उत्तरमीमांसा का सबसे विशेष दार्शनिक सिद्धान्त यह है कि जड़ जगत का उपादान और निमित्त कारण चेतन ब्रह्म है। जैसे मकड़ी अपने भीतर से ही जाल तानती है, वैसे ही ब्रह्म भी इस जगत् को अपनी ही शक्ति द्वारा उत्पन्न करता है। यही नहीं, वही इसका पालक है और वही इसका संहार भी करता है। जीव और ब्रह्म का तादात्म्य है और अनेक प्रकार के साधनों और उपासनाओं द्वारा वह ब्रह्म के साथ तादात्म्य का अनुभव करके जगत् के कर्मजंजाल से और बारंबार के जीवन और मरण से मुक्त हो जाता है। मुक्तावस्था में परम आनन्द का अनुभव करता है।"
:-अद्वैत वेदांत
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