रविवार, 27 नवंबर 2011

चल अन्ना घर अपने रेन भई यह देश...

 चाहे तथाकथित     अन्ना  हजारे   टीम  हो  ,बाबा रामदेव की  नाटक मण्डली हो या  उनके कन्धों पर चढ़कर राजनीति की उद्दाम आकांक्षा के तथाकथित गैर राजनैतिक  असंवैधानिक सत्ता केंद्र हों ,इन को गंभीरता से देश की जनता ने कभी नहीं लिया.एक सौ बीस करोड़ जनता में से भूले -भटके दस-बीस हजार भावुक भारतीयों और सत्ता विरोध का बाजारी उत्पाद बेचकर अपनी आजीविका चलाने वाले दक्षिण पंथी मीडिया और अधुनातन तकनीकी प्रौद्दोगिकी के संचालकों ने भले ही बहती गंगा में हाथ धो लिए हों किन्तु आम भारतीय जन-मानस ने अपनी राष्ट्रीय चेतना के नीति निर्देशक सिद्धांतों  पर कोई समझोता नहीं किया.
       अन्ना हजारे की बौद्धिक चेतना-राजनैतिक-आर्थिक-सामाजिक-वैदेशिक और जन -क्रांति विषयक समझ बूझ पर मुझे कभी कोई शक नहीं रहा.अपने ब्लॉग -इन्कलाब जिंदाबाद पर, प्रवक्ता.कॉम पर ,हस्तक्षेप.कॉम पर मेने जितने लेख प्रस्तुत किये वे इन तथ्यों  की स्व्यम्सिद्ध पुष्टि करते हैं.मुझे प्रारंभिक दौर में पूरा यकीन हो गया था कि राष्ट्रीय चेतना और मूलगामी बदलाव समेत भृष्टाचार इत्यादि बिन्दुओं पर अन्ना और रामदेव अपरिपक्व ही हैं.सोच समझ और मौलिक जनवादी चेतना या क्रन्तिकारी दर्शन कि अज्ञानता के वावजूद मेने कई मर्तवा अन्ना और रामदेव समेत  अन्य सत्ता विरोधी आवाजों को मुखरित होने  में सहयोग  किया.क्यों?
        जो लोग यह सोच रखते हैं कि सबकी बेहतरी में ही मेरा भी बेहतरी है,देश और दुनिया की भलाई में ही मेरी भी भलाई है ,सबकी बर्बादी में ही मेरी भी बर्बादी है और देश कि बर्बादी में मेरी बर्बादी असंदिग्ध है और  यदि देश को भृष्टाचार रुपी कठफुरवा अन्दर से खोखला कर रहा है तब में भी तो अन्दर से खोखला ही होता जा रहा हूँ!इत्यादी ...इत्यादि...स्वाभाविक है कि में भी इस कतार में खड़े होकर अपने हिस्से की आहुति के लिए तैयार रहूँगा.मैं जनता हूँ,मैं आम आदमी हूँ,मुझे जमाने भर के राजनैतिक -सामाजिक-आर्थिक और वैज्ञानिक परिवर्तनों  और उनके परिणामस्वरूप पृकृति प्रदुत्त अवदानो का कोई ज्ञान भले न हो किन्तु ' हित अनहित पशु पक्षिंह जाना 'तदनुसार यह भी स्वभाविक है की चाहे कोई राजनैतिक पार्टी हो ,व्यक्ति हो ,गैर राजनैतिक {?}बाबा या गांधीवादी समाज सुधारक होयदि वह इस तरह के सैधांतिक सुधारों की अपेक्षा प्रकट करता है तो  उसके स्वर में स्वर मिलाकर अपने सामूहिक हितों की रक्षा करना मेराभी  कर्तव्य है.भले ही वैचारिक और दार्शनिक स्तर पर अन्ना और रामदेव जैसे व्यक्तियों का सरोकार शून्य है किन्तु वे बिजुका  ही सही ,कागभागोड़े  ही सही देश की जनता के एक हिस्से -खास तौर से उत्तर भारत के मध्यम वर्ग को उद्देलित करने  का काम तो कर ही रहे थे.भले ही चेनई ,त्रिवेंदृम या हैदरावाद में इनकी पूंछ परख न हो किन्तु दिल्ली के राम लीला मैदान से लेकर हरिद्वार और रालेगन सिद्धि तक तो बोलबाला था ,इसमें किसी को कोई शक नहीं.ये विजूके कुछ हद कारगर हो रहे थे कि "बस एक ही थप्पड़"ने किये कराये पर पानी फेर दिया.
     बाबा रामदेव तो तभी खाली कारतूस सावित हो चुके थे जब दिल्ली पुलिस के डर से सन्यासी पीत वस्त्र त्याग कर महिला वस्त्रों में छिप -छिपाकर जान बचाने की जुगत में जग हँसाई के पात्र बन गए थे.किन्तु अन्ना रुपी बिजुका फिर भी कारगर लग रहा था.दिल्ली में उनके अनशन के ५ वें रोज तो भारत के भड़काऊ-डरावु-उडाऊ-खाऊ मीडिया ने कभी थ्येन आन मन चौक कभी तहरीर चौक तो कभी क्रेमलिन स्कुँयर की उपमा से अन्ना एंड कम्पनी के उपक्रम को महिमा मंडित किया ही था.किन्तु जिस तरह शेर की खाल ओडने से सियार सिंह नहीं जाता या मात्र काला होने से कौआ कोयल नहीं हो जाता उसी तरह गाँधी टोपी लगाने और नैतिकता की हांक लगाने या सत्याग्रह का स्वांग रचाने से कोई गांधीवादी नहीं हो जाता .चलो मान भी लेते हैं की आप सच्चे गांधीवादी ही हैं तो?इससे क्या फर्क पड़ता है स्वयम गाँधी जी ने और उनके वाद उनके महानतम पत्तशिष्यों
-जे.पी.नेहरु,कृपलानी,विनोवा,मोरारजी,इंदिराजी,राजाजी,सीतारामैयाजी जी,से लेकर देश के तमाम वामपंथी और दक्षिणपंथी गांधीवादियों ने आजादी के ६४ साल में  उस तथाकथित 'गांधीवाद'से क्या हासिल किया है?
 पूरा देश एकमत से मानता है कि व्यवस्था परिवर्तन के बिना भृष्टाचार से देश और देश की जनता की मुक्ति संभव नहीं!गांधीवाद तो यथास्थ्तिवाद का पर्याय है.शरद पवार भी पुराने गांधीवादी हैं  किसी ने यदि उन्हें एक थप्पड़ जड़ दिया तो दूसरा गाल उस हमलावर के सामने करने में चूक क्यों?शरद पंवार की पार्टी राकपा भी तो गांधीवादी ही है ,फिरइस क्षेत्रीय पार्टी के वफादारों {गांधीवादियों?}के मार्फ़त  पूरे महाराष्ट्र में हिंसा का तांडव क्यों?क्या अन्ना ,क्या शरद पंवार सब एक ही बांस भिरे  के झंडा वरदार हैं.तभी तो शरद पवार को लगे थप्पड़ पर अन्ना ने जो आप्त बचन उच्चरित किये'बस एक ही थप्पड़' वे खुद अन्ना के दोनों गालों पर और न केवल अन्ना एंड कम्पनी बल्कि पूरी की पूरी तथाकथित गांधीवादी बिरादरी के गालोँ पर दोगलेपन की कालिमा का कलंक बनकर ;सत्याग्रह'अनशन और अहिंसा के सिद्धांतों  की छाती पर अठ्ठास कर रहे हैं.
     अन्ना हजारे की सोच ,समझ और प्र्ग्याशक्ति के सन्दर्भ में देश के प्रबुद्ध वर्ग ने  भी गच्चा खाया हैयह तो होना ही था.अलबतता .जो उन्हें बिजुका मानकर भृष्टाचार रुपी हिंसक जंतुओं से भारत रूपी खेत की रक्षा के  लिए  उपयुक्त मानकर चल रहे थे उनकी सदाशयता को जरुर धक्का लगा होगा.एक मजबूत लोकपाल बिल बने ,देश में आनैतिक लूट खसोट बंद हो,समानता,बंधुत्व,शांति,और समृद्धि में सभी को बराबर अबसर मिले और इस महान उदेश्य के लिए जो कदम उठाये जा रहे हैं वे किसी विक्षिप्त युवा के एक थप्पड़ से धुल धूसरित न हों इसके लिए जरुरी है कि अन्ना को अपने संगी साथियों समेत संयमित होना होगा.कभी शराबियों को पेड़ से बाँधने और कोड़े मारने के तालिवानी वयां ,कभी किसी पार्टी या उसके नेता को चुनाव में हराने का बयान ,कभी कहना कि 'बस एक थप्पड़'ये किसी उच्च विचारधारा के प्रमाण नहीं.धीरोदात्त उज्जवल धवल चरित्र के स्वामी ,मनसा बाचा -कर्मणा और सामूहिक नेत्र्त्वाकारी व्यक्तित्व के धनि व्यक्ति ही    जनता जनार्दन का विश्वाश हासिल कर सकते हैं चापलूसों  दुवारा लिखी पटकथाओं के संवाद बोलकर लोक प्रसिद्धि भले ही मिल जाये किन्तु धैर्य और बुद्धि चातुर्य की परीक्षा तो संघर्षों के दरम्यान बार-बार हुआ करती  है तब मौन वृत से काम नहीं चलेगा और अनर्गल बाचालता तो नितांत वर्जनीय है.अच्छे -खासे जन आन्दोलन को पंचर करने में लगी अन्ना टीम अपनी असफलता का ठीकरा सरकार या राजनीतिज्ञों पर ढोलने लग जाए ये भी संभव है.शरद पवार को थप्पड़ मारे जाने पर अन्ना की प्रतिक्रिया ने खुद अन्ना टीम को 'विश्वाश के संकट'में धकेल दिया है .खुदा खेर करे!!!
     श्रीराम तिवारी
 

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

विश्व पूंजीवाद के स्वर्णिम दिन लदने को हैं

एक  ध्रुवीय   गतिज उर्जा के नकारात्मक परिणाम उसके सृजनहार द्वारा छुपाये नहीं छुप रहे हैं.सोवियत समाजवादी व्यवस्था की जड़ों में मठ्ठा डालने वालों को अब दुनिया भर में अपनी फजीहत कराने में भी शर्म नहीं आ रही है.पेंटागन आधारित और बहुराष्ट्रीय एकाधिकारवादी कम्पनियों द्वारा निर्धारित वैश्वीकरण की पूंजीवादी आर्थिक नीतियों के दुष्परिणाम अब अमेरिका तक  सीमित नहीं रहे.श्री ओबामा जी लाख चाहें  कि अमेरिका अपने संकट कोशेष विश्व के कन्धों पर लादकर अपने परंपरागत पूंजीवादी-साम्राज्यवादी निजाम को बरकरार रख ने में बार -बार कामयाब होता रहे,किन्तु नियति को या यों कहें कि आधुनिक विश्व चेतना को ये मंजूर नहीं.अमेरिकी प्रशासन को ज्ञात हो कि 'रहिमन हांडी काठ कि ,चढ़े न  बारम्बार..'या   'ये इश्क नहीं आशां इतना समझ लीजे,इक आग का दरिया है;डूब के जाना है.' उधर आर्थिक संकट से जूझ रहे ग्रीस {यूनान}को राहत देने के लिए' यूरोप संघ 'ने प्रस्ताव का प्रारूप  तैयार ही किया , कि  इधर इटली ,फ़्रांस की आर्थिक बदहाली के अफ़साने भी  मीडिया की जुबान पर आ ही गए.यूरोपीय यूनियन अर्थात यूरोजों के  वित्त मंत्रियों की  जनरल बॉडी मीटिंग के बाद सभी सम्बंधित देशों और उनके बैंकों को चेतावनी दी गई की वे अपने-अपने घाटे कम करें.ग्रीस के आर्थिक संकट ने न केवल यूरोपीय संघ ,न केवल उसके हमराहएवं  घोर पूंजीवाद परस्त -सरपरस्त अमेरिका,बल्कि सारी  वैश्विक वित्त मण्डली को बैचेन कर डाला है.पूरी दुनिया के पूंजीवादी अलमबरदार बड़ी -बड़ी बैंकों और पूँजी संचलन केन्द्रों पर दवाव बना रहे हैं कि इस अधोगति और बदनामी से बचाने के पूंजीवादी उपचारों को खंगालिए. ,हमारी ठेठ हिंदी में इसे यों कहा जाता है कि 'मस्के पाद महा पापी-उत्तम्पाद धड़कानाम' अर्थात अपान वायु को  विसर्जित करने का अधम तरीका तो हुआ 'मसकैं-पाद' और उत्तम तरीका हुआ धड़कानाम !!!
       चूँकि वर्तमान दौर के यूनानी आर्थिक संकट की धुरी विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के मार्फ़त सम्पूर्ण यूरोप और उसके सहयात्री अमेरिका के मर्मस्थल में धसी हुई है,अतएव यूरोपीय यूनियन पर दुनिया भर के सभ्रांत लुटेरों का बेजा दवाव है की इस मौजूदा  आग की लपटों को फ़ौरन शांत किया जाए.यही वजह है कि लगभग दिवालिया हो चुकी इटली की अर्थ व्यवस्था और अधःपतन को प्राप्त हो चुकी फ़्रांस की अर्थ व्यवस्था के वावजूद यूरोपीय संघ द्वारा  विगत सितम्बर में रोकी गई सहायता लगभग आठ अरब यूरो के रूप में ग्रीस को तत्काल दिए जाने का ऐलान किया जा रहा है.५.८ अरब यूरो की रुकी हुई मदद राशी भी शीघ्र जारी किये जाने की  सम्भावना है.
       यूनान की आंतरिक राजनीती का ज्वार भी उफान पर है.उपरोक्त ऋण राहत पैकेज पर जनमत संग्रह के ऐलान से बाज़ार हक्के-बक्के हैं.इससे यूरोप के नेता बेहद नाराज हैं.हलाकि फ़्रांस ने राहत पैकेज को अंतिम विकल्प बताया किन्तु स्वयम फ़्रांस की स्थिति ये है की निकोलस सरकोजी को स्वयम  वेतन नहीं लेने की घोषणा करनी पड़ रही है.इटली की जर्जर आर्थिक दुरावस्था को स्थिरता प्रदान करने केलिए  बर्लुस्कोनी शीर्षासनलगा रहे है.चौतरफा संकट की स्थिति में इटालियन बांड्स भारी दवाव में आ चुके हैं.यूरो क्षेत्र का संकट लगातार फैलता जा रहा है.डालर के मुकाबले यूरो की विनिमय दर घटकर १.३६०९ यूरो रह गई है.इस ताज़ा उठापटक से यूरोपीय बाज़ारों में ५%से ज्यादा गिरावट रेखांकित की गई है.इटली के लिए स्थिति असहज हो चुकी है.आम जनता सड़कों पर निकल चुकी है,फ़्रांस में हड़तालों का दौर जारी है.
     उधर अमेरिका में २००८ की आर्थिक मंदी की मार के घाव भरे भी न थे किअचानक चार-चार विशालकाय बैंक धराशाई होते चले गए.इनके सहित मौजूदा आर्थिक सत्र में भूलुंठित बेंकों कि संख्या ८४ हो चुकी है .अमेरिका में आभासी वित्त पूँजी की अनुपलब्धता की वजह से बेंकों का कारोबारी संकट आम हो चला है.इससे पहले २०१० में १५७ अमेरिकी बैंकें अपना बोरिया बिस्तर बाँध चुकी हैं.अपने असीमित अंतर्राष्ट्रीय हितों के बहाने ,आतंकवाद से लड़ाई के बहाने ,दुनिया भर में थानेदारी का रौब बरकरार रखने के फेर में अमेरिका पूंजीवादी साम्राज्यवाद का सूर्यास्त निकट है.वाल स्ट्रीट कब्ज़ा करो 'आन्दोलन इस दिशा में क्रांति की भोर का तारासावित हो सकता  है.
       
  श्रीराम तिवारी