शनिवार, 4 दिसंबर 2021

भारत राष्ट्र की सबसे बड़ी चुनौती क्या है

 यदि आपसे अचानक कोई सवाल कर बैठे कि भारतीय जन मानस के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सबसे चिंतनीय विषय क्या है ? सबसे महत्वपूर्ण चुनौती क्या है तो आप का जबाब क्या होगा?

भारतीय लोकतंत्र के पटल पर मौजूद अधिकांस प्रभावशील राष्ट्रीय/क्षेत्रीय दलों के चुनावी घोषणा पत्रों का सरसरी तौर पर अध्यन करने के बाद आप पाओगो कि वोट मांगने के लोक लुभावन नारे,सबके पास हैं, किंतु भारत की नित नित बढ़ती जाती सभी बीमारियों का डॉयग्नोसिस करने की मंशा किसी की नहीं है!अब तो भारत की पतित राजनीति सिर्फ चुनाव जीतकर सत्ता हासिल करने और चुनाव में चंदा देने वालों की खैर और तिजारत को संरक्षण देने तक सीमित हो चुकी है! चुनाव जीतने के लिये किसी भी नैतिकता का कोई महत्व नही है! सत्ता में बने रहने के लिये भ्रस्ट राजनीतिक दल चुनावी कंसलटैंट नियुक्त कर सकते हैं,किंतु आतंकवाद, जातिवाद, रिश्वतखोरी, बेरोजगारी,मेंहगाई से निपटने के लिये कोई कंसल्टैंट नही होता!
खैर विषयांतर होने से पहले ही हम मूल प्रश्न पर आते हैं कि भारत राष्ट्र की सबसे बड़ी चुनौती क्या है? दरसल बुद्धि विवेक अनुसार इस प्रश्न के कई जबाब हो सकते हैं! मेरा जबाब निम्नानुसार है! किंतु उक्त सवाल का जबाब देने से पहले मुझे एक और
सवाल का उत्तर जानने की जरूरत है कि
पाकिस्तान और इस्लामिक जेहादी -आतंकी किस बात पर भारत से रार ठान रहे हैं ?
मैंने अपनी किशोर वय में किसी विद्वान से एक लोक अनुश्रुति की रोचक और ज्ञानवर्धक कथा सुनी थी। एक चेले ने अपनी सेवा सुश्रुषा से अपने सिद्ध -तांत्रिक गुरु को प्रशन्न कर लिया। गुरु ने कहा वत्स ! मांगो क्या मांगते हो ? भक्त ने साष्टांग दंडवत करते हुए अपने गुरु से वरदान में एक जाग्रत प्रेत मांग लिया। गुरु ने चेले को आगाह करते हुए कहा कि यह बहुत खतरनाक चीज मांग रहे हो वत्स, तुम इसे साध नहीं पाओगे !प्रेत को हर क्षण काम चाहिये ! यदि एक क्षण भी खाली रखा तो तुम्हे ही नष्ट कर देगा ! अतः कुछ और मांग लो !
चेले ने हठ पकड़ लिया ! कहा की मुझे तो प्रेत ही चाहिए ! गुरु ने अपने योगबल से एक प्रेत का आह्वान किया और चेले की सेवा का आदेश देकर प्रस्थान भये ! अर्थात अपना चिंमटा - कमंडल उठाकर खिसक लिए। बहरहाल वरदान से प्राप्त प्रेत बड़ा शक्तिशाली और चंचल था । अपने मालिक -आका से हरपल काम मांगता रहता!
आका ने जो भी कठिन से कठिन काम प्रेत को दिए, वो प्रेत ने तत्काल पूरे कर दिए। महल, नौकर- चाकर ,अन्न-वस्त्र सोना चांदी और तमाम सम्पदा उसने कुछ ही पलों में हाजिर कर दी। जब कुछ भी अप्राप्त न रहा तो प्रेत पुनः सामने आ खड़ा हुआ और बोला - हुकुम मेरे आका !
चूँकि वन्दे को अर्थात आका को और कुछ नहीं चाहिए था। अतः प्रेत से आराम करने को कहा। प्रेत ने कहा ' नहीं मेरे आका ! यदि आप काम नहीं दोगे तो मैं आपको मारकर चला जाऊंगा। वंदा बहुत घबराया और प्रेत से आतंकित होकर यहाँ -वहाँ भागने लगा। किन्तु प्रेत ने भी उसका पीछा नहीं छोड़ा। अपनी मौत निकट जानकर बन्दे ने गुरु को याद किया। गुरु प्रकट भये। शिष्य का बचाओ ! बचाओ ! !
आर्तनाद सुनकर गुरु ने उसे ढाढस बंधाया। चेला गुरु के पैरों से लिपटकर रोने लगा। गुरु ने चेले के कान में कुछ मन्त्र जैसा पढ़ा ! चेले ने गुरु की बतायी युक्ति के अनुसार ही प्रेत को परमेंटली काम पर जोत दिया। चेले ने प्रेत से कहा कि सामने बह रही नदी में एक पत्थर फेंको। प्रेत ने वैसा ही किया। प्रेत ने जब पुनः कहा 'हुकुम मेरे आका ' तो चेले ने गुरु की बतायी तरकीब के अनुसार प्रेत से कहा। अब तुम नदी में से वही पत्थर वापस लाओ? प्रेत ने तत्काल नदी से पत्थर लाकर रख दिया और बोला हुकुम मेरे आका-चेले ने प्रेत से कहा -यह पत्थर पुनः नदी में फेंक दो !प्रेत ने पुनः वही किया ! इसके बाद चेले ने प्रेत से कहा कि जब तक मैं तुम्हे दूसरा काम न दूँ तुम लगातार बिना रुके बस यही काम करते रहो!
अर्थात नदी में पत्थर फेंकते रहो और फिर उठाते रहो । गुरु ने चेले से अपने लालच की माफी मांगी और दंडवत कर चैन की बंसी बजाता हुआ गुरु साथ हो लिया। ऐसे गुरु चेला अब भी इस संसार में शायद हों !
कथा का खलनायक प्रेत भले ही नदी में पत्थर फेंककर उठाता हो किन्तु इस दौर में आतंकवाद के रूप में नया वैश्विक प्रेत 'अमन' रुपी चेले को सताने में जुट गया है। प्रेत की तरह मजहबी आतंकियों को भी काम चाहिए!
अब भारत के जनगण को भी धर्मनिरपेक्षता रुपी गुरु का ही सहारा है। आतंकवाद रुपी प्रेत सहिष्णुता और अमन का दुश्मन है। उस की यही नियति भी हो सकती है कि कयामत के रोज तक निर्दोषों का रक्त बहाते रहना है ! किन्तु उससे पिंड छुड़ा पाना अभी आसान नहीं दीखता ! जब तक मजहबी आतंकवाद, अलगाववाद है, देश का न तो विकास होगा और न अमन के फाख्ते उड़ सकेंगे और न खुशहाली आ सकेगी!
आतंकवाद के संबंध में एक अर्धसत्य दुनिया के सामने पूरे सच के रूप में बार-बार परोसा गया। अब नौबत यह आ गयी कि दुनिया उसे ही 'पूरा सच 'मानने लगी है। कहा गया कि यह तो साम्राज्य्वादी पश्चिमी मुल्कों ने तेल की लूट के लिए उन राष्ट्रों में भस्मासुर पैदा किये थे। लेकिन भारत के सन्दर्भ यह सही स्थापना नहीं है। भारत में पकड़े गए पाकप्रशिक्षित आईएस -आईएस के एजेंटस के मार्फत पता चला है कि बगदादी और आईएसआईएस ने भारत में कोहराम मचाने के लिए कुछ प्लान बनाये हैं।
वे भारतीय शहरों में जानमाल की तबाही के मंसूबे गढ़ रहे हैं। उनका लक्ष्य दुनिया भर में आतंक मचाकर इस्लाम का प्रभुत्व कायम करना! किंतु सवाल उठता है कि भारत ने तो इराक,ईरान ,सीरिया या फिलिस्तीन पर कभी कोई हमला नहीं किया। अमेरिका की तरह किसी दूसरे मुल्क के तेल के कुओं पर कब्ज़ा नहीं किया। फिर किस बात पर इस्लामिक जेहादी -आतंकी भारत से ही रार ठाने हुए हैं ?
भारत में मोदी सरकार का चुनाव जीतकर सत्ता में आने से आईएसआईएस का क्या लेना-देना है ? क्या चुनाव में किसी की जीत से आतंकी संगठन के लिए निर्दोषों का रक्त बहाने का अधिकार है ? मोदी जी और संघ परिवार की इस चुल्लू भर असहिष्णुता को तो भारत के बुद्धिजीवियों और धर्मनिरपेक्ष बिहारियों ने ही चलता कर दिया। अब आईएसआईएस के लिए भारत में क्या काम है ? यदि ओवैसी आजम खां, ममता अखिलेश जैसों के बयानों को सुनकर इस्लामिक आतंकी भारत पर हमले की फिराक में रहते हैं तो वे बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। अल्लाह उन्हें सद्बुद्धि दे ! श्रीराम तिवारी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें