शनिवार, 27 मार्च 2010

अमीर देश की जनता ग़रीब क्यों है?


दुनिया के बड़े-बड़े महासागरों में एक,
हिन्द महासागर की चारों ओर धूम है।
उत्तर में इसके हरी भरी धरती,
वंदनीय जग में भारत की भूमि है।।
मानसूनी हवाओं के लोम-अनुलोम होते,
ग्रीष्म संग पावस की ऋतु रही झूम है।
शरद-शिशिर-हेमंत-वसंत जहां,
ऐसे ऋतु चक्र से तो देव महरूम हैं।।
हिम शैलनंदिनी सदा नीरा सरिताएं,
कल-कल करती किलोल मची धूम है।
हरी-भरी वादियां हिमालय की गोद में,
प्राकृतिक संपदा खनिज भरपूर हैं।।
वन-उपवन फैले फली-फूली खेतियां,
क्यों कुछ मालामाल बाकी मज़लूम हैं।
त्याग बलिदान की विरासतें भी कम नहीं,
कीर्ति पताका रही नील गगन चूम हैं।।
बुद्धि-ज्ञान-कर्मयोग धरम की धुरन्धरी,
अतृप्त चंचला-सी क्यों मचल रही भूमि है।
संवेदनाएं भेंट चढ़ी स्वार्थी उत्तंग ऋंग,
कौन ज़िम्मेदार है हमको मालूम है।।