विश्व के अन्य देशों के सापेक्ष भारत में दो बातों की चर्चा जरूरत से ज्यादा होती रहती है! एक -धर्मांतरण,दो- धर्मनिरपेक्षता! इस विमर्श में हस्तक्षेप के लिए कई दिनों से मेरे मन में उथल-पुथल चल रही है । चूँकि मैं कोई मजहबी उलेमा नहीं हूँ। चूँकि मैं सर्वधर्म शास्त्री नहीं हूँ। उद्भट समाजविज्ञानी और दार्शनिक नहीं हूँ। कोई मुमुक्षु या सिद्ध पुरुष भी नहीं हूँ। कोई नृतत्व- समाजशास्त्री भी नहीं हूँ। मैं इस विषय का कोई स्कालर और शोधार्थी नहीं हूँ! किंतु फिर भी धर्मांतरण या धर्मनिरपेक्षता जैसे प्रासंगिक-ज्वलंत प्रश्नों पर तठस्थ रहना मुझे उचित नही लगा!
हालाँकि सरसरी तौर पर इस विमर्श पर कुछ लिखने कहने वाला समाज विरोधी माना जा सकता है!राष्ट्र विरोधी भी कहा जा सकता है ! मनगढ़ंत खबरों और अधकचरे ज्ञान की कूबत पर इस महा भयानक विमर्श पर कुछ भी कहना मानो इन सिद्धांतों की ऐंसी तैंसी करना है! इसलिये उस संदर्भ में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने से अभी तक बचता रहा हूँ! लेकिन जब शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी साहब ने घर वापिसी की, जब पाकिस्तान(पंजाब) के इतिहास कारों ने घोषित किया कि *वे 75 साल से पाकिस्तानी हैं,1400 साल से मुसलमान हैं और सनातन से आर्य अथवा हिंदोस्तानी हैं! विगत दिनों लाहौर में सम्पन्न एक अकादमिक सम्मेलन में पाकिस्तान के अनेक प्रगतिशील बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों ने माना कि अरबी कबीले उनके पूर्वज नही हैं,बल्कि उनके पूर्वज तो महान ब्राह्मण राजा दाहिरसेन थे!वेद व्यास पाणिनी,कनिष्क,अभिनव गुप्त और बौद्ध कालीन अनेक विश्वस्तरीय आर्य विभूतियां ही उनके पूर्वज हैं! बेशक मौजूदा दौर के पाकिस्तान में यह नक्कार खाने में तूती की आवाज है, किंतु परम सत्य तो यही है!
विगत कुछ समय पहले अयोध्या के साधु संतों ने,संघ प्रमुख मोहन भागवत जी ने भी यही बात कई बार कही है कि हम भारतीय हिंदू मुस्लिम, सिख, ईसाई ,जैन ,बौद्घ और चार्वाक सभीका DNA आर्य है,याने सनातन परंपरा का वास्तविक उत्तराधिकारी है! अर्थात हम सभी भारतवासी अनेक जाति मजहब पंथ में विभक्त होते हुए भी,हम एक ही सनातन परंपरा, याने सनातन धर्म और भारतीय सभ्यता संस्कृति के ध्वजवाहक हैं!
विगत कुंभ मेला के दरम्यान 'अखिल भारतीय अखाडा परिषद' ने धर्मनिरपेक्षता का समर्थन किया और भारतीय संविधान के मूल्यों की रक्षा का संकल्प दुहराया! यह सुविदित है कि आल इंडिया अखाडा परिषद में कुल तरह अखाड़े हैं। सात शैव,तीन वैष्णव और तीन सिखों के अखाडे हैं। अखाडा परिषद के वर्तमान अध्यक्ष महंत ज्ञानदास जी ,राम मंदिर के प्रमुख पुजारी आचार्य सत्येन्द्रदास जी तथा रामानंदी साधु सम्प्रदाय के प्रमुख रामदिनेशाचार्य जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उससे जुड़े सभी संगठनों को 'जबरन धर्मांतरण' या 'घर वापिसी 'कराने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की है। इन सभी का कहना है कि 'हिन्दू धर्म ग्रंथों में जबरन धर्मांतरण का निषेध है '। उन्होंने ये भी कहा कि 'संघ परिवार जिन हरकतों को अंजाम दे रहा है उनसे न केवल हिन्दू समाज बल्कि समस्त भारतीय समाज बुरी तरह प्रभावित होगा '। साधु संतों के इस बयान के बाद, आइन्दा यह दृष्टव्य होगा कि हिंदुत्व का राजनैतिक झंडावरदार याने 'संघ परिवार' - हिंदुत्व के असली झंडावरदार याने विराट साधु समाज के फैसले का सम्मान करता है या नहीं !
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