सोमवार, 26 अगस्त 2019

अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो।

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो,
बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो।

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है,
यह जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो।

यह एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है,
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो।

नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं,
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो।

अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के,
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो।

तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है,
'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
(तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ = महबूब के घर की परिक्रमा)
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-अहमद फ़राज़

गुल अपने ही खिलाये हुए हैं।

लंबी लंबी उड़ानों के हंस,
पथ क्रांति का सजा्ये हुए हैं।
छोड़ यादों का दूर कारवां,
बादलों में समाये हुए हैं ।।
साथी मिलते गये नए नए ,
कुछ अपने पराये हुए हैं ।
फलसफा पेश है पुर नज़र ,
लक्ष्य उसपै टिकाये हुए हैं ।।
उमंग के रंग हों जिस गगन में,
मेघ उसमें ही छाये हुए हैं।
युग युग से जो प्यासे रहे हैं,
क्षीरसिंधु में नहाये हुए हैं।।
अपनी चाहत के रंग -बदरंग,
खुद अपने ही सजाये हुए हैं।
औरों की खता कुछ नहीं है,
गुल अपने ही खिलाये हुए हैं।।
चंद दिन की है ये जिंदगानी,
मुखड़ा नाहक फुलाये हुए हैं।
जख्म जितने भी हैं जिंदगी के,
सब अपने ही कमाए हुए हैं।।
कबसे भूले हैं अपने ठिकाने,
आस फिर भी जगाये हुए हैं।
वक्त ने ही है सब को मिटाया,
वक्त के ही सब बनाये हुए हैं।।
श्रीराम तिवारी

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

कुछखास कहना चाहताहूँ!

मेहनतकश सर्वहारा किसान मजदूर हूँ मैं,
हर खासोआम से कुछ कहना चाहता हूँ !
सदियों से सबकी सुन रहा हूँ खामोश मैं ,
अब शिद्द्त के साथ कुछ कहना चाहता हूँ!!
वेद पुराण बाइबिल कुरआन जेंदावेस्ता गीता,
बरक्स इन सबके कुछखास कहना चाहताहूँ!
इतिहास भूगोल राजनीती साइंस तकनीक ,
कम्प्यूटर,मोबाइलसे जुदा कहना चाहता हुँ !!
ईश्वर अवतारों पीरों पैगंबरों संतों महात्माओं,
इनके इतर कुछ अधुनातन कहना चाहताहूँ!!
समाज सुधारक नहीं हुँ क्रांतिवीर भी नहींहूँ,
एक आम इंसान हूँ,पूँछो कि क्या चाहता हूँ!
न तख्तो ताज चाहिए न जन्नत-स्वर्गके हसीं-
सब्ज बाग,फ़कत सम्मानसे जीना चाहता हूँ।
युगो-ंयुगों से जो बात बिसारते आये हैं,पूर्वज,
वो बात मैं सर्मायेदारों से कहना चाहता हूँ।।
धरती,हवा,पानी,गगन,सूरज चाँद,तारों में,
सबका बराबर बाजिब हक देखना चाहता हूँ।
जो सम्पदा समष्टि चैतन्य ने रची सबके लिए,
उसे प्राणीमात्र में बराबर देखना चाहता हूँ।।
- श्रीराम तिवारी

विपरीत विचारधारा के लोगों को स्थान दिया जाए!

पूरा का पूरा सोशल मीडिया छोटे-छोटे गुटों में विचारधारा के आधार पर तब्दील हो गया है!
हर एक्टिविस्ट अपने मित्र सूची में सिर्फ उसी को जगह देता है जो उसकी विचारधारा का समर्थक है ! ऐसे मे एक दूसरे की तारीफ होती रहती है!
आलोचना या समालोचना की कोई गुंजाइश नहीं होती, इसलिए इस प्लेटफार्म के उपयोग के लिए जरूरी है कि अपने मित्रों की सूची में अपने विपरीत विचारधारा के लोगों को स्थान दिया जाए!
और उनके कमैंट्स के बाद उसको काउंटर करने के लिए तार्किक बहस की जाए!
तभी दिमाग में लगी जंग समाप्त होगी पर लोग अपने -अपने प्रशंसा में लगे हुए हैं !
जिससे सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है!
लोकतंत्र की मजबूती वैचारिक विमर्श से ही सार्थक होती है

मंगलवार, 20 अगस्त 2019

इस दौर के सत्तापक्ष ने राजनीति को इस कदर पतनोन्मुखी बना दिया है !

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू का प्रयास रहता था कि उनके जमाने के कुछ दिग्गज विपक्षी नेता चुनाव जीतकर संसद में जरूर पहुंचें ! फिर चाहे वे ए .के गोपालन हों, राम मनोहर लोहिया हों,अटलबिहारी बाजपेयी हों,श्यामाप्रसाद मुखर्जी हों या बाबा साहिब भीमराव अंबेडकर हों! किंतु इस दौर के सत्तापक्ष ने राजनीति को इस कदर पतनोन्मुखी बना दिया है कि चाहे तालाबों में कमल खिले या न खिले किंतु भारतीय राजनीति में हर जगह केवल कमल ही खिलना चाहिए! 
अब जब कोई मतदाता बटन दबाये तो EVM ऐंसी सैट हो कि केवल कमल ही खिलना चाहिये ! यदि कोई नेता मरे तो उसकी मौत के मातम को इस कदर मनाओ कि वोटों का सैलाव आ जाये! यदि कोई आतंकी हमला हो और फौज उसका जबाब दे, तब भी भाजपा उसे भुनाने में अव्वल रही है! यदि विपक्ष या कोई व्यक्ति नीति गत विरोध करे तो उसे देशद्रोही घोषित कर दो! और यदि फिर भी कोई विरोधी चुनाव जीत जाए, तो गोवा,कर्नाटक शैली में उसे खरीद लो! 2014 के बाद भारत में लोकतंत्र का मतलब है 'एकचालुकानुवर्तित्व' याने एकमेवोद्वतीय नास्ति! विपक्ष भी दिग्भ्रमित है वह सिर्फ उन मुद्दों पर सत्तापक्ष का विरोध कर रहा है,जो राष्ट्रीय सुरक्षा और अस्मिता से जुड़े संवेदनशील विषय हैं! जबकि देश के बहुसंख्यक समाज को विपक्ष का यह रवैया बिल्कुल पसंद नही!

बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी!

पाकिस्तानी बजीरे आजम जनाब इमरान खान अपनी खिसियाहट में बार बार दुहरा रहे हैं कि"भारतीय फौज ने पहले बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक की है यदि वह POK में भी वैसा ही कुछ करेंगे तो हम ईंट का जबाब पत्थर से दैंगे!"उनके इस वक्तव्य की मैं निंदा करता हूँ! किंतु एक बात की शर्म भी महसूस कर रहा हूँ कि मैंने उन मूर्खों पर यकीन कैसे कर लिया,जो लगातार कहते रहे कि कोई 'सर्जिकल स्ट्राइक नही हुई या स्ट्राइक हुई है तो सबूत दो! जो लोग कहते रहेे कि यह सब झूंठ है,कहते रहे कि चुनावी हथकंडा है!उन पर यकीन करना बेहद शर्मनाक है!चूँकि अब पाकिस्तान के बजीरे आजम खुद कह रहे हैं कि बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी, अत: इसका पूरा श्रेय भारतीय फौजियों को जाता है और अपनी फौज से और संपूर्ण राष्ट्र से उस ध्रष्टता के लिये हम क्षमा प्रार्थी हैं! इमरान खान की गलती है कि सचाई देर से कबूली ! विचित्र बिडम्बना है कि विदेशी मीडिया भी सचाई जानने में असफल रहा!

जिंदगी खुद मुस्कराएगी!

हरएक स्याह रात के बाद ,नई सुबह जरूर आयेगी!
तलाश है ज़िसकी तुुझे वो-मौसमे बहार फिर आएगी।।
निहित स्वार्थ से ऊपर उठकर थोड़ा सा व्यापक सोच,
ख्वाहिसों के पार छितिज में जिंदगी खुद मुस्कराएगी।
समष्टि चेतना को देगा नाम,जब तूं रूहानी इबादत का ,
संवेदनाओं की बगिया,खुद ब खुद खिल खिलाएगी।
जिंदगी की तान सुरीली हो,कदम ताल सधे हों तेरे,
जीवन व्योममें बजउठेंगे वाद्यवृन्द नईभोर गुन गनायेगी!
-श्रीराम तिवारी

गुरुवार, 15 अगस्त 2019

नंगे भूँखों की कैसी आजादी?

आन बान सम्मान देश का, 
प्रतिपल होता क्षरण देश का।
सत्ता में जो डटे हुए हैं,
उन्हें नहीं भय नाम लेश का।। 
कारपोरेटकल्चर का चक्कर, 
सुपरमुनाफों के निवेश का।
सार्वजनिक उपक्रम खा डाले,
अठ्ठहास है निजी क्षेत्र का।।
बहुराष्ट्रीय निगमों ने फिर से,
भारत जन को ललकारा है।
अमन चैंन साझा हो सबका,
यह पावन ध्येय हमारा है।।
नंगे भूँखों की कैसी आजादी?
वे बोल रहे 'सारा जहाँ हमारा' है।

कश्मीर घाटी में इंटरनेट का दुरुपयोग.

हम मोदी जी की नीतियों को जरा भी पसंद नही करते ! हमारी नजर में भाजपा निहायत साम्प्रदायिक और पूँजीवादी पार्टी है! किंतु कश्मीर के संदर्भ में हम केंद्र सरकार और अपनी फौज के साथ हैं! क्योंकि हम देश के हर क्षेत्र में अलगाववादियों और आतंकियों के खिलाफ हैं! राष्ट्रीय अखंडता को संकट में डालने वालों को हम खुलकर खेलने का मौका कदापि नही देंगे! आदतन हर चीज़ का विरोध करने वाले अपरिपक्व और जड़ बुद्धि लोग केंद्र सरकार की कश्मीर नीति पर तो लगातार हंगामा कर रहे हैं, किंतु लाखों मजदूरों की छटनी और वेरोजगारी के सवाल पर केवल बयानों की रस्म अदायगी करने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं!
वे भूल जाते हैं कि आतंकी बुरहान बानी की मौत के बाद जब श्रीनगर 60 दिन तक कर्फ़्यू के साये में रहा और जब भारतीय सैनिकों को पत्थर मारे जा रहे थे,तब क्या लोकतंत्र खतरे में नहीं था?
धारा 370 और 35 A को हटाते वक्त केंद्र सरकार ने यदि कुछ दिनों के लिये इंटरनेट बन्द कर दिया,तो अब लोकतंत्र खतरे में आ गया!जबकि सबको यह अच्छी तरह मालूम है कि कश्मीर घाटी में इंटरनेट का दुरुपयोग पाकिस्तान पोषित अलगाववादियों और आतंकवादियों के कुटिल आकाओं द्वारा ही अधिकतर किया जाता रहा है! भाइयो बहिनों इस पर इतनी हाय तौबा क्यों?

शहीदों के सपनों का वेदना से मिलन हो गया!!

क्षण-क्षण आत्म गौरव के ,
दिव्यता से राष्ट्र को मिले !
हरी-भरी धरा खिल उठी,
और जन गण मन हो गया।।
आज मुक्ति संग्राम का लहू ,
जैसे फिर से जवां हो गया!
संघर्ष द्वन्द ग्रन्थ के सभी,
कई बार इस मुल्क ने पढ़े!!
भाग्य का विधान बन गया,
और भारत धन्य हो गया!
पड़ोसी शत्रू की कुचालों से,
मुल्क बार बार घायल हुआ ! !
धर्म जाति मजहब का,
मर्ज लाइलाज हो गया!
पूंजीवादी प्रचार तंत्र भी,
मुल्कका अभिशाप बन गया !!
जाति पाँति मजहब के
चुनाव में चलन बढ़ गये!
शनै: शनै: लोकतंत्र के,
स्तंभ चारों रुग्ण हो गये !!
बाजारवादी नीतियों से,
राष्ट्र हित नीलाम हो गया!
जैसे शहीदों के सपनों का
कत्ल खुले आम हो गया!!
सिद्धांतों के व्योम में हम ,
सदा प्रश्न बनकर घूमते रहे!
सभी क्रान्तियां अधूरी रहीं ,
संघर्ष सारा कुंद हो गया!!
बढ़ती आबादी- मंहगाई से,
यह मुल्क परेशान हो गया!
सिस्टम भृष्टाचार रिश्वत का,
व्यभिचार आम हो गया!
आज शहीदों के सपनों का ,
वेदना से मिलन हो गया!!
श्रीराम तिवारी-:

आओ शीश नवाएं उनको ,जो थे क्रांति वीर बलिदानी।।

भगतसिंह आजाद पुकारे,
जागो-जागो वीरो जागो।
आजादी है ध्येय हमारा ,
पीठ दिखाकर न तुम भागो।।
बांधो कफ़न शीश पर साथी,
रिपु रण में होगी आसानी।
स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर ,
हंसते हंसते दो कुर्बानी।।
पुरुष सिंह थे वे हुतात्मा,
जिनने मर मिटने की ठानी।
आओ शीश नवाएं उनको ,
जो थे क्रांति वीर बलिदानी।।
जय हिंद...... जय भारत....
-श्रीराम तिवारी

आजादी के दीवानों ने, क्रांति ज्योति जलाई थी।

धूल धुअॉ धुंध से भरा राष्ट्र,
यह आँसुओं से भरा हुआ!
निर्धन ग्रामीण देखो गौर से,
हरेक चेहरा है बुझा हुआ!!
इन बड़े बड़े नगरों में देखो ,
जहां केवल भीड़ पसारा है।
भटक रही तरुणाई यहाँ की,
फिर भी सत्ता की पौबारा है।।
पूर्वजों आजादी के दीवानों ने,
एक क्रांति ज्योति जलाई थी।
होगा प्रजातंत्र -समाजवाद ,
सबने ऐंसी आस जगाई थी।।
जात पांत भाषा मज़हब की ,
उनने कटटरता ठुकराई थी।
आज़ादी के बाद अमन की ,
शहीदों ने राह दिखाई थी।।
अब भूँखे को रोटी मिल जाए,
निर्धन को मिले सहारा है ।
नंगे भूँखे की कैसी आजादी,
उसे तो सारा जहाँ हमारा है।।
-श्रीराम तिवारी

वर्ग संघर्ष का सिद्धांत क्या है?

वर्ग संघर्ष का सिद्धांत क्या है?
अधिकांस जन गण यह सोचते हैं कि कार्ल मार्क्स ने ही 'वर्ग संघर्ष' कराने कि शुरुआत की है!किन्तु यह सच नहीं है।वर्ग संघर्ष तो तब से चल रहा है,जब से मानव समाज का मुख्यत : दो परस्पर विरोधी वर्गों-श्रमजीवी और परजीवी वर्ग में विभाजन हुआ है!
'वर्ग संघर्ष' का अर्थ मात्र लड़ाई झगड़ा,मार पीट,तोड़ फोड़ ,हड़ताल,विरोध प्रदर्शन,नारे बाजी, हिंसा इत्यादि ही नहीं है। श्रमजीवी वर्ग का मन ही मन दुखी होना,शांतिपूर्ण ढंग से निवेदन करना-आदि भी वर्ग संघर्ष के ही प्रछन्न रूप हैं।
मार्क्स ने 1845 में अपनी 28 साल की उम्र में फायरबाख पर आधारित लेख में अपने पूर्ववर्ती सभी विचारकों के उस सिद्धांत को स्वीकार किया कि 'मनुष्य की भौतिक दशाएं उसके चरित्र का निर्माण करती हैं, किन्तु मार्क्स ने उसमें अपनी यह बात भी जोड़ दी कि वह मनुष्य ही है जो उन दशाओं का निर्माण करता है।इस संदर्भ में यह कहा कि शिक्षक को भी शिक्षण की जरूरत होती है।इसी लेख में मार्क्स का यह प्रसिद्ध कथन है कि 'दार्शनिकों ने अबतक ,दुनिया क्या है ?केवल इसकी व्याख्या की है, किंतु असली सवाल तो इस दुनिया को बदलने का ही है।
आमतौर पर यह माना जाता रहा है कि इतिहास रचने और उसे आगे बढ़ाने का काम अच्छे अच्छे विचार, विचारक, संत, महात्मा राजा,महाराजा,योद्धा इत्यादि ही करते हैं।
मार्क्स एंगेल्स ने मानव समाज और उसके इतिहास के वस्तुवादी अर्थात वैज्ञानिक विश्लेषण से इस बात को सिद्ध किया है कि इतिहास का निर्माण और उसका विकास श्रमजीवी समाज द्वारा अपने जीवन की अच्छी दशाओं के लिए किए जाने वाले सतत् संघर्षों के द्वारा हुआ है और होगा।

सोमवार, 12 अगस्त 2019

बहक जाता है आदमी।

मिलता है जब सत्ता पॉवर,
तो बहक जाता है आदमी।
सच बोलने पर भी अक्सर
उलझ जाता है आदमी।।
नेताओं के बोल बचन हों,
निकृष्टतम और चलताऊ,
चुनाव में उमड़ती है-भीड़,
तो बहक जाता है आदमी।
औरोंकी मेहनत पर मौज करे,
धू्त कृतज्ञता का स्वांग भरे,
ऊँचे पद पर प्रतिष्ठित होकर,
कितना गिर जाता हैआदमी।।
चमचों की तमन्ना है कि कोई ,
और चमत्कार हो जाये मुल्क में,
इसीलिये पाखंड की गिरफ्त में,
खुद फजीहत कराता है आदमी
श्रीराम तिवारी

सच्चाई और न्याय के रास्ते पर भीड़ नहीं होती !

"सच्चाई और न्याय के रास्ते पर भीड़ नहीं होती !"
वेशक, सचऔर ईमानदारी के रास्तेपर चलने के अनेक फायदे हैं। जैसे कि बार-बार झूंठ नहीं बोलना पड़ता। सदैव सशंकित भी नहीं रहना पड़ता।भाववादी होकर भी सत्पथ पर अग्रसर मानव को-किसी व्यक्ति,संगठन,धर्म- मजहब और ईश्वर जैसी पराशक्ति की दासता का भय नहीं रहता। देवता तो क्या शैतान की भी हैसियत नहीं कि ऐंसे सत्यानुरागी का बाल -बाँका कर सके । इस रास्ते पर चलने का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इस रास्ते पर ज्यादा भीड़ भी नहीं होती। जो मूर्ख असत्य आचरण में लिप्त हैं,उन्हें यह पथ डरावना और कंटकाकीर्ण नजर आता है,किन्तु न्याय -समानता -मानवता और सच्चाई से लेस सत्यनिष्ठ का पथ अति सुगम,मनोरम और खुशनुमा हरी-भरी वादियों से गुजरते हुए तथाकथित 'स्वर्गारोहण'जैसा दिखता है। जिसे यकीन न हो आजमा कर देख ले!जब तक भावजगत की यह उटोपियाई यात्रा पूरी नही हो जाती तबतक 'द्वंदात्मक भौतिकवाद' की ओर अग्रसर होना असंभव है!
श्रीराम तिवारी

इमरान भाई, आपको भारत के आंतरिक मामले में बोलने का हक नही है.

प्रति,
जनाब इमरान खान साहब,
बजीरे आजम पाकिस्तान,
हाल मुकाम-इस्लामबाद,
पाकिस्तान!
अस्लामवालेगुम!
*ईद मुबारक*
इमरान साहब आपने फर्माया है कि "RSS जर्मनी के नाजीवादी 'फासिस्टों'जैसा संगठन है और नरेंद्र मोदी 'हिटलर' हैं,जिन्होंने संघ के दबाव में कश्मीर को गेस्टापो के हवाले कर दिया है"
इमरान भाई, यद्यपि आपको भारत के आंतरिक मामले में बोलने का हक नही है,फिर भी शुभचिंतक के नाते हम आपके विचारों का संज्ञान लेते हुए याद दिला दें कि भारत की बर्बादी का मंसूबा लेकर आपके यहां सक्रिय महानीच हत्यारे दाऊद,हाफिज सईद,अजहर मसूद जैसे लाखों हैं!आप और आपकी ISI अच्छी तरह जानते हैं,कि RSS वाले उतने दमदार या जंग खोर नही, जितने नाजी जर्मन थे या आपके जनरल जिया उल हक या परवेज मुशर्रफ हुआ करते थे!
संघ वाले वंदे मातरम् और भारत माता की जय के नारे लगाकर राष्ट्रवादकी बात अवश्य करते हैं, किंतु जब किसी संघर्ष की बात आती है तो वे निरीह जनताको धर्मांध बलबों में धकेलकर खुद दड़बों में छुप जाते हैं और यदि किसी ताकतवर से सामना हुआ तो सावरकर,देवरस की तरह शांति स्थापित करने के बहाने माफ़ीनामा लिखकर दे देते हैं! अत:आपने संघ,भाजपा को नाजी और मोदी को हिटलर बताकर अपनी ही खिल्ली उड़ाई है!क्योंकि आपके आरोप बेबुनियाद हैं!
चूँकि आपके आरोपों से मिलते जुलते आरोप यहां भारत में करोड़ों लोग लगाते हैं, अत: आपको कष्ट उठाने की जरूरत ही नही! संघ के साथ बमुश्किल 10 करोड़ हिंदू ही हौंगे,जबकि उसके विरोध में 100 करोड़ हिंदू हैं! तमाम गैर भाजपाई संगठन और दल वामपंथी,कांग्रेसी,क्षेत्रीय दल -ममता,सपा, बसपा,राजद,डीएमके तेलुगू देशम्, तमाम हिंदु विरोधी और भारत विरोधी लोग भी ऐंसे ही आरोप लगाते रहते हैं! जो कौम और देश पाकिस्तान और उसके आतंकियों से आक्रांत रहा है,उसे दवा देने के बजाय जहर तो न दीजिये!
वेशक भारत में संघ का विरोध संगठित नही है और यह विरोध चुनाव में विपक्ष के काम नही आता!क्योंकि सीबीआई, ईडी, EVM और जात पांत के समीकरण बिठाकर मात्र 35% वोट पाकर भाजपा /एनडीए वाले प्रचंड बहुमत पा जाते हैं! और 65% वोट पाकर भी भारतीय विपक्ष आईसीयू में पड़ा है! इसकी वजह शायद यह हो सकती है कि हिंदुओंमें अब अपमान सहने की ताकत नहीं बची!
किंतु इमरान साहब आपने तीर में तुक्का तो चला दिया,गच्चा खा गये!आप अपने शब्द वापिस लें और माफी मांगें ! और वैसे भी आपका काम करने के लिये कश्मीरी गुलाम
गिलानी,मेहबूबा,पीडीपी,जेकेएलएफ और हुरियत कांन्फेंस क्या कम है ? इस अभागे वतन भारत के खिलाफ बोलने वाले इस भारत भूमि में करोड़ों हैं! आप हमें हमारे हाल पर छोड़ दें,चीन अमेरिकाकी फिक्र करें और हो सके तो पाकिस्तान की बदहाली पर गौर करें! आमीन!

न गहर-गहर बरसात गहरावै है !

गांव के गरीबों का चूल्हा नहीं सुलगा,
घन गहर-गहर बरसात गहरावै है !
जलाऊ लकड़ी,एलपीजी गैस नहीं,
बाढ़ में बचाव दल पहुँच न पावै है!!
गरीबी में गीला आटा,सब्जियां महँगी,
गुजारे लायक मजूरी मजूर नहि पावै है!
बाढ़ में बुहर गए टूटे-फूटे ठीकरे -चींथड़े,
बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों पै मौत मँडरावै है!!
नगरीय अभिजात्य कोठियों की कामिनी,
गार्डन के झूले पै मेघ मल्हार गावै है।
सत्ताधारी नेताओं के लंबे -चौड़े वादे.
भ्रस्टों की कृपा से नया पुल बह जावै है!!

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

मरुभूमि में नख्लिस्तान और कार्पोरेट जगत

नव्य उदारवाद कहता है 'वही जियेगा जो शक्तिशाली है , वही जीतेगा जो ताकतवर है ' 'कर लो दुनिया मुठ्ठी में' ''छू लो आसमान को" इत्यादि अनुत्पादक और सफेदपोश - प्रबंधकीय नारों के कोलाहल में कमजोर वर्गों के आधुनिक युवाओं की वास्तविक संघर्ष क्षमता को सस्ते में खरीदा जा रहा है। उनके निजी और पारिवारिक भविष्य को अनिश्चितता की अँधेरी सुरंग में धकेला जा रहा है।
सभ्रांत लोक के भारतीय युवाओं की ऊर्जा अर्थात वास्तविक प्रतिभा अमेरिका ,इंग्लैंड और विदेशों में खपने को उद्द्यत रहा करती है।जबकि दूसरी ओर नकारात्मकता के संघर्ष में राजनैतिक भृष्टाचार उत्प्रेरक का काम कर रहा है। उदाहरण के लिए इधर मध्यप्रदेश में ही विगत १० सालों में हजारों योग्य,परिश्रमी और संघर्षशील युवाओं को उनके हिस्से का हक नहीं मिल पाया है , जिन्हें कोई आरक्षण नहीं ,जिनका कोई 'पौआ' नहीं उन बेहतरीन योग्य और मेघावी युवाओं की संघर्ष क्षमता को निजी क्षेत्र में १२-१२ घंटे खपकर सस्ते में समेटा जा रहा है। अयोग्य,मुन्ना भाई ,रिश्वत देने की क्षमता वाले - अयोग्य और बदमाश किस्म के लोग आरक्षण की वैशाखी या सत्ता का प्रसाद पाकर अपना उल्लू सीधा करने में सफल हो जाया करते हैं। भृष्टाचार के 'गर्दभ' पर सवार निक्म्मे लोग जब डॉक्टर ,इंजीनियर,पुलिस, प्रोफ़ेसर,प्रशासक,प्रोफेसनल्स ,खिलाडी या नेता होंगे तो देश और समाज की बदहाली पर आंसू बहाने का नाटक क्यों ?
व्यवस्था के उतार या 'मूल्यों की गिरावट' पर इतना कुकरहाव क्यों? भृष्ट अफसर मंत्री और नेताओं के निठल्ले-अकर्मण्य रिस्तेदार ही जब पूरे सिस्टम पर काबिज हो चुके हों तो ईमानदार,योग्य और चरित्रवान युवाओं के समक्ष संगठित 'संघर्ष' के अलावा कोई रास्ता नहीं। मध्यप्रदेश में विगत शिवराज सरकार के दौर में 'व्यापम' और खनन भृष्टाचार की अनुगूंज या मोदी सरकार प्रथम के जमाने में RBI, सुप्रीम कोर्ट जज की न्युक्ति इत्यादि के मुद्दे तो देश की भृष्टतम व्यवस्था की हाँडी के एक-दो चावल मात्र हैं।
कैरियर निर्माण के व्यक्तिगत संघर्ष में - सामाजिकऔर राष्ट्रीय सरोकार पूर्णतः तिरोहित होते ही जा रहे हैं ,साथ ही मौजूदा नई दुनिया का उत्तर आधुनिक ग्लोबल युवा -अपने पूर्वजों से भी ज्यादा असंरक्षित धर्मभीरु,लम्पट और दिशाहीन होता जा रहा है। धूर्त शासक वर्ग द्वारा उसे प्रतिस्पर्धा की अँधेरी सुरंग में धकेला जा रहा है। उसे भौतिक और निजी सम्पन्नता कीमरुभूमि में नख्लिस्तान बनाकर दिखाने और कार्पोरेट जगत  के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का पाठ पढ़ाया जा रहा है। उसके हाथ पैर बांधकर गहरे कुँए में फेंककर तैरने और सबसे पहले आत्मउत्सर्ग के लिए हकाला जा रहा है। शातिर स्वार्थी प्रभूवर्ग का कहना है ' की बहाव के विपरीत तैरकर जो पहले बाहर आएगा उसे 'सफलता ' की सुंदरी वरमाला पहनायेगी।
व्यक्तिगत आकाँक्षा,महत्वाकांक्षा की मृग मरीचिका के मकड़ जाल में फंसे हुए युवाओं को यह समझने का अवसर ही नहीं दिया जा रहा कि नैसर्गिक -प्राकृतिक संसाधन , जीवकोपार्जन के संसाधन ,शैक्षणिक-प्रशिक्षिणक सुविधाएँ,प्रोन्नति के अवसर , जीवन यापन की मानवीय शैली और अभिरुचियाँ उनसे कोसों दूर होतीं चलीं जा रहीं हैं। उसे नहीं मालूम की उनके लिए नैगमिक और राज्य सत्तात्मक संरक्षण का अनुपात किस हालात में है। उत्तर भारत में और खास तौर से हरियाणा -पंजाब में स्त्री -पुरुष के लेंगिक अनुपात के क्षरण की ही तरह आधुनिक युवा पीढ़ी के लिए भी राज्य सत्ता के संरक्षण का अनुपात अर्थात संवैधानिक अधिकारों -अवसरों का अनुपात दयनीय है।
जिस तरह इंदौर सराफा बाजार की गन्दी नालियों से कुछ निर्धन और वेरोजगार युवा-नर -नारी बाल्टियों में कीचड भरभर कर अपने झोपड़ों में ले जाते हैं, ताकि उसमें तथाकथित 'संघर्ष' करते हुए गोल्ड' का कोई टुकड़ा या कण उन्हें मिल जाए। इसी तरह की हालात जिजीविषा के लिए संघर्षरत आधुनिक सम्मान आक्षांक्षी युवा पीढ़ी की है, जो अपराध जगत को पसंद नहीं करते जिन्हे शार्ट कट पसंद नहीं वे ही निरीह और मेघावी युवा प्रतिस्पर्धा की भट्टी में झोंके जा रहे हैं। ये युवा न केवल भारत में बल्कि दुनिया के उन तमाम राष्ट्रों में भी संघर्ष कर रहे हैं,जहाँ उनके किशोर हाथों में बन्दुक पकड़ाई जा रही है। उनके खून के प्यासे सिर्फ मजहबी उन्मादी ही नहीं हैं,बल्कि वे भी हैं जो नव बाजारीकरण -वैष्वीकरण तथा निगमीकरण के तलबगार हैं.उन्हें यह जानने की फुर्सत ही नहीं कि इस तरह के संघर्ष से इंसान नहीं हैवान पैदा हुआ करते हैं।
श्रीराम तिवारी

धारा 370 और 35A काल कवलित

मैं कांग्रेस और इंदिरा गांधी की रीति नीति का हमेशा विरोधी रहा हूँ और वर्षों तक मुर्दाबाद के नारे भी लगाये!किंतु जब इंदिरा गांधी के निर्देश पर 'ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार' हुआ तो उसका तहेदिल से समर्थन किया!और इससे पूर्व जब उन्होंने सोवियत संघ से दोस्ती की और बांग्लादेश बनाया,पाकिस्तान के बलात्कारी फौजियों को सरेंडर कराया एवं सिक्किम का जबरन भारत में विलय कराया तब मैने उनके जिंदावाद के नारे भी लगाये !
भाजपा,संघ परिवार,नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ हम 20 साल से लगातार लिख-बोल रहे हैं!किंतु जब देखाकि हाफिज सईद,अजहर मसूद,पाकिस्तान की आर्मी, आईएसआई,हुरियत,अल कायदा,और अन्य अनेक इस्लामिक आतंकियों,अलगाववादियों की जम्मू कश्मीर पर बाकई बुरी नजर रही है,तो भारत की जनता ने नरेंद्र मोदी को एक और मौका दिया जिसका परिणाम यह है कि धारा 370 और 35A अब काल कवलित हो चुके हैं! भारत का नागरिक होने के बावजूद जो लोग इस कार्यवाही का विरोध कर रहे हैं और विधवा विलाप कर रहे हैं, वे इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिये जाएंगे!
जो लोग इस तथ्य से बाकिफ नही कि जम्मू कश्मीर वालों को तमाम सुख सुविधाएं देने के बावजूद वे भारत के खिलाफ बग़ावत का स्वर बुलंद कर रहे थे, वे महामूर्ख हैं! अब यदि पीएम नरेंद्र मोदी ने एनएसए डोबाल, गवर्नर सतपाल मलिक और ग्रहमंत्री अमित शाह की काबिलियत से जम्मू कश्मीर का रणनीतिक पुनर्गठन किया है तो पाकिस्तान के पेट में दर्द क्यों ? पाकिस्तान की चिंता तो फिर भी समझ में आती है, किंतु इस राष्ट्रीय संकट की घड़ी में कुछ गैर कश्मीरी भारतियों का कश्मीर पुनर्गठन विरोध न केवल समझ से परे बल्कि नितांत निंदनीय है।