बुर्जुआ समाज के भौतिकवादी जीवन की सारी दौड़ केवल *अतिरिक्त* के लिए है! उन्हें अतिरिक्त पैसा,अतिरिक्त पहचान, अतिरिक्त शोहरत और अतिरिक्त प्रतिष्ठा चाहिये!
यदि यह अतिरिक्त पाने की लालसा ना हो, तो उच्च मध्यमवर्गीय संपन्न समाज के बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों की दुर्दशा सिंहानिया जैसी नही होगी ! दूसरी ओर मुनाफाखोरी और अतिरिक्त धन संचय की प्रवृत्ति के अभाव में समाज के कमजोर वर्ग को उनका बाजिब हक अपने आप ही मिलने लगेगा!
यह सनातन सत्य है कि पूंजीपति वर्ग एक सीमा तक ही सर्वहारा वर्ग का शोषण कर सकता है, क्योंकि अति संघर्षण कर जो कोई ! अनिल प्रकट चंदन ते होई!! यदि भय भूख,भ्रस्टाचार,चाल चरित्र चेहरे इसी तरह देश की आवाम को धोखा देते रहे ,तो जिंदा कौम 5 साल तक इंतजार नही करती!
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