मनुष्य का बल पौरुष जांचने के,
आधुनिक युग में चुनौतियां बहुत हैं।
तूफ़ान में दिए जलाये रखने के लिये,
साइंस के अधुनातन ठिये बहुत हैं।।
भृष्टाचार को उखाड़ फेंकने के लिये,
परखे हुए अचूक निशाने भी बहुत हैं!
सदियाँ गुजर गईं जिनको संवारने में,
उन मूल्यों को बचाने वाले बहुत हैं!!
अन्याय करने वाले यदि बहुत से हैं,
तो उनसे निपटनेके साधन:भी बहुत हैं!
यदि भय भूँख प्राक्रतिक आपदाएं हैं,
उनसे निपटने के लिये किसान बहुत हैं!!
यदि सहज है नाक नक़्श की शल्यक्रिया,
तो व्यवस्था परिवर्तन के शस्त्र भी बहुत हैं!
मनुष्य का बल पौरुष जाँचने के लिये,
आधुनिक युग में चुनौतियां बहुत हैं!!
श्रीराम तिवारी
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