आज़ादी के छह महीने पूरे होने से पहले ही गांधी को गोडसे ने मार दिया। अच्छा ही किया। गांधी ने तो कहा था कि देश का विभाजन मेरे मृत शरीर पर ही होगा। पर हो गया विभाजन। तो गांधी तो मन से मर ही चुके थे। 78 साल के हो चुके थे । कुछ साल और जी लेते हैं मरे मन से। नाथूराम गोडसे ने तीन गोली मारकर मुक्ति दे दी और फिर विकृत चेहरा सामने आया चरमपंथी हिंदूवादी संगठनों का । फांसी तो नाथूराम को हुई पर सदा के लिए कलंकित तो वही हुए - चरमपंथी हिंदूवादी संगठन।
आज भले वे गोडसे को शहीद कहें , 30 जनवरी को गांधी हत्या के दृश्य को हर साल दोहराएं पर इतिहास में उनका नाम गांधी के हत्यारों के रूप में दर्ज रहेगा ही। उस आदमी की हत्या जिसको दुनिया में करोड़ों लोगों ने ( अपने देश के बाहर के ) अपना आदर्श माना। इस श्रेणी में कुछ धार्मिक नाम ही हैं - कृष्ण , राम , मोहम्मद , बुद्ध , नानक और जीसस जैसे । पर इंसानों में ? गांधी के अलावा सबसे अधिक प्रभावशाली रहे हैं शायद कार्ल मार्क्स पर केवल विचारों के लिए। अपने चरित्र और व्यवहार के लिए केवल एक ही नाम है - मोहनदास करमचंद गांधी।
खूब बनाओ गांधी के पुतले और गोली मारकर खून बहाने के दृश्य दिखाओ। जीसस का सबसे मशहूर चित्र सूली पर लटके जीसस का ही है , लोगों को समझाते हुए जीसस का नहीं। उनकी मौत ही उनका पैगा़म था। गांधी की मौत भी एक पैगा़म है। कैसे नफ़रती लोग एक पतले - दुबले बूढ़े को विचारों से नहीं हरा सकते तो गोली ही मार देते हैं । इससे बड़ा मानसिक दिवालियापन का सबूत और क्या होगा ? संघियों , गांधी की हत्या तो तुम्हारी वैचारिक हार का सबसे बड़ा प्रतीक है ।
युद्ध में कभी-कभी असुर भी जीत जाते थे पर तभी कोई दधीचि आता था और अपनी देह का दान कर देता था। कभी कंस आया , तो कभी रावण आया और कभी हिरण्यकश्यप - सब अजेय, अमर होने का वरदान लेकर। परंतु सत्य के सामने कहां टिके। नब्बे साल की कोशिश के बाद कुछ साल रह लोगे। इतिहास तुम्हें कैसे याद करेगा बताने की ज़रूरत नहीं है।
शरीर में तीन गोली खाने वाला इंसान तुम्हें सताता रहेगा ...बार-बार मारना... बार बार खड़ा होकर कहेगा : बस और गोलियां नहीं है ! उसकी अहिंसा में वीरता थी और तुम्हारी हिंसा में कायरता ।
हम तो दक्षिण अफ्रीका में डरबन से प्रिटोरिया जाते समय गांधी के सहयात्री उस गोरे को भी धन्यवाद करते हैं जिसने 7 जून 1893 को सर्दी की रात में नवयुवक मोहनदास गांधी को कुली कहकर पीटरमेरिटज़बर्ग स्टेशन पर नीचे धक्का दे दिया था। ऐसा ना करता तो मोहनदास करमचंद गांधी महात्मा गांधी न बनता , एक वकील बन कर रह जाता। पीटरमेरिटज़बर्ग स्टेशन पर गांधी के नाम की तख्ती लगी है और बाहर गांधी की कांस्य की मूर्ति लगी है । उस गोरे का नाम भी किसी को याद नहीं है । गांधी को शहादत दिलाने के लिए धन्यवाद नाथूराम गोडसे। साभार : एफ बी
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