वेशक अनेक अनगिनत कुर्बानियों की कीमत पर भारत को आजादी मिली,किन्तु अंग्रेजों की क्रूर दुरभिसंधि मुस्लिम लीग और कुछ जातिवादी नेताओं की गद्दारी से मुल्क का बटवारा हो गया। भारत पकिस्तान दो मुल्क बनाकर अंग्रेज यहां से विदा हो गए।सिर्फ जमीन का बटवारा नहीं हुआ,भारतीय आत्मा का भी बटवारा हो गया। मुस्लिम लीग और हिंदूवादी संगठनों ने आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं दिया। महात्मा गाँधी ,पंडित मोतीलाल नेहरू,पंडित मदनमोहन मालवीय,पंडित गोविन्दवल्ल्भ पंत,लोकमान्य बल गंगाधर तिलक,लाला लाजपत राय,विपिनचंद पाल,आसफ अली,सीमान्त गाँधी अब्दुल गफ्फार खान,पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुउल्ला खान, सआदत खान,मौलाना आजाद,भगतसिंग ,चंद्रशेखर आजाद,सुखदेव राजगुरु,पंडित जवाहरलाल नहरू,सरदार पटेल,डॉक्टर राजेंद्रप्रसाद, सर्वपल्ली राधाकृष्णन,महाकवि सुब्रमण्यम भारती और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे अनेक हुतात्मओं की बदौलत यह आधी अधूरी आजादी मिल सकी थी।
बुधवार, 26 जनवरी 2022
डर्टी पॉलिटिक्स का सिलसिला
स्वाधीनता संग्राम के दौरान आंदोलनकारी जनता और नेतत्व करने वालों को अंग्रेजों की लाठी गोली खाना, दमन उत्पीड़न भोगना और जेल जाना तो आम बात थी,किन्तु इस संघर्ष में असल चीज थी भीतरघात याने गद्दारी! १९३१-३२ के दरम्यान लंदन में संपन्न गोलमेज कांफ्रेंस के दौरान जब महात्मा गाँधी ने देखा कि बेमन से ही सही,किन्तु अंग्रेज सशर्त आजादी देने को तैयार हैं। चूँकि अंग्रेजों ने जाति मजह्ब के आधार पर भारत के कई जयचंद अपने जाल में फंसा लिए हैं,तब गांधीजी ने गोलमेज कॉन्फ्रेंस से वॉक आऊट कर दिया। और भारत आकर कांग्रेस से लगभग संन्यास ही ले लिया। अंग्रेजों की गोद में बैठने वालों में मिस्टर जिन्ना सहित वे सभी नेता थे जो साम्प्रदायिकता और जातिवादी राजनीति के जनक माने जा सकते हैं। उन्हीं के बिषैले सपोले अभी भी भारतीय उपमहाद्वीप में आग मूत रहे हैं।
स्वाधीनता संग्राम की गंगा जमुनी तहजीब के बावजूद आजादी से पूर्व भारत का विभाजन न केवल शर्मनाक बल्कि धर्मनिरपेक्षता पर धर्मान्धता की विजय का सूचक भी है। उसकी वजह से भारत में अमानवीय साम्प्रदायिक हिंसा और उस पर आधारित डर्टी पॉलिटिक्स का सिलसिला 75 साल बाद मुसलसल कायम है.
श्रीराम तिवारी
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें