मानव सभ्यताओं के इतिहास का सिंहावलोकन करने पर हम पाते हैं कि कोई राजनैतिक विचारधारा,कोई सामाजिक राजनैतिक क्रांति और कोई प्रगतिशील कौम फेब्रिकेटेड फ़ल्सफ़ों का मुलम्मा चढ़ाकर अपने परंपरागत सांस्कृतिक साक्ष्य नहीं मिटा सकती! मानव सभ्यताओं का इतिहास अतीत का आइना मात्र नहीं है, वह भविष्य की असीम सम्भावना भी है। तबारीख गवाह है कि जो राष्ट्र या कौम अपने इतिहास से बेखबर रही है,उसका भूगोल भी सुरक्षित नहीं रहा।
आप मज़हब बदल सकते हैं, लेकिन इतिहास, पुरखे और जैवकीय प्रमाण (डीएनए) नहीं बदल सकते!
पाकिस्तान के कतिपय दानिशमंद अपनी सांस्कृतिक विरासत की खोज़ में मज़हबी मुलम्मों से बाहर झांककर अपनी जड़ों तक पहुंच रहे हैं!
पाकिस्तान का जब निर्माण हुआ तो पाकिस्तान के इतिहास से इस्लाम के पूर्व के इतिहास का पूर्णतः सफाया कर दिया गया। पाकिस्तान के काॅलेजों और स्कूलों में जो इतिहास पढ़ाया जाता था उसकी शुरूआत ही मोहम्मद बिन कासिम के हमले से होती थी। मगर अब पाकिस्तान के बुद्धिजीवी अपने इतिहास और पुरखों को इस्लाम के पूर्व के युग में तलाशने में जुट गए हैं। अब उन्हें आचार्य चाणक्य, सम्राट पोरू और राजा दाहर में अपने पूर्वज नजर आने लगे हैं। पाकिस्तान के पांच विश्वविद्यालयों के इतिहास विभागों ने इस्लाम से पूर्व इतिहास और संस्कृति के अनुसंधान के लिए चैबीस परियोजनाएं शुरू की हैं।
पाकिस्तान के विख्यात् बुद्धिजीवी शैफ़ ताहिर ने इस बात पर शोक व्यक्त किया है कि पाकिस्तान के पुरखों में आचार्य चाणक्य का नाम क्यों शामिल नहीं है। उन्होंने कहा है कि धर्म और मजहब के आधार पर इतिहास का विभाजन किसी भी राष्ट्र और नस्ल के लिए बेहद खतरनाक है। उन्होंने कहा कि हम पाकिस्तानी होते हुए तक्षशिला विश्वविद्यालय और आचार्य चाणक्य की महानता से मुंह नहीं मोड़ सकते। वह हमारे इतिहास और सभ्यता का एक अंग हैं। उन्होंने दावा किया कि आचार्य चाणक्य का जन्म हरीपुर हजारा के एक गांव मोरढूह में हुआ था।
इससे पूर्व पाकिस्तान की एक अन्य बुद्धिजीवी फौजिया सईद ने पाकिस्तान के टीवी चैनलों पर यह दावा करके सनसनी पैदा कर दी थी कि पाकिस्तान की अधिकांश जनसंख्या के पूर्वज हिन्दू थे ! पाकिस्तान के एक अन्य इतिहासकार शाहिद शब्बीर ने एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित किया है। जिसमें कहा है कि महाराजा पोरू पाकिस्तानियों के पूर्वज थे और उनकी राजधानी रावलपिंडी के कुरी के स्थान पर थी।
उन्होंने प्राचीन दुर्ग के अवशेषों को अपने कार्यक्रम में प्रस्तुत किया है । हाल मे लाहौर मे पाकिस्तानी संस्था "जीवे पंजाब " ने पुरू दिवस मनाया। एक दर्जन से अधिक पंजाबी बुद्धि जीवियो ने कहा पंजाब के भूमि पुत्र ही हमारे असली हीरो है। पंजाब पर हमला करने वाला कोई भी हमलावर हमारा हीरो नही हो सकता। इस बैठक मे एक प्रस्ताव पारित करके पाकिस्तान से मांग की गई कि झेलम मे महाराज पुरू की मूर्ति स्थापित की जाए।
सिंध विश्वविद्यालय के एक ऐतिहासिक अन्वेषक लतीफ लुगारी ने एक अनुसंधान पत्र हैदराबाद सिंध विश्वविद्यालय की गोष्ठी में प्रस्तुत किया जिसमें सिंध के अंतिम हिन्दू सम्राट राजा दाहिर के शौर्य की शानदार शब्दों में प्रशंसा की गई है। उन्होंने अपने भाषण में सिंध प्रदेश में राजा दाहिर की पुरानी राजधानी के भग्नावेषों का वीडियो भी पेश किया है। उन्होंने कहा कि एक सिंधी होने के नाते उन्हें राजा दाहिर पर गर्व है।
हाल में ही पेशावर विश्वविद्यालय में इस्लाम से पूर्व के पाकिस्तानी इतिहास पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था जिसमें दस अनुसंधान पत्र ब्राह्मणशाही के राजाओं के बारे में पेश किए गए। इस गोष्ठी में एक विद्वान मोहम्मद सईद ने हुंजा के काफिर कबीले पर एक अनुसंधान पत्र पेश करते हुए दावा किया कि यह कबीला विशुद्ध आर्यन रक्त का है और आज भी इसमें जो भाषा बोली जाती है वो प्राचीन संस्कृत का ही एक रूप है !
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