शिया बक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वशीम रिजवी साहब ने सनातन (हिंदू) धर्म कबूल किया तो उनके पूर्व मजहब वाले नाराज हैं! यह स्वाभाविक है! यदि कोई हिंदू अपना धर्म बदलकर एलानिया दूसरे मजहबों में शामिल होता है तो हमें भी अच्छा नही लगता!
यदि शिया बक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी साहब यदि हिंदू (जीतेंद्रनाथ त्यागी) हो गये हैं तो कुछ हिंदु विरोधियों को बहुत तकलीफ हो रही है! फेसबुक पर किसी मनोज पाटनी ने घटिया सवाल उठाया है कि रिजवी साहब हिंदू कैसे हो सकते हैं? उनका तो खतना हो चुका है?
सवाल उठाने का हक सभी को है, लेकिन सवाल रिजवी साहब ( अब जीतेंद्र नाथ त्यागी) से पूछा गया है, और उन तक सवाल पहुंचा ही नही! अत: उनकी ओर से जबाब
हम दे रहे हैं!
सनातन हिंदू धर्म का सार है कि श्रीराम के आदर्शों का अनुसरण करो! जबकि श्रीराम जी कह गये हैं कि :-
"रामहिं केवल प्रेम प्यारा !
जान लेय जो जानन हारा!!"
मतलब(राम) ईश्वर से प्रेम करने वाला कोई भी इंसान हिंदू हो सकता है! इंसान तो क्या वानर भालू गिद्ध भी राम के अनुयाई हो गये थे! श्रीराम का अनुयाई याने हिंदू! अब यदि हनुमान जी लंगड़े थे या अहिल्या जड़वत् थी,जटायू का भाई अंगभंग था,तो क्या हुआ? राम ने तो सबको स्वीकार किया!जब राक्षस कुल का व्यक्ति विभीषण रामभक्त अर्थात हिंदू हो सकता है,तो किसी सामान्य व्यक्ति के खतना होने मात्र से वह हिंदू होने से बंचित कैसे किया जा सकता है?
दरसल शरीर का महत्व सिर्फ इतना है कि वह आत्मोद्धार का साधन बन जाए,सबसे महत्वपूर्ण है व्यष्टि चैतन्य,जो समष्टि चैतन्य का अंश है! यदि आठ जगह से टेड़ा मेड़ा *अष्टावक्र* ब्रह्मवेत्ता हो सकता है और अंधा सूरदास राधा कान्हा के प्रेम पगे भजन गा सकता है,जब एक मुस्लिम रसखान भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में कवित्त सवैया रच सकता है,जब अब्दुल रहीम खानखाना(मुसलमान ) कहता है :-
"यों रहीम मन आपनों, चितवत चंद चकोर!
निश वासर लाग्यो रहे,कृष्ण चंद्र की ओर! "
तब किसी को कोई इतराज क्यों नही हुआ? तब तो तुलसीदास जी खुद रहीम के मित्र थे! फिर इस 21 वीं शताब्दी में एक मुस्लिम बुद्धिजीवी के हिंदू हो जाने पर इतराज क्यों?
जबकि भारत का रक्तरंजित इतिहास चीख चीख कर कह रहा है कि दक्षिण एशिया याने भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिमों के पूर्वज हिंदू थे, अब हजार साल बाद यदि उनकी घर वापसी हो रही है तो इतराज क्यों ?
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