बुधवार, 12 जनवरी 2022

स्वामी विवेकानंद 'विश्व धर्म सम्मेलन .

 स्वामी विवेकानंद की जयंती(12 जनवरी)के अवसर पर पुण्य स्मरण..

"स्वामी विवेकानंद ने मंदिर-मस्जिद का फंडा कभी खड़ा नहीं किया। ":-भगनी निवेदिता
आज सारा भारतवर्ष स्वामी विवेकानंद की जयंती पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है। उन्हें विनम्रता पूर्वक सर्वश्रेष्ठ आदरांजलि यही हो सकती है कि स्वामीजीकी कालजयी शिक्षाओं और उनके सार्वदेशिक विचारों का प्रत्येक दौर की युवा पीढ़ी द्वारा अनुशीलन आत्मार्पण और मानवीयकरण किया जाए।
प्रत्येक दौर की भारतीय युवा पीढ़ी को स्वाधीनता संग्राम और भारतीय राजनीति के दिशा निर्देशों के लिए जो दिग्दर्शन 'शहीद भगत सिंह के विचारों से प्राप्त हो सकता है!विश्व धर्म-दर्शन अध्यात्म और हिन्दू धर्म मीमांसा के लिए भारत के समस्त धर्मनिपेक्ष जनों को वही दिशानिर्देश स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्राप्त हो सकता है।
स्वामी विवेकानंद जब उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में भारत से शिकागो 'विश्व धर्म सम्मेलन ' पहुँचे तब तक वे केवल विशुद्ध भारतीय आध्यार्मिक हिन्दू परिव्राजक मात्र थे। किन्तु जब उन्होंने महीनों तक समुद्री मार्गों से न केवल अमेरिका की बल्कि फ़्रांस, इंग्लैंड, यूरोप की भी यात्राएँ कीं ! स्वामीजी जब भारत लौटे तब वे एक तर्कवादी विज्ञान वादी चिंतक,महान युगप्रवर्तक तथा शोषित पीड़ित समाज के उद्धारक के रूप में विश्व विख्यात हो चुके थे।
वे जब तक विश्व धर्म महा सम्मेलन के मंच पर थे तब तक वे केवल एक आध्यात्मिक मुमुक्षु मात्र थे। वे वहाँ भगवान रामकृष्ण के एक मामूली शिष्य की हैसियत से गए थे! तब वे 'हिन्दू 'धर्म के प्रवक्ता एवं वेदान्त के भाष्यकार मात्र थे। किन्तु जब उन्होंने फ्रांस जर्मनी अमेरिका,यूरोप के विद्वानों को पढ़ा और जाना,उनकी भौतिक समृद्धि के साथ-साथ वैचारिक क्रांति के अमरगीत पढ़़े तो उनका व्यक्तित्व और ज्यादा निखर गया।
वे पूर्व और पश्चिम के नवीन महानतम सेतु समन्वयक बनकर जग प्रसिद्ध हो गए। उन्ही के शब्दों में ]:-
''मैंने पाश्चात्य कीशक्ति ,साहस,प्रतिभा,वैलेट की राजनीति और डेमोक्रेसी को देखा।वैज्ञानिक आविष्कारों को देखकर चकित हुआ। किन्तु जब बनियों के धन लोभ को देखा, साम्राज्य्वादियों की बिकट साम्राज्य लिप्सा को देखा तो मुझे किंचित क्षोभ और सम्भ्र्म हुआ '',,,,,,,,,,
''संसारसमुद्र के सर्वविजयी वैश्य शक्ति के अभ्युत्थान रुपी महातरंग के शीर्ष पर शुभ्र फेन -राशि के बीच इंग्लैंड के सिंहासन को स्थापित देखा '',,,,,,,''
"इंग्लैंड में मैंने ईसा मसीह ,बाइबिल ,राजप्रसाद और सैनिक शक्तिको देखा , प्रलयंकर के पदाघात ,तूर्य-भेरी का निनाद ,राज सिंहासन का ऐश्वर्य आडंबर देखा ,इन भौतिक भव्यताओं के पीछे खड़े अनुशासंबद्द वास्तविक इंग्लैंड को देखा ,,,,,,धुआँ उगलती चिमनियां ,मटमैले मज़दूरों की असंख्य सेना और उनके निस्तेज चेहरों को देखा,,,,,,पण्यवाही जहाज़ों और युद्धक्षेत्र की नयी -नयी आधुनिकतम मशीनों ,तोपों ,टैंकों के साथ -साथ 'जगत के बाजार'की जननी और उसकी साम्राज्ञी को भी देखा ,,,,,''
[सन्दर्भ ;-अब भारत ही केंद्र है - पृष्ठ -३१५ ,लेखक -स्वामी विवेकानंद ]
''यदि वंश परम्परा से भावसंक्रमण के नियमानुसार ब्राह्मण विद्या सीखने के लिए स्वतः योग्य है तो ब्राह्मणों की शिक्षा पर धन व्यय न करके 'अस्पृश्य'जाति की शिक्षा के लिए सारा धन लगा दो '',,,,,,दुर्बल की सहायता करो ,,,ब्राह्मण यदि बुद्धिमान होकर ही पैदा हुए हैं तो वे दूसरों की सहायता के बिना ही शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। किन्तु जो लोग बुद्धिमान होकर जन्म नहीं लेते शिक्षा की जरुरत उन्हें है '',,,,,,,,
''किसी महान आदर्श पुरुष में विशेष अनुरागी बनकर उनके झंडे के नीचे खड़े हुए ,एकजुट संघर्ष के बिना कोई भी राष्ट्र उठ नहीं सकता '',,,,,,,
''आत्मनो मोक्षार्थ जगद्धिताय च ,,,उत्तिष्ठत ,जागृत,प्राप्य वरान्निवोधत'' [सन्दर्भ : उपरोक्त वही ]
वैसे तो स्वामी विवेकानंद ने जो कुछ भी कहा है और जो कुछ भी लिखा है उसकी इस सन्सार में कोई सानी नहीं। किन्तु उपरोक्त उद्धरित पुनरावृत्ति में सिर्फ अंतिम कथन-आत्मनो मोक्षार्थ ,,,,,, ही ऐंसा है जो विशुद्ध आध्यात्मिक किस्म का है। यह श्लोक भी स्वामी जी का स्वरचित नहीं बल्कि वेदप्रणीत है। बाकी सभी कथन स्वामी जी के हैं जो बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद ने आज के हिन्दुत्ववादियों की तरह मंदिर-मस्जिद का फंडा खड़ा नहीं किया।
१८९१ के शिकागो विश्व धर्म महा सभा अथवा महा सम्मेलन में वैसे तो 'अखंड गुलाम भारत' से सभी धर्मो-मजहबों के प्रतिनिधि गए थे और वे ततकालीन अंग्रेज सरकार से आज्ञा लेकर ही गए थे ,अर्थात वे सब उस सम्मेलन में ब्रिटिश सरकार के मान्यताप्राप्त नुमाइंदे थे । किन्तु स्वामी विवेकानंद ही एकमात्र भारतीय - जनप्रतिनिधि थे। उस सर्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने न केवल हिन्दू धर्म बल्कि विश्व के तमाम प्रचलित धर्म-मजहब के पाखंडवाद पर प्रहार किया और उनकी मूल शिक्षाओं और उद्घोषणाओं की याद दिलाई। स्वामी विवेकानंद ही एकमात्र ऐंसे धर्म -प्रतिनिधि थे जिन्होंने भाववादी आध्यात्मिक विचार यात्रा को पश्चिम की मानवीय ,युगांतकारी और वैज्ञानिकवादी भौतिकवादी चेतना से समन्वय का शंखनाद किया।
स्वामी विवेकानद न केवल गुलाम भारत की अस्मिता को वापिस लाने में समर्थ रहे। बल्कि राष्ट्रीय चेतना स्वाधीनता और पश्चिम की सर्वहारा क्रांतियों से भारतीय दरिद्रनारायण की मुक्ति का क्रांतिकारी सन्देश भी सर्वप्रथम स्वामी विवेकानंद ही भारत में लाये थे। उन्होंने अध्यात्म और वैज्ञानिक भौतिकवाद के आधुनिक विशिष्टाद्वैत को वेदांत और अद्वैत वेदान्त के सामने खड़ा कर दिया। भारत की प्रबुद्ध जनता सदैव उनकी शिक्षाओं का आदर करेगी। स्वामीजी के आह्वान का अनुशीलन करते हुए अपने अभीष्ट को प्राप्त करेगी।
स्वामीजी आपने कहा था " हे विश्व के तमाम भाइयो -बहिनों,किसान और मजदूरो आधुनिक सूचना संचार तकनीकि में दक्ष युवा छात्रो, उन्नत विज्ञान युग के नियामक नियंताओ! सुनो!
जब तुम यूरोपियन ,अफ्रीकन,अमेरिकन और अरेबियन -असभ्य बंदरों की भांति पेड़ों पर ,पर्वत कंदराओं में, काठ के मचानों पर उछल कूंद किया करते थे ,तब तुम्हारे पूर्वजों के समकालिक हमारे पूर्वज -भारतीय मनीषी - ऋषिगण विराट गुरुकुलों में , खेतों में ,उज्जवल धवल सरिताओं की निर्मल धारा के मध्य 'ब्रहमांड का उदयगान' किया करते थे। वे साहित्य - कला -संगीत ज्योतिष,व्यकरण,गणित,आयुर्वेद मर्मग्य ,वेद मन्त्र दृष्टा अपने दैनिदिन स्वध्याय में सस्वर पाठ करते थे ...
सर्वे भवन्तु सुखिन : सर्वे संतु निरामय!
सर्वेभद्राणि पश्यंतु,माकश्चिद दु:ख भागवेत!!
अयम निज:परोवेति,गणना लघु चेतसाम !
उदारचरितानामतु वसुधैव कुटुम्बकम!!
उतिष्ठत जाग्रत प्राप्यवरान्निवोधत..क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्या..
और
कृण्वन्तो विश्वम आर्यम".........
का उद्घोष किया करते थे!
हे अमेरिका यूरोप वासियों! भारत को ज्ञान की नहीं आजादी की जरुरत है ,उसे दे सको तो रोटी दो ,कपडे दो तकनीक दो और लौटा सको तो उसका प्राचीन गौरव वापिस लौटा दो,उसकी स्वतंत्रता! .......
भारत तो परमेश्वर के अवतारों की पावन पुन्य धरा है".......
यदि आज स्वामी विवेकानंद होते तो कुछ यौ कहते- हे विश्व के तमाम भाइयो -बहिनों आज जब तुम आर्थिक मंदी की मार से पीड़ित होते हुए भी अपने-अपने राष्ट्रों की सांस्कृतिक विरासत को पूंजीवादी प्रजातांत्रिक प्रक्रिया जनित असमानता के वावजूद क्रान्ति की ललक से स्वर्णिम युग की दहलीज पर ले जा चुके हो, आज जब तुम्हारे मुल्क में बिना किसी भय के माँ - बहिन-बेटी पत्नी प्रेयसी कंही भी कभी भी आ-जा सकती है आज जब तुम्हारे मुल्कों में लैंगिक असमानता लगभग समाप्ति पर है,आज जब तुम्हारे राष्ट्रों में यौन वर्जनाओं का पुरातन पुरुष सत्तात्मक आधार प्राय: समाप्ति की ओर है, तब मेरे भारत में -सम्पूर्ण देश में ,उसकी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ,उसकी सडकों पर चलती हुई बसों में नारी के केवल शरीर को ही नहीं अपितू उसकी आत्मा तक को बुरी तरह रौदा जा रहा है। हम भारत वासियों ने सांस्कृतिक पतन और सामाजिक अधोगति और आर्थिक असमानता के कीर्तिमान स्थापित कर लिए हैं। हमारे यहाँ दुनिया के टॉप 100 में से 10 मिलियेनार्स हैं,हमारे यहाँ दुनिया की 50 ताकतवर महिलाओं में से 20 भारतीय हैं। हमारे यहाँ दुनिया के सबसे ज्यादा स्विस बैंक खाता धारक हैं, हमारे यहाँ वर्षों तक महिला प्रधान मंत्री रही,हमारे यहाँ महिला राष्ट्रपति रही,हमारे यहाँ- सत्ता धारी गठबंधन की सर्वोसवा महिला , विपक्ष की महिला नेत्री,महिला लोकसभा अध्यक्ष, महिला सांसद,महिला विश्व सुन्दरी,महिला उद्द्य्मी,महिला राज्यपाल,महिला मुख्यमंत्री, महिला विदेश सचिव,महिला राजदूत,महिला इंजीनियर ,महिला डॉक्टर,महिला प्रोफ़ेसर से लेकर महिला क्लर्क,महिला नर्स महिला दाई सब कुछ है, हमारे स्वाधीनता संगाम में नारी शक्ति की आहुति और अतीत में भी अनेक कुर्वानियाँ नारियों के नाम लिखी गईं हैं। फिर भी हे दुनिया के भाइयो!बहिनों! हम भारतीय आज इस धरती पर सबसे ज्यादा नारी उत्पीडन के लिए कुख्यात हो चुके हैं, हमारे खाप पंचायत वाले, हमारे रिश्वतखोर,हमारे सत्ता के दलाल,हमारे भृष्ट हुक्मरान हमारे वोट अर्जन राजनैतिक दल , नारी को आज भी केवल और केवल भोग्य समझते हैं, हे विश्व के महामानवो! मैं 150 साल पहले अपनी देव भूमि,पुन्य भूमि गंगा जमुना की पावन धरती को हिमालय की गोद में "एक वर्ग विहीन,शोषण विहीन,लैंगिक -आर्थिक- सामाजिक -समानता पर आधारित खुशहाल उन्नत भारत राष्ट्र की अभिलाषा लेकर आया था। मेरे गुरु परमहंस रामकृष्ण की असीम अनुकम्पा से मेने सारे संसार में इस प्राचीन राष्ट्र के खोये हुए स्वाभिमान को जगाया था। मुझे वेहद दुःख है की मेरा 'भारत महान ' आज कन्या भ्रूण हत्या,नारी-उत्पीडन,गेंग-रेप और महिलाओं पर अमानवीय अत्याचारों की अनुगूंज से शर्मशार हो रहा है,मेरी आत्मा का चीत्कार सुनने वाले शायद इस भारत भूमि पर अब बहुत कम बचे हैं , मेरा आशीर्वाद है उनको जो मेरे पवित्र संकल्प को पूरा करने के लिए आज भी धृढ प्रतिज्ञ हैं। भारतीय न्याय व्यवस्था ,भारतीय मीडिया ,भारतीय युवाओं को मेरा सन्देश हैं कि वे बिना झुके,बिना डरे, बिना स्वार्थ -भय के भारत में नारी के सम्मान को पुन: स्थापित करने-सामाजिक,लैंगिक,आर्थिक असमानता मिटाने के लिए एकजुट हों-जागृत हों,संघर्षरत हों!!
दोहा:-
लिंग भेद असमानता ,
सत्ता मत्त गयंद .
नारी उत्पीडन लखि,
व्यथित विवेकानंद ..
संस्कृति उत्तर आधुनिक,
दिखती है पाषाण .
आडम्बर उन्नत किया,
मन -मष्तिक शैतान ..
नारी-नारी सब कहें,
नारी नर की खान .
नारी से नर प्रकट भये,
विवेकानंद सामान ..

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