शनिवार, 30 अप्रैल 2022

 "हिजाब पहिनने से हमें कोई नहीं रोक सकता"

:-उमर अब्दुल्ला
* * *
त्वरित टिप्पणी:- आप बेशक हिजाब पहिनों या खिजाब लगाओ,
किंतु पत्थरबाजों को गले लगाओगे तो मुश्किल होगी!

मैंने सपने में ब्रेकिंग न्यूज़:देखी


"मोदीजी ने रमजान के अवसर पर मुस्लिम भाइयों से गुजारिश की है,कि वे अल्लाह से दुआ मांगे कि दुनियां में अमन और शांति हो और रुस युक्रैन युद्ध जल्द खत्म हो जाए..!"
दूसरी खबर:
एक बड़े इमाम साहब ने मोदीजी को प्रेम से समझाया है "अगर हमारी दुआओं में इतनी दम होती तो आप कभी भी प्रधानमंत्री नही बन पाते,दूसरी बार तो कतई नही!"

क्या यह भी नज़र है कोई ?

 कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई।

आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई।।
'पास-बुक' पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है,
प्यार के ख़त का न पता है न ख़बर है कोई।
ठोकरें दे के तुझे उसने तो समझाया बहुत,
एक ठोकर का भी क्या तुझपे असर है कोई।।
रात-दिन अपने इशारों पे नचाता है मुझे,
मैंने देखा तो नहीं, किंतु मुझमें भी है कोई।
एक भी दिल में न उतरी, न कोई दोस्त बना,
यार तूं ही बता क्या यह भी नज़र है कोई ।।
प्यार से हाथ मिलाने से ही पुल बनते हैं,
काट दो,काट दो गर दिल में भँवर है कोई।
मौत दीवार है, दीवार के उस पार से अब,
मुझको रह-रह के बुलाता है उधर है कोई।।
सारी दुनिया में लुटाता रहा प्यार अपना,
कौन है, सुनते हैं, 'कुँअर' बेचैन है कोई!!
:-कुंवर बेचैन की प्रथम पुण्य तिथि पर सादर नमन...

हिंदू परम्परा का आधार

 हालांकि मैं छुआछूत नही मानता,किंतु बतौर मेडिकल प्रिकाशंस किसी भी संभावित संक्रामक रोग के मरीज से, मैं पर्याप्त दूरी बनाकर रखूंगा, क्योंकि मेरे डॉक्टर ने मुझे यही जताया है! किंतु जो लोग छुआछूत के विरोधी हैं उनसे एक सवाल है, कि वे यह बताएं कि किसी कोरोना पॉजिटिव्स इंसान को देखकर उसे गले से लगाएंगे या उससे निर्धारित दूरी बनाकर रखेंगे ? यदि कोई हास्पिटालाइज रहा है तो उसे पहले क्वारेंटाइन में रहने का प्रयास करेंगे या सरकार और मेडीकल कौंसिल के साफ सफाई के निर्देशों की निंदा करेंगे या नियमों का पालन करेंगे या कोरोना ग्रस्त से भरत मिलाप करेंगे?

हमें सचाई से दूर नहीं भागना चाहिये,जिस तरह कोरोना वायरस महामारी में छुआछूत सामाजिक पाप नही है! इसी तरह अतीत में समय समय पर बीमारियों और संक्रमणों से बचने के लिये जो स्वच्छता और सामाजिक दूरी के मापदंड निर्धारण किये गये थे,वही कालांतर में जातीय छुआछूत के विकृत सामाजिक आधार बनते चले गए!
कर्म के आधार पर बनी चातुर्वर्ण व्यवस्था हजारों साल तक ठीक ठाक चलती रही है।
जो लोग भारतीय सनातन दार्शनिक परंपरा के अध्येता हैं,वे बखूबी जानते हैं कि ऋग्वेद के *पुरुष सूक्त* में वर्णित आर्य सनातन वर्ण व्यवस्था,अत्यंत महत्वपूर्ण,वैज्ञानिकता से ओतप्रोत विकासशील व्यवस्था हुआ करती थी । तदनुसार वर्ण व्यवस्था की तुलना पुरुष रूपी *ब्रह्म* से की गई है। ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में ब्राह्मण वर्ण की तुलना ब्रह्म पुरुष के सिर से की गई है,जो चिंतन,मनन,शिक्षण - प्रशिक्षण और पूजा पाठ करने कराने का कर्म करे,उसे ही ब्राह्मण कहा गया!
जो बलिष्ठ बहादुर थे,जो सर्व समाज की कबाहर-भीतर रक्षा करते थे,वे क्षत्रिय वर्ण के तौर पर *ब्रह्म पुरुष*की भुजाओं से उत्पन्न माने गये!जो खेती कास्तकारी गौ पालन लेन दैन खरीद फरोख्त करते थे,वे वणिक या वैश्य कहलाए!
जो सर्व समाज की सेवा चाकरी करते थे, उनकी तुलना साक्षात ब्रह्म के पैरों से की गई और उन्हें शूद्र कहा गया! चूंकि सेवाकार्य को सबसे श्रेष्ठ कार्य माना गया है,अतः पूजा पाठ में आर्य या सनातनी हिंदू शूद्र वर्ण रूपी ब्रह्म के चरणों की आराधना करता है,परमपुरुष के चरणों को नमन ही प्रमुख रुप से हिंदूओं की परम्परा का आधार रहा है! सम्मानित शूद्र वर्ण को *क्षुद्र जाति* में कब कैसे धकेल दिया गया यह शोध का विषय है।और उन कारणों के निदान की समीक्षा भी होनी चाहिए!
कालान्तर में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारतीय समाज की कुछ खामियों के चलते यहां 'फूट डालो राज करो' सिद्धांत को लागू किया। उन्होंने किसानों को मजूरों से अवर्ण को सवर्ण से लड़ा दिया!जबकि गीता के अनुसार :-
"विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तनि, शुनिचैव स्वापाके च, पंडित: समदर्शिन:"
अर्थात हिंदू धर्म संस्कृति में सिर्फ मनुष्य ही नहीं बल्कि सब प्राणी बराबर हैं,यदि लोक में या शास्त्रीय आचरण में मामूली सामाजिक असमानता है,तो वह परिस्थितिजन्य कारणों से बाध्यता मूलक सामाजिक व्यवहार मात्र है!

गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

 जिनके पास भरपूर खानदानी जमीन जायदाद है,जो पीढ़ी दर पीढ़ी सरकारी नौकरियों पर कब्जा किये हुए हैं और जो आजादी के बाद अवसर पाकर नवधनाड्य बन बैठे हैं,उनके लिये सत्ता में भाजपा हो या कांग्रेस या बसपा,सपा या ममता-नीतीष सब उनके हितैषी हैं!

कितु जो निर्धन हैं,अवसरों से बंचित हैं,भूख बेकारी से पीड़ित हैं,भूमिहीन हैं,अभावग्रस्त हैं,जातीय आरक्षण से पीडित हैं और जो सभी तरह से सर्वहारा हैं,उनके लिये मार्क्स, लेनिन और अम्बेडकर की शिक्षाओं का अनुशीलन करने वाला नेतत्व ही चाहिये
!हँसते हुए इंसान की संगत सुगंध की दूकान जैसी होती है,कुछ न खरीदो तो भी,शरीर तो महका ही देती है।सादगी परम सौंदर्य है,क्षमा उत्कृष्ट बल है.विनम्रता सबसे अच्छा तर्क है और अपनापन सर्वश्रेष्ठ रिश्ता है। इसलिए सदा खुश रहो और दूसरों को भी खुश रखने का प्रयत्न करते रहें

परिंदे नजर अपनी आसमानी रख...

 परिंदे नजर अपनी आसमानी रख:-

******************
ओ परिंदे हौसला कायम रख!
अनवरत ऊंची उड़ान जारी रख!!
हर इक निगाह है तुझ पर यहां,
तूं गजब की सावधानी रख!
बुलंदियों को छू कलाबाजी कर,
परों में जान रख,दॉव बाकी रख!!
बलाएं तेरी हिम्मत आजमाएगीं,
परिंदे नजर अपनी आसमानी रख!
परिंदे पहिले भी उड़े हैं अनगिनत,
कुछ सीख उनकी भी जुबानी रख!!
जो भटककर राह न लौटे कभी,
दिल में अमर उनकी कहानी रख!
दहक़ता आसमाँ हो अंगार जैसा,
तूं तब भी उड़ानों में रवानी रख!!
कहीं बादल घनेरे और अँधेरा घुप्प,
कहीं पर बिजलियाँ कौंधती होंगी!
गगन में धुंध का विस्तार व्यापक,
लेकिन सितारों से आगे रवानी रख !!
ओ ! परिंदे हौंसला कायम रख,
अनवरत ऊंची उड़ान जारी रख!
:-श्रीराम तिवारी

रविवार, 24 अप्रैल 2022

पूजा-पाठ ब्रह्म मुहूर्त में ही करना चाहिए!

 भारत में पत्थरबाजों को उकसाने का आरोप कभी रामनवमी जुलूस,कभी हनुमान जयंती, कभी हिजाब या भोंगे पर लगाया जाता है ।अब स्वीडन में शरणार्थी पत्थरबाजों ने कहर ढाया है, सड़कों पर वाहन जलाए जा रहे हैं। सिर्फ स्वीडन ही नहीं एक अन्य शांति प्रिय देश बेल्जियम भी आतंकवाद से झुलस रहा है,कौन है इसका जिम्मेदार?

पूजा,पाठ,योग,ध्यान,हवन,यज्ञ, इबादत इत्यादि कर्म एकांत और ब्रह्म मुहूर्त में ही करना चाहिए! राजनीतिक स्वार्थ के लिये पूजा पाठ,हनुमान चालीसा या नमाज़ को मदारियों की तरह गली गली नुक्कड़ नुक्कड़ तमाशा नहीं बनाना चाहिए!

 ब्राजील सहित दक्षिण अमेरिकी देशोंमें सूखा पड़ने और सोयाबीन फसल खराब होने के कारण वहां से भारत के लिए खाद्य तेल का निर्यात बंद हो गया है! रूस यूक्रेन युद्ध के कारण इन दोनों प्रमुख सूरजमुखी तेल उत्पादक देशों के तेल उत्पादन पर विपरीत असर पड़ा है!अतः भारत को रूस यूक्रेन से खाद्य तेल नही मिल पाएगा!

ओपेक देशों ने रूस यूक्रेन युद्ध की आड़ में‌ क्रूड आयल के भाव बढ़ा दिए हैं ! इंडोनेशिया ने इस मौके का लाभ उठाकर घरेलू खपत को ध्यान में रखते हुए पाम आयल को वाहन ईंधन में प्रयुक्त करने की ठानी है! मतलब भारत को अभी न केवल पेट्रोलियम उत्पाद-डीजल पैट्रोल बल्कि खाद्य तेलों की बढ़ती मेहंगाई से भी जूझना होगा!

जदोजहद भरा है *आहत,

 कौन जाने कि ये कौन सा दर्द है जो घटता ही नहीं,

होता जाता है बेजा असहनीय मरहम लगाने के बाद !
डाल पर जब तक खिले हैं फूल महका करेंगे खूब,
लेकिन ख़ुशबू दे न सकेंगे ये कल मुरझाने के बाद !
आ से होती है आग भ से होती है भयंकर भूख अंकल,
मजलूम भूखे बच्चे ने कहा थोड़ा हकलाने के बाद !
ज़िन्दगी का ये सफ़र,बहुत जदोजहद भरा है *आहत,
करोड़ों बेरोजगार हैं आज काम छिन जाने के बाद !
रास्ता काँटों भरा है,मुश्किल में है मुल्क की आवाम,
भीख पर जिंदा है भीड़,आर्थिक संकट आने के बाद!

शनिवार, 23 अप्रैल 2022

भारत का असली इतिहास:-श्रीराम तिवारी


मध्ययुग में जब हिंसक इस्लामिक कबीलों ने उत्तर भारत पर हमला किया तब अधिकांस क्षत्रिय राजपूत युद्ध में मारे गये! जो बच गये उनमें से अधिकांश राजपूत राजाओंने मुगलों से रिस्तेदारी कर ली! कुछ जो राणा प्रताप जैसे स्वाभिमानी थे, उन्होंने जंगलों में घास फूस खाकर अपने धर्म और ईमान के लिये बर्बर आक्रमणकारियों से संघर्ष किया,लड़ते लड़ते शहीद हो गये और जो बच गये उनमें से कुछ चंबल जैसे बीहड़ों में डाकू बन गये!
हमलावर कबीलों और बर्बर लुटेरों क सामने अहिंसक भारतीय हिंदू समाज असहाय था ! इन्हीं हमलावरों के साथ आये घाघ मज़हब प्रचारकों को भारतीय समाज पहचान नहीं पाया और धर्मातरण का विरोध न करते हुए विदेशी हमलावरों को गले लगाया । इसका सिला उन्होंने यह दिया कि मंदिर तोडे़ और बड़ी बेरहमी से हिंदूओं को बहुत सताया!
इस जद्दोजहद में मुस्लिम जेहादियों को पता चला कि यदि हिंदू समाज से ब्राह्मणों* को मुसलमान बना दिया जाए,तो बाकी सभी जातियों के लोग अपने आप मुस्लिम बन जाएंगे!चूंकि तत्कालीन समाज में तपस्वी कर्मयोगी सन्यासी ब्राह्मणों को धरती पर देवता माना जाता था,अत: राजपूतों को वश में कर लेने के बाद आतताईयों ने दूसरा हमला ब्राह्मणों पर किया।
जब साम दाम दण्ड भेद से ब्राह्मणों का धर्म परिवर्तन नही किया जा सका तो पूजा पाठ तीर्थ यात्रा पर जजिया कर लगा दिया। फिर भी जब ब्राह्मण से धर्मांतरण की उम्मीद नहीं रही,तब मुगलों,तुर्कों,अरबों ने ब्राह्मणों की हत्या का अभियान चलाया! जो मुस्लिम हत्यारा अपने वजन के बराबर यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ एकत्रित कर लेता था (एक ब्राह्मण की हत्या =एक जनेऊ) उस मुस्लिम हत्यारे कसाई को 'गाजी' कहा जाता था!
11वीं शताब्दी से लेकर अकबर के सत्ता में आने तक लाखों ब्राह्मण मार दिये गये! कुछ ब्राह्मण धर्म संस्कृति और प्राण बचाकर दक्षिण की ओर पांव पैदल निकल गए।आज दक्षिण भारत में जो हिंदू सभ्यता संस्कृति फल फूल रही है,वह ब्राह्मणों की उसी कुर्बानी का परिणाम है!
बेशक महाराणा प्रताप को न जीत पाने की कसक लिए अकबर ने जीवनके अंतिम दिनों में सभीको साथ लेकर चलने की कोशिश भी की थी,व्यापक हिंदू समाज ने उसका स्वागत भी किया था!किंतु कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम उलेमाओं के हठ ने जेहाद जारी रखा। अतः अकबर को 'सुलहकुल' नीति छोड़कर मुल्ला मौलवियों की बात माननी पड़ी!बिडम्बना है कि अकबर के ही आदेश पर गढ़ा मंडला की हिंदू रानी दुर्गावती और मांडू के उदारवादी मुस्लिम राजा बाजबहादुर को मार डाला गया। बाजबहादुर की सुप्रसिद्ध प्रेयसी हिन्दू रानी रूपमतीको आत्महत्या करनी पड़ी थी!
सवाल उठता है कि इस्लाम में यह खून खराबा किसलिये?इतिहास एक ही जबाब देगा -जेहाद और ऐय्यासी !!!
भारतीय सकल गैर मुस्लिम समाज सैकड़ों साल तक मुसलमानों से मार खाते रहे, फिर भी हिंदू धर्म नही त्यागा!ऐंसे कुछ महान हिंदू पैदल पैदल भयानक जंगलों ,पर्वतों नदियों को पार कर महाराष्ट्र,कर्नाटक,केरल की ओर चले गये! उनमें से आधे तो रास्ते में ही भूख प्यास से मर गये! जो केरल में तक जा पहुंचे उन्ही ने दक्षिण भारतमें संस्कृत साहित्य और वैदिक ज्ञान पहुँचाया,दक्षिण के राजाओं को भी प्रेरित किया कि हिंदू मंदिर बनाएं! इससे पहले दक्षिण भारत में अनार्य याने द्रविड़ सभ्यता का ही बाहुल्य था!जिसमें शैव,शाक्त लोकायत और लिंगायत मतों का बोलवाला था!
आर्य और द्रविड़ सभ्यता के मिलन से पहले और इस्लाम पूर्व के यायावर अनेक कबीले ‌भारत आकर 'सनातन धर्म' की शास्वत धारा में विलीन हो गए! इधर संतों शंकराचार्यो की असीम कृपा से शैव और वैष्णव का मिलन संभव हुआ!
विदेशी हमलावरों के अत्याचार के कारण धीरे धीरे समग्र भारतीय समाज एक होता चला गया!उत्तर भारत में इस्लामिक आक्रमणकारियों ने सवर्णों को तो बुरी तरह परास्त कर दिया था!किंतु भारत के गौंड़ भील आदिवासियों ने,नाई,धोबी माझी बरौआ,धानुक, चर्मकार, पासी,भोई, कहार यादव,कुर्मी,जाट, गूजर,महार,बुनकर दलित इत्यादि तमाम हिंदूओंने अपने बलबूते पर अपने धर्म की रक्षा की!
विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने सिंधु के इस पार की समस्त आर्यावर्त भूमि को हिंदोस्तान कहा था! उनके अनुसार आर्य, द्रविड़ ,दलित पिछड़े और आदिवासी सब के सब 'हिंदू' या काफिर थे!
जिन बर्बर मुस्लिम शासकों ने बहादुर सिख गुरुओं के सिर काट लिये,उन आदमखोरों को पिछड़ों दलितों ने नाकों चने चबवा दिये!तुर्क और मुगल दरिंदे हिंदू समाज के थोड़े से हिस्से को ही धर्मातरण करा पाये थे!वे सिर्फ कमजोरों को ही मुसलमान बना पाए!बहादुर दलित,पिछड़े,आदिवासी समाज के लोग- मजूर किसान के रूप में मुगलों,तुर्कों और खिल्जियों पर भारी पड़े! यही दलित पिछड़े आदिवासी लोग विगत एक हजार साल से उत्तर भारत में हिंदू धर्म की रक्षा करते आ रहे हैं!इसलिये वास्तव में असली हिंदू यही दलित पिछड़े और आदिवासी हैं!
इस्लाम के आने से पहले (एक हजार साल पहलेे )भारत के दलित पिछड़े आदिवासी समाज जन यदि सवर्णों के सताए होते तो मुसलमान बन जाते! किंतु इन दलित पिछड़े हिंदुओं ने अपना ईमान बचाया और बहादुरी से मुकाबला किया! वेशक सवर्ण और अन्य के बीच सब ठीक नहीं था! लेकिन मुस्लिम शासकों और अंग्रेजों ने भारत के कारीगरों, किसानों मजूरों पर इतना अत्याचार किया जिस कारण भारत के असली हिंदू अति दीन अवस्था में आ गये !ये सनातन से दलित पिछड़े नही थे बल्कि तुर्कों, मुगलों,अंग्रेजों से हिंदू धर्म को बचाने में इन्होंने जो कुर्बानी दी उसके कारण ये गरीब और बंचित होते चले गये! विदेशियों ने हिंदू समाज के दूध में सिर्फ नीबू निचोड़ने का काम किया!
आजकल हिंदू समाज को बांटनेकी तिकड़म में लगे लोग यह न भूलें कि ये दलित पिछड़े आदिवासी यदि हिंदू न होते तो भारत भी ईरान और पाकिस्तान,अफगानिस्तान की तरह एक इस्लामिक राष्ट्र होता!
जिन दलित पिछड़ों की वजह से उत्तर भारत में मोदीजी को दोदो बार प्रचंड बहुमत मिला, और जिन दलितों की ताकत से श्री रामनाथ कोविद राष्ट्रपति बने,पासवान,अठावले और हंसराज जैसे दलित नेता भारत सरकार में मंत्री बने उन दलितों, पिछड़ों पर अब भी चंगेजखान,तैमूर लंग,औरंगजेब की औलादें डोरे डाल रहीं हैं! लालू, मुलायम,माया और ममता ये दलितों पिछड़ों के नेता नही,सत्ता के दलाल हैं! एमपी यू पी,बिहार छ. ग. की जनता ने इन जातिवादी बदमाशों को हराकर नेक काम किया है!
रक्तरंजित विकृत इतिहास का पहिया अब थम जाना चाहिए। वरना जो भी हिंदू सिख मुस्लिम ईसाई या कोई और आतंकवाद का समर्थन करेगा,वो भारत देश का शत्रू माना जाएगा! जो राजनीतिक दल या समूह हिंसक दंगाईयों पत्थरबाजों का समर्थन करते हैं उनका भविष्य अंधकारमय है!(क्रमशः):-
मैंने यह आलेख २०१० में अपने ब्लाग्स पर लिखा था,तब केंद्र में यूपीए सरकार थी..

हिंदू-मुस्लिम सद्भावना और एकता के कुछ विचारणीय बिंदु:-

 1. मुस्लिम समुदाय के लिए यह मानना और उसके अनुसार काम करना बहुत आवश्यक है कि देश में लोकतंत्र मुसलमानों के कारण नहीं बल्कि हिंदू बहुमत के कारण स्थापित है और हिन्दू बहुमत ही उसे मज़बूत बनाएगा। इसलिए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की कोई लोकतांत्रिक लड़ाई सेकुलर और डेमोक्रेटिक हिंदुओं को साथ लिए बिना नहीं लड़ी जा सकती।

2.देश में एकता और शांति के महत्व और आवश्यकता पर एक बड़ा राष्ट्रीय सम्मेलन किया जाना चाहिए ।इस राष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम दिन दंगा प्रभावित क्षेत्र में कैंडल मार्च आयोजित किया जा सकता है।
3. प्रत्येक प्रांत में एकता और शांति बनाए रखने की कमेटियों का गठन किया जाना चाहिए। प्रांतीय कमेटियां जनपद में कमेटियों का गठन कर सकती हैं.
4. हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच अविश्वास और घृणा का वातावरण बनाने के लिए जिन भ्रामक मुद्दों को प्रचारित किया जाता है उनका निराकरण करने के लिए एक समिति का गठन किया जाए। विधिवत तरीके से इन मुद्दों को पहचान कर उन पर विस्तार से चर्चा करना और उन्हें मास मीडिया द्वारा बड़े स्तर पर प्रसारित करना आवश्यक है .
5. जनसंचार माध्यमों के प्रभावशाली लोगों को बुलाकर उनके साथ बैठक की जाए। उनसे यह अपील की जाय कि वे देश में एकता और शांति को बनाए रखने के लिए संयम बरतें और भावनात्मक तथा भड़काऊ रिपोर्टिंग न करें ।
6. मुस्लिम समुदाय में आत्मविश्वास पैदा किया जाय और समाज सुधार के मुद्दों पर बात की जानी चाहिए।
7. एकता और शान्ति स्थापित करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।
8. सांप्रदायिक सद्भाव बनाने वाले लोगों को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जाना चाहिए।
9. जो आम लोग, पुलिसकर्मी या प्रशासन के कर्मचारी सांप्रदायिक दंगों में क्षतिग्रस्त होते हैं उनकी किसी रूप में क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए।
10. संभ्रांत मुस्लिम समुदाय और साधारण गरीब मुसलमानों के बीच एक बहुत बड़ी दीवार है जिसे तोड़ना और जरूरी है।
11.जब मुस्लिम राज था,तब उन्होंने उस गांव का नाम रखा- मोहम्मदपुर। सैकड़ों साल बाद जब मोदी योगी राज आया तो गांव का नाम हो गया,माधवपुर! और जब मेहनतकशों और किसानों का राज होगा,तब इस गांव का नाम होगा-मोहब्बतपुर !

 किसी द्वंदात्मक संघर्ष की अवस्था में यदि यह सूझ न पड़े कि सही कौन है?गलत कौन है? तो तटस्थ रहने के बजाय न्याय के पक्ष में अथवा निर्बल के पक्ष में खड़े हो जाओ!गीता और साम्यवाद का यही संदेश है, और मेरा भी यही सिद्धांत है!

गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

तुम्हें कौन ले जाएगा?

 एक सुंदर कहानी।

एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है।
वह डर के मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई।
वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था।
उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस कीचड़ के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी। वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा। दोनों ही करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फंस गए।
दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था।
थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है?
बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं। मेरा कोई मालिक नहीं। मैं खुद ही जंगल का मालिक हूं।
गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारी उस शक्ति का यहां पर क्या उपयोग है?
उस बाघ ने कहा, तुम भी तो फंस गई हो और मरने के करीब हो। तुम्हारी भी तो हालत मेरे जैसी ही है।
गाय ने मुस्कुराते हुए कहा,.... बिलकुल नहीं। मेरा मालिक जब शाम को घर आएगा और मुझे वहां पर नहीं पाएगा तो वह ढूंढते हुए यहां जरूर आएगा और मुझे इस कीचड़ से निकाल कर अपने घर ले जाएगा। तुम्हें कौन ले जाएगा?
थोड़ी ही देर में सच में ही एक आदमी वहां पर आया और गाय को कीचड़ से निकालकर अपने घर ले गया।
जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरे की तरफ कृतज्ञता पूर्वक देख रहे थे। वे चाहते हुए भी उस बाघ को कीचड़ से नहीं निकाल सकते थे, क्योंकि उनकी जान के लिए वह खतरा था।
*गाय : समर्पित ह्रदय का प्रतीक है।*
*बाघ : अहंकारी मन है।*
*और*
*मालिक : ईश्वर का प्रतीक है।*
*कीचड़ : यह संसार है।*
*और*
*यह संघर्ष : अस्तित्व की लड़ाई है।*
*किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है, लेकिन मैं ही सब कुछ हूं, मुझे किसी के सहयोग की आवश्यकता नहीं है, यही अहंकार है, और यहीं से विनाश का बीजारोपण हो जाता है।*