कोई भी आर्थिक अनुशासन तब तक नहीं हो सकती,जब तक देश की लगभग आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा हो।समझ यह होना चाहिए कि हम कितने लोगों को सचमुच में गरीबी रेखा से ऊपर उठा सके।
वो अर्थव्यवस्था जहाँ करोड़ों लोगों को एक घर,पीने का पानी,दो बार का भोजन,स्कूल,अस्पताल , और आवागमन की सुविधा नहीं दे पाया,वैसी अर्थ नीति जनता के हित में हो ही नहीं सकता।जहाँ 125 करोड़ की आबादी वाले देश में किसी को सायकिल खरीदने के लिए सौ बार सोचना पड़ता है और चंद लोग अपने निजी हवाई जहाज खरीदने की होड़ में शामिल है,जहाँ एक घर के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ता है,वहीं चंद लोग 125 करोड़ की महल में रहते हैं।
जहाँ विदेश यात्रा घर आंगन जैसी बात हो और दूसरी तरफ एक व्यक्ति को अपनी पत्नी की लाश को कंधे पर लेकर 12 किलोमीटर चलना पड़े।
यह असमानता की अर्थव्यवस्था को खत्म करना ही होगा
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