2014 के चुनाव में नव पूँजीवादी ताकतों ने तानाशाही पूर्ण तरीके से भारत देश को जबरन हथिया कर आर्थिक दलदल में धकेल दिया! देश के तत्कालीन प्रबुद्ध वर्गने खूब समझाया कि यह काम सत्ता के दलालों का नहीं बल्कि आर्थिक विशेषज्ञों,*पॉलिटिकल साइंस* को जानने वालों का है। किन्तु घोर साम्प्रदायिक तत्वों के दबाव में अर्धशिक्षित ढपोरशंखियों ने अपनी अटल हठधर्मिता नहीं छोड़ी। उन्होंने कांग्रेस के कुशासन और भ्रस्टाचार का खूब फायदा उठाया! अमीर और ज्यादा अमीर बना दिये,गरीबों मजूरों को आदतन मंगता याने खैराती बना दिया!
इस पर तुर्रा ये कि महामारी के इस दौर में भी वे *देश आगे बढ़ रहा है* की धुन बजाये जा रहे हैं!
यूनानी दार्शनिक प्लेटो, अरस्तु और जर्मन दार्शनिक इमानुएल कॉंट एवं इटालियन दार्शनिक ऐंटोनियो ग्राम्सी बार बार कह गए हैं कि " यदि किसी मुल्क का शासक महान अर्थशास्त्री ना हों,महान दार्शनिक न हो, महान वैज्ञानिक न हों तो चलेगा और चिंतक न हों तब भी चलेगा !
किंतु "यदि शासक वर्ग में गंभीरता न हो,करुणा-विवेक न हो,जनता की अपेक्षाओं का ज्ञान न हो तो कुछ भी नही चलेगा!यदि ऐंसे लोग किसी देश के शासक हों, तो उसका भगवान ही मालिक है!,"
ऐंसे ही शासकों के लिए संत कबीर कह गए हैं:-
"जो कोई समझे सैन में ,तासों कहिये बैन।
सैन बैन समझे नहीं ,तासों कछू न कैन।।"
अर्थ :- कबीरदास जी कहते हैं कि जो इशारे में ही समझ ले ,बात उससे करो। जो संकेत -बात कुछ नहीं समझता ,उसके सामने कितनाही ज्ञान उड़ेलो ,सब बेकारहै।
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