गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

दोहे -श्रीराम तिवारी

भारत के जनतंत्र को ,लगा भयानक रोग !
राजनीति को भा गए, झूँठे  शातिर लोग !!

लोकतंत्र की पीठ पर ,लदा माफिया राज !
निहित स्वार्थ की भावना ,बनी कोढ़ में खाज !!

मल्टीनेशनल संग किये,भारत ने अनुबंध !
आवारा पूँजी चली ,तोड़ दिए तटबंध !!

नई आर्थिक नीति का,देखा बिकट धमाल !
दुनिया के बाजार में, भारत फिर कंगाल !!

क्यों रुपया बदहाल है ,क्यों डालर की मौज!
क्यों सीमा पर जूझती ,भारतवर्ष की फौज !!

शिक्षा स्वास्थ्य के क्षेत्र में ,नहिं सुविचारित नीति !
सार्वजनिक उद्द्यम बिके,थे विकास के मीत !!

आनन् फानन कर चले ,राष्ट्र रत्न नीलाम !
औने  पौने बिक गए ,बीमा टेलीकॉम !!

आवारा पूँजी बढ़ी ,कपट कलेवर युक्त !
बड़े मुनाफाखोर सब ,शासन से भयमुक्त !!

पूँजीवादी बजट की,अजब चली यह रीत !
ऋण ले घृत पीते रहो ,गावो ख़ुशी के गीत !!

श्रम कानून निर्बल किये,और घटाई फीस !
नए उद्द्योग नहीं लगा सके ,मूरख सत्ताधीश!!

पूँजी मिले विदेश की,किसी तरह ततकाल !
नव निवेशकों की हुई ,पूंछ परख पड़ताल !!

डूब रहे आकंठ जो,खुद ही भृस्टाचार !
लोकतंत्र के पहरुए ,वे ही तारणहार !!

चाल चेहरा चरित्र के,जो थे दावेदार !
उनके कर कमलों हुआ,मुल्क का बंटाढार !!

राजनीति के घाट पर,भई भृस्टन की भीर !
देशभक्ति के नाम पर,दल्ले खाएं खीर !!

सत्ता परिवर्तन किया,जनता मुल्क के हेत !
माल्या मोदी चौकसी,चोट्टे चर गए खेत !!