शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

अलविदा -२०१०

   काल चक्र की गणना ,मानव सभ्यता के जिस मुकाम पर प्रारंभ हुई होगी सम्भवत वह भारत के पूर्व वैदिक काल और अमेरिकी  माया सभ्यता के अवसान का समय रहा होगा. यह सर्वविदित और सर्वकालिक स्थापित सत्य है की भारत में विदेशी आक्रमणों से पूर्व भी उन्नत सभ्यताएं विद्यमान थी .
यह भी सर्व स्वीकार्य सत्य है की भारत सहश्त्रब्दियों तक कबीलाई और पुरा सामंती द्वंदों से गुजरा है विभिन्न कबीलों के रस्मों -रिवाज और भोगोलिक कारकों ने लोक रूढ़ परम्पराओं और सामाजिक -सांस्कृतिक दृष्टियों का निर्माण किया .यही करण है की आज ;पूर्व -पश्चिम ,उत्तर -दक्षिण चारों और अनेकानेक सभ्यताओं और संस्कृतियों के पुरावशेष बिखरे पड़े हैं .
                         एतिहासिक दुर्घटनाओं और बाह्य आक्रमणों ने इन भारतीय स्वरूपों को निरंतर अद्द्तन किया और प्रकृति के अबूझ रूपों   को देवी या विकराल शक्ति मानने  की जगह वैज्ञानिक द्रष्टि  का श्री गणेश किया .काल गणना के लिए शकों के आक्रमण के दौरान ही गुप्त काल के विद्वानों  ने विक्रम और शक संवत का श्री गणेश किया .किसने किया ?कब किया ?क्यों किया ?
इसका सटीक विवरण भारत में संभवत लोप हो चुका है .
           समुद्रगुप्त और उसके पूर्व बुद्ध के समकालीन समाजों में वन -महोत्सव ,मदनोत्सव ,के रूप में सत्रावसान या नए काल खंड का स्वागत किये जाने  के अनेक प्रमाण और उल्लेख हैं .रामायण में राम को १४ वर्ष का वनवास दिए जाने की घटना और महाभारत में पांडवों को १२ वर्ष वनवास और तेरहवें वर्ष में आज्ञातवास यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रमाण हैं की भारत में काल गणना का अपना तंत्र विकसित हो चुका था .भले ही वो आज भी  संथालों या वस्तर के अंदरूनी भागों में वसे पाषाण युग को प्रतिबिंबित कर रहे आदिवासियों तक न पहुंचा हो .किन्तु हिमालय की तलहटी ,गंगा -युमुना के दो आव पञ्चनद  प्रदेश तथा दक्षिणा पथ में यह निश्चय ही वैज्ञनिक मापदंड पर कसा जा चुका था .
            लव ,निमेश ,परमाणु ,जुग घडी ,प्रहर,दिवस ,पाख ,मॉस ,वर्ष ,सदी,शताब्दी ,युग एवं मन्वंतर इत्यादि शब्द सिर्फ इसीलिए मिथ या अवैज्ञानिक  नहीं घोषित किये जा सकते की वे पोथियों ,पुरानो और शास्त्रों में दर्ज हैं .जिस तरह आज के अधुनातन वैज्ञानिक भौतिकवादी युग में सब कुछ निरपेक्ष या सत्य नहीं है ,उसी तरह पुरा साहित्य और खास तौर से भारतीय काल गणना में सब कुछ गप्प या बकवास नहीं है .
                        भारत के अधिकांश गाँव में शादी -विवाह ,तीज त्यौहार और सोम  काम काज अभी भी शक संवत या विक्रमी संवत की काल गणना से निष्पादित होते हैं .अंग्रेजी कलेंडर याने ईसवीं सन की काल गणना को राज्याश्रय प्राप्त होने के कारण और राज -काज में अंग्रेजी की हैसियत पटरानी जैसी होने के कारण उसके कलेंडर को ब्रह्मास्त्र   का दर्जा  प्राप्त हो गया है . हो सकता है की शेष दुनिया में भारत जैसी काल गणना का नितान्त अभाव  हो और वे इस रोमन केलेंडर  किन्तु भारत में जब उससे से बेहतर वैज्ञानिकता से सायुज काल कलन का मध्यम उपलब्ध है तो देश के तथा कथित सभ्रांत और पैसे वालों का इसाई  केलेंडर के आधार पर नया वर्ष उत्सवी उमंगों से मनाने के निहितार्थ क्या हो सकते हैं ?क्या यह धर्म निरपेक्षता का  प्रतिनिधित्व करता है ?क्या  यह भारतीय परिवेश .भारतीय भोगोलिकता .भारतीय समृद्ध सांस्कृतिक चेतना का प्रतिनिधि है?
          जहाँ तक ईसवीं २०१० के अवसान पर वैश्विक या भारतीय भू मंडल पर नकारात्मक -सकरात्मक अनुभवों के रेखांकन की बात है तो इस काल खंड में भारत के खाते में वेशुमार उपलब्धियां हैं{१}.विगत सत्र में दुनिया के शीर्ष -वीटो धारक पांच राष्ट्रों के प्रतिनिधि भारत आये .
{२}वैश्विक भूंख सूचकांक में भारत दुनिया के सबसे निर्धन राष्ट्रों की सूची में ६७ वें स्थान पर पहुंचा.
{३}भारत के एक अमीर आदमी ने २७ मंजिला मकान बनाने में ५००० करोड़रूपये खर्च किये .
{४]२-जी   स्पेक्ट्रम में हुए १७६००० करोड़ रूपये के घपले के लिए राजनीत शर्मसार हुई .
{५]महंगाई बढाने में कृषिमंत्री की वयांवाजी , वायदा वाजार, और चुनाव गत खर्च  की भरपाई . 
  {६}विक्किलीक्स के खुलासे और अमेरिका का चाल चरित्र चेहरा उजागर करने के लिए समर्पित रहा यह वर्ष २०१०.
इसी प्रकार की अनेकों प्राकृतिक राष्ट्रीय ,अंतर राष्ट्रीय आपदाओं , .और मानवीय भूलों के कबाड़े के रूप में वर्ष २०१० से पीछा छुड़ाती देश और दुनिया की मेहनतकाश जनता -नए उजाले ,नए सुखमय संसार की असीम आकांक्षाओं के साथ आगत साल {ख्रीस्त }२०१० का हार्दिक स्वागत करने को आतुर है ....सभी साथियों को बधाई ....नूतन वर्ष मंगलमय हो .साल २०११... की शुभकामनाएं ....
         श्रीराम तिवारी ........

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

ये लड़ाई है दिए की और तूफान की...

  विगत सप्ताह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की एक अदालत ने जिन तीन लोगों को नक्सलवादियों का समर्थक होने के संदेह  मात्र के लिए आजीवन कारावास जैसी सजा सुनाई उसकी अनुगूंज बहुत दूर तक बहुत लम्बे समय तक सुनाई देती रहेगी .डॉ विनायक सेन ,नारायण सान्याल और पीयूष गुहा कितने बड़े खूंखार हैं ?.उनसे मानवता और देश को कितना खतरा है ? इस फैसले के बाद  देश की जनता ने जाना और माना की माननीय न्याय मंदिर के शिखर पर विराजित स्वर्ण कलश की चमक इस फैसले से कितनी फीकी हुई है या होने वाली है  इस एतिहासिक न्यायिक फैसले पर जारी  विमर्श के केंद्र में वस्तुत; व्यक्ति नहीं विचारधारा ही है .
           खास तौर से देश का मध्यम वर्ग और आम तौर पर सभी सुशिक्षित और राष्ट्र निष्ठ भारतीय इस कथन को सगर्व पेश करते हैं की 'हमारा प्रजातंत्र  चीन की साम्यवादी तानाशाही से बेहतर है ,रूसी अमेरिकी और ब्रिटेन के लोकतंत्र में भी अभिव्यक्ति की इतनी आजादी नहीं जितनी की हमारी  महान भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में है '
दुनिया के अधिकांश  देशों और विभिन्न व्यवस्थाओं में दंड नीति की अपनी अपनी खासियतें हैं .किन्तु भारत में उदात्त न्याय दर्शन और मीमांसाएँ हैं -अपराधी भले ही छूट जाये ,किन्तु निर्दोष को सजा नहीं मिलना चाहिए .
बेशक यह सही भी है किन्तु यहाँ बहुत पुरानी पोराणिक आख्यायिका है की "एक हांड़ी दो पेट बनाये ,सुगर नार श्रवण की 'मात्रु -पित्र परम भक्त श्रवण कुमार की पत्नी ने ऐसी हांड़ी वना रखी थी -जिसके दो भाग अंदर ही अंदर थे उसमें वो एक ही समय में एक हिस्से में खीर पकाती थी और दूसरे हिस्से में पतला दलिया,खीर वो अपने पति -श्रवणकुमार को खिलाती  और दलिया अपने सास -ससुर को ,अंधे सास-ससुर यही समझते की जो हम खा रहे हैं वही बेटा श्रवण खा रहा है .भारतीय लोकतंत्र रुपी हांड़ी में भी दो पेट हैं .एक सबल और प्रभुत्वशाली  वर्ग के लिए दूसरा निर्धन अकिंचन असहाय वर्ग के लिए .सारी दुनिया समझती है की हमारे लोकतंत्र की हांड़ी में जो कुछ भी पक  रहा है वो वही है जो वह देख सुन या महसूस कर रहा है .जबकि इण्डिया शाइनिंग का नारा देते वक्त २००८ में यह और भी स्पष्ट हो गया था की उन्नत वैज्ञानिक  तरक्की का लाभ देश की अधिसंख्य जनता तक नहीं पहुँच पाया है और अटलजी को -एन डी ये को अपने विश्वश्त अलायन्स पार्टनर चन्द्र बाबु नायडू जैसों के साथ पराजय का मुख देखना
पड़ा था .तब पता चला की इंडिया और भारत में खाई चोडी होती जा रही है .यह विराट दूरी  सिर्फ आर्थिक या जीवन की गुजर-बसर  तक ही नहीं अपितु सामजिक ,आर्थिक .सांस्कृतिक और न्यायिक क्षेत्रों तक पसरी हुई है .
  देश में आर्थिक सुधारों और लाइसेंस राज के आविर्भाव उपरान्त विगत २० सालों में इतनी तरक्की हुई की पहले ५ पूंजीपति अर्थात मिलियेनार्स थे अब ५४ मिलिय्र्नार्स हो गए हैं .तरक्की हुई की नहीं ?पहले १९९० में गरीबी की रेखा से नीचे १९ करोड़ निर्धन जन थे अब ३३ करोड़ हो चुके हैं -तरक्की तो हुई की नहीं ?
यही बात शिक्षा ,स्वास्थ्य ,जीवन स्तर के सन्दर्भ में मूल्यांकित की जाये तो स्थिति और भी भयावह नजर आएगी .भारतीय प्रजातांत्रिक -
न्याय व्यस्था  पर प्रश्न चिन्ह सिर्फ विनायक सेन के सन्दर्भ में या रामजन्म भूमि बाबरी - मस्जिद के सन्दर्भ में
नहीं उठा बल्कि वह आजादी के फ़ौरन बाद से लगातार उठता रहा है .वह तब भी उठा जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अलाहाबाद  उच्च न्यायलय में अपनी चुनावी हार को फौरन सर्वोच्च न्यायलय के मार्फ़त जीत में बदल दिया .सवाल तब भी उठा जब शाहबानो  प्रकरण में कानून बदला गया .सवाल तब भी उठा जब लाल देंगा जैसे देशद्रोही से न केवल बात की गई बल्कि उसे मुख्यमंत्री तक बनवा दिया .सवाल अब भी कायम है की हजारों डाकुओं को आत्म समर्पण के बहाने उनके अनगिनत पापों को इस देश के कानून ने और व्यवस्था ने माफ़ किया .एक बार नहीं अनेक बार ,अनेक प्रकरणों और संदर्भो में ऐसा पाया गया की शक्तिशाली  वर्ग -पप्पू यादवों .तस्लीम उद्दीनों ,बुखारियों ,ठाकरे और गुजरात के नरसंहार कर्ताओं की कानून मदद करता पाया गया .
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण जी ने जिन एक दर्जन माननीयों  के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सबूत सर्वोच्च न्यायलय को दिए हैं उनके लिए अलग दंड विधान है याने कोई कुछ नहीं बोलेगा .यदि बोलेगा तो जुबान काट दी जायेगी .शूली पर लटका दिया जायेगा .इन शक्तिशाली प्रभुत्व   वर्ग के खिलाफ बोलना याने विनायक सेन होना है ,विनायक सेन एक आध तो है नहीं  की उसे जेल भेज दोगे तो ये अंधेर नगरी चोपट राज चलता रहेगा .विनायक सेन पीयूष गुहा और नारायण सान्याल तो भारतीय आत्मा का चीत्कार हैं ,आदरणीयों ,मान नीयो .इतना जुल्म न करो की आसमान रो पड़े और जनता गाने लगे की ये लड़ाई है दिए की और तूफ़ान की ...
                 
          श्रीराम तिवारी

                                        

सोमवार, 27 दिसंबर 2010

ठेके से राष्ट्र निर्माण बनाम श्रम शोषण के निहितार्थ .

वर्तमान  वैश्वीकरण और आधुनिकीकरण  के बरबस दबाव  में भारत की आर्थिक नीति बेहद बेलगाम हाथों में सिमट चुकी है .आधुनिक  संचार एवं सूचना तकनालाजी में क्रांतीकारी विकास  के चलते मानवीय श्रम की गुणवत्ता तो बढ़ती जा रही है किन्तु जनसँख्या विस्फोट और कड़ी बाजारगत स्पर्धा के चलते भयानक बेरोजगारी ने वर्तमान युवा पीढी के  भविष्य का मुहँ इतिहास की अँधेरी सुरंग की ओर कर दिया है .तकनीकी  दक्षता में निष्णांत भारतीय युवाओं को आज के नव्य उदारवादी युग में अमेरिका ,यूरोप के लिए  खतरा और चीन के लिए विश्व बाजार में प्रतिद्वंदी घोषित किया जा रहा है .देशज नीतियां इस प्रकार गढ़ी जा रही हैं की उदारीकरण ,निजीकरण और समग्र भूमंडलीकरण के परिणाम स्वरूप स्थाई रोजगार समाप्त होते जा रहे हैं .संसाधनों ,उत्पादन सम्बन्धों ,उपरोक्त प्रतिगामी मानव श्रम हन्ता नीति नियंताओं ,मुनाफाखोरों और इस भ्रष्ट व्यवस्था के निर्माणकर्ताओं की तदाम्यता  के परिणाम स्वरूप शोषण का नया घ्रणित तंत्र परवान चढ़ चुका है ,जिसे ठेका प्रथा नाम दिया गया है .
                भारत के समस्त सार्वजनिक उपक्रम ,निजी क्षेत्र ,सरकारी क्षेत्र ,अर्ध सरकारी क्षेत्र  और तथा कथित -पब्लिक -प्राइवेट -पार्टनरशिप ,सभी जगह स्थाई प्रकृति  के कार्यों को -चाहे वे श्रम मूलक हों अथवा मानसिक वृत्ति मूलक हों सभी में ठेका पद्धति का बोलबाला है .इस तरह के अमानवीय शोषण के  खिलाफ वर्तमान युवा पीढी में न तो कोई दिलचस्पी है और न ही कोई संगठन या वैचारिक चेतना  का बीजान्कुरण  उभरकर सामने आ पा रहा है .
     केंद्र और राज्य सरकारें इन युवाओं के हित में क्या कर रहीं हैं ?इस अमानवीय सिलसिले को और बृहदाकार दिया जा रहा है .अधिकांश सरकारी विभागों में भी ठेकेदारी और आउट सोर्सिंग के जरिये देश के करोड़ों -मजबूर ,बेबस युवाओं  /युवतीओं को बंधुआ मजदूर जैसा बना कर देश में   उनका सामाजिक -सांस्कृतिक -साहित्यिक
सरोकार लगभग समाप्त कर दिया गया है .वे सिर्फ इस पूंजीवादी प्रजातंत्र के लिए या तो वोटर हैं या मुनाफाखोरों के उत्पादन का संसाधन .भीषण बेरोजगारी के शिकार असंख्य युवाओं के जीवन को निगलती जा रही यह पतनशील पूंजीवादी व्यवस्था सिर्फ एक लक्षीय ,एक ध्रुव सत्य के लिए समर्पित है -जिसका नाम है -मुनाफा ...
  करोड़ों युवाओं को ठेका पद्धति की भट्टी में झोंक दिया गया है और आह तक नहीं निकल रही उनके मुख से जो लोकतंत्र  के स्वनाम धन्य बौद्धिक  पहुरिये हैं .इस अमानवीय लूट  से आज करोड़ों परिवारों का भविष्य अँधेरी सुरंग की ओर बढ़ता जा रहा है
                                        वर्तमान दौर की भीषण महंगाई में ३०००-४००० रूपये की मासिक आमदनी से न्यूनाधिक  चार सदस्यों का परिवार कैसे भरण पोषण करे ?कैसे शिक्षा ,स्वास्थ्य और जीवन की दीगर आवश्यकताओं को पूरा करे ? अधिकांश  ठेका मजदूर १० से १२ घंटे रोज काम करने के उपरान्त बमुश्किल  काम  अगले दिन भी मिलेगा की नहीं इस अनिश्चयता से भयाक्रांत रहते हैं .इस देश में जहाँ कतिपय भ्रष्ट सरकारी अफसरों और दलालों के बैंक लाकर सोना उगल रहे हैं ,उनके नौनिहाल  अमेरिका और यूरोप से लेकर भारत के सम्पन्न महानगरों के महंगे होटलों में नव वर्ष पर अय्याशी  के लिए करोड़ों खर्च करेंगे ,वहाँ दूसरी ओर अँधेरी बदबूदार शीलन भरी खोली में कड़ाके की ठण्ड
में ,पूस की रात में  जब किसी  ठेका मजदूर या आउट सोर्सिंग करने वाले निम्न मध्यम  आय वर्ग के बच्चे को रोटी और कांदा भी नसीब  हो पाना सुनिश्चित नहीं है क्योंकि अब तो कांदा याने प्याज भी अमीरों की अय्याशी  में शामिल हो चुकी है .
                     ठेका और आउट सोर्सिंग मजदूर -कर्मचारियों से मिलता जुलता भविष्य उन युवाओं का भी है जो एन -केन-प्रकारेण ऊँची तालीम हासिल कर और दुर्धर्ष कम्पीटीशन से गुजरकर तथाकथित पैकेज पर विभिन्न राष्ट्रीय -बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में १० -१२  घंटे खटते हुए ,अपना भविष्य दाव पर लगाकर अपनी श्रम शक्ति बेच रहे हैं भले ही इन्हें कहने को लाखों का पैकेज होता है किन्तु इन सभी का जीवन ठेका मजदूरों से जुदा नहीं है .मालिक का खोफ ,सी ई ओ का खोफ ,नौकरी से हटा देने का डर ,यदि महिला है तो उसे निजी क्षेत्र में चारों ओर संकट ही संकट से जूझना है .कई घटिया और दोयम दर्जे के ठेकेदार या कम्पनी मालिक अपने कामगारों को समय पर वेतन भी नहीं देते .पी ऍफ़ का पैसा काटने के बाद उसे उचित फोरम में जमा न करने की प्रवृत्ति आम है .आजकल सरकारी और सार्वजानिक  उपक्रमों में अधिकांश  काम ठेके से ही करवाया जा रहा है .ठेकों /संविदाओं में क्या गुल गपाड़ा चल रहा है ये तो सरकार ,क़ानून मीडिया सभी को मालूम है किन्तु इन चंद मुठ्ठी भर लोगों की खातिर देश के करोड़ों नौजवानों का भविष्य नेस्तनाबूद किया जा रहा है उसकी किसे खबर है ?यदि जिम्मेदार प्रशासन  और सरकार से शिकायत करो तो कहा जाता है की ये तो नीतिगत मामला है .गरज हो तो काम करो वर्ना भाड़में जाओ ..
                         सीटू ने विगत ९० के दशक से ही इन आर्थिक सुधारों की आड़ में किये जा रहे ठेका करण प्रयासों के विरोध में लगातार संघर्ष चलाया और कई राष्ट्र व्यापी हड़तालें  भी की .संसद में यु पी ए प्रथम के दौरान वामपंथ ने अपनी जोरदार संघर्ष की बदौलत देश के सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण नहीं होने दिया ,भारत संचार निगम ,नेवेली लिंग नाईट ,कोल इंडिया और एयर पोर्ट अथोरिटी  जैसे कई उदहारण हैं इसके अलावा श्रमिक वर्ग के पक्ष में कुछ कानूनी संशोधन भी कराये थे किन्तु उन्हें अमल में लाये जाने से पूर्व ही वाम का और कांग्रेस का -एतिहासिक १ २ ३  एटमी करार पर झगडा हो गया तो अमेरिका और भारत के कम्पनी जगत की युति ने कतिपय भाजपा -बसपा -सपा और अन्य निर्दलियों को खरीदकर सरकार बचा ली थी .२८ जुलाई -२००८ की शाम प्रधानमंत्री श्री मनमोहनसिंह जी ने कहा था की" वाम से छुटकारा मिला अब आर्थिक सुधारों में तेजी लाइ जाएगी 'इसका क्या मतलब था सारा देश जानता था किन्तु आपसी कुकरहाव के वावजूद संसद में इन पूंजीवादी -सुधारवादी आर्थिक नीतियों पर यु पी ए और प्रमुख विपक्षी भाजपा एकमत हैं ,दोनों ही अमेरिकी नीतिओं के कट्टर समर्थक है .विडंबना यह है की देश का वर्तमान शहरी युवा तो पैकेज रुपी गुलामी के नागपास में बांध चुका है ,गाँव का अशिक्षित भूमिहीन खेतिहर मजदूर ठेका प्रथा रुपी अजगर का आहार वन चुका है .इनके विमर्श भी अब देश के आदिवासिओं  की मार्फ़त नक्सलवादियों तक सीमित हैं जो संघर्ष के हिंसात्मक तौर तरीके के कारण  वैसे भी भारतीय जन -गण के अनुकूल नहीं हैं .
               सीटू और अन्य श्रम संगठनों ने इस विकराल स्थिति को पहले ही भांप लिया था अतएव संगठित क्षेत्र की तरह ठेका मजदूरों ,आउट सोर्सिंग कामगारों ,पार्ट टाइम कामगारों ,निजी कम्पनियों के पैकेज  होल्डर्स और देश के तमाम शहरी और ग्रामीण मेहनत कशों को एकजुट संघर्ष के लिए लामबंद करने का आह्वान किया है .
  सरकार को ऐसी श्रम नीति बनाने , क़ानून बनाने के लिए की चाहे वो सरकारी क्षेत्र हो या निजी या सार्वजानिक -कहीं भी अस्थायी मजदूर नहीं होगा ,सभी को स्थाई किया जाये .सभी को सरकारी क्षेत्र की तरह पेंसन ,भत्ते और चिकित्सा इत्यदि की प्रतिपूर्ति उपलब्ध हो .यह एक दिन का या एक संगठन का काम नहीं यह लगातार संयुक संघर्ष से ही संभव  हो पायेगा .वर्तमान युवाओं को अपने भविष्य को समेकित राष्ट्रीय परिदृश्य में मूल्यांकित करना होगा और इसके लिए अपने और देश के हितों को एकमेव करना होगा .देश में यदि विकास  हुआ है तो उस पर सभी को हक़ है यदि बराबर नहीं तो कम ज्यादा ही सही किन्तु विकास  की सुगंध हर भारतीय के तन -मन को पुलकित करे यही भारतीय संविधान की पुकार है...श्रीराम तिवारी
  

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

माननीय सभासदो -कृपया संसद तो चलने दीजिए....

    संसद का शीत कालीन अधिवेशन तथाकथित -२ जी स्पेक्ट्रम  काण्ड की भेंट चढ़ गया .विपक्ष अर्थात भाजपा और तीसरे मोर्चे {वामपंथ भी ]का ,सरकार पर और खास तौर से प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी पर आरोप है की वे इस दूरसंचार क्षेत्र के विराट भ्रष्टाचार  की अनदेखी करने और भ्रष्ट तत्वों पर समय पर लगाम नहीं कस पाने के लिए सीधे गुनाहगार हैं .जब प्रधान मंत्री जी ने अपने एक अलायंस पार्टनर-द्रमुक  के अलग हो जाने के जोखिम के वावजूद संचार मंत्री -ए राजा का त्याग पत्र ले लिया ,जब देश की सबसे बड़ी अदालत ने सी बी आई की जांच को स्वयम अपने अंडर में  ले लिया और सी बी आई ने अपना काम ठीक ठाक शुरूं कर दिया तब विपक्ष द्वारा संसद ठप्प रखने का औचित्य क्या है ?
                 सरकार और प्रधान मंत्री ने पार्लियामेंट्री एक्शन कमिटी को तवज्जो देकर आग में घी का काम किया .इसके अध्यक्ष श्री मुरलीमनोहर जोशी जी और भाजपा के अन्य दिग्गजों में अंदरूनी मतभेद  जग जाहिर है . कांग्रेस ने इन मतभेदों को दूरगामी बनाने के लिए जो चाल चली उससे भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेता भड़क गए और उन्होंने भी जोशी जी को किनारे लगाते हुए समवेत स्वर में जे पी सी का राग अलापना जारी रखा .इधर प्रकाश कारात,सीताराम येचुरी ,वृंदा कारात और वासुदेव आचार्य भी जे पी सी  को भ्रष्टाचार उन्मूलन का एक अचूक शर संधान मानकर संसद से सड़कों पर निकल  पड़े .सपा वसपा जद इत्यादि  विचारधारा विहीन पक्ष -विपक्ष  ने भी वाम और दक्षिण के  इस कांग्रेस मान मर्दन अभियान में सहयात्री वनकर संसद ठप्प करने में नकारात्मक योगदान दिया है .
           वर्तमान संचार मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने जब २- स्पेक्ट्रम की जांच का दायरा २००१ तक बढ़ाये जाने की सिफारिश की और सुप्रीम कोर्ट ने इसे सी बी आई को निर्दिष्ट किया तो असहाय भाजपा और विपक्ष प्याज -प्याज चिल्लाने लगा .हाय प्याज ,हाय सब्जी -बिलकुल सही स्टेप लिया विपक्ष ने किन्तु सड़कों पर ,संसद में क्या तकलीफ थी ? आपको जनता ने चुनकर संसद में भेजा की आप जनता के सरोकारों को देश के सरोकारों को उचित ढंग से साधने हेतु विधायिका का सही उपयोग और सम्मान करें .आप जो सड़कों पर ,प्रेस या मीडिया के सामने कर रहे हैं वो किसी से छिपा नहीं क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है .भाजपा को कोई हक़ नहीं की वो स्पेक्ट्रम या दूर संचार नीति पर यों गरजे .जब जांच २००१ से होने जा रही है तो एन डी ए ,यु पी ए सभी की पोल पट्टी खुलने वाली है .वामपंथ को १२३ एटमी करार पर यु पी ए प्रथम से समर्थन वापिस लेने की वनिस्पत मनमोहन सिंह की घटिया दूर संचार नीति - दयानिधि ,कलानिधि मारन के मार्फ़त बीसियों 
कंपनियों को उनके न्यूनतम अहर्ताएं  नहीं होने के वावजूद लाइसेंस या रेवेन्यु शेरिंग में शामिल किये जाने के विरोध में समर्थन वापिसी का कदम उठाना था . नीरा राडिया  जैसे लाबिस्तों का कामकाज २००२ से ही जारी था . यह महिला उस वीभत्स दलाली रुपी हांड़ी के  एक चावल की कनिका मात्र है .सर्व श्री सुखराम ,राव धीरज सिंह अनंतकुमार .प्रमोद महाजन .अरुण शौरी .दयानिधि ,पासवान और ए राजा भी अंतिम सत्य नहीं हैं .अम्बानी टाटा ,सुनील मित्तल भारती ,वोडाफोन हचिसन एस्सार जैसे दवंग और विभिन्न कार्यकालों में बी एस एन एल ,एम् टी एन एल और डी ओ टी के सर्वो सर्वा
सर्व श्री प्रदीप वैजल .सिद्धार्थ बेहुरा , खरे ,कुलदीप गोयल, माथुर ,भटनागर ,अग्रवाल .सरन ,पृथ्वीपाल सिंह की जांच की मांग भाजपा क्यों नहीं कर रही? .क्या सिर्फ वही मुद्दा लेकर संसद ब्रेक करोगे जो सुब्रमन्यम स्वामी या प्रशांत भूषण उठायेगे? हम जानते हैं की यदि इन सभी की जांच की जाएगी तो एक लाख ७६ हजार करोड़ का हिसाब भी मिल जायेगा .किन्तु यह जरुर होगा की काजल की कोठरी में कांग्रेस और भाजपा भी बराबर के दागदार सावित होंगे .
           यह जांच क्या सावित करेगी ?अपराधियों को सजा मिलेगी या नहीं कुछ भी कन्फर्म नहीं .किन्तु यह तय है की दूर संचार नीति पर गंभीरता से देश की जनता पुनह विचार करेगी .केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को कभी पंडित नेहरु ने और बाद में इंदिराजी ने आधुनिक भारत के नव रत्न -नए मंदिरों से पुकारा था .इतिहास साक्षी है की विगत २००७-०८ की वैश्विक आर्थिक महा मंदी के वावजूद भारत की अर्थ व्यवस्था कमोवेश स्थिर रही . इसका सबसे बड़ा करण था भारत का सार्वजनिक क्षेत्र .सरकारी बैंक ,सरकारी बीमा .सरकारी दूर संचार कम्पनी बी एस एन एल ,एम् टी एन एल ,एच सी एल .कोल इंडिया .भारत पेट्रोलियम ,हिदुस्तान एरोनाटिक्स ,स्टील अथारटी आफ इंडिया जैसे देश के लगभग २०० पी एस युस  ने शानदार ढंग से वित्तीय जीवन्तता का रोल अदा किया और वैश्विक महामारी से भारत बचा रहा .नए इन्फ्रा स्ट्रक्चर या विकाश के नाम पर मनमोहन सिंह जी ने स्वर्गीय नरसिम्हाराव जी के प्रधान मंत्री काल में वित्त मंत्री रहते हुए -इन्ही सार्वजनिक उपक्रमों को बेचकर पूँजी जुटाने का आइडिया ईजाद किया था .इसी राह पर जब एन डी ए की अटल सरकार चल रही थी तो कांग्रेस ने चलताऊ विरोध किया था .वाम ने और उसकी ट्रेड union  ने लगातार इस तथाकथित सुधारवादी {सार्वजनिक संपदा को बेचकर दलालों और कर्पोरत का पेट भरने वाली } नीति का विरोध अवश्य किया किन्तु यु पी ये -वन  के दौरान भाजपा को सत्ता से बाहर रखने की भारी कीमत भी चुकाई है .कांग्रेस और यु पी ये -२ ने वही विनाशकारी दूर संचार नीति जारी रखी हैं जो देश की सुरक्षा को और अस्मिता को ख़त्म कर रहीं हैं .
     २-जी स्पेक्ट्रम कोई बड़ा मुद्दा नहीं है .३-जी से सरकार को जो एक लाख ८ हजार करोड़ मिले हैं वे और यदि २-जी से पुनह नीलामी से भी इतने ही मिल जाएँ तो भी उतने नहीं जो इस नई  दूर संचार नीति के स्थापन उपरान्त देशी विदेशी दलालों -राजनीतिज्ञों ने  देश के खजाने से लूटे.हैं इस पर मौन क्यों ?स्विस बैंकों में जो रकम जमाँ है उस पर पक्ष -विपक्ष मौन क्यों ?भारत संचार निगम के ३८ हजार करोड़ रूपये सरकारी कोष में गए या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े कौन जाँच करेगा ?सार्वजनिक उपक्रमों को इतना कमजोर किया जा रहा है की वे स्वत ख़त्म हो जायेंगे .तब आसानी से उसके इन्फ्रास्त्रक्चार  को निजी कम्पनियों के हाथों बेचा जा सकेगा .मेरे इस कथन पर किसी को अविश्वाश हो तो किसी लाबिस्त से पूंछे ,कोई न मिले तो नीरा राडिया तो सबके लिए सुलभ है .
  एक ध्र्वीय विश्व व्यवस्था में अब आर्थिक उदारीकरण को पूर्ण रूपेण तो नहीं रोका जा सकता किन्तु स्वच्छ ईमानदार प्रशाशन और आवाम के हित संवर्धन हेतु संसद को तो ठीक से चलाया जा सकता है .इसमें तो पाकिस्तान ,अमेरिका या आतंकवाद का हाथ नहीं इसमें संघ का कितना हाथ है? ये मेरे जैसे अदने आदमी की बूझ से ऊपर की बात है .देश की जनता फैसला करेगी की पक्ष -विपक्ष दोनों ही जब स्पेक्ट्रम या दूर संचार नीति के निर्माण में बराबर के भागीदार हैं तो संसद ठप्प क्यों की गई ?देश की जनता को जरुर जानना चाहिए .
      चूँकि वामपंथ का कोई भी व्यक्ति कभी संचार मंत्री तो क्या संचार संतरी नहीं बना अतः निश्चय ही वे अभी तो इस सन्दर्भ में वेदाग हैं किन्तु जब प्रधान मंत्री और सरकार कह रही है की आओ जे पी सी के बारे में भी संसद में ही चर्चा करें तो वाम पंथ  को क्या उज्र थी की नागनाथ -सापनाथ के चक्कर में अपने सांसदों को भी लोकतंत्र के मार्फ़त राष्ट्र सेवा और खास तौर से उन मुद्दों पर जो सर्वहारा के हित में इस सुअवसर पर साधे जा सकते थेउन महत्वपूर्ण योगदानों से वंचित किया ?.

          श्रीराम तिवारी

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

म.प्र. में भाजपा सत्ता में है किंतु विपक्ष में कौन?

कांग्रेस के ८३ वे अखिल भारतीय अधिवेशन-बुराड़ी के हीरो -राघवगढ़ नरेश ,राजा दिग्विजय सिंह जी को मालूम हो कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की हालत बेहद शर्मनाक है .भारतीय लोकतंत्र और भारतीय गंगा जमुनी संस्कृति के लिए आपकी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता और विचारिक संघर्ष काबिले तारीफ हो सकती हैं , किन्तु आप राष्ट्रीय नेता की हैसियत बनाये रखने के चक्कर में अपनी स्थापित जड़ों में मठ्ठा डालने वालों पर अभी भी विजय हासिल नहीं कर सके हैं व्यवहार में यही द्रष्टव्य हो रहा है .




भाजपा और संघ कि युति के समीकरण मध्यप्रदेश के संदर्भ में शेष भारत यहाँ तक कि गुजरात से भी अलहदा हैं .यहाँ शिवराज सरकार ने पूंजीपतियों को पांच लाख एकड़ जमीन कोडी मोल उपलब्ध कराई किन्तु कांग्रेस कि प्रदेश इकाई या प्रदेश कि ज़िला इकाइयों ने इसका संज्ञान तक नहीं लिया .यदि यहाँ कांग्रेस कि सरकार होती और भाजपा विपक्ष में तो मध्प्रदेश कि भाजपा ने जमीन आसमा एक कर दिया होता .हाथ कंगन को आरसी क्या ? विगत ६ माह में भाजपा का हर क्षेत्र में स्खलन हुआ है किन्तु यह राजनेतिक चातुर्य ही है कि अपनी सरकार कि असफलताओं पर अपने ही अनुषंगी संगठनो द्वारा जनांदोलन के रूप में राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ ने लगातार शिवराज सरकार को घेरा है .



विगत जुलाई से नबम्बर २०१० तक छात्रों कि समस्याओं को अखिल भारतीय विद्द्यार्थी परिषद ने लगातार आक्रामक आंदोलनों के माध्यम से प्रदेश की भाजपा नीत शिवराज सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की . प्रश्न ये है की एन एस यु आई क्या कर रही है ? कभी कभार छात्र संघ के पदाधिकारियों के नाम भले ही इस या उस विज्ञप्ति में देखने में आये हैं .किन्तु जब तक एन एस यु आई संघर्ष का प्रोग्राम बनता है ,विद्द्यार्थी परिषद् मैदान मार लेती है .



वामपंथी छात्र संघों की लड़ाकू क्षमता भी मध्य प्रदेश के सन्दर्भ में निराशा जनक है ,कई जगह पर तो शाखाएं भी नदारद हैं .जहाँ हैं वे संवैधानिक तौर तरीके से न्यूनाधिक भी नहीं चल पा रहीं हैं .केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त राशी से बनाये जा रहे सुपर कारीडोर ,जे एन यु प्रोजेक्ट के तहत निर्माणाधीन राष्ट्रीय राजमार्गों की दुर्दशा देखकर किसी भी बाह्य आगंतुक का मध्य प्रदेश में ह्रदय खिन्न होजाना स्वभाविक है किन्तु युवक कांग्रेस कहाँ है ?बड़ी कांग्रेस अर्थात पी सी सी कहाँ है ?



इधर भोपाल के समिधा भवन जाकर देखिये दिग्विजय सिंग जी इसे कहते हैं खांटी चाणक्य नीति.



अभी कल परसों २१-२२ दिसंबर २०१० को अभिनीत नाटक के नेपथ्य में वही हैं जिन्हें आप हिदुत्व कट्टरतावाद के नाम पर घेरने की असफल कोशिश कर रहे हैं .



जिन २ लाख किसानो ने पूरे ४८ घंटे तक भोपाल को बंधक बना रखा था ,वे सभी संघ के नेताओं की गुजारिश और सरकार की सहमती से ही आये थे .इस नूरा कुश्ती का वही परिणाम हुआ जिसकी आशंका थी ,अर्थात संघ के दरवार में दोनों आनुषांगिक -भाजपा सरकार और तथाकथित आन्दोलनकर्ता किसान संगथन को सुलह सफाई के बहाने रूबरू कराया गया और मीडिया जो की भाजपा का भोंपू बन चुका है -उसके मार्फ़त ढिंढोरा पिटवाया की लो भाजपा के लोगों ने किसानो की समस्या के लिए संघर्ष किया और सरकार {शिवराज सरकार ]ने किसानो को कितना सारा दे दिया ?माला माल कर दिया . सारांश यह है की मध्यप्रदेश में सत्ता में भाजपा और विपक्ष में संघ के अनुषंगी,अब दिग्गी राजा चाहें तो बटाला हाउस ,अजमेर ,मालेगांव .बलोस्ट,समझोता एक्सप्रेस या देवास केसुनील जोशी की तथाकथित निर्मम हत्या को शिवराज सरकार द्वारा रफा दफा करने के लिए कोसते रहेँ,कोई फर्क नहीं पड़ता.



भूंख .भय ,भुखमरी और भयानक गरीबी जहालत से जूझती मध्यप्रदेश की जनता को इस स्थिति में लाने का श्रेय भी दिग्गी राजा कुछ हद तक आपको ,कांग्रेश को भी तो है .अभी २० दिसम्बर को कांग्रेस के महा अधिवेशन में शहडोल जिले की आदिवासी महिला ने क्या कहा ?कांग्रेस ही कांग्रेस को हरवाती है इस कथन से कौन सहमत नहीं ?वास्तव में कुल जमाँ २३ प्रतिशत वोट पाकर भाजपा सत्ता में हैं और ३३ प्रतिशत वोट पाने वाली कांग्रेस सत्ता विहीन और शायद इसी भ्रम में कांग्रेस जी रही की वो तो सनातन से सत्ता में है और इसीलिए विपक्ष की भूमिका निर्वहन के लिए रंचमात्र तैयार नहीं .उधर भाजपा सत्ता में रहते हुए भी तीनो मोर्चों पर पूरी शिद्दत से सक्रिय है ,एक -वह स्वर्णिम मध्यप्रदेश का नारा देकर शानदार मार्केटिंग करके जनाधार बढ़ा रही है .दो -संघ से तालमेल कर हिंदुत्व को शान पर चढ़ा कर धार तेज कर रही है,तीन पानी -बिजली -की कमी -महगाई ,बेरोजगारी और भारी भृष्टाचार की तोहमतों से बचने के लिए स्वयम विपक्ष की भूमिका अदा कर भाजपा मध्य[प्रदेश में अगली बार भी सत्ता रूढ़ होने को है और दिग्गी राजा अकेले भाद फोड़ रहे हैं .उनका फासिज्म से कट्टरवाद से लड़ना सही है किन्तु उनकी सेना मध्यप्रदेश में कहाँ है ?उनसे ज्यादा तो वामपंथ और वसपा सक्रीय हैं . कांग्रेस यदि सचमुच धर्मं निरपेक्षता और प्रजातंत्र के लिए प्रतिबद्ध है तो उसे सिर्फ वयान वीर नहीं कर्मवीर तराशने होंगे ..



जब तक यह आलेख पाठकों तक पहुंचेगा तब तलक अगली कार्यवाही के रूप में भारतीय मजदूर संघ की मध्यप्रदेश इकाई द्वारा शिवराज सरकार को मजदूरों की समस्याओं से सम्बन्धित मांग पत्र प्रेषित कर दिया जावेगा ,हालाँकि वामपंथी ट्रेड यूनियनों द्वारा संगठित क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की आवाज समय -समय पर सीटू द्वारा उठाई जाती है किन्तु मजदूरों को जो भी सहुलियेतें या उनके हित में सरकारी अंशदान होगा वो भारतीय मजदूर संघ के प्रतिनिधि मंडल से समझोते के आधार पर होगा .इसीलिए शीघ्र ही आर एस एस के निर्देश पर बी एम् एस भी वही करने जा रहा जो उनके बंधू बांधवों -वनवासी परिषद् ,किसान संघ ,विद्धार्थी परिषद् और विश्व हिन्दू परिषद् ने किया है



संघ के सभी अनुषंगी एक साथ बैठकर निर्णय करते हैं और फिर बारी-बारी से जनांदोलनो की नूरा कुश्ती करते हैं भगवतीचरण वर्मा की कहानी "दो बांके 'भोपाल ,इंदौर .जबलपुर .ग्वालियर .सागर में इफरात से सड़कों पर अभिनीत हो रही है .फर्क सिर्फ इतना है की एक बांका सत्ता में है तो दूसरा सत्ता का अनुषंगी .कांग्रेस तो इस समय पर्दा गिराने वाले की हैसियत में बिलकुल नहीं . साम्प्रदायिकता के खतरों को दिग्गी राजा समझ गए ये काफी नहीं -जनता भी ऐसा ही सोचे -समझे और करे तो कोई बात है अन्यथा आपकी ये मशक्कत किसी काम की नहीं .



श्रीराम तिवारी ....

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

आधुनिक लक्ष्मी बनाम नव्य उदारवाद...

    ओपेक  यु ए  ई  में,उत्तर अमेरिका में,आसियान ई ई सी में अब तू  बसत  है .
    पेंटागन बना  तेरा नया काल भेरों  देवी, पेट्रोलियम  तेरे ह्रदय   में बसत है ..

    वाणिज्यी करण भूमंडलीकरण में,श्रम के लुटेरों कि धाक तू धरत है .
    आतंकी पैदा करें,धरती हलाल करें,तेल के कुओं  का क्यों उन्हें ही वरद है.

     स्विस बैंक खातों में,सत्ता के अहातों में,कार्पोरेट कम्पनी के दिल में बसत  है .
    आतंक में,माफिया में,डकैती-ठगी में देवी,आर्थिक घपलों में  तेरीही बखत है.

    कामनवेल्थ  गेम्स  में,टूजी स्पेक्ट्रम में,आदर्श सोसायटी में तूँ ही तूँ दिखतहै .
   राजा हो राडिया,बैजल हो येदुरप्पा,भ्रष्टन  पर तू मेहरबान  सी  दिखत है

    पूंजीवाद में है नव्य अवतार वाद केपिटल  नाम से बाजार सब  जपत है .
 जहाँ पे हो रिश्वत,चोरी-चकारी देवी,वहां तू न होवे ऐसो  कैसे हो सकत है ..

         श्रीराम तिवारी
     संयोजक जन काव्य भारती
१४-ड़ी,एस -४,स्कीम -७८
 विजयनगर ,इंदौर ,पिन ४५२०१०
 ०७३१-२५७५७७७ ,९४२५४८०७२२

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

चीन की चालाकियों से कैसे निबटा जाए...

   मुझे  मालूम है कि मेरे इन विचारों  को शेख  चिल्ली के सपनों  कि तरह ख़ारिज कर दिया जायेगा .वाम बुद्धिजीवी  तो संज्ञान ही नहीं लेंगे और  देश के दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी तो यह सोचकर रात को जल्दी सोते हैं कि  सुबह  पौ फटने से पहले ,हरिनाम स्मरण से पहले धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं और खास तौर से मार्क्सवादियों को एक भद्दी सी गली देना है ,भले ही कोई उन्हीं  के शब्दों को, उन्ही के विचारों को सही साबित  करता हो, किन्तु यदि वह सर्वहारा वर्ग के हित कि बात भी करता है तो उन दकियानूसों को तो वह शत्रुवत ही दिखने लगता है ,उस वापरे तथाकथित प्रगतिशील  को प्रतिसाद  में सिर्फ पूंजीपति वर्ग का ही नहीं अपितु -निम्न मध्यम वर्गीय लम्पट शिक्षितों और अशिक्षित सर्वहारा के अंध विश्वासों  का कोपभाजन  बनना पड़ता है .
              देश के मध्यम मार्गी प्रेस -मीडिया -राजनीतिक  -कूटनीतिकों कि चतुश्त्यी  को सिर्फ आशाओं के  मरहम से ही तसल्ली करनी पड़ रही है ,वे वेन च्या पाओ के नाकाबिले बर्दाश्त  व्यवहार से आक्रान्त हैं, मैं  उन्हें और दुखी नहीं करना चाहता. दरअसल   चीन के वर्तमान रवैये से तो कोई भी भारतीय संतुष्ट  नहीं है .मैं तो रंचमात्र भी आश्वस्त नहीं हूँ. बेशक दुनिया में तमाम तरह कि राजनैतिक-सामाजिक व्यवस्थाओं में साम्यवादी शासन  सबसे बेहतर व्यवस्था है किन्तु चीन के लिए यह कतई  मुनासिब नहीं था कि भारत कि परेशानियों -आतंकवाद, साम्प्रदायिकता, पूंजीवादी  चरम भृष्टाचार और प्रजातान्त्रिक  विविधता का   नाजायज फायदा उठाये ,भारत कि उपेक्षा करे और पाकिस्तान से प्यार कि पेगें बढ़ाये. भले ही वह पाकिस्तान, बंगला देश, नेपाल से दोस्ती रखे किन्तु भारत की  कीमत पर यदि ऐसा होता है तो हमें इसका करारा जबाब देने के लिए सदैव तैयार रहना होगा .
           मार्क्सवाद -लेनिनवाद, सर्वहारा अंतर राष्ट्रीयतावाद के सिद्धांतों  को भारत के सन्दर्भ में चीन अमल में नहीं ला रहा है, क्या भारत के ७० करोड़ गरीब मजदूर चीन को दिखाई नहीं दे रहे ?  क्या भारत ने अतीत में चीन को सभ्यता-संस्कृति और दर्शन से उपकृत नहीं किया ? क्या पंडित नेहरु ने पंचशील और संयुक राष्ट्र में तब के पद्चुत चीन को विश्व बिरादरी  में प्रतिष्ठित नहीं किया ? इसके विपरीत  चीन ने भारत को क्या दिया ? कभी भी दिल से भारत का समर्थन, किसी भी मंच पर नहीं किया. आखिर किस बात पर भारत से ज्यादा पाकिस्तान को तवज्जो दी जा रही है ?
              चीन के प्रधान मंत्री  वेन जिआबाओ   ने भारत से पाकिस्तान कि ओर प्रस्थान से पूर्व  भारतीय मीडिया पर  आरोप जड़ दिया कि भारतीय मीडिया द्वी- पक्षीय सम्बन्धों को ख़राब कर रहा है. उन्होंने नसीहत भी दे डाली कि मीडिया को दोस्ती बढाने में भूमिका का निर्वहन करना चाहिए. त्रि -दिवसीय भारत यात्रा के उनके निहितार्थ  तो ठीक हैं क्योंकि वैश्वीकरण कि दुनिया में भारत या चीन या दोनों के बीच वाणिजिक संबंधों का होना लाजिमी है किन्तु
उन्होंने भारत के लोगों को जो अच्छे पडोसी होने कि सलाह दी वो न काबिले बर्दाश्त  है. भारत  ने कभी किसी पर हमला नहीं किया और न कभी किसी के खिलाफ वैसी घेरेबंदी  की  जैसे कि चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, बंगलादेश और म्यामार से मिलकर भारत के खिलाफ की  है.
        वेन जिआबाओ  ने आतंकवाद, स्टेपल वीसा,  संयुक राष्ट्र संघ में भारत के लिए स्थाई सदस्यता पर कोई सकारात्मक सहमती नहीं दी, केवल ६ अग्रीमेंट, ९ सहमती पत्र और दो नसीहतों के साथ चीन ने भारत के पूंजीवादी निजाम को भले ही उचित सम्मान से न नवाजा हो ,किन्तु भारतीय जन गन  कि चिर अभिलाषा -वसुधेव कुटुम्बकम  के आगे उसे नतमस्तक  होना ही होगा ...इसके लिए यदि चीन को उसी के हथियार से उसी कि विचारधारा से -चाहे उसे साम्यवाद कहें या माओवाद या देंगवाद से निपटना होगा ..कहावत है "If  you  can 't defeat  you  join  them ; चीन को जिस ताकत का अभिमान है, जिस सामरिक बढ़त का अभिमान है वो विगत ६० वर्षों के कट्टर साम्यवादी शासन का ही परिणाम है ...भारत को भी इसी व्यवस्था को कम से कम बतौर प्रयोग १० साल के लिए अपनाने में नहीं हिचकिचाना चाहिए .जिस तरह चीन कि तरक्की से सारा संसार चकित है वो भारत सिर्फ १० साल में कर दिखा सकता है. आज भारत को आजाद हुए ६४ साल हो गए हैं किन्तु इस अर्ध पूंजीवादी -अर्ध सामंती राजनैतिक -सामजिक व्यवस्था से उसकी हालत ये है कि जब सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले तो चोर कि जांच पड़ताल होगी. भारत और चीन कि आर्थिक स्थिति का अनुपात है १:८ अर्थात चीन हमसे हर चीज में आठ गुना ताकतवर है. दुनिया के गरीब देशों में भारत ऊपर से नीचे ६८ वें नंबर पर है जबकि चीन दुनिया के पांच वीटो धारकों और ८ समृद्ध -जी -८  में शुमार है ..भारत को जिस विपरीत प्रवाह में तैरना पड़ रहा है वो चीन को दरपेश नहीं .भारत चारों ओर से बाह्य शत्रुओं से घिरा है .अन्दर तो हालत ये हैं कि आतंकी ,अलगाववादी .नक्सलवादी ,माओवादी .जातिवादी ,संकीर्णतावादी ,न जाने कितने घाव हैं इस भारत रुपी पुरातन राष्ट्र को कि अब तो बरबस कहना पड़ रहा है कि इस मुल्क को एक महान क्रांति  कि दरकार है .
      चीनी नेता शायद भारत को ताकतवर नहीं देखना चाहते .पाकिस्तान भी ऐसा ही सोचता है .इसी सोच ने चीन और पाकिस्तान में अटूट दोस्ती का माद्दा पैदा किया है वर्तमान व्यवस्था में भारत इन पड़ोसियों को कोई चुनोती नहीं दे पा रहा है .केवल शांति -शांति का मन्त्र बुदबुदाने से कुछ नहीं होगा ..इनको कितना भी सम्मान दो ये बाहर भीतर दोनों ओर से भयानक  विष-दन्तों से  इस महान अहिंसा वादी भारत को निगल रहे हैं ..
       इन्हें कोई चुनौती  दे सकता है तो वो है -सुव्यवस्थित ,भ्रष्टाचार  विहीन ,सर्वहारा अधिनायकवादी .जनवादी -साम्यवादी {बिलकुल चीन जैसा ही}भारत ...लोहा ही लोहे को काट सकता है -अखंडता ,स्वाधीनता, सम्रद्धि  और संयुक राष्ट्र में वीटो पवार सब बिन  मांगे मिल जायेंगे जैसे कि ६० साल पहले चीन को सिर्फ इसीलिये मिल गए कि बीजिंग में लाल झंडा फहराया गया था .जबकि पूरा चीन बेहद गरीब ,दलदल .बीमारियों और कुरीतियों का कुआँ  था.   भारत में जिस दिन लाल किले पर लाल झंडा फहराया जायेगा चीन कि  बोलती   बंद हो जाएगी  .पाकिस्तान दुम दबाकर   शांत हो जायेगा .अमरीका और दुनिया के सम्रद्ध  देश भारत को वही आदर देंगे जो आज चीन को मिल रहा है तथा अंदरूनी बीमारियों, भुखमरी, असमानता और अकीर्ति से निजात मिलेगी.
       

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

वक्त तमाशे दिखा रहा है, देख रही है नई दिल्ली...

संसद ठप्प है बीस दिनों से ,बनी तमाशा नई दिल्ली .

सी बी आई जोश दिखाए ,.थर -थर काँपे नई दिल्ली ..

राजा-राडिया वैजल मोझी ,स्पेक्ट्रम के हैं वारे न्यारे .

तन मन धन से चुका रही है,.देश क़ी कीमत नई दिल्ली ..



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यह कोई आसान नहीं है भूख सताए जन- गन को .

मगर अदालत क़ी नहिं सुनती .सुन -बहरी है नई दिल्ली

सुनते रहते चीन अमेरिका ,बाजारों क़ी आहट को ,

पलक पांवड़े उन्हें विछाती लुटी पिटी सी नई दिल्ली ..

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जनता का धन लूटा खाया, धत्ता बताया जनता को,

संघर्षों का पता पूछती, अलख जगाती नई दिल्ली,

नागनाथ से पीछा छूटा, सांपनाथ ने घर पकड़ा,

वक्त तमाशे दिखा रहा है, देख रही है नई दिल्ली

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

ऐतिहासिक तथ्य-अन्वेषण और आस्था...

   अयोध्या विवाद के सन्दर्भ में लखनऊ खंड पीठ द्वारा सम्बन्धित पक्षकारों को दी  गई ९० दिन की  समयावधि वीतने जा रही है ..इस विमर्श में जहाँ एक ओर   हिंदुत्व वादियों  ने अपने पुराने आस्था राग को जारी रखाऔर धर्मनिरपेक्षता पर निरंतर प्रहार जारी रखे वहीं  दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष ने भी दवी जबान से  कभी न कभी हाँ में लखनऊ खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने की बात की है  लगता है की निर्माणी अखाडा  भी अपने दूरगामी एकता प्रयासों में असफल होकर  किम्कर्तव्य विमूढ़  हो चुका है .इस विवाद में केंद्र की यु पी ये सरकार और यु पी  की वसपा सरकार  वेहद फूंक फूंक कर अपना -अपना पक्ष रख रहीं हैं इस दरम्यान प्रस्तुत विमर्श  में देश के कुछ चुनिन्दा बुद्धिजीवियों  ने ,स्वनामधन्य इतिहासकारों ने भी तार्किक और अन्वेषी आलेख प्रस्तुत किये हैं . इनमे दक्षिण पंथी हिंदुत्व वादिओं और वामपंथी  इतिहासकारों ने  जरुरत से ज्यादा बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया .कहीं कहीं  विषयान्तर्गत भटकाव ,तकरार और उपालम्भ  भी पढने -सुनने में आया ..
       उभय पक्ष के कट्टरता वादी तो वैसे भी धर्मनिरपेक्ष बिरादरी के लिए नव अछूत हैं किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पक्षधरों ने भी जिस तरह इतिहास और लोक आश्था का पृथक्करण किया वो न तो भावी भारत के निर्माण में सहायक है और न ही उस दमित शोषित अनिकेत -अकिंचन भारत का पक्ष पोषण करने में सफल हुआ जिसके लिए उसे साहित्य -इतिहास और राजनीत में पहचना जाता है .इनकी विवेचना के निम्न बिंदु द्रष्टव्य हैं
एक -अधिकांस विद्वानों ने हिन्दुओं के तमाम पुरा साहित्य  -वेद,पुराण ,निगम ,आगम ,दर्शन और और इतिहास को या तो ब्राह्मणवाद के जीवकोपार्जन का साधन माना है या फिर चारणों-भाटों द्वारा गई गई सामंतों की रासलीला- इसे इतिहास नहीं बल्कि 'मिथ "सावित करने की कोशिश की है .
दो -इन्ही विद्वानों ने पता नहीं किस आधार पर गैर हिन्दू, गैर सनातनी और विदेशी आक्रान्ताओं की मर्कट लीला को इतिहास सावित करने के लिए एडी -छोटी का जोर जगाया है  इन इतिहास कारों  को हम वामपंथी नहीं मान सकते  क्योंकि  इनके अधकचरे ज्ञान को वामपंथी कतारों में संज्ञान लिए जाने
से देश के सर्वहारा वर्ग को भारी हानि हुई है .देश के ८० करोड़ हिन्दू जो की आकंठ आश्था में डूबे हैं  और खाश तौर से राम के भरोसे हैं उनमें से लगभग ३० करोड़ सर्वहारा हैं और उनके सामने जीवन की तमाम चुनौतियों से निपटने में उन बजरंगवली का ही सहारा है जो स्वयम सर्वहारा थे और उनका ही आदेश था की 'प्रात ले जो नाम हमारा ,तेहि दिन ताहि न मिले अहारा ..."
 तीन -दक्षिण पंथी ,हिंदुत्व वादी -संघपरिवार  ,विश्व हिन्दू परिषद् ,भाजपा इत्यादि का नजरिया तो जग जाहिर है की वे अपने पूर्वाग्रही चश्में से बाहर देख पाने में अक्षम हैं सो अपनी रस्सी को सांप बताएँगे ,अतीत के वीभत्स सामंती शोषण के दौर को स्वर्णिम इतिहास बतायेगे ..वे तो खुले आम कहते  हैं की फलां देवी का फल अंग फलां जगह गिरा सो फलां शक्ति पीठ बन गया ...या कहेंगे की समुद्र इसीलिए खारा है की अगस्त ऋषि ने सातों सिन्धु अपने पेशाब से भर दिए थे ...या की कर्ण सूर्य से ,भीम पवन से ,अर्जुन इन्द्र से और युधिष्ठर धर्मराज के आह्वान से कुंती को वरदान में मिले थे या कहेंगे की धरती शेषनाग पर टिकी है या कहेंगे की श्री हरि विष्णु जी क्षीरसागर में लक्ष्मी संग शेषनाग पर विराजे हैं ,या कहेंगे की -जिमी वासव वश अमरपुर ,शची जयंत समेत ...वगेरह ...वगेरह ..
चार -वामपंथी बुद्धिजीवी के लिए भगवद गीता में एक शानदार युक्ति है ..न बुद्धिभेदं ..जनयेद ज्ञानं कर्म संगिनाम..जोषयेत सर्व कर्माणि विद्वान् युक्त समाचरेत ...अर्थात वास्तविक ज्ञानियों {वैज्ञनिक दृष्टिकोण वाले }को चाहिए की वे अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम युत्पन्न  न करें ..जब तक की वो आपके जैसा समझदार न हो जाये  तब तक उसे इसी हिसाब से चलने दे .बल्कि उसके साथ उसकी भाषा में उसी के प्रतीकों और बिम्बों से संबाद स्थापित करे .अब यदि देश के करोड़ों गरीब हिन्दू अभी संघ परिवार के ह्मसोच  जैसे हैं तो इसके मायने ये थोड़े ही है की वे सब भाजपाई या संघी हो चुके हैं .यदि ऐसा होता तो वैकल्पिक प्रधानमंत्री जी संन्यास की ओर अग्रसर क्यों होते ? अतेव जिस तरह यह माना जाता है की हर मुस्लिम आतंकवादी नहीं होता .उसी तरह यह भी तो सच है की हर हिन्दू साम्पदायिक नहीं होता ,भले ही वो शंकराचार्य ही क्यों न हो ?स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती  क्या साम्प्रदायिक हैं ?नहीं लेकिन वो संघीय दृष्टिकोण से हिंदुत्व को नहीं देखते .वे रात दिन पूजा पथ और कर्मकांड में निरत होने के वावजूद हिन्दू मुस्लिम ईसाई ओए सभी धर्मों के साहचर्य की तरफदारी करते हैं .लेकिन जब कोई सूरजभान ,इरफ़ान हबीब ये कहता है की राम ,अयोध्या या राम मंदिर सब कोरी लफ्फाजी है ,इतिहास नहीं मिथ है तो स्वरूपानंद जी जैसों की हालत दयनीय होती है ..उधर मजूरों किसानों में काम करने बाले वाम काडरों को जन सरोकारों से जूझने के लिए जन सहयोग इस आधार पर कम होता जा रहा है की "तुम क्म्मुनिस्ट तो नास्तिक हो "बंगाल में तो लगभग आज यही स्थिति है .क्योंकि फलां वाम इतिहासकार का कहना है की राम तो कोरी कल्पना है ,बाबर के सेनापति मीर बाकी ने कोई मंदिर नहीं तोडा ,वहाँ मंदिर था ही नहीं .रामायण तो मिथक वृतांत है ..इस तरह की बात करने वाले यदि वामपंथ के समर्थन में खड़े हैं तो वाम पंथ को किसी और दुश्मन की या वर्ग शत्रु की आवश्यकता नहीं .
पांच -हिंदुत्व और इस्लामिक आतंकवाद दोनों बराबर ....यह बार बार दुहराया जा रहा है ... आतंक का कोई मज़हब नहीं होता ...यह अक्सर वाम पंथ की ओर से और धर्म निरपेक्षता की कतारों से आवाज  आती है किन्तु वास्तविक प्रमाण तो जग जाहिर हैं  फिर विश्वशनीयता को दाव पर लगाना क्या हाराकिरी नहीं है ?
छे ;-बाइबिल .कुरान ए शरीफ .और दीगर धर्म ग्रुन्थ पर किसी भी वाम चिन्तक या इतिहाश्कार ने कब और कहाँ नकारात्मक टिप्पणी की ?यदि भूले से भी कहीं कोई एक अल्फाज या कोई कार्टून बना तो उसकी दुर्गति जग जाहिर है .राम इतिहास पुरुष नहीं .वेद ,पुराण आरण्यक ,उपनिषद .गीता रामायण और अयोध्या सब झूंठे ...ऐसा कहने वाले लिखने वाले सेकड़ों लोग सलामत हैं क्योंकि अधिकांस हिन्दू अहिंसक ,विश्व कल्यान्वादी ,सहिष्णु और धर्मभीरु हुआ करता है .यही वजह है की उसके पूजा स्थल तोड़े जाते रहे .उसकी आश्था लातियाई जाती रही उसका शोषण -दमन किया जाता रहा किन्तु वह सनातन से ही तथा कथित धरम -मर्यादा में आबद्ध  होने से अपने ऐहिक सुख को शक्तिशाली वर्ग के चरणों में समर्पित करता रहा और बदले में परलोक  या अगला जन्म सुधरने की कामना लेकर असमय ही काल कवलित होता रहा .
                अधिकांस आलेखों के लिए शोधार्थी अपने आलेख के अंत में विभिन्न ग्रन्थों और पूर्व वर्ती इतिहास कारों  के सन्दर्भों को इसलिए उद्धृत करते हैं कि  वे प्रमाणित हों ,सत्यापित हों .यह नितांत निंदनीय है और बचकानी हरकत भी कि जिस पुरातन साहित्य को गप्प या अतीत का कूड़ा करकट कहो उसी में से प्रमाणिकता का सहारा ...धिक्कार है ..पूर्व वर्ती इतिहास कार भी इंसान थे ..उन्होंने भी अपने से ज्यादा पुराने और कार्बन वादियों ,घोर हिन्दू बिरोधी इतिहासकारों कि नजर में तो वे और ज्यादा रूढ़ एवं अवैज्ञानिक  अतार्किक होने चाहिए .
       अयोध्या विवाद पर निर्मोही अखाडा ,राम लला विराजमान और हाकिम अंसारी जी और उनके संगी साथी आइन्दा क्या करेंगे ये तो नहीं मालूम ..संघ परिवार क्या करेगा नहीं मालूम ...सर्वोच्च अदालत का फैसला क्या होगा नहीं मालूम .लेकिन ये हमें मालूम है कि अयोध्या में राम लला का मंदिर अवश्य बनेगा .और इसका श्रेय अकेले संघ परिवार को नहीं बल्कि देश कि तमाम जनता को -हिदुओं ,मुस्लिमो और दीगर धर्मावलम्बियों को और वाम पंथियों को क्यों नहीं मिलना चाहिए ?क्या राम से लड़कर भारत में साम्यवाद लाया जा सकता है ? एक बार मंदिर बन जाने दें .उसके बाद देश कि शोषित पीड़ित  अवाम  को एकजुट कर वर्गीय चेतना से लेश कर, शोषण कि पूंजीवादी सामंती और साम्प्रदायिक नापाक ताकतों को आसानी से  बेनकाब  कर साम्यवादी क्रांति का शंखनाद किया जा सकता है .हिन्दुओं कि सहज आस्था से किसी भी तरह का टकराव सर्व हारा क्रांति में बाधा कड़ी कर सकता है अतः स्वनाम धन्य बुद्धिजीवियों और उत्साहिलालों से निवेदन है कि अयोध्या विवाद में न्यायिक समीक्षा के नाम पर अपनी विद्वत्ता  का प्रदर्शन करने से बाज आयें ...
          

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

विकिलीक्स के भारतीय संस्करण की ज़रूरत नहीं...

  देश विदेश के विभिन्न सूचना माध्यमों में विकिलीक्स ने खासा स्थान बना लिया है .कुछ  भारतीय मनचलों ने तो इसके भारतीय संस्करण की आवश्यकता भी रेखांकित की है .दिसंबर २०१० का आगाज दो बातों के लिए इतिहास में दर्ज रहेगा .एक -भारत में सत्ता और पूंजीवादी विपक्ष का  लज्जास्पद कुकरहाव .
               दो -विकिलीक्स द्वारा लाखों की तादाद में तथाकथित सम्वेदनशील और गोपनीय सूचनाओं का खुलासा .
 इस साल की समाप्ति पर सारे दृश्य -श्रव्य -पाठ्य -छप्य मीडिया   को इन दो घटनाओं ने मानो हाईजेक  कर लिया है .. विगत २० दिन संसद का न चलना और भृष्टाचार पर सम्पूर्ण व्यवस्था की पोल खुलना ऐसा ही जैसे की गूलर के फल का फोड़कर भक्षण .करना .स्मरण रहे की गूलर के फल के अन्दर लाखों बारीक कीड़े रहते हैं .यह सभी सयाने जानते हैं .की उसे फोड़कर देखेंगे तो खाया न जा सकेगा .और बिना फोड़े खाना भी सिर्फ तसल्ली भर है है की गूलर सुन्दर है ...अर्थात मूंदहु आँख कतहूँ कोऊ नाहीं.....
      जिस मुद्दे पर संसद नहीं चली वो २-G  स्पेक्ट्रम घोटाला किसे मालूम नहीं था ?सत्ता पक्ष ,विपक्ष मीडिया ,वुद्धिजीवी वर्ग और सचेत न्याय पालिका में इस घटनाक्रम की अधिकांस जानकारी थी जिस पर संसद भी नहीं चलने दी गई .फिर प्रश्न यही उठता है की गूलर फोड़ने के निहतार्थ क्या  वाकई देशभक्तिपूर्ण थे ?
   इसी तरह दुनिया के सामने विकिलीक्स ने जो खुलासा किया वो किसे मालूम नहीं था ? अमेरिका और उसके सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट ,सभी सीनेटर ,डेमोक्रेट्स ,रिपब्लिकन ,अंतर रास्ट्रीय मुदा कोष ,विश्व बेंक और कार्पोरेट कम्पनियों के सी ई ओ क्या इन ख़बरों से अनभिग्य थे जो विकिलीक्स ने उद्घाटित किये हैं ?क्या पाकिस्तान की आई एस आई .मिलिटरी ,आतंकवादी वो सब नहीं जानते थे जो विकिलीक्स ने परोसा है .क्या भारत के शाशक,विपक्षी ,मीडिया वो सब नहीं जानते थे जो जुलियन असान्ज के खबरचियों ने पेंटागन या भाईट हॉउस से चुराया है ? कम से कम मुझे तो विकिलीक्स की एक भी सूचना ऐसी नहीं लगी की में कह सकूँ की हाँ ये मुझे मालूम न था .हालांकि में न तो पत्रकार हूँ और न ही किसी सूचना माध्यम का हिस्सा और विकिलीक्स की खबरों को वामपंथ द्वारा समय -समय पर दी गई चेतावनी के रूप में की अमेरिका के झांसे में मत आओ ,१ २ ३ एटमी करार धोखा है ..अमेरिका ने ईराक पर हमला इसलिए किया की वो मध्य पूर्व के तेल क्षेत्र पर एकाधिकार चाहता है ..पाकिस्तान का अमेरिका प्रेम और तालिवान ,अलकायदा ये सभी अमेरिकन साम्राज्वाद की ओउरस संताने हैं ..वगेरह ...वगेरह ..अब सारे देश को आइना दिख गया की वामपंथ के आरोप सही थे .
         जो सूचनाएँ उद्घाटित की गईं उनमें सभी देशों ,खास तौर से भारत विरोधियों की नंगी तस्वीर और अमेरिकी आकाओं का मुंबई के शहीदों के प्रति मगर मच्छ के आंसू  बे नकाब हो चुकें हैं .जो अमेरिकी नेताओं के सामने नतमस्तक होते रहे वे भले ही चक्राएँ किन्तु जिन्हें इतिहाश वोध है .दुनिया के राष्ट्रीय मुक्ति संग्रामों का इतिहास मालूम है ,ऐसे लोग विकिलीक्स या किसी अन्य सूचना विस्फोट से न तो आश्चर्य चकित होते है और न उसके देशी संस्करण के अभिलाषी हुआ करते हैं .
        जुलियन असान्ज की पिछली जिन्दगी की चूकों को आधार बनाकर अमेरिका और उसके वैश्विक बगलगीर  दोनों मोर्चे पर घ्र्नास्पद हरकतें कर रहे हैं .एक ओर तो भारत जैसे आदर्शवादी  देश को समझा रहे हैं की विकिलीक्स की बातों में मत आना ये तो सब वकवाश है दूसरी ओर विकिलीक्स के प्रमुख जुलियन असान्ज  को काल कोठरी में डाल दिया .
     इस एतिहाशिक सूचना विस्फोट के परखचे अभी तक कूटनीत की प्रयोग शालाओं  में सहेजे जा रहे हैं ..इन खुलासों और विकृत सूचनाओं की वीभत्स तस्वीर से सारा संसार तो नहीं किन्तु दक्षिण एशिया जरुर  भयभीत है .
अधिकांश ख़बरों में अमेरिकी कुटिलता ,पाकिस्तानी छिछोरापन ,चीन की चालाकी और आतंकियों के नापाक मंसूबे  इन्द्राज हैं .सुरक्षा परिषद् में स्थाई सीट के लिए भारत की दावेदारी पर श्रीमती क्लिंटन  द्वारा भारत का  उपहास ,वो भी इस्लामाबाद में -नाकाबिले बर्दास्त  है किन्तु भाजपा और कांग्रेस मौन हैं हैं .
     अमेरिकी हितों की परिभाषा बहुत व्यापकतर की गई है .जैसा की समय समय पर देश के वामपंथी बुद्धिजीवियों ने पूर्व में  भी चेताया था की साम्रज्यवादी उदारवाद के पीछे नव उपनिवेश की अवधारण ही काम कर रही है ,वो ही तो सही सवित होता जा रहा है .कश्मीर की समस्या के पीछे कौन ?गुजरात की फलां केमिकल कम्पनी पर या उडीसा -कर्नाटक की फलां कम्पनी पर यदि विदेशी आतंकवादी हमला करेंगे तो अमेरिका के हितों को कितना नुक्सान संभावित है कुछ इस तरह की सूचनाएँ अवश्य भारत की सचेत जनता तक मीडिया के मार्फ़त पहुंचनी चाहिए ताकि जनता पूँछ सके की हे भारत भाग्य विधाताओ,हे अमरीकी आकाओ,हे वैशिक  चिंतको बताओ की तुम्हारी चिंताओं में भारत की और उसके एक अरब बीस करोड़ जनता जनार्दन की चिंता कहाँ है
      भारत के इलेक्ट्रानिक मीडिया वालो ,सूचना माध्यमो के अलम्बरदारो ,  तुम सच कब बोलोगे ?
    तुम्हारी भी पोल खुल चुकी है ,कुछ ईमानदार चेनलों और पत्रकारों को छोड़कर बाकि सारा सूचना तंत्र बजबजा रहा है .पूंजीपति वही कर रहे हैं जो अमेरिका चाहता है .आपसी व्यापारिक और राजनेतिक प्रतिद्वंदिता के वावजूद आम तौर पर जिन बातों पर उनका आपस में एक है .वो इस प्रकार हैं .;
एक -वे भारत के वामपंथ  को आगे नहीं बढ़ने देंगे .
दो -वे एकजुट होकर भारत में ओद्द्योगिक और श्रम कानूनों को अपने पक्ष में और मजदूर के विरोध में कर चुके हैं .
तीन -संसदीय लोकतंत्र के मार्फ़त राज्य सत्ता पर परोक्ष नियंत्रण और मीडिया को हथियार की तरह इस्तेमाल करना .
 चार -संगठित होकर अमेरिका के स्वर में स्वर मिलाना ताकि समय पर काम आवे .
     विकिलीक्स के खुलासे का निचोड़ यही है की पूरी दुनिया के पूंजीवादी तंत्र ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के अम्ब्रेला की छाँव में ठिकाना बना रखा है .अधिकांश सत्ता के शिखर पर शर्मनाक नग्नता का बोलवाला है .आर्थिक उदारीकरण के हम्माम में सभी नंगे हैं .
   भारत में इस पतनशील सभ्यता का असर जरा ज्यादा ही हो चला है .
यहाँ हर पांचवां व्यक्ति खरीदा जा सकता है ,खरीदने बाला चाहिए ..अमेरिका और पाकिस्तान सबसे बड़े खरीद दार हो गए है .
सब कुछ खुला -खुला है मेरे देश में ....कुछ भी गोपनीय नहीं है ...जुलियन असान्ज को मालूम हो की  यहाँ सत्ता के गलियारों में सेकड़ों बिक चुके हैं ...विकिलीक्स की खबरें यहाँ सब की सब वासिं हैं .यहाँ प्रधानमंत्री या देशभक्तों को बहुत बाद में मालूम पड़ता है पहले बाबाओं .स्वामियों .रादियों .बर्खाओं .राजाओं .अम्बानियो .टाटा ओं और सता के दलालों को पहले से ही सब कुछ पता रहता है वो भी जो विकिलीक्स बता रहा है ,वो भी जो विकिलीक्स को नहीं मालूम .सी आई ये को नहीं मालूम वो भारत के राष्ट्रपति को भी नहीं मालूम होती जो भारत से बहार बैठे भारत के दुश्मनों को पहले से मालूम होती है .क्योंकि अधिकांस दुखद घटनाओं और ख़बरों के जनक भी तो वही हुआ करते हैं
       यहाँ सूचना का अधिकार ,यहाँ देश के विरोध में वोलने का अधिकार .यहाँ संसद में पैसे लेकर वो सवाल पूंछने का अधिकार जो भारत के हित में भले न हो दुश्मन देश के काम की सूचना जरुर हुआ करती है .
   यहाँ का हर १०० वाँ  व्यक्ति अमेरिका और पाकिस्तान के चरण चांपने को  आतुर है .यहाँ से सब कुछ जाना जा सकता है .यहाँ से सब कुछ देखा जा सकता है .फिर .विकिलीक्स के भारतीय संस्करण की दरकार क्यों है ....
   श्रीराम   तिवारी ........

भारत की चीन पर विजय...

इस आलेख का शीर्षक पढ़कर जिन्हें रंचमात्र भी खेल भावना का अहसाश होगा वे अवश्य ही इग्व्वान्ग्ज्हू एसियाद में भारत की खेल सम्बन्धी स्थिति और चीन का विराट अश्वमेधी अभियान के सन्दर्भ में आशावादी दृष्टिकोण पर खुश होंगे .कल १२ दिसंबर २०१०को भारत की शीर्ष बेडमिन्टन खिलाडी साइना नेहवाल ने त्रिस्तरीय गेम्स के संघर्षपूर्ण मुकाबले में चीन की शिझियाँ वांग को हराकर 'होंकोंग ओपन सुपर सीरिज "ख़िताब जीतकर करोड़ों भारतीयों के दिलों को राष्ट्रीय स्वाभिमान से संपृक्त कर दिया .२० वर्षीय साइना ने वांचाई में खेली गई इस विश्व स्तरीय स्पर्धा के फ़ाइनल में विश्व की शीर्ष वरीयता {तीसरी}प्राप्त चीनी खिलाडी को १५-२०,२१-१६,२१-१७,से मात देकर भारी उलटफेर कर दिखाया .साइना ने यह मुकाबला एक घंटे और ११ मिनिट में जीता .साइना की यह इस साल की तीसरी और व्यक्तिगत करियर की चौथी शानदार उप्लोब्धि है .

साइना ने विगत ओक्टोबर में कामन वेल्थ गेम्स में भी स्वर्ण पदक जीतने से पहले "इंडियन ओपन ग्रापी " "सिगापुर ओपन सीरीज "और इंडोनेशियन सुपर सीरिज 'के अंतर राष्ट्रीय खिताबों पर

कब्ज़ा करके भारत का न केवल मान बढाया बल्कि सदियों से दमित-शोषित - पराजित भारतीय जन -गन को वर्तमान प्रतिस्पर्धी युग के अनुरूप बेहतरीन उत्प्रेरक प्रदान किया है .अब भारत की जनता का सच्चा और देशभक्त तबका हर क्षेत्र में नेतृत्व करने को बाध्य होगा .यह एक अकेले साइना नेहवाल के एकल प्रयास का प्रश्न नहीं है .

भारत के कतिपय कट्टर दक्षिणपंथी लोग खेलों को अंतर राष्ट्रीय परिदृश्य पर पाकिस्तान बनाम भारत के नजरिये से देखते रहे और उसी की ये परिणिति है की आम तौर पर हम क्रिकेट ,हाकी या अन्य किसी भी खेल में पाकिस्तान के खिलाड़ियों को भारतीय खिलाड़ियों के हाथों पराजित किये जाने पर क्षणिक आनंद में मग्न रहे और उधर चीन रूस कोरिया ,अमेरिका समेत एक दर्जन देश हमसे आगे निकलते चले गए . कुछ लोग चीन में खेलों के विकाश को नकरात्मक ढंग से प्रस्तुत करते हुए अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं .जबकि प्रतेक अंतर राष्ट्रीय स्पर्धा के उपरान्त खेलों की मूलगामी समीक्षा की जाते रहनी चाहिए .चीन में ऐसा है होता है ...भारत में एक श्रंखला {क्रिकेट की ]जीतने के बाद या एक स्वर्ण पदक किसी अंतर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्राप्त करने के बाद द्वारा उसे हासिल कर पाने की सम्भावना काम ही हुआ करती है .साइना नेहवाल ने यह कर दिखाया ..लगातार तीन टॉप की स्पर्धाओं में नंबर वन होना निश्चय ही भारत के गौरव की अभीवृधि तो है ही साथ ही यह देश के युवाओं और देशप्रेमी जनता को सन्देश भी की प्रतिभाओं को तराशने बाबत उचित सहयोग प्रदान करें .

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

..हारे को हरिनाम है .......

         अब न देश -विदेश है ,वैश्वीकरण  ही शेष है .
          नियति नटी निर्देश है ,वैचारिक अतिशेष है ..
          जाति -धरम -समाज कि  जड़ें अभी भी शेष हैं .
           महाकाल के आँगन में ,सामंती अवशेष है ..
       :;;;;;;;;;;;;;;_   :;;;;;;;;;;;;;;+::;;:::;;;;;;;;;;;;
        नए दौर  की मांग पर तंत्र व्यवस्था नीतियाँ .
        सभ्यताएं जूझती मिटती नहीं कुरीतियाँ ..
        कहने को तो चाहत  है ,धर्म -अर्थ या काम की .
        मानवता के जीवन पथ में ,गारंटी विश्राम की ..
       +======:;;;;;;;;;+=========::::;;;;;++++++++++
        पूँजी श्रम और दाम है ,जीने का सामान है .
         क्यों सिस्टम नाकाम है ,सबकी नींद हराम है ..
           प्रजातंत्र की बलिहारी है ,हारे को हरि नाम है .
           सब द्वंदों से दुराधर्ष है ,भूंख महा संग्राम है ..
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          .    श्रीराम तिवारी ;
          
      

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

कौन हुआ बदनाम किसके लिए...

डेमोक्रेसी बदनाम हुई ,भृष्टाचार तेरे लिए .


रादिया बदनाम हुई ,कार्पोरेट तेरे लिए ..

द्रुमुक बदनाम हुई , ए. राजा तेरे लिए .

बरखा बदनाम हुई , लोबिंग तेरे लिए ..

नेनो बदनाम हुई ,सिंगूर तेरे लिए .

ममता बदनाम हुई ,माओवाद तेरे लिए ..

अरुंधती बदनाम हुई ,अभिव्यक्ति तेरे लिए .

कांग्रेस  बदनाम हुई ,गठबंधन तेरे लिए ..



सरकार  बदनाम हुई ,पूंजीवाद  तेरे लिए .

कामनवेल्थ  बदनाम हुआ, कलमाड़ी तेरे लिए ..

ए राजा बदनाम हुआ, स्पेक्ट्रम  तेरे लिए .

सी वी सी  बदनाम हुई, पी जे थामस तेरे लिए ..



हिंदुत्व  बदनाम हुआ, नरेन्द्र मोदी तेरे लिए .

भाजपा  बदनाम हुई, साम्प्रदायिकता  तेरे लिए ..

कर्नाटक बदनाम हुआ, येदुरप्पा  तेरे लिए .

संघ बदनाम हुआ,  सुदर्शन  तेरे लिए
आतंकी बदनाम हुआ, पाकिस्तान तेरे लिए

आर्थिक मंदी बदनाम हुई ,अमेरिका तेरे लिए ..

दिल्ली बदनाम हुई ,वासिंगटन तेरे लिए .

अमेरिका बदनाम हुई  ,सी आई ए तेरे लिए ..



पूंजीबाद बदनाम हुआ  ,शोषण तेरे लिए .

विकसित देश बदनाम हुआ  ,लूट तेरे लिए ..

इंडिया बदनाम हुआ  ,बिलियेनर्स तेरे लिए .

भारत बदनाम हुआ,  दरिद्रता तेरे लिए ..



चीन बदनाम हुआ  ,तिब्बत तेरे लिए .

ओपेक बदनाम हुआ , पेट्रोल तेरे लिए ..

रूस बदनाम हुआ  , चेचन्या  तेरे लिए .

इजरायल बदनाम हुआ  ,फिलिस्तीन तेरे लिए ..



टी वी चेनल बदनाम हुआ  ,टी आर पी तेरे लिए .

कविता बदनाम हुई,  लाफ्टर शो तेरे लिए ..

फ़िल्मी दुनिया बदनाम हुई  ,व्यभिचार तेरे लिए .

कला बदनाम हुई  ,निर्लज्जता तेरे लिए ..



राजनीती बदनाम हुई ,बाहुबल तेरे लिए .

अफसरी बदनाम हुई , रिश्वत तेरे लिए ..

गरीबी बदनाम हुई , भूंख तेरे लिए .

अमीरी  बदनाम हुई,  लूट तेरे लिए

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

विकिलीक्स को धन्यवाद...

एक  दिसंबर  २०१० को अमेरिका के प्रमुख अखवार न्यू यार्क टाइम्स ने अमेरिकी ख़ुफ़िया तंत्र द्वारा एकत्रित और विकिलीक्स वेबसाइट द्वारा हस्तगत कि गईं अत्यंत संवेदनशील ख़बरों  को प्रकाशित करन केवल  भारत को उपकृत किया है .अपितु भारतीय  वाम पंथ के विश्वाश को और उसकी राजनेतिक समझ को देशभक्तिपूर्ण सावित किया है
अभी तक भारतीय मीडिया का एक बहुत बड़ा हिस्सा और गैर वाम पंथी राजनीती के समर्थकों को एक वामपंथ पर आरोप लगाने का शगल था कि दुनिया बदल गई .अमेरिका बदल गया ,चीन बदल गया  किन्तु भारतीय साम्यवादी या मार्क्सवादी  अभी भी अमेरिका का अंध विरोध कर रहे हैं ....मार्क्सवादियों को अकाल नहीं आयी सो वे बंगाल ,केरल और त्रिपुरा के अलावा कहींभी  सत्ता में  नहीं  हैं  ...वगेरह ...वगेरह ....
        अब यह  भारत कि जनता को और मीडिया को पुनह  विचार करना होगा कि मनमोहनी और  भाजपाइयों का अमेरिका प्रेम मृग मरीचिका है अथवा भारत के मार्क्सवादियों कि यथार्थ के धरातल पर सेधान्तिक विजय है ..
     भारत के वामपंथ ने शहीद भगतसिंह कि शहादत से लेकर अब तक लगातार कुर्वानियाँ ही दी हैं  बदले में अमेरिका और उसके भारतीय अनुचरों ,पालतू कुत्तों कि रक्त पिपासा शांत करते रहे .
   विकिलीक्स के पर्दाफास से सारी दुनिया में भूचाल  आ गया है अमेरिकी नेताओं और उनकीधूर्तता पूर्ण नीतियों का खुलासा होने  से  न केवल अमेरिका ,पाकिस्तान ,चीन कठघरे में आते दिख रहे हैं  ,अपितु भारत में अमेरिकन लाबी -भाजपा संघ परिवार और कांग्रेस सदमें में हैं .खास तौर  से १,२,३,एटमी  करार के लिए बेकरार श्री मनमोहन सिंह जी ज्यादा व्याकुल  होंगे क्योंकि यु पी ऐ प्रथम के अंत समय में अमेरिका और इस एटमी  करार के लिए उन्होंने वामपंथ को अपमानित किया था.विकिलीक्स के खुलासे में जग जाहिर हो गया कि भारत  को वेवकूफ बनाया जाता रहा है अमेरिका ने अपने दूतावासों के जरिये कैसे विभिन्न देशों कि गोपनीय जानकारियाँ हासिल कीं ?किसके पास क्या सामरिक क्षमता है ?खास तौर से भारत के बारे में जो कुछ उजागर किया गया वो वेहद भयावह और चिंता जनक है .विकिलीक्सा ने बता दिया कि किलिंटन और ओबामा के लिए लाल कालीन विछाने वाले  भारतीय नेता महा मूर्ख हैं .भारत को पाकिस्तान से लड़वाने  चीन से चमक्वाने और अमेरिका से लुटवाने कि लम्बी दास्ताँ  अगली पोस्ट में ...इन्तजार करें .....