बुधवार, 26 जनवरी 2022

राजनैतिक आलोचना का मतलब दुश्मनी नही है!

आम धारणा है कि आलोचना तभी होती है जब कुछ गलत किया जाता है असंवैधानिक या लोकमान्यताओं के विरुद्ध किया जाता है। यदि कुछ मत करो तो फिर आलोचना का कोई खतरा नहीं। हो सकता हो इस सोच में आंशिक सच्चाई हो किन्तु राजनीति के क्षेत्र में तो अधिकांशतः आलोचना केसूत्र यही हैं!
समकाल में राजनैतिक आलोचना केवल सत्ता प्राप्ति की अभीष्ट अभिलाषा से और विपक्षी दलोंके सर्वनाश की कामना से प्रकट होती रहती है! मेरे इस कथन पर यकीन न हो तो मोदी जी के 7-8 साल पुराने उस वक्तब्य पर गौर करें जिसमें वे कहते पाये गए हैं कि *भारत को कांग्रेस मुक्त बनाना है*
वेशक कांग्रेस के कुछ नेता,नीतियां और कार्यक्रम देश के लिये घातक रहे! किन्तु यह सदैव याद रखा जाना चाहिए कि पाकिस्तान की फौजी तख्ता पलट की तरह कांग्रेस सत्तामें कभी नहीं आई। बल्कि जनता ने उसे खुद बार-बार बहुमत से चुना ! यह जनादेश का अपमान ही होगा कि चुनी हुई सरकारों को सिर्फ इसलिए गाली दी जाए कि 'काश हम सत्ता में क्यों न हुए '? वेशक यदि आपके पास बेहतर नीतियां -कार्यक्रम और ईमानदार नेत्तत्व क्षमता है तो अपने 'विजन' घोषणा पत्र पर अमल करके दिखाएं! राष्ट्र की सम्पदा मुफ्त लुटाकर सस्ती लोकप्रियता के बल पर चुनावी बढ़त हासिल करें और सत्ता पर कब्जा करें!
वेशक कांग्रेस को जनता ने पहले भी हराया था और आइंदा भी जीतेगी- हारेगी। किन्तु कांग्रेस या किसी अन्य लोकतांत्रिक पार्टी को समूल खत्म करने की बात करना किसी भी नजर से प्रजातान्त्रिक भावना नहीं है। यह कदाचार हिटलर ,जिया उल हक़ या ईदी अमीन या रावर्ट मुगाबे ही कर सकते थे!
किन्तु गांधी,सुभाष,सरदार पटेल या नेहरू जैसे कांग्रेसी नेताओं की पार्टी कांग्रेस का ऐंसा व्यवहार कदापि नही रहा!भले हीआज जातिवादी नायकों की सैकड़ों मूर्तियां बनाते रहो किंतु त्याग ,बलिदान और निजी स्वार्थ को होम किये बिना,भगतसिंह आजाद जैसे, और अस्फाक उल्लाह खां जैसे क्रांतिवीरों को स्वाधीनता संग्राम कीउसी पवित्र अग्नि ने सुर्खुरु किया था,जिसे पंडित मोतीलाल नेहरु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ,गोखले और लाल बाल पाल ने मूल्यों को आदर्श मानकर सामूहिक प्रयासों से स्थापित किया था!
लोकतंत्र की आराधना भारतीय संविधान की प्रस्तावना में निहित संकल्प को पूरा करने से ही सम्भव है। वरना वर्तमान बदनाम बनाना गणतन्त्र तो धनतंत्र या लूटतंत्र से ज्यादा कुछ नहीं है। किसी भी गणतंत्र राष्टु में राजनीतिक आलोचना एक सकारात्मक फैक्टर है ,किंतु राजनैतिक आलोचना का मतलब दुश्मनी नही है!खुशी की बात है कि तमाम खामियों के वावजूद भारत में 'फासिज्म' को कोई स्थान नहीं। क्योंकि यहां अनेकता में एकता ही इस राष्ट्र की मूलभूत विशेषता है!
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
मनीष उपाध्याय and LN Verma

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