शाम को गार्डन में संग संग ईवनिंग वॉक करते हुए भाजपा समर्थक मेरे सीनियर रहे बड़े अधिकारी उर्फ पूर्व सेवानिवृत्त मंडल अभियंता ने मुझे चिढ़ाने की गरज से घिसा पिटा डॉयलॉग मारा :-
"दुनिया में तुम्हारे मार्क्सवाद का अब कोई भविष्य नहीं!
मैने कहा :- यह तो आपको और आपके संघ परिवार के लिये खुशी की खबर है!
उन्हें मुझसे ऐंसे जबाब की आशा नही थी, वे चाहते थे कि मैं उनकी मन:स्थिति अनुसार मार्क्सवाद की व्यथा कथा पर अरण्य रोदन करूंगा! उन्होंने निराशा से ठंडी आह भरी और खुद ही गुजरे जमाने के कॉमरेडों को याद करते हुई उनकी इज्जत ऑफजाई करने लगे! साम्यवादी क्रांति का गुणगान करने लगे! उनके इस वक्ती कायाकल्प में मार्क्स के सिद्धांतों की खूबियां नही बल्कि इस दौर के दक्षिणपंथी निजाम की बदतरी पर उन्हें खुद अफशोस हो रहा था!
उनके इस तरह के अप्रत्याशित व्यवहार पर मैने उन्हें मार्क्सवाद की खूबियों और विश्व सर्वहारा क्रांति पर लंबा लेक्चर सुना दिया !
मैने सिद्ध कर दिया कि जब मनमोहनसिंह मनरेगा आरंभ करते हैं तो वे वामपंथी होते हैं और जब मोदी जी कोरोना काल में गरीबों को मुफ्त राशन बांटते हैं, तब वे भी वामपंथी होते हैं! जब मोदीजी के राज में 600 से ज्यादा आंदोलनकारी किसानों की मौत हो जाती है,तब वे हिटलर और मुसोलनी से भी ज्यादा खतरनाक नजर आते हैं!
इसी तरह सारी दुनिया के शासक, चाहे वह कितना ही क्रूर और अनुदार क्यों न हो, यदि वह जनता के हितों की अनदेखी करता है , तो वह दक्षिणपंथी और प्रतिक्रियावादी है!वैसे मार्क्सवादी विद्वानों और हिन्दुत्ववादी धंधेखोरों में पहला अंतर तो विद्वत्ता और धंधेबाज़ का है, दूसरा, मार्क्सवादी सत्य -समग्रता में देखते हैं!मार्क्सवाद सदैव प्रासंगिक रहेगा ! हिन्दुत्ववादी धर्म को गप्प और एकांगिकता के नज़रिए से देखते हैं। तीसरा, मार्क्सवादी लोग ग़रीबों के प्रति अटूट रुप से जुड़े हैं जबकि हिन्दुत्ववादी अमीरों के हितों से जुड़े हैं।
चौथा, मार्क्सवादी सच्चे देशभक्त होते हैं,जैसे तिलक,भगतसिंह,चंद्रशेखर आजाद, कैप्टन लक्ष्मी सहगत इत्यादि!
मैने कहा -नकली हिन्दुत्ववादी कभी देशभक्त नहीं होते,वे हमेशा साम्राज्यपरस्त होते हैं । वे राष्ट्रवाद की नाव पर सवार होकर, खतरनाक लहरों से खेलते हैं!
दुनिया में जब कभी, जहां कहीं कोई नंगा भूखा इंसान रहेगा, तब तक धरती पर क्रांति का सम्मान रहेगा! भय भूख भ्रष्टाचार और बेरोजगारी का नामोनिशान रहेगा, तब तक दुनिया में मार्क्सवादी दर्शन का बोलबाला रहेगा!
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