ईशावास्यमिदम् यत्किंचित जगत्याम् जगत्!
तेन त्यक्तेन भुजींथा,मा गिध कस्यविद धनम्!
(ईशावास्योपनिषद )
अर्थ- दुखी व्यक्ति का त्याग ईश्वर स्मरण,भक्ति जप तप पूजा और उसकी विनम्रता स्वार्थपूर्ण होती है! पहले ताकतवर बनो, संसार का सुख भोगो, फिर त्याग करो! बिना सुख भोग किये, त्याग कैसा? नंगा नहाय क्या? निचोड़े क्या?
किसी ने कहा भी है:-
"भूखे भजन न होय गोपाला!"
निर्धन,भिखारी,असहाय आलसी,बीमार बुजुर्ग और लाचार की ईश्वर भक्ति अत्यंत निकृष्ट मानी गई है! यह तो
*हारे को हरिनाम है *
भगवान श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन से कुरुक्षेत्र के मैदान में कहा था :-
चतुर्विधा भजंते माम् सुकृतिनो अर्जुन:!
आर्तो अर्थार्थी जिज्ञासु ज्ञानी च भरतर्षभ:!
याने कि " हे अर्जुन चार प्रकार के भक्त मुझे याद करते हैं! दुख कातर परेशान व्यक्ति,धन की चाहत रखने वाले,ईश्वर, जीव और जगत को जानने की कोशिश करने वाले और भरे पेट खाते पीते सम्पन्न ज्ञानी व्यक्ति द्वारा निस्वार्थ भाव से,निष्काम भाव से की गई ईश्वर भक्ति और उसकी विनम्रता ही सार्थक है. इसीलिये हे अर्जुन मेरी नजर में ज्ञानी ही श्रेष्ठ है!
भावार्थ :- जो गरीब हैं, निर्धन हैं,उन्हें पहले अपनी गरीबी लाचारी और दरिद्रता के बारे में सोचना चाहिए,उसके निवारण के लिए प्रयास करना चाहिए, यदि जरुरी हो तो राजनीतिक क्षेत्र में एकजुट होकर संघर्ष करना चाहिये! बेरोजगारों मजलूमों को मंदिर मस्जिद चर्च में नही बल्कि सत्ता के गलियारों में घुसकर राजनीति पर कब्जा करना चाहिये! अपने हितों के लिये संघर्ष करना चाहिये!जब यह कार्यनीतिक प्रयास सफल हो जाएं,रोटी कपड़ा मकान का पूरा इंतजाम हो जाए तो फिर निष्काम भाव से खूब भक्तिभाव से जपतप योग साधना करो! प्रेम से हरिनाम जपो,घंटे घड़ियाल बजाओ! ईश्वर की कृपा अवश्य बरसेगी!
संदेश :गरीबों मजदूरों के लिये:
श्रीराम तिवारी
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