शनिवार, 31 मार्च 2012

Some valueable sms.

First ,I was dying - to finish my school education and start collage,then I was dying -to finish  collage and start working the Jobs.Then I was dying -to marry and have children.I was dying  for my children  to grow old enough , so  I could go back to work,then I was dying to retire . Now I am dying .......and suddenly I realised Ohh I forgot to live.........Rajesh sharma -general  manager telecomBhopal.

 The Irony of Indian  Education System ?Students those havebeen pass with First Class and get admission to Medical and Engineering schools.Second class students get MBA,LLB to manage the First Class students....Third Class students enter to politics,and ruled out the First and Second  class students....The failures join the underworld and control the politicians and the businessmen....Best of all who did not attend the school ....become  swami /guru and everybody follows them....Vijaykumar.DE MHOW

यदि कभी  किसी राह में चलते हुए आपके  सामने एक भी समस्या न आये  तो समझना कि आप गलत राह पर चले जा रहे हैं.स्वामी विवेकानंद ,मार्फ़त जे एम् प्रजापति -गुजरात.

If you expect the world  to be fair with you  because  you are fair with them,its like expecting a lion not to  eat you because you don't eat the lion ....Mthpati Mumbai.  
                                                                                                                                              

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

सावधान ! पूंजीवाद तो खेती की ज़मीन भी खा रहा है...!

यह जग जाहिर है कि इस दौर में  अंतर्राष्ट्रीय आवारा वित्त पूँजी  के सरोकार नितांत नव-उपनिवेशवादी हैं.इस नए अमानवीय और ' लालच' के अवतार ने बड़ी ही वेशर्मी से 'जन-कल्याण' का वो चोला भी उतार फेंका है जो उसने 'शीत-युद्ध' के दौरान तत्कालीन "सोवियत संघ" समेत तमाम साम्यवादी कतारों को नीचा दिखाने के लिए ओढ़ रखा था .पाश्चात्य पूंजीवादी राष्ट्रों के    जिन अर्थ शाश्त्रियों  ने इस नव्य-उदारवाद का कांसेप्ट बुना था उनकी दुरात्मायें  अब 'वाल स्ट्रीट ' के प्रभु वर्ग को ही नहीं ,अमेरिकाऔर यूरोप को ही नहीं बल्कि चीन जैसे अर्ध साम्यवादी और भारत जैसे अर्ध-पूंजीवादी+अर्ध-सामंती देश  के सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों को सपनों में आ-आ कर डरा रहीं हैं. वैसे तो इस विश्व-व्यापी 'नव्य-उदारवाद' का जन्म विगत शताब्दी के अंतिम दशक कि शुरुआत में ही हो चूका था किन्तु भारत में उसे परवान चढाने में जिन राजनैतिक ताकतों का हाथ रहा वे 'कांग्रेस और भाजपा' दोनों ही बराबर के जिम्मेदार हैं ,इन दोनों ही राजनैतिक शक्तियों के आर्थिक चिन्तक और प्रेरणा  स्त्रोत केवल एक  ही सज्जन हैं -वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ मनमोहनसिंह. ये सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री जरुर रहे होंगे किन्तु अब नहीं ,अब केवल और केवल इस नव्य-उदारवादी ,बाजारवादी पूंजीवाद के शानदार पैरोकार  होकर विश्व -बैंक और अन्तर्रष्ट्रीय मुद्रा कोष  के कुशल मार्केटिंग मेनेजर जैसे लगने लगे हैं.
             भारत  में वैसे तो गुलामी के दिनों में ही  स्थानीय सामंतवाद  के घोड़े पर चड़कर ब्रिटिश साम्राज्य का हिमायती पूंजीवाद इस शस्य स्यामल -सुजलाम-सुफलाम भारतीय धरती को बुरी तरह निचोड़ने में लग चूका था  किन्तु इस नए पूंजीवाद की आयु तो मात्र २० वर्ष ही  है.अब यह न केवल जवान हो चूका है बल्कि निहायत ही घटिया दर्जे का बदचलन  और आवारा भी हो चूका है.वर्तमान दौर में यह राज्य-सत्ताओं के मार्फ़त  आम जनता की छोटी-छोटी मिल्कियतों पर न केवल  अपनी कुदृष्टि डाल रहा है बल्कि सार्वजनिक सम्पदा और जमीनों पर   जबरन कब्जा कर परोक्ष रूप से  देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों और इजारेदार पूंजीपतियों बड़े  ज़मींदारों ,ठेकेदारों   तथा विभिन्न  माफियाओं  की तिजोरियों को  लबालब भरने में जुटा है.  राज्य सत्ता के राजनैतिक दलाल और भृष्ट प्रशाशनिक मशीनरी के नापाक कारिंदे इन पूंजीपतियों और बड़े भू-स्वामियों से मोटी रकम की दलाली पाते हैं .जो नेता,दल ,अफसर या कर्मचारी इस नापाक गठजोड़ से सहमत नहीं  उसे या तो सिस्टम से अलग कर दिया जाता है या दुनिया से उठा दिया जाता है.
                                             पूंजीपति और बड़े फार्म हाउसों के मालिक अपनी लागत और मुनाफा वसूलने के साथ -साथ अपने आर्थिक साम्राज्य में बेतहाशा बृद्धि करने के बाबत आम जनता की खाल उधेड़ रहे हैं.एक तरफ राजनैतिक दलालों के मार्फ़त सार्वजनिक उपक्रमों को चुपके-चुपके  निजी हाथों में सौंपने का सिलसिला जारी है,दूसरी ओर सकल राष्ट्रीय विकाश दर की बढ़त के बहाने, आधारभूत अधोसंरचना निर्माण के बहाने विदेशी क़र्ज़ का फंदा देश की भावी पीढ़ियों के मथ्थे मढ़ा जा रहा है.यह तो  वर्तमान दौर के सर्वग्रासी- सर्वनाशी नव्य-उदारवाद की एक आंशिक झलक मात्र है,देश के हर प्रान्त ,हर शहरऔर हर इलाके में लोभ-लालच के महारथियों का नंगा नाच जारी है.
                               बुंदेलखंड के सागर संभाग में कभी २-४ बीडी उद्द्योग के केंद्र थे.तेंदुपत्ता ,ज़र्दा और बीडी के काम में लाखों लोगों का श्रम लगा हुआ था . बीडी बनाने बाले तो  असमय  ही क्षय या टी.बी से बेमौत मर-खप गए किन्तु बीडी निर्माताओं ने राजनैतिक पार्टियों [कांग्रेस और भाजपा] का दामन थामकर न केवल आम जनता की जमीनों बल्कि सार्वजनिक संपदा और जमीनों पर अपना आधिपत्य जमा लिया.अब वे किंग मेकर की भूमिका में हैं.इन पूंजीपतियों ने हजारों एकड़ जमीन के फार्म हॉउस और सेकड़ों एकड़ जमीनों पर खनन के निमित्त कब्ज़ा कर रखा है.पुलिस -प्रशाशन और राजनीती इनके इशारों पर चलती है .कोई मुख्यमंत्री का दोस्त  बन गया कोई स्वयम सांसद या मिनिस्टर.अब तो ' सैयां भये कोतवाल' नहीं 'अपन हथ्था तो जग्नाथ्था' की कहावत चरितार्थ हो रही है.
                    विगत २-३ माह से इंदौर  और उसके इर्द-गिर्द देश भर के नामी-गिरामी लार टपकाऊ ,जमीन  खाऊ
लोगों की आमद-रफत बढ़ गई है.सुना है क़ि टी सी एस आएगी,विप्रो आएगी और इनफ़ोसिस भी आ रही है. स्वयम राज्य सरकार पलक पांवड़े बिछाकर इन आई टी कम्पनियों को लाल कालीन बिछा चुकी है.गोया इन कम्पनियों के आगमन से इंदौर और मध्यप्रदेश की जनता मालामाल हो जाएगी! किसानों की जमीन जबरन छीनकर उन्हें खेती बाड़ी से महरूम किया जा रहा है.इसकी किसी को फ़िक्र नहीं की इंदौर-देवास-पीथमपुर में कितने कारखाने बंद हो गए हैं.उन्हें पूर्व में दी गई हजारों एकड़ जमीन अब खेती के काम की नहीं रही और कारखाने बंदी से ओउद्द्योगिक उत्पादन भी नहीं हो पा रहा है.विगत पांच सालों से आई टी पार्क नाम से करोड़ों की इमारत सेकड़ों एकड़ जमीन में बनकर तैयार है उसका न तो कोई लेवाल है और न ही उस जमीन पर अब कभी खेती हो सकेगी.इससे सबक सीखने के बजाय राज्य सरकार को किसानों की खेती योग्यऔर सेकड़ों एकड़  उपजाऊ भूमि जबरन अधिगृहीत करके इन आई टी कम्पनियों को तस्तरी में रखकर देने की बड़ी व्यग्रता है.
                              आई टी उद्योग की देश को कितनी जरुरत है?खाद्यान्न की देश को कितनी जरुरत है? यह सामान्य बुद्धि का मानव भी समझ सकता है.चाहे आई टी उद्योग हो या पूर्व वर्ती परंपरागत कल-कारखानें हों क्या यह जरुरी है की वेशकीमती उपजाऊ भूमि पर ही स्थापित किये जाएँ? इस आई टी उद्योग का स्याह पहलु बंगलुरु के लोग ने भी देख लिया.भू माफिया और राजनीतिज्ञों की मेहरवानी से जमीनों के भाव  इतनी तेजी से बड़े की आम आदमी के लिए एक छोटा सा फ्लेट प्राप्त कर पाना भी असंभव हो गया.पहले इंदौर को कपडा उद्योग के लिए जाना जाता था ,अब तो खंडहर भी नहीं हैं की बता सकें की ईमारत बुलंद थी!जिस जमीन पर ये बड़ी-बड़ी कपडा मिलें स्थापित हुई थीं वो हज्रारों एकड़ जमीन भू माफियाओं के मार्फ़त सस्ते में हथिया ली गई थी अब उस पर  विशालकाय बहुमंजिला इमारतें और माल्स बनाये जा चुके हैं जो की करोड़ों -अरबों में बेचे जा रहे हैं .यह सर्व विदित है की भृष्ट नौकरशाही और राजनीती के नापाक गठजोड़ की इक्षा के बिना अब पत्ता भी नहीं हिल रहा है.
              इंदौर  के नज़दीक   पीथमपुर को भारत में  अमेरिका या जापान केआधुनिकतम तकनालोजी केन्द्रों   की तरह  उत्कृष्ट उद्द्योग केंद्र बनाने का स्वप्न देखने वालों ने छोट-बड़े सभी किसानों कोजबरन  वर्षों पहले उनकी जमीनों   से  बेदखल कर दिया था.इस जमीन पर थोड़े-बहुत उद्द्योग और कारखाने शुरुआत में जरुर खुले थे किन्तु शाशन-प्रशाशन के भृष्ट आचरण और परिवर्तिकाल के लालची उद्द्योगपतियों-राजनीतिज्ञों की  अदूरदर्शिता  से  धीरे-धीरे वे सभी बंद होते चले गए.आधारभूत अधोसंरचनात्मक  विकाश भी एक प्रमुख कारण रहा है.यह कारण अभी भी बरकरार है.परिणामस्वरूप हज़ारों  एकड़  खेती की वेशकीमती जमीन पर न तो अब खेती संभव है और न ही कोई कारगर उद्द्योग स्थापित  किये जाने  का प्रयास हो रहा है.
       पीथमपुर  की तरह ही इंदौर का भी यही हाल है.इस शहर के इर्द-गिर्द १०० किलोमीटर के दायरे में अत्यंत उपजाऊ भूमि थी.इस भूमि का' बहुत बड़ा हिस्सा तो भू-माफिया ' खा'गया.अब बची-खुची जमीनों पर देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय निगमों की  गिद्ध द्रष्टि  है.इंदौर को सिलिकान वेळी में बदलने   का  सपना  दिखाकर धुल धूसरित कर
डाला है.अच्छी खासी खेती का कबाड़ा किया सो किया,परपरागत कपडा-मीलों  को बंद कर तमाम हजारों एकड़ जमीन पर धडाधडकांक्रीट की   बहुमंजिला इमारतें और माल्स बन कर निर्धन जनता को और बेरोजगार हो चुके मिल मजदूरों का उपहास करते नजर आ रहे हैं. अलबत्ता  अहिल्या बाई होलकर के  जिस  पुरातन सुन्दर शहर  की तुलना मुबई से  की जाती थी ',मिनी बॉम्बे ' कहा जाता था वह  आज गड्ढों  से परिपूर्णहै. सड़कें,धुंआ छोडती-बसें,कारें,धुल,धुंआ,धुंध और बीमारियों का बोलबाला है. बेरोजगार-मजदूर और किसान आये दिन आत्म हत्या कर रहे हैं,चोरी,लूट,सेंधमारी,नकबजनी,हत्या और बलात्कार जैसी घटनाओं की बाढ़ आ गई है. यह वर्तमान दौर के सर्वग्रासी- सर्व भक्षी पूंजीवाद का सम्पूर्ण चित्रण नहीं है यह तो एक शहर,एक काल-खंड और एक विशेष परिस्थति के बरक्स उसकी आंशिक झलक मात्र है.
           एक आई टी कम्पनी को सुपर कारीडोर पर जमीन चाहिए .उस कम्पनी का मालिक या सी.ई.ओ यहाँ आता है .राज्य सरकार के मंत्री उसकी चरण वंदना करते हैं.ऐंसा फोटो भी अखवारों में छपता है.उस पूंजीपति के स्वागत में लाल कालीन बिछ जाया करते हैं.कम्पनी मालिक जितनी भी जमीन मांगता है उतनी उसे आनन् -फानन दिए जाने के अनुबंध हो जाते हैं.सरकार,कलेक्टर,विकाश प्राधिकरण,नगर-निगम,तथा पंजीयक रजिस्टार समेत सभी कारकून एकजुट होकर किसानों को हकालकर एक बाड़े में घेरकर  ओने-पाने दामों में उनकी वेशकीमती अत्यंत उपजाऊ जमीन हस्तगत करके उस पूंजीपति को सौंपने के उपरान्त चेन की सांस लेते हैं.सारी जमीन खेती की है,सिंचित है,उपजाऊ है,किन्तु अब ये बंज़र कर दी जाएगी.आई टी क्षेत्र के विकाश के नाम पर ,युवाओं को रोजगार मिलने के नाम पर  यह यदि बहुत जरुरी भी था तो उस जमीन पर क्यों नहींबनाते  जो यत्र-तत्र सर्वत्र युसर-बंज़र  पड़ी हुई है या जिस पर शहरी  भू माफिया या देहाती दवंगों का कब्ज़ा है?
             कल-कारखाने बनाए जा सकते हैं, आधनिक तकनीकी उपकरण और तत्सम्बन्धी उद्योग लगाए जा सकते हैं,ये सब इंसानी दिमाग और फितरत के वश में है किन्तु खेती योग्य उर्वरा भूमि को एक बार सीमेंटीकरण कर देनें पर उसका हालत वैसे ही हो जाएगी;-
        बिगरी बात बने नहीं , लाख करे किन कोय!
         रहिमन फाटे दूध का ,मथे  न माखन  होय!!
                                                                               श्रीराम तिवारी

मंगलवार, 13 मार्च 2012

Very important saying to making for life..

   Single finger which wipes out tears during our failure is much better then the ten fingers  which come together to clap for our victory....."Y.S.CHOHAN

     The greatest mistake we humans  make in our relationships;
     ' we listen half, understand quarter,think zero and react double......' Mathpati Mumbai.

   The world is so full of wonderful things,we should all  if we  were taught to appreciate it,be far richer then king....Agyaat.

    ' विश्वास' एक छोटा सा शब्द है,जिसके मायने समझो तो बहुत सारे हैं.किन्तु मुश्किल ये है कि लोगों को विश्वास पर शक है और अपने शक पर उन्हें विश्वास है.. नरेश अवश्थी .भोपाल.


   जिन्दगी में सच्चे दोस्त की तलाश न करो. खुद किसी के सच्चे दोस्त बन जाओ.तुमसे मिलकर शायद किसी की 'तलाश' पूरी हो जाए.जैसे हमारी तलाश पूरी हुई आपको पाकर...जे.एम्.प्रजापति.गुजरात.

  Just small difference between 'liking' and ' loving'
Liking;-Don't worry dear, take care.
loving;-Don't worry dear,I will take care......Ganesh Mathpati...Mumbai.

True relations have the most unique character like salt ;-Their presence is never remembered.But their absence makes all the things tasteless.........YSC.Indore.

    जो रहते हैं दिल में , वो जुदा नहीं होते.
    कुछ एहसास लफ़्ज़ों में बयाँ नहीं होते..
    एक हसरत है कि आपको सताएं,क्योंकि ,
    एक आप ही तो हैं जो कभी खफा नहीं होते..  योगेश सतना.

 नफरत हो जाएगी तुमको भी दुनिया से,ऐ दोस्त ! किसी से वेशुमार मुहब्बत करके तो देख! नरेश...भोपाल.

Greatest mistake we human make in our relationships;-


 We listen half, Understand quarter, think zero and react double...Mathpati.Mumbai.

The world is so full of wonderful things we should all,if we ware taught to appreciate it, be far richer than kings. 09869289191

If you think positively,then Sound becomesMusic,Movement becomes Dance,smile  become laughter,Mind becomes Meditation and whole life becomes celebration..Ketkar.

Pure heart is the greatest temple in the world , don't belive the smiling face but belive the smiling heart..Mathpati.

जब हम एक ख़ुशी के लिए बार-बार हंस  नहीं सकते  तो एक गम के लिए बार-बार क्यों रोते रहें? राजेश तिवारी, इंदौर .

A 'Beautiful Day' is waiting for you.Walks with Aims,Run with confidence,Fly your achievement,so get up make a beautiful life.Ashok Tiwari Pnna.

All fingers are not same in length,but when they bend,all stand equal .Life becomes very easy when we bend and adjust  to situations. N.C Upadhyay,Bhopal.

Two thoughts decide the progress in life-The way you manage  when you have nothing in hand and the way you behave when ,you have every thing in your hand. Naresh awasthi,Bhopal.

If you want to enjoy, always think life is so long...But if you want to achieve some thing,always think life is very short....!Naresh Tandan,

Life is all about three things.1-winning,2-losing,3-sharing,
winning;-others heart,Losing;-bad things,Sharing;-happy moments,thats a life....Mathpati,Mumbai.


Its good to sit alone for at least some time every day ..But when you sit alone ,don't  sit with your past..Sit alone to dream your future...Mathpati.



   


शनिवार, 10 मार्च 2012

राष्ट्रीय दलों का पराभव एवम् क्षेत्रीय दलों की बढ़त क्या मज़बूत भारत के पक्ष में है?

    स्वतंत्र भारत के राजनैतिक इतिहास के अध्येताओं की  नैतिक जिम्मेदारी है कि अपने समकालीन राजनैतिक परिप्रेक्ष्य को  जन-आकांक्षाओं के केनवास पर वैचारिक रंगों को  शिद्दत के साथ प्रत्यारोपित  करते हुए 'सच का सामना' करें.तमाम सुधि  चिंतकों से अनुरोध है की वर्तमान दौर के - पांच  राज्य विधान सभा चुनावों के नतीजों  को  - भारत के अपने विविधता पूर्ण सामाजिक संरचनात्मक ढाँचे में देखें. इस परिणिति को - नव-तकनीक सम्पन्न उत्तर आधुनिक  मीडिया की भूमिका,नेतृत्वकारी वैक्तिक छवियाँ,सत्ताधारी दलों की चूकों तथा जन-आकांक्षाओं के समवेत स्वरों में -उद्घोषित करें.विगत ६ मार्च को प्राप्त हुए चुनावी नतीजों से न केवल देश की दशा बल्कि आगामी लोकसभा के चुनावों की पूर्व पीठिका का भी  बीजारोपण हुआ है ,  विभिन्न राज्यों के जन-मानस की मनोदशा भी परिलक्षित  हुई है.दोनों बड़े   राष्ट्रीय दलों- कांग्रेस ,भाजपा  को छोटे राज्यों से ही संतोष करना पड़ाहै.  तीसरी राष्ट्रीय ताकतका प्रमुख स्त्रोत - वाम मोर्चा तो   लगभग हासिये पर ही  चला गया है...गोवा में भाजपा और मणिपुर में कांग्रेस और उत्तरांचल में दोनों की बराबरी ,के मायने हर वह शख्स आसानी से समझ सकता है जो भारतीय राजनीती  का ककहरा जानता है.पंजाब में  बादल परिवार और यूपी में मुलायम परिवार को मिली सफलता  से भारतीय लोकतंत्र में जहांपरिवारवाद का बोलबाला दृष्टिगोचर हुआ वहीँ  तीसरे मोर्चे के परवान चढ़ने की भी  संभावना प्रवल हुई  है.
 आगामी दिनों में  राष्ट्रीय एकता और मज़बूत भारत के सामने भयावह चुनोतियाँ के दरपेश होने की संभावना से भी  इनकार नहीं किया जा सकता. क्या अखिलेश यादव को मालूम है कि वैश्वीकरण और बाजारीकरण के प्रतिस्पर्धी दौर में  'समाजवादी समाज 'के निर्माण की  प्राथमिकताएं क्या हैं? क्या उन्हें मालूम है की वैश्विक आर्थिक संकट की मार से उत्तरप्रदेश के मजदूरों ,किसानों और नौजवानोंतथा प्रदेश की २० करोड़ जनता को  कैसे उबारेंगे?वे जिस जात,धरम [यादव=मुस्लिम] की  वोटर युति पर सवार होकर सत्तासीन हुएहैं, क्या उसकी उद्दाम आकांक्षों को पूरा कर सकेंगे ? जबकि मायावती जी के शाशनकाल में उत्तरप्रदेश का खजाना लगभग खाली हो चूका है.क्या चुनावी वादों की पूर्ती किसी जादुई व्यक्तित्व या कोरे नारों  से संभव है?

             हालाँकि    समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और सपा -अध्यक्ष मुलायमसिंह के सुपुत्र अखिलेश यादव का उत्तरप्रदेश का ३३ वां मुख्यमंत्री बनना न केवल यूपी के लिए,न केवल मुलायम परिवार के लिए ,न केवल तीसरे मोर्चे के लिए अपितु भारत की जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए अत्यंत शुभ सूचक  सिद्ध हो सकता है,वशर्ते अखिलेश  यादव का व्यक्तित्वऔर समाजवादी पार्टी की नीतियाँ  वास्तव में वही हों  जो इन चुनावों के दौरान परिलक्षित किये गए हैं .तात्कालिक रूप से मायावती के कुशाशन से आजिज़ आकर और अखिलेश यादव का   निहायत ही धीर,गंभीर,जिम्मेदार ,विनम्र और परिपक्व चेहरा देखकर यु पी की जनता ने न केवल मुलायम परिवार के अतीत की गुंडई को नज़र अंदाज़ किया ,अपितु कांग्रेस के सर्वश्रेष्ठ तुरुप के इक्के-श्री राहुल गाँधी  का दिल  तोड़ने का जोखिम भी लिया.बसपा की हार पर मायावती जी कहती हैं कि मेरी हार के लिए भाजपा और कांग्रेस जिम्मेदार हैं;कि इन दोनों ने मुसलमानों के आरक्षण के सवाल पर विपरीत वयान्बाजी की थी अतः मुसलामानों ने डरकर सपा का दामन थाम लिया और में [मायावती]हार गई वर्ना दलितों के वोट तो मुझे  पूरे के पूरे मिलेहैं .मायावती जी का वयान सौ फीसदी सही हो सकता था वशर्ते वे उसमें ये भी जोड़ देतीं की"मेने [मायावती] अपने पांच साल के कार्यकाल में जितना भृष्टाचार किया उतना किसी भी पार्टी ने अतीत में  कभी नहीं कियाऔर भविष्य में मेरे अलावा और कोई कर भी नहीं सकेगा क्योंकि अंध समर्थन का वोट बेंक सिर्फ और सिर्फ मेरे पास ही है.बाकि  व्यक्तियों,दलों और विचारधाराओं का वोट बैंक  स्थाई नहीं है.
   कांग्रेस हाई कमान ने भी जैसी की उम्मीद थी अपनी हार पर निराशा जाहिर की.खास तौर से राहुल गाँधी के तूफानी प्रयासों के मद्देनजर यूपी में कांग्रेस को वांछित जन समर्थन की उम्मीद थी किन्तु सांगठनिक आभाव,बढ़ती महंगाई ,उम्मीदवारों की आपसी तकरार और राहुल के इर्द -गिर्द चापलूसों की भरमार ने न केवल कांग्रेस बल्कि राहुल गाँधी जैसे वेहतरीन उभरते नेता का पटिया उलाल कर दिया.मीडिया ने भी शुरूं से ही मुलायम का खुलकर समर्थन किया.कांग्रेस के खिलाफ स्वामी रामदेव,अन्ना हजारे   और केजरीवाल लगातार आक्रमण करते रहे और वो अब भी जारी है.मजेदार तथ्य ये है की  कांग्रेस तो 'जन-लोकपाल' बिल लोक सभा में लाइ भी  थी किन्तु लालू,मुलायम और भाजपा ने उसकी ऐसी की तैसी कर डाली थी.तब भाजपा का ये कहना की 'लोकपाल बिल पास कराना हमारी जिम्मेदारी में नहीं आता'  किस नीति और नियत का देव्त्क है?
जो लोग उस समय 'लोकपाल बिल 'के विरोध में सबसे ज्यादा बोले उनमें मुलायमसिंह यादव सबसे उपर हैं.क्या अन्ना ,केजरीवाल और रामदेव को मुलायम परिवार की जीत में लोकपाल के चीथड़े उड़ते नजर नहीं आ रहे हैं?
अब अबूझ तत्व ये है कि इन पांच राज्यों के चुनावों में तथाकथित लोकपाल या भृष्टाचार के लिए सिर्फ कांग्रेस को ही निशाना क्यों बनाया जाता रहा ?स्वामी रामदेव ने राहुल के खिलाफ सेकड़ों फव्तियाँ कसी किन्तु अखिलेश और मुलायम के खिलाफ कभी एकभी  शब्द उन्होंने नहीं बोला. जबकि मुलायम के अतीत में झाँकने पर बाबा रामदेव कोई परमानंद की प्रप्ति नहीं कर सकेंगे !निसंदेह राहुल की तुलना में अखिलेश को' यूनिफार्म  लेवल प्लेइंग फील्ड' प्राप्त था अतेव यह स्वभाविक है की उन्हें कोई व्यग्रता नहीं थी ,आराम से सहज व्योहार से अपने चुनाव अभियान में सफल रहे..जबकि राहुल के सामने न केवल यूपी ,न केवल कांग्रेस ,न केवल भारत बल्कि स्वयम के भविष्य निर्धारण की चुनौती थी,उनकी माताजी श्रीमती सोनिया गाँधी बीमार थीं,उनकी केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार की पूंजीवादी नीतियों से देश की और यूपी की जनता पस्तहाल थी  अतः यह स्वभाविक है की वे कई  मर्तवा असहज और अनपेक्षित व्यौहार करते हुए जग हंसाई के पात्र बनते रहे.औरकांग्रेस की  पराजय के जिम्मेदारभी वे ही  ठहराए जा रहे हैं!क्या यह सरासर न इंसाफी नहीं है?  अन्ना हजारे,केजरीवाल और स्वयम्भू स्वनामधन्य रविशंकर जैसे बाबा लोग साधू पथ से विचलित होकर केवल कांग्रेस विरोध कीही  माला जपेंगे तो संदेह होना स्वभाविक है की ये तत्व किस विचार या शक्ति से प्रेरित हैं.स्वामी रामदेव तो निसंदेह यादव होने के नाते मुलायम सिंह यादव के जातीय बंधू धर्म का निर्वाह करने के आकांक्षी रहे  हैं किन्तु सांसारिकता से बंधन मुक्ति की कामना वाले अन्य  महा पुरुषों का कांग्रेस द्रोह समझ से परे है!
                                                  इसी दरम्यान वामपंथी  श्रम संगठनों ने  महंगाई,वेरोजगारी,श्रम कानूनों का पालन,विनिवेश ,पेंशन और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को दिए जा रहे वेळ आउट पकेज को लेकर देश भर में जबरदस्त आन्दोलन ,धरना,प्रदर्शन और हड़ताल[२८ फरवरी]आयोजित कर डाले .इससे वामपंथ को, श्रमिक वर्ग को क्या फायदा हुआ ये तो में नहीं जानता किन्तु इतना अवश्य जानता हूँ की कांग्रेस और भाजपा को  भारी क्षति हुई है और क्षेत्रीय पार्टियों-अकाली,सपा जैसों को भारी सफलता मिली है.इससे पूर्व विगत २५ वर्षों में अनेक क्षेत्रीय दलों ने अपने -अपने अलगाववादी लबादों में विभिन्न सूबों को ढँक रखा है.क्षेत्रीय,भाषाई,नस्लीय,धार्मिक और आस्मां विकाश के बहाने भारत राष्ट्र की संप्रभुता को खोखला किया जाता रहा है.केवल कांग्रेस,भाजपा और वामपंथियों के पास ही भारत -राष्ट्र के निर्माण और उसके संरक्षण की नीतियाँ और कार्यक्रम हैं .भले ही इन तीनों के विचार बिलकुल जुदा-जुदा हैं किन्तु इनके बारे में देश को संशय नहीं था.किन्तु जबसे गठबंधन दौर चला है इन तीनों का ही स्खलन हुआ है यही वजह है की तीनों राष्ट्रीय ताकतें आज हासिये पर है और जातिवादी,क्षेत्रीयतावादी,मुलाय्म्परिवार,बादल  परिवार,जय ललिता परिवार,ममता परिवार ,पटनायक परिवार,अब्दुल्ला परिवार,ठाकरे परिवार और सबसे ऊपर माया परिवार   सभी अपने विजन और धारणाओं के अलमबरदार हैं.क्या ये दल-दल जानते हैं की नव-उदारवाद का भारत कितना शिकार बन चूका है? क्या इन दलों के अपरिपक्व सुप्रीमों को मालूम है की भारत के दुनियाभर  में और उसके अन्दर आवाम के और देश के दुश्मन कौन हैं?अभी विगत दिनों जब केंद्र सरकार ने शांति और अमन कायम करने बाबत राज्यों और केंद्र में समन्वय बिठकर उचित क़ानून की बात चलाई तोकुछ मुख्यमंत्रियों [गैर कांग्रेसियों] ने एन.सी टी सी.अर्थात राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी केंद्र का घोर विरोध किया. क्या ममता ?क्या नितीश?क्या जयललिता ? क्या मोदी -सभी ने भारत के मजबूत संघीय ढाँचे की खिल्ली उड़ाई!खैर इन क्षेत्रीय क्षत्रपों से देशभक्ति की उम्मीद करना अपने आप को धोखा देने जैसा है किन्तु देश के आंतरिक बिखराव की तब इन्तहां हो जाती है जब कोई कट्टर राष्ट्रवाद के कंधे पर चढ़कर सत्ता में पहुंचा हो और जब देश को किसी खास उपचार की जरुरत हो तो वो व्यक्ति और दल संघीय ढाँचे से ऊपर राज्यों की स्वायत्ता का गुणगान करने लगे.इस विषय पर नरेंद्र मोदी जी और भाजपा के कुछ प्रवक्ताओं के बयानों पर 'संघ परिवार'ने शायद गौर नहीं फ़रमाया वर्ना ये लोग भारत राष्ट्र की संप्रभुता से खिलवाड़ करने की हिम्मत ही नहीं कर पाते.क्षेत्री'य दलों से भले ही  हमें भारत राष्ट्र' के शाश्क्तिकरण  में वांछित सहयोग नहीं मिले किन्तु राष्ट्रीय दलों और राष्ट्रवादियों को तो इसकी फ़िक्र अवश्य होनी चाहिए.इन घटना क्रमों,विधान-सभा चुनावों की हारजीत से देश की जनता को सावधान रहकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में आकलन करना चाहिए.निहित स्वार्थों और गैर जिम्मेदार व्यक्तियों,दलों और समूहों को सत्ता से दूर रखा जाना चाहिए.
     जिन्हें तथाकथित जनादेश [विधान सभा में] मिला है और यदि वे किसी राज्य के सिरमौर बना दिए गए है तो उनको यह सदैव स्मरण रखना चाहिए की उनकी ,उनके परिवार की ,उनके प्रदेश की सुरक्षा और समृद्धिके लिए एक मज़बूत 'भारत राष्ट्र' की आवश्यकता बहुत जरुरी है.

                                       श्रीराम तिवारी
               

शुक्रवार, 9 मार्च 2012

selected sms on the occasion of 'holi parv'

     अबीर हो,गुलाब हो,आसमान लाल हो,
     इस रंगीन मौसम में रंगीन गाल हो 11
     भंग की गोली हो मस्ती की टोली हो,
     आपके जीवन [मेरे] में हर इक दिन होली हो 11
 
                -  दिलीप मीणा

  Thanks a lot ,we too wish you and your family a very happy holi with warm regard .
                                                                                         
                                                                    -Vikram Malvia
                                                                          Sr.GMT,BSNL

    May this HOLI bring you joyful occasions and happy moments with full of colours in your life
     not only today but throughout the year.wish you and your family Happy Holi .
                                                                               
                                                                                              Mousam Dixit and family

   
  मथुरा की खुशबू , गोकुल की नार.
   वृन्दावन की सुगंध ,ब्रिज की बहार ..
   कृष्ण की वंसी ,राधा का प्यार.
  मुबारक हो तुमको होली त्यौहार....

        महेश शर्मा.

    colour  is love ,colour is life. colour is inspiration,colour is innovation,colour is creation may the
  Almighty shower all the beautiful and delightful colours in your life, happy holi to you and your family.

                                                                           -S C Pandey ,D.E.T.

I wish  you and your family very happy ,joy and colourfull holi.best regard.
                                                                                               
                                                                               D.P.Golani,ofc
 
   रंग  और गुलाल के पावन पर्व ; होली पर आपको तथा आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें....
   
                                                                                                   -विजयकुमार ,kerala

A colourful  message  to a colorful person for a colorful  day, in a colorful way , as a pray ,
 that the colorful ray, forever stay. Happy Holi,
                                                             
                                                                           --J.M.Prjapati, gujrat.
   
 
 आज मुबारक , कल मुबारक ,होली का हर पल मुबारक
रंग -बिरंगी होली में ,मेरा भी इक रंग मुबारक ...
                                       
                                                             अनिल कुमार जैन ,एस डी ओ ,केवल.

  हरइक रंग कुछ कहता है,कोई फीका तो कोई गहरा होता है.
 गुलाल का रंग मुझे मालूम नहीं,पर रिश्तों का रंग गहरा होता है.
                                                             
                                                               john verghese,Mumbai
                   

  आसमान  टेसू हुआ ,धरती सब पुखराज.
 मन सारा केसर हुआ ,तन सारा ऋतुराज..

रंग-रंग राधा हुई,कान्हा हुए गुलाल.
वृन्दावन की गैल  में ,सखियाँ करें धमाल..

होली राधा श्याम की ,और न होली होय .
जो मन रचे श्याम रंग,रंग चढ़े न कोय..
                             
                                     योगेन्द्रसिंह  चौहान, मुख्य लेखाधिकारी

 राधा बोली कृष्ण से , इस शर्त पर खेलूंगी ,तुम्हारे संग होली.
जो जीतुं  तो पाऊं तुम्हें,और हारू तो हो जाऊं तेरी ह्म्झोली..
                                          -उमा अवस्थी

 सूरज अच्छा लगता है,डूबने तक.चाँद अच्छा लगता है ,गायब होने तक.
फूल अच्छा लगता है मुरझाने तक,आप अच्छे लगते हैं ,मेरे मरने तक.
                                                         -रामकृष्णन,DGM फायनेंस
                                                      karaikudi,tamilnadu.

 रंगों का त्यौहार है होली,खुशियों से मना लेना.
 हम तो दूर हैं आपसे थोडा गुलाल हमरी ओर से भी लगा लेना..
                                   डॉ .जी.पी. सुन्ग्रा

wish you and your famili a very -very happy & colourful holi.regard;-akhilesh gupta,Dy.G.M.

 May God paint the canvas of your life with the most vibrant colours and sprinkle peaceand joy at every step .wish you happy holi ;-A.B.Shaikh,S.D.O.Indore and  purshottam gedam,naagpur naresh-bhopal,

A Colourful message to a colourful person on a colourful day.
I shall tri on  behalf of myself  to selute you  in a colourful way..
that the colourful person steys forever colourful way.
                rajesh  tiwari,C.A.

 May this festival of colours fill our hearts with enormous zeal and happiness.R.K.Dixit,divisional engineer,

  लाल आपके गालों के लिए,गोल्डेन आपके बालों के  लिए,नीला आपकी आँखों के लिए,पीला आपके हाथों के लिए,
गुलाबी आपके सपनों के लिए , सफ़ेद आपके मन के लिए और हरा आपके जीवन की खुशहाली के लिए;-होली के इन सात रंगों के साथ आपकी जिन्दगी रंगीन हो,इन्ही शुभकामनाओं के साथ;-राजेन्द्र जैन,इंदौर

 
  May God gift you all the colours of life ,colours of joy, colours of happiness,colours of friendship and all the colours you want to paint in your life.   Mr.uke-LIC.

May God spray his blessing love & prosperity on you and your family....;-Ajeet ketkar

इस  होली पर आपके दुःख जल जाएँ,आपका जीवन धुलेंडी के रंगों सा रंगीन हो जाए,शुभ फागोत्सव;-अभिजीत

 Red for prosperity,green for heppiness,blue for longitivity,orange for progress,pink for friendship.May you be blessed with all shadesof Holi....;-ganesh mathpati.Mumbai.

 पूनम का चाँद रंगों की डोली.चाँद से उसकी चांदनी बोली..खुशियों से भर दे सबकी झोली.मुबारक हो आपको प्यार भरी होली..;-पी.पी.पाठक,पन्ना.


 भगवान् से आपके लिए विश किया हमने,आपसे दूर होके  आपको मिस किया हमने,याद रहे कि कल होली है,इसलिए सबसे पहले विश किया आपको हमने...;-बंटी.

"Good day" is not created  by God,not designed by your parents,not prepaired by you, good day is created only by 'positive thinking' happy holi.             ;-aashis toppo.





 

  

SMS recived on holi.

    अबीर हो,गुलाब हो,आसमान लाल हो,
   इस रंगीन मौसम में रंगीन गाल हो 11
   भंग की गोली हो मस्ती की टोली हो,
     आपके जीवन [मेरे] में हर इक दिन होली हो 11
                         -  दिलीप मीणा लेखाधिकारी 

रविवार, 4 मार्च 2012

भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्टून्स- India for Sale....


करप्शन के खिलाफ आंदोलनों और उस पर सरकार के बचाव के तरीकों के बीच, देश के जाने माने कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग के भ्रष्टाचार पर बनाए गए कार्टून्स पर उनकी किताब India for Sale का विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम का दिलचस्प पहलू ये रहा कि जिस सरकार पर और खास तौर पर सरकार के जिस मंत्री पर इस किताब में बहुत तीखे प्रहार किए गए उन्हीं मंत्री जी ने किताब का विमोचन किया।


India for sale, किसी भी किताब का ये टाइटल चौंकाने वाला हो सकता है। खासकर तब जब इसका विमोचन करने के लिए खुद एक वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री आए हो। खुद मंत्री जी के खिलाफ इस किताब में बहुत कुछ है लेकिन हंसते मुस्कुराते हुए उन्होने किताब का विमोचन किया। ये भी एक विरला ही मौका होता है जब तीन धुर विरोधी पार्टी के दिग्गज नेता एक साथ एक मंच पर बिना किसी के खिलाफ कुछ बोले हंसते मुस्कुराते दिखे। इन सबको एक मंच पर लाने का श्रेय जाता है देश के जाने माने कार्टूनिस्ट पद्मश्री सुधीर तैलंग को। India for sale तैलंग के corruption पर बनाए गए कार्टून्स की किताब है। तैलंग ने इस किताब के कवर पेज पर अन्ना और बाबा रामदेव को छापने का कारण 62 सालों की छटपटाहट के बाद एक उम्मीद की किरण दिखना बताया।

केंन्द्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव रविशंकर प्रसाद और सीपीएम पोलिट ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी एक मंच पर दिखाइ दिए और वो भी बेहद दोस्ताना अंदाज में। संसद में और संसद के बाहर सरकार पर जमकर प्रहार करने वाले रविशंकर प्रसाद ने भी यहां सरकार पर कोई टिप्पणी करने के बजाय कपिल सिब्बल की eye brows को निशाना बनाया। उन्होंने कहा की कार्टूनिस्टों को सिबल साहब की भौंहे बहुत पसंद हैं। इस किताब में सिबल साहब और उनकी सरकार पर भी कई बेहतरीन कार्टून्स बनाए गए हैं, यहां पहुंचते हैं रविशंकर प्रसाद ने फटाफट किताब के पन्नों को पलटा और सिबल और उनकी सरकार पर कुछ कार्टून्स को नोट कर अपने भाषण में सबके सामने भी रखा।

अमूमन विपक्ष के किसी भी हमले पर तुरंत reaction देने वाले कपिल सिब्बल इस मंच पर रविशंकर प्रसाद की इस टिप्पणी पर मुस्कुराते रहे। हालांकि सिब्बल की इस मुस्कुराहट के पीछे का दर्द समझा जा सकता है क्योंकि वो सरकार में हैं और जो भी सरकार में होता है वो कार्टूनिस्टों के ज्यादा निशाने पर होता हैं। इस हंसी के माहौल में गंभीर लहजे में सिब्बल ने इसे लोकतंत्र की खूबसूरती बताया और कहा की यही तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सही मायने हैं। उन्होने ये भी साफ कहा की ये कार्टूनिस्ट के अपने विचार हैं और वो इस किताब के टाइटल से इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने कड़े लहजे में कहा कि न तो भारत बिकाऊ है और न बिकाऊ होगा।

कार्टून्स के बारे में ये भी कहा जाता है की ये politicians के लिए एक certificate की तरह होते हैं। जिसके जितने ज्यादा कार्टून्स बनते हैं समझिए वो उतना ही बड़ा politician होता है। इस बात को मज़ाकिया अंदाज़ में रखते हुए सीताराम येचूरी ने उन पर बहुत ज्यादा कार्टून्स नहीं छपने पर दुख जताया।  दरअसल इस किताब में 150 कार्टून्स हैं और इनमें कहीं भी सीताराम येचुरी नहीं दिखाई देते हैं। लेकिन ये भी सही है की जो सत्ता में होते हैं या जिनके पास अधिकार होते हैं उन पर कार्टून ज्यादा बनते हैं।

पुरानी कहावत है एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है और नई कहावत ये है कि अगर वो तस्वीर कार्टून हो तो उसकी कीमत लाख शब्दों के बराबर हो जाती है। क्योंकि हंसी हंसी में कार्टून सत्ता और सत्तधारियों पर तीखे प्रहार करता है और कोई उसका बुरा भी नहीं मानता। कार्टून की यही ताकत है जो कार्टूनिस्ट को और पत्रकारों के मुकाबले और कड़े तरीके से अपनी बात कहने का मौका देती है। मूर्तियों से लेकर नेताओं के एक एक बयान को बारीकी से सुनने वाले चुनाव आयोग के लिए ये कार्टून क्या मायने रखते हैं और क्या कार्टून के जरिए कही जा रही बात पर भी उनकी नजर रहती है जैसे मसलों पर मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना था कि एस. वाय कुरैशी साहब का कहना था कि कई बार उन पर भी कार्टून बनते हैं और वो इन्हें बहुत पंसद भी करते हैं। जहां तक नजर रखने की बात है तो कार्टून्स इस दायरे में नहीं आते। अलबत्ता तैलंग कभी चुनाव लड़ेंगे तो उन पर नजर रखी जाएगी। चुनाव में गंभीर दिखने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त भी हंसी मजाक के इस माहौल में अलग अंदाज में ही दिखे।



सुधीर तैलंग की लिए तीन politician किसी वरदान से कम नहीं रहे जिन पर उन्होंने सबसे ज्यादा कार्टून्स बनाए। पहले पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहराव दूसरे लालू प्रसाद यादव और तीसरे लालकृष्ण आडवाणी। तैलंग ने अपनी किताब India for Sale के लांच पर ये बात में यहां मौजूद लोगों से साझा की कि इन सभीको उनके कार्टून्स बहुत पसंद आते हैं और आडवाणी ये तो अपने published कार्टून्स की original copy भी उनसे मांगते हैं। इस कार्यक्रम में उनकी बेटी प्रतिभा आडवाणी भी मौजूद थी वो इन कार्टून्स के बारे में क्या सोचती है और क्या कभी कोई कार्टून उन्हे ठेस भी पहुंचाता है जैसे मसलों पर उनसे बात हुई। प्रतिभा का कहना है की उनके पिता इन कार्टून्स को बहुत पसंद करते हैं और कार्टून्स बेहद असरदार भी होते है लेकिन कभी इनका बुरा नहीं लगता। अगर कार्टूनिस्ट करारा कार्टून नहीं बनाएगा तो फिर मजा कैसे आएगा।

बेशक कुछेक ही कार्टूनिस्ट लोगों के जेहन में अपनी छाप छोड़ पाते हैं लेकिन कार्टून्स के जबरदस्त असर को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। आर के लक्ष्मण बिना किसी पर सीधी टिप्पणी किए भी अपनी बात को बहुत असरदार तरीके से कह जाते थे। सुधीर तैलंग का अपना अंदाज है और वो तीखे प्रहार भी इस तरीके से करते हैं कि उनके शिकार politicians भी हंस कर अपने दर्द को छिपाते हैं। फिर भी पत्रकारिता का ये बेहतरीन औजार धीरे धीरे अपनी धार खो रहा है क्योंकि न तो अब वो कार्टूनिस्ट हैं जो इस कला का सही इस्तेमाल कर पाए और न ही उनकी कदर करने वाले अखबार ही बचे हैं। अपने इस दर्द को भी सुधीर तैलंग ने यहां मौजूद लोगों के साथ बांटा।

उम्मीद अभी जिंदा है की -नया जमाना आएगा.....

   अपने  जीवन को संवारने और निखारने में कुछ शख्स पूरा जीवन   गुजार देते हैं ,वक्त आने पर ये अभागे  अपने पूर्ववर्ती आजमाए हुए नुख्से या तो विस्मृति के गर्त में खो दिया  करते हैं या उन मूल्यों और सिद्धांतों को वक्त आने पर  इस्तेमाल करने पर  अप्रसांगिक   पाते हैं.  कुछ लोग इतने खुशनसीब होते हैं की उन्हें बिना मरे स्वर्ग और बिना एडियाँ रगड़े जीवन संग्राम में सब कुछ सहज ही   प्राप्त  हो जाया करता है. अनुभवजन्य अन्वेषणों का  समाजीकरण   होना मानवीय समग्र चेतना का विशिष्ठ चरित्र और स्वभाव हुआ करता है किन्तु  मार्क्सवादी  दर्शन परम्परा की अनेक सकारात्मक और कल्याणकारी स्थापनाओं के बरक्स 'ज्ञान'का अधिनायकीकरण  एक बड़ा गति-अवरोधक  सावित हुआ है.आम जनता के सहज बोधगम्य संदेशों का बौद्धिक ज़टलीकरन होते जाना भी प्रतिक्रांतियों का उत्प्रेरक रहा है.आशा है की इस दौर में चल रहे विमर्शों में इस मुद्द्ये पर गौर फ़रमाया जाएगा.खास तौर से सी पी आई एम् की २० वीं कांग्रेस जो की ४-९ अप्रैल -२०१२ में सम्पन्न होने जा रहीहै  उससे अपेक्षा है कि.इन जमीनी सच्चाइयों पर विज्ञान और दूरसंचार क्रांति के बरक्स गौर फरमाया जाये.
                                                आज के नव्य-उदारवादी बाजारीकरण के दौर में भी भारतीय या विश्व के  विखंडित समाज   की परम्परागत सामंतीय नकारात्मकता  सर चढ़कर बोल रही है.सामंत युग में जमींदार,रजवाड़े,अमीर-उमराव और राजा- महाराजा  जिस अमानवीय और निरंकुश आचरण से तत्कालीन आम-जनता -मेहनतकशों-मजदूरों ,किसानो और व्यापारियों का शोषण किया करते थे ;वो  हत्या,बलात्कार,लूट,रिश्वतखोरी,जमाखोरी शोषण और भयानक दरिंदगी का  सिलसिला इस दौर में भी वद्स्तूर जारी है. इस अमानवीय शोषण -उत्पीडन का कारण इंसानी फितरत है इस सोच के मद्देनज़र  छुटकारा पाने  के अतीत में जो प्रयास किये गए उन्हें भले ही  'क्रांति'जन-क्रांति या 'महान क्रांति ' कहा गया है.किन्तु क्या वे वास्तविक क्रांतियाँ कहीं जा सकती हैं?
        इतिहास गवाह है कि प्रत्येक दौर  के निरंकुश शाशकों को मेहनतकश आवाम के क्रांतिकारी संघर्षों ने
" मानवता,स्वतंत्रता,बंधुता और समानता "के सबक सिखाये हैंकिन्तु वोअन्याय और शोषण का  सिलसिला तो आज भी निरंतर जारी है. ,वर्तमान नव्य-उदारवादी- पूंजीवादी -वैश्विक बाजारीकरण की आर्थिक-राजनैतिक व्यवस्था के परिणाम न केवल वर्तमान मनुष्य के लिए अपितु भावी पीढ़ियों के लिए भी घातक होंगे इस सम्भावना के बरक्स इस निजाम को बदलने की कार्यवाहियां कामोवेश हर मुल्क में,हर समाज में ,हर महाद्वीप में और हर उद्योग में सतत जारी हैं.भारत में वाम पंथ[खास तौर से सी पी आई एम्] के नेत्रत्व में मेहनतकश  मजदूर,किसान,ठेका मजदूर,सरकारी-गैरसरकारी कर्मचारी/अधिकारी  धीरे -धीरे संगठित हो रहे हैं .  बढ़ती हुई महंगाई,श्रम कानूनों को उद्द्योगपतियों  के पक्ष में पलटना,आर्थिक संकट या आर्थिक मंदी का भार मेहनतकश आम जनता पर धकेलना,गरीबों का और ज्यादा gareeb  होना और अमीरों की ameeri में गुणात्मक बृद्धि ने संयुक्त संघर्ष के साथ-साथ देश और  ,समाज के भीतर वर्गों के आपसी द्वन्द की परिणिति को शाशक वर्गों के पक्ष में  ले जाने वाले दक्षिणपंथी अवयवों के सामाजिक -सांस्कृतिक आतंक  की मार झेलने  से इनकार करना शुरू कर दिया है.सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में भले ही कोई बहुत बड़ा उलटफेर नजर नहीं आता हो किन्तु विगत २८ फरवरी-२०१२ की शानदार 'अखिल भारतीय ओउद्योगिक हड़ताल 'में देश के १० करोड़ मेहनतकशों की शिरकत ने शाशक वर्ग को चेतावनी दे दी है की .....केन्द्रीय श्रम संगठनों की व्यापक एकता से इस देश की आम जनता में संघर्षों के लिए साह्स का संचार हुआ है और उम्मीद है की यह संघर्षों के इतिहास में चमकदार मील का पत्थर सावित होगा. और एक दिन वो सुबह होगी जब श्रम के सम्मान में आकाशवाणी का उद्घोष होगा .....हम मेहनतकश जग बालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे .....इक खेत नहीं ...इक देश नहीं ...हम सारी दुनिया मांगेंगे.....
       कमाने वाला खायेगा....लूटने वाला जाएगा....
        नया जमाना आयेगा....आयेगा भई आयेगा....
         लाल लाल लहराएगा...इन्कलाब आएगा.....

                  श्रीराम तिवारी