शुक्रवार, 31 मार्च 2023

स्वधर्मे निधनम् श्रेय....पर धर्मो भयावह..."

 क्या ये संभव था कि बुद्ध शाक्य रहते हुए अपने वंश की धार्मिक परंपराओं को मानते हुए"बुद्धत्व" प्राप्त कर लेते? ये छोड़ना क्यूं ज़रूरी था बुद्ध के लिए? क्यूं ज़रूरी था कि वो एकदम नई यात्रा पर निकलते सत्य की खोज में? क्यूं नहीं वो किसी ऋषि या मुनि से योग या वैसी कोई दीक्षा ले कर महल में बैठ कर ही "बुद्धत्व" पा लेते?

अपने कभी सोचा है कि आप का सम्पूर्ण "व्यक्तिव" क्या है? जैसे मैं अगर श्रीराम तिवारी हूँ ,तो मैं कौन हूँ? दरअसल श्रीराम तिवारी कुछ भी नहीं सिवाए मेरे अतीत और भूत की "याद" या "स्मृति" के.. ! श्रीराम तिवारी वो है जो फ़लाने का बेटा है.. वो फलां जगह पैदा हुआ.. फलां स्कूल में पढ़ा और फलां धर्म मानता है.. बचपन से लेकर अब तक कि जितनी स्मृतियां हैं, वो मुझे श्रीराम तिवारी बनाती हैं.. अगर किसी तरह से मेरी याददाश्त चली जाय तो मैं ख़ुद भूल जाऊंगा कि मैं कौन हूँ.. आपको मुझे याद दिलाना पड़ेगा कि श्री तुम्हें याद है,हम और तुम वहां साथ जाते थे, उस स्कूल में साथ पढ़ते थे?"..
अगर मुझे यह याद न आया तो मेरे लिए मेरा ही वजूद ख़त्म होगा ही,आपके लिए भी श्रीराम का वजूद ख़त्म हो जाएगा.. क्यूंकि फिर आप जब मुझसे मिलेंगे तो तो नए आदमी से मिल रहे होंगे जिसके पास श्रीराम की कोई याद नहीं होगी.. आप चाहते हुए भी ताबिश को दुबारा नहीं पाएंगे !
हमारा अतीत और हमारी यादें ही हमें हमारा "व्यक्तित्व" होती हैं.. इसको बड़े पैमाने पर देखें और समाज के परिपेक्ष्य में देखा जाएं तो हर समाज,जाति, धर्म और पंथ का भी अपना एक व्यक्तित्व होता है जो उसके "अतीत" से बनता है.. मुसलमान समाज मतलब वो जो चौदह सौ साल पहले आये पैग़म्बर और उनकी किताब को मानता हो.. उस समाज से "पैग़म्बर" और उनकी किताब का "अतीत" अगर आप ग़ायब कर देंगे तो वो समाज मुस्लिम समाज नहीं होगा, वो कुछ दूसरा हो जाएगा.. ऐसे ही हिन्दू और ऐसे ही अन्य धर्मों के समाज का अपना अतीत है और वही उस समाज का "व्यक्तित्व" बनता है!
सत्य की खोज का प्रथम चरण होता है उस "अतीत" से छुटकारा.. जितनी गहराई से आप अपने अतीत से छुटकारा पाएंगे उतनी जल्दी आप सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ेंगे.. आपने देखा होगा कि अगर आप किसी गुरु के पास जाते हैं और उसके शिष्य बनते हैं तो वो आपको एक नया "नाम" देता है.. एक नए तरह के कपड़े आपको पहनाएगा.. ये सारी कवायद आपको उस अतीत से बाहर ले जाने की होती है..मगर अगर आप सारी उम्र पूजा करते रहे हैं और आपका वो गुरु भी आपको बस पूजा का नया ढंग बता कर एक नए देवी या एक नए देवता को आपको पकड़ा देता है तो अतीत से छूटने की सारी कवायद बेमानी हो जाती है.. एक ढोंग होता है बस.. उस से ज़्यादा नहीं!
बुद्ध के ऊपर बोध प्राप्ति से पूर्व अनेक हिंदू जैन साधु संत योगी जनों के प्रछन्न ज्ञान का प्रभाव ऑलरेडी था!इसीलिए बुद्ध उसी पुरातन परंपरा का अनुगमन करते हुए अपने शिष्यों,भिक्खुओं को नया नाम देते थे.. नए कपड़े देते थे.. उनके रहन सहन का सारा ढंग बदल देते थे,कहने को वे अपने अतीत से छूट गये थे,किंतु वे संस्कृत शब्दों को पाली प्राकृत में बदलने के अलावा नया कुछ नही करते थे!
चूंकि नया संदेश मानव समाज को अपनी और आकर्षित करने में कारगर होता है अतएव उन्होंने चतुराई से धार्मिक भाषांतरण पर ज्यादा जोर दिया! चूंकि गौतम सिद्धार्थ एक प्रतिष्ठित क्षत्रिय राजकुमार थे,अत: उन्हें क्षत्रिय राजाओंका सहज सानिध्य मिलता चला गया! जो भी वैदिक सनातनी आस्तिक उनके पास आता था तो उस से कहते थे कि "कोई ईश्वर नहीं है".जब कोई नास्तिक आता था तो उसे ईश्वर के बारे में बताते थे..जो व्यक्ति ये मान रहा होता था कि ईश्वर है भी और नहीं भी,उसके सामने ईश्वर के सवाल पर बुद्ध मौन हो जाते थे..ताजुब है कि भगवान आदि शंकराचार्य के अवतरण से पूर्व वैदिक आर्यों ब्राह्मणों को बुद्ध और उनके अनुयाईयों की इस बौद्धिक बाजीगरी का पता नही चला!
बुद्ध दावा करते थे कि उनका काम था आपको अतीत की मान्यताओं से छुटकारा दिलाकर बोध कराना,"जाग्रत" करना.. ये बहुत ज़रूरी होता है सत्य की खोज के लिए.. दरसल यह जरूरी है आपको कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर लाने के लिए!
बुद्ध के मतानुसार अगर आप पंडित घर में पैदा होकर आध्यात्मिक हैं तो उसके "बुद्धत्व" पाने की संभावना न के बराबर है ! इसका आशय यह भी है कि मुसलमान यदि मुसलमान घर में पैदा होकर मुसलमान बने रहते हुए "सूफ़ी" बनता है तो उसके "बुद्धत्व" पाने की संभावना नगण्य है.!
उनके परिवर्ति कट्टर बौद्ध अनुयायों ने इस मिथ का खूब प्रयोग किया ! योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा है:-
"स्वधर्मे निधनम् श्रेय....पर धर्मो भयावह..."
दुनिया का जो भी शख्स अपने मूल धर्म से कट कर दूसरों के बहकावे में आकर वो बस खेलेगा एक पंथ से दूसरे पंथ की अंधेरी सुरंगों में! थोड़ी बहुत विचारधारा का दांव पेंच.. बस.. उसके बाद सत्य खोजने की संभावना "नगण्य" हो जाती हैं! जो "बौद्ध" पैदा होते हैं वो कुछ ज़्यादा कमाल नहीं कर पाते हैं क्योंकि बुद्धिज़्म उनके लिए उनका "कंफ़र्ट ज़ोन" होता है..जो सिद्धार्थ पैदा होते हैं उनके बुद्ध बनने की संभावना बहुत बड़ी होती है और सिद्धार्थ केवल सनातन संस्कृति याने वैदिक दर्शन में ही जन्म लेते हैं!

कठमुल्लावाद

 हिंदुओं ने सैकड़ों साल पहले गंगा जमुनी तहजीव अपनाकर अपने नाम गजबसिंह, अजबसिंह,इकबालसिंह,उम्मेदसिंह,हिम्मत सिंग,फतेहसिंह जासमीन रख लिये! बड़े फक्र की बात यह है कि ये आधे मुस्लिम और आधे हिंदू नाम को मिलाकर सेक्युलर नाम खुद पंडितों ने ही रखे!

किंतु मुस्लिम समाज में कठमुल्ले तो दूर बल्कि जो धर्मातरण कर हिंदू से मुस्लिम बना,उसे भी हिंदू नाम नही रखने दिया गया,क्योंकि उनका मजहब खतरे में नजर आता है,वहाँ किसी में इतनी हिम्मत नही कि कठमुल्लावाद का मुकाबला कर सके!
लव जेहाद के लिये यदि किसी मुस्लिम युवा ने छिप छिपाकर हिंदू नाम रख भी लिया ,तो हिंदू लड़की से प्रेम विवाह करने उपरांत वह उस लड़की का धर्मांतरण करने में जुट जाता है! और खुद भी अपने असली रंग रूप में आ जाता है!
इसलिये वे लोग बिल्कुल सही हैं जो कहते हैं कि भारत में लव जेहाद जारी है और केवल हिंदुओं के कारण ही धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र परवान चढ रहा है!

वे लंदन,पेरिस मुम्बई -कहींभी कभी भी मरने-मारने को आतुर रहते हैं

 दरसल इस्लाम मजहब का सारतत्व उतना ही मानवीय और अमनपसन्द है जितना कि ईसाई और यहूदी धर्म का ! किंतु अहिंसा का मंत्र विशुद्ध भारतीय वैदिक-सनातन धर्म की उपज है ! जिसे श्री वैष्णव परंपरा ने परवान चढ़ाया,बौद्ध जैन मत ने परिष्कृत किया है!

दुनिया का कोई और धर्म-मजहब अहिंसा की बात करता हो,मुझे पता नही! चूँकि भारत मुलत: अहिंसा प्रधान समाजों का राष्ट्र है,अत: भारत के शांतिप्रिय समाजों ने इस उुमहादीप से बाहर जाकर कभी कि्सी पर हमला नही किया! भारत के अहिंसक समाज ने भौतिक विकास और विज्ञान के अमानवीकपण पर कभी जोर नही दिया!
यहाँ ऋग्वेदकाल से ही सर्वजन हिताय, सर्वजनसुखाय का शांतिपाठ जारी है! हर सनातनधर्मी मानव मन की अंतर्जगत यात्रा ही भारतीय समाज का ध्येय रहा है!
इसीलिये भारत में हरेक उस धर्म मजहब की कट्टरता पर अंकुश होना चाहिए,जिनका मकसद ही दूसरों को बर्बाद कर देने का रहा है!चूँकि भारत में लोकतंत्र है इसलिए यहाँ जब तक हिंदू जैन बौद्ध ईसाई ये सब मिल कर बहुमत में हैं तब तक लोकतंत्र को कोई खतरा नही! किंतु किसी खास कट्टर कौम के द्वारा लोकतंत्र खत्म किया जा सकता है।
इस्लामिक आतंकवाद ने दुनिया में जो किया है,उसके अलावा और किसी धर्म मजहब के लोगों ने मानवता को उतना खतरा उत्पन्न नही किया है! इस्लामिक जगत में हर जगह न केवल आपसी मारामारी जारी रहा करती है,अपितु वे लंदन,पेरिस मुम्बई -कहींभी कभी भी मरने-मारने को आतुर रहते हैं !
वे पहले शरणार्थी बनकर किसी मुल्क में जाते हैं,फिर कश्मीर,कैराना,बंगाल की तरह मुल्क की सरजमी पर काबिज हो जाते हैं! इसलिए भारत के हिंदुओं को और यहां के मूल निवासियों को - जो धर्मांतरित हो चुके हैं,कट्टरपंथ जनित आतंकवाद से खतरा है ! दरसल इस खतरे को ठीकसे समझना होगा। शायद यूपी की जनता ने दूसरी बार फिर उस खतरे को ठीक से समझ लिया है।
दरसल भारत को खतरा किसी भी धर्म मजहब से नही है! भारत को खतरा ममता सपा,राजद और उन दलों से है,जो हर चुनाव में अपनी जाति बिरादरी के नर नारियों का और अल्पसंख्यक वर्ग का भयादोहन करते रहते हैं! श्रीराम तिवारी
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कलियुग

 वियना (आस्ट्रिया) के मूल निवासी वर्तमान में ड्रेस्डन जर्मनी में रह रहे श्री एडगर लैटन जी का आज लिखा संस्कृत का छन्द और भावार्थ देखिए- (मुग्ध हुए बिना न रह सकेंगे!)

सर्वत्रैव यदा निपीडिततमा रे साधवो राक्षसै
र्धर्मग्लानिरियं समीक्ष्यत इह क्षीयेत नीतिर्नृणाम् ।
विद्याविस्मरणं तमःप्रसरणं कष्टं रुजां वर्धनं
कालो हन्त कलेः स्वयं भुवि तदा प्रादुर्भवेद्बाधकः ॥
(जैसे अच्छे लोग हर जगह राक्षसों द्वारा अत्यधिक उत्पीड़ित होते हैं,
संसार में उचित आध्यात्मिक व्यवस्था का ह्रास दिखाई देता है,
और लोगों की नैतिकता विलुप्त हो जाती है, ज्ञान विस्मृत होने लगता है,
अज्ञानता का अंधकार व्याप्त हो जाता है, और शोक, रोग बढ़ते हैं,
तब कलियुग स्वयं को बहुत ही परपीड़क अपराधी के रूप में प्रकट करता है!)
As good people everywhere get intensely oppressed by demons,
degradation of proper spiritual order in the world becomes visible,
and morality of people disappears, as knowedge gets forgotten,
darkness of ignorance becomes prevalent, and, alas, diseases grow,
then Kali-yuga manifests itself as the very sadistic perpetrator!
-Shri Gajendra Patidar

वेद व्यास जी और उनसे पहले वाले ज्ञानी जन पहले ही कह गए

 साइंस और तकनीकि के अलावा इस संसार में किसी के पास लिखने को नया कुछ नही है, क्योंकि जो कुछ लिखने लायक था, वह महर्षि वेद व्यास जी और उनसे पहले वाले ज्ञानी जन पहले ही कह गए! बुध्द, महावीर , अजित केश कंबली, चार्वाक और गुरु नानक, ये सब सनातन परंपरा में ही पैदा हुए थे!

नये पंथ और मत मतान्तरों ने देश,काल भाषा और परिस्थितियों के अनुसार भले ही उन्हें सख्त सनातन विरोधी बना दिया। किंतु वे सब मिलकर भी सनातन संस्कृति,योग और सनातन धर्म का का बाल बांका नही कर सके! बल्कि सनातन धर्म दिन प्रति दिन पहले की अपेक्षा ज्यादा धवल, उज्ज्वल और मजबूत हुआ है ! सनातन धर्म आज सर्वत्र अपनी आभा बिखेर रहा है!
सनातन संस्कृति और धर्म को ललकारने वाले नकारात्मक तत्व इस धरती पर सदा से होते रहे हैं,और सदा होते रहेंगे!लेकिन वे नकारात्मक तत्व सनातन संस्कृति और सनातन धर्म पर जितना तीव्र प्रहार करेंगे, उन्हें उतनी ही कठोर चोट सहनी पड़ेगी! क्योंकि सनातन संस्कृति वैदिक धर्म विज्ञान पर आधारित जीवन दर्शन है, दैवीय परंपरा है और मानवमात्र का हितैषी है!
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'संघ' भाजपा पर विश्वास किया जाए,

 अधिकांस प्रबुद्ध भारतीय जन-गण अपने देश और उसके संविधान को सबसे अहम और पवित्र मानते हैं !किन्तु कुछ अपवाद भी हैं। कुछ को तो संविधान तब याद आती है जब वे असंवैधानिक गतिविधियों में संलिप्त पाये जाते हैं! कुछ ऐंसे नागरिक भी हैं जो भारत में जन्में हैं,भारत में ही पले -बढ़े है वे अपने देश से बढ़कर आज भी अपने मजहब* को ही बड़ा मानते हैं !

कुछ सिरफिरे लोग अपने राष्ट्र के ऊपर,संविधान से ऊपर अपनी पगड़ी,अपनी जाति,अपनी खाप और अपने दकियानूसी समाज के बर्बर उसूलों को ही तरजीह देते हैं। कुछ लोग अपनी तथा कथित निम्न जाति की वैचारिक संकीर्णता को राष्ट्र से ऊपर मानते हैं। कुछ जातियां बनियों ठाकुरों ब्राह्मणों से किसी बात में कमतर नहीं, मंडल कमीशन द्वारा भारतीय समाज की गलत व्याख्या के परिणामस्वरूप वे आजादी के 75 साल बाद भी अपने आपको सनातन काल तक पिछड़ा,दलित और महादलित कहलाने के लिए तैयार हैं!
कुछ लोग तो देश से ऊपर आरक्षण और जातीय गिरोहबंदी को भी बड़ा मानते हैं। कुछ लोग अपनी खाप के क़ानून को देश के कानून से भी ऊपर मानते हैं । यदि कोई शख्स इन तत्वों के खिलाफ आवाज उठाये तो असली राष्ट्रप्रेम और असल प्रगतिशीलता वही है। किंतु इन स्वार्थी नकारात्मक तत्वों को जिन की देश में भरमार है,उनके वोट की खातिर राष्ट्रीय हित दाव पर लगाने में माहिर हैं!
लोकतंत्र में चुनावी जीत के लिये जाति धर्म मज़हब की फ़िक्र करने मात्र से भारत को चीन- जापान या अमेरिका जैसा ताकतवर नहीं बनाया जा सकता। वर्तमान राजनैतिक बिडंबना यही है कि देश के प्रति जिनको रंचमात्र आश्था नहीं ,वे ही धर्म-जाति -मजहब -खाप -आरक्षण और अलगाववाद की ज्वाला सुलगा रहे हैं। कुछ लोग इन नकारात्मक तत्वों की तुलना 'संघपरिवार ' से कर बैठते है जो की निहायत ही हास्यापद है।
वेशक 'संघी' चिंतन के मूल में फासिज्म की बू आती है। किन्तु 'संघ' की तुलना न तो पी एफ आई से की जा सकती है, न ही नक्सलवादियों से की जा सकती है और न ही उनसे जो देश और संविधान से ऊपर अपनी हिंसक ढपली-अपना राग छेड़ते रहते हैं। अक्सर कहा जाता है कि आईएसआईएस- तालिवान और 'संघ' सब एक जैसे हैं ! क्योंकि ये सभी संगठन पाश्चात्य सभ्यता के विरोधी हैं।ये सभी मजहबी संगठन प्रतिगामी अतीतगामी हैं।किन्तु इस दुनिया में भारत के अलावा शायद ही कोई अन्य मुल्क होगा जहाँ के मजहबी बहुसंख्यक लोग सत्ता में आने पर किसी अन्य मुल्क में भी आतंकी कार्रवाइयों में लिप्त न हों।
आईएस के बारूद की दुर्गन्ध इराक,सीरिया, लेबनान,यमन सूडान और लीबियाही नहीं बल्कि अफगानिस्तान पाकिस्तान और हिन्दुस्तान तक आ रही है। क्या 'संघ परिवार' का कोई प्रमाण दुनिया में इस प्रकार का है ? भारत में अक्सर धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील चिंतक संघ* को ही निशाना बनाते रहते हैं। जबकि अल्पसंख्यक वर्गों के मुखिया खुद ही संघ के सौजन्य और सामाजिक 'समरसता' की तारीफ़ करते रहते हैं। यही वजह है कि पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक लोग 'माकपा' और वामपंथ का उपहास कर रहे हैं। वहां के अधिकांस हिन्दू अब भाजपा की ओर खिसक रहे हैं।अल्पसंख्यक - मुस्लिम केवल ममता का गुणगान कर रहे हैं। क्या वजह है कि न केवल कांग्रेस या वामदल बल्कि अधिकांस धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का जनाधार तेजी से खिसक रहा है?
हिन्दुओं के अलावा अन्य मजहबों के लोग अपने सर्वोच्च धार्मिक सत्ताकेंद्र से निर्देशित होते हैं। जबकि अधिकांस हिन्दू सहज सरल और धर्मनिरपेक्ष ही होते हैं । भले ही विगत कुछ वर्षों हिन्दुओं का राजनैतिक शोषण किया जा रहा है। किन्तु दुनिया भर में आग मूत रहे हिंसक मजहबी संगठनों के सामने संघ की तस्वीर आज दूसरों से बेहतर है। यही कारण है कि अधिसंख्य हिन्दूओं का दबाव है कि 'संघ' भाजपा पर विश्वास किया जाए,जब तक कि हिंदुओं के पवित्र तीर्थों को मुक्ति नही मिल जाती !
देशवासियों को भाजपा की कटटर कार्पोरेट परस्त नीतियों का समर्थन नहीं करना चाहिए। संघ पर हिंदुत्व की प्रगतिशील कतारों का दबाव है कि अपनी छवि को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद तक ही सीमित रखे। जो हिन्दू 'संघ ' से जुड़े हैं उन्हें भी यह भी याद दिलाना चाहिए कि वे शहीद भगतसिंह आजाद,सुखदेव ,राजगुरु ,सुभाषचन्द्र वोस और उनके साथियों-सहगल- ढिल्लों -शाहनवाज से बड़े देशभक्त नहीं हो सकते। हमारे ये सभी 'नायक' धर्मनिरपेक्षता के तरफदार थे। उनकी तरह का राष्ट्र प्रेम होना या राष्ट्रीय स्वाभिमान होना वेशक बड़े गर्व और प्रतिष्ठा की बात है।किन्तु इन राष्ट्र निर्माताओं के सिद्धांतों की अनदेखी कर या गलत व्यख्या कर अपनी राजनैतिक रोटी सेंकना कहीं से भी युक्तिसंगत नहीं है। यह कृत्य किसी भी तरह से देशभक्तिपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
भारत में जबसे मोदी सरकार को लोक सभा में बम्फर बहुमत मिला है। तभी से हिंदुत्व के नाम पर राजनीति करने का चलन सड़क छाप हो चुका है। इस आरोप पर 'हिंदुत्व' के अलंबरदारों का कुतर्क होता है कि 'सब यही कर रहे हैं '। उनका तर्क है जापानियों ,ज्रर्मनों यहूदिओं ,ईसाइयों ,अंग्रजों और मुसलमानों की तरह हमे भी कौम की कटटरता सीखनी चाहिए। उनका कहना है कि चूँकि भारत के मुसलमान, ईसाई तथा अन्य अल्पसंख्यक वर्ग के लोग अपनी मजहबी सोच के वशीभूत होकर टैक्टिकल वोटिंग किया करते हैं ।चूँकि इमाम बुखारी और ओवैसी जैसे अल्पसंख्यक कतारों के नेता इस्लामिक कटटरवाद में अपना राजनैतिक स्वार्थ साधते रहते हैं। इसलिए हिन्दुओं को भी धर्म-और राजनीति का घालमेल कर सत्ता पर काबिज रहना चाहिए । अव्वल तो कोई भी सच्चा भारतीय[हिन्दू] यह कतई स्वीकार नहीं कर सकता कि अपने अमर शहीदों की 'धर्मनिरपेक्षतावादी' अवधारणा को ध्वस्त करे।दूसरी बात हिन्दुओं को किसी 'विधर्मी' से उसका हिंसक और लूट पर आधारित उधार का ज्ञान लेने की आदत ही नहीं है !
'हिंदुत्व' की श्रेष्ठता तो पहले से ही दुनिया में बेजोड़ है। चूँकि वह क्षमा,करुणा परोपकार, सत्य,अहिंसा अपरिग्रह और सहज सहिष्णुता इत्यादि महानतम मूल्यों का उत्सर्जक -उत्प्रेरक और धारक रहा है। अतएव इन श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को ध्वस्त कर राज्य सत्ता प्राप्त करना हिंदू का अभीष्ठ नहीं है। जिस तरह एक सरल शुद्ध सात्विक शाकाहारी हाथी कभी आदमखोर भेड़िया नहीं हो सकता,उसी तरह हिंदुत्व जैसी किसी सहिष्णु और उदार चरित्र की हिन्दु कौम को दुनिया के हिंसक -उन्मादी -लम्पट आवारा कबायलियों जैसा नहीं माना जा सकता।
निर्धन गरीब मजदूर -किसान हिन्दू संघ के प्रभाव में आकर यदि भाजपा के साथ चले जाते हैं ,जो शोषित -पीड़ित मुस्लिम किसान -मजदूर -कारीगर अपने कठमुल्लों के प्रभाव में-कांग्रेस , मुफ्ती ,मुलायम ,मायावती,केजरीवाल,नीतीश, लालू और ममता के साथ टैक्टिकल वोट करने में बिखर जाते हैं,वे भारत के प्रगतिशील आंदोलन को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार हैं।
सच्चा हिन्दू किसी अन्य मजहब या कौम से नफरत नही करता और करे वो हिन्दू हो ही नहीं सकता। क्योंकि असली हिन्दू जानता है कि "ईश्वर सब में है और सब में सब है " वैसे भी हिन्दू शब्द ही आयातित और परकीय है। वरना भारतीय समाज तो सनातन से सहज अहिंसक धर्मनिरपेक्षतावादी है।:-श्रीराम तिवारी
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शरद शबल
'भारतीय-संस्कृति' एवं "हिन्दुत्व" विषय पर अत्यन्त रोचक, व्यावहारिक, वास्तविक विचार-विमर्श, उपयोगी सोच-विचार, प्रभावी विवेचन-विश्लेषण-वर्णन, प्रत्येक देशवासी हेतु आवश्यक-अनिवार्य जानकारी विषयक विचारोत्तेजक आलेख ... सराहनीय- उल्लेखनीय प्रस्तुति
सार्थक … 
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