शनिवार, 8 जनवरी 2022

दुर्भाग्यवश बाहर खड़े हैं,

 कल्पना करें कि 70 सवारियों से ठसाठस भरी 55 सीटर बस के बाहर कुछ लोग और खड़े हैं, किंतु जो अंदर बैठे हैं, उनका कहना है कि बस के अंदर सिर्फ उनकी जाति वालों को ही अंदर बिठाया जाये! सवाल यह है कि जो दुर्भाग्यवश बाहर खड़े हैं, क्या उनका इस भारतीय लोकतंत्र में कोई हक नहीं ? राज्य या केंद्र सरकार जब कुछ जाति विशेष के लोगों को ही दूध मलाई खिलाएगी,सरकारी नौकरियों में बिठायेगी तो उन बेचारों का क्या होगा,जो गरीब तो हैं किंतु दुर्भाग्य से सवर्णं हैं?

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