मंगलवार, 31 मई 2011

सुजलाम-सुफलाम-मलयज-शीतलाम; भाग {2}

    जैसा की मेने अपने विगत आलेख "सुजलाम-सुफलाम-मलयज-शीतलाम-भाग{एक]में रेखांकित किया है कि सभ्यताओं के शुभारम्भ से ही सचेत और दूरदर्शी मानवो ने सितारों की गति से धरती पर और धरती कि गतिशीलता से उस पर अवस्थित प्रत्येक चेतन-अचेतन वस्तु या पिंड कि स्थिति
पर परिवर्तन का नियम प्रत्यारोपित किया था.कालांतर में १८ वीं शताब्दी के मध्य में उसे वैज्ञानिक प्रयोग कि कसौटी पर कसा गया और "पदार्थ और उर्जा की अविनाष्ट्ता तथा उसके संरक्षण का सिद्धांत"प्रतिपादित किया गया.तदनुसार ब्रम्हाण्ड में जिस किसी पदार्थ का अस्तित्व है वह कभी भी समूल नष्ट नहीं होगा,किन्तु वह नित्य परिवर्तनशीलता के नियमानुसार या तो परिवर्ती पदार्थ में उसके आनुषांगिक अवयवों में या उर्जा के किसी संभाव्य रूप में जीवित अवश्य रहेगा .
           प्रस्तुत सिद्धांत के अनुसार हमारा सौरमंडल,ज्ञात आकाश गंगाएं,नीहारिकाएं और हमारी यह प्यारी पृथ्वी सभी नित्य परिवर्तनशील हैं.ये परिवर्तन बर्फ-पानी-भाप जैसे भौतिक और दूध से दही-छाँछ बनने की तरह रासायनिक  भी हो सकते हैं.,ये परिवरतन  चंद्रमा की घटती -बढ़ती कलाओं की तरह नियमित भी हो सकते हैं और ये परिवरतन किसी खगोलीय विराट गुरुतीय कारणों से होने वाले अनियमित प्रलय,खंड प्रलय या महा-प्रलय जैसे भी हो सकते हैं.निष्कर्ष यह है कि ब्रह्माण्ड कि परिवर्तनीयता में पृथ्वी का विनाश,आंशिक विनाश अथवा सम्पूर्ण विनाश सन्निहित है.यह यदि उसके अपने स्वभाविक -सहज समयांतराल पर होने की कल्पना केवल  भारतीय पुराणकारों ने ही कही होती तो में भी उसे 'कपोल-कल्पना'धार्मिक आश्था'अंध-विश्वाश या अवैज्ञानिकता के खाते में जमा कर देता..किन्तु न केवल पुराण,न केवल संहिताएँ,और न केवल वेदान्त-दर्शन अपितु अब तो सारा पश्चिमी भौतिकतावादी-विज्ञानवादी बौद्धिक वर्ग भी प्रकारांतर से इस धरती की आयु को विभिन्न कालखंडों से गुजरते हुए अपने अंत की संभावित भविष्यवाणियाँ करने लगा है तबइस सिद्धांत में  द्वैत नहीं रह जाता.अब विवेचना का विषय सिर्फ इतना ही नहीं हो सकता कि"धरती अपनी सहज मौत मरती है तो मर जाए, कोई उज्र नहीं ,मनुष्य को पृथ्वी का विनाश अपने हाथों से नहीं करना चाहिए" इससे से इतर मनुष्य ही एक ऐसा तत्व है जो कि धरती की उम्र यदि घटा   सकता है तो बढ़ा भी सकता है{!}यह मेरी वैयक्तिक ह्य्पोथीसिस हो सकती है,सिद्ध करने की क्षमता मुझ में नहीं है.बहरहाल मेरे प्रस्तुत आलेख का मकसद यह है कि धरती कि आयु घटाने वाले तत्वों और उसकी आयु बढ़ा सकने वाले तत्वों की पहचान की जाए.जैसे की कोई योग्य चिकित्सक सर्वप्रथम अपने मरीज के मर्ज़ की पहचान निर्धारित करता है और फिर रोग निदान के उपायों-उपादानो-दवाइयों,परहेजों तथा जांचों की प्रिस्क्रिप्सन लिखता है.विश्व स्वाश्थ संगठन या विश्व राजनैतिक मंच के अजेंडे में यह विषय शीर्ष पर होना चाहिए.यह एक दो आलेखों या एक-दो सेमीनारों के बूते की बात नहीं.यह समग्र संसार में समग्र ब्रह्मांड में सर्वकालिक -सार्वजनीन अभियानों का मुखापेक्षी विराटतम अभियान होना चाहिए.
             अनावशय्क भय या वितंडावाद पैदा करना इस आलेख का मकसद नहीं.आज वैश्विक समग्र चेतना का सार तत्व है कि धरती संकट में है इसके लिए कुछ हद तक हम मनुष्य ही जिम्मेदार हैं,हम चाहें तो इसे अब भी बचा सकते हैं.आज जबकि हर बीस मिनिट में संसार से प्राणियों की एक प्रजाति विलुप्त हो रही है,योरोप-और एशिया में पाई जाने वाली गोरैया से लेकर अमरीकन पीका और खरगोश तक विलुप्त होते जा रहें ,आज जबकि कटते जंगलों और खतरनाक दवाओं और केमिकलों ने आसमान को गिद्ध विहीन कर दिया है,आज जबकि पृथ्वी पर शेष वचे केवल ४५०० बाघों का जीवन भी खतरे में है तब कल्पना की जा सकती है कि मामूली प्राण शक्ति-धारक अन्य जीवों के अस्तित्व का अंजाम क्या होगा?
             मानव सभ्यता ने विकाश के मार्ग में जो बीज बोये थे उसकी विषेली और घातक फसल पूरे शबाब पर है.पृथ्वी के गगन मंडल में कार्बन-डाय-ओक्साइड कि भयानक बृद्धि ने उसमें आक्सीकरण कि प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार साइनोबेक्तीरिया को लगभग निष्क्रिय बना डाला है.ओउद्द्योगिक विकाश के महा दैत्य ने तमाम प्राणियों समेत  अपने जन्मदाता मनुष्य को भी अपने ख़ूनी जबड़े में ले रखा है.विश्व कि जनसँख्या  लगभग सात अरब हो चुकी है,पृथ्वी के धरातल का ८६%मनुष्यों की दुर्दमनीय जिजीविषा और जहालत का चारागाह हो चुका है.संसार की अधिकाँश नदियाँ या तो मृतप्राय हो चुकीं हैं या आधुनिक औद्दोगीकरन का मल-मूत्र उदरष्ट करते हुए गंदे नालों में तब्दील हो चुकीं हैं.खेती के लिए बढ़ते हुए फर्टीलाईजर के कारण इको सिस्टम में नाइट्रोजन का वैसम्य अब प्रतिकूल हो चुका है.इसी कारण समुद्र का २४५००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कम आक्सीजन वाला डेड जोन घोषित किया जा चुका है.
                            विगत दिनों     महान वैज्ञानिक और नोबल विजेता पाल कुर्तज़ें ने अपनी थ्योरी से यह सावित किया है कि हम अपने ही बनाए ऐसे  युग में या काल खंड में जी रहें हैं,जो हमारे ही विनाश का कारण बन सकता है.उन्होंने रेखांकित किया है कि पृथ्वी ने होलोसीन युग [हिमयुग के बाद के ११७०० वर्ष}१७८४ में तभी छोड़ दिया था जब स्टीम इंजन का आविष्कार हुआ था.१८ वीं सदी से पृथ्वी एन्थ्रोपोसीन युग में आ चुकी है.ये भयावह कालखंड हम मानवों ने स्वयम निर्मित किया है.जैव विविधता के विनाशकारी भयानक असंतुलन,समुद्र के बढ़ते जल स्तर,जंगलों और खेती योग्य उर्वरा भूमि पर कांक्रीट के जंगलों का दानवी आकार,ये सभी हम मनुष्यों की भोग लिप्सा के जीवंत प्रमाण हैं १९४५ में परमाणु शक्ति के आविष्कार से लेकर अमेरिकी सोवियत शीत युद्ध तक और अब ९/११ से लेकर २६/११ तक सर्वत्र भयानक एन्थ्र्पोसीन व्याप्त है.खनिज तेल और अन्य खनिजों के अनवरत खनन और परमानुविक कचरे के संकट ने सभी सुधी इंसानों को चकरघिन्नी बना डाला है..इतना सब होने पर धरती पर महाप्रलय नहीं तो खंड -प्रलय की संभावना तो अवश्य ही वन सकती है.इस दौर में कोई भी ऐरा -गैरा नथ्थू खेरा यदि २१-मई २०११ या २१ दिसंबर -२०१२ को धरती के विनाश की भविष्यवाणी करता है तो उसमें गलत क्या है? भले ही ये धरती अभी सदियों तक सलामत रहेगी किन्तु इंसान होंगे की नहीं इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता.यदि जलचर-नभचर-थलचर होंगे भी तो कैसे होंगे?शायद पुराणों को ठीक से पढने वाले ही उसकी कल्पना कर सकते हैं
              श्रीराम तिवारी
                    

शनिवार, 28 मई 2011

सुजलाम-सुफलाम-मलयज़-शीतलाम; भाग- [1]

  'धरती अपनी धुरी से आधा  फुट दूर हटी''और तेज हुई धरती के घूर्णन की गति''दिन छोटे और रात बड़ी होने लगी
               " धरती खिसकी, धरती खतरे में,बचा सको तो बचा लो इस धरती को. "
  इस  तरह के अन्य अनेक डरावने  और भयानक शीर्षकों वाले आलेखों और विभिन्न सूचना माध्यमों की और से तार्किक-अतार्किक,पुष्ट-अपुष्ट,वैज्ञानिक-अवैज्ञानिक समाचारों के शोरगुल में ततसम्बन्धी मूलगामी समष्टिगत चिंता विना किसी सर्वमान्य समाधान के यथावत और सनातन रूप से विद्यमान है.
     उपरोक्त विश्यन्तार्गत मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही सार्वदेशिक-सर्वकालिक चिंतन और तत्संबंधी भविष्यवाणियाँ की जाने लगी थीं.संसार की विभिन्न मानव सभ्यताओं के विकाश क्रम और इतिहास के अनुशीलन से यह स्पष्ट होता है की मनुष्य ने सभ्यताओं के शैशवकाल में ही इस धरती को निश्चय ही स्वयम  अपने जैसा ही  नश्वर मानकर  उसकी हिफाजत का विचार अवश्य किया होगा.
             विवेकशील और प्रकृति के प्रति कृतग्य मानव ने निश्चय ही अपने वैयक्तिक सुखमय जीवन के लिए वांछित तत्कालीन सभ्यता के उपलब्ध संसाधनों के प्रचुर मात्रा में निरंतर उपभोग से उनके क्षरण का अनुभव किया होगा.प्राकृतिक संसाधनों की सीमित उपलब्धी और मानव सहित तमाम जीवों के निरंतर असीमित उपभोग ने कतिपय उन्नत सभ्यताओं के पुरोधाओं को सोचने पर मजबूर किया होगा कि प्राणीमात्र के रहने लायक यदि  इस धरती को  दीर्घ काल तक के लिए सुरक्षित रखना है तो उसका दोहन नियंत्रित करना होगा,साथ ही उसकी सेहत का ख्य्याल रखना होगा. जिन सभ्यताओं ने ऐसा  चिंतन किया,धरा को माता का सम्मान दिया,प्राणीमात्र कोअबाध्य   माना और अहिंसा का अमरगीत गाया उनमें भारतकी प्राचीन आदिम साम्यवादी {राजा विहीन उप्निशाद्कालीन गणतांत्रिक व्यवस्था}का स्थान सारे संसार में सर्वोपरि है. जिन्होंने सिर्फ  मनुष्य के येहिक सुखों की खातिर विज्ञान के आविष्कार किये और धरती के ह्र्य्दय को चीर डाला ,जिन्होंने धर्मान्धता या धन लोलुपता के वशीभूत होकर अतीत में सारे संसार को रौंदा है वे आज भी इस धरती पर कोहराम मचाने के लिए परमाणु बम के जखीरे तैयार कर रहे हैं.इन  अ-सभ्यताओं ने पश्चिम गोलार्ध में और दक्षिण एशिया में धरती को रक्त रंजित करने का अपना सदियों पुराना आदमखोर स्वभाव इस २१ वीं सड़ी में भी  नहीं छोड़ा है.  इन्ही खुदगर्जों ने धरती को जगह जगह छेदकर लहू -लुहान कर दिया है.ऊपर से तुर्रा ये है कि विकसित कहे जाने वाले राष्ट्रों द्वारा  अपनी लिप्साओं का ठीकरा दुनिया की उस अकिंचन-अनिकेत  आवादी के सिर फोड़ा जा रहा जिसने धरती पर जन्म तो लिया है किन्तु उसका रंचमात्र अहित या शोषण नहीं किया बल्कि भूंख-प्यास ,सर्दी-गर्मी और जीवन -मरण में इस वसुंधरा के प्रति अपना कृतज्ञता भाव कदापि नहीं छोड़ा.
                    भारतीय और चीनी चिंतन परम्परा को बौद्ध दर्शन ने निसंदेह पंचशील सिद्धांतों के तहत सदियों तक अविकसित और दुर्भिक्ष का शिकार बनवाया किन्तु यह  भी अकाट्य सत्य है कि यह बौद्ध दर्शन और उसका जनक वेदान्त दर्शन इस महान तम आप्त वाक्य के  उद्घोषक रहे हैं कि "धरती सबकी है""अहिंसा परम धर्म है"तृष्णा दुःख का कारण है"
      इसी चिंतन परम्परा को जर्मन दार्शनिकों ने प्रोफेषर मेक्समूलर तथा कतिपय इंडो-यूरोपियन विद्वानों के मार्फ़त जाना.जर्मनी के सभी विश्विद्यालयों की यह मध्ययुगीन खाशियत थी की जहां एक ओर वहाँ दनादन संहारक अनुसंधान हो रहे थे वहीं दूसरी ओर प्राच्य मानवीय दर्शन पर निरंतर न केवल अनुसन्धान अपितु उस पुरातन भारतीय ज्ञान को अपडेट भी किया जा रहा था.महान जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने भारतीय दर्शन -चाणक्य,चार्वाक,कपिल,कणाद,भवभूति,वैशेषिक ,न्याय और उत्तर मीमांसा का गहन अध्यन करते हुए यूनानी दर्शन और भारतीय दर्शन के सत्व को मिलकर ओवेन और दुह्रिंग के सिद्धांतों को जो की सर के बल खड़े थे ,उसे पैरों पर पर खड़ा कर दिया और दुनिया ने जिसे' मार्क्सवाद 'का नाम दिया.  जिन भारतीय स्थापनाओं को मार्क्स ने स्वतंत्र रूप से वैश्विक आर्थिक और सामाजिक कसौटी पर विज्ञान सम्मत सिद्ध किया उनमें धरती को भोगने और बर्वाद करने वाले वर्ग को पूंजीपति वर्ग और धरती के अनगढ़ प्राकृतिक स्वरूप को संवारने ,सौन्दर्य प्रदान करने  वाले वर्ग को सर्वहारा वर्ग कहते हैं.
        आज यही पूंजीपति वर्ग और उसका दासीपुत्र मीडिया धरती के विनाश की,धुरी से खिसकने की ,पर्यावरण प्रदूषण की,तापमान बढ़ने की,ग्लेश्यर पिघलने की ज्वलामुखी फटने की और सुनामियों के आक्रमणों की सच्ची -झूंठी कहानियों को टी वी चेनलों पर दिखाने और टी आर पी बढाने तक का उपक्रम करते रहते हैं ,यदि दुनिया के शोषक शशक वर्ग अपने स्वार्थों,मुनाफों,और राष्ट्रीय सीमाओं के अतिक्रमण को रक्त रंजित करने के लिए विश्व सर्वहारा को बलि का बकरा बनाते रहेंगे तो निसंदेह धरती जिसका विनाश अपने तयशुदा काल चक्र के अनुसार भले ही सूरज चाँद और सितारों की गति से निर्धारित हो किन्तु वर्तमान दौर के पूंजीवादी भौतिकवादी वैज्ञानिक अन्धानुकरण से धरती अपने योवन काल में ही अप्रसूता हो जायेगी.
                                        श्रीराम तिवारी

सोमवार, 23 मई 2011

पाकिस्तान की अमन पसंद जनता को सिर्फ़ भारत ही बचा सकता है.

 स्वाधीन भारत की जनता ने अपने अतीत के झंझावतों,विदेशी आक्रमणों,जन-आकांक्षाओं,स्वाधीनता-संग्राम की अनुपम अद्वतीय नसीहतों से भले ही  बहुत कम सीखा है.भले ही आर्थिक-सामाजिक और सांस्कृतिक असमानता और ज्यादा विद्रूप और भयावह हो चुकी हो किन्तु एक मायने में भारत की वैचारिक परिपक्वता वेमिसाल है;भारत ने अपने तथाकथित स्वर्णिम अतीत से यह निश्चय ही सीखा है की हम भागते हुए कायरों पर वार नहीं करते.हम किसी संकटग्रस्त व्यक्ति {जैसे की ओसामा या दाउद}या संकटग्रस्त राष्ट्र {जैसे की पाकिस्तान}पर छिपकर वार {जैसे की अमेरिका ने किया} नहीं करते.हमें  अपनी तमाम खामियों,तमाम दुश्वारियो,तमाम चूकों के वावजूद अपनी लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर नाज है.हमें अपनी तमाम राजनैतिक पार्टियों में बैठे कतिपय निहित स्वार्थियों के वावजूद शीर्षस्थ नेतृत्व की सामूहिक निर्णय लेने की क्षमता पर नाज़ है.
        जब संसद पर हमला हुआ,जब कारगिल-द्रास-बटालिक और पूंछ पर हमला हुआ तो कुछ भावुक भारतीयों ने दवाव बनाया की पाकिस्तान पर हमले करने का वक्त आ गया है किन्तु देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपई  ने देश की नीति का अनुशरण करते हुए सब्र से काम लिया.जब कंधार अपहरण काण्ड हुआ तब भी  हमले की बात उठी किन्तु आदरणीय जसवंतसिंह जी ने अपने देश के नागरिकों को जीवित भारत लाकर एक शानदार काम किया था भले तब अटलजी को मजबूरन ही सही सेकड़ों आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था. किन्तु बडबोले ढपोर शंखियों ने उनकी और एन डी ये की जमकर लानत-मलानत की थी.तब कांग्रेस विपक्ष में थी और जोर-शोर से पाकिस्तान पर भारत के हमले का आह्वान कर रही थी.जब मुंबई में दौउद,करीम लाला,हाजी मस्तान और कसाब ने हमला किया तो सत्ता में कांग्रेस थी और विपक्ष में भाजपा के वयानवीर लगातार चिल्ला रहे हैं की-नक़्शे पर से नाम मिटा दो पापी पाकिस्तान का"
        यह एक राजनैतिक स्थाई भाव है अतः लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सहज संभाव्य है किन्तु देश में शिक्षित मूर्खों का  भी एक खास किस्म का स्थाई भाव है की अमन और शांति ,विकाश और खुशहाली,का एजेंडा दूर हटाओ -चलो अब एक काम करें -धधकती आग में कूंद पड़ें याने पाकिस्तान पर हमला कर उसे नेस्त नाबूद कर दें! इन आधे अधूरे अर्ध विक्षिप्त मानसिकता के अंध-राष्ट्रवादियों को चाहिए की वे चाहें तो शौक से अपनी हसरत पूरी करें और जिस तरह जातक कथा के बन्दर ने नाइ की देखा -देखीं उस  के उस्तरे से अपनी गर्दन काट ली थी ;उसी तरह इन स्वनाम धन्य देशभक्तों को कानूनन  छूट मिलनी चाहिए कीअमेरिका की देखा-देखी पाकिस्तान या जहां कहीं भी भारत के दुश्मन व्यक्ति ,समूह या राष्ट्र मिलें वो उन्हें नष्ट करने के लिए या स्वयम को रणाहूत करने के लिए प्रस्थान कर सकें.लेकिन यह भारतीय सिद्धांत नहीं हो सकता क्योकि भारत अमेरिका नहीं है.क्योंकि रिसर्च अनालेसिस विंग याने रा सी आई ये नहीं हैं.आई एस आई ने अमेरिका की जो मदद की वो भारत की मदद क्यों करेगी?अमेरिका ने ओसामा को पाला,अमेरिका ने आई एस आई को पाला,अमेरिका ने पाकिस्तानी फौज को पाला और अमेरिका ने पाकिस्तान को पाला.भारत ने इनमें से किसी को नहीं पाला.भारत ने सिर्फ आस्तीनों में सांप पाले हैं .भारत का दर्द पाकिस्तान नहीं है भारत का दर्द चीन नहीं है.भारत का दर्द भारत के अन्दर है.
 कस्तूरी कुंडल बसे ,मृग ढूंढे वन माहि ....
 ऐंसे घट-घट राम हैं ,दुनिया जाने नाहिं.......
    
       अभी २२ मई की आधी रात को पाकिस्तान के कराची स्थित नौसेना वेस पर तहरीके तालिवान के २२ आतंकवादियों ने हमला किया और दर्जनों पाकिस्तानी फौजी मारे गए.यह बताने कीजरुरत नहीं की उन जेहादियों ने १८ घंटे तक पाकिस्तानी फौज से लोहा लिया.और अंत में जन्नत को प्रस्थान करते हुए पाकिस्तान में मर्मान्तक चीत्कार छोड़ गए हैं.अमेरिका के हाथों ओसामा-बिन-लादेन की मौत के बाद अब तक पाकिस्तान में लगभग बीस हमले हो चुके हैं.ये हमले या तो अमेरिका के ड्रोन हेलीकाप्टरों ने किये या पाकिस्तान स्थित आतंकियों ने.यह सिलसिला तब और तेज हो गया जब आई एस आई के चीफ शुजा पाशा ने और विदेश सचिव ने यह फ़रमाया की अब यदि किसी ने ऐंसी गुस्ताखी {जैसी अमेरिका ने ओसामा को मरने में की} की तो हम भी जबाब देंगे.
                    भारत के नेत्रत्व ने इस नाज़ुक वक्त में काफी सूझ बूझ का परिचय दिया है.यदि भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविर नष्ट करने की कोशिश की होती या कहीं भी रंच मात्र छेड़-छाड़ की होती तो पूरा पाकिस्तान जो आज आपस में बुरी तरह विभाजित है -एक हो जाता.आतंकी भी पाकिस्तान को नहीं भारत को ही  निशाना बनाते.अमेरिका-चीन और भारत के सभी पड़ोसी भारत को आँख दिखाते.पाकिस्तान की लिजलिजी दरकती-सरकती हुई बदरंग सी तस्वीर को चमकाने का मौका भारत ने नहीं दिया यह भारत की बेहतरीन रणनीति है और पाकिस्तानी हुक्मरानों ने भारत जैसे संयमी सहिष्णु राष्ट्र को भ्रतात्व भाव से न देखकर अमेरिका और चीन की चालों का मोहरा बनकर अपने ही पैरों पर कुल्हाडी मारी है.ये पाकिस्तान की बदकिस्मती है.
        यदि हम भारत के लोग पाकिस्तान की अमन पसंद जनता तक दोस्ती और भाईचारे का पैगाम पहुंचाएंगे तो भारत में छिपे  आश्तीन के साँपों को दूध पिलाने वाली आई एस आई और भारत से सनातन बैर रखने वाली पाकिस्तानी फौज को जैचंद और मीरजाफरों का टोटा पड़ जाएगा..
      होशियारी वह नहीं की आव देखा न ताव और मख्खी को मारने के लिए किसी का हाथ ही काट दें.शुजा पाशा ने ,कियानी ने या मालिक साहब ने सोचा होगा की एव्टावाद में खोई राष्ट्रीय अस्मिता की जलालत से छुटकारा पाने का काश भारत कोई मौका दे दे और फिर पाकिस्तान में फौजी हुकूमत कायम की जाये.भले ही भारत की फौजें पाकिस्तान के चार टुकड़े कर दें.कम से कम इस जिल्लत और बदनामी से छुटकारा तो मिले की उधर "ओसामाजी" को छुपाने के अपराध में दुनिया पाकिस्तान के हुक्मरानों को झूंठा मान चुकी है ,इधर ओसामाजी को जान बूझकर मरवाने के आरोप में विश्व इस्लामिक आतंकवाद ने पाकिस्तान को बर्बाद करने का संकल्प ले लिया है.
            आतंकवादी यदि पाकिस्तान पर कब्ज़ा कर लें तो भारत को खुश  होने की जरुरत नहीं.उस सूरत में भारत और पाकिस्तान की आवाम पर आतंकियों के हमले और तेज होते चले जायेंगे.इस लिए वर्तमान दौर की लोकतान्त्रिक हुकूमत{पाकिस्तान की}और भारत की लोकतंत्रात्मकधर्मनिरपेक्ष
ताकतों को चाहिए की अभी अपनी-अपनी उर्जा अनावश्यक व्यय न करें.ताकि उस दौर में जब आतंकवाद चरम पर हो तो डटकर मुकाबला किया जा सके.भारत इअसी रास्ते पर निरंतर प्रयत्नशील है.पाकिस्तान में भी काफी लोग हैं जो अमनपसंद हैं किन्तु आई एस आई और फौज की विस्वशनीयता तार तार हो चुकी है.सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया?
                                                             श्रीराम तिवारी
         

रविवार, 15 मई 2011

वाम मोर्चे की इस पराजय से उग्र वाम का आक्रमण और तेज होगा

     अप्रैल-मई -२०११ में पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव संपन्न  हुए; इन चुनावों के परिणामों से न केवल सम्बन्धित राज्यों का बल्कि सम्पूर्ण भारत का राजनैतिक परिदृश्य चिंतनीय बन गया है.देश और दुनिया के राजनैतिक विचारक ,हितधारक अपने-अपने चश्में से इस वर्तमान दौर की बदरंग तस्वीर को अभिव्यक्त कर रहे हैं.राजनीति विज्ञान का ककहरा जानने वालों को मेरे इस आलेख में नया और रोमांचक कुछ भी  भले ही न मिले;किन्तु यथार्थ दृष्टिकोण वाले सुधीजन कतई निराश नहीं होंगे.
           इन चुनाव परिणामों में असम को छोड़ बाकी अन्य चारों राज्यों में परिवर्तन की लहर देखी जा सकती है.असम में कायदे से असम गणपरिषद और भाजपा के गठबंधन को सत्ता में आना चाहिए था किन्तु वे परिवर्तन की हवा  अनुकूल होते हुए भी तरुण गोगोई नीति कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने में असमर्थ रहे.ऐसा क्यों हुआ यह आने वाले दिनों में और ज्यादा स्पष्ट हो सकेगा.इतना  तय है की यु पी ऐ द्वतीय को भृष्टाचार के आरोपों के दौर में भी सत्ता सुख बदस्तूर जारी रहेगा.यह समझ बैठना कतई उचित नहीं होगा कि असम कि जनता ने अपरिवर्तन का प्रमाणीकरण किया है.जनता तो परिवर्तन के लिए न केवल असम में बल्कि पूरे देश में एक पैर पर खडी है.यह विपक्ष कि जिम्मेदारी है कि बेहतरीन आकर्षक सदाचरितऔर करिश्माई विकल्प पेश करे.यदि असम में यह नहीं हो सका तो यह भी सम्भव है कि पूरे देश के आगामी लोक सभा चुनावों में भी न हो सके!तब केंद्र कि सत्ता में यथास्थिति कि संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता.
                केरल विधान सभा चुनाव में तो साठ के दशक से ही वहाँ कि जनता ने एक अलिखित नियम सा बना लिया है कि प्रत्येक पांच साल में प्रदेश कि सत्ता में परिवर्तन किया जाएगा.चूँकि इस दफे बारी यु डी ऍफ़ {कांग्रेस नीट गठबंधन}की ही थी सो मात्र दो सीट की बढ़त से ही सही वही सत्ता में आ गया.इस बार वाम मोर्चे ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और ६९ सीट पाकर एक नया कीर्तिमान बनाया की भले ही जनता ने सत्ता परिवर्तन किया हो किन्तु एल डी ऍफ़{सी पी  एम् नीत गठबंधन}के अच्छे काम-काज को प्रमाणीकृत करते हुए उसे सम्मान जनक विपक्ष की भूमिका में प्रतिष्ठित किया है.जो लोग इस तथ्य से आँख मींचकर सिर्फ वाम विरोध के सिंड्रोम से ग्रस्त हैं,उन्हें केरल जाने की जरुरत नहीं वहां के विगत चुनावों का लेखा जोखा खंगालकर तस्दीक कर सकते हैं कि कांग्रेस नीत यु डी ऍफ़ गठबंधन को विपक्ष कि स्थिति में ऐंसा प्रचंड समर्थन कभी नहीं मिला.केरल में आइन्दा जब भी चुनाव होंगे वहाँ वाम मोर्चा {सी पी एम्  नीत गठबंधन}ही सत्ता में आएगा.मीडिया का दकियानूसी हिस्सा और कांग्रेस के चारण यदि कहें कि अब तो भारत में वामपंथ का कोई भविष्य नहीं तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे ऐंसा १९५८ से कर रहे हैं.यह जग जाहिर है कि न केवल भारत बल्कि सारे विश्व में वह केरल कि जनता ने ही कर दिखाया था कि किसी देश के केंद्र की सरकार तो भले ही पूंजीवादी या सामंतवादी हो ,किन्तु किसी भी प्रांत विशेष में न केवल साम्यवादी या समाजवादी बल्कि अन्य वैकल्पिक विचारधारा की सरकार चलाई जा सकती है.जैसी की आज भारत में अधिकांस उपलब्ध विचारधाराओं की सरकारें विभिन्न राज्यों में चल भी रहीं हैं.यह ६० के दशक में अकल्पनीय था.जब सबसे पहले केरल में १९५८ में साम्यवादी सरकार बनी तो नेहरु -इंदिरा से ज्यादा केनेडी को तकलीफ हुई.इधर-उधर की बहानेबाज़ी से कांग्रेस ने उस प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार की भ्रूण हत्या कर दी.उसी का परिणाम है की केरल में ई एम् एस नम्बूदिरीपाद से लेकर वी एस अचुतानंदन तक की ६० सालाना राजनैतिक यात्रा में सी पी एम् के बिना केरल का इतिहास लिखा जाना संभव नहीं.केरल की जनता ने भारत में गठबंधन राजनीती का सर्वप्रथम सूत्रपात किया था. जो राष्ट्रीय दल पहले अपने बल बूते पर देश की लानत -मलानत किया करते थे आज वे सब गठबंधन धरम निभाने के लिए ज्योति वासु या हरकिशन सिंह सुरजीत का शुक्रिया अदा करते हुए सत्ता में विराजमान हैं.कांग्रेस ,भाजपा या तीसरा मोर्चा कोई भी अब अकेले ही केंद्र की सत्ता हासिल कर पाने में समर्थ नहीं.यह वाम मोर्चे की ही देन है.इसी आधार पर  'कामन -मिनिमम प्रोग्राम देश के हित में बनाए जाने की परम्परा चल पडी जो की लेफ्ट फ्रोंट की ही देन है.वाम मोर्चे के खाते में ढेरों उपलब्धियां हैं किन्तु केरल में सी पी एम् के बड़े नेता अपने अहंकार में और आपसी खींचतान में न उलझे होते तो इस बार भी केरल में एल डी ऍफ़ ही जीतता और यह भी उसका एक शानदार इतिहास होता.मात्र दो सीट के बहुमत पर केरल में यु डी ऍफ़ की सरकार बने जा रही है और कुछ सावन के अंधे कह रहे हैं की वामपंथ तो ख़त्म ही हो गया...
           पुद्दुचेरी में विद्रोही कांग्रेसियों ने सत्ता हथिया ली,सशक्त विपक्ष के अभाव में जनता ने अपना अभिमत यों दिया मानों वह कांग्रेस को हटाना चाहती हो किन्तु विकल्प के अभाव में कांग्रेस की बी टीम को  साधना कांग्रेस के खुर्राट नेताओं के बाएं हाथ का काम है.
         तमिलनाडु में करूणानिधि परिवार की महाभ्रुष्ट लहरों ने जय ललित्था  को बैठे बिठाये तिरा दिया.हर्रा लगा न फिटकरी रंग चोखा हो गया,जय ललिता के भृष्टाचार को तमिलनाडु के लोग भूल गए तो हम याद करके क्या भेला कर लेंगे? परिवर्तन के लिए विकल्प के रूप में जो वहां की जनता को सामने दिखा उसे ही चुन लिया ;भले ही वो ऐ राजा-कनिमोज़ी-या करुणानिधी से भी ज्यादा भृष्ट हो.भाजपा या कम्युनिस्ट तो मानों अब भी वहाँ अवांछित हैं.
        पश्चिम बंगाल में १९७७ से २०११ तक लगातार वाम मोर्चा {सी पी एम् के नेतृत्वमें गठबंधन}की सरकार रही है.वर्तमान दौर के विधान सभा चुनाव में उसे जनता ने विपक्ष मैं बैठने और आत्म चिंतन का सुअवसर प्रदान किया है.चूँकि एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में यह कतई जरुरी नहीं की जनता विपक्ष को मौका ही न दे,अतः यह सुनिश्चित था कीकभी-न-कभी तो वाम मोर्चे को भी विपक्ष में बैठना ही होगा.इस नियम के अनुसार ३४ साल तो बहुत ज्यादा होते हैं,उससे से पहले ही बीच में यह सिलसिला टूटना चाहिए था ताकि जो दुर्गति विगत १० साल में ममता और उसकी वानर सेना ने बंगाल की कर डाली वो न हो पाती.लोकतंत्र-जनवाद-सामाजिक समानता और प्रगतिशील आर्थिक नीतियों की दम पर वाम मोर्चे ने बंगाल के लिए सब कुछ किया और उसी की बदौलत सात बार जीते भी किन्तु ज्योति वसु की शानदार विरासत को सँभालने के लिए जिस आभा मंडल की जरुरत थी वो बुद्धदेव नहीं जुटा पाए.उनकी ईमानदारी और जन-निष्ठां पर किसी को संदेह नहीं,घोर विरोधी ममता और कांग्रेस ने भी बुद्धदेव और उनके साथियों की ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं उठाया.देश और दुनिया के सुधीजन अच्छी तरह जानते हैं की वाम मोर्चा सरकार ने बंगाल के करोड़ों भूमिहीनों को आपरेशन वर्गा के तहत जमीन का मालिक बनाया.विगत ३५ साल में एक भी साम्प्रदायिक दंगा उस पश्चिम बंगाल में नहीं होने दिया जिसमें सिद्धार्थ शंकर राय के ज़माने में लाशे विछी रहती थीं.बिजली ,सब्जी ,पीने का पानी,चावल,चाय बागन ,जूट एवं मछली उत्पादन में बंगाल को पूरे देश में नंबर वन किसने बनाया?ममता ने?आनंद बाज़ार पत्रिका ने?तृण मूलियों ने ?या महाश्वेता देवियों ने?पश्चिम बंगाल में बिहार से भागकर आये भूमिहीन -रोजगार विहीन गरीवों को कलकत्ते में तांगा चलाते देख जिन भांडों ने मगर मच्छ के आंसू बहाए वे ममता के छल -छद्म और भोंडी नट-लीला को फिलवक्त वोट में बदलवाने में भले ही कामयाब हो गए हों किन्तु 'बकरे की माँ कब तक खेर मनाएगी?कतिपय टी वी चेनल्स और तुकड्खोर अखवारों ने लगातार नेनो काण्ड ,नंदीग्राम,लालगढ़ और सिंगूर को साधन बनाया और उनका अपावन लक्ष्य क्या था?वाम मोर्चे को सत्ताचुत करना ,क्योंकि उनके आका अमेरिका ने और विश्व कार्पोरेट सेकटर ने बंगाल की वाम मोर्चा सरकार को न केवल भारतीय राजनीती में बल्कि वैश्विक आर्थिक सरोकारों में उनके हितों के विपरीत पाया था.वेशक पश्चिम बंगाल की जनता को हक है की वो जिसे चाहे सत्ता सौंप दे,किन्तु जब सम्पूर्ण यु पी ऐ +मीडिया +माओवादी+बंगाल के भूत पूर्व जमींदार+टाटा के विरोधी पूंजीपति+विकाश विरोधी+साम्प्रदायिक तत्व+दलाल वुद्धिजीवी =ममता हो जाये तो ३४ साल तक दूध का धुला वाम पंथ भी कोयले से काला नजर तो आना ही था.यह अच्छा ही हुआ कि वाम मोर्चा  को जनता ने कुछ दिनों {कम से कम ५ साल}के लिए विपक्ष में कर्तव्य पालन सौंप दिया है.और उससे भी अच्छा यह हुआ कि ममता बेनर्जी {तृण मूल तो एक अस्थाई मंच है}को सत्ता सौंप दी.चूँकि जनता ने उन्हें प्रचंड  बहुमत नाबाज़ा है सो उनके तानाशाह बन्ने में कोई अड़चन नहीं है.उन्हें लोकतंत्र,जनवाद,संविधान और सामूहिक नेत्रत्व जैसे अल्फाजों से नफरत है सो उनके शीघ्र ही उफनती नदी कि तरह विनाश के महासिंधु में मिल जाने की पूरी सम्भावना है.बुद्धदेव या वाम मोर्चें में कोई खोट नहीं थी .उन्हें इतिहास के इस मोड़ पर इसीलिये लाया गया है कि अबकी बार न केवल बंगाल,न केवल केरल ,न केवल त्रपुरा बल्कि पूरे देश के मेहनतकश -किसानो,मजूरों,युवाओं और गरीवों को एकजुट करें और लाल किले पर लाल झंडा फहराएं.
          केंद्र कि यु पी ऐ सरकार भले ही अपनी पीठ ठोके,किन्तु ये कडवा सच है कि देश कि तीनो राष्ट्रीय पार्टियाँ इन चुनावों में खेत रहीं हैं.भाजपा ने ८५० उम्मेदवार खड़े किये थे सिर्फ ५ सीटें मिली हैं,कांग्रेश को असम से ही संतोष करना होगा क्योकि ममता तो कटी पतंग है,तमिलनाडु और पुदुचेरी में उसे नफरत से देखा जा रहा है ,केरल में सिर्फ दो सीट के बहुमत का क्या ठिकाना?वामपंथ भी फिलहाल तो बेक फूट पर ही है अतः क्षेत्रीय ताकतें बलवान होती जा रहीं हैं इससे राष्ट्र कि एकता को खतरा हो सकता है.मजूरों-किसानों और वेरोजगार युवाओं कि वेहतरी कि आशाएं जिन पर टिकी थी उन वाम पंथियों के कमजोर होने से नक्सलवाद,माओवाद,के रूप में उग्र वामपंथ देश पर हावी हो सकता है जो भारत जैसे देश कि सेहत के लिए शुभ सूचना नहीं होगी.
         श्रीराम तिवारी
                            
                                   

सोमवार, 9 मई 2011

आतंकवाद के नाम पर दो पड़ोसी मुल्कों में युद्धोन्माद फैलाना अमानवीय कृत्य है.

    इस  में कोई शक नहीं कि भारत के खिलाफ पड़ोसी  राष्ट्रों और खास तौर से पाकिस्तान का रवैया  सदैव ही शत्रुतापूर्ण रहा है.चाहे भारत में अलगाव वादियों की घुस पैठ का मामला हो,चाहे नकली नोट छापकर भारतीय अर्थव्यवस्था को चौपट करने की कुत्सित कोशिश का मामला,चाहे नदी जल-बटवारे  का मामला हो,चाहे कश्मीर  को बर्बादी की ओर ले जाने का मामला हो या संयुक राष्ट्र संघ में विगत ६४ सालों से भारत के खिलाफ लगातार विष-वमन का मामला हो;इन सभी मामलों में पाकिस्तान ने भले ही भारत को विषधर की तरह काटा हो ,किन्तु भारत ने उसे अपने बिगडेल  छोटे भाई  की मानिंद समझकर हर बार उसे माफ़ ही  किया है!
    भारतीय दार्शनिक  परम्परा में एक आख्यान बहुश्रुत है- एक बड़े संत-महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ नदी स्नान करने गए तो नदी तट पर उन्हें विच्छू ने काट लिया,महात्माजी ने विच्छू को उठाकर पानी में फेंक दिया.संतजी जब पानी में डुबकी लगा रहे थे  तब उन्हें फिर उसी विच्छू ने काट लिया.संतजी ने विच्छू को फिर वहीं नदी जल में छोड़ दिया और जब संतजी जल से बाहर  निकलने लगे तो उन्हें फिर विच्छू ने काट लिया ,तब भी उन महात्माजी ने शांत भाव से बिना  किसी उदिग्नता के विच्छू {जी} को वहीं जीवित छोड़ दिया.एक शिष्य ने कहा-गुरुदेव आपने इस दुष्ट को जीवित क्यों छोड़ा?तो गुरूजी ने कहा-वत्स,विच्छू का स्वभाव है काटना सो वह अपने स्वभाव वश काटने को मजबूर है और संत{सज्जन आदमी}का स्वभाव है धैर्य,शील और सहनशीलता सो मेंने अपने स्वभाववश विच्छू को लगातार क्षमा किया.यदि वह पुनः कटेगा तो भी में अपने सात्विक स्वभाव से पतित नहीं होने वाला.यह दर्शन न तो कायरों का है , न अधैर्यों का है,और न युद्ध से विरत सन्यासियों का है.यह नितांत वुद्धिमत्तापूर्ण और वास्तविक राष्ट्रवाद का द्योतक है.
      सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषग्य और पूर्व नौ सेना अधिकारी -उदय भास्कर ने भी प्रकारांतर से स्वीकार किया है कि "हम पाकिस्तान में छिपे आतंकियों को हुबहू अमेरिकी तर्ज पर नहीं मार सकते" उन्होंने स्पष्ट कहा कि 'भारत,पाकिस्तान में छुपे मुंबई बम काण्ड के दोषियों व् २६/११ के दोषियों को पाकिस्तान में घुसकर वेशक मार सकता है,हमारी फौज इसमें सक्षम है किन्तु भारत-पाकिस्तान के बीच की भौगोलिक स्थिति और ऐतिहासिक सम्बन्ध इसकी इजाजत नहीं देते' उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा दौर में भारत को सबसे बड़ा खतरा पाकिस्तान व् चीन में जमा हो रहे परमाणु बमों के जखीरे का है."श्री उदय भास्कर जी अभ्यास मंडल की ग्रीष्म कालीन व्यख्यान माला में इंदौर के प्र्वुद्ध् जनों को संबोधित कर रहे थे.मेरे मत में अमिरीकी शील्ड कमांडो की तरह पाकिस्तान में कार्यवाही न करने की कुछ   वजह और है.  भारत -पाकिस्तान की दूरी अमेरिका और पाकिस्तान जैसी नहीं है.भले ही एक ही भूभाग के दो अलग-अलग राष्ट्र हों किन्तु जहां भारतीय हिस्से में संप्रभुता,प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसी खूबियाँ परवान चढ़ रहीं हैं वहीं पाकिस्तानी हिस्से में अमेरिका,सउदी अरब और चीन के हथियारों का जखीरा तो है ही साथ ही वहां के परमाणु बम पर फौज का हाथ है,चूँकि पाकिस्तानी फौज का एक ही मकसद है की  भारत को बर्बाद करना अतेव वे सिर्फ किसी ऐसें बहाने का इन्तजार कर रहे हैं जो न केवल भारत पर बमों की वर्षा का सबब हो बल्कि पकिस्तान की जनता में प्रजातांत्रिक चाहत को भी नेस्तनाबूद कर दे. भारत अपना पड़ोसी नहीं बदल सकता उसे हर-हालत में उसीके साथ रहना है, हमें नापाक मनसूबे पालने वालों के उकसावे में आकर   ऐंसा कुछ नहीं करना चाहिए कि पाकिस्तानी   फौज हीरो वन जाए.चूँकि पाकिस्तानी आवाम न तो अपनी रक्तपिपासु फौज को पसंद करती है और न ही उस "जेहाद' को जो ओसामा या पाकिस्तान स्थित विभिन्न आतंकी गुटों का शगल है,अतः वहाँ की आवाम या सरकार के नैतिक समर्थन मिले बिना भारत को अमेरिकी कार्यवाही की नक़ल नहीं करना चाहिए.चूँकि अमेरिका को पकिस्तान की शशक्त सत्तासीन लाबी का,पाकिस्तानी मीडिया का और आई एस आई का भरपूर  समर्थन  हासिल था अतः एक मई-२०११ की आधी  रात  को अमेरिकी  राष्ट्रपति  ओबामा  के आदेश  पर  9/11 के हमले  के लिए  जिम्मेदार  अल -कायदा  के ओसामा  बिन  लादेन   को पाकिस्तान  में घुसकर  मारने  का दुस्साहस  किया . भले  ही पाकिस्तान  को अमेरिकी  हमले  पर ऐतराज़  न हो किन्तु  जब  भारत ऐसा  करेगा   तो  वो  मार  खाकर  चुप  नहीं  बैठेगा .
      हम  भारत के हर गाँव -शहर-महानगर में वैठे घोषित-अघोषित आतंकवादियों को तो पकड़ नहीं रहे, जिन्हें जेलों में होना  चाहिए वे रेलों में हैं और जिन्हें अदालतों ने मौत की सजा सुना दी है ,वे माल पुआ खा रहे हैं.पाकिस्तान में छुपे बैठे दो दर्जन आतंकवादियों को मारने के लिए बैचेन हो रहे हैं.जब १९९३ का मुंबई बम काण्ड हुआ,कंधार विमान अपहरण काण्ड हुआ,२६/११ का मुंबई हमला हुआ,कारगिल हुआ,तब हम ऐंसा करते जो अमेरिका ने एक मई-२०११ को किया है तो कोई और बात थी.अब यदि अमेरिका ने अपने अनुषंगी  के घर में घुसकर मुहं काला किया है तो भारत को  उसके भव्य और जिम्मेदार राष्ट्र होने के अनुरूप  ही व्यवहार करना चाहिए.
           भारत को अपने दूरगामी लक्ष्यों के मदेनज़र अपनी आंतरिक और वाह्य सुरक्षा पर ध्यान देना चाहए.राजनैतिक शुचिता,भृष्टाचार विहीन प्रशाशन और सभ्य सुशिक्षित बनाते हुए भारतीय आवाम को उसके मूलभूत अधिकारों की आपूर्ती के साथ-साथ व्यक्ति ,समाज,और राष्ट्र के रूप में दायित्व वोध के लिए कृत संकल्पित किये जाने का ध्येय होना चाहिए.बात-बात में गाहे-बगाहे चाहे क्रिकेट हो या अंतर राष्ट्रीय परिघटना ,भारत और पाकिस्तान के कुछ 'अंधराष्ट्रवादी'एक दूसरे पर हमला किये जाने की वकालत करते रहते हैं ये युद्ध सिंड्रोम सिर्फ उन्हें ही  आकर्षित नहीं करता जो विश्व मंच पर हथियारों के उत्पादक और विक्रेता हैं, यह उन्हें भी आशान्वित करता है जो 'मरे का मांस खाने वाले हुआ करते हैं"
                          भारत -पाकिस्तान में युद्ध नहीं होना चाहिए क्योकि यह दोनों के हित में नहीं है.इसके अलावा इन बिन्दुओं पर भी ध्य्नाकर्षण होना चाहिए.
एक-भृष्टाचार और विदेशी क़र्ज़ से लदे भारत-पाकिस्तान की पूंजीवादी -सामंती सत्तारूढ़ ताकतें,युद्ध के बहाने  अपने पापों को छिपाने के लिए न्यायपालिका और मीडिया को मन माफिक नियंत्रित कर लेंगी.
      दो-युद्ध खर्च के बहाने जन-कल्याण -मद में कटौती की जायेगी अर्थात गरीव वर्ग का जीना दूभर हो जायेगा.
 तीन-करारोपण में वृद्धि की जाएगी,ईमानदार व्यपारी कंगाल हो जायेगा.जो जमाखोर ,कालाबाजारी करेंगे,वे महंगाई बढाकर ,मिलावट करके अपनी जिजीविषा सुरक्षित रखेंगे.
    चार-महंगाई और खाद्द्यान्न संकट दुर्धर्ष होता चला जायेगा.विकाश कार्य अवरुद्ध होंगे.
 पांच-भारत-पाकिस्तान के संघर्ष में भले ही सारी दुनिया सैधांतिक तौर पर भारत के साथ होगी किन्तु तेल उत्पादक देश अन्ततोगत्वा पाकिस्तान का ही समर्थन करेंगे. क्योंकि भारत के समर्थक-सद्दाम हुस्सेन,यासिर अराफात शहीद हो चुके हैं,कर्नल गद्दाफी और हुस्नी मुबारक जैसे भारत -मित्रों को अमेरिका ने चुन-चुन कर निशाना बनाया है इस्लामिक जगत में अब सिर्फ ईरान पर ही आशाएं टिकीं हैं.
छेह -चीन भारत को अपना प्रवल प्रतिद्वंदी मानकर खुद होकर चाहेगा की भारत और पकिस्तान में युद्ध हो ताकि भारत कमजोर हो और चीन की बराबरी के सपने न देखे.
सात-भारत के परम्परागत मित्र -क्यूबा,वियतनाम,ब्रजील ,बोलीविया ,मारीसश और सोवियत संघ हुआ करते थे ,जिनमें सोवियत संघ तो निश्चय ही जब से वहां कम्युनिस्म ख़त्म हुआ है भारत की जैसे रीढ़ ही टूट गई सो अब सिर्फ उसकी वीटो पावर की विरासत ही बची है.
   आठ-भारत पाकिस्तान में किसी भी मुद्द्ये  पर यदि युद्ध की नौबत आती है तो पाकिस्तान ही पराजित होगा इसमें किसी को शक नहीं क्योकि न केवल सेन्य बल बल्कि एक  विशाल प्रजातांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में भारत को पाकिस्तान से कई  गुना  ज्यादा  बढ़त हासिल है.
   लेकिन      युद्धोपरांत दोनों राष्ट्रों का स्वरूप वैसा ही होगा जैसा की 'महाभारत'युद्धोपरांत था.याने की दोनों पक्षों की भारी तवाही होगी सिर्फ अपने-अपने खांडव वन शेष रहेंगेखंडहरों में परणित राष्ट के बुझे हुए पांडव ध्वन्साव्शेशों पर पुनः नए उद्योग  ,नई इमारतें ,नए पुल ,नए अस्पताल बनाने के लिए उन्ही साम्राज्यवादियों के सामने झोली फैलाने को अभिशप्त होंगे ,जिन्होंने मारक हथियार और आपस में युद्धोन्माद का सबब पेश किया है.मीडिया का एक हिस्सा स्पष्ट रूप से इन दिनों भारत की जनता को युद्धोन्मादी बनाने में जुटा है.यह हिस्सा निसंदेह देश की जनता के सरोकारों से कोसों दूर है.
        सारी दुनिया जानती है की जब -जब भारत और पाकिस्तान में संघर्ष छिड़ता है तो महाशक्तियों को अपनी पूंजीवादी आर्थिक मंदी से उभरने का भरपूर मौका मिलता है,उनके हथियारों के आउट डेटेड  जखीरे  भारत -पाकिस्तान के युवाओं  को मरने -मारने के काम  आते  हैं.शक्तिशाली  युद्धखोर  राष्ट्रों के ऐशो -आराम  का सामान  जुटाने  के लिए भारत पाकिस्तान की जनता ही क्यों  अपनों  का लहू  बहाने को आतुर  रहती  है? क्या युद्ध ही अंतिम  विकल्प  है सभ्य  संसार r के लिए ?                                  श्रीराम तिवारी 

गुरुवार, 5 मई 2011

लादेन को मरवाकर पाकिस्तान के हुक्मरान भारत को उकसा रहे हैं.

    इसे  कहते हैं ' गाँव वसा नहीं सूअर-कुत्ते-भिखमंगे पहले से आ जुटे.' ओसामा के मारे जाने  की खबर आते ही दुनिया जहान की हकीकत से वास्ता रखने वाले समझ गए थे कि ये मौत अब आसानी से विदा होने वाली नहीं है.बल्कि अभी तो कई अनुत्तरित प्रश्नों से जूझना होगा.ये सवाल न केवल अमेरिका बल्कि पाकिस्तान से पूंछे जायेंगे.भारत का सरोकार सिर्फ इतना हीनहीं  है कि सांडों कि लड़ाई में उसका अहित न हो.बल्कि  अब जो कुछ भी करना है भारत को ही करना है.
                                        लादेन को अमरीकी फौजों के हाथोंअपनी नापाक जमीन पर  मरवाने का सरंजाम करने वाले पाकिस्तानी हुक्मरान किम्कर्त्व्यविमूढ़  होकर लगभग अवसाद कि स्थिति में पहुँच चुके थे कि 'अंधों के हाथ बटेर लग गई' और भारत के मीडिया ने अपने सेना प्रमुख से सिर्फ इतना ही तो जानना चाहा था कि क्या भारत कि सेना में भी इतनी कूबत है कि उसके फरार आतंकवादी जो पकिस्तान में बैठे -बैठे गुल-छर्रे उड़ा रहे हैं;उन्हें नेत्नाबूद करने का माद्दा भारतीय फ़ौज में है?एक विशाल प्रजातान्त्रिक राष्ट्र कि रक्षा का भार जिनके कन्धों पर हो वे इससे इनकार कैसे करते ? उनके मुख से निकले  दो शब्दों ने पाकिस्तान के हुक्मरानों को  लगभग सन्निपात कि स्थिति में लाकर जग हंसाई का पात्र बना दिया है.पाकिस्तान की जनता को गुमराह करने का बहाना मिल गया है.अपनी कायरता और अमेरिकी चापलूसी करने के लिए -भारत को उकसाया जा रहा है.
  पाकिस्तानी विदेश सचिव    बशीर मियाँ फरमा रहे हैं; भारत से कि दम हो तोआतंकी केम्पों पर हमला  करके दिखाओ! हम इस आलेख के मार्फ़त पूंछते हैं कि बशीर भाई{?] होश कि दवा करो.,और गिरेवान में झांकर जबाब दो.आप कहते हैं कि आपकी सेनाओं कि क्षमता को कम न आँका जाये.अरे जनाब आपकी मति मारी गई है क्या?यहाँ हम आग बुझाने में जुटे है और अपनों से गालियाँ खा रहे हैं कि हम भारत की  आवाम को अहिंसा ,शांति,मैत्री और भाई चारे का पाठ कब तक पढ़ाते रहेगे? ,उधर आप लोग अमेरिका कि जूठन खाकर उसके द्वारा लतियाये जाने पर भी बजाय उसके साम्राज्वादी मंसूबों पर प्रतिक्रिया देने के अपने सनातन पड़ोसी भाइयों{भारतीयों}पर कुकरहाव कर रहे हो.आपकी फौजों में दम था {?}तो आपने लादेन को पकड़कर कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं की?.क्या वो आपका जमाई लगता था?और आप यदि जरा भी शर्मो हया रखते हो ,तो बताओ कि जब ४० अमेरिकन कमांडोज आपके घर में घुसकर आपकी अस्मत {संप्रभुता}लूट रहे थे तब आपकी जावांज फ़ौज{?] और आप कि वीरता कहाँ चली गई थी? तब आप कहाँ पर थे? और क्या कर रहे थे? आप कहते हैं कि आपने लादेन को पनाह नहीं दी थी , आपको तो उसके आने -ठहरने{आपके फौजी परिसर में} की भी खबर नहीं थी!आप क्या सोचते हैं कि भारतीय फोजें १९७१  कि विजय गाथा भूल चुकी हैं? नहीं! यदि आप पाकिस्तानी हुक्मरान सोचते हैं कि अमेरिका की खैरात में मिले हथियार और आपकी एशो आराम में डूबी हर्ल्ली फौज भारत की सामरिक शक्ति का मुकाबला कर सकती है तो आप समझ लीजिये की आप से बड़ा मूर्ख दुनिया में कोई नहीं.क्या दो-चार भगोड़े-उन्मादी-उग्रवादियों को बचाने के लिए पाकिस्तान अपने सम्पूर्ण राष्ट्र को ही दांव प् लगा देना चाहता है.कहीं  पाकिस्तान बाकई चार टुकड़ों में तो बंटने नहीं जा रहा?
        भारत की ताकत उसके परमाणु बमों से ही  नहीं,उसकी विशालकाय नेवी,विकट एयर फ़ोर्स या थल सेना से  ही नहीं बल्कि उसकी शानदार विरासत-अहिंसा, विश्वबंधुत्व,प्रजातंत्र,धर्मनिरपेक्षता,राष्ट्रीय-सार्व-भौमिकता और पाकिस्तान को हर चीज में फना करने की ताकत रखने के वावजूद उसे अपने जैसा ही बेहतरीन प्रजातांत्रिक राष्ट्र बनाये जाने की तमन्ना  में ,भारत को सर्वश्रेष्ठ बढ़त हासिल है, हम भारत के लोग पाकिस्तान की जनता को उस नजर से नहीं देखते जिस नजर से पाकिस्तान के हुक्मरान सदा भारत को देखा करते हैं .
                  पाकिस्तानी हुक्मरानों सुनो! भारत के कुछ लोग तो लादेन के शव को अमेरिका द्वारा बेइज्जत किये जाने जैसी निकृष्ट कार्य्प्रनान्ली पर भी अंगुली उठाकर आपके आंसूं ही  पोंछना चाहते थेउसके लिए अकेले दिग्विजयसिंह ही नहीं बल्कि और भी मानवतावादी गंभीरता से आपके साथ थे.,किन्तु तुम्हारी हीन हरकत ने फिजा में ज़हर घोलने का जो काम किया वो न केवल भारत के उन चिंतन शील भद्रजनों को बिचलित कर रहा है जो पाकिस्तान और हिन्दुस्तान की दोस्ती के लिए अनथक प्रयाश करते रहते हैं,अपितु दोनों देशों के बीच जारी द्वीपक्षीय वार्ताओं को अवरुद्ध करने में भी ये उकसावे पूर्ण वयांबाजी  नाकाबिले वर्दास्त है.
      हम जानते हैं कि  आज पाकिस्तान की जनता आप पाकिस्तानी हुक्मरानोंसे  और अमेरिका से बेहद नाराज है.आपसे  ऐसें सवाल पूंछे जा रहे हैं जिनका जबाब आप  नहींदे  पा रहे.इसमें  भारत का क्या दोष है?क्या भारत में कहर बरपाने बालेआतंकी  पकिस्तान  में सदा के लिए महफूज  रह सकेंगे? यदि अमेरिका को हानि पहुँचाने वाला पाकिस्तान में लाख कोशिशों के वावजूद मारा जा सकता है तो भारत  को नुक्सान पहुँचाने वाले भी अपने अंजाम के लिए तैयार रहें.वे चाहे पाकिस्तान में छिपें ,भारत में हों या दुनिया के किसी भी कोने में हों,उन्हें अपने गुनाहों कि सजा मिलनी ही चाहिये
      चूँकि मौत ने आतंकवादियों का घर देख लिया है अतेव अब पाकिस्तान तो क्या उसका सरपरस्त अमेरिका भी गुनाहगारों को नहीं बचा सकेगा.भारत कि जनता और भारतीय नेत्रत्व को सारे संसार के सभ्य  समाज का समर्थन है क्योकि यह एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जबकि पाकिस्तान को सारी दुनिया ने शैतान का गढ़ मान लिया है .अब शैतानियत को कुचलने को जिन वीरों के हाथ मचल रहे हैं वे सिर्फ भारत के ही सपूत नहीं  हैं बल्कि सम्पूर्ण विश्व विरादरी  भी पाकिस्तान को इस रूप में तो स्वीकार नहीं कर सकती . ओसामा की मौत कि परछाई ही काफी है पाकिस्तान को गर्त में धकेलने के लिए.भारत का हौआ खड़ा करके पाकिस्तान में बैठे इंसानियत के दुश्मन बच नहीं सकेंगे.
          श्रीराम तिवारी
            

सोमवार, 2 मई 2011

ओसामा -बिन-लादेन को आतंकी बनाने में जिनका हाथ था,उन्ही ने उसे मार दिया!

 ओसामा-बिन-लादेन के मारे जाने पर तीन बातें प्रमुखतः से उभरकर सामने आ रहीं हैं .एक-अमेरिका ने ९/११ का बदला लेकर दुनिया में पुनः अपनी साख {दुनिया के थानेदार की}बनाई.दो-पाकिस्तान के झूंठ-दर-झूंठ का पर्दाफाश हो रहा है.तीन -भारत की जनता शर्मिंदगी महसूस कर रही है कि भारत को निरंतर निशाना बनाते रहने वाले इंसानियत के दुश्मन आज भी पाकिस्तान में गुलछर्रे उड़ा रहे हैं ,भारत की एक अरब २७ करोड़ आबादी -५ करोड़ सैन्य बल और दुनिया  की ६ वीं अर्थ-व्यवस्था के अलमबरदार-हमभारत के महान कर्णधार , अमेरिका कि सफलता पर उसी तरह खुश हैं जिस तरह गीदड़ों द्वारा बूढ़े शेर का शिकार किये जाने पर वाराह्सिगे उछलने लगते हैं. १९७१ कि शानदार विजय के अलावा हमारे एतिहासिक खाते में गुलामी और पराजय का  ही सर्वत्र उल्लेख है.हम पतन कि पराकाष्ठा के इतने निकट हैं कि हमें मालूम है कि मुंबई हमलों का सूत्रधार या संसद पर हमला करने वालों का प्रेरणा स्त्रोत कौन है?किन्तु हम उनको पकड़ने,सजा देने के बजाय मानव अधिकार कार्यकर्ताओं या देश के मजूरों और किसानो पर जुल्म करने वालों को सहन कर रहे हैं.  दुनिया  में कुछ  लोग और  भारत में खास लोग एक शख्स 'ओसामा-बिन-लादेन के मारे जाने से खुशियाँ मना रहे हैं!   में दावे से नहीं कह सकता कि इस जश्न को मनाये जाने कि स्वतःस्फूर्त जागतिक चेतना है या अमेरिकी प्रचार तंत्र से प्रभावित क्षणिक हर्षोन्माद है! क्या ये मान लिया जाये कि ओसामा-बिन-लादेन ही दुनिया के तमाम फसादों और दुर्जेय इस्लामिक आतंकवाद का जनक था?क्या उससे से पहले दुनिया में जो दो बड़े महायुद्ध हुए उसमें ओसामा या उसके जैसे किसी धार्मिक कट्टरवादी का हाथ था?क्या ओसामा -बिन -लादेन के मारे जाने से आतंकवाद की वैश्विक चुनौती ख़त्म हो जायेगी?क्या महात्मा गाँधी,इंदिरा गाँधी,राजीव गाँधी,ललित माकन,दीनदयाल उपद्ध्याय,गणेश शंकर विद्ध्यार्थी और अजित सरकार  इत्यादि की हत्याओं में ओसामा का हाथ था?
 यदि नहीं तो जिनका हाथ था उन कुविचारों  और पशुवृत्ति से ओसामा का क्या लेना-देना?
                         अभी अमेरिका बड़ा शोर मचा रहा है कि उसने आतंकवाद के खिलाफ महा-संग्राम  को  आख़िरी पायदान तक पहुंचा दिया है!वह एक साजिश के तहत सारी दुनिया को उल्लू बना रहा है.जो लोग ओसामा के मारे जाने पर ओबामा और अमेरिका को बधाई दे रहे हैं,उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर भरोसा रखना चाहिए.दुनिया के तमाम सच्चे शांतीकामी,अंतर्राष्ट्रीयतावादी,प्रजातन्त्रवादी और सहिष्णुतावादी कभी नहीं भूलेंगे कि ओसामा तो अमेरिका द्वारा उत्पन्न किया गया वह भस्मासुर था जिसने बन्दूक और बारूद का सफ़र अफगानिस्तान से शुरू किया था.
         जिन लोगो को लादेन और सी आई ये का इतिहास नहीं मालूम सिर्फ वे ही धोखा खा सकते हैं.
ऐंसे गैर-जिम्मेदार  लोग ही लादेन कि मौत का जश्न मना सकते हैं.क्योंकि उन्हें नहीं मालूम कि लादेन कि बन्दूक की गोलियां जब तक सोवियत संघ पर बरसती रहीं;तब तक वो फ्रीडम फायटर कहलाया,लेकिन जब उसने अमेरिका की हाँ में हाँ मिलाने से इनकार कर अपना स्वतंत्र वर्चश्व कायम करना चाहा तो उसे विश्व का मोस्ट वांटेड आतंकवादी करार दिया.मेरा आशय यह कदापि नहीं कि लादेन का रास्ता सही था?वो तो शारीरिक रूप से विकलांग था.किन्तु जेहाद की उसकी परिभाषा में इंसानियत से ऊपर उसका जूनून था.ऐंसे लोगों का जो अंजाम होता है सो उसका भी होना ही था और हुआ भी.सवाल ये है की जब अमेरिका ने जैसें चाहा वैंसा ही क्यों होना चाहिए?
         दूसरा बड़ा सवाल ये है कि १४ साल बाद क्या वास्तव में  एक मई -२०११ कि रात को अमेरिकी फौजों ने लादेन को ही मारा है?कहीं उसकी कहानी भी सद्दाम हुसेन जैसी तो नहीं?
गाहे-बगाहे वैडियो कांफ्रेंसिंग  के जरिये लादेन को अल-ज़जीरा और मीडिया के अन्य केन्द्रों ने टीवी पर दिखाया जरुर था किन्तु उन सारे वीडिओ पर कभी कोई विश्वशनीयता कि छाप नहीं लग पाई.
          दुनिया के अधिकांस लोगों कि राय बन चुकी है कि जब जार्ज वुश ने अमेरिकी और नाटो फौजों के द्वारा अफगानिस्तान पर बर्बर हमला किया था तब ही ओसामा मारा जा सकता था किन्तु अमेरिका ने एक खास रणनीति के तहत पूरे १४ साल तक ओसामा नामक आतंकवादी जिन्न को जिन्दा रखा ,ऐंसा क्यों?सी आई ये और पेंटागन का जबाब हो सकता है कि लादेन को जिन्दा रखना इसलिए जरुरी था कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ विश्व विरादरी का अनवरत समर्थन प्राप्त करने के लिए ओसामा का हौआ  बहुत जरुरी था.यदि पहले हो हल्ले में ही ओसामा को मार दिया जाता तो सारे सभ्य संसार को सन्देश जाता कि आतंकवाद का विषधर ख़त्म हो चूका है और तब पूरी दुनिया में अमेरिका को इस मुद्दे पर कि उसकी फौजें -अफगानिस्तान,ईराक,मध्य-पूर्व,पकिस्तान,दियागोगार्सिया,कोरिया और जापान में क्या करने के लिए तैनात हैं?
       चूँकि अब अमेरिकी फौजें बेदम हो चुकी हैं ,अफगानिस्तान,ईराक और जापान ने वापिस जाने का दवाव बना रखा है और अब लादेन का अमरत्व भी असहनीय हो चूका था अतेव पाकिस्तान कि खुफिया एजेंसी आई एस आई को ब्लैक मेल करते हुए कि अब ज्यदा गड़बड़ करोगे  तो भारत को भिड़ा देंगे अतः खेरियत चाहते हो तो ओसामा कि सुरक्षा हटाओ ,उसे ख़त्म करने को आ रही अमरीकी फौजों को उसका ठिकाना बताओ.
       ओसामा कैसें मारा?किसने मारा?कब मारा? इन सवालों पर आगामी कुछ दिनों तक नाटकीय ढंग से मीडिया का कवरेज दिखाई व सुनाई देगा.यह सवाल भी किया जाना चाहए कि obamaदुनिया को  सबसे ज्यादा खतरा किस्से है?सबसे खतरनाक  कौन है? ओबामा या ओसामा?
  ओसामा याने धर्मान्धता -कट्टरता -जिहाद और उसका वैचारिक आतंक,अतः ओसामा के मारे जाने से दुनिया में अमन और शांति के श्वेत कपोत उड़ने नहीं  जा रहे हैं.वैचारिक आतंकवाद को ख़त्म करने में ओसामा  की मौत से कोई सहायता नहीं मिलेगी. . ओबामा याने अमेरिकी और दुनिया भर में फैले उसके अनुचरों -पूंजीपतियों,ठगों,लुटेरों,हथियारों के सौदागरों,पूँजी के लुटेरों कि जमात.यह अमेरिका ही है जो  दुनिया भर में सबसे ज्यादा हथियार बेचा करता है ,उसके हथियार न केवल धार्मिक जेहादियों तक बल्कि भारत जैसे गरीब मुल्क में अलगाववादियों नक्सालवादियोंऔर मुबई में तीन-तीन बार खुनी होली खेलने बाले पाकिस्तानी आतंकवादियों तक बिला नागा पहुँचते रहते हैं .
दरसल भारत को ओसामा से कोई खतरा नहीं था और न ही भारत के किसी खास धरम सम्प्रदाय को उससे खतरा था.भारत को असली खतरा पाकिस्तान की भारत विरोधी लाबी और उसको पालने वाले अमेरिकी निजाम से है.दाउद,हेडली,हाफिज सईद को ओसामा ने नहीं आई एस आई ने पाला था.आई एस आई को कौन पाल रहा है?यह बताना जरुरी नहीं.
      अब भारत के प्रधान मंत्री जी विश्व समुदाय से और विशेष  रूप से पाकिस्तान नामक ढोंगी देश से विनम्र अपील कर रहे हैं कि पाकिस्तान स्थित भारत विरोधी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर नष्ट करने कि कृपा करें!  भारत कि जनता और खास तौर से पाकिस्तान कि अमन पसंद मेहनत कश आवाम कि यह साझा जिम्मेदारी है कि अतीत कि साझा विरासत को सहेजें.उस साम्रज्यवादी कुल्हाड़े का बैंट न बन जाएँ जो अमेरिका को तो यह अधिकार देता है कि वो दुनिया के किसी भी मुल्क में उसकी मुख्य भूमि से सात समंदर पार जाकर अपने चीन्हें -अनचीन्हें  दुश्मन को १२ साल भी ढूँढकर उसके सर में गोली  मारता है और फिर उसकी लाश को पत्थर से बांधकर समुद्र में फेंककर "सुपुर्द-ऐ -आब"करता है. क्या भारत इतना असहाय ,इतना कमजोर और पराधीन है, कि संसद पर हमला करने वालों को,मुंबई पर हमला करने वालों को अमेरिका कि तरह वहशी तरीके से न सही न्याय और क़ानून की बिना पर जेलों में फांसी का इन्तजार कर रहे ,कत्लोगारत के जिम्मेदार अपराधियों को सूली पर चढाने  में भी असमर्थ हो?
      सारी दुनिया जानती है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष प्रजातांत्रिक राष्ट्र है.क्या यह गुनाह है?
      सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान ने अपनी संप्रभुता खो दी है.अब वह अमेरिका का सैन्य अड्डा बनने को अभिशप्त है.इन घटनाओं से न केवल भारत अपितु दक्षिण एशिया में अस्थिरता का सिलसिला शुरू हो चूका है.पाकिस्तान में आई एस आई ने जो पाप किये हैं उसी का परिणाम है कि अभी दो दिन पहले अमेरिका ने उसे आतंकी सूची में डालने कि धमकी दी थी.यह धमकी बहुत मार्क थी कि ओसामा को मारने में मदद करो वर्ना हम तुम्हें भी निपटा देंगे.आई एस आई ,पाकिस्तानी फौज के चीफ कियानी साहब और पाकिस्तान कि अमेरिका परस्त लाबी ने अमेरिका के आगे घुटने टेककर खैरात में अरबों रु  के हथियारों का वायदा लेकर उस ओसामा को मरवा दिया जो दुनिया के मुसलमानों को अमेरिकी दादागिरी से जूझना सिखा रहा था.जिसे स्वयम अमेरिका ने तलिवानो कि मदद से सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान में पाला पोषा था. सोवियत पराभव के बाद इन हथियारों का प्रयोग लगातार भारत के खिलाफ होता रहा है
        अल-कायदा हो या पाकिस्तानी आर्मी या भारत को बर्बाद करने के कुचक्रों को रचने वाले आई एस आई ,जैश -ऐ मुहम्मद ,जे के एल ऍफ़ या हिजबुल ये सभी निरंतर भारत पर जो गोलियां चलते हैं या विस्फोट करते हैं,वो सभी असलाह अमेरिकी हैअब तो ओसामा भी नहीं रहा फिर किसके खिलाफ  अमेरिका ने पाकिस्तान के अपावन हाथों में घातक हथियारदिए हैं? भारत को बर्बाद करने  कि साजिशों में शिरकत क्या सिर्फ इसीलिये कि है कि यह उसके भारतीय अनुषंगियों कि इच्छा है?दरसल भारत की समस्या ओसामा नहीं था.हमारी समस्या को हम अच्छी तरह जानते हैं किन्तु हमारा शुतुरमुर्गाना स्वभाव हमें हमारी वास्तविक जनवादी चेतना से दूर करता है.
     यह वक्त है जब हम भी कुछ ऐंसा करें जो भारत के दुश्मनों  को नेस्तनाबूद  नहीं तो कम से कम पस्त तो करे ताकि धार्मिक कट्टरवाद ,साम्प्रदायिकता और अलगाववाद  को कुचला जा सके.
      श्रीराम तिवारी

१ मई; मज़दूर दिवस इंदौर में