उस किसान आंदोलन का बढ़ चढ़ कर समर्थन किया था।

किंतु जब हम सबने देखा कि किसान आंदोलन की आड़ में कुछ नकली किसानों व खालिस्तानी आतंकियों ने अपना अलगाववादी एजेंडा चला रखा है, उन्होंने लालकिले पर चढ़कर तिरंगे का अपमान भी किया,तब आवाम की मानिंद मैंने भी उस आतंकी गुट की आलोचना की थी।
चूंकि वर्तमान किसान आंदोलन का नेतत्व भले कुछ किसान संगठन कर रहे थे, किंतु कांग्रेस और कनाडा के सिख आतंकियों तथा लिवरल उदारवादी पूंजीपति सोरोस द्वारा प्रायोजित इस किसान आंदोलन का उद्देश्य भारत विरोधी था,तथा किसानों की समस्याओं पर कोई फोकस न होने से यह आंदोलन फ्लॉप हो गया।
मोदी सरकार की रणनीतिक समझदारी के कारण मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और यूपी सहित देश भर के किसान इस आंदोलन में शामिल नहीं हुए,इसलिए न तो आम जनता ने इस आंदोलन का साथ दिया और न मेरे जैसे सोशल एक्टिविस्टों ने। जय हिन्द।जय भारत।जय महाकाल।

हम आध्यात्मिक स्तर पर अनाथ हैं

 ना सिर्फ हिंदू न सिर्फ ब्राह्मण न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के आंतरिक उन्नति के लिए आज के इस आधुनिक और तर्कशील युग में सिर्फ और सिर्फ ओशो और उनके द्वारा तैयार किए गए बुद्ध शिष्य ( जीवंत सतगुरु ) एक मात्र सहारा है।

अन्यथा, आज के, न सिर्फ भारत के बल्कि दुनिया भर के धर्म गुरु थोथे ज्ञानी है उनका असल ज्ञान से दूर-दूर तक का लेना देना नहीं है।
और एक बात, सामान्य जन की आंतरिक उन्नति, जीवंत सतगुरु के बिना असंभव है। इस बात को जितनी जल्दी समझ जाएं, उतना ही बेहतर है, अन्यथा आज की दुनिया की सच्चाई यही है कि, हम आध्यात्मिक स्तर पर अनाथ हैं। और, जो भी इस सच्चाई से मुँह मोड़ेगा, भले ही वह ओशो के ही नऐ/पुराने, अनुभूति से वंचित सन्यासी ही क्यों न हों, उनकी आध्यात्मिक गति सम्भव नहीं है।

बुधवार, 31 जनवरी 2024

यदि आप किसी रोते हुए बच्चे को हँसा नहीं सकते, तो......?

 आपका संचित ज्ञानकोष चाहे कितना ही समृद्ध क्यों न हो ?यदि आप किसी रोते हुए बच्चे को हँसा नहीं सकते, तो यह आपकी समग्र असफलता है! यदि आप अपने ही सपरिजनों या बुजुर्गों को खुश नहीं कर सकते ,यदि ज्ञानी होने के बावजूद आप खुद सांसारिक खुशियों से महरूम हैं,तो आपका संचित ज्ञानकोष आपके किस काम का? ऐंसे भ्रमात्मक ज्ञान से आप तत्काल मुक्त हो जाइये !

तदुपरांत आप सहज, सरल और तरल जीवन जीने की कोशिश!यदि आप वास्तव में ज्ञानी हैं तो किसी भी व्यक्ति,वस्त अथवा विचार के व्यामोह में पड़े बने,राजा जनक की तरह देह में रहते हुए भी नही रहते, क्योंकि तब आप स्वयं शुद्ध सच्चिदानंद में लीन रहते हुए भी,जगत के सभी सांसारिक कार्य करते हुए,अपने अस्तित्व के अहं का बोझ उतारकर फेंक देते! जय सच्चिदानंद!
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सच्चा प्रगतिशील -सच्चा धर्मनिरपेक्ष होता है।

 विगत 22 जनवरी को न केवल अयोध्या,न केवल भारत,बल्कि सारे संसार में जहां कहीं 'श्रीराम' के अनुयाई हैं,वहां जयघोष के साथ दिये जलाये गये। भारतीय सभ्यता,संस्कृति और मानवीय मूल्यों के अलम्बरदार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का भव्य मंदिर बन जाने के बाद सदियों की गुलामी का एहसास तिरोहित हो गया!

विगत 500 वर्षों से शोषित पीड़ित सनातनधर्मी हिंदुओं के मन में तो उनके आराध्य प्रभु श्रीराम प्रतिष्ठत थे ही, किंतु अपने आराध्य प्रभु श्रीराम को टाट पट्टी के झोंपड़े में देखकर उनके मन में अकथनीय आक्रोश था, जो 6 दिसंबर 1992 में लावा बनकर फूट पड़ा।उस सनातनधर्मी आक्रोश की पूर्णाहुति 22 जनवरी 2024 को संपन्न हो गई। जो कोई इन दोनों घटनाओं का साक्षी रहा हो,वह भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अमर रहेगा।
दूसरी ओर जब कोई इतिहासकार कहता है कि श्रीराम,लक्ष्मण,हनुमान,कृष्ण,बलराम,अर्जुन तो मिथ हैं।जब कोई इतिहासकार ईसा पूर्व पहली सदी के राजा वीर विक्रमादित्य अथवा १२ वीं सदी के चंदेल राजा,आल्हा उदल मिथ हैं ,१५वीं सदी के राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य* मिथ हैं, मेवाड़ की जौहरवती रानी पद्मावती या पदमिनी मिथ हैं,तो इसके दो ही मायने हो सकते हैं। एक तो यह कि वह नितान्त जड़मति मूर्ख नकलपट्टी करके इतिहास का प्रोफेसर बना होगा। दूसरा कारण यह हो सकता है कि उस इतिहासकार के मन में हिन्दू प्रतीकों और हिन्दू सभ्यता संस्कृति के प्रति अगाध घृणा भरी होगी।
जो व्यक्ति सच्चा प्रगतिशील -सच्चा धर्मनिरपेक्ष होगा, वह कभी भी कल्पना अथवा झूँठ का सहारा नहीं लेगा। इतिहास का ककहरा जानने वाला भी जानता है कि हर दौर में आक्रान्ताओं ने अपने पक्ष का इतिहास लिखवाया है।जो व्यक्ति यह मानता है कि इब्ने बतूता,अलबरूनी,बाबर, हुमायूँ ,अबुलफजल,जहांगीर रोशनआरा ने जो कुछ लिखा वो सब सच है। तो उस व्यक्ति को यह भी मानना होगा कि यह सच केवल उनका था जिन्होंने लिखा है।
जब तक इतिहास को सत्ता निरपेक्ष सर्वधर्म समभाव से नही लिखा-पढ़ा जाता,तब तक
सामाजिक सद्भाव और राष्ट्र में स्थाई शांति का हमारा लक्ष्य दिवास्वप्न ही है! ता
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LN Verma, Jagadishwar Chaturvedi and 4 others

मध्यप्रदेश में 73% आरक्षण किये जाने पर एक विष्लेषण

हमारे आदिवासी भाइयों को भड़काया जाता है कि देखो तुम जंगल में भटकते रहते हो, तुम वनोपज पर निर्भर हो और तुम्हारे पिछड़े होने,गरीबी के लिये सवर्ण लोग जिम्मेदार हैं! शायद इसीलिये मध्यप्रदेश में आइंदा 73% आरक्षण दिया जाएगा!
हमारे बुंदेलखंड (एम.पी.) में इसका उल्टा है! दरसल यहां अधिकांश दलित आदिवासी भाई या तो बिड़ी बनाते हैं या कारीगर हैं या शहरों में मजदूरी करते हैं! जबकि सवर्ण गरीब जंगलों से जाकर महुआ बीनते थे! शहरों में कुछ लोग महुआ के फूल को फल समझते हैं! जबकि दरसल महुए के फूल को बीनकर सुखाते हैं और उसके कई उपयोग होते हैं!
सुखाये गये महुए के फूल से ज्यादातर तो शराब ही बनाई जाति है! जबकि महुए के फल को गुली कहते हैं! इससे महुए का तेल बनाया जाता है! गुली धपरा पिराई से तेल के साथ खली भी प्राप्त होती है जो भूसे की सानी में मिलाकर दुधारू गायों भैंसों,बैलों और अन्य पाल्य पशुओं को खिलाई जाती है!
हमारे गाँव में 5 साल की उम्र से लेकर 80 साल की उम्र तक महुआ बीनने वाले,तेंदू पत्ता संग्रह करने वाले अधिकांस सवर्ण आदिवासी हैं! अहिरवार समाज के लोग बीड़ी बनाते हैं, कुछ सरकारी नौकरी में लग गये हैं! मैने स्वयं किशोरवय में गुली धपरा और चारोली (अचार) भी जंगल से बीने हैं! मुझे गर्व है कि किशोर अवस्था समाप्त होते होते, पढ़ाई के साथ साथ मैने ये बनोपज संबंधी और खेत खलिहान मेहनत के सारे काम शिद्दत से किये हैं !
जबकि पढ़ाई में भी मेरा स्थान अक्सर अव्वल ही हुआ करता था! किंतु जो सुख सुविधाएं पिछड़े वर्ग या sc-st को थीं, जैसे कि वे लोग सरकारी छात्रवास में पका पकाया भोजन पाते थे,जबकि मैं या मेरे अन्य सवर्ण बंधुओं के पास ऐंसी कोई सुविधा नही थीं! हम अपने हाथ से गेंह्ू बीनते ,पिसवाते और भोजन के नाम पर दो टिक्कड़ बनाया करते थे!
एक बार हमारे ही इलाके के एक सज्जन जो कि अहिरवार थे, मुझे हरिजन छात्रावास ले गये !वहां मैने देखा कि छात्रावास के कमरों के बाहर एक कोने में पके हुऐ सफेद चावलों का ढेर लगा है! मैने अपने मित्र श्री अहिरवार जी से पूछा कि ये चावल जमीन पर क्यों रखे हैं? वे बोले कि ये तो हम छात्रों की बची हुई जूँठन है!!!
मैने मन ही मन सोचा कि यदि सरकार और सिस्टम ठीक ठाक होते तो विश्वविद्यालय के हरिजन छ्त्रावास का ये आलम नही होता! उन्हें उतना दिया जाता जितना कि वे खा सकें,पचा सकें,और बाकी का उनको देते जो बदकिस्मती से सवर्ण गरीब हैं! किंतु इस देश में आजादी के बाद से अब तक एक ही ढर्रा चलता आ रहा है कि जिनकी फीस माफ,उन्हें ही भोजन फ्री ,पुस्तकें फ्री और अन्न का नुकसान करने का अधिकार अलग!
उधर शहर में हम किराये के कच्चे मकान में रहते थे,हर महिने फीस जुटानी पड़ती थी, उन दिनों गांव में ज्वार मक्का ज्यादा होती थी, किंतु हमें ज्वार की रोटी बनाने में बहुत दिक्कत होती थी,इसलिये गेहूँ जुटाने के लिये ट्यूशन पढ़ाते थे! हमें जिंदा रहने के लिये दो टिक्कड़ मिल जाएं यही बहुत था ! महिनों गुजर जाते थे,जब कभी गांव घर जाते तब कभी तीज त्यौहार पर चावल और दूध के दर्शन हो पाते थे !
मन की इस वेदना को हम कभी उजागर नही करते, किंतु गरीबों की वकालत करने वालों को खरबपति अखिलेश यादव और अरबों की स्वामिनी बहिन मायावती का समर्थन करते देखा,तो मन चीत्कार कर उठा कि क्या यही समाजवाद है? क्या यही आजाद भारत का लोकतंत्र है? यदि हाँ तो इस लोकतंत्र की उम्र ज्यादा नही है !
आजादी के 75 साल बाद भारत में करोड़ों दबंग लोग,जातीय दीदागिरी की ताकत दिखाकर सत्ता के मजे ले रहे हैं! आर्थिक रूप से सम्रद्ध लोगों को आरक्षण और देश के लिये कुर्बानी देने वाली झांसी की रानी तात्या टोपे,चाफेकर बंधु, शहीद चंद्रशेखर आजाद,लोकमान्य तिलक,पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और मंगल पांडे जैसे शहीदों को जन्म देने वाली ब्राह्मण जाति के गरीबों को सरकार की ओर से कोई नौकरी नही, कोई आपात्कालीन राहत नही!
चंद मुठ्ठी भर ब्राह्मण भले ही अमेरिका,यूके आस्ट्रेलिया और यूरोप में धूम मचा रहे हों, किंतु बाकी इधर भारत में अधिकांस सवर्ण कंगाल! करोड़ों बेरोजगार,फटेहाल! जो द्वापर में दीन हीन सुदामा थे, वे विप्रजन अब और बदतर हालात में हैं! जय हिंद.जय संविधान! आरक्षण की बलिहारी है...इस मुल्क की बीमारी है!
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You and Ramswaroop Pathak