सोमवार, 27 अप्रैल 2020

वैश्विक आर्थिक मंदी और कोरोना संकट.

WHO ने ऐलान किया है कि "दुनिया में छ: जगह एंटी कोरोना वैक्सीन पर रिसर्च जारी है किंतु जब तक कोई कारगर निदान नही मिल जाता तबतक इस COVID-19 कोरोना वायरस से हमें एचआईबी की तरह व्यवहार करना होगा क्योंकि कोरोना को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं है!"
WHO के इस नजरिये पर तार्किक और प्रमाणिक नजरिये से विचार किया जाए, न कि वैचारिक अथवा भावनात्मक प्रतिबद्धता के मोहपाश में बंधकर कुकरहाव का निरर्थक प्रदर्शन किया जाए!
विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस आकाशवाणी के मद्देनजर किसी ने एक महत्वपूर्ण सवाल किया है कि:-
"कोरोना संकट से निपटने के लिये तमाम धर्म मजहब के मठाधीश और आस्था स्थल क्या कर रहे हैं? क्या कोई उपाय खोज रहे हैं या केवल धर्मांधता का पोषण कर रहे हैं ताकि लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया में उसका जमकर दुरुपयोग किया जा सके?"
यह सर्वविदित है कि दुनिया के 70% 'साइंस के आविष्कार' घोर भौतिकवादी 'नास्तिक' वैज्ञानिकों ने किये हैं! 10%आविष्कार ईसाई धर्मावलंबी वैज्ञानिकों ने किये हैं! लगभग 5% आविष्कार यहूदी साइंटिस्टों ने किये हैं! इसी तरह 5% आविष्कार वैदिक आर्यों ने, 5% आविष्कार बौद्ध -जैन विद्वानों ने और शेष 5% आविष्कार उन्होंने किये हैं जो गर्व से कहते हैं कि दुनिया की सारी खोजों का श्रेय उनके पूर्वजों को जाता है !
जो हिंदुत्ववादी हैं उनका भगवान श्रीराम के नाम पर वोट कबाड़ने और सत्ता हासिल करने का रिकार्ड जग जाहिर है!किंतु चाहे कोरोना हो या कोई मामूली वायरल बुखार हर बीमारी के लिये एलोपैथिक डॉक्टरों और अस्पतालों के बाहर भीड़ लगी है! ऐंसा प्रतीत होता है कि रामभक्तों को भगवान श्रीराम पर और अपने 33 करोड़ देवी देवताओं पर अटूट आस्था है! इसीलिए वे कोरोना वैक्सीन बनाने या नये बेहतरीन अस्पताल बनाने और नये काबिल डॉक्टरों को तैयार करने के बजाय संकटकालमें कभी मंदिर बनाने, कभी ताली,कभी थाली बजाने और कभी घंटे घड़ियाल बजाने पर यकीन रखते हैं!
इसी तरह जो भगवान श्रीराम के सनातन विरोधी हैं,मजहबी पत्थरबाज हैं और जातिय आरक्षणधारी हैं,वे कोरोना महामारी रोकने में कोई मदद करने के बजाय बीमारी फैलाने का काम करते रहते हैं! इस घातक महामारी के निदान पर उनका एक ही नजरिया है कि सारी विफलताओं का ठीकरा मोदी सरकार के सर फोड़ दिया जाए! इसीलिये इन तमाम विपक्षियों और श्रीराम विरोधियों की दुर्गति किसी से छिपी नही है!
इसी तरह जमातियों/तालिवानियों का सारा जोर एक अल्लाह के करम पर यकीन करने कराने का रहा है!इसीलिए शताब्दियां गुजर गईं,किंतु कोई वैज्ञानिक अाविष्कार नही कर पाए! यदि कभी कोई वैज्ञानिक आविष्कार इस्लामिक जगत में हुआ भी होगा तो वह भी 'खुदा का कमाल' मानकर उसका श्रेय किसी इंसान को देना ठीक नही माना गया होगा!
सभ्य संसार में साइंस के कंधों पर चढ़कर मजहबी उन्माद और धर्मांधता का जहर फैलाकर वे कई बार गौरवान्वित हो चुके हैं! किंतु अब आधुनिक 21 वीं शताब्दी में यदि ये धर्मांध लोग अतीत का मोह छोड़ने को तैयार नहीं हैं तो यह सरासर 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि' है!
आज जबकि गरीब अमीर हरेक के हाथों में 'साइंस का चमत्कार' मोबाइल है और जो इस मुश्किल वक्त में सबका साथी है! आज हर एक के इर्द गिर्द रेल,मोटर बस बाईक, टीवी बिजली,कम्प्युटर जो कुछ भी है,यह सब साइंस का ही कमाल है!वेशक ये सारे आविष्कार जिन लोगों ने किये हैं,उनमें से अधिकांस घोषित नास्तिक रहे हैं!
फिर भी यदि ये सारे आविष्कार अल्लाह या ईश्वर का कमाल हैं तो भी हिंदुओं को और मुस्लिमों को सोचना चाहिये कि बम,बारूद, बंदूक जैसे हथियार ईश्वर -अल्लाह ने नहीं शैतानों ने बनाये हैं! जाहिर है कि शैतान के आविष्कारों का उपयोग करना कुफ्र है!

2007-8 में वैश्विक आर्थिक मंदी की सुनामी ने अमेरिका और यूरोप जैसे देशों की कमर तोड़ दी थी!किंतु भारत सुरक्षित बच गया था! क्योंकि भारत के मध्यम वर्ग को बचत करने की आदत रही है! इसलिये भारत की अर्थव्यवस्था गतिमान रही जिसका श्रेय डॉ. मनमोहनसिंह को फोकट में मिल गया!
कोरोना संकट से अमेरिका,यूरोप और पूरी दुनिया में हाहाकार मची है!भारत पर भी कोरोना का कहर टूटा है!किंतु यदि जमाती तबलीगी मरकजी फिदायीन दुष्ट आग नही मूतते, तो जितना नुकसान हुआ है उतना भी नही होता! बहरहाल भारत को अमेरिका, यूरोप के सापेक्ष बहुत कम नुकसान हुआ है! इसकी बजह लाकडाऊन और मेडीकल क्षेत्र का कितना योगदान है?इस पर आने वाला वक्त ही निर्णय करेगा! केंद्र राज्य सरकार ने कोरोना से लड़ने में क्या भूमिका निभाई, वह सब जानते हैं,बताने की जरूरत नहीं!किंतु भारत में कोरोना का कहर यदि अमेरिका या यूरोप के बराबर नही टूटा,तो इसके लिये भारत की 60% वो आबादी है जो गांव में रहती है !
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60-70 के दशक में जब आजाद भारत में निजी क्षेत्र के बैंकों और बीमा कंपनियों ने देश के विकास में सहयोग से इंकार कर दिया,तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने निजी बैंकों और बीमा कंपनियों का जबरन राष्ट्रीयकरण करके देश की तरक्की के ताले खोल दिये! सरकारी बैंक और सरकारी बीमा कंपनी आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं!
कोरोना संकटकाल में निजी अस्पतालों ने जनता और सरकार को ठेंगा दिखा दिया, अत: नाराज सरकारों ने प्राइवेट अस्पतालों को सील करने और लाइसेंस निरस्त करने का फरमान जारी किया है! इससे बेहतर यह विकल्प होता कि बड़े बड़े निजी अस्पतालों को अधिग्रहीत कर उन्हें सरकारी घोषित कर दें!निजी क्षेत्र में कार्यरत डॉक्टरों,नर्स और पैरामेडीकल स्टाफ को अनिवार्य सेवा शर्तो के तहत सशर्त सेवा में लिया जा सकता है!


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खबर है कि म.प्र.और यूपी सरकार ने तीन साल के लिये श्रम कानून स्थगित कर दिये हैं!इस शर्मनाक हरकत पर केवल वामपंथी संगठन ही मजदूरों के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं! सीटू सहित तमाम श्रम संगठन लॉकडाऊन के बाद कोई बड़ा आंदोलन छेड़ सकते हैं!
जैसा कि सभीको ज्ञात है कि म.प्र.और यूपी में जब कभी चुनाव होते हैं तो वोटर के रूप में यह मजदूरवर्ग वामपंथी उम्मीदवारों को वोट नही देता,यही वजह है कि म. प्र.और यूपी में एक भी वामपंथी विधायक नही है! लुटा पिटा मजदूरवर्ग जिन्हें वोट देता है,वे सपा,बसपा राजद,जदयू और भाजपा के नेता ऩ केवल औरंगाबाद में हुए मजदूर संहार पर चुप हैं! बल्कि एमपी,यूपी में श्रम कानूनों के स्थगित होने पर ये सभी चुप हैं! मजदूरों का समर्थन करने के बजाय मीडिया और संघी भाई केवल पूंजीपतियों के हितों की रक्षा में तैनात हैं! मजदूर किसान को भी अभी तक यह नही मालूम कि उनके हितों की रक्षा कौन करता है?

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कोरोना संकट के बहाने कई जगह सरकारी,निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के मजदूर कर्मचारियों के वेतन समझौते टाल दिये गये!कई जगह 7 वें वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू ही नहीं हुई या थर्ड PRC लागू नहीं हुई!कई जगह मेंहंगाई भत्ता जाम कर दिया गया!मेडीकल भत्ता बंद कर दिया! कहने का लब्बोलुआब ये है कि मजदूर कर्मचारियों से तो मोदी सरकार ने श्रम और उनकी मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा जबरन हड़प लिया और इजारेदारों के पक्ष में श्रम कानून ढीले कर दिये ! अब देखने की बात यह है कि 20 लाख करोड़ का पैकेज किस किस को दिया जा रहा है ?

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WHO ने ताजा प्रेस विज्ञप्ति में ऐलान किया है कि "हम जिस तरह 'एचआईवी' को खत्म नहीं कर पाये किंतु उससे बचाव करना सीख गये,इसी तरह कोरोना वायरस को खत्म कर पाना संभव नही, किंतु उसके रहते हुए भी हमें जीना सीखना होगा" -
WHO की उक्त विज्ञप्ति को गौर से पढ़ने के उपरांत समसामयिक भारतीय राजनीति पर एक नया सिद्धांत पेश है:-

भारत के नागरिक 74 साल में सत्ता के चिपकू पूंजीवादी शासकों (एचआईवी) को खत्म नही कर सके! किंतु जनता ने उनके साथ रहना सीख लिया!अब राजनीति में अंधराष्ट्रवाद रूपी (कोरोना) का बोलबाला है और इसे खत्म करना भी मुश्किल है!इसलिए उसके रहते हुए,उससे दूरी बनाकर लोगों को जीने की आदत डालनी होगी!



पर उपदेश कुशल बहुतेरे

पर उपदेश कुशल बहुतेरे!जे आचरहिं ते नर न धनेरे!!" -गोस्वामी तुलसीदास जी
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तमाम राज्य सरकारों और कंपनी मालिकों को पीएम की ओर से ज्ञान बांटा जा रहा है कि लॉकडाऊन के कारण कोई ड्युटी पर नही आ सके तो वेतन न काटा जाए! इधर केंद्र सरकार के अन्य कर्मचारियों की तो बात दूर,उन डॉक्टरों,नर्सों और पुलिस वालों का भी डी.ए. काट लिया जो कोरोना संकट का मुकाबला करने में अपने प्राणों को दाव पर लगा रहे हैं! जो वतन की सुरक्षा के लिये सीमा पर दुश्मन देश की गोलियां और गालियां दोनों खा रहे हैं! केंद्र सरकार द्वारा अपने ही बुजुर्ग पेंसनर्स का डीए रोकना तो वैसे ही जैसे कोई कपूत अपने बाप को परोसी गई थाली में से दाल की कटोरी या सब्जी छीन ले!

मार्क्स, लेनिन और अम्बेडकर

जिनके पास भरपूर खानदानी जमीन जायदाद है,जो पीढ़ी दर पीढ़ी सरकारी नौकरियों पर कब्जा किये हुए हैं और जो आजादी के बाद अवसर पाकर नवधनाड्य बन बैठे हैं,उनके लिये सत्ता में भाजपा हो या कांग्रेस या बसपा,सपा या ममता-नीतीष सब उनके हितैषी हैं!
कितु जो निर्धन हैं,अवसरों से बंचित हैं,भूख बेकारी से पीड़ित हैं,भूमिहीन हैं,अभावग्रस्त हैं,जातीय आरक्षण से पीडित हैं और जो सभी तरह से सर्वहारा हैं,उनके लिये मार्क्स, लेनिन और अम्बेडकर की शिक्षाओं का अनुशीलन करने वाला नेतत्व ही चाहिये!

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

साधुओं की मॉव लिंचिंग..


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मुंबई से 125 किमी दूर पालघर में एक भयानक घटना हुई है। गढ़चिंचले गांव के पास हत्यारी भीड़ ने दो साधुओं और एक कार चालक को कार से खींच कर मार डाला। इनमें से एक 70 वर्षीय महाराज कल्पवृक्षगिरी थे। उनके साथी सुशील गिरी महाराज और कार चालक निलेश तेलग्ने भी भीड़ की चपेट में आ गए। तीनों अपने परिचित के अंतिम संस्कार में सूरत जा रहे थे। कुछ लोग इसे साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि यह पागल और अराजक भीड़ की काली करतूत है, जो किसी धर्म मजहब के नही, केवल देश और अमन के दुश्मन हैं!
मौके पर पुलिस पहुंच गई थी!भीड़ को समझाने का बहुत प्रयास किया!लेकिन भीड़ ने उल्टा पुलिस पर ही हमला कर दिया। पुलिस पीड़ितों को अस्पताल ले जाना चाहती थी तो भीड़ औऱ उग्र हो गई। पुलिस की गाड़ी तोड़ दी। पुलिसकर्मी भी घायल हो गए। किसी तरह अस्पताल लाया गया जहां उन्हें मृत घोषित किया गया।
महाराष्ट्र पुलिस ने हत्या के आरोप में 110 लोगों को गिरफ्तार किया है। अभी कुछ और लोगों के भाग कर पास के जंगल में छुपने की ख़बर है जिनकी तलाश हो रही है। पुलिस को पता चला है कि व्हाट्सस एप के ज़रिए अफवाह फैली थी कि बच्चा चोरों का गिरोह सक्रिय है। जो मानव अंगों की तस्करी करता है। पुलिस पता कर रही है कि अफवाह कैसे फैली और हत्या के दूसरे कारण क्या हो सकते हैं।
जिस समाज में भीड़ ही पुलिस बन जाए और भीड़ ही जज बनकर सजा देने लगे उस समाज में यह सब होना लाजिमी है l अफसोस है कि पिछले कुछ सालों में सत्ता का संरक्षण पाकर यह प्रवृत्ति बहुत फली फूली l
धर्म के आधार पर उस उन्मादित और हत्यारी भीड़ की करतूत को उचित ठहराया जाएगा तो यह सब होगा ही l
हत्या हत्या होती है जो हर हाल में अमानवीय और निंदनीय कृत्य है चाहे वह अखलाक की हो या इंस्पेक्टर सुबोधसिंह की हो l
पालघर की घटना दुखद और निंदनीय है l हत्यारों की पहचान हो उन्हें उचित दंड मिले यह ज़रूरी है, लेकिन ज़रूरत उस हत्यारी प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने की है जो भीड़ बनकर पुलिस भी बन जाती है और न्यायालय मौन साध लेते हैं.
जो धर्म का लाभ लेकर सत्ता का संरक्षण पाता है ,उसकी गर्दन झुक जाय करती है।

जूना अखाड़े में 90% साधू दलित और पिछड़े वर्ग के ही हैं! कुंभ में पहुँचने वाले 99% नागा साधू दलित,आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के होते हैं! जिसे यकीन न हो वह साध्वी प्रज्ञा,साध्वी निरंजना ज्योति साध्वी रितंभरा,साध्वी उमा भारती,साक्षी महाराज,चालू बाबा आसाराम,बदमास रामरहीम और स्वामी रामदेव से पूछताछ कर ले! क्योंकि इनमें से कोई भी ब्राह्मण नही है!


 महाराष्ट्र में किसी साधु महात्मा को हिंसक भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला! वास्तव में असली साधू संत को कोई नही मार सकता! असली साधू संत कपिल मुनि की तरह होता है, जिसका तीसरा नेत्र खुलते ही आततायी भस्म हो जाया करते हैं! सभी को मालूम है कि गोस्वामी तुलसीदासजी ने मस्जिद में बैठकर ही रामचरितमानस का अधिकांस हिस्सा रचा था! कोई मुस्लिम उनका बाल बांका नही कर सका!जबकि उनके समकालीन हिंदुओं ने तुलसीदासजी पर घोर अत्याचार किये और
रामचरितमानस की मूल प्रति की चोरी भी कराई ! जिन हिंदुओं को दो कौड़ी का ज्ञान नही वे तुलसीदास जी के लेखन पर अक्सर सवाल उठाते रहते हैं !
असली साधु के बारे में गोस्वामी जी ने लिखा है:-
''संत ह्रदय नवनीत समाना"
"साधु चरित शुभ चरित कपासू!
निरस विशद गुनमय फल जासू!!"
"जो सह दुख पर छिद्र दुरावा!
वंदनीय जेहिं जग जस पावा!!"

'कोरोना पुराण' और 'जमाती अध्याय

रामायण में एक कथा है -एक बार इंद्रपुत्र जयंत कौआ बनकर, सीताजी के चरण में चोंच मारकर भागता है,रामजी का बाण उसका पीछा करता है!तीनों लोक में जब किसी ने उसकी मदद नही की,तो वह वापिस श्रीरामजी की शरण में गया और अभयदान प्राप्त किया!
भारतवर्ष के 'कोरोना पुराण' और 'जमाती अध्याय' में भी ऐंसी ही एक कथा आती है!
"तब्लीगी समाज के प्रमुख मौलाना साद ने पहले तो तमाम जमातियों को 'सोशल डिस्टेंसिंग' और लॉकडाऊन के खिलाफ भड़काया फिर सरकार और भारत पर विष वमन किया! जब पुलिस पीछे पड़ी तो अब किसी दड़बे से उसने आकाशवाणी जारी की है -
''तमाम मुस्लिम जमात को चा
हिये कि प्रशासन की मदद करें"

कोरोनाग्रस्त भगोड़े जमातियोंको चाहियेकि बिल्डर माफिया,खनन माफिया,व्यापम कांडियों के गले मिल-मिला लें,खुदा सारे गुनाह माफ कर देगा !


फेसबुक पर  एक वीडियो देखा! जिसमें एक मुस्लिम युवा एक्टिविस्ट 'सोशल डिस्टेंसिंग' का मजाक उड़ा रहा है-
'हमारे समाज में 10 बाय 10 के कमरे में 10-10 एक साथ रहते हैं,सोशल डेस्टेंसिंग कैसे संभव है'

जनसंख्या बृद्धि की इस स्वीकारोक्ति पर भारतीय संविधान का क्या जबाब है?यदि जबाब है तो कार्यवाही क्यों नही? यदि कोई जबाब नही,तो इसका मतलब संविधान में बहुत बड़ी खामी है!इस तरफ भारतीय मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और भारत सरकार का क्या नजरिया है, हमें नही मालूम!

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और भी गम हैं जमाने मैं 'कोरोना' के सिवाय:-
'विचार शक्ति' की महत्ता जग जाहिर है। एक तरफ इसके दुरूपयोग से इंसान हैवान या शैतान बन सकता है ,दूसरी तरफ इसके सदुपयोग से इंसान दुनिया में इंसानियत का झंडा भी बुलंद कर सकता है।
मनुष्य अपने अवचेतन मन की वृत्तियों को पुंजीभूत कर उससे उत्पन्न ऊर्जा के मार्फत प्राकृतिक तत्वों और अन्य प्राणियों के व्यवहार को भी बदल सकता है। यह कोई दैवीय चमत्कार नहीं है! अपितु विशुद्ध मनोविज्ञान है। इस प्रक्रिया का आस्तिक -नास्तिक से कोई वास्ता नहीं। यह विशुद्ध मानसिक मशक्क्त है।
प्रायः हर जागरूक मनुष्य यह जानता है कि यदि वह अपने विचारों पर ध्यान दे,तो उसके विचार ही शब्द बन जाते हैं। और यदि शब्दों पर ध्यान दे तो वे कर्म बन जाते हैं ! याने विचार ही कर्म का कारण या हेतु बन जाते हैं।इसी विचारशक्ति से ही दुनियामें वैज्ञानिक क्रांति हुई है।इसी विचार शक्ति से राजनैतिक -सामाजिक,सांस्कृतिक क्रांतियाँ संपन्न हुईं हैं। इस विचार शक्ति के दुरुपयोग से ही दुनिया में तमाम जेहादियों जमातियों ने और अन्य तमाम उग्र धर्मांध पाखंडियों ने कुटुम्ब सामाज और राष्ट्र में भ्रान्तियाँ उत्पन्न कीं हैं।
सवाल किया जाना चाहिये कि यदि विचार शक्ति का सिद्धांत नकारात्मक संदर्भ में सही हो सकता है,तो वह सकारात्मक अर्थ में भी सही क्यों नहीं होगा ? बीसवीं शताब्दी के नाजीवादी -फासीवादी हिटलर का मंत्री गोयबल्स कहा करता था कि एक झूंठ को बार-बार बोलो तो वह सच में परिणित हो सकता है !
भारत में भी कुछ लोग हिटलर के अनुयायी हैं ,वे भी इस विचार शक्ति की नकारात्मक ऊर्जा का दुरूपयोग करते हुए राज्य सत्ता हासिल करने में भी कामयाब हो रहे हैं। लेकिन विचार की इस राह पर विनाश सुनिश्चित है। अंततोगत्वा सामूहिक जन चेतना की यह विचारशक्ति ही सहिष्णुता , धर्मनिरपेक्षता,उदारवादी-जनवादी व्यवस्था का आह्लवान कर सकती है!
जो लोग धर्मनिपेक्ष भारत में समाजवादी समाज चाहते हैं,उन्हें भीड़तंत्र को लोकतंत्र नहीं मान लेना चाहिए ,बल्कि अपनी उत्कृष्ट क्रांतिकारी विचार शक्ति की सामूहिक और सकारात्मक ऊर्जा के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
इस विचारशक्ति को सिर्फ सार्वजानिक जीवन में ही नहीं,बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी इसका सदुपयोग कर मानव जीवन को खुशहाल बनाया जाना चाहिए।

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वायरस और बैक्टीरिया को अपना शत्रु मत मानिए... वो आपकी कोशिका को आपसे ज्यादा जानते हैं..कोशिका भी उनके साथ तालमेल से रहना जानती है...बस अपने मन से कहिए कि वो डर और नफरत की बजाय सदभाव और साहचर्य पर ध्यान दे... मन की करतूतों ने ही बहुत सारे जीवों और सूक्ष्मजीवों को आपका विरोधी बना दिया है...अब वक़्त आ चुका है ... आप अपने मन को समझा दें कि ये धरती जितनी आपकी है... उतनी ही किसी अदृश्य सूक्ष्मजीव की या किसी सूक्ष्म पौधे की भी है...आपका शरीर खुद एक दुनिया है जिसमें बहुत सारे जीव और पदार्थ एक बेहतर तालमेल के साथ रहते हैं... ये तालमेल अनेक सूक्ष्म कणों और सूक्ष्म जीवों की अथक कोशिशों का नतीजा है... आपका दिमाग इस तालमेल का सहज संचालक है...आपका मन बहुत सारे दिमागों का एक तंत्र है जो आपके लिए सूचना, विचार और कल्पनाएं लाकर देता है...अगर आपका मन आपके दिमाग को लगातार भर रहा है तो आपका दिमाग अपनी सहज संचालन करने की क्षमता खो देता है...ऐसी स्थिति में आपके मन में अनगिनत सूचनाएं, विचार और कल्पनाएं भरी होती हैं.. लेकिन आपका दिमाग उनकी प्रोसेसिंग नहीं कर पाता और हैंग हो जाता है...ऐसे में आपके शरीर में कोशिकाओं, सूक्ष्म जीवों और पदार्थों का सहज तालमेल बिगड़ जाता है.. कुछ घटक सुप्त हो जाते हैं तो कुछ अति सक्रिय... आपकी शारीरिक दुनिया बिखरने लगती है...आपका मन आपके शरीर का दुश्मन बन जाता है क्योंकि उसकी आसक्ति अपनी कल्पनाओं और विचारों को साकार करने में हैं.. न कि आपके शरीर की सहज व्यवस्था को चलाने में... धर्म ,राष्ट्र, जाति, अर्थव्यवस्था, सभ्यता इत्यादि मन के अलग- अलग प्रकार हैं जो किसी न किसी तरीके से आपके दिमाग को हैक करने में जुटे हैं...इन्हें आपके शरीर या किसी अन्य जीव के अस्तित्व की कोई फ़िक्र नहीं है... ये दिमागीतंत्र आपको और अन्य जीवों को केवल अपने काल्पनिक आदर्शों और लक्ष्यों की पूर्ति का साधन बना लेते हैं... अपने मन की हकीकत को आप तभी समझ सकते हैं जब आप किसी समूह या सामूहिक चेतना से अलग होकर अपने दिमाग के साथ संपर्क बहाल करें... आज एक अदृश्य सूक्ष्म जीव , जिसे कोरोना नाम दिया गया है, के माध्यम से आपको सामूहिकता या दिमागीतंत्रों से अलग रहने का अवसर मिला हैं...इस मौके का लाभ उठाइये... बीमारी, आपदा, महामारी या महाविनाश जैसे शब्दों और विचारों में खोए रहने की बजाय अपने दिमाग के संपर्क में रहिए... वही आपको आपके शरीर में मौजूद कोशिकाओं, सूक्ष्म जीवों और कणों के संसार में ले जाएगा ..जहाँ जाकर ही आप अपना ,सृष्टि का,प्रकृति का और मेरा वास्तविक स्वरूप देख समझ सकते हैं ...तभी आप देख पाओगे कि जिस सूक्ष्म जीव को आज आप मानवता का घोर शत्रु या संकट मान रहे हैं... वो लाखों सालों से आपके आसपास ही मौजूद रहा है...आपके सहज भावों को मन के बोझ ने दबा दिया है... इसलिए आपके और सूक्ष्म जीवों के बीच स्पंदन के रूप में होने वाला सहज संवाद थम सा गया है... उस सहज संवाद को पटरी पर दोबारा लाइए... बातचीत शुरू होते ही कोरोना आपको एक सुंदर जीव के रूप में दिखेगा... अपने मन को स्पष्ट बता दीजिए कि इंसान धरती का तानाशाह नहीं... बल्कि जीवन का एक सूक्ष्म हिस्सा है...जब तक आप सूक्ष्मता को अनुभव नहीं करेंगे... तब तक आप अपने विराट ईश्वरीय स्वरूप की अनुभूति नहीं कर पाएंगे...

सबसे बड़ा खतरा नाई की दुकान से ही है*।


यह खतरा लम्बे समय तक बरकरार रहेगा।
*नाई एक तौलीये से कम से कम 4 से 5 लोगों की नाक रगड़ता है,*
अमेरिका के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख जे. एन्थोनी ने बताया है कि अमेरिका में 50 प्रतिशत मौतें ऐसे ही हुई है जो सैलून होकर आये थे।
हम संक्रमित मरीज के सम्पर्क में आये तो टिकट कटना निश्चित है।
जब तक कोरोना एकदम से खत्म नहीं हो जाता हम सैलून जाकर सेविंग कराने बाल कटवाने की सोच भी नहीं सकते।
*नाई अनेक लोगों के सम्पर्क में रहेगा,*
नाई का तोलिया, नाई का उस्तरा नाई का ब्रश, कुर्सी आदि काफी लोग इस्तेमाल करते है
स्थति सामान्य होने के *बाद भी* खतरा बरकरार रहेगा।
सावधान रहें।

जेहाद और ऐय्यासी का इतिहास......

मध्ययुग में जब हिंसक इस्लामिक कबीलों ने उत्तर भारत पर हमला किया तब अधिकांस क्षत्रिय युद्ध में मारे गये! जो बच गये उनमें से कुछ ने मुगलों से रिस्तेदारी कर ली! कुछ जंगलों में घास फूस खाकर अपने धर्म और ईमान के लिये बर्बर आक्रमणकारियों से लड़ते लड़ते शहीद हो गये! और जो बच गये उनमें से कुछ चंबल जैसे बीहड़ों में डाकू बन गये!
हमलावर कबीलों के साथ आये इस्लामिक प्रचारकों को भारतीय समाज से धर्मातरण में जब उचित रिस्पांस नही मिला,तो उन्होंने बहुत सताया,जबरदस्ती की!इस जद्दोजहद में मुस्लिम जेहादियों को पता चला कि यदि ब्राह्मणों को मुसलमान बना दिया जाए,तो बाकी सभी जातियों के लोग,अपने आप ही मुस्लिम बन जाएंगे!चूंकि तत्कालीन समाज में तपस्वी कर्मयोगी सन्यासी और ब्राह्मण को धरती का देवता माना जाता था,अत: जब ब्राह्मणों से धर्म परिवर्तन की उम्मीद नहीं रही,तब मुगलों,तुर्कों,अरबों ने ब्राह्मणों की हत्या का अभियान चलाया! जो मुस्लिम हत्यारा अपने वजन के बराबर यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ एकत्रित कर लेता था (एक ब्राह्मण की हत्या =एक जनेऊ) उस मुस्लिम हत्यारे कसाई को 'गाजी' कहा जाता था!
11वीं शताब्दी से लेकर अकबर के सत्ता में आने तक अधिकांस ब्राह्मण मार दिये गये! अकबर ने सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश की थी,और हिंदू समाज ने उसका स्वागत भी किया था!किंतु कट्टरपंथी मुस्लिमों का जेहाद अनवरत जारी रहा! अकबर को 'सुलहकुल' नीति छोड़कर मुल्ला मौलवियों की बात माननी पड़ी!बिडम्बना है कि अकबर के ही आदेश पर हिंदू रानी दुर्गावती और अत्यंत उदारवादी मुस्लिम बाजबहादुर को मार डाला और उसकी प्रिय रानी रूपमती को आत्महत्या करनी पड़ी! सवाल उठता है कि यह खून खराबा किसलिये?इतिहास एक ही जबाब देगा -जेहाद और ऐय्यासी !!!
भारतीय सकल गैर मुस्लिम समाज सैकड़ों साल तक मुसलमानों से मार खाते रहे, फिर भी हिंदू धर्म नही त्यागा!ऐंसे कुछ महान हिंदू पैदल पैदल भयानक जंगलों ,पर्वतों नदियों को पार कर महाराष्ट्र,कर्नाटक,केरल की ओर चले गये! उनमें से आधे तो रास्ते में ही भूख प्यास से मर गये! जो केरल में तक जा पहुंचे उन्ही ने दक्षिण भारतमें संस्कृत साहित्य और वैदिक ज्ञान पहुँचाया,दक्षिण के राजाओं को भी प्रेरित किया कि हिंदू मंदिर बनाएं! इससे पहले दक्षिण भारत में अनार्य याने द्रविड़ सभ्यता का ही बाहुल्य था!जिसमें शैव,शाक्त लोकायत और लिंगायत मतों का बोलवाला था!आर्य और द्रविड़ सभ्यता के मिलन से ही भारत में 'सनातन धर्म' का उद्भव हुआ!
उत्तर भारत में इस्लामिक आक्रमणकारियों ने सवर्णों को तो बुरी तरह परास्त कर दिया था!किंतु नाई,धोबी,माझी,बरौआ,धानुक, चर्मकार,पासी,भोई,कहार यादव,कुर्मी,जाट, गूजर,महार,बुनकर दलित इत्यादि जातियों ने अपने बलबूते पर अपने धर्म की रक्षा की! मुस्लिम आक्रांताओं ने सिंधु के इस पार की समस्त आर्यावर्त भूमि को हिंदोस्तान कहा था! उनके अनुसार आर्य, द्रविड़ ,दलित पिछड़े और आदिवासी सब के सब 'हिंदू' या काफिर थे!
जिन बर्बर मुस्लिम शासकों ने बहादुर सिख गुरुओं के सिर काट लिये,उन आदमखोरों को पिछड़ों दलितों ने नाकों चने चबवा दिये!तुर्क और मुगल दरिंदे हिंदू समाज के थोड़े से हिस्से को ही धर्मातरण करा पाये थे!वे सिर्फ कमजोरों को ही मुसलमान बना पाए!बहादुर दलित,पिछड़े,आदिवासी समाज के लोग- मजूर किसान के रूप में मुगलों,तुर्कों और खिल्जियों पर भारी पड़े! यही दलित पिछड़े आदिवासी लोग विगत एक हजार साल से उत्तर भारत में हिंदू धर्म की रक्षा करते आ रहे हैं!इसलिये वास्तव में असली हिंदू यही दलित पिछड़े और आदिवासी हैं!
इस्लाम के आने से पहले (एक हजार साल पहलेे )भारत के दलित पिछड़े आदिवासी समाज जन यदि सवर्णों के सताए होते तो मुसलमान बन जाते! किंतु इन दलित पिछड़े हिंदुओं ने अपना ईमान बचाया और बहादुरी से मुकाबला किया! वेशक सवर्ण और अन्य के बीच सब ठीक नहीं था! लेकिन मुस्लिम शासकों और अंग्रेजों ने भारत के कारीगरों, किसानों मजूरों पर इतना अत्याचार किया जिस कारण भारत के असली हिंदू अति दीन अवस्था में आ गये !ये सनातन से दलित पिछड़े नही थे बल्कि तुर्कों, मुगलों,अंग्रेजों से हिंदू धर्म को बचाने में इन्होंने जो कुर्बानी दी उसके कारण ये गरीब और बंचित होते चले गये! विदेशियों ने हिंदू समाज के दूध में सिर्फ नीबू निचोड़ने का काम किया!
आजकल हिंदू समाज को बांटनेकी तिकड़म में लगे लोग यह न भूलें कि ये दलित पिछड़े आदिवासी यदि हिंदू न होते तो भारत भी ईरान और पाकिस्तान,अफगानिस्तान की तरह एक इस्लामिक राष्ट्र होता!
जिन दलित पिछड़ों की वजह से उत्तर भारत में मोदीजी को दोदो बार प्रचंड बहुमत मिला, और जिन दलितों की ताकत से श्री रामनाथ कोविद राष्ट्रपति बने,पासवान,अठावले और हंसराज जैसे दलित नेता भारत सरकार में मंत्री बने उन दलितों, पिछड़ों पर अब भी चंगेजखान,तैमूर लंग,औरंगजेब की औलादें डोरे डाल रहीं हैं! लालू, मुलायम,माया और ममता ये दलितों पिछड़ों के नेता नही,सत्ता के दलाल हैं! एमपी यू पी,बिहार छ. ग. की जनता ने इन जातिवादी बदमाशों को हराकर नेक काम किया है! अब भी जो हिंदू या मुस्लिम इनके साथ हैं, इनका समर्थन करते हैं उनका भविष्य अंधकारमय है!

यदि किसी का सहयोग चाहिये तो देना भी पड़ेगा!

साधु संत महात्मा भी मानव समाज का हिस्सा हैं,कोई भले ही कितना ही वीतरागी क्यों न हो या कोई समाधि की उच्चस्तरीय अवस्था को प्राप्त क्यों न हो गया हो! किंतु यदि उसे अभीष्ठ को प्राप्त करना है तो जिंदा रहना जरूरी है! जिंदा रहने के लिये उसे देश समाज और सरकार के सहयोग की नितांत आवश्यकता रहेगी ही! और मजदूर किसान के बिना तो चींटी का भी काम नही चलता!
यह महाराष्ट्र की घटना से सिद्ध हो गया कि सामाजिक सहयोग बिना कोई भी नही जी सकता,साधू संत महंत तो क्या,धर्म अध्यात्म और ईश्वर भी मानव जाति के मुहताज हैं!
यदि किसी का सहयोग चाहिये तो देना भी पड़ेगा!
यह उचित नहीं कि रेल का टिकिट नही लिया,क्योंकि हम तो साधु हैं! यह भी उचित नही कि कोरोना संकटकाल में यदि देश व्यापी लॉकडाउन है, तो उसकी परवाह किये बिना वहां- चले जाओ जहां पुलिस भी सुरक्षित नहीं! इसके अलावा देशमें दुनिया में जब कभी,जहां कहीं,निर्दोषों पर अत्याचार होता दिखाई दे तो साधू संतों को चुप नहीं बैठना चाहिये!
महाराष्ट्र की घटना पर किसी की आलोचना करने से पहले हिंदू समाज के धर्मगुरूओं और तमाम साधु संत महात्माओं को शपथ लेना चाहिए कि
"आइंदा-चाहे वह हिंदू हो, चाहे मुस्लिम हो,सिख,ईसाई अथवा कोई अन्य हो,किसी भी निर्दोष पर अत्याचार नही होने देंगे"
इस शपथ को कार्यान्वित करने के उपरांत यह संभव ही नही कि किसी साधु की कहीं पर जघन्य हत्या हो!

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

सरकार को करोना टेस्ट और उपचार के पूरे खर्च की जिम्मेवारी लेनी चाहिए !

पूरे देश में कोरोना वायरस से लड़ाई को हिन्दू-मुस्लिम डिबेट में क्यों बदल दिया गया है? मीडिया इतनी हायतौबा क्यों मचा रही है? क्योंकि करोना की टेस्टिंग में हर तरफ लूट,आपाधापा और अराजकता मची हुई है! कोरोना भुक्तभोगियों के अलावा दुनिया में यह भारत की पहली सरकार है जो उच्चतम न्यायालय में इसलिये गई कि करोना पीड़ित, आम भारतीय करोना टेस्ट का खर्च खुद वहन करें।और यह सिर्फ 4500 रुपए का सवाल नहीं है। बल्कि सवाल बहुत बड़ा है। मतलब इस महामारी के संकटकाल में भी सांप्रदायिक नफरत में उलझाकर कहीं कोई अपना अभीष्ठ सिद्घ करने के लिये प्यास रत तो नहीं!
जब पूरे देश में सबका काम-धाम ठप्प है। फिर भी हर व्यक्ति को अपने करोना टेस्ट के लिए 4500 रुपये व्यय करना होगा। आज की परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति के 4500 रुपया टेस्ट के लिए पेमेंट करना दुष्कर है। वैसे भी पॉजिटिव होने पर एक व्यक्ति का कम-से-कम तीन बार टेस्ट होता है। कोनिका कपूर का मामला याद है, उनका पांच-छह बार टेस्ट हुआ। मतलब कम-से-कम 4500 रुपये तीन बार देने होंगे। अर्थात, 13500 रुपये एक व्यक्ति को लगेगा।
अगर कोई व्यक्ति पॉजिटिव पाया जाता है तो उनके पूरे परिवार का टेस्ट होता है, एक परिवार में अगर कम-से-कम पांच लोग ही हैं तो 22500 रुपया खर्च होगा। सब करोना पॉजिटिव तो लाखों रुपया रुपया सिर्फ टेस्ट में लगेगा। लॉकडाउन में यह कोढ़ में खाज नहीं बन जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार की याचिका पर फैसला दिया कि सिर्फ आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत आने वाले बीपीएल के टेस्ट के खर्च का वहन सरकार करेगी। अन्य सबको खुद इसका बोझ उठाना होगा।
उच्चतम न्यायालय को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्हें इस तथ्य की रोशनी पर गौर करना चाहिए कि भारत के आम लोगों की प्रति व्यक्ति प्रति माह आय 11254 है। अभी तो वह शून्य नहीं, ऋणात्मक है। आय जीरो बटा  सन्नाटा है। लेकिन खर्च तो जारी है। लिहाज़ा, सरकार को करोना टेस्ट और उपचार के पूरे खर्च की जिम्मेवारी लेनी चाहिए। अन्यथा, उच्चतम न्यायालय को पुनः अपने आदेश पर विचार करना चाहिए। अभी भी अगर हिन्दू-मुस्लिम खेल का मतलब नहीं समझ में आया है तो भगवान आपका भला करे। हुकूमत श्मसान में आपका कफ़न लूट लेना चाहती है और आप दुश्मन हिन्दू-मुस्लिम में ढूंढ रहे हैं।

असली हिंदू तो दलित पिछड़े आदिवासी हैं !

मध्ययुग में जब हिंसक इस्लामिक कबीलों ने उत्तर भारत पर हमला किया तब अधिकांस क्षत्रिय युद्ध में मारे गये! जो बच गये उनमें से कुछ ने मुगलों से रिस्तेदारी कर ली! कुछ जंगलों में घास फूस खाकर अपने धर्म और ईमान के लिये बर्बर आक्रमणकारियों से लड़ते लड़ते शहीद हो गये! और जो बच गये उनमें से कुछ चंबल जैसे बीहड़ों में डाकू बन गये!
हमलावर कबीलों के साथ आये इस्लामिक प्रचारकों को भारतीय समाज से धर्मातरण में जब उचित रिस्पांस नही मिला,तो उन्होंने बहुत सताया,जबरदस्ती की!इस जद्दोजहद में मुस्लिम जेहादियों को पता चला कि यदि ब्राह्मणों को मुसलमान बना दिया जाए,तो बाकी सभी जातियों के लोग,अपने आप ही मुस्लिम बन जाएंगे!चूंकि तत्कालीन समाज में तपस्वी कर्मयोगी सन्यासी और ब्राह्मण को धरती का देवता माना जाता था,अत: जब ब्राह्मणों से धर्म परिवर्तन की उम्मीद नहीं रही,तब मुगलों,तुर्कों,अरबों ने ब्राह्मणों की हत्या का अभियान चलाया! जो मुस्लिम अपने वजन के बराबर जनेऊ एकत्रित कर लेता था (एक ब्राह्मण की हत्या अर्थात एक जनेऊ) उस हत्यारे कसाई को 'गाजी' कहा जाता था!
11वीं शताब्दी से लेकर अकबर के आने तक अधिकांस ब्राह्मण मार दिये गये! अकबर ने सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश की थी, और हिंदू समाज ने उसका स्वागत भी किया था!किंतु कट्टरपंथी मुस्लिमों का जेहाद अनवरत जारी रहा! अकबर को सुलहकुल नीति छोड़कर मुल्ला मौलवियों की बात माननी पड़ी!बिडम्बना है कि अकबर के ही आदेश पर हिंदू रानी दुर्गावती और अत्यंत उदारवादी मुस्लिम बाजबहादुर और उसकी प्रिय रानी रूपमती को मार दिया गया! सवाल उठता है कि किसलिये?इतिहास एक ही जबाब देगा -जेहाद या औरतखोरी!
सैकड़ों साल मुसलमानों से मार खाते रहे और फिर भी हिंदू धर्म नही त्यागा,ऐंसे कुछ महान हिंदू पैदल जंगलों के रास्ते महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल की ओर चले गये! उनमें से आधे रास्ते में ही भूख प्यास से मर गये! जो केरल में जा वसे उन्ही ने दक्षिण भारत में संस्कृत साहित्य पहुँचाया और दक्षिण के राजाओं को प्रेरित किया कि हिंदू मंदिर बनाएं! इससे पहले दक्षिण भारत में अनार्य याने द्रविड़ सभ्यता का बाहुल्य था!जिसमें शैव,शाक्त,लोकायत और लिंगायत मतों का ही बोलवाला था!आर्य और द्रविड़ सभ्यता के मिलन से ही भारत में सनातन धर्म का उद्भव हुआ!
इस तरह उत्तर भारत में इस्लामिक आक्रमणकारियों ने सवर्णों को तो बुरी तरह परास्त कर दिया था!किंतु नाई,धोबी,माझी, बरौआ,धानुक,चर्मकार,पासी,भोई,कहार यादव,कुर्मी,जाट,गूजर,महार,बुनकर दलित इत्यादि जातियों ने अपने बलबूते पर हिंदू धर्म की रक्षा की!
जिन बर्बर मुस्लिम शासकों ने बहादुर सिख गुरुओं के भीे सिर काट लिये,उन आदमखोर मुस्लिमों को हिंदू पिछड़ों दलितों ने नाकों चने चबवा दिये!तुर्क,मुगल दरिंदे हिंदू समाज के थोड़ेसे हिस्से को ही धर्मातरण करा पाये! कमजोरों को ही मुसलमान बना पाए!बहादुर दलित,पिछड़े समाज के लोग,मजूर किसान के रूप में मुगलों,तुर्कों और खिल्जियों पर भारी पड़े! यही दलित पिछड़े लोग विगत एक हजार साल से उत्तर भारत में हिंदू धर्म की रक्षा करते आ रहे हैं!इसलिये वास्तव में असली हिंदू तो  दलित,पिछड़े आदिवासी  हैं! ब्राह्मण,बनिया ठाकुर तो आर्य हैं। 
इस्लाम के आने से पहले (एक हजार साल पहलेे )यदि भारत के दलित पिछड़े समाज जन सवर्णों के सताए होते तो मुसलमान बन जाते! किंतु इन दलित पिछड़े हिंदुओं ने अपना ईमान बचाया और बहादुरी से मुकाबला किया! दरसल मुस्लिम शासकों और अंग्रेजों ने कारीगरों, किसानों मजूरों पर इतना अत्याचार किया,जिस कारण भारत के असली हिंदू अति दीन अवस्था में आ गये !ये सनातन से दलित पिछड़े नही थे बल्कि तुर्कों, मुगलों,अंग्रेजों से हिंदू धर्म को बचाने में इन्होंने जो कुर्बानी दी उसके कारण विदेशियों ने हिंदू समाज के दूध में नीबू निचोड़ने का काम किया! हिंदू समाज को बांटने वाले यह न भूलें कि यदि यह दलित पिछड़े यदि हिंदू न होते तो भारत भी ईरान और पाकिस्तान की तरह इस्लामिक राष्ट्र होता!
जिन दलित पिछड़ों की वजह से उत्तर भारत में मोदी जी को दो बार प्रचंड बहुमत मिला, और जिन दलितों की ताकत से रामनाथ कोविद राष्ट्रपति बने,पासवान,अठावले और हंसराज जैसे दलित नेता भारत सरकारमें हैं, उन दलितों, पिछड़ों पर अब भी चंगेजखान, तैमूर लंग,औरंगजेब की औलादें डोरे डाल रहीं हैं! लालू, मुलायम, माया, ममता ये दलितों पिछड़ों के नेता नही सत्ता के दलाल हैं! जो लोग इनका समर्थन करते हैं उनको धिक्कार है!

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

अजीम प्रेम जी

अजीम प्रेम जी बाकई महान हैं,उन्होंने जनता से जो कमाया है उसका थोड़ा सा हिस्सा कोरोना वायरस से लड़ने में व्यय कर रहे हैं! हालांकि उनकी महानता या किसी और पूंजीपति की दानवीरता उन गरीबों के किसी काम की नही,जो करोडों की तादाद में गांव से शहर तक भूख से मर रहे हैं!
बचपन से सुनता आ रहा हूँ कि अमुक ने और ढिमुक ने इतना दान दिया है!ये भी सबको मालूम है कि इस तरह की वैयक्तिक सहायता तात्कालिक होती है!कोई स्थाई समाधान नही देती! यह मदद बंचितों के किसी काम की नही! केवल दानवीरों के उत्पादों का प्रचार प्रसार और टैक्स बचाने का अचूक साधन है!
अजीम प्रेमजी ने कोरोना से लड़ने के लिये कुछ घोषणाएं कीं हैं,घोषणाओं का हश्र हम सब जानते हैं,यह पूंजीपतियों के उत्पादों के प्रचार का एक खास तरीका है!खैर अजीम प्रेमजी की महानता की हम कद्र करते हैं!
खबर है कि जब से अजीम प्रेमजी के इस तथाकथित योगदान की चर्चा चली,तब से वे जमातियों की नजर में मुसलमान हो गये हैं!बेशक इससे पहले अजीम प्रेमजी इंसानियत के अलमबरदार रहे हैं, वे कभी मस्जिद नही गए,कभी नमाज नही पड़ते,वे धारा 370 हटाने के समर्थक हैं, वे CAA के समर्थक हैं, वे कभी शाहीनावाद या किसी दरगाह की मरकजी जमात में नही गए!
सभी मुल्ला-मौलवियों ने अजीम प्रेमजी को कभी मुसलमान नही माना! उलटे गालियां दीं,किंतु अब जबकि दुनिया भर में कोरोना फैलाने वाले तबलीगियों नरकजियों को खूब धिक्कार मिल रही है,तो उन्हें अजीम प्रेम जी मुसलमान नजर आ रहे हैं!छि:

ईश्वर अल्लाह तेरे नाम

एक मुस्लिम मित्र ने अपने हिंदू मित्र से पूछा-
"हम दोनों व्यक्तिगत तौर पर ऐंसा क्या करें कि मजहबी आधार पर भिन्नता के बावजूद हमारी दोस्ती बरक़रार रहे?"
हिंदू मित्र ने जबाब दिया -"हमें ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं! हम दोनों सिर्फ इतना करें कि अपने-अपने धर्म-मजहब के कट्टरपंथियों को बिल्कुल भाव न दें,हमेशा सच्चे भारतीय बने रहें और जीव हिंसा न करें!"
मुस्लिम मित्र ने कहा- 'मैं तो कर लूंगा, लेकिन जमात की कोई गारंटी नही दे सकता!'
हिंदू मित्र बोले- 'मैं भी अपनी ही बात कर रहा हूँ,अंधभक्तों या रथयात्रियों की गारंटी नही दे सकता!'
अंत में हिंदू -मुस्लिम दोनों मित्र एक साथ बोले -ईश्वर अल्लाह तेरे नाम सबको सन्मति दे भगवान... !

'देशभक्त' 'गद्दार और 'राष्ट्रवाद'

दरसल 'देशभक्त'और 'गद्दार' जैसे शब्दों का चलन अब भारत में ही रह गया है!बाकी दुनिया इन शब्दों से बहुत आगे बढ़ गई है! अब जापान,जर्मनी या चीन में इन शब्दों की जगह 'राष्ट्रवाद' ने ले ली है! वहां अब देशभक्त और गद्दार शब्द गुजरे जमाने की चीज हो गये हैं!
वास्तव में देशभक्त और देशद्रोही या गद्दार शब्द राजनैतिक शब्द हो चुके हैं! जहांतक भारत में इनकी पैदायश का सवाल है तो ये शब्द भारतीय संस्कृत साहित्य में नदारद हैं! इनका आगमन भी हमलावर कौमौ के साथ ही हुआ है! जब बाहरी बर्बर हमलावर भारत पर हमला करते थे तो वे अपने फौजियों में जोश भरने के लिये मजहबी जुनून पैदा करते थे! जो उनके जुनून में तलवार उठाकर मरने मारने को तैयार रहता वह दीनपरस्त और जो लड़ने से इंकार कर दे या डर जाए उसे गद्दार या काफिर कहा जाता था! जब हमलाबर कबीलों ने विजित राष्ट्र को अपना वतन माना तो दीनीपरस्त को वतनपरस्त और काफिर या गद्दार को देशद्रोही कहा जाने लगा!
भारत में आजादी के बाद ,कुछ लोगों की आस्था अपने धर्म -मजहब से बनी रही थी,जबकि महात्मा गांधी, पंडित नेहरु सरदार पटैल, सुभाष वोस भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद,अशफाकउल्लाह खान जैसे कुछ क्रातिकारियों की आस्था अपने वतन से रही!
भारत पाकिस्तान बटवारे के बाद कुछ पाकिस्तानी जैसे -सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खान,फैज अहमद फैज,जियेसिंध के जी एम सईद इत्यादि नेता भारत में अपनी आस्था रखते थे! अतएव वहाँ के फौजी जनरलों ने उन्हें देशद्रोही कहा,जेलों में बंद किया,प्रताड़ना दी और मार डाला!
इधर भारत में निजामों,नवाबों की बची खुची नाजायज औलादें मन ही मन पाकिस्तान को अपना मादरे वतन मानती रहीं!किंतु नेहरू पटैल ने सबको गले लगाया! जब तक पानी सर से ऊपर नही चढ़ा (जैसे शेख अबदुल्ला की गिरफ्तारी) तब तक पं.नेहरू और सरदार पटैल ने किसी मुसलमान को देशद्रोही नहीं माना!
1965 में पाकिस्तान के खिलाफ जब कैप्टन अब्दुल हमीद जैसे जाबाजों ने पाकिस्तान के अमेरिकी पैटन टैंक धवस्त कर दिये तब यहां कुछ लोगों के मुंह बंद हुए! 1971 में बांग्ला देश बनानेमें भारतीय सेना और बांग्ला मुक्ति वाहिनी ने जो शौर्य दिखाया,उसने भारत बांग्लादेश के बीच ही नही बल्कि हिंदू और मुस्लिम कौम के बीच एकजुट राष्टुवाद को परवान चढ़ते देखा है!
किंतु बाद में पाकिस्तान की आर्मी और विश्व इस्लामिक जेहादी आतंकवाद ने भारतीय गंगाजमुनी तहजीव को गंभीर छति पहुंचाई! जो लोग भारतीय संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देते थे वे मक्का मदीना की ओर देखने लगे!मंब्ई में ताज होटल और अन्य जगहों पर आतंकी हमले, बिना गद्दारों की मदद से नहा हो सकते थे! गुजरात के दंगों को हवा देने वाले दाऊद,कसाब, बुर्हान बानी,हाफिज सईद,अजहर मसूद जैसे आतंकियोंके कुटिल कारनामें,कश्मीरी पत्थरबाजों, आतंकियों अलगाववादियों के मंसूबों ने भारत के 125 करोड़ हिंदुओं को मजबूर कर दिया कि वे भी मुसलमानों की तरह टैक्टिकल वोटिंग क्यों न करें? क्या धर्मनिरपेक्षता का ठेका सिर्फ हिंदु,जैन,बौद्ध और पारसियों ने ही ले रखा है? हिंदुओं ने सोचा -हम क्यों न एक ऐंसी सरकार चुने जो देशको टूटने से बचा सके और हिंदुओं के स्वाभिमान को भी बचा सके!
मुस्लिम दलित पिछड़ा वर्ग को गुमराह करने वाले धर्म,मजहब,जाति की गंदी राजनीति करने वाले लालू,मुलायम,माया सब हिंदुओं के खिलाफ हो गये थे, इसलिये हिंदुओं ने चुनावी ध्रुवीकरण में वह सत्ता हस्तांतरण किया जो आज हम सब देख रहे हैं!
अब वही होगा जो बहुमत को मंजूर होगा! और भाजपा को बहुमत यदि हिंदुओं ने दो दो बार दिया है, तो किसी के पेट में दर्द नहीं होना चाहिए! क्योंकि जिनके पेट में दर्द है, उनका रत्ती भर सहयोग वर्तमान सरकार को नही है!
यदि किसी को फिक्र है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र सलामत रहे,तो हिंदुओं को नीचा दिखाना बंद करे और दुश्मन देशों से दिल लगाने की आदत छोड़ दे!

भारत में कुछ कुपढ़ अपढ़ कूड़मगज लोग पाकिस्तान के आतंकी संगठनों और विश्व इस्लामिक आतंकवाद की भाषा बोलते रहते हैं! वे इस्लामिक आतंक पर कभी एक शब्द नही बोलते ! बल्कि जब कसाब जैसे 20 कसाई मुंबई पर हमला करते हैं, कुछ कट्टर इस्लामिक आतंकी अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करते हैं, कुछ पुलवामा,उरी पठानकोट पर हमला करते हैं, तो ये बदमास बुद्धूजीवी उधर से नजर फेर लेते हैं!
भारत के कुछ जातीय और साम्प्रदायिक संगठन खुद असंवैधानिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं और पकड़े जाने पर आर एस एस,के कुछ पुराने नाम और भाजपा के कुछ नये नामों को हिंदूवादी बताकर सवाल करते हैं कि 'हिंदुओं' ने आजादी की लड़ाई में क्या किया?
हिंदू विरोधी धूर्त बदमाश लोग जिन हिंदू संगठनों और उसके नेताओं के नाम गिनाते हैं,वेशक वे नेता और संगठन आजादी की लड़ाई में शामिल नही हुए! किंतु क्या सिर्फ वही हिंदू थे?
हिंदू विरोधी निक्रिष्ट लोग भूल जाते हैं कि महात्मा गांधी,सरदार पटैल,पंडित मोतीलाल नेहरू,गोखले,रानाडे, विपिनचंद पाल, लाला लाजपतराय,स्वामी श्रद्धानंद,लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, छसुभाषचंद बोस, सरोजनी नायडू,गोविंद वल्लभ पंत,डॉ सर्व पल्ली राधाक्रष्णन और आजादी के लिये शीस कटाने वाले करोडों शहीद शुद्ध हिंदू थे!
द्म धर्मनिरपेक्ष लोग केवल गद्दारों को ही हिंदू क्यों मानते हैं?वे यह दुष्प्रचार करते हैं कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में हिंदुओं का कोई सहयोग नही था! इस हिंदू विरोधी हरामियों से पूछा जाए कि क्या उनके बाप जिन्ना ने भारत को आजादी दिलाई?
मैं भी धर्मनिरपेक्षतावादी हूँ,संघ विरोधी हूं! किंतु निर्दोष और मेहनतकश हिंदुओं पर हमला करने वालों को कौम का गद्दार और वतन का दुश्मन मानता हूं!वो चाहे मुस्लिम हो,हिन्दू हो या कम्युनिस्ट हो, यदि वह हिंदुओं को टारगेट करेगा,तो उसकी अक्ल ठिकाने लगाने का दायित्व उन सबका है जो सच्चे देशभक्त हैं,सच्चे धर्मनिरपेक्षतावादी हैं! और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के दायित्व हर एक निर्वाचित सरकार का है न की अल्पसंख्यकों के वोटों की राजनीति करने वालों की !

भारत का कोई प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जब इंग्लैंड,अमेरिका जाता है,तो वहां मौजूद सारे भारतवंशी 'इंडिया-इंडिया' चिल्लाते हैं!किंतु मूल अमेरिकन और इंग्लैंड वाले इसका खास बुरा नही मानते! बल्कि वे भी भारतीय नेता के सम्मान में सिर झुकाते हैं! किंतु मेरे भारत में यदि बाईचांस कोई इटालियन पंछी भी भटककर भारत के आसमान में उड़कर आ जाए और सोनिया गांधी यदि उसे देखकर हाथ जोड़ ले, तो शाखाम्रगों के सीने पर सांप लोटने लगते हैं!कूड़मगज अंधभक्तों को सच सुनना पसंद नही! क्योंकि वे अपने पूर्वजों की वो उदारता भूल गये जो उनकी चारित्रिक विशेषता हुआ करती थी!
*वसुधैव कुटुंबकम*

इंग्लैंड की होम मिनिस्टर भारतीय मूल की हैं,अमेरिका में डैमोक्रेटिक पार्टी की नेता निक्की हैली राष्ट्रपति पद की दौड़ में भी रहीं हैं,वे सभी भारतीय मूल की हैं!मारीशस फिजी,सुरीनाम,केनेडा और गुयाना में अनेक भारतवंशी अक्सर सत्ता शिखर पर भी विराजमान रहे हैं !किंतु किसी पर कभी यह आरोप नही लगा कि वे उन देशों के लिये स्वीकार्य नही है! जो लोग बात बात में सोनिया गांधी पर विदेशी होने का ठप्पा लगाते हैं,वे अपने शानदार अतीत और वर्तमान विश्व राजनीति का जरा भी ज्ञान नही रखते!


मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

पीपल के ब्रक्ष पर दो पक्षी बैठे हैं, एक कर्मफल को खाता है

मैने जब बचपन में भगवद गीता पढ़ी तो कुछ नये सवाल खड़े होने लगे! मेंने श्रीकृष्ण के ज्ञान योग,कर्मयोग,सन्यास योग और ईश्वर के द्वारा जीवात्मा के कर्मों का कर्मफल दिये जाने का सिद्घांत तो माना,किंतु उनकी इस घोषणा को अहंकार माना कि:-
"हे अर्जुन इस जग का निर्माता नियंता और संहारक मैं ही हूँ "
बचपन में ही मैने श्रीकृष्ण की स्वीकारोक्ति को अमान्य कर दिया था और उन्हें भगवान मानने से इंकार कर दिया था!हालांकि उन्हें शिव की तरह योगेश्वर मान लिया था! किंतु रिटायरमेंट के बाद जब पुन: वेद,उपनिषद और संहिताओं को ज्यादा गहराई से अध्यन किया और अष्टावक्र गीता पढ़ी, तब समझ में आया कि श्रीकृष्ण सही कह गये हैं!दरसल उनका आसय वेद में वर्णित उस रूपक से समझा जा सकता है कि :-
शरीर रूपी पीपल के ब्रक्ष पर दो पक्षी बैठे हैं, एक कर्मफल को खाता है, दूसरा केवल देखता है,ये जो दूसरा है,वही ब्रह्म है!यदि फल खाने वाला दूसरा पक्षी भी अहंकार शून्य होकर,साक्षी भाव में स्थित हो जाए,तो वह ब्रह्मलीन होकर ब्रह्म स्वरूप को प्राप्त हो जाता है"
अर्थात यदि हम अहंकार शून्य हो जाएं तो हम सभी श्रीकृष्ण ही हैं शिवोहम्,अहं ब्रहास्मि साेह्मअस्मि!!

वामपंथ क्या है ?


यह सवाल कुछ वर्ष पहले एक नौसीखिया ट्रेड यूनियन लीडर ने पूछा था!उनका कोई परिचित युवा जेएनयू में दाखिल हुआ था! उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये लेफ्ट राईट का मसला क्या है?इसी बीच JNU के छात्र संघों में किसी बात पर विवाद खड़ा हो गया! कुछ अहमक लोगों ने फेसबुक पर वामपंथ की बाट लगी दी। इसलिए लगा कि वाम के परिचय में कुछ सरल सहज सी बाँतें लिखना जरूरी है ।तत्संबंधी यह पुरानी पोस्ट पुन: मित्रों के विचारार्थ प्रस्तुत है!
-जो सुबह सूर्य की ओर मुंह करके उठते है और दिन के आगमन पर प्रफुल्लित होते हैं वे सहज ही वामपंथी होते हैं ।
-जो दिन रात गुज़री हुयी अमावस की बहाली के लिए विलाप करते रहते हैं और ऐसा करने के लिए दीप,बाती,चिंगारी और मशाल को बुझाने पर आमादा रहते हैं वे दक्षिणपंथी कहलाते हैं।
-वाम विचारधारा ज़िंदगी की सामाजिक उपयोगिता और मनुष्यत्व का पर्याय है ।
-कवि की शैली में कहें तो -
"ज़िंदगी न केवल जीने का बहाना है,
ज़िन्दगी न केवल साँसों का खजाना है,
ज़िंदगी सिन्दूर है और पूर्व दिशा का वामपंथी उदयगान है!"
● जो समाज को आगे की ओर ले जाना चाहते हैं, गुलामी और शोषण के हर रूप को खत्म कर मनुष्य को एकदम आज़ाद और वैज्ञानिक सोच समझ से लैस करना चाहते हैं वे वामपंथी हैं ।
● जो पुरातन समाज की असमानता और अंधविश्वास को महान मानते हैं । शोषण को जायज मानते हैं। जो सिर्फ मनुस्मृति,शरीयत के नाम पर समाज चलाना चाहते है, वे दक्षिणपंथी हैं ।
● आधुनिक वाम एक वैचारिक समग्र है , मनुष्यता की अब तक की सारी सकारात्मक उपलब्धियों का समुच्चय है । जिसे हम परम सत्य नहीं मानते !एक बार पुनः दोहरा दें, हम उसे परम सत्य नहीं मानते। और यह परम सत्य न मानने का आईडिया भी इसी विचार ने दिया है।
● इस विचार के मुताबिक़ कुछ भी शून्य से अवतरित नहीं होता, खुद शून्य का विचार भी नहीं । यह भौतिक परिस्थितियां होती हैं जो विचार को उत्पन्न, परिवर्धित और समृद्ध करती हैं।
*अंगरेजी में कहें तो सब कुछ evolve हो रहा है। सब कुछ घटित हो रहा है । जड़ या स्थिर नहीं है। ये evolution आगे की ओर, बेहतरी की ओर हो ऐसा मानने वाले और ऐसा हो इसके लिये प्रयत्न करने वाले वामपंथी होते हैं।
*वे इस evolution के खुदबखुद घटने के इंतज़ार की बजाय उन नियमों का इस्तेमाल कर इसे समय पर करने की कोशिश करते हैं, जिसे revolution भी कहते हैं ।
● ऐसा सोचना एक सहज मानवीय प्रवृत्ति है जो हर सभ्यता में रही और उसे संस्कारित किया। जब से विचार पैदा हुआ तभी से वाम की उपस्थिति हुयी ।
*अनेक विचार तो सिर्फ इसलिए ही पैदा किये गए ताकि उनके माध्यम से वाम का खंडन विखंडन किया जा सके । और वे मिट गए,किंतु वाम नहीं मिटा,न मिटेगा!
● वाम आयातित नहीं है। हर सभ्यता की वैचारिक परम्पराओं की भांति भारत की दार्शनिक,सामाजिक,राजनीतिक परम्पराओं में वाम की गहरी जड़े हैं । वस्तुतः यह वाम है जो भारतीय विचार परम्परा की धुरी में है ।
● वाम सिर्फ मार्क्स से शुरू नही होता, प्राचीन भारतीय दर्शन में कणाद,कण्व ऋषि के किवलय, ऋग्वेद की आरंभिक ऋचाओं से लेकर षडदर्शन का आधे से अधिक हिस्सा घेरे हुए है।
*सुश्रुत, चरक और धन्वन्तरि के शोधों की आधारशिला है वाम, जीवन सत्य नहीं होता तो उसके लिए औषधियों और चिकित्सा के आविष्कार अनुसंधान नहीं होते ।
● आर्यभट्ट और वराहमिहिर का कुतुबनुमा है वाम । जगत सत्य नहीं होता तो न गणना की आवश्यकता होती न सौरमंडल की गति या त्रिज्या नापने की जरूरत ।
● आधुनिक और राजनीतिक वाम के दार्शनिक मार्क्स ने खुद स्वीकारा है कि उन्होंने एकदम से नया कुछ नहीं दिया। आविष्कार नहीं किया अनुसंधान, अन्वेषण किया है ।
*विचार की तीन धाराओं-जर्मन दर्शन के आध्यात्मिक द्वंदवाद, फ्रेंच दर्शन के यांत्रिक भौतिकवाद और ब्रिटिश पोलिटिकल इकॉनमी से प्रेरित काल्पनिक समाजवाद को सर के बल से सीधा कर पैरों पर खड़ा करने की प्रक्रिया का नाम है वाम!
*मार्क्स एंगेल्स ने विश्लेषण के औजार (Tools) दिए हैं।
● यह संयोग था कि मार्क्स अपनी पैदाइश की भूमि और भाषाई विवशताओं के चलते भारतीय दर्शन के संपर्क में नहीं आये थे। यदि आते तो शायद उनका काम और आसान होजाता - द्वंदवाद के लिए उन्हें शायद हीगेल तक नहीं जाना पड़ता, बुद्द से ही मिल जाता।
*चार्वाक, बृहस्पति और लोकायत उनके काम को बहुत हल्का बना देते । हाँ, लन्दन तो उन्हें जाना ही पड़ता क्योंकि जैसे रेगिस्तान में बैठकर समुद्र की लहरें गिनने की विधा नहीं सीखी जा सकती वैसे ही पोलिटिकल इकॉनोमी के लिए जरूर उन्हें ब्रिटेन से ही काम चलाना पड़ता । वह तब तक भारत के जीवन का अंग नहीं बनी थी!
● विचारों का द्वन्द स्वस्थ लोकतांत्रिक सभ्य समाज की जीवन शैली है। उसमे असहमत विचारों के मुण्ड-काटन -अभिषेक जैसी उक्ति के लिए कोई जगह नहीं है। उस मुण्ड में रखे ग्रे मैटर याने मस्तिष्क के इस्तेमाल की अत्यंत आवश्यकता होती है।

स्म्रति शेष महापंडित राहुल सांकृत्यायन:

जन्म : 9 अप्रैल, 1893/ निधन : 14 अप्रैल, 1963.
हजारों मील दूर पहाड़ों और नदियों के बीच दुर्लभ ग्रंथों की खोज में भटकने के बाद, उन ग्रंथों को खच्चरों पर लाद कर अपने देश में लाने वाले महापंडित राहुल सांकृत्यायन ही थे। घुमक्कड़ी को ही वे धर्म मानते थे। घुमक्कड़ी उनके जीवन का मूल मंत्र रही। आज दुनिया उन्हें एक यायावर, इतिहासविद, तत्त्वान्वेषी, युगपरिवर्तनकार साहित्यकार के रूप में जानती है। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिंदी साहित्य में सराहनीय है।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गांव में 9 अप्रैल, 1893 को जन्मे राहुल सांकृत्यायन के बचपन का नाम केदारनाथ पांडेय था। उनके पिता गोवर्धन पांडेय किसान थे। उनके बचपन में ही माता कुलवंती का देहांत गया। उनका पालन-पोषण उनके नाना-नानी ने किया था। प्राथमिक शिक्षा के लिए उन्हें गांव के ही एक मदरसे में भेजा गया। उनका विवाह बचपन में ही कर दिया गया था, पर राहुल ने गृहस्थी बसाने के बजाय कुछ और ही सोच रखा था। वे किशोरावस्था में घर छोड़ कर चले गए और एक मठ में साधु बन गए। बाद में कलकत्ता चले गए। सन 1937 में उन्होंने रूस के लेनिनग्राद में एक स्कूल में संस्कृत अध्यापक की नौकरी की और उसी दौरान ऐलेना नामक महिला से दूसरी शादी कर ली।
’सन 1930 में श्रीलंका जाकर उन्होंने बौद्ध धर्म पर शोध किया और तभी से वे ‘रामोदर साधु’ से ‘राहुल’ हो गए। सांकृत्य गोत्र के कारण सांकृत्यायन कहलाए। उनके ज्ञान भंडार के कारण काशी के पंडितों ने उन्हें ‘महापंडित’ की उपाधि दी और इस तरह वे केदारनाथ पांडे से महापंडित राहुल सांकृत्यायन हो गए।
राहुल सांकृत्यायन ने हिंदी साहित्य ही नहीं, भारत के कई अन्य क्षेत्रों के लिए भी शोध कार्य किया। उन्होंने धर्म, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रा साहित्य, इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोष, प्राचीन ग्रंथों का संपादन कर विविध क्षेत्रों में अहम काम किया।
राहुल सांकृत्यायन ने कई सामाजिक कुरीतियों को भी तोड़ा। एक बार उन्होंने बलि प्रथा के विरुद्ध व्याख्यान दिया तो अयोध्या के पुरोहित की हिंसा का शिकार होना पड़ा। जब वे तत्कालीन सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी में गए तो सत्ता के लोभी सुविधापरस्तों की तीखी आलोचना की। वे सत्य का साथ देते थे और इसी का उदाहरण सन 1947 में अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रूप में दिया उनका भाषण है। उस समय उन्होंने जो भाषण दिया, वह अल्पसंख्यक संस्कृति और भाषाई सवाल पर कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों के विपरीत था। नतीजतन उन्हें पार्टी की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा। अपनी पुस्तक ‘वैज्ञानिक भौतिकवाद’ और ‘दर्शन-दिग्दर्शन’ में मार्क्सवाद पर प्रकाश डाला है।
’अलग-अलग देशों की यात्रा के कारण वे बहुभाषी बने। उन्होंने हिंदी, संस्कृत, पालि, भोजपुरी, उर्दू, पर्शियन, अरबी, तमिल, कन्नड़, तिब्बती, फ्रेंच और रूसी आदि भाषाओं में कई किताबें लिखीं। उनकी प्रमुख कृतियां हैं-
कहानी संग्रह : सतमी के बच्चे, वोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपुरी, कनैला की कथा। उपन्यास : जीने के लिए, बाईसवीं सदी, जय यौधेय, भागो नहीं दुनिया को बदलो, मधुर स्वप्न, विस्मृत यात्री, दिवोदास।
आत्मकथा : मेरी जीवन यात्रा।
जीवनी : बचपन की स्मृतियां, सरदार पृथ्वीसिंह, नए भारत के नए नेता, अतीत से वर्तमान, लेनिन, स्तालिन, कार्ल मार्क्स, माओ-त्से-तुंग, घुमक्कड़ स्वामी, मेरे असहयोग के साथी, जिनका मैं कृतज्ञ, वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन, कप्तान लाल, महामानव बुद्ध और सिंहल के वीर पुरुष।
यात्रा साहित्य : मेरी तिब्बत यात्रा, मेरी लद्दाख यात्रा, किन्नर देश की ओर, चीन में क्या देखा, तिब्बत में सवा वर्ष, रूस में पच्चीस मास, घुमक्कड़-शास्त्र
सम्मान
साहित्य अकादेमी पुरस्कार, पद्म भूषण, त्रिपिटिकाचार्य
निधन : दार्जिलिंग में 14 अप्रैल 1963 को उनका निधन हो गया।

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

CORONA बाबत मॉनीटरिंग सिस्टम क्या है?

भारत में विदेशों से आयातित कोरोना महामारी से अबतक 327 मरे! इन दुखद मोतों पर हमें बहुत अफशोस है! गनीमत है कि इन दुखद मोतों की संख्या संपन्न राष्ट्रों के सापेक्ष भारत में बहुत कम है!
इसका 50% श्रेय चिकित्सकों,नर्सों और पैरा मेडीकल स्टाफ को जाता है!
और 25% श्रेय भारतीय शाकाहारी जीवन शैली-पद्धति,अहिंसक सभ्यता और संस्कृति को जाता है।
20% श्रेय केरल,छ.ग.राजस्थान जैसी सजग राज्य सरकारों को जाता है।
सिर्फ 5% श्रेय मोदी सरकार को जाता है,कि उन्होंने टीवी पर आ आकर देश को संकट की घड़ी में ढाढस बंधाया!ताली बजवाई और मोमबत्ती जलवाई! घंटानाद कराया!
खबर है कि प्रधानमंत्री जी ने केंद्रीय कोष से सभी राज्यों को जो मदद का वादा किया है! यदि यह सच है तो इसमें कोई नवाई नहीं,यह उनका दायित्व है!संवैधानिक जिम्मेदारी है!
मुझे यह पता नही कि राज्यों को अबतक फंड मिला या नहीं! यदि यह सहायता दी गई है तो वह जरूरतमंद तक पहुंची या नही!
सरकारी सहायता वितरण में अक्सर गड़बड़ी होती है! गड़बड़ी न हो, इस बाबत मॉनीटरिंग सिस्टम क्या है? मुझे पता नही!यदि किसी को मालूम हो तो सूचित करें!
समाज के जो लोग निजी तौर पर कोरोना महामारी से ग्रस्त लोगों की तन मन धन से मदद कर रहे हैं,उन दानवीरों-कर्मवीरों को एवं पुलिस स्टाफ को कोटि कोटि धन्यवाद!

अपने घर के अधिकांस काम मैं खुद करता रहता हूँ !

मुझे यह जानकर बहुत अफशोस हुआ कि मुल्क में लॉकडाऊन के दौरान जिन्हें घर के काम करने पड़ रहे हैं,पत्नी की मदद करनी पड़ रही है,वे शर्मिंदगी महसूस कर रहे हैं! कुछ लोग जो घर का कोई काम नही करते,वे उनका मजाक उड़ा रहे हैं,जो घर पर पत्नी के और बच्चों के काम में हाथ बटा रहे हैं!
एतद् द्वारा सूचित किया जाता है कि हम बचपन में और किशोर अवस्था में भी सभी घरेलू काम किया करते थे!गांवमें खेती बाड़ी के अलावा बहुत काम थे! दर्जनों गायें,बैल भैंसें हुआ करती थीं,जंगल से लकड़ी,जरेंटा, महुआ,तेंदूपत्ता,चारोली,गुली धपरा इत्यादि के काम हम सभी भाई बहिन मिलजुलकर किया करते थे!पिताजी बुजुर्ग होने के कारण केवल मार्गदर्शक की भूमिका में रहे!मां को बहुत काम करना पड़ता था,चूंकि हम सब भाई बहिन अपने हिस्से का काम खुद कर लिया करते थे!इसलिये मां पर काम का बोझ थोड़ा कम हो जाता था!
मैं जब हाई स्कूल पढ़ने शहर गया और बाद में यूनिवर्सिटी गया तो किराये के कमरे में रहा!चूंकि तब शहर में खुद का मकान नही था,अत: एक कमरा किराये पर लिया!चूंकि मकान मालिक हमारे गांव का था,अत: उसने नकद किराया देने की क्षमता न होने पर मुझ पर दया दिखाई और किराए के एवज में मकान मालिक मुझसे उसकी दुकान पर भी काम लेता था! कभी कभी मकान मालकिन को बाजार से सामान ला देता और उनके बच्चों को भी पढ़ा दिया करता था,किंतु खुद के कमरे को चकाचक रखने से और पढ़ाई में हमेशा फ़र्स्ट डिवीजन आने से प्रभावित मकान मालिक ने हमारे गांव में स्थित उसका मकान मेरे निवेदन पर सस्तेमें हमारे पिताजी को दे दिया!
हम जब सरकारी नौकरी में आये,शादी हुई और छोटे भाई को साथ लाये तब ईमानदारी से अपनी ड्युटी करने के बाद,घर पर पत्नी की हर काम में सहायता किया करते थे!अनुज को बड़ा आदमी बनाने की चाहत में घंटों पढ़ाते!मारते पीटते भी थे! वैसे तौ मैंने 6 साल की उम्र से ही गांव स्थित घर में झाड़ू लगाना शुरू किया था!और अभी भी क्रानिक बीमारी के बावजूद,जब कभी काम वाली बाई छुट्टी पर रहती है,तो अधिकांस काम मैं ही करता हूँ! लाकडाऊन में यदि कोई बाई नही आ पाती,तो झाड़ू पोछा मैं ही लगाता हूं!
जब भाई परशुराम स्कूल जाता था या बाद में मेरे बच्चे स्कूल जाते थे,तब उन्हें भी स्कूल के लिये तैयार करने,घर पर पढ़ाने और उनकी यूनीफार्म पर प्रेस करनेका काम मैं ही करता था! उन्हें अद्यतन राजनीति,अध्यात्म दर्शन, सामान्य ज्ञान,वेद,उपनिषद,पुराण और सभी विचारधाराओं से परिचित कराने का काम भी मैने ही किया!
अनुज डॉक्टर परशुराम तिवारी, पुत्र डॉक्टर प्रवीण तिवारी,पुत्री अनामिका और नाती अक्षत मेरी सजग परवरिश के सशक्त प्रमाण हैं! ये सभी मेरी तरह अपने अपने काम खुद कर लिया करते हैं और घर पर भी यथासंभव सहयोग करने से पीछे नही हटते!
मैं लंबे अरसे तक एक विराट राष्ट्रीय यूनियन के विभिन्न पदों पर रहा!राष्ट्रीय पदाधिकारी चुने जाने के उपरांत भी और देशभर में होने वाली लगातार मैराथान मीटिंगों,सम्मेलनों के बावजूद भी, जब लौटकर घर आता, तब एक सप्ताह के तमाम घरेलू पेंडिंग वर्क मैं ही किया करता था दवाईयां,किराना,सब्जी,फल और तमाम बिल भरने का काम मैं ही करता रहा हूँ! अब ऑन लाईन पेमेंट और हट्टी सुपर मार्केट का क्रेडिट कार्ड से लेन दैन बगैरह मेरा नाती अक्षत करने लगा है!
श्रीमती जी के हिस्से में सिर्फ चार काम हैं! एक -मुझे सुबह शाम चाय देना!दूसरा घर के मंदिर में पूजा करना,तीसरा- टीवी चैनल पर एकता कपूर के सीरियल देखना! चौथा -समय समय पर रेस्पैटरी एक्सरसाईज और अस्थमा की दवाइयां लेना! रोटी वाली बाई लाकडाऊन के कारण नही आ रही,इसलिए वह काम भी मेरी बेटी संभाल रही है !
कर्फ्यू या लॉकडाउन न भी हो तब भी मेरे लिये कोई फर्क नही पड़ता! अपने घर के अधिकांस काम मैं खुद करता रहता हूँ ! मैने अपने कपड़े पत्नी से या बच्चों से कभी नही धुलवाए!अभीभी जबकि कपड़े धोने वाली
नही आती,तो वाशिंग मशीन जिंदाबाद! मेरे स्वयं के कपड़े,बैडसीट,रजाई,कंबल के खोल और डाइनिंग कुर्सी के कवर,सोफा कवर बगैरह मैं ही धोता हूँ !
कहने का लब्बोलुआब यह कि माबदौलत पहले भी घर के अधिकांस काम खुद करते रहे हैं और अब भी कर रहे हैं और आइंदा जब लॉकडाऊन कर्फ्यू हट जाएगा और यदि हम कोरोना से बच गये और शरीर साथ देता रहा,तो अपने घर के काम खुद करते रहेंगे!
स्वर्गीय कॉ.वी टी रणदिवे कहा करते थे:-
"जो व्यक्ति अपने कपड़े भी खुद नही धो सकता, घर के काम खुद नहीं कर सकता,जो व्यक्ति पत्नी को नौकरानी समझकर हर काम अपनी पत् छोड़ दे ,वह व्हाइट कॉलर तो हो सकता है,किंतु सच्चा कम्युनिस्ट नही हो सकता !"

अहं ब्रहास्मि

मैने जब बचपन में भगवद गीता पढ़ी तो कुछ नये सवाल खड़े होने लगे! मेंने श्रीकृष्ण के ज्ञान योग,कर्मयोग,सन्यास योग और ईश्वर के द्वारा जीवात्मा के कर्मों का कर्मफल दिये जाने का सिद्घांत तो माना,किंतु उनकी इस घोषणा को अहंकार माना कि:-
"हे अर्जुन इस जग का निर्माता नियंता और संहारक मैं ही हूँ "
बचपन में ही मैने श्रीकृष्ण की स्वीकारोक्ति को अमान्य कर दिया था और उन्हें भगवान मानने से इंकार कर दिया था!हालांकि उन्हें शिव की तरह योगेश्वर मान लिया था! किंतु रिटायरमेंट के बाद जब पुन: वेद,उपनिषद और संहिताओं को ज्यादा गहराई से अध्यन किया और अष्टावक्र गीता पढ़ी, तब समझ में आया कि श्रीकृष्ण सही कह गये हैं!दरसल उनका आसय वेद में वर्णित उस रूपक से समझा जा सकता है कि :-
शरीर रूपी पीपल के ब्रक्ष पर दो पक्षी बैठे हैं, एक कर्मफल को खाता है, दूसरा केवल देखता है,ये जो दूसरा है,वही ब्रह्म है!यदि फल खाने वाला दूसरा पक्षी भी अहंकार शून्य होकर,साक्षी भाव में स्थित हो जाए,तो वह ब्रह्मलीन होकर ब्रह्म स्वरूप को प्राप्त हो जाता है"
अर्थात यदि हम अहंकार शून्य हो जाएं तो हम सभी श्रीकृष्ण ही हैं शिवोहम्,अहं ब्रहास्मि साेह्मअस्मि!!

हिंदू विरोधी हरामियों से पूछा जाए कि क्या उनके बाप जिन्ना ने भारत को आजादी दिलाई?

भारत में कुछ कुपढ़ अपढ़ कूड़मगज लोग पाकिस्तान के आतंकी संगठनों और विश्व इस्लामिक आतंकवाद की भाषा बोलते रहते हैं! वे इस्लामिक आतंक पर कभी एक शब्द नही बोलते ! बल्कि जब कसाब जैसे 20 कसाई मुंबई पर हमला करते हैं, कुछ कट्टर इस्लामिक आतंकी अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करते हैं, कुछ पुलवामा,उरी पठानकोट पर हमला करते हैं, तो ये बदमास बुद्धूजीवी उधर से नजर फेर लेते हैं!
भारत के कुछ जातीय और साम्प्रदायिक संगठन खुद असंवैधानिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं और पकड़े जाने पर आर एस एस,के कुछ पुराने नाम और भाजपा के कुछ नये नामों को हिंदूवादी बताकर सवाल करते हैं कि 'हिंदुओं' ने आजादी की लड़ाई में क्या किया?
हिंदू विरोधी धूर्त बदमाश लोग जिन हिंदू संगठनों और उसके नेताओं के नाम गिनाते हैं,वेशक वे नेता और संगठन आजादी की लड़ाई में शामिल नही हुए! किंतु क्या सिर्फ वही हिंदू थे?
हिंदू विरोधी निक्रिष्ट लोग भूल जाते हैं कि महात्मा गांधी,सरदार पटैल,पंडित मोतीलाल नेहरू,गोखले,रानाडे, विपिनचंद पाल, लाला लाजपतराय,स्वामी श्रद्धानंद,लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, सुभाषचंद बोस, सरोजनी नायडू,गोविंद वल्लभ पंत,डॉ सर्व पल्ली राधाक्रष्णन और आजादी के लिये शीस कटाने वाले करोडों शहीद शुद्ध हिंदू थे!
छद्म धर्मनिरपेक्ष लोग केवल गद्दारों को ही हिंदू मानते हैं! वे यह दुष्प्रचार करते हैं कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में हिंदुओं का कोई सहयोग नही था! इस हिंदू विरोधी हरामियों से पूछा जाए कि क्या उनके बाप जिन्ना ने भारत को आजादी दिलाई?
मैं भी धर्मनिरपेक्षतावादी हूँ,संघ विरोधी हूं! किंतु निर्दोष और मेहनतकश हिंदुओं पर हमला करने वालों को कौम का गद्दार और वतन का दुश्मन मानता हूं!वो चाहे मुस्लिम हो,हिन्दू हो या कम्युनिस्ट हो यदि वह हिंदुओं को टारगेट करेगा,तो उसकी अक्ल ठिकाने लगाने का दायित्व उन सबका है जो सच्चे देशभक्त हैं,सच्चे धर्मनिरपेक्षतावादी हैं

रविवार, 12 अप्रैल 2020

आओ तुम लोगों की मैं ठीक से जमात बनवाता हूँ"..

दो दिन पहले मेरे भाई को (जो कि पुलिस में हैं) सूचना मिली कि किसी मस्जिद में नमाज़ हो रही है, वो वहां कुर्ता पायजामा पहन कर गए.. इमाम ने समझा कि ये मुस्लिम हैं नामज़ पढ़ने आये होंगे, इसलिये उसने उनसे जमात में शामिल होने को बोला
मेरे भाई बोले कि "जब तुम लोगों से मना किया गया कि जमात न बनाओ फिर क्युँ बना रहे हो?".. इमाम साहब समझ गए कि भाई पुलिस हैं मगर मुस्लिम हैं, इसलिये मुस्कुराते हुवे बोले कि "आठ दस लोग थे तो हमने सोचा कि जमात बना लें".. इमाम साहब इस बात से आश्वस्त थे कि ये पुलिस वाला मुस्लिम है तो शायद कुछ नहीं कहेगा
मगर भाई ने उनकी अपेक्षा ने उल्टा वहीं मस्जिद में उनको गाली देनी शुरू की तो इमाम साहब के फाख़्ते उड़ गए.. बाहर खड़े पुलिस वालों को भाई ने भीतर बुलाया और सुताई चालू करवा दी.. भाई ने कहा कि "यहां हम लोग मरे जा रहे हैं दिन रात कि लोग सुरक्षित रहें और तुमको जमात में नामज़ पढ़ने के नशे से छुट्टी नहीं मिल रही है.. आओ तुम लोगों की मैं ठीक से जमात बनवाता हूँ".. कूल्हे लाल करके भाई ने इनकी ठीक से जमात बनवा दी
आप लोग भी अब यही कीजिये.. क्योंकि जगह जगह से ख़बर मिल रही है कि कल शबे बारात में लोग झुंड बना कर क़ब्रिस्तान गए थे.. इसलिए अब जहां कहीं आपको अपने आसपास ही कोई नामज़ के लिए या किसी और वजह से इकट्ठा होता मिले, उसकी तुरंत कंप्लेन कीजिये
अगर आप ये सोचते हैं कि बिना कंप्लेन किये आप अपनी कम्युनिटी को बचा लेंगे तो ये आपकी ग़लतफ़हमी है.. आपकी कम्युनिटी इस धार्मिक भीड़ की वजह से आज नहीं तो कल मारी जाएगी, कोरोना इन सबको निपटा देगा.. इसलिए आजकल इनके कूल्हे पर डंडा इनकी और इनके परिवार की जान की रक्षा सुनिश्चित करेगा
इसलिए अगर आपके आसपास कोई बाहर से आया है.. या आपको भनक भी लगे कि कोई जमाती आपके आसपास है कहीं तो उसे तुरंत पुलिस को बताईये.. ये करके आप अपने और अपने समुदाय की रक्षा करेंगे.. अगर आपने इस वक़्त अपने आसपास धार्मिक सभाएं होने दीं या इन सभाओं की जानकारी छिपाई तो जान लीजिए आप अपनी पूरी कम्युनिटी के साथ साथ देश भर के लोगों को ख़तरे में डाल रहे हैं
अब वक़्त बचा नहीं है.. अब इसी तरह आक्रामक होकर लोगों को बचाना होगा वरना आने वाला समय कितना भयावह होगा ये आप सोच भी नहीं सकते हैं

फेस बुक एकाउण्ट्स को हैकर्स द्वारा क्लोन किया जा रहा है

सभी मित्रों को सूचित कर रहा हूँ कि लगभग सभी फेस बुक एकाउण्ट्स को हैकर्स द्वारा क्लोन किया जा रहा है। वे एक नया फेस बुक एकाउण्ट बनाने के लिए आपकी प्रोफ़ाइल तस्वीर और आपके नाम का उपयोग कर रहे हैं। और फिर कोशिश करते हैं कि आपके दोस्त उस एकाउंट से जुड़ें। आपके दोस्त सोचते हैं कि यह तो आप ही हैं और वह उससे जुड़ जाते हैं। इस के बाद से, वो हैकर्स आपके नाम के तहत जो चाहते हैं वो लिख सकते हैं!!!
मैं चाहता हूँ कि यह आपको पता हो कि मेरे पास नया फेस बुक एकाउण्ट खोलने का अभी कोई कारण नहीं है। इसलिए कृपया ध्यान रखें और मेरे नाम से बने किसी नए FB एकाउण्ट से आने वाली फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकार न करें !!
इस संदेश को अपनी दीवार पर कॉपी कर पेस्ट कर लें, ताकि आपके नाम से बने ऐसे एकाउंट से आई रिक्वेस्ट को आपका कोई मित्र स्वीकार न कर सके.
धन्यवाद

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

!सेक्युलर होना बहुत अच्छी बात है

कुछ मंदमति न तो भारतीय संविधान पढ़ते हैं,न ही उन्हें भारतीय स्वाधीनता संग्राम की सेक्युलर महत्ता का ज्ञान है!और न ही उन्हें लोकतंत्र के बारे में सही ज्ञान है! वे अक्सर इस बात का रोना रोते रहते हैं कि भारत में कुछ पढ़े लिखे हिंदू सेक्युलर क्यों हैं?
उन्हें तो खुश होना चाहिये कि भारत में सब के सब कूड़ मगज धर्मांध और शाखाम्रग नही हैं!उन्हें गर्व होना चाहिये कि कुछ तो हैं जो संविधान और सर्वधर्म समभाव पर अडिग हैं!सेक्युलर होना बहुत अच्छी बात है! यह गर्व की बात है,क्योंकि यही भारतीय संविधान का नीति निर्देशक सिद्धांत है! यदि कोई कहता है कि वह सेक्युलर नही, तो वह भारतीय नही गद्दार है,फासिस्ट है, अमन का दुश्मन है!वेशक अतीत में कुछ अल्पसंख्यक लोग हिंदूओं के खिलाफ रहे हैं और भारत के प्रति उनकी निष्ठा संदेहास्पद रही है,वे जेहाद और दारुल हरम की बात करते रहे हैं! वे ISI और वैश्विक इस्लामिक आतंकवाद के लिये खाद पानी देते रहे हैं! किंतु CAA/NRC ने उन्हें देशभक्त बना दिया,वे अब भारत में रहने के लिये संघर्षरत हैं!याने इस मुल्क से मुहब्बत करने लगे हैं! आमीन!

कोरोना वायरस से लड़ना है तो पूरे भारत में भीलवाड़ा माडल लागू करो..

कोरोना वायरस से लड़ना है तो पूरे भारत में भीलवाड़ा माडल लागू करो........
एक बेसिक प्रिंसिपल है #भीलवाड़ा_मॉडल अब पूरे देश में इसे लागू किया जाना चाहिए ..!!
भीलवाड़ा जिले में कलेक्टर #राजेन्द्र_भट्ट साहब लिस्ट लेकर घूमते थे ..इस घर मे इतने आदमी है और इतनों की #स्क्रीनिग हो गयी ..एक व्यक्ति नहीं छोड़ा पूरे जिले में इन्होंने खुद का परिवार भी शामिल है स्क्रीनिग में ..
कार्य कठिन है ...लेकिन एक #योग्य_कलेक्टर #शानदार_SP और एक #शानदार_ज़िला_चिकित्सा_अधिकारी है सबके पास तो कुछ भी मुश्किल नहीं हैं ..साधन की कमी पे नजर सरकारे रखे ...
मेहनत मांगता है ..सड़को पे पैदल घूमना पड़ेगा अफसरशाहों को ..
बस इतनी हिम्मत करनी हैं ..
और अगर #लिबर_गिरोह.. ज्ञान दे कि भीलवाड़ा में तो 30 लाख की जनसंख्या थी ..#मुंबई #दिल्ली बहुत बड़ी जनसंख्या वाला क्षेत्र है तो ... गियानियों तो यहां #पुलिस और #प्रशासन भी उस प्रकार का होगा न..??
खैर आईये समझा जाये . क्या है ये - #भीलवाड़ा मॉडल ।।??
●भीलवाड़ा के प्रशासन ने 20 मार्च को पहला पॉजिटिव केस मिलने के बाद जो प्लान बनाया, उसकी केंद्र ने भी तारीफ की।।
●यहां 27 में 15 मरीज ठीक होकर घर गए;7 पॉजिटिव की रिपोर्ट निगेटिव आई, केवल 3 संक्रमित बचे ..
कलेक्टर राजेंद्र भट्ट ने #राज्य_सरकार के किसी सरकारी आदेश का इंतजार किए बगैर ही जिले की सभी को 20 #चेकपोस्ट बनाकर सील कर दिया... #राशन_सामग्री की सप्लाई सरकारी स्तर पर करने व जिले के हर व्यक्ति की #स्क्रीनिंग का फैसला किया...
संक्रमण #बांगड़_हाॅस्पिटल से फैला इसलिए सबसे पहले यह पता किया यहां कहां-कहां के मरीज आए... सूची निकलवाई ताे पता चला कि 4 राज्यों के 36 और राजस्थान के 15 जिलाें के 498 मरीज थे। इन सभी जिलाें के कलेक्टर काे एक-एक मरीज की सूचना दी गयी ..
#पाॅजिटिव_केस मिलते ही भीलवाड़ा में कर्फ्यू लगा दिया ताकि लोग घरों में रहने के आदेश के बाद .. #छह_हजार टीमें बना 25 लाख लोगों की स्क्रीनिंग शुरू करा दी .. करीब 18 हजार लोग सर्दी-जुखाम से पीड़ित मिले.. 1215 लाेगाें काे #हाेम_आइसाेलेट कर वहां कर्मचारी तैनात किए.. करीब एक हजार संदिग्धों काे 20 #हाेटलों में क्वारेंटाइन किया...
#नगर_परिषद काे शहर के 55 ही #वार्डाें में दाे-दाे बार #हाईपाे_क्लाराेड 1 प्रतिशत के छिड़काव की जिम्मेदारी दी ..ताकि संक्रमण फैल न सके...
लाेगाें काे परेशानी नहीं हाे इसलिए सहकारी #उपभाेक्ता_भंडार से खाद्य सामग्री की सप्लाई शुरू कर दी .. #राेडवेज_बस बंद करवा दी गयी ... #दूध_सप्लाई के लिए डेयरी काे सुबह-सुबह दाे घंटे खाेला गया ..
हर वार्ड में हाेम डिलीवरी के लिए दाे-तीन किराना की दुकानाें काे #लाइसेंस दिए... #कृषिमंडी काे शहर में हर वार्ड के अनुसार #सब्जियां और #फल सप्लाई के लिए लगाया और यूआईटी काे कच्ची बस्तियाें में सूखी खाद्य सामग्री सप्लाई की जिम्मेदारी दी...
#डाॅक्टर्स की हर 7 दिन में ड्यूटी बदली, 69 में एक भी #पाॅजिटिव नहीं हुआ..
इलाज करने वाले डाॅक्टर्स व #मेडिकल_स्टाफ के लिए हर 7-7 दिन का वर्कआउट प्लान बनाया गया.. 7-7 दिन पूरे हाेने के बाद इनकाे भी 14-14 दिन क्वारेंटाइन किया... अब तक 69 के सैंपल लिए हैं, इनमें कोई पॉजिटिव नहीं मिला।
नतीजा ये कि 27 में 15 मरीज ठीक हाेकर घर जा चुके हैं, 7 पाॅजिटिव से निगेटिव हुए, अब 3 ही पाॅजिटिव बचे हैं...
... डर के आगे जीत है .. एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो ..!!
- जय जय जय हो ..