सोमवार, 31 दिसंबर 2018

*शामली* : गामली,

*करीब के गाँव में दो सहेलियाँ 12 वीं की परीक्षा देने जा रही हैं और चलते हुए आपस में बातें कर रही हैं।*👇
*शामली* : गामली, तू तो बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं करती है।
*गामली* : छोड़ न यार! पास हुए तो फिर 13, 14, 15 वीं की परीक्षा दो और फिर नौकरी वाला पति।
*शामली* : तो ? बढ़िया तो है।
*गामली* : क्या बढ़िया है ? 12 घंटों की नौकरी और तनख्वाह 25-30 हजार। फिर मुंबई-पूना जैसे बड़े शहरों में रहने जाओ। वहाँ किराए का घर होगा जिसमें आधी तनख्वाह चली जाएगी। फिर अपना खुदका घर चाहिए तो लोन लेकर 4-5 मंजिल ऊपर घर लो और एक गुफा जैसे बंद घर में रहो। लोन चुकाने में 15-20 साल लगेंगे और बड़ी किल्लत में गृहस्थी चलेगी। न त्यौहारों में छुट्टी न गर्मी में। सदा बीमारी का घर। स्वस्थ रहना हो तो ऑर्गेनिक के नाम पर 3-4 गुना कीमत देकर सामान खरीदो। और फाइनली वो नौकरी करने वाला नौकर ही तो होगा। तू सारा जोड़ घटाना गुणा भाग करले, तेरी समझ में आ जाएगा।
और अगर परीक्षा में फेल हो गई तो किसी खेती किसानी वाले किसान से ब्याह दी जाउँगी। जीवन थोड़ा तकलीफदेह तो होगा लेकिन वो खुद का सच्चा मालिक होगा और मैं होऊँगी मालकिन। पैसे कम ज्यादा होंगे लेकिन सारे अपने होंगे, कोई टेक्स का लफड़ा नहीं। सारा कुछ ऑर्गेनिक उपजाएँगे और वही खाएँगे। बीमारी की चिंता फिक्र ही नहीं, और सबसे बड़ी बात कि, पति 24 घंटे अपने साथ ही रहेगा।
और सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात " हमारा सारा लोन सरकार माफ कर देगी"।
*शामली* : मैं भी फेल ही हो जाऊँगी रे।

चीत्कार करुण क्रंदन क्यों,?

नेताजी मरणोपरांत जब स्वर्ग को सिधारे,
शहीदों ने उनको प्रेम से गले लगा लिया।
पूछी कुशलक्षेम अमन की अपने वतन की,
कहो वत्स-स्विस बैंक में कितना जमा किया?
ये आग, ये धुआं, चीत्कार करुण क्रंदन क्यों,
इन निर्धनों का झोपड़ा, किसने जला दिया?
वेदना से भीगी पलकें, शर्म से झुकी गर्दन,
अपराध बोध पीड़ित ने, सच-सच बता दिया।
वंदनीय हे अमर शहीदों ! आपके अपनों ने ही
आपकी शहादत का ये घटिया सिला दिया !

धर्मनिपेक्ष लोकतंत्र ही श्रेष्ठतम विकल्प है!

आजाद भारत के संविधान निर्माताओं को कार्ल मार्क्स की शिक्षाओं का ज्ञान था,उन्हें मालूम था कि 'धर्म'-मजहब' के नाम पर सामन्त युगीन इतिहास में किस कदर क्रूर और अमानवीय उदाहरण भरे पड़े हैं। वे इतने वीभत्स हैं कि उनका वर्णन करना भी सम्भव नहीं ! धार्मिक -मजहबी उन्माद प्रेरित अन्याय और उससे रक्तरंजित धरा के चिन्ह विश्व के अनेक हिस्सों में अब भी मौजूद हैं !
अपने राज्य सुख वैभव की रक्षा के लिए न केवल अपने बंधु -बांधवों को बल्कि निरीह मेहनतकश जनता को भी 'काल का ग्रास' बनाया जाता रहा है । कहीं 'दींन की रक्षा के नाम पर, कहीं 'धर्म रक्षा' के नाम पर, कहीं गौ,ब्राह्मण और धरती की रक्षा के नाम पर 'अंधश्रद्धा' का पाखण्डपूर्ण प्रदर्शन किया जाता रहा है। यह नग्न सत्य है कि यह सारा धतकरम जनता के मन में 'आस्तिकता' का भय पैदा करके ही किया जाता रहा है।यह दुष्कर्म तथाकथित नवयुग या वेज्ञानिकता के युग में भी जारी है!
इस क्रूर इतिहास से सबक सीखकर भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारतको एक विशुद्ध धर्मनिरपेक्ष -सर्वप्रभुत्वसम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया, यह भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थिति है।हमें हमेशा बाबा साहिब अम्बेडकर और ततकालीन भारतीय नेतत्व का अवदान याद रखना चाहिए ! उनका शुक्रिया अदा करना चाहिए। भारत के राजनैतिक स्वरूप में धर्मनिपेक्ष लोकतंत्र ही श्रेष्ठतम विकल्प है।

गेहूँ के साथ घुन पिसे बिना कैसे रह सकता है?

वेशक 1984 की हिंसा सर्वत्र निंदनीय है!सज्जनकुमारको आजीवन कारावास मिला! किंतु कार्य कारण का सिद्धांत शाश्वत है!उस के अनुसार सवाल उठता है कि 1984 के सिख विरोधी दंगे हुये क्यों?और इंदिराजी के पागल हत्यारों को'शहीद' किसने बनाया?
विगत शताब्दी के उत्रार्ध में पंजाब के लाखों बेगुनाह हिंदु मारे गये! इस आतंकी हिंसा में सर्वाधिक वामपंथी और कांग्रेसी कार्यकर्ता ही मारे गये थे! इन हत्याओं के लिये कौन जिम्मेदार हैं?और उन हत्यारों के खिलाफ तब इन तथाकथित निर्दोष लोगोंने कभी एक शब्द क्यों नही कहा?भारत को तोड़ने का इरादा रखने वालों और विदेशी ताकतों के हाथों खेलने वालों तथा खालिस्तानिंयों को रुपया और हथियार सप्लाई करने वालों को आज कोई हक नहीं कि वे सज्जनकुमार के आजीवन कारावास पर खुशियां मनाये! जो खालिस्तानी सिख अपने आपको सवा लाख हिंदुओं के बराबर बताये,सज्जनकुमार यदि उसका चैलेंज कबूल करे तो वो दोषी कैसे हुआ? जहां तक सवाल निर्दोषों की मौत का है तो गेहूँ के साथ घुन पिसे बिना कैसे रह सकता है?

हारे को हरि नाम है .

अब न देश -विदेश है ,वैश्वीकरण ही शेष है .
नियति नटी निर्देश है ,वैचारिक अतिशेष है ..
जाति -धरम -समाज कि जड़ें अभी भी शेष हैं .
महाकाल के आँगन में ,सामंती अवशेष है ..
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नए दौर की मांग पर तंत्र व्यवस्था नीतियाँ .
सभ्यताएं जूझती मिटती नहीं कुरीतियाँ ..
कहने को तो चाहत है ,धर्म -अर्थ या काम की .
मानवता के जीवन पथ में ,गारंटी विश्राम की ..
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पूँजी श्रम और दाम है ,जीने का सामान है .
क्यों सिस्टम नाकाम है ,सबकी नींद हराम है ..
प्रजातंत्र की बलिहारी है ,हारे को हरि नाम है .
सब द्वंदों से दुराधर्ष है ,भूंख महा संग्राम है ..

. श्रीराम तिवारी ;

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

मैं जग पालन और तारनहार!

अनवरत वैज्ञानिक अविष्कार!
मोटर-ट्रक जहाज रेल दूर-संचार!!
फितरती मनुष्य की रचनाधर्मिता,
हरयुग में मेरे द्वारा होती रही साकार!
मैं ही जग का सृष्टा सेवक श्रमिक,
मैं ही जग पालन और तारनहार!!
खेतों खदानों राष्ट्र की सीमाओं पर,
आतप बर्षा शीत जंग के मैदान में!
सेवा सुरक्षा सकल संचालन तंत्र में,
वनों में बागों में सौंदर्य के निर्माण में!!
मेरा ही श्रमस्वेद लेता रहता प्रतिपल,
अवनि अंबर गिरि कंदराओं में आकार!
मेरी ही दमित आत्मा होती रहती है,
निरंतर मानवीय सभ्यता में साकार!!
अनगिनत पीरों,पैगम्बरों,अवतारों में,
धर्म मजहब में न मिला अपना कोई !
इसीलिये मानव इतिहास के पन्नों में,
कहीं भी कभी भी मेरा नाम नहीं कोई!!
श्रीराम तिवारी
साहब' के उजबक फैसलों से,
इस मुल्क की आवाम थर्राई है।
अभी मिली पांच राज्योंमें हार से,
उनके चेहरे पर घबराहट छाई है।।
जिन जिन को गलतफहमी थी,
कि होगा विकास-उन्हें बधाई है!
अब तो तोड़ना ही होगी कसम,
विध्वंश की जो उन्होंने खाई है!!

भले-बुरे सब एक से ,जब लों बोलत नाहिं।

कौन आस्तिक है ?कौन नास्तिक है ?यह व्यक्तिगत सोच और आचरण का विषय है। कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति ,समाज ,राष्ट्र या विचारधारा के बारे में यह निर्णय नहीं कर सकता कि अमुक व्यक्ति,अमुक समाज या अमुक विचारधारा वाले लोग नास्तिक होते हैं ! और यह सर्टिफिकेट भी नही बांट सकते कि अमुक व्यक्ति और अमुक विचाधारा के लोग 100% आस्तिक हैं।
इस संदर्भ में संस्कृत सुभाषित बहुत प्रसिद्ध है :-
काक : कृष्ण पिक : कृष्ण,को भेद पिक काकयो :!
वसन्त समय शब्दै : , काक: काक: पिक: पिक: ! !
इसका सुंदर अनुवाद स्वयम बिहारी कवि ने किया है :-
भले-बुरे सब एक से ,जब लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक -पिक ,ऋतु वसन्त के माँहिं ।।
अर्थ :- अच्छा-बुरा ,आस्तिक -नास्तिक सब बराबर होते हैं ,जब तक वे अपने बचन और कर्म का सत् और असत् प्रदर्शन नहीं करते। वसन्त के आगमन पर ही मालूम पड़ता है कि कोयल और कौआ में क्या फर्क है ?
यदि कोई कहे कि मैं 'नास्तिक' हूँ तो मान लो कि वो नास्तिक है,इसमें किसी का क्या जाता है ? और यदि कोई कहे कि मैं तो सौ फीसदी 'आस्तिक' हूँ तो मान लो कि वो है!इससे तुम्हे क्या फर्क पड़ता है ? वैसे भी जो अपने आपको आस्तिक मानते हैं वे सोचें कि आसाराम,राम रहीम,नित्यानंद और तमाम बाबा-बाबियां किस तरह के आस्तिक हैं और यह सारा जगत जानता है।
जबकि गैरी बाल्डी,सिकंदर,जूलियस सीजर ,गेलिलियो ,अल्फ़्रेड नोबल ,आइजक न्यूटन डार्विन ,रूसो,बाल्टेयर एडिसन, नेल्सन मंडेला ,मार्टिन लूथर किंग ,पेरियार, न्याम्चोमस्की और स्टीफन हॉकिंस जैसे लाखों हैं जो अपने जिंदगीभर अपने आपको नास्तिक मानते रहे!
भारतीय हिन्दू दर्शन के अनुसार इस जीव जगत में ऐंसा कोई चेतन प्राणी नहीं जिसमें ईश्वर न हो !यह स्वयम भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है !
ईश्वरः सर्वभूतानाम ह्रदयेशे अर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन सर्वभूतानि ,यन्त्रारूढानि मायया।। ,,[गीता-अध्याय १८ -श्लोक ६१ ]
अर्थ :-हे अर्जुन ! शरीररूप यन्त्रमें आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियोंको अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी मायासे उनके कर्मानुसार भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों में स्थित है। अर्थात ईश्वर सब में है। जो यह मान लेताहै वह आस्तिक है,जो न माने वो नास्तिक है। लेकिन नहीं मानने वाला जरुरी नहीं कि बुरा आदमी हो और मान लेने वाला जरुरी नहीं कि वह अच्छा आदमी ही होगा !वह रिश्वतखोर भी हो सकता है ,वह बदमाश -आसाराम जैसा लुच्चा भी हो सकता है !
जब कोई व्यक्ति कहे कि ''मैं नास्तिक हूँ '' तो उसे यह श्लोक पढ़ना होगा, यदि वह कुतर्क करे और कहे कि मुझे गीता और श्रीकृष्ण पर ही विश्वाश नहीं ,तो उसे याद रखना होगा कि श्रीकृष्ण ही दुनिया के सर्वप्रथम नास्तिक थे। उन्होंने ही 'वेद'विरुद्ध यज्ञ ठुकराकर सर्वप्रथम इंद्र की ऐंसी -तैसी की थी। गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा भले ही रूपक हो ,किन्तु उसी रूपक का कथन यह है कि श्रीकृष्ण ने ही सबसे पहले धर्म के आडम्बर-पाखण्ड को त्यागकर -गायों ,नदियों और पर्वतों को इज्जत दी थी। यदि कोई कम्युनिस्ट भी श्रीकृष्ण की तरह का 'नास्तिक ' है तो क्या बुराई है ?
मैं स्वयम न तो नास्तिक हूँ और न आस्तिक ,मुझे श्रीकृष्ण का गीता सन्देश कहीं से भी अवैज्ञानिक और असत्य नहीं लगा। लेकिन बुद्ध का वह बचन जल्दी समझ में गयाकि 'अप्प दीपो भव'' । बुद्ध कहा करते थे ईश्वर है या नहीं इस झमेले में मत पड़ो ''! कार्ल मार्क्स ने भी सिर्फ 'रिलिजन' को अफीम कहा है ,उन्होंने भी बुद्ध की तरह ईश्वर और आत्मा के बारे में कुछ नहीं कहा। मार्क्सने भारतीय दर्शन के खिलाफ भी कभी कुछ नहीं लिखा। बल्कि मार्क्सने वेदों की जमकर तारीफ की है। उन्होंने ऋग्वेद में आदिम साम्यवाद का दर्शन की खोज की है । उन्होंने ही सर्वप्रथम दुनिए को बताया था कि 'वैदिककाल में आदिम साम्यवादी व्यवस्था थी और उसमें वर्णभेद,आर्थिक असमानता नहीं थी '' तथाकथित आस्तिक हिन्दू [ब्राम्हण पुत्र भी ] वेदों के दो चार सूत्र और मन्त्र पढ़कर साम्प्रदायिकता की राजनीति करने लगते हैं। वे यदि आस्तिक वेदपाठी प्रकांड पण्डित न भी हो किन्तु इस श्लोक को तो याद कर ही ले।
''अन्यनयाश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषाम नित्याभियुक्तानां योगक्षेम वहाम्यहम।। '' [गीता अध्याय ९ श्लोक-२२]
श्रीराम तिवारी

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

तुम आ जाना- मैं वहीं मिलूंगा.

शहीदों का स्थाई पता:-
शस्य श्यामल धरा पर,
पुलकित द्रुमदल झूमते देवदार,
दहकते सूरज की तपन से,
जहां होती हो आक्रांत-
कोमल नवजात कोंपले!
धूल धूसरित धरतीपुत्रों का लहू,
अम्रततुल्य आषाढ़ के मेघ-
की नाईं रिमझिम बरसता हो,
जिन वादियों में और सुनाई दे,
रणभेरी जहां अन्याय के प्रतिकार की
तुम आ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा.......!
देखो जहां भीषण नरसंहार,
सुनाई दे मर्मान्तक चीत्कार-
जलियांवाला बाग का जहां पर!
और शहीदों के सहोदर,
चूमते हों फांसी के तख्ते को,
प्रत्याशा में आज़ादी की-
ज्योति जलती रही निरंतर,
जिनके तेजोमय प्रदीप्त ललाट के समक्ष
-करते हों नमन बंदीजन खग वृंद,
देते धरा पर मातृभूमि को अर्ध्य,
और नित्य होता बेणीसंहार,
निर्मम जहां पर-
कारगिल,द्रास,बटालिक और हिमालय के-
उतंगश्रंग पर ,
तुमआ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा.......!
सप्तसिंधू तटबंध तोड़कर
मिला दे प्रशांत को हिंद महासागर से,
और विगलित हिमनद उद्वेलित,
धरा पर दूषित लहू,निस्तेज शिरायें,
अनवरत करतीं प्रक्षालन विचार सरिताएं,
नेतृत्व राष्ट्र का और विश्व का,
महाद्वीप प्रलयगत प्रतिपल ,
पक्षी नीड़ में,
मनुज भीड़ में,
हो आतप-संताप दोष दुखदारुन
नैतिकता पतित पाताल गत,
मानव मति, गति, क्षतविक्षतहत,
हो मनुज मनुज में नैतिकता विस्तार,
बल पौरुष निरहंकार,
करे जगत जहां सत्य की जय-जयकार
तुमआ जाना -
मैं वहीं मिलूंगा......!
आल्पस से हिमालय तक,
वोल्गा से गंगा तक,
समरकंद से सिंधु के मुहाने तक ,
हड़प्पा मोहन जोदड़ो से लेकर,
आधुनिक संचार क्रांति इंटरनेट तक,
उन्नत तकनीकि युग को विजित कर,
ज़मींदोज़ हुये संपूर्ण युगकालखंड,
पतनशील सभ्यताओं को करता स्वाहा,
निहारता खड़ा इक्कीसवीं सदी के-
उदगम पर,
भयभीत क्रूरकाल नरभक्षी यायावर,
भौतिक सभ्यताओं का सनातन शत्रू,
चले आना दाहिर की चिता पर,
आनंदपुर साहिब-अमृतसर-
की पावन माटी और अटक से कटक तक,
दिखे शक्ति जहां शहादत का अखण्ड तेज,
तुम आ जाना -
मैं वहीं मिलूंगा।
चले आना पानीपत-
वाया कुरूक्षेत्र!
सूंघते हुए लहलहाते खेतों की,
लाल माटी को चूमकर,
चले आना प्रागज्योतिषपुर,
राजपुताना मथुरा,कन्नौज,
प्रयाग-ग्वालियर-कालिंजर
और चले आना तक्षशिला,
विक्रमशिला देवगिरि हम्पी,
फेंकना एक-एक पत्थर वहां-
पुराने कुओं-बावड़ियों में,
सुनाई देगी तुम्हें तलहटी से,
खनकती चीखें इतिहास की!
देखना मर्घट की ज्वाला,
बर्बर जंगखोरों द्वारा धधकती आग में, चीखती ललनाओं की!
करुण क्रन्दन करती चिर उदात्त आहें,
मध्ययुगीन बर्बर सामंतों द्वारा,
पददलित विचार अभिव्यक्ति,
हवा पानी प्रकाश-हताश दिखे जहां पर ,
सुनाई दे बोधि-वृक्ष तले,
महास्थिर बोधिसत्व तथागत की
करुणामयी पुकार,
अप्प दीपो भव,
तुम आ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा........!
नवागन्तुक वैश्विक चुनौतियां,
दुश्चिंतायें, चाहतें नई-नई!
नये नक्शे, नये नाम, नई सरहदें,
नई तलाश-तलब-तरंगे!
काल के गर्भ में धधकती युध्दाग्नि,
डूब जाये-मानवता उत्तंगश्रृंग
हो जाये मानव निपट निरीह नितांत!
रक्ताम्भरा विवर्ण मुख वसुन्धरा क्लांत!
करुणामयी आस लिये,
शांति कपोतों को निहारती हो-
अपलक जहां आशान्वित नेत्रों से,
तुम आ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा........!
दब जाओ पाप के बोझ तले जब,
चुक जायें तुम्हारे भौतिक संसाधन,
अमानवीय जीवन के!
आतंक-हिंसा-छल-छद्म-स्वार्थ,
आकंठ डूबा पाप पंक में कोई,
सुनना चाहे यदि अपनी आत्मा की-
चीख-युगान्तकारी कराह!
और लगे यदि देवत्व की प्यास,
प्रेम की भूख,
चले आना स्वाभिमान की हवा में,
देखना आज़ादी का प्रकाश!
उतार फेंकना जुआ शोषण का,
मिले स्वतंत्रता-समानता-बंधुता जहां पर
और शील सौजन्य करुणा की छांव,
तुम आ जाना-
मैं वहीं मिलूंगा........!
(मेरे प्रथम काव्य संग्रह-अनामिका से अनुदित-श्रीराम तिवारी)

शनिवार, 8 दिसंबर 2018

खेत पै किसानों को शीत लहर सतावे है!

प्रातःमें पसर गये धूल धुंध ओसकण,
पता ही नही कि कब दिन ढल जावे है!
अगहन की रातें ठंडी झोपड़ी में काटते,
खेत पै किसानों को शीत लहर सतावे है!!
कटी फटी गुदड़ी और घास फूस छप्पर ,
आशंका उजाड़ की नित जिया घबरावे है!
भूत भविष्य वर्तमान काल क्षण एक एक,
मौसम शीतलहर का सर्वहारा को सतावे है!!
गर्म ऊनी वस्त्र और वातानकूलित कोठियाँ ,
लक्जरी लाइफ भ्रस्ट बुर्जुआ ही पावे है।

सत्ता उनको ही देनी हो !

वही देश का मालिक है,
जिस हाथ कुदाली छेनी हो !
वो बात खुलासा करनी है,
जो बात सभी के हित की हो!
सामाजिक समरसता हो,
न ऊंच नीच की बैनी हो !
अभिव्यक्ति आजादी हो,
न फासीवाद नसैनी हो!!
धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र हो,
जन गण मन त्रिवेणी हो !
नंगा भूंखा कोई न हो,
न जाति पांत की श्रेणी हो !!
मूल्य आधारित शासन हो,
सर्वहितकारी नीति हो !
समझ जिन्हें हो भले बुरे की,
सत्ता उनको ही देनी हो !!
श्रीराम तिवारी

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

साईं बाबा की जय जय कार !

 साईं  बाबा की जय जय कार !

अंतस ज्योति जलाईयो गुरु विनती बारम्बार !
श्रद्धा सबुरी सबको देना,शिरडी के सरकार !!.... साईं  बाबा की...

सब घट  भीतर खुद को देखूं,निज उर सब संसार !
अलख निरंजन अगम अनामय,महिमा अपरम्पार !!

मैं अहंकार त्रष्णा में डूबा, मेरी डूब रही पतवार !
पतित पावन नाम तुम्हारा,कृपा दॄष्टि अपार  !!

तूँ ही गुरु पिता अरु माता,तूँ ही है पालनहार !
बीच भवर में नाव हमारी,तूँ ही  है खेवनहार !!

एक ही नाम है एक ही रूप है एक ही सृजनहार !
रात अँधेरी विपति घनेरी, रवि शशि तूँ उजियार !!

रोग हरो प्रभु शोक हरो,हरियो विपति  विकार !
लोभ हरो प्रभु क्रोध हरो,हरियो विघ्न अपार!!

शक्ति भक्ति दो ज्ञान विराग दो,हे जग तारणहार !
और भरोसा तुम बिन नाहीं,दीन बंधू अवतार !!

तुम समान दाता नहीं,विपति विदारण हार!
        महिमा तेरी ही रहे,शिरडी के सरकार !!

बुधवार, 28 नवंबर 2018

सोचो कभी ऐंसा हो तो क्या हो?..

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मानलो एम.पी. में कांग्रेस ही जीत रही है! शिवराज बुधनी से हार रहे हैं!अरुण यादव सी.एम.बन रहे हैं ! मान लो कि कमलनाथ, ज्योति सिंधिया और दिग्गी राजा 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली फतह की तैयारी में जुट गये हैं !लोकसभा चुनाव में UPA गठबंधन की जीत होने के बाद राहुल गांधी अपनी मां की तरह पी एम बनने से भी इंकार कर देंते हैं और कमलनाथ,सिंधिया, दिग्गी- राजा किंग मेकर की भूमिका में हैं! शायद इन्ही में से कोई पी एम भी बन जाये,राम लला मंदिर भी बनवा डाले तो देश का क्या सीन होगा? भाजपा और मोदीजी का क्या होगा?चूंकि 2004 में ऐंसा कुछ हो चुका है, और यह भी सच है कि इतिहास अपने को दुहराता जरूर है! और मोदीजी अटलबिहारी से बड़े नेता तो कदापि नही हैं,अत: आइंदा कुछ भी हो सकता है!

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

मेरा देश ,,मेरा देश ,,मेरा देश ,,,आगे बढ़ रहा है!

कोई सिसक रहा है,कोई रो रहा है,कोई इलाज के अभाव में बेमौत मर रहा है! मेरे देश के कल कारखाने और सार्वजनिक उपक्रम उजड़ रहे हैं!क्या बाकई मेंरा देश आगे बढ़ रहा है?
मेरा देश ,,मेरा देश ,,मेरा देश ,,,आगे बढ़ रहा है ,,,,,गरीब की रसोई से धुंआँ हट रहा है ! भारत संचार निगम लिमिटेड के किसी अधिकारी को जब मोबाइल पर रिंग करो तो अक्सर यह देशभक्तिपूर्ण टोन सुनाई देती है।
देश के वर्तमान हालात को देखकर उन्हें अब यह टोन रिकार्ड कर लेना चाहिए :...!
सरकारी स्कूल में माट साहब चुनावी ड्युटी पर हैं,
प्रायिवेट स्कूलों के बच्चे बसों की टक्कर में मर रहे हैं!
पटरियां उखड़ रहीं हैं,डिब्बे इंजिन पलट रहे हैं।
रेल दुर्घटनाओं में लोग बेमौत बेतहाशा मर रहे हैं।।
पहले नोटबंदी के कारण देश में मची रही किल्लत ,
अब आबाल-बृद्ध नर-नारी पेट्रोल डीजल को रोरहे हैं।
बैंक चोट्टे अपना काला पीला रुपया लेकर भाग गये,
माल्या,चौकसी, मोदी नीरव के वारे न्यारे हो रहे हैं!
अंबानी अडानी प्रिय हैं जिन्हें चुनावी चंदे के कारण,
वे पिछले दरवाजे से अपना कालाधन सफेद कर रहे हैं।
डालर और विश्व की करेंसी ऊपर चढ़ रही है,
किंतु भारतीय रूपये के़ भाव सतत लुड़क रहे हैं!
सीमाओं पर मानों जवानों का लहू सस्ता हो गया,
लेकिन सत्ताधारी नेताओं के युद्धक तेवर चढ़ रहे हैं।
कौन कहता है गरीब की रसोई से धुँआँ घट रहा है?
हकीकत में तो गरीब की रसोई में चूहे ही मचल रहे हैं।
यदि बाकई मेंरा देश आगे बढ़ रहा है तो क्यों ,
अंतर्राष्टीय सूचकांक में हम नीचे क्यों गिर रहे हैं।
नोटबंदीजीएसटी जुमलबाजीे चोंचले पाखंड है सब ,
भ्रस्टाचार मेंहगाई बढ़ी है नेता सिर्फ चुनाव लड़ रहे हैं।
श्रीराम तिवारी

खास रिस्तेदार भी ब्लाक कर दिय् गये!

विगत दो साल पहले मेरे फेसबुक फ्रेंड्स की संख्या 5000 हो गई थी!जबकि उस समय तक कुछ परिचित और खास लोग सूची से बाहर थे! उनकी फ्रेंड रिक्वैस्ट स्वीकार करने के लिये मैने सबसे पहले दक्षिणपंथी और साम्प्रदायिक तत्वों को बेदर्दी से निकाल बाहर किया !और इस अभियान में मेरे वे बंधु बांधव और खास रिस्तेदार भी ब्लाक कर दिय् गये जो सत्ता पक्ष के अंध भक्त रहे हैं!इसके अलावा जो निष्क्रिय हैं या कभी कभार कोई देवी देवता की फोटो डाल देते हैं! इसके अलावा वे साफ कर दिये गये जो पढ़ते लिखते कम हैं और कहने को लेखक, प्रगतिशील साहित्यकार हैं !जो सिर्फ हर चीज का विरोध ही करते रहते हैं या लोगों की धार्मिक आस्था पर हमला करने की रौ में मर्यादा ही लॉघ जाते हैं, तार्किक विमर्ष से दूर रहते हैं,उन्हें भी मैने अपनी मित्रता सूची से बाहर कर दिया!आइंदा भी यह प्रक्रिया सतत जारी रहेगी,इसलिये मेरी फेसबुक सूची हमेशा 5000 से कम ही रहेगी!

बुधवार, 21 नवंबर 2018

मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव - २०१३ एवं तत्सम्बन्धी समसामयिक समीक्षा



चुनाव आयोग ने  ५ अक्टूबर २०१३  को   पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों  की  घोषणा कर दी है.तदनुसार  मध्यप्रदेश  विधान सभा की कुल -२३० सीटों के लिए  मतदान  बाबत  अधिसूचना भी जारी कर दी गई है। मध्यप्रदेश में मतदान  का केवल  एक ही चरण होगा याने एक ही तारीख -२५ नवम्बर  को मतदान  सम्पन्न हो जाएगा। चुनावों के अवसर पर विभिन्न दलों और नेताओं के बीच जो जुबानी जंग जारी है उसमें  नया कुछ नहीं है ,नीतियाँ -कार्यक्रम [policy and programme] सिरे से नदारद हैं। केवल चुनाव आयोग की ताकत का एहसास जरुर सभी पक्षों को हो रहा है। यह पहली बार अनुभूत हो रहा है कि टी एन शेषण   का भूत अभी भी चुनाव आचार  संहिता के रूप में अमर्यादित लोगों का पीछा कर रहा है। हो सकता है की चुनाव आयोग के काम -काज में भी कोई खामी हो ,किन्तु उसकी सदिच्छा याने बेहतरीन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनाव सम्पन्न कराने की मंसा  पर शायद ही किसी को शंका हो ! राजनैतिक दलों द्वारा एक  दूसरे  के खिलाफ आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन सम्बन्धी आरोप -प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं , मध्यप्रदेश के इंदौर एयरपोर्ट पर  ही  करोड़ों की नकदी और दीगर स्थानों पर  लाखों रुपयों की तत्संबंधी आपत्तिजनक  सामग्री पकड़ी ही गई है ,इसके अलावा कौन -कहाँ कितना खर्च कर  रहा है या संवैधानिक  सीमाओं का उलंघन कर रहा है ये सब चुनाव आयोग की लाग बुक में इन्द्राज हो  रहा है। ताकि वक्त पर काम आ सके।  इंदौर के   महू विधान सभा क्षेत्र  में चुनरी यात्रा जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान जब  मध्यप्रदेश के नामवर भाजपा  नेता  और उद्दोग मंत्री कैलाश  विजयवर्गीय ने ढोल बजाने वालों को 'नेग' के रूपये बाँटे  तो कांग्रेसियों ने खूब हल्ला मचाया।
                                  बाद में जब एक पत्रकार ने विजयवर्गीय जी से  पूंछा की दतिया के रतनगढ़  माता मंदिर हादसों में मरने वालों के लिए आपकी मध्यप्रदेश  सरकार क्या कर रही है?  तो उन्होंने चुनाव आचार संहिता  को जिम्मेदार बता दिया। उन्होंने  हादसे में मारे गए और घायल हुए श्रद्धालुओं की मदद में  सरकार और प्रशासन द्वारा  हुई देरी पर  चुनाव आयोग की आदर्श आचार संहिता को उसकी खास  वजह बताया।   आक्रोश व्यक्त करते हुए उन्होंने  कहा-  "मैं ऐंसी  आचार संहिता को ठोकर मारता हूँ "  यह वाक्य चुनाव आयोग को भी नागवार  गुजरा और स्वयम कैलाश भाई को भी इस पर  बाद में आत्मग्लानी हुई।  शिकायत के उपरान्त  जब चुनाव आयोग का नोटिश मिला तो  कैलाश जी ने  एक चतुर राजनीतिग्य की तरह  बिना समय गँवाए बेहिचक क्षमा मांग ली. इस दौरान चुनाव आयोग की कसावट के और भी कई  मामले बहु - चर्चित हो रहे हैं।
                        चूँकि मध्यप्रदेश में भाजपा १० साल से काबिज है । एंटी इनकम्बेंसी फेक्टर होना स्वाभाविक है।  आर एस एस का आनुशंगी किसान संगठन  ही  शिवराज सरकार से बेहद खपा है। लगातार कई आन्दोलनो के वावजूद और समझौता वार्ताओं के वावजूद शिवराज किसानो को साधने में असमर्थ  रहे हैं  । प्रदेश के कर्मचारी  भी उनसे खुश नहीं हैं ,मजदूरों का तो ये हाल हैं कि   जब इंदौर स्थित हुकुमचंद कपड़ा मिल के मजदूर १० साल से भाजपा सरकार द्वारा ठगे जा रहे हैं।  तो बाकी प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के मजदूरों की हालात क्या होगी ? प्रदेश का खजाना खाली हो चूका है ,जन-कल्याण के मदों का फंड पार्टी चुनाव में फूंक दिए जाने की खबरें हैं। एन चुनाव के वक्त भी आर बी आई की गारंटी पर ५०० करोड़ रुपयों का  कर्ज लेना पड़  रहा है। केंद्र ने जो फंड विभिन्न मदों में दिए थे वे  भृष्टाचार की भेंट चढ़ गए। सडक -बिजली -पानी -खाद-बीज और क़ानून -व्यवस्था इत्यादि किसी क्षेत्र में शिवराज सरकार  की कोई उल्लेखनीय उपलब्धि नहीं रही। केवल ढपोरशंखी प्रचार  - प्रसार  के दम पर राजनीती की जा रही है। मुख्यमंत्री सहायता कोष और आपदा प्रबंधन कोष  खाली हो चुके हैं। इन विपरीत परिस्थतियों में  भी   शिवराज  तोमर और अरविन्द मेनन   के चेहरे पर शिकन नहीं है।  इसके अलावा भी   भाजपा के कतिपय अन्य  अंदरूनी कारणों से भी पार्टी में घमासान मच हुआ है फिर भी किसी को भी  हैट्रिक बनाने  में  कोई  संसय नहीं  है।  इसके वावजूद भी कांग्रेस  हारती है तो यह उसके राजनैतिक परा भव और दिवालोयापन  के अलावा क्या हो सकता है ?
                                  कांग्रेस चूँकि १० साल  से सत्ताच्युत है इसलिए उसके नव-घोषित सिपहसालार ज्योति सिंधिया  , कमलनाथ और कांति  भूरिया पर  सत्ता प्राप्ति के लिए भारी दवाव है।  यदि इस बार भी मध्यप्रदेश में कांग्रेसी  हारे तो उनकी मुश्किलें और ज्यादा बढ़ती चली  जायेंगी। तब २०१९ में भी राहुल गाँधी को  पी एम् इन वेटिंग   से ही संतोष करना पडेगा।  इसीलिये कांग्रेस की  सत्ता प्राप्ति की कोशिशें  जोरों पर है। जैसा की यह  यह  सर्वविदित है कि  मध्यप्रदेश में कांग्रेस को भाजपा नहीं हराती !कांग्रेस ही कांग्रेस को हरवाती  है।दिग्गी विरोधी कांग्रेसी यदि दिग्विजयसिंह को निपटाने में जुटे  रहते  हैं तो दिग्गी समर्थक भी  चुप नहीं बैठते। किन्तु इस दफा कांग्रेस  को सत्ता के सपने आ रहे हैं इसलिए  बहरहाल अभी तो उनका आपसी युद्ध विराम चल रहा है। दिग्विजय सिंह , कांतिलाल  भूरिया और अर्जुन पुत्र   अजयसिंह और सुरेश पचौरी  को उचित सम्मान तो दूर  चुनाव सम्बन्धी टिकिट वितरण व्यवस्था से ही  दूर रखा गया है। प्रदेश से  दिल्ली में प्रतिनिधित्व करने वाले कांग्रेसी सांसद भी बेहद आहत  और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।  फिर भी ये लोग  अपमान का घूँट  पीकर कांग्रेस और राहुल गाँधी की सेवा में लगे हैं।  ऐंसा लगता है कि  राहुल गाँधी को जचाया गया है कि मध्यप्रदेश में  विगत दो चुनाव  कांग्रेस को दिग्विजय सिंह  के कारण हारने पड़े हैं । यह अर्ध सत्य हो सकता है ! निरपेक्ष सत्य नहीं !!  वास्तव में  राहुल गाँधी  को मध्यप्रदेश में  'संघ परिवार' की ताकत के बारे में  कुछ नहीं  मालूम। यदि मालूम होता तो वे दिग्विजय् सिंह  को कतई  दरकिनार नहीं करते। अपने पैरों पर अपने ही हाथों से कुल्हाडी नहीं मारते। कांग्रेस में दिग्गी राजा ,अजयसिंह और  सत्यबृत  चतुर्वेदी  ही हैं जो संघ से मुकाबला कर रहे हैं. ये कमलनाथ  , सिंधिया,भूरिया ,यादव और पचौरी   तो संघियों  और बाबाओं के घुटने टेकू हैं  जब दिग्विजयसिंह ही  संघ से लड़ते हुए पस्त हो रहे हैं  तो ये नाथ और सिंधिया  क्या खाक  मुकबला कर पाएंगे।
                                               हकीकत  ये है कि मध्यप्रदेश में शिवराज की 'मामागिरी '  या संघ परिवार की 'दादागिरी'  से   भाजपा की जीत नहीं हुआ करती  बल्कि अतीत के संघर्षों में अनेकों कुर्वानियाँ देकर जनता ने ही  कांग्रेस को सत्ता से बाहर  किया है ।  यह बात जुदा है कि  किसी बेहतर  धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक  विकल्प के  अभाव  में भाजपा के हाथ ये  सत्ता की बटेर लग गई।  इसमें  पुरातन जनसंघ और 'संघ' का भी योगदान  रहा है।   स्वर्गीय राजमाता  विजय राजे सिंधिया ,कुशा  भाऊ ठाकरे ,अटल बिहारी  बाजपेई ,कैलाश सारंग ,कैलाश जोशी  सुन्दरलाल पटवा  और उमा भारती जैसे विराट नेतत्व  का विशेष  योगदान  है। आडवाणी  की रथ यात्राओं   और 'मंदिर-मस्जिद' विवाद  का भी विशेष योगदान है।  अब शिवराज  'जन -आशीर्वाद यात्रा' निकालें या घर बैठें  रहें -जीत भाजपा की ही  होनी है।  क्योंकि  आर एस एस   ने  प्रदेश के अधिकांस बूथ एडवांस में ही  केप्चर कर लिए हैं। कांग्रेस के पास  मुख्य मंत्री बनने  के लिए -दिग्विजयसिंह  , कमलनाथ ,कान्ति  भूरिया , ज्योति सिंधिया , अजयसिंह ,सुरेश पचौरी ,मानक अग्रवाल ,रामेश्वर नीखरा  असलम शेरखान   , गुफराने आजम  बाला बच्चन तथा अरुण यादव  जैसे  लगभग एक  दर्जन बेहतरीन नेता हैं और ये शिवराज सिंह चौहान  या नरेन्द्रसिंह तोमर से तो बेहतर ही हैं,जनता का बहुमत भी  कांग्रेस के साथ है  किन्तु  वह वोट की शक्ल में नहीं बदल सकता। क्योंकि  कांग्रेस के पास 'संघ' जैसा बेसिक केडर  नहीं है।  अधिकांस  बूथों पर बिठाने के लिए कार्यकर्ता या एजेंट ही नहीं हैं ।  क्यों नहीं  हैं ये  भी रोचक ब्यथा-कथा  है। कांग्रेस ने  मध्यप्रदेश पर लगभग ५० साल शासन किया है , प्रादेशिक  नेताओं ने अपने घर भरे , ऐयाशी की और दिल्ली आला कमान की चापलूसी की। पार्टी और कार्यकर्ताओं को कंगाल कर दिया। कांग्रेस के कार्यकर्त्ता आजादी के  दौरान भी ठगे गए और देश आजाद हुआ तो अपनों ने भी धोखा ही दिया  अधिकांस  तो बृद्ध हो गए या इस दुनिया में ही नहीं हैं  ,नया कोई अब भूखें रहकर  या जेब से खर्च कर  पुराने कांग्रेसियों  की तरह  पोलिंग बूथ पर संघियों के हाथों पिटने  को तैयार नहीं है।
                                            उधर  भाजपा  कार्यकर्ताओं को संघ कार्यकर्ताओं के बहाने विशेषाधिकार  प्राप्त है.वे अपनी बात 'संघ'  के  माध्यम से  'नागपुर' या 'दिल्ली'  पहुँचाने में सक्षम हैं। संघ के कार्यकर्ता वेशक  कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की तरह 'अनाथ' नहीं हैं। इसीलिये भाजपा  को  - मध्यप्रदेश में २०१३ के   विधान सभा चुनाव में  'मामा' शिवराज या 'पी एम् इन वेटिंग ' नरेन्द्र मोदी के कारण नहीं बल्कि 'संघी 'कार्यकर्ताओं को पार्टी से मिले सम्मान के कारण - अधिकांस पोलिंग बूथ पर जीत हासिल होगी। इन्ही कार्यकर्ताओं की वजह से 'संघ' चाहे तो किसी "लकड़ी" के खम्बे को भी मुख्य् मंत्री घोषित कर दे  तो भी  सरकार भाजपा की ही बनेगी।  शिवराज के  कुराज और मोदी की फेंकिग न्यूज से चुनाव नहीं जीते जा सकते।  भले ही वे श्रेय  लेते रहें।  ज्योति सिंधिया और कमलनाथ या राहुल गाँधी कितना भी जोर लगा दें किन्तु वे कांग्रेस की सरकार मध्यप्रदेश में नहीं बना पाएंगे।  शिवराज सरकार की असफलता के कारण कांग्रेस की सीटें  बढेंगी इसमें कोई संदेह नहीं। कांग्रेस को आगामी  लोक सभा चुनाव  में मध्यप्रदेश से बेहतर  रिस्पांस भी  मिल सकता है किन्तु अभी तो मध्यप्रदेश में उसे विपक्ष की भूमिका से  ही संतोष करना होगा। उसे चुनाव जीतना है तो अपने ग्रास रूट लेविल के कार्यकर्ताओं का सम्मान  करना होगा ,  उनके हितों की हिफाजत करने का हुनर 'राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ ' से सीखना होगा।  ये काम राहुल गाँधी नहीं कर सकते। क्योंकि जिनसे सीखना है उन दिग्गी राजा को हासिये पर बिठा रखा है। कांग्रेस में ' आर एस एस' को  दिग्विजय सिंह से ज्यादा कौन  जानता है ?
                              विभिन्न सर्वे में भाजपा को कांग्रेस से कुछ ही सीटों  की बढ़त बताई गई है। किन्तु ये सर्वे जिन वर्गों-कतारों से लिए जाते हैं वे तो  माध्यम वर्गीय कट्टरपंथी  बहुसंख्यक कतारों  या शिक्षित वर्ग के ही हैं जो 'नमो ' प्रेरित  या संघ  प्रायोजित हैं । कांग्रेस का जनाधार  इससे भी   बढ़ा  है , अशिक्षित ,किसान , मजद्दूर  , अल्पसंख्यक ये  कांग्रेस का परम्परागत जनाधार है किन्तु कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और साधनों के अभाव  में वोट बेंक में परिणित नहीं हो पायेगा । अभी तक तो  यही असलियत है मध्यप्रदेश  में  कांग्रेस  की ।  फिर भी शिवराज चौकन्ने हैं तो कोई तो खास बात है !  
                         तीसरे मोर्चे ने भी हर बार की तरह  इस बार भी निहायत अनमनेपन से इन चुनावों में अपनी   संभावित  उपस्थिति दर्ज कराने  की तैयारी शुरू कर  दी  है। हालाँकि  इस तीसरे मोर्चे और वाम मोर्चे की ताकत देश के अन्य प्रान्तों  के सापेक्ष  मध्यप्रदेश में कुछ कम है। किन्तु प्रदेश  का  चुनावी इतिहास बताता है की कांग्रेस या  भाजपा भले ही यहाँ एक-दुसरे के विकल्प बन बैठे हैं  लेकिन  इन दोनों ही पार्टियों का वोट %सत्ता में आने के समय भी ३५% से ज्यादा कभी नहीं रहा।  भारतीय लोकतंत्र की यह अजब बिडम्बना ही है कि  अल्पमत वाला दल तो शासन करे और  बिखरा हुआ  बहुमत विपक्ष के रूप में   ही बैठा रहे । इस २५   नवम्वर -२०१३  के   मतदान में भी यही  इतिहास दुहराया जाने वाला है।  तीसरे मोर्चे से वेफिक्र कांग्रेस और भाजपा इस चुनावी द्वंद में फायनल तो २५ नवमबर को खेलेंगे  ही किन्तु उससे पहले के सेमी फायनल में वे अपने-अपने दलों के भीतर ही  एक- दूसरे  को मात देने,टांग खींचने  और राजनैतिक केरियर  खत्म करने  के काम में जुटे हैं। इन हालत में जबकि  सत्तारूढ़ भाजपा को  भीतरघात के साथ  एंटी इनकम्बेंसी फेक्टर का भी  भय है ,  तो दूसरी ओर  शिवराज को सी  बी आई ,इनकम टेक्स  तथा केन्द्रीय एजेंसियों के मध्यप्रदेश में  छापों का  भय जरुर सता रहा  होगा ! सिंधिया और राहुल  के कारण युवाओं में कांग्रेस के प्रति रुझान बढ़ा है ,मोदी के कारण अल्पसंख्यक वोट  भी थोक के भाव कांग्रेस के खाते में जा सकते हैं ,आदिवासियों और दलित वर्ग ने भी अभी तक कांग्रेस को छोड़ा नहीं है  इन हालात में चुनाव परिणाम का ऊँट  किस करवट  बैठेगा कुछ कहा नहीं जा सकता !
                           वैसे  तो अधिकांस राजनैतिक दलों ,राजनैतिक मोर्चों और अलायन्स में आपसी मतभेद और वैचारिक मतभिन्नता होना कोई विचित्र बात नहीं है। यह तो प्रजातांत्रिक प्रणाली का शाश्वत स्वभाव है। इसका होना उतना नकारात्मक  या आपत्तिजनक नहीं जितना वैचारिक  रूप से कंगाल होकर किसी भी एक व्यक्ति या विचारधारा का अंध  समर्थक बन जाना।  किन्तु जब कोई राजनैतिक  पार्टी ,नेता या विचारधारा ये दावा करे कि  वो निहायत अनोखा ,निर्बाध ,निरापद कालजयी  और 'पार्टी बिथ  डिफ़रेंस' है तो दुनिया  की  घातक  नज़रों का सामना भी उसे ही करना होगा। मध्यप्रदेश भाजपा पर उसके  राष्ट्रीय  नेतत्व की आपसी फूट  का सर्वाधिक नकारात्मक असर परिलक्षित हुआ है.आसन्न विधान सभा चुनाव में जब ये आलम हैं तो आगामी लोक सभा चुनाव में क्या हालत होगी ? मध्यप्रदेश के भाजपा नेता  भी  अभी तक दिग्विजयसिंह की प्रशाशनिक चूकों का भय दोहन ही करते आ रहे हैं।  वे अब ज्योतिरादित्य  सिंधिया को भी सामन्तवाद या महाराजा वाद से जोड़ने में  जुट गए हैं। ऐंसा करते वक्त वे अपनी पार्टी भाजपा की संस्थापक सदस्या स्वर्गीय विजयाराजे सिंधिया को भूल जाते हैं। वे भूल जाते हैं की राजस्थान में उनकी नैया खेवनहार इसी राजसी खानदान में उत्पन्न भरतपुर की भूतपूर्व महारानी वसुंधरा राजे सिंधिया हैं। अपनी आसन्न विजय के मद में वे अपने दामन पर लगे दागों को छिपाने के  लिए एक सनातन सूत्र का इस्तेमाल करते हैं कि "ऐंसा तो कांग्रेस   भी कर रही है या करती आई  है ".  लेकिन वे यह भूल जाते हैं की वे "पार्टी  बिथ  डिफ़रेंस " हैं.
                                        भाजपा और संघ परिवार  के  नेतत्व  में तो इतना  भी  माद्दा नहीं है कि  कांग्रेस और उसके हमसफर  शरद पंवार या स्वर्गीय चन्द्रशेखर की तरह सीना ठोककर  कहे कि  'इस राजनैतिक  हम्माम में हम  सभी नंगे  हैं ' या  प्रकाश करात  और ए  बी वर्धन  की तरह  कहेंगे कि  पूँजीवादी -अर्ध सामन्ती व्यवस्था तो तमाम बुराइयों की जड़ है ही ,  जो  इस व्यवस्था  का प्रतिनिधित्व करेंगे वे दूध के धुले होंगे यह कैसे संभव है ?  या अन्ना हजारे ,केजरीवाल भी  भक्तिकालीन संतों[वर्तमान पाखण्डी  संतों या स्वामियों की  तरह नहीं की धन सम्पदा और   यौन शोषण में बदनाम हैं ] की तरह उपदेश देंगे कि   'दुनिया में अच्छाई -बुराई सबमें समान रूप से विद्द्य्मान है , हमें औरों की अच्छाई से मतलब रखना चाहिए और बुराइयों से संघर्ष करने का सामर्थ पैदा करना चाहिए।  याने -सार-सार को गहि रहे ,,,, थोथा देय  उड़ाय,,,,!  संघ परिवार और भाजपा को अपने जिस चाल-चरित्र-चेहरे पर नाज हुआ करता था वो कम से कम इन विधान सभा चुनावों में और  प्रमुखतः  मध्यप्रदेश में तो वेहद बदरंग और डरावना हो चूका है। इस संकट से भाजपा नेतत्व वाकिफ है इसलिए संघ के निर्देशन में  तय हुआ है कि  हर हालत में इन विधान सभा चुनावों में जीत हासिल की जाए   ताकि  मोदी के नेतत्व में  आगामी लोक सभा चुनाव में  सम्मानजनक स्कोर खड़ा कर केंद्र की सत्ता हासिल करने   का मार्ग प्र्शश्त  हो।                                   लेकिन यह इतना आसान नहीं है. देश में जो  राजनैतिक दल -अपनी चाल -अपना चेहरा और चरित्र का बखान कभी नहीं करते वे -  छोटे-छोटे समूहों में विभक्त होने के वावजूद भाजपा और कांग्रेस से अलहदा होते हुए भी  यूपीए और एनडीए की सत्ता के असली सूत्रधार हुआ करते हैं। जो केंद्र  की सरकार बनाते समय बहुत कीमती हो जाया करते हैं।  ये विभिन्न राजनैतिक समूह  सनातन तक सत्ता से  बाहर  रहने  के लिए अभिशप्त नहीं हैं।  मध्यप्रदेश में भले ही इनकी ताकत  बिखरी हुई होने से  अलिखित रूप में केवल भाजपा वनाम कांग्रेस का दो पार्टी सिद्धांत  काम कर रहा है किन्तु जब लोक सभा चुनाव होंगे और त्रिशंकु संसद बनेगी तब  तो भाजपा और कांग्रेस को इन मामूली  सी संख्या वाले-तथाकथित तीसरे मोर्चे वालों और वाम मोर्चे वालों की ही  शिद्दत से जरुरत महसूस होगी। वेशक ! ऐंसे  ही  राजनैतिक दल और नेता  जो 'दूध में धुले 'होने का दावा नहीं करते काफी टिकाऊ  और जिताऊ किस्म के हुआ करते हैं। भले ही उनकी संसदीय या विधान सभाई ताकत सीमित ही रहा करती  हो। कमसे कम   वाम मोर्चे में टिकटों और सत्ता के लिए इस तरह की मारा - मारी तो   नहीं होती। एक बार पार्टी का फैसला हुआ कि  सभी को मानना ही है चाहे फिर वे ज्योति वसु ही क्यों न हों जो बहुत  नेक ,बहुत बड़े नेता  हुआ करते थे किन्तु पार्टी ने  प्रधान मंत्री बनने  का आदेश नहीं दिया तो नहीं बने। सोमनाथ दा  लोक सभा अध्यक्ष होते हुए एटमी करार पर  जब पार्टी लाइन से विचलित हुए तो माकपा ने उन्हें  भी बाहर का रास्ता दिखाने में ज़रा भी देर नहीं की। इन दिनों भाजपा और कांग्रेस में अनुशाश्हीनता चरम पर है किन्तु भाजपा में केवल मोदी और कांग्रेस में  केवल राहुल ही हैं जो असहाय नहीं  हैं शेष सभी नेता  अपने -अपने इन सुपीम कमांडर्स के अनुचर मात्र रह गए हैं। यह  प्रवृत्ति  इन दोनों ही दलों के अधिनायक वाद  की ओर अग्रसर होने की निशानी है।  यह विचारधारओं  का नहीं व्यक्तियों के विमर्श का दौर है जो भारतीय लोकतंत्र की गरिमा और बहुलतावाद के अनुरूप कदापि नहीं है.
                                                      भारतीय जनता पार्टी को गुमान था कि   वह  'पार्टी बिथ  डिफ़रेंस 'हैं और कांग्रेस महानालायक लोगों का कोंद्वाड़ा  है. किन्तु इन दिनों जो उठा- पटक ,खींच-तान और कुकरहाव भाजपा में राष्ट्रीय स्तर  पर और विभिन्न प्रान्तों में  मचा हुआ है  वो  कांग्रेस के अंदरूनी घमासान से भी कई गुना  आत्महंता और लज्जास्पद  है। चूँकि कांग्रेस ने कभी दावा नहीं किया कि   'उसकी  कमीज सबसे ज्यादा सफ़ेद है '  या उसके  डी एन ऐ  का समबन्ध  राजा हरिश्चन्द्र,शिवि ,दधीच  तथा साक्षात् मर्यादा पुरषोत्तम भगवान् राम  के वंशजों से है। इसलिए कांग्रेस में टिकटों ,पदों और नेतत्व की होड़  आपस की खींचतान को  उसके मूल  चरित्र याने 'सत्तालोलुपता' से जोड़कर ही देखा जाना चाहिए।   इसी   कारण  से  वर्तमान दौर की राजनीती में दिग्विजय जैसे दिग्गज भी कांग्रेस की बिसात के हासिये पर हैं। उन्हें बड़ी ही अपमान जनक स्थति में कांग्रेस के उन नेताओं का अनुचर बना दिया गया है जो सिद्धांत या विचारधारा  का ककहरा भी नहीं जानते।  इतने घोर अपमान और क्रत्घनता को सहन करते हुए भी दिग्गी  राजा यदि कांग्रेस को मजबूत करने में लगे हैं और भाजपा पर आक्रमण करने में लगे हैं तो यह उनकी सैधांतिक प्रतिबद्दता है जिसकी तारीफ़ की जाने चाहिए।
                                       किन्तु जिन्हें देव तुल्य जन -आराधना की लालसा है ऐंसे  भाजपाइयों और संघियों   को इस तरह टिकटों के लिए,पदों के लिए ,सत्ता सुख  के लिए , अपनी ही पार्टी के लोगों की गोपनीय चरित्रावली- मीडिया में उजागर करने ,प्रतिश्पर्धी  पार्टी याने कांग्रेस  के कार्यालय तक  पहुंचाने में  अब देशभक्ति का एहसास होने लगा है ।  भाजपा  सरकार के   हितग्राहियों के  अंदरूनी काले कारनामें  - केंद्र सरकार ,आयकर विभाग ,एन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट तथा सी बी आई  के पास बिना भाजपा के ही विभीषणों या जयचंदों  के पहुँच पाना असम्भव है। मध्यप्रदेश भाजपा में ब्लाक स्तर  से लेकर प्रदेश स्तर  तक इन मीरजाफरों,जयचंदों की  भरमार है।  जो  राजनीती   के दलाल पहले कांग्रेस के साथ थे वे अब  विगत  १० साल से भाजपा और संघ परिवार की  थाली में जीम रहे हैं. न केवल जीम रहे हैं अपितु शान से उसमें छेद  भी कर रहे हैं।आधुनिक भाजपाइयों का यह रूप 'राष्ट्रवादी ''  भाजपा के चाल-चेहरे और चरित्र से मेल नहीं खाता।
                                    ऐंसा नहीं है की सभी भाजपाई फील गुड में हैं , कुछ भाजपाईयों  को  आशंका है की मध्यप्रदेश में शायद  पुनः कांग्रेस की  ही सरकार बनने  जा रही है. इसीलिये  भाजपा सरकार से 'बेजा स्वार्थ' साधने वालों ने अभी से कांग्रेस में  जमावट    शुरू कर दी है। इनमें वे नेता और कार्यकर्ता भी हैं जो उमा के सहयोगी या शुभचिंतक रहे हैं। इनमे वे लोग भी हैं जो शिवराज के शाशन में उपेक्षित रहे हैं ।   इनमें  - नेता ,कार्यकर्ता और मतदाता कुछ भी हो सकते हैं।  वैसे  मध्यप्रदेश की  राजनैतिक प्याली में सत्ता संघर्ष का तूफ़ान  तभी  से आना  शुरू हो चूका था जब  २००२-२००३  के दरम्यान हुबली [कर्णाटक हाई  कोर्ट] न्यायालय के निर्देश पर  तत्कालीन  मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती को  जबरन हटाकर बाबूलाल गौर  को मुख्या मंत्री बनाया गया  था। सुश्री उमा भारती ने  टूटी-फूटी भाजपा और लंगडाते -लुलाते तत्कालीन दींन -हीन पस्त भाजपा नेताओं -कार्यकर्ताओं में प्राण फूंककर सत्ता वासना का संचार किया था।  उन्होंने दिग्विजय सिंह को 'मिस्टर बंटाढार'प्रचारित कर मध्यप्रदेश से कांग्रेस और दिग्गी राजा का लंबा वनवास सुनिश्चित कर दिया था। अब यदि शिवराज और उनके संगी साथी पकी पकाई खीर  खाते रहें  ,उमा को  और उनके समर्थकों को दुत्कारते रहें  तो यह सच्चरित्रता और हिंदुत्व वादी आदर्श तो कतई  नहीं है।  उमा भारती ने ही २००३ में   दिग्विजयसिंह  के  नेतत्व में चल रही तत्कालीन   मध्यप्रदेश की   कांग्रेस को बुरी तरह  सत्ता से उखाड़ फेंका था। नैतिकता और आदर्श के लिए उमा की बलि ले ली गई और  जब बाबूलाल गौर को सत्ता मिली तो उन्हें भी  सत्ता का   मद चढने लगा। तब  भाजपाई इंतजाम-अलियों - प्रमोद महाजन , अनंतकुमार,पटवा  और कैलाश  विजयवर्गीय ने संघ परिवार और  अटल - आडवाणी  को साधकर शिवराज की ताजपोशी  करवाई थी।
                                 शिवराज सिंह चौहान को २००८  के विधान  सभा चुनाव में उमा से ज्यादा सफलता नहीं  मिली  कांग्रेस की ताकत ही  बढ़ी और  ५४ सीट से ७१ हो गईं। कांग्रेस शायद जीत भी जाती यदि दिग्विजय सिंह का नकारात्मक इतिहास और सुरेश पचौरी की जड़ता -  उनका और कांग्रेस का  पीछा नहीं करते ।  अब  नवम्बर   २०१३ के विधान सभा चुनावों में शिवराज का नेतत्व  असल कसौटी पर है । टिकिट वितरण ,चुनाव संचालन , उम्मीदवार चयन और प्रचार -प्रसार के लिए असीम अधिकारप्राप्त  और अकूत संपदा के स्वामी अब केवल मध्यप्रदेश में शिवराज ही  हैं।  लेकिन मध्यप्रदेश के अधिकांस  भाजपा कार्यकर्ता मोदी की केंद्र में ताजपोशी  के लिए जितने  उत्साहित हैं उतने  मध्यप्रदेश में शिवराज  को मध्यप्रदेश का तीसरी बार मुख्य मंत्री बनाने  के लिए  सक्रीय या  उत्साहित  नहीं हैं। यदि खुदा न खास्ता कांग्रेस  का सिंधिया कार्ड काम  कर  गया , उमा की उपेक्षा और राहुल की सक्रियता से लोधी बहुल बुंदेलखंड शिवराज से नाराज  होता चला गया  , मोदी भय से अल्पसंख्यक  वोटों का  ध्रुवीकरण  तेज हुआ और वसपा -मायावती का दलित कार्ड मध्यभारत में  नहीं चल पाया  और कांग्रेस की ओर मुड़  गया तो  मध्यप्रदेश में कांग्रेस  बराबर की टक्कर भी दे सकती है।  उलट  फेर का  चमत्कार भी हो सकता है।  गैर भाजपा और गैर कांग्रेस के धर्म निरपेक्ष मतों  का ध्रुवीकरण कांग्रेस की ओर हो सकता है।  त्रिशंकु विधान सभा भी बन सकती है।ऐंसी  स्थति में स्वाभाविक है कि  इस बार  शिवराज  का राजनैतिक अस्तित्व भी दाव  पर लगा हुआ है।
                                                   नरेन्द्र मोदी से जुड़े मध्य प्रदेश के नेता इस स्थति में  अपने   राजनैतिक समीकरण संशोधित कर सकते हैं। कुछ तो  इन विधान सभा चुनावों से परे आगामी लोक सभा चुनावों के सन्दर्भ में राजनैतिक क़दमों को साध रहे हैं। पूर्व उमा समर्थक और प्रदेश के वर्तमान कद्दावर  नेता कैलाश विजयवर्गीय  को घेरने में कांग्रेस और शिवराज दोनों ही लगे हुए हैं। जबकि  कैलाश   विजयवर्गीय  का  सही  मूल्यांकन  कर उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देकर संघ और  भाजपा   न केवल मध्यप्रदेश विधान सभा वरन आगामी लोक सभा चुनाव भी आसानी से जीतकर केंद्र में नरेन्द्र मोदी  के नेतत्व में एनडीए सरकार बनवा  सकती है। जबसे नरेन्द्र मोदी बनाम आडवाणी द्वन्द का सूत्रपात हुआ है और इस द्वन्द की वजह से सुरेश सोनी को जाना पडा तबसे कैलाश विजयवर्गीय को  घेरने वाले लोग उत्साहित हैं। भैयाजी जोशी के आगमन से कैलाश जी के प्रति अरविन्द मेनन ,  नरेन्द्र तोमर ,सुमित्रा महाजन और शिवराज का गुट कैलाश जी के कदम रोकने में व्यस्त है।२००८ में उन्हें  महू की सीट पर विधान सभा  चुनाव लड़ने को बाध्य करना  भाजपा में उनके   'शुभचिंतकों ' का फैसला  था। ओस दफा -२०१३ के विधान सभा चुनाव में भी भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश जी के प्रति जरा ज्यादा ही 'मेहरवान'हैं।   किन्तु  कैलाश  विजयवर्गीय के सितारे बुलंद हैं ,वे  जमीनी नेता हैं औ- र  कठिनाई में भी विचलित नहीं होते।  यदि वे इस बार   विधान सभा चुनाव नहीं लड़ते तो  ज्यादा ताकतवर होकर उभरेंगे। तब सुमित्रा महाजन ,शिवराज और तोमर को कैलाश जी की जरुरत अवश्य महसूस होगी।
                        श्रीराम तिवारी 

सरकारी क्षेत्र की असफलता के मूल कारण -

कारण नंबर एक -

 सड़क किनारे दो मजदूर पौधा रोपण कर रहे थे।  एक मजदूर गढ्ढे खोदे जा  रहा  था और दूसरा मजदूर बिना पौधा लगाए ही  गढ्ढों को वापिस भरता  जा रहा था।  कौतूहलवश किसी राहगीर  ने पूँछा  - भाई यह क्या कर रहे हो ? मजदूरों का  जबाब मिला - पौधा रोपण कर रहे हैं।  राहगीर ने फिर पूंछा -किन्तु पौधे तो कहीं भी नजर नहीं आ रहे ? पहला  मजदूर बोला -नगरनिगम ने सड़क किनारे पौधा रोपण की योजना चलाई है। ओवरसियर साहब ने इस साईट पर  तीन मजदूरों को काम पर भेजा है ।  पौधा रोपण की जिम्मेदारी जिस  मजदूर  को  दी गयी है , उसे  आज   बड़े साहब [चीफ इंजीनियर] की मेडम ने  बंगले पर साफ़-सफाई के लिए बुलाया लिया है। मेरा काम  सिर्फ  गड्ढा खोदना ही  है ,सो मैं खोदे जा रहा हूँ।  मेरे इस दूसरे  साथी का काम गड्ढे भरना है अतः बिना पौधा रोपे  ही  ये  गड्ढे भरे जा रहा है। हम तीनों को जो अलग-अलग काम दिया गया है, यदि  हम  उसमें कुछ फेर-बदल  करते हैं तो 'साहब लोग'  हमें सस्सपेंड कर देंगे। 

कारण नंबर दो -

    विगत शताब्दी के छठवें -सातवे दशक में भारत  की तत्तकालीन इंदिरागांधी सरकार ने 'गरीबी हटाओं' के नारे लगवाये। निजी क्षेत्र के  बैंकों  और बीमा का राष्ट्रीयकरण किया। राजाओं के प्रीवी  पर्श समाप्त किये। सरकारी और पब्लिक सेक्टर को खूब पाला  पोषा।  वैसे तो आजादी  के फ़ौरन बाद से ही जमींदारों-पूँजीपतियों   और काले-अंग्रेजों की औलादें नौकरशाही में  घुस चुकीं थीं । किन्तु  भारतीय  संविधान लागू होने के बाद जातीय  आधार पर आरक्षण वालों को सरकारी क्षेत्र में धड़ाधड़ नौकरियां  दीं गयीं ।  हालाँकि नेता पुत्र ,मंत्री पुत्र और अफसर पुत्र तो  परम्परा से  ही इस भारतीय अफसरी क्षेत्र में अपनी पकड़  बनाये हुए थे किन्तु तबतक अंग्रेजों के 'अनुशासन' की कुछ चमक उनमें शेष  थी। वेशक हर दौर में  कुछ मेरिट वाले भी अपनी वांछित नौकरी पाने में सफल होते रहे हैं। किन्तु ज्यों-ज्यों  आजादी की उम्र बढ़ती गयी त्यों-त्यों भारतीय अफसर शाही भृष्टतर और मक्कार होती चली गयी।  पहले तो अफसरों ने  राजनीति  को भृष्ट किया बाद में राजनीति ने पूरे सिस्टम को ही महा भृष्ट बना डाला।

कारण तीन -  भारत में जिन दिनों सोवियत संघ के सहयोग से भिलाई स्टील प्लांट की स्थापना की जा रही थी ,उन दिनों बहुत से सोविएत वैज्ञानिक और इंजीनियर  दुर्ग,भिलाई ,जबलपुर बोकारो और भोपाल में अपनी सेवाएं देने आया करते थे। एक बार वे  पिपरिया से पचमढ़ी जा रहे थे।  रास्ते में एक जगह उन्होंने देखा कि  सड़क किनारे टेलीफोन के खम्बे पर एक अधनंगा आदिवासी चढ़ा हुआ है। उस खम्बे के चारों ओर  चार-पांच  हष्ट-पुष्ट 'सभ्रांत'  लोग घेरा बनाकर उस आदिवासी की ओर  देख रहे थे। खम्बे से कुछ दूर एक साइकिल ,एक लेम्ब्रेटा ,एक बुलेट ,एक जीप  और एक पुरानी  मडस्रीज कार खड़ी थी।

  सोवियत संघ से आये उन इंजीनियर्स में से एक ने टूटी-फूटी  अंग्रेजी-मिश्रित हिन्दी में इन लोगों से पूंछा -यहाँ क्या हो रहा है  कॉमरेड !  खम्बे के पास खड़े लोगों को कुछ समझ नहीं पड़ा। किन्तु एक सज्जन कुछ -कुछ अंग्रेजी  जानते थे उन्होंने उनकी बात समझ ली। और उत्तर दिया कि 'हम लोग टेलीफोन डिपोरमेंट से आये हैं चूँकि टेलीफोन लाइन खराब ही सो हम लोग फॉल्ट  निकाल रहे हैं "सोवियत डेलीगेट्स ने पूंछा - वो जो  खम्बे पर चढ़ा है वो कौन है ? जबाब मिला - ठेका मजदूर है ! फिर पूंछा गया -ये  मैली  कुचेली खाकी  वर्दी वाला जो बार-बार तार खींच रहा है और औजार  वगेरह दे रहा है वो कौन है ? जबाब मिला लाइनमेन  ! फिर पूंछा गया की वो साइकिल  पकड़कर खड़ा है वो कौन है ? जबाब मिला -मेकेनिक ! [तब टेलीकॉम डिपार्टमेंट में टीटीए या जीटीओ नहीं  बल्कि मेकेनिक और सुपरवाइज़र ही हुआ करते थे ]फिर पूंछा गया कि वो जो लेम्ब्रेटा पर अपना पिछवाड़ा टीकेए हुए यहीं वो कौन हैं ? जबाब मिला फोन इंस्पेक्टर ! फिर  भी उत्सुकता नहीं मिटे तो पूँछ  लिया कि  वो जो काली मोटर साईकिल  के पास खड़े हैं वो कौन हैं ? जबाब मिला ईएसटी ! इससे पहले कि  सोवियत डेलीगेट आगे कुछ  पूंछता वहाँ  जीप  के पास खड़े  सज्जन ने खुद ही अपना परिचय दे दिया - सब डिविशनल  इंजीनियर  ! साथ ही कार की ओर  इशारा करते हुए कहा कि  वो हमारे बड़े साहब हैं -डिविजनल इंजीनियर !

  सोवियत संघ से आये हुए इंजीनियरों को इस घटना ने इतना उद्द्वेलित किया कि  वे  टेलीफोन  फाल्ट निकाल रहे भारतीय दल  पर तंज कैसे बिना नहीं रह सके। उनका रूसी मिश्रित अंग्रेजी न्होंने इसका जिक्र
 
        उस जमाने में  खम्बे पर चढ़ने वाले मजदूर को ३ रुपया रोज मिलता था।

                     

                           

                       

इसे कहते हैं सच्ची भड़ैती!

निजीक्षेत्र समर्थक सरकार और उसके अंध भक्तों को नही दिखता कि देशके सार्वजनिक उपक्रम,सरकारी अस्पताल,सरकारी स्कूल सब विनाश के कगार पर हैं! लेकिन केंद्र या राज्य में यदि कांग्रेस या वामपंथ की सरकार होती तो बाबा रामदेव,अन्ना हजारे,चाटुकार गोदी मीडिया और तमाम स्वार्थी तत्वों को वो सब दिखता,जो आज उन्हें कहीं नही दिख रहा है!इसे कहते हैं सच्ची भड़ैती!

मोदी जी बोले-बीरबल तानसेन रीवा के थे !

रीवा की आम सभा में मोदीजी ने एक और धांसू कमाल किया!मोदी जी बोले-बीरबल तानसेन रीवा के थे ,तब  एक युवा बोला- 'तानसेन ग्वालियर के और बीरबल आगरा के थे सर जी! किन्तु भक्तों की जुझारू भीड़ ने किशोर को डपट दिया -चोप वे ! जब मोदी जी ने बोला है की ये दोनों रीवा के थे,तो थे! तूं ज्यादा समझदार मत बन,चुपचाप बैठ वर्ना....! क्या भारत का इतिहास अब ऐंसा ही लिखा जायेगा?

बढ़ती उम्र पर Dr.जॉर्ज कार्लिन की सलाह !


( एक अद्भुत संदेश - अंत तक जरूर पढ़ें! नहीं तो आप अपने जीवन का एक दिन गवाँ देंगे।)
कैसे बने रहें - चिरयुवा
1. फालतू की संख्याओं को दूर फेंक आइए। जैसे- उम्र, वजन, और लंबाई। इसकी चिंता डॉक्टर को करने दीजिए। इस बात के लिए ही तो आप उन्हें पैसा देते हैं।
2. केवल हँसमुख लोगों से दोस्ती रखिए। खड़ूस और चिड़चिड़े लोग तो आपको नीचे गिरा देंगे।
3. हमेशा कुछ सीखते रहिए। इनके बारे में कुछ और जानने की कोशिश करिए - कम्प्यूटर, शिल्प, बागवानी, आदि कुछ भी। चाहे रेडियो ही। दिमाग को निष्क्रिय न रहने दें। खाली दिमाग शैतान का घर होता है और उस शैतान के परिवार का नाम है - अल्झाइमर मनोरोग।
4. सरल व साधारण चीजों का आनंद लीजिए।
5. खूब हँसा कीजिए - देर तक और ऊँची आवाज़ में।
6. आँसू तो आते ही हैं। उन्हें आने दीजिए, रो लीजिए, दुःख भी महसूस कर लीजिए और फिर आगे बढ़ जाइए। केवल एक व्यक्ति है जो पूरी जिंदगी हमारे साथ रहता है - वो हैं हम खुद। इसलिए जबतक जीवन है तबतक 'जिन्दा' रहिए।
7. अपने इर्द-गिर्द वो सब रखिए जो आपको प्यारा लगता हो - चाहे आपका परिवार, पालतू जानवर, स्मृतिचिह्न-उपहार, संगीत, पौधे, कोई शौक या कुछ भी। आपका घर ही आपका आश्रय है।
8. अपनी सेहत को संजोइए। यदि यह ठीक है तो बचाकर रखिए, अस्थिर है तो सुधार करिए, और यदि असाध्य है तो कोई मदद लीजिए।
9. अपराध-बोध की ओर मत जाइए। यदि कोई भूल चूक या जाने अनजाने अपराध हुआ हो तो मन ही मन तौबा कीजिये!
10. जिन्हें आप प्यार करते हैं उनसे हर मौके पर बताइए कि आप उन्हें चाहते हैं; और हमेशा याद रखिए कि जीवन की माप उन साँसों की संख्या से नहीं होती जो हम लेते और छोड़ते हैं बल्कि उन लम्हों से होती है जो हमारी सांस लेकर चले जाते हैं
जीवन की यात्रा का अर्थ यह नहीं कि अच्छे से बचाकर रखा हुआ आपका शरीर सुरक्षित तरीके से श्मशान या कब्रगाह तक पहुँच जाय। बल्कि आड़े-तिरछे फिसलते हुए, पूरी तरह से इस्तेमाल होकर, सधकर, चूर-चूर होकर यह चिल्लाते हुए पहुँचो - वाह यार, मजा आ गया क्या शानदार यात्रा थी?💐

'देशभक्त' और ईमानदार !

इस भारत भूमि पर ऐंसे करोड़ों नर-नारी हैं जो परफेक्ट 'देशभक्त' और ईमानदार हैं, किन्तु वे किसी खास नेता या मंत्री के चमचे नहीं हैं और अंधभक्त भी नहीं हैं। वे देश के और सर्वहारा वर्ग के हितों की क्रुतसंकल्पित हैं ! जिस तरह केवल सेना की वर्दी पहिंन लेने से ही कोई देशभक्त नहीं हो जाता। जिस तरह खाकी वर्दी पहिंन लेने मात्र से कोई भ्रस्ट रिश्वतखोर पुलिस वाला नहीं हो जाता ! खाकी वर्दी में भी देशभक्त और नेक इंसान हो सकते हैं। इसी तरह केवल भगवा वस्त्र धारण करने,मंदिर - मस्जिद विवाद खड़ा करने,धार्मिक कर्मकांड करने ,दाड़ी रखने, बहुत सारे धर्मग्रन्थ पढ़ने से कोई आस्तिक नहीं हो जाता। बल्कि खाली पेट उघारे बदन खेतों -खलिहानों और निर्माण क्षेत्र में पसीना बहाने वाले किसान-मजदूर भले ही गीता- वेद -पुराण,कुरआन या बाइबिल न पढ़ते हों, वे मंदिर-मस्जिद -गुरुद्वारा भी न जाते हों, किन्तु यदि वे अपना व्यवसायिक कर्म पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करते रहते हैं तो दुनिया में उनसे बड़ा कोई आस्तिक कोई नहीं हो सकता !

मेरा देश ,,,आगे बढ़ रहा है!

कोई सिसक रहा है,कोई रो रहा है,कोई इलाज के अभाव में बेमौत मर रहा है! मेरे देश के कल कारखाने और सार्वजनिक उपक्रम उजड़ रहे हैं!क्या बाकई मेंरा देश आगे बढ़ रहा है?
मेरा देश ,,मेरा देश ,,मेरा देश ,,,आगे बढ़ रहा है ,,,,,गरीब की रसोई से धुंआँ हट रहा है ! भारत संचार निगम लिमिटेड के किसी अधिकारी को जब मोबाइल पर रिंग करो तो अक्सर यह देशभक्तिपूर्ण टोन सुनाई देती है।
देश के वर्तमान हालात को देखकर उन्हें अब यह टोन रिकार्ड कर लेना चाहिए :...!
पटरियां उखड़ रहीं हैं,डिब्बे पलट रहे हैं।
रेल दुर्घटनाओं में लोग बेतहाशा मर रहे हैं।।
नोटबंदी के कारण देशमें मची रही किल्लत ,
आबाल-बृद्ध नर-नारी बेमौत मर रहे हैं।
बैंक चोट्टे अपना काला पीला रुपया लेकर भागे,
माल्या,चौकसी,अंबानी,अडानी के वारे न्यारे हो रहे हैं!
बाकी जो सरकार को प्रिय हैं चुनाव चंदे के कारण,
वे पिछले दरवाजे से अपना कालाधन सफेद कर रहे हैं।
डालर और विश्व की करेंसी ऊपर चढ़ रही है,
किंतु भारतीय रूपये के़ भाव सतत लुड़क रहे हैं!
सीमाओं पर मानों जवानों का लहू सस्ता हो गया,
लेकिन सत्ताधारी नेताओं के युद्धक तेवर चढ़ रहे हैं।
कौन कहता है गरीब की रसोई से धुँआँ घट रहा है?
हकीकत में तो गरीब की रसोई में चूहे ही मचल रहे हैं।
यदि बाकई मेंरा देश आगे बढ़ रहा है तो क्यों ,
अंतर्राष्टीय सूचकांक में हम नीचे क्यों गिर रहे हैं।
नोटबंदीजीएसटी जुमलबाजीे चोंचले पाखंड है सब ,
भ्रस्टाचार मेंहगाई बढ़ी है नेता सिर्फ चुनाव लड़ रहे हैं।
श्रीराम तिवारी

सोमवार, 19 नवंबर 2018

यह विचारधारा की पराजय नहीं !

कल सायंकाल इंदौर विधान सभा क्षेत्र नंबर -2 में शाम को सत्तारूढ़ पार्टी के एक धीर वीर गंभीर और चिर युवा उम्मीदवार गाजे बाजे के साथ मेरे द्वार पर पधारे! उन्होंने मेरे और मेरी पत्नी के पैर छुये !चूंकि हम जानते हैं कि वे यकीनन जीतेंगे और यह नग्न सत्य भी है,अत: सौजन्यतावश हमने उन्हें आशीष दिया-विजयी भव! हालांकि वे वर्षों से बखूबी जानते हैं कि मैं उन्हें वोट नही देता! मैं जिन्हें वोट देता हूँ वे लगातार हारते आ रहे हैं! किन्तु यह विचारधारा की पराजय नहीं,अपितु पूंजीवादी भ्र्स्ट सिस्टम का कमाल है कि  ईमानदार और कक्रान्तिकारी  साथी हार जाते हैं और पूँजीवादी साम्प्रदायिक तत्व धड़ल्ले से जीत जाते हैं !चू्कि यह सिद्धांत की बात है और वर्गीय चेतना का भी सवाल है कि वामपंथी साथी संसाधनों की कमी के बावजूद कम से कम चुनाव तो लड़ ही लेते हैं !वैसे भी बिना लड़े हथियार डालना कायरता है! इसलिये जय पराजय की परवाह न कर हम CPI/CPM के उम्मीदवार को ही वोट करते हैं!बाज मर्तबा यदि ये खड़े नही होते तो किसी अन्य धर्मनिर्पेक्ष या लोकतांत्रिक दल के उम्मीदवार को भी वोट करते हैं! हर बार की तरह इस बार भी हम लाल झंडे को { इस बार कॉ. रुद्रपाल यादव} को वोट करेंगे!

आजादी के बाद !

त्यौहारों की चहल पहल बनी रहती है,
इस शहर में अक्सर आधी रात के बाद।
लगातार उगलते रहते हैं जहर फिजा में,
धूल धुअाँ धुंध वाहन गुजर जाने के बाद!!

लगा रहता सड़कों पर जाम आपातकाल,
कभी दुर्घटना नोटबंदी आधी रात के बाद!
सुनाई देता चीत्कार जीएसटीका फर्मान और
कभी बैंकोंका रुदन लुटेरे भाग जानेके बाद!!
कभी हो जातीं हैं रेलगाडियाँ खुद बेपटरी,
मर जाते हैं सैकड़ों जन आधी रात के बाद।
खूब तरक्की हुई है नेता पूंजीपति खुशहाल,
खूब असमानता भी बढ़ी है आजादी के बाद !!
लाखों कुर्बानियों से मिल सकी थी आजादी,
वो खतरे में है समरसता खो जाने के बाद।
श्रीराम तिवारी

रविवार, 18 नवंबर 2018

रूठों को मनाना भी तो उन्हें नहीं आता .

बुरा बक्त किसी का बतलाकर नहीं आता।
किया गया कुछभी कभी बेकार नहीं जाता।।
दूध के फट जाने पर दुखी होते हैं नादान ,
शायद उन्हें रसगुल्ला बनाना नहीं आता।
न जाने खुदा क्यों देता है उनको खुदाई इतनी,
कि उन्हें अपने सिवा कुछ और नजर नहीं आता।।
बहारों का असर अब भी बहुत है फिजाओं में,
बदकिस्मत हैं कि गुलों से यारी निभाना नहीं आता।
वेशक किसी से कोई गिला शिकवा न हो उन्हें,
लेकिन रूठों को मनाना भी तो उन्हें नहीं आता ।।
खुदा की रहमत से बुलंदियों पर मुकाम है उनका,
लेकिन जमीं पर पाँव ज़माना तब भी नहीं आता।
वे क्या खाक करेंगे नेतत्व,नवनिर्माण और विकास,
जिन्हें सेठोंकी चाकरीके सिवा कुछ नजर नहीं आता।।

गुरुवार, 15 नवंबर 2018

संचार क्रांति का युग :- नवयुग उत्तर आधुनिक,

-
नवयुग उत्तर आधुनिक,
तकनीकी उत्कर्ष ।
'फेक -वर्चुअल' पर टिका,
जग व्यवहार विमर्श ।।
गूगल ट्विटर फेसबुक ,
इंटरनेट संचार।
सर्च इंजन में छुपा,
आभासी संसार।।
क्रांति दूरसंचार की,
कम्प्यूटर उथ्थान ।
मोबाईल सिम हो चुकी,
व्यक्ति की पहचान ।।
वे नर हो गये हुक्मरां
जाने गुणा न भाग ।
आतंकी भी सीख गए
डिजिटल एनालॉग।।
पुलिस तंत्र को भेदकर,
सक्रिय हैं हैकर्ष।
हाई टेक अपराध भी ,
होने लगे सहर्ष।।

खास हुआ कागज कलम,
ब्रॉड बेंड अब आम।
लेपटॉप पर लिख रहे,
पंडित कवि 'श्रीराम'।।

सोमवार, 12 नवंबर 2018

गरीब सवर्ण कोभी अंबानी या टाटा ही समझते हैं!

इस देश के कुछ लोग एक तरफ तो सवर्णों को पानी पी पीकर कोसते रहते हैं,वे गरीब सवर्ण कोभी अंबानी या टाटा ही समझते हैं!दूसरी ओर किसी पिछड़े वर्ग या दलित वर्ग के व्यक्ति का कलैक्टर कमिश्नर हो जाने पर भी आरक्षण रूपी वैशाखी की खातिर खुद को अनंतकाल तक दलित,पिछड़ा और निम्नजाति का ही मानते रहना कहाँ तक उचित है? इस तरह से तो भारत में जातिवाद खत्म होने के बजाय और ज्यादा मजबूत ही होगा!इस तरह की मानसिकता से कोई भी ऊपर कैसे उठ सकता है? दलित पिछड़े होने का सबूत-देकर और जाति प्रमाणपत्र केनाम पर-आरक्षण का लाभ लेकर कोई ऊंचा कैसे उठ सकता है?
राजनीतिक पटल पर भी जो लोग इस या उस जाति के नाम पर चुनाव लडते़ रहते हैं वे भले ही हारें या जीतें किंतु ये सब लोकतंत्र और संविधान के दुश्मन हैं!बाबा साहिब ने यह सपना नही देखा था कि शोषित दमित जन अनंत काल तक आरक्षण की बैशाखी के सहारे औरों के गुलाम ही बने रहें!

शनिवार, 10 नवंबर 2018

वह सिर्फ रोटी से खेलता है-Dhumil

#धूमिल: हिंदी कविता का एंग्री यंगमैन
हिंदी कविता के एंग्री यंगमैन-सुदामा पांडे जो हिंदी साहित्य जगत में धूमिल के नाम से मशहूर हुए,जिनकी कविताओं में आजादी के सपनों के मोहभंगकी पीड़ा और आक्रोश की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति मिलती है.व्यवस्था जिसने जनता को छला है,उसको आइना दिखाना मानों धूमिल की कविताओं का परम लक्ष्य रहा है.इसलिए उन्होंने कहा-
"क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है, जिन्हें एक पहिया ढोता है या इसका कोई मतलब होता है?"
धूमिल का जन्म वाराणसी के पास खेवली गांव में हुआ था.धूमिल का जन्म नौ नवंबर, 1936 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के खेवली गांव में माता रसवंती देवी के गर्भ से हुआ था.३८ वर्ष की अल्पायु में ही ब्रेन ट्यूमर से उनकी मृत्यु हो गई.उनके परिजन रेडियो पर उनके निधन की खबर सुनने के बाद ही जाना कि वे कितने बड़े कवि थे.
धूमिल के जीवित रहते 1972 में उनका सिर्फ एक कविता संग्रह प्रकाशित हो पाया था- संसद से सड़क तक. ‘कल सुनना मुझे’ उनके निधन के कई बरस बाद छपा और उस पर 1979 का प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार उन्हें मरणोपरांत दिया गया. बाद में उनके बेटे रत्नशंकर की कोशिशों से उनका एक और संग्रह छपा- सुदामा पांडे का प्रजातंत्र.आज उनके जन्मदिन पर उनकी इस लोकप्रिय कविता को याद करें------
एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं
यह तीसरा आदमी कौन है
और मेरे देश की संसद मौन है…
आज उनके जन्मदिन पर #शत_शत_नमन

कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत*


मार्क्सवाद वर्ग संघर्ष के लिए सर्वहारा में स्वयं में वर्ग के बाद स्वयं के लिए वर्ग की चेतना के विकास को प्राथमिकता देता है।
पूंजीवादी व्यवस्था में एक तरफ पूंजीपति वर्ग की तो दूसरी तरफ सर्वहारा वर्ग की निर्णायक भूमिका को स्वीकार करता है।
पूंजीवादी व्यवस्था में लाभ पाने वाले छोटे बड़े कई वर्ग ,संघर्ष में पूंजीपति वर्ग के पक्ष में चले जाते हैं या उनके चले जाने की अधिक संभावना रहती है।
इस व्यवस्था मै शोषण दमन के शिकार सर्वहारा के अतिरिक्त छोटे बड़े दूसरे वर्ग भी होते हैं किन्तु वह कुछ देर से सर्वहारा वर्ग के नेतृत्व में संघर्ष करने के लिए तैयार होते हैं।
छोटा और मझोला किसान सर्वहारा का सबसे अच्छा दोस्त होता है।
खुद सर्वहारा और निम्न मध्यम वर्ग के अनेक ऐसे भी होते हैं जिनका चारित्रिक पतन इतना अधिक हो जाता है कि वह लंपट बन कर पूंजीपति वर्ग के लिए काम करने लगता है।यह पूंजीपति वर्ग के फेंके हुए टुकड़ों पर पलता है और मजदूरों पर आक्रमण करने,नेताओं की हत्या करने ,हड़तालों के समय अराजकता फैलने का काम करता है।
कुछ पूंजीवादी पार्टियों की सरकारें इन पर काफी खर्च करती हैं।
पूंजीपति वर्ग ने जिस सामंत वर्ग को सत्ता से बेदखल किया उसकी बहुत सी संताने पूंजीपतियों की लठैत बन जाने को अपना सौभाग्य समझ ती हैं।यह भी लम्पटों की कतार में खड़ी हो जाती हैं।
बीते दिनों के सामंतों की अधिकतर संताने तो पूंजीपतियों के यहां उनकी नौकरी करती हैं और इस तरह सर्वहारा बन जाती हैं।