एक सज्जन बोले:- आप ठीक ठाक लिख लेते हो,धर्म मजहब पर काव्य क्यों नही लिखते? मैने कहा:-धन्यवाद! मैं जो कुछ लिख रहा हूँ,मेरे लिये वही धर्म है!
उन्हें नहीं मालूम कि कविता लिखी नहीं जाती बल्कि अपने आप लिख जाती है.it is overflow of emotions.... जिसे हिंदी में कहते हैं कि.. *निकल कर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान*
ऐसे लोगों पर तरस आता है जिन्हें कविता का क ख ग नहीं आता बे कमेंट करते हैं.
बकौल नीरज... *ना पीने का तरीका ना पिलाने का शऊर कैसे कैसे लोग आ जाते हैं मयखाने में*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें